लिंग, कानून और असमानता: भारत और यू.एस.ए के बीच तुलना

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Comparison between USA and India
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यह लेख नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ओडिशा के Abhishek Kurian ने लिखा है। इस लेख में, उन्होंने भारत और यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के बीच असमानता की चर्चा और तुलना की है। इस लेख का अनुवाद Archana Chaudhary द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

भारत में एक आदमी अपने दोस्त के घर में प्रवेश करता है और सब से अच्छी तरह से हाथ या गले मिलकर उनका अभिवादन (ग्रीटिंग) करता है। जब वह घर की महिला को देखता है, तो वह अपने हाथ जोड़कर ‘नमस्ते’ कहता है जिसका शाब्दिक अर्थ है “मैं आपको नमन करता हूं”। यह एक अभिवादन है जो व्यक्ति के प्रति श्रद्धा (रेवरेंस) दर्शाता है। यह भी एक देवता या देवी के प्रति दिखाई गई विनम्रता (ह्यूमिलिटी) का प्रतीक है।

भारत की सच्ची संस्कृति (कल्चर) एक समय में ऐसी ही रही है। भारत में, महिलाओं के साथ भगवान के समान सम्मान और श्रद्धा का व्यवहार किया जाता है। हालाँकि, संस्कृति में प्रचलित (प्रीवेलेंट) यह सम्मान शायद ही दो लिंगों (सेक्सेस) के बीच समानता के रूप में सामने आता है। अन्य देशों में, कोई भी संस्कृति और समानता की तुलना करने में मदद नहीं कर सकता है, विशेष रूप से वे जो विकसित (डेवलप्ड) राष्ट्र हैं और जिन्होंने लंबे समय तक लैंगिक (जेंडर) समानता पर ध्यान केंद्रित किया है जैसे यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका। यह तुलना उपयुक्त है क्योंकि ये दोनों देश दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र (डेमोक्रेसीज) हैं।

क्या किसी देश की संस्कृति के परिणामस्वरूप लिंग के बीच असमानता हो सकती है (केन द कल्चर ऑफ ए कंट्री रिजल्ट इन डिस्पेरिटी बिटवीन द जेंडर)?

भारत, कई वर्षों से पुरुष-प्रधान (मेल डॉमिनेटेड) देश रहा है और अभी तक, महिलाएं जो पुरुषों के समान क्षेत्रों में काम करने में सक्षम थीं, उनको समान रूप से देखने में विफल रहा है। यह पैट्रीआर्कल संस्कृति के कारण है जिसका पालन हमारे देश में धर्म, पौराणिक कथाओं (माइथोलॉजी) और अन्य सामान्य प्रथाएं जैसे दहेज, सती, आदि के माध्यम से किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं की छवि (इमेज) पूरी तरह से हीन (इनफिरियर) हो गई है। ऐसी संस्कृति अभी भी समाप्त होने की प्रक्रिया में है क्योंकि भारत अभी भी एक विकासशील (डेवलपिंग) राष्ट्र है।

लेकिन अन्य देशों के बारे में क्या, जहां ऐसी संस्कृति मौजूद ही नहीं थी? लेकिन यह एक सोचने वाली बात है कि क्या यू.एस. जैसे विकसित देशों में असमानता की समस्या मौजूद है, क्योंकि किसी राष्ट्र के विकास को निर्धारित (डिटरमाइनिंग) करने के लिए उनमें लिंग की समानता एक प्रमुख कारक (फेक्टर) है।

दुर्भाग्य से, जब लैंगिक समानता की स्थिति की बात आती है तो यू.एस. भी प्रतिष्ठित (रिप्यूटेड) नहीं है। जबकि कारण अलग हो सकते हैं, यू.एस. को भी अक्सर महिलाओं की समानता की स्थिति में सुधार न करने के लिए प्रतिक्रिया (बैकलेश) का सामना करना पड़ता है। वास्तव में, भारत में एक महिला राष्ट्रपति और एक महिला प्रधान मंत्री भी रही हैं, लेकिन यूनाइटेड स्टेट्स ने अभी तक एक महिला नेता द्वारा शासित (रूल्ड) देश को नहीं देखा है। हो सकता है कि भारत और यू.एस. दोनों एक दूसरे से इस संबंध में कुछ सबक सीख सकते हैं।

भारत में दो लिंगों के बीच असमानता की स्थिति

इस लेख के उद्देश्य के लिए, हम 3 मान्यता  प्राप्त (रिकॉग्नाइज्ड) कारकों या सूचकांकों (इंडिसेज) को देखेंगे। वे हैं :

ग्लोबल जेंडर गैप

ग्लोबल जेंडर गैप को वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा मापा (मेजर्ड) जाता है। यह दोनों लिंगों के बीच समानता का एक उपाय है और पुरुषों की तुलना में महिलाओं के कुछ क्षेत्रों में प्रवेश (एक्सेस) करने में नुकसान को इंगित (इंडिकेट) करता है। 

यह आर्थिक भागीदारी और अवसरों, शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीतिक सशक्तिकरण (एंपावरमेंट) को ध्यान में रखता है। इसलिए, इसे एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में माना जा सकता है।

