सरशीयोररी की रिट

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Constitution of India
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यह लेख डॉ. बी.आर. अम्बेडकर राष्ट्रीय कानून, विश्वविद्यालय में कानून की छात्रा Neha Dahiya ने लिखा है। यह लेख सरशीयोररी की रिट, अन्य देशों में रिट के प्रावधान और सरशीयोररी और निषेध (प्रोहिबिशन) के बीच अंतर की व्याख्या करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

सरशीयोररी की रिट के इतिहास का पता कई साल पहले से लगाया जा सकता है जब इसे गलतियों के लिए निर्णयों की समीक्षा (रिव्यू) करने के साधन के रूप में इस्तेमाल किया गया था। इसका आधुनिक रूप भी इससे अलग नहीं है। उच्च अधिकारियों द्वारा कानून की गलतियों वाले या अपने अधिकार क्षेत्र की सीमाओं को पार करने वाले निचले अधिकारियो द्वारा दिए गए निर्णयों को रद्द करने के लिए इसका लगातार उपयोग किया जाता है। भारतीय कानून के तहत, संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 में क्रमशः सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के रिट अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिक्शन) के प्रावधान हैं।

रिट का संक्षिप्त परिचय

एक रिट मूल रूप से प्रशासनिक या न्यायिक शक्तियों वाले कानूनी प्राधिकरण (अथॉरिटी) द्वारा जारी एक औपचारिक (फॉर्मल) आदेश है। भारतीय संदर्भ में, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के रिट अधिकार क्षेत्र की गारंटी क्रमशः अनुच्छेद 32 और 226 द्वारा दी गई है। मसौदा (ड्राफ्टिंग) समिति के अध्यक्ष डॉ बी आर अम्बेडकर द्वारा अनुच्छेद 32 को भारतीय संविधान का “दिल और आत्मा” कहा गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भाग III में उल्लिखित मौलिक अधिकार संविधान का सार हैं। हालांकि, उल्लंघन किए जाने पर उन्हें लागू करने का कोई सहारा लिए बिना, कोई उद्देश्य पूरा नहीं किया जाता है। इस प्रकार, अनुच्छेद 32 हमें वह सुरक्षा प्रदान करता है। अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकार है, जबकि अनुच्छेद 226 मौलिक अधिकार नहीं है। अनुच्छेद 226 एक संवैधानिक प्रावधान है और उच्च न्यायालयों को व्यापक विवेकाधीन शक्तियां प्रदान करता है।

अनुच्छेद 32(2) के अनुसार विभिन्न प्रकार की रिट

अनुच्छेद 32(2) विभिन्न रिटों को निम्नानुसार सूचीबद्ध करता है-

बन्दी प्रत्यक्षीकरण (हेबियस कॉर्पस) 

इसका शाब्दिक अर्थ “आपके पास शरीर होना” है। यह किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करती है और जब भी इसे अवैध रूप से भंग किया जाता है तो इसे लागू किया जा सकता है। यह आमतौर पर अदालतों द्वारा अवैध रूप से हिरासत में रखने और एक कैदी को अदालत के समक्ष पेश करने के मामलों में जारी की जाती है। ऐसा कोई भी व्यक्ति, स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से रिट याचिका दायर कर सकता है।

परमादेश (मैंडेमस)

मैंडेमस “वी कमांड” के लिए एक लैटिन शब्द है। यह आमतौर पर एक उच्च न्यायिक अदालत द्वारा निचली अदालत, न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल), या सार्वजनिक प्राधिकरण को एक विशेष कार्य करने के लिए निर्देश देने के लिए जारी की जाती है। इसे तब लागू किया जाता है जब कोई सार्वजनिक प्राधिकरण उसे सौंपे गए कार्यों को करने में विफल रहता है। इसलिए जब प्राधिकरण विफल हो जाता है, तो यह रिट उन्हें कानून द्वारा आवश्यक कार्य करने के लिए आदेश देने के लिए जारी की जा सकती है।

निषेध 

निचली अदालत या निकाय को अपनी शक्तियों की सीमाओं का उल्लंघन करने से रोकने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा इसका आह्वान किया जाता है। इसे केवल कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान ही पारित किया जा सकता है।

