सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 5 

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Civil Procedure Code

यह लेख देहरादून के ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के कानून के छात्र Monesh Mehndiratta के द्वारा लिखा गया है। सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 5 किसी भी वाद (सूट) के दर्ज होने के सात दिन के अंदर समन को निकले जाने के बारे में चर्चा करता है। यह लेख समन की आवश्यकताओ, उसके लक्ष्य और उसकी तामील करने के तरीके की वर्णन  करता है। और आगे समन के अलग अलग नियम प्रदान करता है। इस लेख का हिन्दी अनुवाद Krati Gautam के द्वारा किया गया है। 

Table of Contents

परिचय 

“नमस्ते”  क्या आप यहाँ आ सकते हैं?” जब मुझे किसी से बात करनी होता है तो मैं यही करता हूं। आप क्या करते हैं?

जब भी हम किसी को कहीं मौजूद होने के लिए बुलाना चाहते हैं, हम या तो उन्हें निजी रूप से या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से बुलाते हैं, या फिर हम उनसे फोन कॉल पर जुड़ते हैं। हर व्यक्ति यही करता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब अदालत किसी व्यक्ति को अदालत में बुलाती है या उसकी उपस्थिति दर्ज कराती है तो अदालत क्या करती है? जाहिर है, वह सीधे फोन नहीं कर सकती ना ही उस व्यक्ति के पास जा सकती। तो फिर किसी आदमी को ये कैसे पता चलता है कि उसे इस तारीख को कोर्ट में हाजिर होना है? यह निश्चित रूप से सोचने के लिए एक अच्छा सवाल है, है ना? 

प्रतीक्षा करिए, आपको ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। जवाब इस लेख में ही लिखा है। इस लेख के अंत तक, आप अपने सभी संदेहों को दूर करने में सक्षम होंगे। खैर, जब भी किसी अदालत को किसी भी मामले में किसी गवाह या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति सुनिश्चित करनी होती है, तो वह उस व्यक्ति विशेष को आधिकारिक नोटिस भेजता है। यह आधिकारिक नोटिस या दस्तावेज किसी व्यक्ति को एक विशेष दिन पर किसी न्यायाधीश के सामने उपस्थित रहने का निर्देश देता है और इसी को समन कहा जाता है। अदालत इसे अदालत के अधिकारी या अदालत द्वारा ऐसा करने के लिए अधिकृत (ऑथराइज) ऐसे किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से भेजती है।

अब, आप सोच रहे होंगे कि उस दस्तावेज़ में क्या जिक्र किया गया है। समन के लिए क्या आवश्यकताएं हैं? क्या होगा अगर कोई व्यक्ति समन तामील होने के बाद उसे अस्वीकार कर देता है या न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है? फिक्र मत करो। इन सभी सवालों के जवाब इस लेख में एक-एक करके दिए जाएंगे। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908, समन से संबंधित एक सही  प्रक्रिया प्रदान करती है। यह लेख समन के अर्थ, उद्देश्य, अनिवार्यता और समन के भेजे जाने के तरीकों की व्याख्या करता है। यह आगे उस परिदृश्य (सिनेरीओ) पर चर्चा करता है जब कोई व्यक्ति उसे दिए गए समन से इनकार करता है या आपत्ति जताता है।

