भारत में सिविल डिफेमेशन के बारे में जाने

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Civil Defamation
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इस लेख में, Yash Kansal, भारतीय कानूनी प्रणाली (सिस्टम) में सिविल डिफेमेशन के प्रावधान (प्रोविजंस) पर चर्चा करते हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

डिफेमेशन

यह किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा (रेप्यूटेशन) को चोट पहुँचाता है, अर्थात किसी व्यक्ति की गुडविल या उसके चरित्र को नुकसान पहुँचाता है। अंग्रेजी कानून के तहत, यह दो प्रकार का है ‘लिबल और स्लैंडर’। लिबल एक स्थायी (पर्मनेंट) रूप में किया गया एक प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंटेशन) है, जिसका अर्थ है कि इसे प्रकाशित (पब्लिश) किया जाना चाहिए, चाहे वह लिखित, प्रिंटेड, चित्र, मूर्ति आदि के माध्यम से हो। जबकि स्लैंडर, मौखिक या हाव-भाव (जेस्चर्स) के रूप में किया गया एक प्रतिनिधित्व है, उदाहरण के लिए, बोले गए शब्दों या हाव-भाव से। अंग्रेजी कानून में, लिबल एक अपराध है और टॉर्ट दोनो होता है जबकि स्लैंडर केवल एक सिविल गलत है।

भारतीय जुरिस्प्रूडेंस के तहत डिफेमेशन

भारत में, मौखिक रूप से (स्लैंडर) या स्थायी रूप (लिबल) में दिए गए बयान में ऐसा कोई अंतर नहीं है। यह दोनों, टॉर्ट्स के कानून के तहत एक सिविल गलत है, और इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 499 के तहत एक अपराध है और इसकी सजा को इस कोड के तहत, 1 साल के साधारण कारावास या 1000 रुपये तक के जुर्माने या दोनों के साथ बढ़ाया जा सकता है। हालांकि, यह वादी (प्लेंटिफ) की पसंद है कि वह प्रतिपूरक उपचार (कंपेंसेट्री रेमेडी) के लिए सिविल मुकदमा दायर करना चाहता है या दंड के लिए आपराधिक मुकदमा करना चाहता है। इस लेख में, आप सिविल कानून के तहत आवश्यक, बचाव और अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में पढ़ेंगे।

सिविल डिफेमेशन का मुकदमा कौन दायर कर सकता है?

हरश मेंदीरत्ता बनाम महाराज सिंह में, यह माना गया कि डिफेमेशन की कार्रवाई केवल उसी व्यक्ति द्वारा की जा सकती है जिसे डिफेम किया गया हो और उसके दोस्तों, रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों के द्वारा कार्रवाई नहीं की जा सकती।

डिफेमेशन व्यक्तियों के समूह को संदर्भित करता है (डिफेमेशन रेफर टू ए ग्रुप ऑफ इंडिविजुअल)

जब व्यक्तियों के वर्ग या व्यक्तियों के समूह के खिलाफ डेफेमेट्री बयान दिया जाता है तो यह डिफेमेशन के तहत नहीं आता है। जैसे वकीलों, डॉक्टरों या समाज के किसी अन्य विशेष वर्ग के खिलाफ किए गए प्रकाशन पर तब तक उस समूह का कोई भी सदस्य मुकदमा दायर नहीं कर सकता जब तक कि वह यह साबित नहीं कर देता कि बयान उसी को संदर्भित (रेफर) करता है। (नुप्फर बनाम लंदन एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स लिमिटेड)।

डिफेम करने का इरादा

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि डिफेम करने का इरादा आवश्यक नहीं है। यह महत्वहीन (इम्मेटेरियल) है कि प्रतिवादी (डिफेंडेंट) तथ्यों को नहीं जानता था या उसे विश्वास था। यदि प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता है तो प्रतिवादी उत्तरदायी (लायबल) होगा। मॉरिसन बनाम रितिही एंड कंपनी में, प्रतिवादियों ने गलती से एक बयान प्रकाशित किया कि वादी ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था जबकि वादी की शादी केवल दो महीने पहले ही हुई थी। हालांकि प्रतिवादी इस तथ्य से अंजान थे, फिर भी उन्हें उत्तरदायी ठहराया गया था, लेकिन गुस्से में या जल्दबाजी में बोली गई अश्लील गाली-गलौज की बातें, जिसके लिए किसी भी सुनने वाले का उद्देश्य किसी को चोट पहुंचाने का नही होता है, तो उस मामले में ऐसा कार्य कार्रवाई योग्य नहीं होगा (पार्वती बनाम मन्नार)।

