बिजली की चोरी और इसके विभिन्न तरीके

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Electricity Act
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यह लेख नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, कोच्चि में बीए एलएलबी के चौथे वर्ष के छात्र Mohammed Irshad ने लिखा है। यह लेख मौलिक (प्राइमल) चिंता यानी बिजली की चोरी के विषय पर चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

बिजली की चोरी वास्तव में दुनिया भर में एक बढ़ती हुई समस्या है। चोरी मुख्य रूप से अल्प विकसित (अंडर डेवलप्ड) देशों और विकासशील (डेवलपिंग) देशों में प्रमुख है, विशेष रूप से कई अफ्रीकी और दक्षिण एशियाई देशों में। ज्यादातर विकासशील देशों में बिजली की चोरी एक खतरनाक समस्या है; और हर साल इससे अरबों डॉलर का नुकसान होता है और अंततः यह उन उपभोक्ताओं (कंज्यूमर्स) को प्रभावित करती है जो कानूनी रूप से बिजली ऊर्जा (पॉवर) का उपयोग करते हैं। यह वे लोग हैं जो अंत में नुकसान उठाते हैं, और यह सामाजिक न्याय को भी परेशान करती है। इसके अलावा, यह निवेश (इन्वेस्टमेंट) निर्णय को प्रभावित करती है और आर्थिक विकास को बाधित (हैंपर) करती है और इस तरह राष्ट्रों के भविष्य को भी प्रभावित करती है।

बिजली की चोरी के विभिन्न तरीके

भारत सहित लगभग हर देश में सबसे प्रमुख चार प्रकार की “चोरी” है जो नीचे दी गई है।

बिलिंग इरेगुलेरिटीज

बिलिंग संबंधी इरेगुलेरिटीज भारत में सबसे अधिक पाई जाने वाली बिजली की चोरी हैं; यह या तो जानबूझकर या अनजाने में हो सकती है। आम तौर पर एक जानबूझकर की गई इरेगुलेरिटी में क्या होता है कि बिलिंग अथॉरिटी रिश्वत के रूप में कुछ मामूली राशि लेती है और मीटर वास्तविकता में दिखाए गई संख्या की तुलना में कम संख्या रिकॉर्ड करता है। अनजाने में हुई इरेगुलेरिटीज अप्रभावी माप (मेजर) तंत्र (मैकेनिज्म) से लेकर घटिया कर्मचारियों तक होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप अंततः अनजाने में एक बड़ा नुकसान होता है।

अनपेड बिल

कुछ लोग और संगठन (ऑर्गेनाइजेशन), बिजली का भुगतान नहीं करते हैं। हो सकता है कि आवासीय (रेसिडेंशियल) या व्यावसायिक उपभोक्ताओं ने शहर छोड़ दिया हो, या कोई एंटरप्राइज बैंकरप्ट हो गया हो।

धोखा

धोखा विशेष रूप से तब होता है जब उपभोक्ता जानबूझकर यूटिलिटी को धोखा देने की कोशिश करता है। आमतौर पर देखा जाने वाला अभ्यास मीटर से छेड़छाड़ करना है ताकि बिजली की रीडिंग को जितनी उनके द्वारा उपयोग की जा रही है उससे कम किया जा सके। थोड़े टेक्निकल ज्ञान वाला उपभोक्ता कम इक्विप्ड नाजुक मीटरों से आसानी से छेड़छाड़ कर सकता है।

बिजली चुराना

बिजली की चोरी का दूसरा तरीका बिजली चुराना है। यह मुख्य रूप से बिजली के सोर्स से मीटर तक एक लाइन में हेरा-फेरी करके किया जाता है (जहां इसे बाईपास करने की आवश्यकता होती है)। डायब्लिटोस या लिटिल डेविल्स जैसे तारों का उपयोग कई अवैध ग्राहक पास के इलेक्ट्रिक पोस्ट से बिजली चोरी करने के लिए करते हैं जो वास्तव में एक ओवरबर्डेंड इलेक्ट्रिकल ग्रिड को ऐज पर धकेल देता हैं।

