सामाजिक संविदा सिद्धांत

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Jurisprudence
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यह लेख पंजाब के गुरु नानक देव विश्वविद्यालय की छात्रा Nidhi Bajaj ने लिखा है। इस लेख में, उन्होंने सामाजिक संविदा (सोशियल कॉन्ट्रैक्ट) का अर्थ समझाया है और तीन राजनीतिक दार्शनिकों (पॉलिटिकल फिलोसॉफर्स): हॉब्स, लॉक और रूसो द्वारा प्रतिपादित (प्रोपाउंडेड) सामाजिक संविदा के सिद्धांतों पर भी चर्चा की है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय 

एक ‘सामाजिक संविदा’, समाज और राज्य की उत्पत्ति की व्याख्या करने के लिए इस्तेमाल किए गए एक काल्पनिक समझौते को दर्शाता है। राज्य और सरकार के बनने से पहले मनुष्य प्रकृति की स्थिति में रहता था। सामाजिक संविदा सिद्धांतकारों ने एक संगठित सरकार के लाभों की तुलना प्रकृति की स्थिति में प्राप्त लाभों के साथ की और तर्क दिया कि पुरुषों को स्वेच्छा से सरकार को स्वीकार और पालन क्यों करना चाहिए। इस अभ्यास के निष्कर्ष ने राज्य के प्रति नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को निर्धारित करते हुए एक सामाजिक संविदा का गठन किया था। हालांकि एक सामाजिक संविदा के विचार पर पहले चर्चा की गई थी, यह अवधारणा मुख्य रूप से अंग्रेजी दार्शनिक थॉमस हॉब्स और जॉन लोक और फ्रांसीसी दार्शनिक जीन जैक्स रूसो से जुड़ी हुई है। 

इस लेख में, लेखक ने हॉब्स, लॉक और रूसो द्वारा प्रतिपादित सामाजिक संविदा के सिद्धांत की चर्चा की है।

सामाजिक संविदा का अर्थ

एक सामाजिक संविदा, शासन कर रहे दो लोगों या शासन कर रहे व्यक्ति और शासित हो रहे लोगों  के बीच एक वास्तविक या काल्पनिक समझौते को संदर्भित करता है, यह प्रत्येक के अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित करता है। प्रकृति की स्थिति में पैदा होने वाले व्यक्ति, अपने तर्क और सामूहिक प्रयोग से एक समाज और एक सरकार बनाने के लिए सहमत होते हैं। सामाजिक संविदा को प्रकृति की स्थिति से बचने के साधन के रूप में भी देखा जा सकता है। इस प्रकार, एक सामाजिक संविदा दो रूपों से हो सकता है:

  1. सबसे पहले, एक संविदा जिसके कारण राज्य की उत्पत्ति हुई थी: यह संविदा केवल लोगों की इच्छा को राज्य के संप्रभु (सोवरेन) के रूप में स्थापित करने को व्यक्त करता है।
  2. सरकार का संविदा या प्रस्तुत करने का संविदा: यह संविदा राज्य या समाज की स्थापना के बाद के क्रम से संबंधित है। यह शासन के नियमों और शर्तों के बारे में बताता है और इसमें शासन करने वाले व्यक्ति और शासित हो रहे लोगों की ओर से पारस्परिक (रिसिप्रोकल) दायित्व और वादे शामिल होते हैं। उनमें से सबसे महत्वपूर्ण नागरिकों द्वारा की गई आज्ञाकारिता (ओबेडिएंस) का वादा और नागरिकों की सुरक्षा और राजा/शासक/राज्य द्वारा किए गए सुशासन का पारस्परिक वादा है।

सामाजिक संविदा लोगों की कुछ स्वतंत्रताओं, जो उन्होंने अपने शेष अधिकारों की सुरक्षा और सामाजिक व्यवस्था के रखरखाव के बदले में प्रकृति की स्थिति में प्राप्त की थी, को छोड़ने के लिए व्यक्त या निहित सहमति पर आधारित है।

सामाजिक संविदा का सिद्धांत

प्रारंभ में, सामाजिक संविदा का सिद्धांत दो बातों की व्याख्या करता है:

  1. संप्रभु शक्ति की ऐतिहासिक उत्पत्ति।
  2. उन सिद्धांतों की नैतिक (मॉरल) उत्पत्ति जो संप्रभु प्राधिकरण (अथॉरिटी) की वैधता को स्थापित करते हैं।

सामाजिक संविदा का सिद्धांत सामाजिक संविदा के गठन से संबंधित है और राज्य के अस्तित्व में आने से पहले जीवन की प्रकृति और सामाजिक संविदा के गठन के कारणों या परिस्थितियों आदि के बारे में सवालों का जवाब देता है।