समन का अर्थ, उद्देश्य और अनिवार्यता 

यदि हम सिविल वाद के मामले में कानूनी सहायता को समझने की कोशिश करते हैं, तो सिविल वाद कका पहला करण किसी विशेष मामले या संपत्ति पर विवाद होता है।यह वाद हेतुक( कॉज़ ऑफ एक्शन)को  जन्म देता है और उसके बाद पक्षकारों- वादी और प्रतिवादी की पहचान को। इसके बाद उस विषय वस्तु की पहचान की जाती है जिस पर विवाद पैदा हुआ है। न्यायालय के अधिकार क्षेत्र (जुरिस्डिक्शन) का निर्धारण वाद/वादपत्र (प्लेंट)  के मूल्य के साथ-साथ किया जाता है। अधिकार क्षेत्र और मूल्यांकन पर विचार करने के बाद, एक वादी दीवानी न्यायालय में वाद या वादपत्र  दायर करता है। सबसे महत्वपूर्ण कदम वाद के दायर होने के बाद आता है, जो कि वाद के दायर होने के सात दिनों के भीतर समन जारी करना है,जिसके बाद प्रतिवादी 30 दिनों के भीतर एक लिखित बयान प्रस्तुत करने के लिए बाध्य होता है। इसके बाद आगे की कार्यवाही और बहस होती है।समन का महत्व इस तथ्य में निहित है कि जब एक वादी मुकदमा दायर करता है, तो प्रतिवादी को उसके खिलाफ दायर किए गए मुकदमे के बारे में सूचित किया जाना चाहिए ताकि उसे सुना जा सके और निष्पक्ष सुनवाई की प्रक्रिया का पालन किया जा सके।अदालत द्वारा प्रतिवादी को उसके खिलाफ दायर मुकदमे के बारे में सूचित करने के लिए जो दस्तावेज भेजा जाता है उसे ही समन के रूप में जाना जाता है।

“समन” को सिविल प्रक्रिया संहिता में कहीं भी परिभाषित नही किया गया है। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी द्वारा दी गई समन की परिभाषा में कहा गया है कि, “एक दस्तावेज जो न्याय की अदालत से जारी किया जाता है और किसी व्यक्ति को एक विशेष कारण के लिए न्यायाधीश या अदालत के समक्ष उपस्थित होने के लिए निर्देशित करता है, उसे समन कहा जाता है।” समन का जारी करना और उसकी तामील करना सिविल प्रक्रिया  संहिता के आदेश 5 के तहत दिया गया है।

समन का उद्देश्य

समन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  • किसी व्यक्ति को उनके खिलाफ की गई किसी भी कानूनी कार्रवाई के बारे में सूचित करना महत्वपूर्ण है।
  • यह प्रतिवादी को अपने केस को और अपनी कहानी के पक्ष को रखने का अवसर देता है।
  • समन का आधार है “ऑडी अल्टरम पार्टेम” की कहावत, जिसका अर्थ है दोनों पक्षों को सुनना।
  • यह आगे चलकर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने में मदद करता है और सुनिश्चित करता है कि न्यायिक कार्यवाही और परीक्षण निष्पक्ष हो ।
  • यह किसी गवाह या आरोपी या किसी अन्य व्यक्ति जो कि मुकदमे में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से शामिल हो उसकी उपस्थिति न्यायालय के सामने सुनिश्चित करने में मदद करता है। 
  • जरूरी दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के लिए।

समन के आवश्यक तत्व 

समन के आवश्यक तत्व संहिता के आदेश 5, नियम 1 और 2 के तहत दिए गए है। य़े जरूरी तत्व हैं:

  • प्रत्येक समन पर न्यायाधीश या किसी अन्य अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए, जिसे वह अपनी ओर से ऐसा करने के लिए नियुक्त करता है
  • इसे ठीक से सील किया जाना चाहिए।
  • अदालत उस प्रतिवादी को कोई समन जारी नहीं करेगी अगर वह वाद के दायर होने के समय पर  अदालत के सामने पेश हुआ हो।
  • समन जारी होने के बाद, प्रतिवादी को 30 दिनों के भीतर लिखित बयान दाखिल करना होता है। यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो उसे कारण बताना होगा, और यदि अदालत संतुष्ट है, तो वह लिखित बयान दर्ज करने की समय अवधि को बढ़ा सकती है, मगर वह समय समन की तामील की  तारीख से 90 दिनों से अधिक नहीं बढ़ा सकती। 
  • समन का एक अन्य अनिवार्य तत्व यह है कि प्रत्येक समन के साथ वादपत्र की एक प्रति अवश्य संलग्न(अकम्पनीड) होनी चाहिए
  • समन का प्रारूप संहिता के तहत पहली अनुसूची के परिशिष्ट B (अपेन्डिक्स B) में दिए गए निर्धारित प्रपत्र (प्रिस्क्रीप्शन) के अनुसार होना चाहिए।