पोल से सीधा कनेक्शन

यह बिजली की चोरी का सबसे प्रमुख तरीका है और चोरी करने का सबसे आसान तरीका है। चूंकि इस सेक्शन में मीटर और अन्य उपकरण 220 वोल्ट तंत्र में होते हैं और जहां उपभोक्ता ज्यादातर घर और छोटे व्यवसाय होते हैं, पोल से सीधा कनेक्शन हाई-वोल्टेज सिस्टम की तुलना में बहुत आसान है। ऐसा करने में केवल एक जोड़ी रबर के दस्ताने, एक चाकू और एक सीढ़ी की जरूरत होती है।

कुछ टेक्निकल तरीके 

रिमोट

यह बाजारों में उपलब्ध अजीबोगरीब रिमोट है जो मीटर की गति को धीमा कर देते हैं। ऐसे रिमोट बड़े पैमाने पर चीन में बनाए जाते हैं।

फेज-टू-फेज कनेक्शन

फेज-टू-फेज कनेक्शन एक और तरीका है। यह एक वैकल्पिक (ऑल्टरनेटिव) न्यूट्रल लाइन का उपयोग करने के समान है, लेकिन इस मामले में, सिस्टम वोल्टेज 240 या 380 वोल्ट पर फेज-टू-फेज  वोल्टेज बन जाता है।

वैकल्पिक न्यूट्रल लाइनों का उपयोग करना (यूजिंग ऑल्टरनेटिव न्यूट्रल लाइंस)

इस मामले में, एक व्यक्ति एक वैकल्पिक न्यूट्रल लाइन के रूप में उपयोग करने के लिए एक छोटे ट्रांसफार्मर का उपयोग करता है, इसलिए जो मीटर न्यूट्रल सोर्स का उपयोग करता है वह ऑटोमेटिकली आने वाली वोल्टेज को तुलनात्मक (कंपेरेटिव) कम गति से रीड करेगा। इसके परिणामस्वरूप घटी हुई यूनिट संख्या दिखाई देती है। एक महत्वपूर्ण कारक (फैक्टर) जो वैकल्पिक न्यूट्रल लाइन का उपयोग करके चोरी को उत्तेजित (स्टिमुलेट) करता है, वह सिंगल-फेज सिस्टम की नाजुकता है, जिसमें अक्सर एक घर में जाने वाला केवल एक तार होता है, अर्थात “हॉटलाइन और न्यूट्रल आमतौर पर जमीन पर (पृथ्वी से इलेक्ट्रिकली जुड़ा हुआ) होता है और कभी-कभी घर की फाउंडेशन द्वारा अधिक सामान्य होने के लिए प्रदान किया जाता है।

मीटर से छेड़छाड़/सील तोड़ना

यह अनिवार्य रूप से वही है जो एचवी मीटर के साथ होता है। बिजली की चोरी के अन्य तरीकों में शामिल हैं: पास के भुगतान करने वाले उपभोक्ता को टैप करना, मीटर एनक्लोजर को डैमेज करना, और मीटर हाउसिंग में स्पिनिंग डिस्क को धीमा करने के लिए मैग्नेट का उपयोग करना।

सामान्य चिंताएं और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (जनरल कंसर्न्स एंड इंपैक्ट ऑन इकोनॉमी)

इस संबंध में इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के शब्द ध्यान देने योग्य हैं। यह कहा गया है कि,

“हजारों घर और व्यवसाय बिजली की कटौती से प्रभावित हुए है और बिजली कंपनी के अधिकारी बड़े पैमाने पर पाइरेट्स पर इसका दोष लगाते हैं। अवैध लाइनों का पता लगाना आसान है क्योंकि वे अक्सर जमीन से ऊपर होती हैं और साफ-साफ दिखाई देती हैं। हालांकि, कर्मचारियों के साथ मारपीट किए जाने और लाइनों को हटाने के लिए पुलिस सुरक्षा की आवश्यकता की खबरें मिलती हैं। बिजली संगठन के भ्रष्ट कर्मचारी इस प्रथा को जारी रखने के लिए रिश्वत ले सकते हैं। बड़े पैमाने पर, व्यवसाय बिजली संगठन के कर्मचारियों को उनके भवनों या कार्यालयों में सीधी लाइन लगाने के लिए रिश्वत दे सकते हैं और बिजली एक मीटर से नहीं जाती है। रिश्वत बिजली की लागत (कॉस्ट) से काफी कम हो सकती है। इंस्पेक्टर्स को चोरी का पता लगाने और/या रिपोर्ट करने से रोकने के लिए रिश्वत भी दी जा सकती है।”