संगठित समाजों या सरकारों के अस्तित्व में आने से पहले के जीवन को ‘प्रकृति की स्थिति’ कहा जाता है। प्रकृति की स्थिति में मनुष्य की स्थिति और उनके जीवन का विभिन्न राजनीतिक विचारकों द्वारा अलग-अलग वर्णन किया गया है। कुछ प्रकृति की स्थिति में जीवन को आनंदमय बताते हैं और अन्य इसे क्रूर और कठोर बताते हैं। प्रकृति की स्थिति में होने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए निम्नलिखित दो समझौते बनाए गए थे:

  1. पैक्टम यूनियोनिस: इस समझौते के माध्यम से लोग अपने जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की मांग करते है। इससे ऐसे समाज का निर्माण हुआ जिसमें सभी को शांति और सद्भाव से रहना था।
  2. पैक्टम सब्जेक्शनिस: इस समझौते का उद्देश्य प्रारंभिक संविदा को लागू करना था। इस समझौते के माध्यम से, लोगों ने सामूहिक रूप से अपनी स्वतंत्रता और अधिकारों, जो उन्हे एक दूसरे के खिलाफ दिए गए थे, को प्रकृति की स्थिति में एक प्राधिकरी के पक्ष में छोड़ दिया था, जो बदले में उनके जीवन, संपत्ति और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करने के लिए सहमत हुआ था।

विशेषताएं 

  • सामाजिक संविदा के सिद्धांत अक्सर प्राकृतिक और कानूनी अधिकारों के बीच के संबंध के बारे में बात करते हैं।
  • 17वीं सदी के मध्य से लेकर 19वीं सदी की शुरुआत तक, यह सिद्धांत राजनीतिक वैधता के प्रमुख सिद्धांत के रूप में प्रसिद्ध था।
  • यह सिद्धांत आमतौर पर बिना राजनीतिक व्यवस्था, यानी प्रकृति की स्थिति में रह रहे मानव के जीवन की परीक्षा और चर्चा से शुरू होते हैं।
  • यह सिद्धांत बताता है कि तर्कसंगत (रैशनल) व्यक्ति राजनीतिक व्यवस्था के पक्ष में अपने प्राकृतिक अधिकारों को छोड़ने के लिए क्यों सहमत होते हैं।
  • सामाजिक संविदा के सिद्धांत का कहना है कि कानून और राजनीतिक व्यवस्था मनुष्य की रचनाएं हैं।

सामाजिक संविदा के प्रमुख सिद्धांत

विभिन्न राजनीतिक दार्शनिकों द्वारा प्रतिपादित सामाजिक संविदा सिद्धांतों की चर्चा के साथ आगे बढ़ने से पहले, यह ध्यान रखना उचित है कि सभी सामाजिक संविदा के सिद्धांतों का उद्देश्य समान नहीं है। कुछ सिद्धांत एक संप्रभु की उत्पत्ति/शक्ति को न्यायोचित (जस्ट) ठहराने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि कुछ एक शक्तिशाली संप्रभु के उत्पीड़न से व्यक्तियों की सुरक्षा से संबंधित हैं।

हॉब्स का सामाजिक संविदा का सिद्धांत

थॉमस हॉब्स पहले आधुनिक दार्शनिक थे जिन्होंने एक विस्तृत सामाजिक संविदा के सिद्धांत को सामने रखा। हॉब्स मनुष्य के स्वभाव को अहंकारी और स्वार्थी बताते हैं। उनके अनुसर, मनुष्य एक लालची इच्छाओं के साथ एक अलग प्राणी है, जो लगातार सुख की तलाश करते है और दुख से बचना चाहते है। 

प्रकृति की स्थिति

चूँकि प्रकृति की स्थिति में रहने वाले मनुष्य निराशावादी और क्रूर थे, इसलिए प्रकृति की स्थिति उदास और लोभी (सोर्डिड) थी। एकमात्र नियम जो प्रचलित था वह यह था “यदि आपके पास शक्ति है तो उसे ले लो और तब तक इस शक्ति को बनाएं रखो जब तक आप बना सकते हो”। प्रकृति की स्थिति में पुरुष एक-दूसरे के प्रति शंकालु (सस्पीशियस) और शत्रुतापूर्ण थे। कोई कानून नहीं था, सही और गलत की कोई धारणा नहीं थी। केवल धोखाधड़ी और बल मौजूद था। प्रकृति की स्थिति में चल रही जीवन की परिस्थितियों ने इसे सभ्य कार्यों के लिए अनुपयुक्त बना दिया था। जब तक मनुष्य को प्रकृति की स्थिति में रहना है, तब तक कोई समाज नहीं हो सकता है और उसका जीवन छोटा, खराब और एकान्त होगा।

हालांकि, प्रकृति की स्थिति में, मनुष्य को पूर्ण स्वतंत्रता और एक दूसरे के शरीर के अधिकार सहित हर चीज का प्राकृतिक अधिकार था। हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक नियम केवल एक व्यक्ति के अच्छे की पूर्ति के लिए मौजूद थे। 19 प्राकृतिक नियम थे, उनमें से सबसे महत्वपूर्ण हैं:

  • शांति की तलाश करें और उसका पालन करें।
  • चीजों के प्राकृतिक अधिकार का त्याग करें।
  • व्यक्तियों को अपने संविदा का सम्मान करना चाहिए।

सामाजिक संविदा 

शांति, आत्म-संरक्षण और आत्म-रक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने का एकमात्र तरीका राज्य की स्थापना के लिए एक संविदा में प्रवेश करना था। व्यक्ति संविदा के माध्यम से अपनी शक्तियों को किसी तीसरे पक्ष को सौंप देते हैं, जो संविदा का पक्ष नहीं था। 

संविदा का रूप

मैं इस शर्त पर, इस व्यक्ति को, या पुरुषों की इस सभा को, अपने आप पर शासन करने का अधिकार देता हूं कि आप उसको, उसके अधिकार देंगे, और उसके सभी कार्यों को उसी तरह अधिकृत करेंगे।

इस प्रकार, हॉब्सियन संविदा का आधार सामूहिक इच्छा नहीं थी। यह एक दूसरे के साथ एक संविदा था जिसमें प्रत्येक व्यक्ति तीसरे पक्ष के पक्ष में अपना अधिकार छोड़ने के लिए सहमत थे, अन्य व्यक्तियों द्वारा उसी तरह से अपने अधिकारों को छोड़ने पर विचार किया गया था। संविदा के परिणामस्वरूप, एक तीसरा पक्ष (संप्रभु) अस्तित्व में आया। तीसरा पक्ष एक कृत्रिम (आर्टिफिशियल) व्यक्ति था जो प्राकृतिक व्यक्तियों से अलग था। 

प्रजा निम्नलिखित कारणों से संप्रभु का पालन करने के लिए बाध्य थी:

  1. संप्रभु की अवज्ञा करने पर दंड मिलेगा।
  2. एक नैतिक विचार था कि व्यक्तियों को अपने संविदा का सम्मान करना चाहिए।
  3. संप्रभु सभी व्यक्तियों का विधिवत अधिकृत प्रतिनिधि था और व्यक्तियों ने उसे अपनी ओर से कार्य करने के लिए अधिकृत किया था। 
  4. सहमति के आधार पर पालन करने का नैतिक दायित्व होना चाहिए।
  5. शांति और व्यवस्था के लिए व्यक्तियों की इच्छा होनी चाहिए।
विशेषताएं 
  • हॉब्स का संविदा एक सामाजिक और राजनीतिक संविदा था, जिसने नागरिक समाज और राजनीतिक अधिकार का निर्माण किया था। 
  • संविदा ने राज्य और सरकार को एक साथ बनाए रखा था।
  • व्यक्ति नियमों के एक सेट के लिए सहमत हुए थे और बदले में, उन्हें बुनियादी समानता की गारंटी दी गई थी।
  • संप्रभु को न्याय और कर लगाने के मामलों में सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।
  • संप्रभु सभी शक्तियों का अधिकारी होगा और एक नश्वर भगवान की तरह होगा।
  • संविदा स्थायी (परपेचुअल) और अपरिवर्तनीय था।
  • संप्रभु की शक्ति असीमित, अविभाज्य, स्थायी और निरपेक्ष (एब्सोल्यूट) है। इसका मतलब यह नहीं था कि राजा के पास दैवीय अधिकार थे, लेकिन यह शक्ति एक संविदा के माध्यम से वैध रूप से और स्वेच्छा से सहमत हुई थी। व्यक्तियों को सरकार के रूप को बदलने का कोई अधिकार नहीं था।
  • चूंकि संविदा व्यक्तियों द्वारा एक-दूसरे के साथ किया गया था न कि संप्रभु के साथ, इसलिए संप्रभु की अधीनता से कोई बच नहीं सकता था। प्रजा का कर्तव्य था कि वह सब संप्रभु का पालन करें।
  • संप्रभु कोई भी कानून बना सकता था जिसे वह उचित समझता था और ऐसे कानून वैध थे। कानून संप्रभु का आदेश था और संप्रभु सर्वोच्च और कानून से भी ऊपर था।
  • एक नागरिक समाज बनाकर, व्यक्ति अपनी इच्छा से अपनी स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए सहमत होते हैं।
  • हॉब्स के अनुसार, संविदा के लाभार्थी यानी तीसरे पक्ष को एक सम्राट (मोनार्क) होना चाहिए। 

संप्रभु के अधिकार और कर्तव्य

  • नीति (पॉलिसी) का संचालन करना;
  • विघटन (डिसोल्यूशन) से नागरिक समाज की सुरक्षा करना;
  • अभिव्यक्ति के अधिकार पर सीमाएं लगाना;
  • संघर्षों को हल करना; 
  • मंत्रियों का चयन करना;
  • सम्मान प्रदान करना;
  • अन्य राज्यों आदि के साथ युद्ध और शांति बनाना।