समन का विषय 

संहिता के तहत आदेश 5 के नियम 5 से नियम 8 तक समन के विषय जानकारी देता है। समन में निम्नलिखित  शामिल होना चाहिए:

  • सूचना, चाहे वह मुद्दों के निपटारे के लिए जारी की गई हो या वाद के अंतिम निपटान के लिए। नियम 5 के अनुसार, लघु वाद अदालत केवल किसी मुकदमे के अंतिम निपटान के लिए ही समन जारी कर सकती है।
  • प्रतिवादी के निवास और समय पर विचार करते हुए, इसमें प्रतिवादी की उपस्थिति के लिए निर्धारित तिथि और दिन आदि., शामिल होना चाहिए, ताकि उसे अदालत के समक्ष पेश होने का उचित समय और अवसर मिल सके।
  • इसमें उन आवश्यक दस्तावेजों की सूची भी शामिल होती है जो एक प्रतिवादी को अदालत में पेश करने होते हैं। 
  • यदि समन अंतिम निपटान के लिए जारी किया गया है, तो उसे प्रतिवादी को अपने पक्ष का समर्थन करने के लिए उसकी ओर से गवाह पेश करने का निर्देश देना चाहिए।

प्रतिवादियों को समन

आदेश के नियम 1 के अनुसार, जब भी किसी वादी द्वारा मुकदमा दायर किया जाता है, तो प्रतिवादी को उसे समन जारी होने के 30 दिनों के भीतर एक लिखित बयान दर्ज करना होता है। यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है और उचित कारण प्रस्तुत करता है, तो अदालत, विचार करने के बाद, समय को 90 दिनों तक बढ़ा सकती है। हालाँकि, अदालत कोई समन जारी नहीं करेगी यदि प्रतिवादी वादी के संस्थापन(इंस्टिटूटीशन) के समय उपस्थित था और उसने वादी के दावे को स्वीकार कर लिया है।संहिता की धारा 27 में आगे प्रावधान है कि प्रतिवादी को तब एक समन जारी किया जाना चाहिए जब मुकदमा अदालत के समक्ष पेश होना हो और वाद का जवाब लिखित कथन (रिटन स्टेट्मेन्ट) के रूप में देना हो।   

धारा 28 में उस स्थिति का उल्लेख है जहां एक प्रतिवादी को जारी किए गए समन को एक अलग राज्य या अधिकार क्षेत्र में भेजा जाना है जहां वह रहता है। ऐसी स्थिति में, न्यायालय उस अधिकार क्षेत्र वाले न्यायालय को समन भेजेगा, और फिर वह न्यायालय कर्तव्यों का पालन ऐसे करेगा जैसे कि उसके द्वारा समन जारी किया गया था।यह आगे अपनी कार्यवाही का रिकॉर्ड उस अदालत को लौटाएगा जिसने मूल रूप से समन जारी किया था। अगर जारी किए गए समन और रिकार्ड  के बीच की भाषा में कोई अंतर है, तो रिकार्ड का हिंदी या अंग्रेजी भाषा  में अनुवाद किया जाएगा और फिर समन के साथ भेजा जाएगा।

प्रतिवादी की उपस्थिति 

नियम 3 के अनुसार, यदि प्रतिवादी को समन जारी किया जा चुका है, तो वह निम्नलिखित तरीकों से अदालत में पेश हो सकता है:

  • वह स्वयं, व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हो सकता है,
  • अपने वकील के माध्यम से, जो उसकी ओर से सभी प्रश्नों का उत्तर देगा या,
  • एक प्लीडर और अन्य व्यक्ति के साथ जो सभी सवालों के जवाब देने के लिए समर्थ हो

हालाँकि, अदालत के पास प्रतिवादी को किसी भी समय व्यक्तिगत रूप से अदालत के सामने पेश होने के लिए बुलाने की शक्ति है, यदि उसके पास ऐसा करने के कारण मौजूद हैं तो।

उपस्थिति से छूट

संहिता में कुछ प्रावधान हैं, जो उन लोगों का उल्लेख करते हैं जिन्हें समन जारी करने और आवश्यक शर्तों पर अदालत में पेश होने से छूट दी गई है। य़े हैं:

  • धारा 132 में प्रावधान है कि कोई भी महिला जिसे रीति-रिवाजों और रूढ़ियों  के कारण सार्वजनिक रूप से पेश होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, उसे अदालत के सामने पेश होने के लिए नहीं कहा जाएगा। इसका मतलब यह नहीं है कि सिविल कार्यवाही में आवश्यकता पड़ने पर उसे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। यह तभी होगा जब संहिता  ऐसे किसी छूट प्रावधान का प्रावधान करता है
  • धारा 133 आगे उन विशेष लोगों की सूची देती है जिन्हें व्यक्तिगत रूप से अदालत के समक्ष पेश होने से छूट दी गई है। उनमे शामिल है :
  • भारत के राष्ट्रपति
  • उपराष्ट्रपति 
  • सदन के अध्यक्ष  
  • केंद्रीय मंत्री
  • उच्चतम नयायालय के न्यायाधीश
  • राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के राज्यपाल
  • राज्य विधानसभाओं के अध्यक्ष
  • राज्य विधान परिषद के अध्यक्ष
  • राज्यों के मंत्री
  • आदेश 5 के नियम 4 के अनुसार,कोई अन्य व्यक्ति जिस पर धारा 87B लागू हो ऐसे व्यक्ति को अदालत के समक्ष पेश होने से छूट दी जाएगी यदि:
  • वह अदालत के अधिकार क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर नहीं रहता है या
  • वह ऐसी जगह पर रहता है जो अदालत से 50 मील या 200 मील से अधिक दूर है।

समन की तामील का ढंग 

यह कानून के सबसे मौलिक और महत्वपूर्ण नियमों में से एक है जिसमें कहा गया है कि एक पार्टी को खुद का प्रतिनिधित्व (रेप्रिज़ेन्ट) करने का एक उचित मौका दिया जाना चाहिए, और यह तभी संभव है जब उसे कानूनी कार्यवाही के बारे में उचित और तर्कसंगर्त (रीज़नेबिल) नोटिस दिया गया हो, जिसमें उसके खिलाफ की गई  कानूनी कार्रवाई की जानकारी दी गई हो। इससे उसे अपना बचाव करने और अपना पक्ष रखने का अवसर भी मिलेगा।

न्याय में देरी या मामलों में लम्बित रहने का एक प्रमुख कारण समन की तामील है। प्रतिवादी या वह लोग जिन्हें समन जारी किया गया है, वे इससे बच सकते हैं या इसे अनदेखा कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कार्यवाही में देरी होती है, जिससे न्याय में देरी होती है। विधि आयोग और कानून के निर्माताओं ने समन की तामील और उनकी जारी करने के तरीकों के संबंध में कुछ संशोधन करने की आवश्यकता महसूस की। संहिता समन की तामील के कई तरीके देता है, जिनकी चर्चा नीचे विस्तार से की गई है।

व्यक्तिगत या प्रत्यक्ष तामील

समन की तामील का यह तरीका सरल है। इस मोड में, समन की एक प्रति संबंधित व्यक्ति या उसके एजेंट या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति को जारी की जाती है, और समन प्राप्त करने वाले व्यक्ति को इसे अभिस्वीकृत (इक्नॉलिज) करना चाहिए।समन तामील करने वाले अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह तामील किए गए समन के संबंध में एक पृष्ठांकन (एंडोर्समेंट) करे और सुनिश्चित करे,  जिसमें समन की तामील का समय और तरीका, समन प्राप्त करने वाले व्यक्ति का नाम और पता,और समन की सुपुर्दगी (डेलीवेरी) का गवाह हो।

आदेश के नियम 10 से 16 और नियम 18 व्यक्तिगत या प्रत्यक्ष सेवा से संबंधित हैं। इस तरीके के माध्यम से समन देते समय, निम्नलिखित सिद्धांतों को ध्यान में रखा जाना चाहिए: 