संक्षेप में, चिंताएं किसी विशेष क्षेत्र तक ही सीमित नहीं हैं; बिजली की चोरी विभिन्न कारकों (फैक्टर्स) के कारण होती है; यहाँ कुछ का उल्लेख किया गया है। यह किसी भी रूप में हो, यह अंततः अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है।

यह समझना आवश्यक है कि व्यावसायिक दृष्टिकोण (पर्सपेक्टिव) से, बिजली की चोरी से अर्थव्यवस्था की यूटिलिटी को आर्थिक नुकसान होता है। बिजली की चोरी के परिणामस्वरूप संयुक्त (कंबाइंड) नुकसान, चाहे वह किसी भी रूप में हो, बिलों का भुगतान न करने सहित, अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव डालती है।

भारत में चिंताएं (कंसर्न्स इन इंडिया)

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारत में बिजली की आपूर्ति (सप्लाई) एक वस्तु नहीं है जिसे उपभोक्ताओं द्वारा बिना महत्व के समझा जाएं। हमें इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि भारतीयों के लिए बिजली मूल्यवान है, यही कारण है कि बिजली कंपनियों के इंस्पेक्टर्स पर कई क्रूर हमले हुए हैं ताकि बिजली बिलों का भुगतान करने से बचा जा सके। एक अन्य तथ्य जिसे हमें स्वीकार करना चाहिए, वह है मीटर के साथ व्यापक (वाइडस्प्रेड) छेड़छाड़ ताकि रीडिंग कम हो और इस तरह अधिक राशि के भुगतान को रोका जा सके। ब्लूमबर्ग के अनुमान के मुताबिक अकेले बिजली की चोरी के कारण सालाना 17 अरब डॉलर के रिवेन्यू का नुकसान होता है, यह आंकड़ा (फिगर) ही अर्थव्यवस्था पर बिजली की चोरी के खतरनाक प्रभाव को दर्शाता है।

हमें यहां कमी की मूल (बेसिक) समस्या से संबंधित होना चाहिए, अर्थात “संसाधन (रिसोर्सेज) सीमित हैं, और जरूरतें असीमित हैं”। इसी अवधारणा (कंसेप्ट) को हमारे परिदृश्य (सिनेरियो) से जोड़ते हुए, हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि इलेक्ट्रिकल ऊर्जा एक सीमित ऊर्जा है और लोगों की आवश्यकता असीमित है, इसलिए इसका संरक्षण (कंजर्व) एक प्राथमिक (प्राइमल) चिंता होनी चाहिए। यदि हम बिजली की चोरी की सामान्य प्रथा का विश्लेषण (एनालाइज) करें तो हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि ज्यादातर चोरी ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन की प्रक्रिया में होती है। आज हमारा समाज बिजली की चोरी जैसी बड़ी समस्या से जूझ रहा है। जिस तरह से लोग चोरी कर रहे हैं वह इस तरह है कि वे या तो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी मीटर के मामले में मैग्नेट अटैच करते हैं या इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेज को उत्पन्न करने वाला एक साधारण सर्किट अटैच कर सकते हैं जो इलेक्ट्रॉनिक एनर्जी मीटर के नियमित काम को रोक देता है। इसके अलावा, लोग विभिन्न सर्किट कनेक्शन बनाने के लिए ऊर्जा मीटर की सील को भी तोड़ने की कोशिश करते हैं जिससे उन्हें अपने बिजली के बिल को कम करने में मदद मिलती है।

जब हम इलेक्ट्रिसिटी एक्ट, 2003 से पहले बिजली क्षेत्र को नियंत्रित (कंट्रोल) करने वाले कानून के इतिहास का पता लगाते हैं, तो यह इंडियन इलेक्ट्रिसिटी एक्ट, 1910 और आगे इलेक्ट्रिसिटी (सप्लाई) एक्ट, 1948 और इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमिशन एक्ट, 1998 थे।