डिफेमेशन की अनिवार्यता (एसेंशियल्स ऑफ़ डिफेमेशन)

  • बयान डिफेमेट्री होना चाहिए: 

इसका मतलब यह है की, बयान के परिणामस्वरूप समाज या किसी अन्य व्यक्ति की नजर में किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा या नैतिक (मोरल) चरित्र को ठेस पहुंची हो। उदाहरण के लिए, पी. चौधरी बनाम मंजुलता में, एक स्थानीय समाचार पत्र में एक बयान प्रकाशित हुआ, जो एक 17 साल की लड़की (मंजुलता) के, कमलेश नाम के एक लड़के के साथ, रात की कक्षा के बाद परित्याग (डिजर्शन) के संबंध में था। कथन असत्य और बिना किसी औचित्य (जस्टिफिकेशन) के था। इस तरह के प्रकाशन ने उसके परिवार की प्रतिष्ठा के साथ-साथ उसकी शादी की संभावनाओं (प्रॉस्पेक्ट्स) को भी प्रभावित किया, इसलिए प्रतिवादी उस के लिए उत्तरदायी थे। कभी-कभी, एक बयान या प्रतिनिधित्व डिफेमेट्री नहीं होता है और बयान देने वाला व्यक्ति खुद को निर्दोष मानता है लेकिन कुछ बयान के माध्यमिक (सेकेंडरी) या छुपे हुए अर्थ, के कारण डिफेमेशन हो सकता है। उदाहरण के लिए, कैसिडी बनाम डेली मिरर न्यूजपेपर्स लिमिटेड के मामले में, कोर्ट ने माना कि प्रतिवादियों की स्पष्ट बेगुनाही कोई बचाव नहीं थी।

  • बयान वादी को संदर्भित करना चाहिए: 

यदि वादी द्वारा दिया गया बयान गुड फेथ में है या वह वादी को डिफेम करने के इरादे से नहीं दिया है, तो वह वादी की प्रतिष्ठा को संदर्भित करता है और यदि ऐसा बयान उसे चोट पहुंचाता है तो प्रतिवादी को उत्तरदायी ठहराया जाएगा। हल्टन एंड कंपनी वी जोन्स में, एक समाचार पत्र में एक काल्पनिक (फिक्शनल) लेख प्रकाशित किया गया था, जिसमें आर्टेमस जोन्स नामक एक काल्पनिक व्यक्ति के चरित्र पर आरोप लगाए गए थे। उसी नाम के एक व्यक्ति ने मुकदमा दायर किया क्योंकि उसके दोस्तों और रिश्तेदारों का मानना था कि लेख में उसका उल्लेख किया  गया है। इसलिए प्रतिवादियों को उत्तरदायी ठहराया गया था, जबकि समाचार पत्र में प्रकाशन डिफेम करने के इरादे के बिना किया गया था।

  • बयान प्रकाशित किया जाना चाहिए:

इसका मतलब है कि डिफेमेशन का मामला डिफेम व्यक्ति के अलावा अन्य व्यक्ति के ज्ञान में आना चाहिए। यदि वादी को डिफेमेट्री बयान वाला पत्र भेजा गया है और किसी अन्य व्यक्ति ने उसे नहीं पढ़ा है तो कोई डिफेमेशन नहीं हुआ है। डिफेमेशन साबित करने के लिए किसी तीसरे व्यक्ति से संवाद (कम्युनिकेशन) होना चाहिए। महेंद्र राम बनाम हरनंदन प्रसाद में, प्रतिवादी ने उर्दू में एक डिफेमेट्री पत्र लिखा जो वादी को ज्ञात नहीं था। किसी तीसरे व्यक्ति ने उन्हें पत्र पढ़कर सुनाया, तो कोर्ट ने यह माना कि प्रतिवादी को तब तक उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि यह साबित नहीं हो जाता कि पत्र लिखने के समय प्रतिवादी इस तथ्य के बारे में जानता था या नहीं कि वादी उर्दू लिपि को समझने में असमर्थ (अनेबल) था और उसे किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा पत्र पढ़वाने की आवश्यकता होगी। 