  • सेवा अधिकारी को प्रतिवादी या उसके एजेंट को समन तामील करने का प्रयास करना चाहिए।
  • यदि प्रतिवादी अपने निवास स्थान पर मौजूद नहीं है और कोई एजेंट भी नहीं है, तो उसकी ओर से उसके साथ रहने वाले परिवार के किसी भी वयस्क पुरुष या महिला सदस्य पर तामील किया जाना चाहिए।
  • यदि कोई मुकदमा किसी ऐसे व्यक्ति के व्यवसाय या कार्य से संबंधित है जो न्यायालय के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में नहीं रहता है, तो उसे उस व्यवसाय या कार्य के प्रबंधक या एजेंट को तामील किया जा सकता है।
  • अचल (इममूवएबिल) संपत्ति पर वाद के मामले में,अगर  प्रतिवादी नहीं मिलता है, तो समन किसी भी व्यक्ति या एजेंट को तामील किया जा सकता है जो ऐसी संपत्ति का प्रभारी (इन चार्ज) है।
  • यदि किसी मुकदमे में दो या दो से अधिक प्रतिवादी शामिल हैं, तो उनमें से प्रत्येक को समन जारी किया जाना चाहिए।

अदालत द्वारा समन जारी करना 

आदेश का नियम 9 न्यायालय द्वारा समन की तामील से संबंधित है। यह उल्लेख करता है कि यदि कोई प्रतिवादी अदालत के अधिकार क्षेत्र में रहता है, तो अदालत के अधिकारी द्वारा उसे समन भेजा जाना चाहिए। इसे डाक, फैक्स, संदेश, ईमेल सेवा, स्वीकृत कुरियर सेवा आदि द्वारा भी वितरित किया जा सकता है, लेकिन यदि प्रतिवादी अधिकार क्षेत्र के भीतर नहीं रहता है, तो इसे उस न्यायालय के अधिकारी द्वारा वितरित किया  किया जाना चाहिए जिसके अधिकार क्षेत्र में वह रहता है।

मामले में, समन पंजीकृत डाक पावती देय (रेजिस्टर्ड पोस्ट अकनोलेजमेंट ड्यू) द्वारा दिया जाता है, अदालत मान लेगी कि समन की वैध सेवा पूरी हो गई है, भले ही कोई पावती (रिसीट) पर्ची ना हो। यदि कोई व्यक्ति इसे स्वीकार करने से इनकार करता है, तो न्यायालय इसे एक वैध तामील मान सकता है। उच्चतम न्यायालय ने सलेम एडवोकेट बार एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2005) के मामले में उच्च न्यायालयों को यह सुनिश्चित करने के लिए उचित नियम या दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दिया कि समन के प्रावधानों को कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग किये बिना ठीक से लागू किया जाए। .

वादी द्वारा समन की तामील 

आदेश के नियम 9A के अनुसार, अदालत वादी को उसके आवेदन पर, प्रतिवादियों को समन देने की अनुमति दे सकती है। उसे समन की प्रति देनी होती है जिसे न्यायाधीश या न्यायाधीश द्वारा नियुक्त किसी भी अन्य अधिकारी द्वारा मुहरबंद और हस्ताक्षरित किया जाता है, और यह भी सुनिश्चित करता है कि प्रतिवादी समन सेवा को स्वीकार करता है। यदि प्रतिवादी सेवा को स्वीकार करने से इनकार करता है या यदि इसे व्यक्तिगत रूप से वितरित किया  नहीं जा सकता है, तो अदालत समन को फिर से जारी करेगी और प्रतिवादी से इसकी तामील करवाएगी।

प्रतिस्थापित तामील (सबसटिटूटेड सर्विस)

प्रतिस्थापित तामील का अर्थ है समन की तामील का वह तरीका जो समन की सामान्य तामील के स्थान पर अपनाया जाता है। आदेश के नियम 17, 19 और 20 के तहत प्रतिस्थापित सेवा के दो तरीके हैं। य़े हैं:

  • यदि प्रतिवादी या उसका एजेंट समन की प्राप्ति को स्वीकार करने या हस्ताक्षर करने से इनकार करता है, या यदि समन की तामील करवाने वाला अधिकारी अगर सही समझता है कि प्रतिवादी अपने निवास पर मौजूद नहीं है और उसे  उचित समय के भीतर नहीं मिल पाएगा, और इसके अलावा यदि वहाँसमन प्राप्त करने के लिए कोई एजेंट नहीं है, वह समन की प्रति दरवाजे पर या उसके घर के किसी विशिष्ट भाग पर लगा सकता है।
  • इस मामले में, सेवारत अधिकारी को समन चिपकाने के कारणों, परिस्थितियों, उस व्यक्ति का नाम और पता,और वो गवाह जिन्होंने उसे  समन चिपकाने में मदद की थी, बताते हुए एक रिपोर्ट बनानी होगी।
  • अदालत यह घोषित कर सकती है कि समन जारी किया गया है यदि वह अधिकारी की रिपोर्ट से संतुष्ट है।
  • यदि प्रतिवादी जानबूझकर सेवा से बच रहा है और अदालत के पास ऐसा मानने का कोई कारण है, तो वह अदालत और प्रतिवादी के घर में किसी विशिष्ट स्थान पर समन लगा सकता है जहां वह रहता था, व्यवसाय करता था या किसी के लिए काम करता था।

यल्लव्वा बनाम शांतावा (1997) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि समन की तामील का यह तरीका कोई सामान्य तरीका नहीं है और इसे सामान्य रूप से इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। इसका उपयोग केवल असाधारण मामलों में ही किया जाना चाहिए और इसे अंतिम विकल्प के रूप में माना जाना चाहिए।         

नियम 20 के अनुसार, यदि कोई अदालत समाचार पत्र में समन का विज्ञापन करने का आदेश देती है, तो यह एक स्थानीय समाचार पत्र में किया जाना चाहिए जहां प्रतिवादी रहता था, व्यवसाय करता था या काम करता था। यह सेवा समन देने का एक प्रभावी विकल्प है, भले ही प्रतिवादी अखबार नहीं पढ़ रहा हो (सुनील पोद्दार बनाम यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, 2008)

सेवा के इस तरीके के माध्यम से समन जारी करने से पहले, अदालत को प्रतिवादी को अदालत के सामने पेश होने के लिए उचित समय देना चाहिए। एक अन्य मामले में, जम्मू और कश्मीर राज्य बनाम हाजी वाली मोहम्मद (1972) में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि कोई समन संहिता के आदेश 5 के नियम 19 की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है, तो समन की ऐसी तामील विधि के अनुसार नहीं है।

डाक द्वारा तामील 

संहिता ने पहले प्रावधान था कि समन को डाक के माध्यम से भी तामील किया जा सकता है और यह आदेश के नियम 20 A के तहत दिया गया था, लेकिन इस प्रावधान को 1976 के संशोधन अधिनियम द्वारा निरस्त (इनवेलिड) कर दिया गया है।

