बिहारी चौधरी बनाम बिहार राज्य के आलोक में सीपीसी की धारा 80 के तहत नोटिस के उद्देश्य 

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Civil Procedure Code

यह लेख Karan Sharma द्वारा लिखा गया है जो लॉसिखो से एडवांस्ड सिविल लिटिगेशन में सर्टिफिकेट कोर्स कर रहे हैं। इसे Zigishu Singh (एसोसिएट, लॉसिखो) और Smriti Katiyar (एसोसिएट, लॉसिखो) द्वारा संपादित किया गया है। इस लेख में एक ऐतिहासिक मामले के माध्यम से सीपीसी की धारा 80 पर चर्चा की गई हैं। इस लेख का अनुवाद Deeksha Singh ने किया है

परिचय

भारतीय कानूनी इतिहास में मुकदमा दाखिल करने की व्यवस्था लंबे समय से प्रचलित है। दीवानी (सिविल) मुकदमे की शुरुआत हमेशा कानूनी नोटिस जारी करने से होती है। कानूनी नोटिस एक दस्तावेज है जिसमें प्रतिवादी को उन आरोपों के बारे में बताया जाता है, जो उस पर लगाए जा रहे हैं या क्या वह किसी दायित्व को पूरा करने में विफल रहा है या यदि वह लापरवाही कर रहा है। सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की आदेश 6 नियम 11 में कहा गया है कि नोटिस मूल रूप से एक दस्तावेज है जिसे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को भेजता है, उसके खिलाफ भौतिक (मटेरियल) आरोपों के साथ, और जिसे वे नोटिस भेज रहे हैं वो आमतौर पर प्रतिवादी होता है।

उपर्युक्त नोटिस जारी करना एक निजी व्यक्ति के खिलाफ दीवानी मुकदमे में पालन की जाने वाली एक प्रथा है लेकिन अगर किसी को सरकार या किसी लोक अधिकारी के खिलाफ मुकदमा दायर करने की आवश्यकता है, तो मुकदमा दायर करने और नोटिस जारी करने की प्रक्रिया अलग है। सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 80 में कहा गया है कि यदि वादी द्वारा सरकार या किसी लोक अधिकारी के विरुद्ध मुकदमा चलाया जा रहा है, तो वादी अदालत में मुकदमा दायर करने की तारीख से कम से कम 2 महीने पहले कानूनी नोटिस देगा। यह विचारोत्तेजक (सजेस्टिव) नहीं बल्कि एक अनिवार्य अवधि है।

सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 80 क्या बताती है

सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 80 में निम्नलिखित कहा गया है:

  • भारत सरकार (जम्मू-कश्मीर सरकार सहित) के विरुद्ध या किसी लोक अधिकारी के विरुद्ध अपने पेशेवर कर्तव्यों में किए जाने वाले किसी भी कार्य के संबंध में कोई वाद नहीं लाया जाएगा जब तक कि सरकार या लोक अधिकारी के कार्यालय को लिखित रूप में नोटिस वितरण (डिलीवर) कराने या व्यक्तिगत वितरण  कराये जाने के बाद दो महीने ना बीत चुके हों।

क्या 2 महीने की वैधानिक (स्टटूटोरी) समय अवधि को माफ़ करने की कोई छूट है

संहिता की धारा 80 (2) में निम्नलिखित कहा गया है:

  • कि न्यायालय की अनुमति से सरकार के खिलाफ तत्काल राहत के लिए एक मुकदमा (जम्मू और कश्मीर राज्य की सरकार सहित) या किसी भी लोक अधिकारी द्वारा अपनी आधिकारिक क्षमता में किए जाने वाले किसी भी कार्य के संबंध में उप-धारा (1) द्वारा अपेक्षित किसी भी नोटिस की सेवा के बिना स्थापित किया जा सकता है। तथापि न्यायालय मुक़दमे में राहत प्रदान नहीं करेगा, चाहे वह अंतरिम हो या अन्यथा, जब तक कि सरकार या लोक अधिकारी न हों। 

सरकार या किसी लोक अधिकारी के खिलाफ मुकदमा दायर करने के लिए नोटिस की भूमिका को समझने के बाद हम सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 80 के उद्देश्य और अवधारणा (कांसेप्ट) को अधिक अच्छी तरह से समझ सकते हैं, यानी सरकार या लोक सेवक के खिलाफ मुकदमा दायर करने से पहले कानूनी नोटिस के साथ सेवा करना। “बिहारी चौधरी बनाम बिहार राज्य 1984″ के मामले का विश्लेषण (एनालिसिस) करके उपर्युक्त अवधारणा की गहन समझ प्राप्त की जा सकती है।