आलोचना 

  • शासक संविदा का पक्ष नहीं है। 
  • हॉब्स की सरकार की प्रमेय (थियोरम) कृत्रिम थी। उन्होंने सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के लिए पर्याप्त मानकों के बिना पूर्ण अधिकार प्रदान किया था।
  • आलोचकों ने प्रकृति की स्थिति की हॉब्सियन वास्तविकता को यह कहकर नकार दिया कि यदि मनुष्य इतने असामाजिक और बुरे होते, तो वे कभी भी समाज या राज्य बनाने के लिए एक साथ नहीं आते।
  • हॉब्स का, प्रकृति की स्थिति का चित्रण जिसे विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है, असत्य और भ्रामक है।
  • हॉब्सियन संविदा स्थायी था। अत्याचारी सरकार से बचने का कोई रास्ता नहीं था। 
  • हॉब्सियन संविदा के अनुसार, स्वतंत्रता एक अधिकार के बजाय संप्रभु द्वारा दिया गया उपहार था। 
  • होब्सियन राज्य में नागरिक स्वतंत्रता प्रतिबंधित थी।

लॉक का सामाजिक संविदा का सिद्धांत

लॉक का सामाजिक संविदा का सिद्धांत बताता है कि वैध राजनीतिक अधिकार लोगों की सहमति से प्राप्त किए गए थे और यदि व्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन किया जाता है तो ऐसी सहमति वापस ली जा सकती है।

प्रकृति की स्थिति

लॉक ने प्रकृति की स्थिति में पुरुषों को स्वतंत्र, और समान माना था। उन्होंने प्रकृति की स्थिति को पूर्ण समानता के रूप में वर्णित किया जहां सभी मनुष्यों को जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति का अधिकार था। लॉक की प्रकृति की स्थिति हॉब्स की प्रकृति के बिल्कुल विपरीत थी। यहाँ, कोई व्यक्ति उतना क्रूर और स्वार्थी नहीं था जितना कि हॉब्स ने वर्णन किया था। प्रकृति की स्थिति युद्ध की स्थिति नहीं थी बल्कि “शांति, सद्भावना, पारस्परिक सहायता और संरक्षण” की स्थिति थी। लॉक की प्रकृति की स्थिति पूर्व-सामाजिक व्यवस्था के बजाय पूर्व-राजनीतिक व्यवस्था की बात करती है। प्रकृति की स्थिति में मनुष्य प्रकृति के नियम द्वारा शासित होते है। भगवान ने सब कुछ जीवन निर्वाह करने के लिए बनाया है न कि बर्बादी के लिए। इसलिए, मनुष्य को अपनी या दूसरों की जान लेने का कोई अधिकार नहीं था क्योंकि मानव जीवन को भी ईश्वर ने एक भरोसे के रूप में दिया था।

सामाजिक संविदा

लॉक के अनुसार, व्यक्ति एक स्वतंत्र और तर्कसंगत प्राणी था जो अपनी स्वतंत्र पसंद से एक राजनीतिक विषय बन गया था। नागरिक समाज के गठन के पीछे का उद्देश्य स्वतंत्रता की रक्षा और विस्तार करना था। प्रकृति की स्थिति समानता और स्वतंत्रता की थी लेकिन इसमें सुरक्षा का अभाव था। प्रकृति की स्थिति में शांति सुरक्षित नहीं थी और कुछ अपमानित पुरुषों की दुष्टता से लगातार परेशान रहती थी। प्रकृति की स्थिति में निम्नलिखित तीन महत्वपूर्ण तत्वों का अभाव था:

  • एक स्थापित, व्यवस्थित और ज्ञात कानून,
  • एक जाने माने और सामान्य न्यायाधीश,
  • न्यायसंगत निर्णयों को लागू करने के लिए एक कार्यकारी (एग्जीक्यूटिव) शक्ति।

इस प्रकार, लॉक ने यह समझाने की कोशिश की कि प्रकृति के नियमों का अधिक से अधिक पालन सुनिश्चित करने, निर्णय लेने और नियमों के कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) में निष्पक्षता लाने और शांति सुनिश्चित करने के लिए पुरुषों ने राजनीतिक प्राधिकरण की स्थापना के लिए सहमति व्यक्त की है। लोगों ने अपने जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की सुरक्षा के लिए सामाजिक संविदा में प्रवेश किया है।

यह कहा जा सकता है कि लॉकि के सिद्धांत में, सामाजिक संविदा के दो पहलू हैं:

  1. व्यक्तियों ने एक-दूसरे के साथ संविदा किया था, कि वे बहुमत के शासन को प्रस्तुत करेंगे और जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की सुरक्षा के लिए खुद को एक नागरिक समाज के रूप में संगठित करेंगे। व्यक्तियों ने अपने सभी प्राकृतिक अधिकारों को नहीं छोड़ा बल्कि प्रकृति के कानून की व्याख्या और निष्पादन करने और अपनी शिकायतों को बहाल करने का अधिकार दिया है। कानूनों को लागू करने के ये तीन विशिष्ट अधिकार अब पूर्ण रूप से समुदाय में निहित थे।
  2. नागरिक या राजनीतिक समाज की स्थापना के बाद, दूसरा कार्य एक ऐसी सरकार नियुक्त करना था जो प्राकृतिक कानून की घोषणा और निष्पादन करेगी। व्यक्तियों ने कुछ निश्चित उद्देश्यों को बढ़ावा देने के लिए एक “न्यायिक शक्ति” की प्रकृति में एक न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिए एक सरकार की स्थापना की थी।

सरकार की स्थापना के बाद भी, समुदाय ने सर्वोच्च शक्ति बरकरार रखी, जिसका अर्थ है कि यदि सरकार समाज को संरक्षित करने में विफल रही या यदि उसका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था, तो लोग सरकार बदलने के लिए कदम उठा सकते थे। इस प्रकार, सरकार को वैध रूप से बदला, या भंग किया जा सकता है।

लॉक के संविदा और राजनीतिक प्राधिकरण की विशेषताएं

  • नागरिक समाज और सरकार के बीच का संबंध विश्वास पर आधारित होता है। यदि सरकार समुदाय द्वारा उसमें रखे गए भरोसे के विपरीत कार्य करती है, तो लोगों के पास सरकार बदलने की शक्ति होती है।
  • राजनीतिक सत्ता तब तक वैध होती है जब तक वह लोगों की सहमति पर आधारित होती है। 
  • सरकार संविदा की पक्ष नहीं है।
  • सरकार के तीन भाग थे:
  1. विधायिका: इसे कानून बनाने की शक्ति थी। विधायिका सरकार के भीतर सर्वोच्च निकाय (बॉडी) थी। 
  2. कार्यपालिका: कानून को लागू करने की शक्ति कार्यपालिका में निहित थी। कार्यपालिका में न्यायिक शक्ति भी शामिल थी। कार्यपालिका अधीनस्थ (सबोर्डिनेट) थी और विधायिका के प्रति जवाबदेह थी।
  3. फेडेरेटिव: फेडेरेटिव विंग के पास संधियां (ट्रीटी) बनाने और बाहरी संबंध संचालित करने की शक्ति थी।
  • लॉक का विचार था कि पूर्ण राजनीतिक शक्ति कानून के विपरीत है और उन्होने एक सीमित संप्रभु राज्य का पक्ष लिया था। राज्य उन लोगों के लिए अस्तित्व में था जिन्होंने इसे बनाया था और इसके विपरीत नहीं। राज्य को संविधान और कानून के शासन के अधीन लोगों की सहमति पर आधारित होना चाहिए था।
  • संप्रभु सीमित था क्योंकि यह समुदाय/लोगों से एक प्रत्ययी क्षमता (फिडुशियरी कैपेसिटी) में शक्ति प्राप्त करता था।
  • सरकार का पालन करने के लिए लोगों का दायित्व सरकार द्वारा किसी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार की सुरक्षा पर सशर्त था।
  • राज्य राजनीतिक मामलों से निपटने के लिए है और कहीं और हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। राज्य और समाज, निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच एक द्वंद्व (डिक्टोमी) था। राज्य की स्थापना के बाद भी, एक व्यक्ति को बिना किसी हस्तक्षेप के निजी क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने का अधिकार है।
  • सरकार का उद्देश्य प्राकृतिक अधिकारों, विशेष रूप से जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार की रक्षा करना और उसे बनाए रखना है।

आलोचना 

  • लॉक ने यह मान लिया था कि अल्पसंख्यक सभी बातों में बहुमत से शासन करने के लिए सहमत होंगे।
  • सरकार संविदा का एक पक्ष नहीं है।
  • लोगों को कानून की अवहेलना करने का विकल्प नहीं दिया जा सकता है।
  • लॉक की प्रकृति की स्थिति में मौजूद मामलों की स्थिति असत्य है और उस पर विश्वास करना कठिन है।
  • ऐसा लगता है कि लॉक लोगों को विद्रोह करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।