क्यो वारंटो

इसका शाब्दिक अर्थ है “किस अधिकार से आपने आदेश दिया है”। यह किसी व्यक्ति को उस सार्वजनिक पद का प्रभार लेने से रोकने के लिए लागू की जाती है जिसका वह हकदार नहीं है। यह अवैध रूप से ऐसे पद धारण करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध एक सुरक्षा कवच है जिसके लिए वे उपयुक्त नहीं हैं।

सरशीयोररी

मूल रूप से इसका अर्थ है “प्रमाणित होना”। यह सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा निचली अदालत द्वारा पहले से पारित आदेश को रद्द करने के लिए जारी की जा सकती है। इसका उपयोग सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी विशेष मामले को या किसी अन्य वरिष्ठ (सुपेरियर) न्यायिक अधिकारी को विचार के लिए स्थानांतरित (ट्रांसफर) करने के लिए भी किया जा सकता है।

सरशीयोररी की रिट

सरशीयोररी के लिए आधार और व्यक्ति जिनके विरुद्ध सरशीयोररी का गठन किया जा सकता है

सरशीयोररी मूल रूप से न्यायिक नियंत्रण और संयम का एक उपकरण है। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, यह सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा किसी निचली न्यायालय, न्यायाधिकरण, या अर्ध-न्यायिक (क्वासी ज्यूडिशियल) प्राधिकरण द्वारा पारित आदेश को रद्द करने या जब भी प्राधिकरण अपनी शक्ति से अधिक कार्य करता है, या अपेक्षित अधिकार क्षेत्र के बिना, या  प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, तो उसे रोकने के लिए यह जारी की जाती है। यह प्रकृति में सुधारात्मक है और इसका उद्देश्य न्यायिक अधिकारियों द्वारा अांगे बढ़ने को रोका है।

सरशीयोररी की रिट के लिए आवश्यक शर्तें

सरशीयोररी रिट जारी करने के लिए, निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना होता है:

  1. लोगों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले मामलों पर निर्णय लेने के लिए कानून के अनुसार न्यायिक अधिकार रखने वाले एक अधिकारी या न्यायाधिकरण का अस्तित्व में होना।
  2. ऐसे अधिकारी या न्यायाधिकरण ने अवश्य ही ऐसा कार्य किया हो जो-
  • न्यायिक शक्ति से अधिक, या
  • अपेक्षित अधिकार क्षेत्र के बिना, या
  • प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हो।

3. माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यह रिट विशुद्ध रूप से प्रशासनिक कार्यों के विरुद्ध जारी नहीं की जा सकती है। इसका तात्पर्य यह है कि इसे केवल उन स्थितियों में लागू किया जा सकता है जहां संबंधित प्राधिकारी का कर्तव्य है कि वह दोनों पक्षों को सुनने के बाद और बिना किसी बाहरी विचार के विवेकपूर्ण तरीके से कार्य करे। हालांकि, बाद के फैसलों में, इस विचार को खारिज कर दिया गया है। इसलिए भले ही किसी निर्णय पर आने से पहले दोनों पक्षों को सुनने के लिए प्राधिकरण की आवश्यकता न हो लेकिन फिर भी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए। इस प्रकार, प्रशासनिक मामलों में भी सरशीयोररी की रिट जारी की जा सकती है।

4. कहा जाता है कि एक निकाय ने निम्नलिखित मामलों में अपने अधिकार क्षेत्र से परे कार्य किया है:

  • जहां मामले पर विचार करने वाली अदालत का गठन कानून के अनुसार ठीक से नहीं किया गया है, जैसे सदस्यों की आवश्यकता आदि।
  • जहां जांच की विषय वस्तु कानून के अनुसार निकाय की शक्तियों के दायरे से बाहर है।
  • जब अधिकार क्षेत्र अधिकारिता तथ्यों की गलत धारणा पर आधारित हो।
  • जब प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन या धोखाधड़ी, मिलीभगत या भ्रष्टाचार जैसे तत्वों की उपस्थिति के कारण न्याय की विफलता होती है।
  • भले ही निकाय ने अपने अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के भीतर अच्छी तरह से काम किया हो, लेकिन अगर कोई स्पष्ट त्रुटि प्रथम दृष्टया (प्राइमा फेशी) हो तो निर्णय को रद्द किया जा सकता है। यहाँ त्रुटि का अर्थ, कानून की त्रुटि है।