अपराध और दंड

इलेक्ट्रिसिटी एक्ट, 2003 भारत में बिजली रेगुलेशन के विभिन्न पहलुओं से व्यापक रूप से संबंधित है। इलेक्ट्रिसिटी एक्ट का उद्देश्य अनिवार्य रूप से किसी भी कीमत पर बिजली की चोरी को रोकना है। इसे एक अपराध के रूप में माना जाता है, जो जुर्माना और कारावास दोनों को आकर्षित करता है। इलेक्ट्रिसिटी एक्ट, 2003 का भाग XIV अपराधों और दंड से संबंधित है।  इस अध्याय में 15 धाराएं है जो 135 से 150 तक हैं।

एक्ट की धारा 135 बिजली की चोरी को परिभाषित करती है। यह धारा, बिजली के किसी भी बेईमान टेपिंग, किसी भी तरह से मीटर से छेड़छाड़, करंट रिवर्सिंग ट्रांसफॉर्मर का उपयोग करना, मीटर या तार को नुकसान पहुंचा कर उचित सटीक रीडिंग में हस्तक्षेप (इंटरवेन) करने को बिजली की चोरी के रूप में मानती है। यह धारा एक विस्तृत (एलोब्रेट) धारा है जो स्पष्ट रूप से बिजली की चोरी के विभिन्न रूपों को बताती है, लेकिन उनमें से कुछ ही यहां बताए गए हैं। धारा 135 के तहत किसी व्यक्ति को उत्तरदायी बनाने के लिए केवल यह आवश्यक है कि वह “बेईमानी” का कार्य करे, जिसका अर्थ है कि बिजली की चोरी के लिए दायित्व को आकर्षित करने के लिए मेन्स रीआ (दोषी मन) होना चाहिए। इसके अलावा, धारा के तहत विस्तृत रूप में एक भौतिक (फिजिकल) कार्य होना चाहिए। यदि दोनों तत्व संतुष्ट हैं, तो बिजली की चोरी के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

सजा का निर्धारण (प्रेस्क्राइब) लोड की मात्रा और उसके बाद के अपराध के आधार पर किया जाता है। 10 किलोवाट से कम बिजली की चोरी के मामले में पहली सजा बिजली की चोरी के कारण होने वाले वित्तीय (फाइनेंशियल) लाभ के 3 गुना से कम नहीं होगी और दूसरी या बाद की सजा की स्थिति में लगाया गया जुर्माना वित्तीय लाभ के 6 गुना से कम नहीं होगा। यदि राशि 10 किलोवाट से अधिक है, तो पहली सजा पर लगाया गया जुर्माना बिजली की चोरी के कारण होने वाले वित्तीय लाभ के 3 गुना से कम नहीं होगा और दूसरी या बाद की सजा की स्थिति में सजा एक अवधि के लिए कारावास होनी चाहिए जो 6 महीने से कम नहीं होगी, जिसे 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है और बिजली की ऐसी चोरी के कारण वित्तीय लाभ के 6 गुना से कम का जुर्माना नहीं लगाया जा सकता है।

इसके अलावा धारा 136 गलत लाभ और सुविधा के लिए बिजली की लाइनों और सामग्री को काटने वाले को दंडित करती है। धारा इसे एक दंडनीय अपराध के रूप में मानती है जिसकी सजा को जुर्माने के साथ 3 साल के कारावास तक बढ़ाया जा सकता या दोनों, और बाद के अपराधी की सजा न्यूनतम 6 महीने तक की और अधिकतम 5 साल तक की सजा हो सकती है।

इसके अलावा धारा 138 लाइसेंसी के मीटर या कार्यों में अनधिकृत (अनऑथराइज्ड) हस्तक्षेप से संबंधित है ताकि सरकार को गलत तरीके से नुकसान न हो। इस धारा के तहत अपराधी को कारावास से दंडित किया जाएगा जो कि 3 साल तक हो सकता है या जुर्माना जो 10,000 रुपये से अधिक का नहीं हो सकता है और लगातार अपराध के मामले में 500 रुपये के दैनिक जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगा।