विशेष मामलों में समन की तामील

नियम 21-30 विशेष मामलों में समन की तामील का तरीका प्रदान करते हैं।

  • यदि प्रतिवादी किसी अन्य राज्य में रहता है या समन जारी करने वाले न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहता है, तो न्यायालय किसी अन्य न्यायालय को समन को तामील के लिए  भेज सकता है जिसके अधिकार क्षेत्र में प्रतिवादी रहता है।
  • संहिता की धारा 29 के अनुसार, यदि किसी विदेशी समन की तामील की जानी है, तो उसे उन क्षेत्रों की अदालत में भेजा जाना चाहिए जहां संहिता लागू होती है, और वे आगे समन की तामील करेंगे जैसे कि यह समन उनके द्वारा ही जारी किया गया हो।
  • यदि समन को कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे जैसे प्रेसीडेंसी शहरों में तामील किया जाना है, तो इसे उस विशेष क्षेत्राधिकार के लघु मामले न्यायालय को भेजा जा सकता है।
  • यदि प्रतिवादी भारत में नहीं रहता है और उसका कोई एजेंट नहीं है, तो नियम 25 के अनुसार, अदालत डाक, फैक्स, ईमेल या किसी अन्य उपयुक्त माध्यम से समन भेज सकती है। ऐसे संप्रभु देश में जहां प्रतिवादी निवास करता है, समन की सेवा करने का दूसरा तरीका या तो एक राजनीतिक एजेंट या उस देश की अदालत के माध्यम से होता है, जिसके पास आदेश के नियम 26 के तहत दिए गए समन की तामील करने की शक्ति और अधिकार है।
  • यदि प्रतिवादी एक लोक अधिकारी, रेलवे अधिकारी या स्थानीय प्राधिकरण का सेवक है, तो समन उनके विभागों के प्रमुख के माध्यम से तामील किया जा सकता है।
  • यदि प्रतिवादी एक सैनिक, वायुसैनिक या नाविक है, तो समन उनके कमांडिंग ऑफिसर के माध्यम से भेजा जा सकता है।
  • यदि प्रतिवादी एक सजायाफ्ता कैदी (कनविकटेड पऋज़नर)  है, तो जेल के प्रभारी अधिकारी के माध्यम से समन भेजा जा सकता है।
  • मामले में, प्रतिवादी एक कंपनी या एक निगम है, कंपनी के सचिव, निदेशक, या प्रमुख अधिकारी को या डाक के माध्यम से उस पते पर समन भेजा जा सकता है जहां ऐसी कंपनी अपना कारोबार करती है या जहां उसका पंजीकृत कार्यालय है।
  • यदि प्रतिवादी किसी फर्म में भागीदार हैं, तो इसे किसी एक भागीदार को तामील किया जाना चाहिए, लेकिन यदि वाद शुरू होने से पहले साझेदारी भंग (खत्म) हो गई है, तो प्रत्येक भागीदार को समन की तामील की जानी चाहिए।
  • समन जारी करने वाली अदालत के पास इसे अनुरोध पत्र के साथ प्रतिस्थापित करने की भी शक्ति है, जिसमें समन के तथ्य और जानकारी होगी। यह किसी भी ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाएगा उसके पद या अधिकार को देखते हुए।

समन से इंकार और आपत्ति

ऐसे उदाहरण हैं जहां एक प्रतिवादी समन को स्वीकार करने से इनकार करता है या इसे स्वीकार करता है, लेकिन जारी किए जा रहे समन के लिए पावती पर हस्ताक्षर करने से इनकार करता है, या समन के डेलीवेरी पर आपत्ति जताता है। इससे वाद की कार्यवाही में विलंब (डीले) होता है। ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए, संहिता ने कुछ सुरक्षा उपाय प्रदान किए हैं।

समन से इंकार

समन से इंकार आदेश के नियम 9 के अनुसार, यदि प्रतिवादी समन को स्वीकार करने से इंकार करता है, तो यह समझा जाता है कि उसे समन तामील कर दिया गया है। इसी तरह, जब वह या उसका एजेंट पावती पर हस्ताक्षर करने से इनकार करता है, तो अदालत मान लेगी कि उसने समन लेने से इनकार कर दिया है और ऐसे समन को विधिवत तामील माना जाएगा। पुवाड़ा वेंकटेश्वर बनाम चिदमन वेंकट (1976) के मामले में भी इसका उल्लेख किया गया था।

समन की तामील पर आपत्ति 

भेरू लाल बनाम शांति लाल (1984) के मामले में, अदालत ने कहा कि अगर समन पर कोई आपत्ति है, तो उन्हें जल्द से जल्द उठाया जाना चाहिए। यदि उस स्तर पर ऐसा नहीं किया जाता है, तो अदालत मानती है कि प्रतिवादी ने इस अवसर को छोड़ दिया है।

निष्कर्ष

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 का आदेश 5 विशेष रूप से प्रतिवादी को समन जारी करने और तामील करने से संबंधित है। यह समन जारी करने और उनकी सेवा के तरीकों से संबंधित विभिन्न नियमों का उल्लेख करता है। इन सभी पर लेख में विस्तार से चर्चा की गई है। यह परिदृश्य भी प्रदान करता है कि क्या होगा यदि कोई व्यक्ति समन को अस्वीकार कर देता है। प्रतिवादी को समन पर आपत्तियां उठाने का अवसर भी दिया गया है, यदि कोई आपत्ति हो तो उसे जल्द से जल्द उठाया जाए वरना उसे खत्म माना जाएगा। लेकिन ऐसे कई उदाहरण हैं जहां प्रतिवादी समन से बचने या अनदेखा करने की प्रवृत्ति रखते हैं। इसके परिणामस्वरूप अदालती कार्यवाही में देरी होती है और मुकदमा लंबित रहता है। हमारे देश में लंबित मामलों की समस्या को हल करने के लिए कानून निर्माताओं और अदालतों को इस मुद्दे पर गौर करना चाहिए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

संहिता  के आदेश 5 और आदेश 16 में क्या अंतर है?