रूसो का सामाजिक संविदा का सिद्धांत

प्रकृति की स्थिति

रूसो के अनुसार, प्रकृति की स्थिति में मनुष्य एकान्त किन्तु सुखी, स्वस्थ और स्वतंत्र था। मनुष्य आत्म-संरक्षण और करुणा (कंपैशन) की प्रवृत्ति (इंस्टिंक्ट) द्वारा निर्देशित थे। मनुष्य अन्य जानवरों से अलग थे क्योंकि उसके पास पूर्णता की इच्छा थी। वह निर्दोष और स्वतंत्र था और किसी भी अधिकार, प्रतिशोध (वेंजेंस), हितों से अनजान था। रूसो का मानना था कि मनुष्य तर्क के साथ पैदा नहीं हुआ है। यह एक ऐसा गुण था जो तब तक निष्क्रिय रहा जब तक इसकी आवश्यकता की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई। मनुष्य बिना कारण या सोच के खुश था। कारण की उत्पत्ति ने मनुष्यों की चाहतों और जरूरतों में वृद्धि की है। नतीजतन, मनुष्य ने खुश रहना बंद कर दिया और उसका जीवन दुखी और शांतिपूर्ण से दूर हो गया। रूसो ने प्रकृति की स्थिति से प्रस्थान को “एक घातक दुर्घटना” कहा है। उन्होंने प्रकृति की स्थिति को एक बहुमूल्य अतीत के रूप मे बताया है जिसे वापिस नही लाया जा सकता है।

रूसो के लिए, निम्नलिखित कारणों से प्रकृति की स्थिति का अध्ययन करना महत्वपूर्ण था:

  1. मानव जाति की मूल प्राचीन स्थिति को समझने के लिए;
  2. मनुष्य की मूल अवस्था में मानव स्वभाव के गुणों और विशेषताओं की पहचान करना;
  3. प्रकृति की नई स्थिति, अर्थात, वर्तमान समाज का वर्णन और मूल्यांकन करने के लिए ;

नागरिक समाज: छलपूर्ण सामाजिक संविदा

जैसे-जैसे लोग एक साथ रहने लगे, उन्होंने ने महसूस किया कि वे पारस्परिक हित के कुछ मामलों में दूसरों पर भरोसा कर सकते हैं या उन पर निर्भर हो सकते हैं। फिर, जैसे ही वह आदमी व्यक्ति परिवार के साथ अलग रहने लगा, उसने प्यार और सुंदरता की खोज की और सहज रूप से नहीं बल्कि तर्कसंगत रूप से कार्य करना शुरू कर दिया। छोटे समुदायों का विकास हुआ। श्रम विभाजन (डिस्ट्रिब्यूशन) पेश किया गया। पुरुषों ने खोज और आविष्कार करना शुरू कर दिया और अपने ख़ाली समय में उन्होंने दूसरों के साथ तुलना की। इसने ईर्ष्या, गर्व और अवमानना ​​​​(कंटेंप्ट) की भावनाओं को विकसित किया। एक बार जब वे एक समाज में रहने लगे, तो मनुष्य मनोवैज्ञानिक रूप से परिवर्तित हो गए। समाज में प्रवेश करते ही एक व्यक्ति निर्भरता के चरण में प्रवेश करता है। निजी संपत्ति के निर्माण और श्रम विभाजन ने धन, शक्ति और स्थिति में अंतर उत्पन्न किया। इस एक दूसरे पर निर्भर रहने की अवधारणा ने असमानता को जन्म दिया। एक व्यक्ति जिसे अधिक स्वतंत्र होना चाहिए था, वह अपनी स्वतंत्रता खोकर एक जगह ही बंध गया था। यही कारण है कि रूसो ने समाज के उद्भव और प्रकृति की स्थिति से प्रस्थान को एक घातक दुर्घटना कहा है। कुछ विशेषाधिकार (प्रिविलेज) प्राप्त लोगों की संपत्ति की रक्षा के लिए नागरिक समाज अस्तित्व में आया। इसका गठन शांति की रक्षा और उन लोगों की संपत्ति के अधिकार की रक्षा के लिए किया गया था, जिनके पास संपत्ति थी। इसने वास्तविक स्वामित्व को सही स्वामित्व में बदल दिया और गरीबों को किसी भी संपत्ति से बेदखल कर दिया गया। हालांकि, एक बात स्पष्ट थी कि एक बार नागरिक समाज के उभरने के बाद प्रकृति की स्थिति में वापस नहीं जाना था। 

समाधान: वास्तविक सामाजिक संविदा

स्वतंत्र होने के लिए, प्रत्येक व्यक्ति को अपने सभी अधिकारों को पूरे समुदाय के लिए छोड़ देना चाहिए, सभी के लिए समान परिस्थितियों का निर्माण करना चाहिए और इस प्रकार समानता का निर्माण करना चाहिए। रूसो ने पहले समाज के बजाय एक सही समाज के निर्माण की बात की। उनके अनुसार, पुरुष “सामूहिक इच्छा” के अधीन हैं जो जनता की भलाई के लिए मौजूद है। सहमति राजनीतिक अधिकार का आधार है। बल कभी भी राजनीतिक सत्ता स्थापित करने का आधार नहीं हो सकता। साथ ही, समाज कोई प्राकृतिक घटना नहीं है। मनुष्य अपनी इच्छा और पसंद से समाज (अन्य पुरुषों के साथ संबंध) में प्रवेश कर सकता है। एक उच्च संगठन एक ऐसी राजनीति होगी जो अपने सदस्यों के सामान्य हितों की देखभाल करेगी। सही प्रकार का समाज मानव स्वतंत्रता को बढ़ाएगा। सामाजिक संविदा का उद्देश्य अधिकार के साथ स्वतंत्रता को समेटना था।