हालाँकि, प्रतिवादी को डिफेमेट्री दायित्व (लायबिलिटी) के विरुद्ध निम्नलिखित बचाव उपलब्ध हैं।

  • सत्य: 

यदि दिया गया या प्रकाशित किया गया कथन सत्य है और प्रतिवादी उसे साबित करने में सक्षम होता है तो उसके पास सिविल कानून के तहत पूर्ण बचाव है। यदि कथन काफी हद तक सही और सटीक होता है, लेकिन वादी को नुकसान पहुंचाने के इरादे के बिना कुछ छोटी गलती की गई है, तो उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। जैसे अलेक्जेंडर बनाम नॉर्थ ईस्टर्न रेलवे कंपनी में, वादी बिना टिकट के था और उसे एक पाउंड या 14 दिन के कारावास की सजा सुनाई गई थी, जबकि रेलवे अधिकारियों द्वारा प्रकाशित नोटिस में यह कहा गया था कि उसे एक पाउंड या 3 सप्ताह का कारावास दिया गया था और इसलिए प्रतिवादियों को उत्तरदायी नहीं ठहराया गया।

  • निष्पक्ष टिप्पणी (फेयर कमेंट): 

जनहित (पब्लिक इंटरेस्ट) के मामलों पर कोई भी निष्पक्ष टिप्पणी डिफेमेशन की कार्रवाई के खिलाफ एक बचाव है। सार्वजनिक  कम्पनियों, कोर्ट्स, सरकारी प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन), जन प्रतिनिधियों (रिप्रेजेंटेटिव), जन-उपन्यास (पब्लिक नोवल्स) आदि से संबंधित मामले जनहित के मामले माने जाते हैं। यदि टिप्पणियां वादी को नुकसान पहुंचाने की साजिश से की गई थीं, जिससे वह अपने प्रदर्शन (परफॉर्मेंस) से ध्यान खो देता है, तो यह कार्रवाई योग्य होगा (ग्रेगरी बनाम ड्यूक ऑफ ब्रंसविक)।

  • विशेषाधिकार (प्रिविलेज): 

विशेषाधिकार दो प्रकार के होते हैं अर्थात पूर्ण (एब्सोल्यूट) विशेषाधिकार और योग्य (क्वालिफाइड) विशेषाधिकार। पूर्ण विशेषाधिकार में यदि कथन भी झूठा होता है तो किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है। यह विशेषाधिकार पार्लियामेंट्री प्रोसीडिंग्स, ज्यूडिशियल प्रोसीडिंग्स और राज्य संचार (कम्युनिकेशंस) के संबंध में उपलब्ध है। दूसरी तरफ योग्य विशेषाधिकार में कुछ ऐसे अवसर होते हैं जहां प्रतिवादी को डिफेमेशन के दायित्व से छूट दी जाती है यदि दिया गया बयान गलत नहीं होता तो। उदाहरण के लिए, स्व-हित (सेल्फ इंटरेस्ट) के लिए एक दुकानदार अपने कर्मचारी को X नाम के व्यक्ति को सामान न बेचने का आदेश देता है क्योंकि भुगतान के लिए उसकी ईमानदारी पर कोई विश्वसनीयता (रिलाएबिलिटी) नहीं है, तो दुकानदार ने कोई अपराध नहीं किया है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

मेरे विचार में, डिफेमेशन एक गंभीर अपराध है क्योंकि समय बीतने के दौरान गुडविल और प्रतिष्ठा अर्जित (अर्न) की जाती है। प्रतिष्ठा की चोट समाज में किसी व्यक्ति की छवि को कम करती है और एक बार इसे नुकसान पहुंचने के बाद इसे वापस नहीं किया जा सकता है। हालांकि, हमारा कानून सिविल और अपराधिक कानूनों के तहत उपचार प्रदान करता है। पैसे का मुआवजा (कंपनसेशन) वादी के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता, लेकिन फिर भी, यह एकमात्र उपाय है जो एक सिविल मुकदमे में उपलब्ध है।

संदर्भ (रेफरेंसे)

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  • (1929) 2 K.B. 331
  • (1910) A.C. 20
  • A.I.R. 1958 Pat. 445
  • (1885) 6 B & S. 340
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  • {[1-10] with special ref. to law of torts by R.K. Bangia}

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