इस प्रकार, उपरोक्त सभी मामलों में, सरशीयोररी की एक रिट जारी की जा सकती है।

सरशीयोररी की रिट दाखिल करने की प्रक्रिया

सरशीयोररी के लिए रिट दाखिल करने की प्रक्रिया किसी भी रिट याचिका को दाखिल करने के समान है।  किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर अनुच्छेद 32 के तहत या उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका या तो सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जा सकती है। याचिका दायर करने के लिए कोई विशिष्ट समय सीमा प्रदान नहीं की गई है।  हालांकि, उचित देरी के लिए जगह है। इसे एक अधिकार के उल्लंघन के बाद उचित समय के भीतर दायर किया जाना चाहिए।

सबसे पहले, एक पीड़ित व्यक्ति को सभी आवश्यक दस्तावेजों के साथ पहले एक वकील या किसी संगठन से संपर्क करना होगा। इसके बाद वकील द्वारा याचिका का मसौदा तैयार किया जाता है। मसौदे में पीड़ित के बारे में सभी आवश्यक विवरण और उसके अधिकारों के उल्लंघन के बारे में तथ्य शामिल होंगे। इसके बाद अदालत में याचिका दायर की जाती है। फिर अदालत सुनवाई के लिए एक निश्चित तारीख तय करती है। अदालत द्वारा दूसरे पक्ष को नोटिस भेजा जाता है। इसके बाद दोनों पक्ष अदालत में पेश होते है और अपनी दलीलें रखते है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश फैसला सुनाते हैं। किसी भी अन्य रिट की तरह, याचिका में पालन किए जाने वाले रिट के लिए एक उचित निर्धारित प्रारूप है।

सरशीयोररी की रिट से संबंधित मामले

सरशीयोररी के रिट से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मामले निम्नलिखित हैं:

सैयद याकूब बनाम के.एस.  राधाकृष्णन और अन्य (1964)

तथ्य

इस मामले में राज्य परिवहन प्राधिकरण ने मोटर वाहन अधिनियम, 1939 के तहत एक अधिसूचना (नोटिफिकेशन) के माध्यम से दो चरणों वाले कैरिज परमिट के अनुदान (ग्रांट) के लिए आवेदन मांगे थे। कई आवेदन प्राप्त करने के बाद, आवेदकों में से एक को पहला परमिट दिया गया था, जबकि दूसरे परमिट के लिए नए आवेदनों को बुलाया गया था। इसके बाद अपीलार्थी ने राज्य परिवहन अपीलीय न्यायाधिकरण में अपील की थी। न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में पहले परमिट की पुष्टि की और दूसरे में उसने अपीलकर्ता की अपील की अनुमति दी और कहा कि यह उसे दिया जाना चाहिए। इसके बाद प्रतिवादी सरशीयोररी की रिट के लिए उच्च न्यायालय चले गए। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि न्यायाधिकरण ने कई भौतिक विचारों की अनदेखी की थी। जब पिछले आदेश की पुष्टि की गई, तब अपीलकर्ता ने एक विशेष अनुमति याचिका के तहत सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।

मुद्दा

क्या उच्च न्यायालय ने सरशीयोररी की रिट जारी करके अपने अधिकार क्षेत्र को पार किया था?

निर्णय

यह माना गया कि उच्च न्यायालय ने वर्तमान मामले में सरशीयोररी की रिट जारी करके अपने अधिकार क्षेत्र को पार किया है। यह देखा गया कि यह रिट उन मामलों को ठीक करने के लिए जारी की जाती है जहां एक अदालत ने अपने अधिकार क्षेत्र को पार किया हो। रिट द्वारा दी गई शक्तियों के तहत, अदालत अपील की अदालत के रूप में कार्य नहीं कर सकती है या तथ्य की त्रुटि की जांच नहीं कर सकती है। इसका उपयोग उन मामलों में किया जा सकता है जहां कानून की त्रुटि है, या जब यह दिखाया जा सकता है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। लेकिन केवल तथ्य की त्रुटि के आधार पर नहीं। हालांकि, ऐसी कोई त्रुटि हुई है या नहीं यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है।

हरि विष्णु कामथ बनाम सैयद अहमद इशाक (1954)