रूसो ने कहा है कि “मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है और हर जगह बंधा रहता है”। एक समुदाय जो सभी सहमति वाले व्यक्तियों द्वारा स्वेच्छा से सामूहिक इच्छा को प्रस्तुत करने के द्वारा गठित किया गया था, वह स्वतंत्र पैदा हुए व्यक्तियों के विरोधाभास (पैराडॉक्स) का समाधान था, जो फिर भी बंधा हुआ है।

रूसो के संविदा और राजनीतिक अधिकार की विशेषताएं

  • हर मानवीय गतिविधि राजनीति से जुड़ी हुई थी।
  • उत्पीड़न से कभी भी समाज का निर्माण नहीं हो सकता।
  • सहमति समाज का आधार है। 
  • रूसो ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की आवश्यकता के साथ-साथ समुदाय की सामूहिक इच्छा को महत्व दिया। उन्होंने एक समुदाय के दावों को व्यक्ति के दावों के साथ और सत्ता के दावों को स्वतंत्रता के दावों के साथ समेटने का प्रयास किया है। 
  • संप्रभुता सामूहिक इच्छा का अभ्यास है। सभी व्यक्तिगत अधिकार सामूहिक इच्छा के अधीन हैं।
  • समुदाय के निर्माण से व्यक्ति का नैतिक परिवर्तन होता है।
  • एक आदर्श गणतंत्र सद्गुणों का समुदाय होगा। 
  • रूसो ने प्राचीन ‘स्पार्टा’ और ‘रोम’ को अपने आदर्श गणराज्य के मॉडल के रूप में वर्णित किया है।  
  • ‘सामूहिक इच्छा’ सभी कानूनों का स्रोत होगी। कार्यकारी इच्छा सामूहिक इच्छा नहीं हो सकती। केवल विधायी इच्छा जो संप्रभु थी वह सामूहिक इच्छा हो सकती है। 
  • राज्य को एक सहमति और भागीदारी वाला लोकतंत्र होना चाहिए। रूसो के अनुसार, प्रत्यक्ष लोकतंत्र विधायी इच्छा को समाविष्ट (एंबॉडी) करता है। 
  • कानून के निर्देशों का पालन करके मनुष्य वास्तव में स्वतंत्र हो सकता है।
  • रूसो ने शक्तियों को पूर्ण तरह से छोड़ने के विचार को खारिज कर दिया जिसने व्यक्ति को संप्रभु के अधीन कर दिया।
  • संप्रभुता अपरिहार्य (इनएलियनेबल) और अविभाज्य थी।
  • संप्रभुता उत्पन्न होते ही, लोगों के पास रही। 
  • रूसो ने सरकार को सामूहिक इच्छा का एजेंट बताया है।
  • जैसा कि रूसो ने संप्रभु के अत्याचारी बनने की कोई संभावना नहीं देखी, उन्होंने ऐसी स्थिति के खिलाफ कोई सुरक्षा उपाय नहीं दिए।
  • रूसो के लिए स्वतंत्रता सबसे बड़ी संतोषजनक चीज़ थी। 
  • संपत्ति नैतिक भ्रष्टाचार और अन्याय का मूल कारण थी।

आलोचना

  • रूसो का सामूहिक इच्छा का विचार बहुत अस्पष्ट है। 
  • रूसो अपने सामाजिक संविदा का व्यावहारिक उदाहरण देने में विफल रहा।
  • उनका सिद्धांत विरोधाभासी है यह मानते हुए कि समाज ने मानव जाति को भ्रष्ट कर दिया है, वह इस भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए एक और सामाजिक संविदा तैयार करता है।
  • अमूर्त सामूहिक इच्छा एक निरपेक्ष शासन प्रतीत होती है।

नए सिरे से सामाजिक संविदा की आवश्यकता

जबकि पारंपरिक सामाजिक संविदा के सिद्धांत राज्य और समाज की उत्पत्ति से संबंधित हैं, सामाजिक संविदा के सिद्धांतों के आधुनिक संस्करण (वर्जन) और पुनः प्रवर्तन इससे संबंधित नहीं हैं। सामाजिक संविदा जिस पर वर्तमान में समाज आधारित है, युद्ध के बाद की समस्याओं से निपटने के साधन के रूप में उभरा है। सामाजिक संविदा को परिस्थितियों में बदलाव के साथ बदला और अपडेट किया जाना चाहिए। दुनिया ने 2020 में जो महामारी देखी और अभी भी देख रहे है, उसने एक नए सामाजिक संविदा की आवश्यकता का आह्वान किया है। संयुक्त राष्ट्र (यू.एन.) ने “अवर कॉमन एजेंडा-रिपोर्ट ऑफ सेक्रेटरी-जनरल” के भाग II में सामाजिक संविदा के नवीनीकरण (रिन्यूअल) का प्रस्ताव दिया है। नए सामाजिक संविदा की नींव इस प्रकार है:

  1. विश्वास: लोगों और संस्थाओं और समाज के विभिन्न समूहों के बीच विश्वास बनाने और अविश्वास को वापस बनने के लिए, रिपोर्ट निम्नलिखित प्रस्ताव बनाती है:
  • उन संस्थाओं की स्थापना जो ऐसी परेशानियों को सुनती हों: सरकारों को राष्ट्रीय सुनवाई करनी चाहिए और भविष्य के अभ्यासों की कल्पना करनी चाहिए और लोगों की परेशानियां सुनने के लिए बेहतर तरीके स्थापित करने चाहिए।
  • सेवाएं: सरकारों से सार्वजनिक प्रणालियों (सिस्टम) और सेवाओं में निवेश करने और गुणवत्तापूर्ण लोक सेवकों को सुनिश्चित करने का आग्रह किया जाता है।
  • न्याय और कानून का शासन: सचिव (सेक्रेटरी) ने कानून की एक नई दृष्टि को बढ़ावा दिया और न्याय को सामाजिक संविदा के एक अनिवार्य तत्व के रूप में मान्यता दी है।
  • कराधान (टैक्सेशन): सरकारों को धन में असमानताओं को कम करने के लिए कराधान का उपयोग करने पर विचार करना चाहिए।
  • भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए।
  • डिजिटल स्पेस में सूचना : एक वैश्विक आचार संहिता जो सार्वजनिक सूचना में अखंडता को बढ़ावा देती है, संयुक्त राष्ट्र द्वारा सहायता प्राप्त राज्यों, मीडिया आउटलेट्स और नियामक निकायों के साथ मिलकर खोज की जा सकती है

2. समावेश (इंक्लूजन), संरक्षण और भागीदारी

  • यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज सहित सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ
  • शिक्षा और आजीवन सीखना
  • सभ्य काम 
  • केंद्र में महिलाएं और लड़कियां, घर में शांति
  • पर्याप्त आवास डिजिटल समावेशिता (इंक्लूसिविटी)

3. लोगों और ग्रह के लिए जो मायने रखता है उसे मापना और उसका मूल्यांकन करना

  • प्रगति के उपाय खोजना जो जी.डी.पी. के पूरक (कॉम्पलमेंट) हों 
  • पर्यावरण-आर्थिक लेखांकन (सिस्टम ऑफ़ एनवायरनमेंटल इकोनॉमिक अकाउंटिंग) (एस.ई.ई.ए.) की हालिया प्रणाली को लागू करना
  • जी.डी.पी. के विकल्पों को ध्यान में रखते हुए, जैसे मानव विकास इंडेक्स, समावेशी (इंक्लूसिव) धन इंडेक्स, वास्तविक प्रगति इंडेक्स, बहुआयामी (मल्टिडाइमेंशनल) गरीबी इंडेक्स और असमानता-समायोजित मानव विकास इंडेक्स। 
  • देखभाल और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था (इनफॉर्मल इकोनॉमी) को मान्य करने के तरीके खोजना जैसे कि अवैतनिक देखभाल कार्य का मूल्यांकन करना, आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं और सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के हिस्से के रूप में गुणवत्तापूर्ण भुगतान देखभाल में निवेश करना।

इस प्रकार, रिपोर्ट ने सरकारों और उनके नागरिकों के बीच और समाजों के भीतर भी सामाजिक संविदा के नवीनीकरण के महत्व को मान्यता दी है। यह विश्वास के पुनर्निर्माण और मानवाधिकारों के व्यापक दृष्टिकोण को अपनाने का समय है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त सामाजिक संविदा सिद्धांतों को कुछ राजनीतिक समस्याओं को समझने और स्पष्ट करने के लिए काल्पनिक व्यवस्था के रूप में वर्णित किया गया है। सामाजिक संविदा के सिद्धांतों से निकाला जाने वाला एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि कानून और राजनीतिक व्यवस्था प्राकृतिक नहीं है, बल्कि मनुष्यों द्वारा बनाई गई है। एक सामाजिक संविदा, नागरिक स्वतंत्रता, कानून और व्यवस्था और शांति के संरक्षण के रूप में सभी व्यक्तियों के अधिकतम लाभ के लक्ष्य को प्राप्त करने का एक साधन मात्र है। यह उन कानूनों और नियमों पर लोगों द्वारा एक प्रकार का समझौता है जिसके द्वारा उन्हें शासित किया जाना है। 

संदर्भ

  • A History of Political Thought: Plato to Marx, Subrata Mukherjee, Sushila Ramaswamy, Second Edn.

 

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