बिहारी चौधरी बनाम बिहार राज्य 

मामले के संक्षिप्त तथ्य

उपरोक्त मामले में अपीलकर्ताओं ने अचल संपत्ति के स्वामित्व (पोस्सेशन) और कब्जे की घोषणा के लिए एक मुकदमा दायर किया। जिन पार्टियों के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया था उनमें से एक राज्य सरकार थी। मुक़दमे की शुरुआत के पूर्व, अपीलकर्ताओं ने सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 80 के तहत राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। तब अपीलकर्ताओं/ वादी ने वैधानिक अवधि की प्रतीक्षा किए बिना, जो कि प्रावधान में दी गई है, 2 महीने की समय अवधि समाप्त होने से पहले न्यायालय में मुकदमा दायर किया। राज्य सरकार के प्रतिनिधि ने तर्क दिया कि उपर्युक्त दायर मुकदमा कानून की अदालत में चलने योग्य नहीं था क्योंकि उपर्युक्त मुकदमा 2 महीने की समाप्ति की वैधानिक अवधि से पहले दायर किया गया था, जैसा कि सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 80 में दिया गया है। राज्य सरकार ने तर्क दिया कि इस तरह का मुकदमा दायर करना सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में बताए गए कानून का उल्लंघन है। राज्य सरकार ने अपने प्रतिनिधि के माध्यम से लगातार कहा कि कानून के अनुसार धारा 80 के तहत शासी निकायों (गवर्निंग बॉडीज) को कोई कानूनी नोटिस प्रदान किए जाने के बाद, सूट की शुरुआत के समक्ष नोटिस की तारीख से 2 महीने बीतने चाहिए और मुकदमा 2 महीने की समाप्ति अवधि से पहले दायर किया गया था और इस प्रकार मुकदमा चलने योग्य नहीं है और तदनुसार खारिज कर दिया जाएगा। निचली अदालत ने अपने प्रतिनिधि के माध्यम से राज्य सरकार के तर्कपूर्ण तर्कों को सुनने के बाद इस आधार पर मुक़दमे को खारिज कर दिया कि मुकदमा चलने योग्य नहीं है क्योंकि मुकदमा शासी प्रावधान के उल्लंघन में दायर किया गया है। इसके बाद अपीलकर्ताओं ने अपीलीय अदालत का दरवाजा खटखटाया जहां उनकी अपील खारिज कर दी गई। तब अपीलकर्ताओं ने द्वितीय अपीलीय न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया जो उच्च न्यायालय था। उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ताओं द्वारा दायर अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनका मुकदमा कानून के उल्लंघन में दायर किया गया है और इस प्रकार यह चलने योग्य नहीं है। इसके बाद अपीलकर्ताओं ने मामले की स्थिरता के संबंध में अपील के साथ सर्वोच्च न्यायलय का दरवाजा खटखटाया। सर्वोच्च न्यायलय ने भी विभिन्न कारणों से उल्लिखित अपील को खारिज कर दिया, जिसे नीचे लेख में आगे समझाया जाएगा।

अपील को खारिज करने और सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 80 के उद्देश्यों की व्याख्या करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के कारण

सर्वोच्च न्यायलय ने अपील खारिज करने से संबंधित कारणों को बताया। सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित का आयोजन (हेल्ड) किया:

  1. सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 80 के तहत सरकार या एक लोक अधिकारी के खिलाफ एक पूर्व सूचना की आवश्यकता के अधीन एक मुकदमा उक्त धारा में निर्धारित तरीके से संबंधित अधिकारियों को लिखित रूप में नोटिस के वितरण के बाद, दो महीने की अवधि की समाप्ति तक, वैध रूप से स्थापित नहीं किया जा सकता है और यदि मुकदमा उस अवधि की समाप्ति से पहले दायर किया जाता है, तो मुकदमा खारिज कर दिया जाना चाहिए क्योंकि निम्नलिखित मुकदमा कानून के अनुसार चलने योग्य नहीं है।
  2. 1976 के अधिनियम 104 द्वारा इसके संशोधन से पहले सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 80 का प्रभाव स्पष्ट रूप से सरकार या किसी सार्वजनिक व्यक्ति के खिलाफ उसकी आधिकारिक क्षमता में उसके द्वारा कथित रूप से किए गए किसी भी कार्य के संबंध में एक मुक़दमे की शुरुआत को तब तक रोकना था जब तक कि नोटिस जारी होने के दो महीने बीत नहीं गए थे। यह आवश्यक आवश्यकता स्पष्ट रूप से जनता के हित की सेवा के लिए है। 
  3. धारा की योजना से पता चलता है कि यह सुनिश्चित करने के लक्ष्य के साथ एक सार्वजनिक नीति उपाय के रूप में अधिनियमित किया गया था ताकि सरकार या किसी लोक अधिकारी के खिलाफ मुकदमा दायर करने से पहले सरकार या लोक अधिकारी को गहन रूप से शामिल करने के लिए विचाराधीन दावे का आलोचनात्मक विश्लेषण (क्रिटिकली अनलाइस) करने का अवसर दिया जा सके और यदि यह एक उचित दावा पाया जाता है तो निर्णायक कार्रवाई करने के लिए भी, जिससे अनावश्यक मुकदमेबाजी और करदाताओं का पैसा बर्बाद होने से बचाया जा सके। 
  4. जब क़ानून में प्रयुक्त शब्द स्पष्ट हों इसे स्थायी प्रभाव देना न्यायालय का सीधा दायित्व है और विधायिका के संवैधानिक (लेजिटीमेट) दायित्व को ईमानदारी से पूरा नहीं करने के लिए कठिनाई एक वैध कारण नहीं होगी।

निष्कर्ष

उपरोक्त सामग्री (कंटेंट) में “नोटिस” का अर्थ और उद्देश्य समझाया गया है लेकिन इसे संक्षेप में हम कह सकते हैं कि कानूनी नोटिस की अवधारणा केवल किसी व्यक्ति पर गलत काम करने का आरोप लगाने तक ही सीमित नहीं है बल्की न्याय की भावना को बनाए रखने के लिए भी है। यह दोनों पक्षों को मुक़दमे में निष्पक्ष मंच पाने में भी मदद करता है की ताकि वह जान सके कि किन आरोपों को साबित, अस्वीकृत या किनका बचाव किया जाना है। सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 80 की धारणा है की वो सरकार को या लोक अधिकारी को समस्या या शिकायत को समझने का समय प्रदान करता है और सीधे मुकदमा करने के बजाय उस पर कार्रवाई करता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अदालतें इस लिए मौजूद हैं कि सभी व्यक्तियों को न्याय मिल सके लेकिन अदालतें भी कानूनी मामलों के बोझ से दबी हुई हैं। तो उस मामले में यदि सरकार या लोक अधिकारी को शिकायत को सुधारने के लिए कुछ समय प्रदान करने से अदालत के बोझ को कम करने में मदद मिलती है, तो उस मामले में सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 80, जो सरकार और लोक अधिकारी को कानूनी नोटिस के बारे में बात करता है, लंबी और नीरस कानूनी कार्यवाही के हस्तक्षेप के बिना सरकार या लोक अधिकारी द्वारा आवश्यक कार्यों को पूरा करने के लिए वास्तव में सहायक है। फिर भी यह प्रावधान पीड़ित को सरकारी आधिकारिक सहायक पार्टी को नोटिस जारी किए बिना अदालत का दरवाजा खटखटाने से नहीं रोकता है यदि समाधान की आवश्यकता तत्काल प्रकृति की है।

संदर्भ

  1. Indian Kanoon.org for the judgment: https://indiankanoon.org/doc/764318/
  2. Code of Civil Procedure, Bare Act by Universal Publications
  3. Code of Civil Procedure, Bare Act by India Code: https://legislative.gov.in/sites/default/files/A1908-05.pdf
  4. Civil Procedure SIXTH EDITION Justice CIC Thakker (Takwani): https://pdfcoffee.com/cpc-by-ck-takwanipdf-pdf-free.html
  5. Case Summary: Bihari Chowdhary Vs. State of Bihar by E-Justice India: http://www.ejusticeindia.com/case-summary-bihari-chowdhary-vs-state-of-bihar/
  6. Everything you must know about legal notice and its format by iPleaders.in: https://blog.ipleaders.in/legal-notice-format/
  7. Suits brought by or against Government or Public Officers: https://www.lawctopus.com/academike/suits-brought-government-public-officers/
  8. Suits By or Against Government Or Public Officers In Their Official Capacity: https://www.legalserviceindia.com/legal/article-2075-suits-by-or-against-government-or-public-officers-in-their-official-capacity.html

 

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