इसके बाद, अध्याय XIV के अन्य कुछ धारा विभिन्न अपराधों से निपटते हैं, जैसे बिजली की दुर्भावनापूर्ण (मेलीशियस) बर्बादी, सार्वजनिक लैंप को बुझाना, बिजली की लापरवाही से बर्बादी या कार्यों को खराब करना आदि।

कॉग्निजेंस

एक्ट की धारा 151, इस एक्ट के तहत दंडनीय अपराध के कॉग्निजेंस से संबंधित है। एक्ट के तहत दंडनीय अपराध का कॉग्निजेंस केवल लिखित में शिकायत करने पर ही लिया जा सकता है:

  • एप्रोप्रिएट कमिशन
  • कोई भी अधिकृत (ऑथराइज्ड) अधिकारी
  • चीफ इलेक्ट्रिकल इंस्पेक्टर या इलेक्ट्रिकल इंस्पेक्टर
  • लाइसेंसी
  • जनरेटिंग कंपनी

यहां ध्यान देने वाली एक और खास बात यह है कि एक्ट की धारा 153 के तहत गठित (कांस्टीट्यूट) विशेष कोर्ट भी एक्ट के तहत आरोपी को ट्रायल के लिए प्रतिबद्ध (कमिट) किये बिना किसी अपराध का कॉग्निजेंस लेने के लिए सक्षम है। यह भी प्रावधान किया गया है कि कोर्ट सीआरपीसी की धारा 173 के तहत दायर एक पुलिस अधिकारी (आमतौर पर चार्ज शीट के रूप में नामित) की रिपोर्ट पर एक्ट के तहत दंडनीय अपराध का कॉग्निजेंस ले सकता है।

दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डी.डी.यू.जी.जे.वाई.)

भारत में बिजली स्पेक्ट्रम के संदर्भ में डी.डी.यू.जी.जे.वाई. को जानना बहुत जरूरी है। यह 2015 में भारत सरकार द्वारा की गई एक बहुत ही नई पहल थी। इस तरह की योजना (स्कीम) शुरू करने का कारण कुछ भविष्य की चिंताओं पर आधारित था, जैसे बिजली की मांग में वृद्धि, बिजली उत्पादन (जनरेशन) के लिए आर्केक ट्रेडिशनल मेथड आदि और इस योजना का उद्देश्य हर दृष्टि (रिस्पेक्ट) से बिजली के प्रति दृष्टिकोण (एप्रोच) को बदलना है। इस योजना का प्राथमिक फोकस देश के हर घर में बिजली का लाभ पहुंचाना और ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली का सब-ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन करना है। इसके कई अन्य उद्देश्य भी हैं जिनमें प्रभावी मीटरिंग सिस्टम का निर्माण शामिल है ताकि बिजली के नुकसान को कम किया जा सके, स्कूलों, अस्पतालों, पंचायत आदि में बिना रुके बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।

अंततः योजना के तहत सभी प्रयास भारत में बिजली की चोरी को कम करने से संबंधित है। चूंकि हमारे देश में बिजली चोरी का मूल कारण बिजली की कमी और उपलब्धता है और यह योजना आंतरिक (इंट्रिंसिक) रूप से उक्त समस्या को हल करने पर फोकस्ड है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

यह समझना प्राथमिक है कि बिजली की चोरी आज की तारीख में चिंता का एक प्रमुख क्षेत्र है, और इसके लिए एक व्यावहारिक समाधान की तत्काल आवश्यकता है। इस संबंध में दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना जैसी योजनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। वास्तव में, हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि बिजली क्षेत्र और उसमें किए गए अपराधों की रक्षा के लिए पर्याप्त कानून और रेगुलेशन हैं, इसलिए पहले से मौजूद कानूनों के लिए एक उचित कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) तंत्र की आवश्यकता है। डी.डी.यू.जी.जे.वाई. सहित योजना को ठीक से लागू नहीं किया गया है, क्योंकि कार्यान्वयन प्रक्रिया में कई खामियां हैं।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

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  • Scc Online

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