तथ्य

इस मामले में, अपीलकर्ता और प्रतिवादी दोनों लोक सभा के चुनाव के लिए होशंगाबाद निर्वाचन क्षेत्र (कांस्टीट्यूएंसी) से दो चुनावी उम्मीदवार थे। जब परिणाम सामने आया, तो प्रतिवादी को अपीलकर्ता से अधिक मत प्राप्त हुए और रिटर्निंग अधिकारी ने प्रतिवादी को विजेता घोषित किया। फिर अपीलकर्ता ने चुनाव को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की और इसे रद्द करा दिया गया क्योंकि प्रतिवादी के पक्ष में चिह्नित 301 मतपत्र वैध नहीं थे क्योंकि उनके पास नियम 28 के अनुसार विशिष्ट चिह्न नहीं थे। चुनाव न्यायाधिकरण ने याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि मतों की गलत स्वीकृति से परिणाम प्रभावित नहीं हुआ। इसके बाद अपीलकर्ता ने उच्च न्यायालय का सरशीयोररी की रिट के लिए रुख किया ताकि चुनाव न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया जाए कि यह अमान्य था और न्यायाधिकरण ट्रिब्यूनल ने अपने अधिकार क्षेत्र को पार किया था।

मुद्दा

क्या उच्च न्यायालय के पास चुनाव न्यायाधिकरण के निर्णय के खिलाफ अनुच्छेद 226 के तहत रिट जारी करने का अधिकार क्षेत्र था?

निर्णय

यह माना गया कि याचिका विचारणीय थी और न्यायाधिकरण का निर्णय उच्च न्यायालय के रिट अधिकार क्षेत्र में आया था। चुनाव न्यायाधिकरण के फैसले को भी रद्द कर दिया गया था।

इसके अलावा, इसने निम्नलिखित सिद्धांतों को स्थापित किया गया था:

  1. निचली अदालतों द्वारा की गई अधिकार क्षेत्र की त्रुटियों को ठीक करने के लिए रिट जारी की जा सकती है।
  2. यह न्यायालय के पर्यवेक्षी (सुपरवाइजरी) अधिकार क्षेत्र का हिस्सा है न कि अपीलीय अधिकार क्षेत्र का है। यदि कानून किसी विशेष मामले में अपील की अनुमति नहीं देता है, तो इसे सरशीयोररी की रिट के माध्यम से उपाय देना कानून के उद्देश्य को विफल करने के बराबर है।
  3. यहाँ उद्देश्य मामले की फिर से सुनवाई करना और तथ्यों पर एक बार फिर से विचार करना नहीं है। इसे केवल कानून की त्रुटि के मामलों में ही लागू किया जा सकता है।

राधेश्याम और अन्य बनाम छबी नाथ और अन्य (2015)

तथ्य

इस मामले में सिविल अदालत द्वारा पारित एक अंतरिम (इंटरिम) आदेश के खिलाफ, प्रतिवादी ने मुकदमे के लंबित रहने के दौरान उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता के पक्ष में पारित कर दिया। तब अपीलकर्ता ने विशेष अनुमति याचिका के तहत सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया और कहा कि उच्च न्यायालय के पास आदेश पारित करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है और सिविल अदालत द्वारा पारित अंतरिम आदेश के खिलाफ कोई रिट याचिका नहीं हो सकती है।

मुद्दा

क्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सिविल अदालत के आदेश के खिलाफ रिट दायर की जा सकती है?

निर्णय

न्यायालय ने अनुच्छेद 226 और 227 के तहत उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में अंतर किया। यह देखा गया कि अनुच्छेद 226 न्यायालय को रिट अधिकार क्षेत्र देता है, जबकि दूसरी ओर अनुच्छेद 227 पर्यवेक्षी अधिकार क्षेत्र देता है। ये दोनों अपने कार्यक्षेत्र और न्यायालय को दी गई शक्तियों की प्रकृति में भिन्न हैं। अनुच्छेद 227 के अनुसार, न्यायालय न केवल किसी आदेश को रद्द कर सकता है, बल्कि उसे अपनी राय या निर्णय से प्रतिस्थापित (सब्स्टीट्यूट) भी कर सकता है। लेकिन अदालत अनुच्छेद 226 के तहत ऐसा नहीं कर सकती है। इस प्रकार, यह माना गया कि सिविल अदालतों के न्यायिक आदेश, सरशीयोररी की रिट के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।

अन्य देशों में सरशीयोररी के लिए प्रावधान

निम्नलिखित रूपों में देश भर में सरशीयोररी की रिट जारी है:

अमेरीका

निचली अदालतों के निर्णयों की समीक्षा करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय में अक्सर सरशीयोररी की रिट का उपयोग किया जाता है। कोई पक्ष अधिकार के मामले में सीधे सर्वोच्च न्यायालय में अपील नहीं कर सकता है। इस प्रकार, इसे निचली अदालत से मामले की समीक्षा करने के लिए सरशीयोररी का उपयोग करना पड़ता है। सरशीयोररी के लिए एक याचिका पर विचार करने के लिए, कम से कम चार न्यायाधीशों को समीक्षा सुनने के लिए सहमत होना चाहिए। इसे ‘सरशीयोररी देना’ कहते हैं। ‘सरशीयोररी से इनकार’ तब होता है जब न्यायाधीश समीक्षा को स्वीकार करने से इनकार करते हैं। अमेरिका में “सेर्ट पूल” में भाग लेना एक आम बात है। इस प्रथा में न्यायाधीशों के विधि लिपिक (क्लर्क) सामूहिक रूप से आपस में सरशीयोररी के लिए याचिकाओं को सौंपने में शामिल होते हैं। वे उनका विश्लेषण करते हैं और न्यायाधीशों को यह अनुशंसा करने के लिए ज्ञापन (मेमोरेंडम) तैयार करते हैं कि न्यायाधीशों को सरशीयोररी की रिट देनी चाहिए या नहीं। यूएस सर्वोच्च न्यायालय नियम सूची के नियम 10 में सरशीयोररी प्रदान करने के मानदंड (क्राइटेरिया) शामिल हैं। यह भी घोषित करता है कि यह एक विवेकाधीन शक्ति है जो सर्वोच्च न्यायालय के पास है। रिट को इनकार करने का मतलब यह नहीं है कि अदालत निचली अदालत के फैसले से सहमत है। तथ्यात्मक त्रुटियों या कानून के दुरूपयोग के मामलों में, रिट शायद ही कभी दी जाती है।

यूके

यूके में, रिट का उपयोग न्यायिक विवेक पर किया जाता है, इसे केवल तभी दिया जाता है जब कोई अधिकार क्षेत्र की त्रुटि हो। यह ब्रिटिश संविधान की धारा 75(v) के तहत उच्च न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र में उपलब्ध है। यह न्यायपालिका अधिनियम, 1903 की धारा 39B(1) के अनुसार संघीय (फेडरल) न्यायालय के पास भी उपलब्ध है। यह सीमित प्रकृति में राज्य की अदालतों के पास भी है। यहाँ रिट की एक विशिष्ट विशेषता यह है कि इसे हमेशा सहायक राहत के रूप में दिया जाता है। यह तभी जारी की जा सकती है जब कोई अन्य संवैधानिक उपाय स्थापित हो। एक अदालत रिट के स्थान पर निषेधाज्ञा (इनजंक्शन) या घोषणा जैसे न्यायसंगत उपाय भी दे सकती है।

फ्रांस

निम्नलिखित मामलों में कोर्ट डी कैसेशन द्वारा सरशीयोररी की रिट जारी की जा सकती है:

  1. जब पिछली अदालत के पास निर्णय देने का अधिकार क्षेत्र नहीं था।
  2. जब प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।
  3. यदि दिया गया तर्क प्रासंगिक नहीं था।
  4. यदि निर्णय कानूनी ढांचे के अनुकूल नहीं था।

अदालत एक याचिका को खारिज कर सकती है यदि वह इसे बेबुनियाद पाती है और ऐसा करने के कारणों को दर्ज कर सकती है।

ऑस्ट्रेलिया

ऐतिहासिक रूप से, न्यायिक समीक्षा की शक्ति, जिसे पहले निचला अधिकार क्षेत्र कहा जाता था, 1824 में वैन डायमन्स लैंड और न्यू साउथ वेल्स में पहले सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना के साथ ऑस्ट्रेलिया में आई थी। इस प्रकार, सरशीयोररी जो एक सामान्य कानून की शक्ति थी, न्यायालयों द्वारा अपने निर्णयों के माध्यम से बनाई गई अधिकारिता की शक्ति थी। वहां पालन किए जाने वाले सामान्य कानून में, न्यायिक समीक्षा विभिन्न विशेषाधिकार रिटों के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है और सरशीयोररी उनमें से एक है। सरशीयोररी कानून के विपरीत दिए गए निर्णय को रद्द कर देती है। इसके साथ ही, संविधान की धारा 75(v) भी ‘न्यायिक समीक्षा का एक मजबूत न्यूनतम प्रावधान’ प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, न्यायपालिका अधिनियम, 1903 की धारा 39B(1) ऑस्ट्रेलिया के उच्च न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र को संघीय न्यायालय तक विस्तारित करती है।