संहिता का आदेश 5 विशेष रूप से प्रतिवादियों को समन जारी करने से संबंधित है, जबकि आदेश 16 गवाहों को समन जारी करने से संबंधित है।

सिविल वाद में एजेंट या प्लीडर कौन होता है?

एक एजेंट वह व्यक्ति होता है जो या तो स्पष्ट रूप से या निहित रूप से किसी अन्य व्यक्ति की ओर से कार्य करता है जिसे प्रिंसिपल कहा जाता है। एक दीवानी मुकदमे में, उसे किसी अन्य व्यक्ति की ओर से बोलने की अनुमति दी जाती है, जिसके लिए वह एजेंट है। जबकि ‘प्लीडर’ शब्द को संहिता की धारा 2 के खंड 15 के तहत परिभाषित किया गया है। वह वह व्यक्ति है जो किसी और की ओर से अदालत में दलील देता है या पेश होता है और इसमें एक अधिवक्ता, एक वकील और उच्च न्यायालय अटर्नी शामिल हो सकता है। वह अपने क्लाइंट के लिए वकील के रूप में कार्य करता है और उसे सही निर्णय लेने की सलाह भी देता है।

आदेश के नियम 4  में सिविल वाद में प्लीडर की नियुक्ति की प्रक्रिया का प्रावधान है। यह निर्धारित करता है कि एक वकील को लिखित रूप में एक दस्तावेज द्वारा नियुक्त किया जा सकता है, जिसे वकालतनामा या वकालत पत्र के रूप में जाना जाता है। इस दस्तावेज़ पर उस पार्टी द्वारा हस्ताक्षर किए जाते हैं जिसके लिए उसे नियुक्त किया गया है या उसके मान्यता प्राप्त एजेंट द्वारा संहिता  के तहत या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ऐसा करने के लिए उसके द्वारा अधिकृत किया गया है।

संहिता का आदेश 3 एजेंटों और प्लीडर से संबंधित है। निम्नलिखित व्यक्तियों को संहिता  के तहत एजेंट माना जाता है:

  • कोई वीकती जिसके पास पावर ऑफ अटॉर्नी हो।
  • एक व्यक्ति जो पार्टियों के लिए या उनकी ओर से व्यापार करता है,
  • सरकार द्वारा विदेशी शासकों की ओर से मुकदमा चलाने या बचाव करने के लिए नियुक्त व्यक्ति,
  • सरकार की ओर से कार्य करने के लिए अधिकृत व्यक्ति।

एक प्रतिवादी अदालत के सामने कैसे पेश होता है?

अदालतों के पेश होने के निम्नलिखित तरीके हो सकते हैं:

  • वह स्वयं को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हो सकता है या,
  • अपने वकील के माध्यम से जो उसकी ओर से सभी प्रश्नों का उत्तर देगा या,
  • एक प्लीडर द्वारा किस अन्य व्यक्ति के साथ जो सभी प्रश्नों के उत्तर देगा।

यदि कोई व्यक्ति समन का पालन करने में विफल रहता है तो दंड क्या है?

संहिता की धारा 32 के तहत अदालत उस व्यक्ति पर जुर्माना लगा सकती है जिसे समन दिया गया था लेकिन वह इसका पालन करने में विफल रहा।अदालत निम्नलिखित फैसले ले सकती है:

  • ऐसे व्यक्ति के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकती है ,
  • यह उसकी संपत्ति को कुर्क (अटैच) या बेच सकता है,
  • जुर्माना लगा सकती है,
  • उसे चूक के लिए सिक्युरिटी प्रस्तुत करने का आदेश दें सकती है।

संदर्भ 

 

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