सरशीयोररी और निषेध की रिट के बीच अंतर

सरशीयोररी की रिट

जैसा कि ऊपर बताया गया है, इसका उपयोग उच्च न्यायालय द्वारा निचले न्यायिक प्राधिकरण द्वारा पारित आदेश को रद्द करने के लिए किया जाता है। यह उन मामलों में जारी की जाती है जहां निर्णय में कानून की प्रथम दृष्टया त्रुटि होती है, प्राधिकरण ने अपनी शक्तियों से अधिक आदेश दिया हो, या जब प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है।

निषेध की रिट

सरशीयोररी के रिट के समान, निषेध की रिट भी एक उच्च न्यायिक प्राधिकारी द्वारा निचले प्राधिकारी को जारी किया जाता है ताकि उसे अपने अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़ने से रोका जा सके। यह एक तरह का ‘स्टे ऑर्डर’ है, जहां उच्च अधिकारी निचले वाले को आगे की कार्यवाही करने से ‘निषिद्ध’ करते हैं। हालांकि, इसे केवल न्यायिक निकायों के खिलाफ पारित किया जा सकता है, न कि प्रशासनिक निकायों के खिलाफ। यह न्यायिक पदानुक्रम (हायरार्की) के उल्लंघन और दक्षता (एफिशिएंसी) के लिए विषयों को अलग करने के खिलाफ एक सुरक्षा कवच है। इसे केवल कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान ही पारित किया जा सकता है।

मामले जिन में निषेध की रिट जारी की जा सकती है

जिन तीन मुख्य मामलों में इसे जारी किया जा सकता है, वे निम्नलिखित हैं:

  1. जब किसी प्राधिकरण ने अपने अधिकार क्षेत्र को पार कर लिया हो,
  2. जब मामले से निपटने के लिए प्राधिकारी के पास कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था,
  3. प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है।

दोनों रिट यह सुनिश्चित करती हैं कि न्यायिक कार्यों को स्थापित नियमों के उल्लंघन के बिना कानून के अनुसार किया जा रहा है। ये दोनों यह सुनिश्चित करती हैं कि न्यायिक अधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण न करें। हालांकि, ये समान नहीं हैं। इनके बीच अंतर इस प्रकार हैं:

सरशीयोररी निषेध
अदालत द्वारा अपने आदेश को रद्द करने का निर्णय देने के बाद सरशीयोररी की रिट जारी की जाती है। इसलिए यदि कोई व्यक्ति न्यायालय द्वारा पहले से पारित किसी आदेश के विरुद्ध रिट दाखिल करना चाहता है, तो यह सरशीयोररी की रिट होनी चाहिए। निषेध रिट तब जारी की जाती है जब कार्यवाही चल रही हो और आदेश अभी तक नहीं दिया गया हो। इसलिए यदि कोई कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान रिट दायर करना चाहता है, तो यह निषेध की रिट होनी चाहिए।
यह प्रकृति में सुधारात्मक है। यह प्रकृति में निवारक है।
वैकल्पिक उपाय की उपस्थिति सरशीयोररी के मामले में अधिक प्रासंगिक होती है। क्योंकि बेहतर होगा कि किसी निचली अदालत द्वारा पूरे आदेश को रद्द कर दिया जाए। वैकल्पिक उपाय की उपस्थिति निषेध की रिट पर पूर्ण रोक नहीं है।

निष्कर्ष

निचली अदालतों द्वारा पारित आदेशों को रद्द करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा सरशीयोररी रिट का उपयोग किया गया है, जब उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र को पार किया है, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है, या कानून की त्रुटि की है। अदालतों ने कई फैसलों में आवश्यकताओं को स्पष्ट किया है। रिट अधिकार क्षेत्र सर्वोच्च न्यायालय के लिए अनुच्छेद 32 और उच्च न्यायालय के लिए अनुच्छेद 226 में दिया गया है। सरशीयोररी की रिट अन्य देशों में भी इसी तरह से पाई जाती है। सरशीयोररी और निषेध बहुत समान तर्ज पर चलते हैं। हालांकि, वे दोनों अपने सार में काफी भिन्न हैं।

संदर्भ

  • डी.डी.  बसु, भारत के संविधान का परिचय (22वां संस्करण 2011)।

 

 

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