भारत की स्थिति

2018 की ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स रैंकिंग (2020 में प्रकाशित रिपोर्ट के लिए यहां देखें) के अनुसार, भारत 0.668 के स्कोर के साथ 153 देशों में से 112वें स्थान पर है। इसका तात्पर्य यह है कि भारत में 66.8% महिलाओं को लिंग में अंतर का सामना नहीं करना पड़ता है, जबकि भारत में महिलाओं की शेष आबादी अभी भी इस अंतर से पीड़ित है जो उनके विकास में बाधा (हैंपरिंग) बन रही है। जहां भारत की रैंकिंग में गिरावट देखी गई है, वहीं इसके स्कोर में बढ़ोतरी हुई है। (पिछला रैंक: 98, पिछला स्कोर 0.601)

प्रमुख बिंदु (की पॉइंट्स)

  • भारत राजनीतिक सशक्तिकरण में 18वें स्थान पर है जो कई अन्य देशों की तुलना में एक अच्छा संकेत है।
  • हालांकि, बाकी तीनों क्षेत्रों में भारत का स्थान औसत (एवरेज) से कम है।

यूनाइटेड स्टेट्स की स्थिति

यू.एस. 0.724 के कुल स्कोर के साथ 53वें स्थान पर है। इसने 72.4% महिला की आबादी के लिए लिंग में अंतर को बंद कर दिया है। यू.एस. ने 2006 के बाद से अपनी रैंकिंग में एक बड़ी गिरावट देखी है, जो पिछली रिपोर्ट में 23 पर था। 

प्रमुख बिंदु (की पॉइंट्स)

  • यू.एस. ने शैक्षिक प्राप्ति के मामले में काफी सुधार किया है और इसकी रैंकिंग में 30 से अधिक अंको से सुधार हुआ है, जो पहले 66 थी और अब 34 है।
  • ध्यान देने वाली एक और दिलचस्प बात यह है कि महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवित (सर्वाइवल) रहने के मामले में, इस साल की रैंकिंग में बहुत बड़ी गिरावट आई है, जो रैंक 1 से गिरकर 70वें स्थान पर आ गई है।
  • अन्य 2 श्रेणियों (केटेगरी) के साथ यू.एस. अपनी रैंकिंग में नीचे गिर गया है। 

किस क्षेत्र में असमानता सबसे अधिक प्रचलित है?

यह उत्तर दोनों देशों के लिए अलग है।

भारत

महिलाओं के लिए आर्थिक भागीदारी और अवसर काफी कम हैं। इसकी प्रमुख विफलताएं (फेलियर) मजदूरी (वेज) समानता के संबंध में रही हैं और इसे औसत से काफी नीचे रखा गया है। एक अन्य ध्यान देने योग्य बात लेजिस्लेटर्स, ऑफिशियल्स और मैनेजर्स का प्रतिशत (परसेंटेज) था जिसमें एक बड़ा अंतर है। इस क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिशत केवल 13.7% है जबकि पुरुष शेष 86.3% को कवर करते हैं (यहां देखें)।

भारत ने, हालांकि राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में खराब प्रदर्शन (फेयर्ड) नहीं किया है, लेकिन आंकड़े (स्टेटिस्टिक्स) बताते हैं कि संसद (पार्लियामेंट) में महिलाओं के प्रतिशत और मंत्री पद संभालने (होल्डिंग) में बहुत बड़ा अंतर है। संसद में केवल 14.4% सीटों पर महिलाओं का कब्जा है और केवल 23% मंत्री पदों पर महिलाओं का कब्जा है।

हालांकि जैसा कि पहले उल्लेख (मेंशन्ड) किया गया है, भारत इस श्रेणी में उच्च स्थान पर है और ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले 50 वर्षों में, भारत पर लगभग 20 वर्षों तक एक महिला द्वारा शासन किया गया था, जबकि अधिकांश (मोस्ट) देशों में एक भी महिला ने अपने देश पर शासन नहीं किया है।

यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका

रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि लैंगिक समानता की दिशा में यूनाइटेड स्टेट्स की प्रगति धीमी हो गई है और इसकी रैंकिंग में संपूर्ण रूप से कमी भी दिखाई गई है।

राजनीतिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में दोनों लिंगों के बीच अधिकतम असमानता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यह वह क्षेत्र भी है जहां इसने सबसे खराब प्रदर्शन (परफॉर्म) किया है। यू.एस. संसद में महिलाओं के कब्जे वाली सीटों का कुल प्रतिशत लगभग 24% था और महिलाओं के मंत्री पदों का कुल प्रतिशत लगभग 22% था। दोनों देशों के लिए ये बहुत कम प्रतिशत हैं जहां पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कुल संख्या अधिक है।

इसके साथ ही, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले 50 वर्षों में देश मे एक पुरुष नेता का शासन था। जबकि अन्य सभी क्षेत्रों में यू.एस. ने औसत से ऊपर प्रदर्शन किया है, चिंताजनक बात यह है कि इसका सुधार या तो स्थिर (स्टैग्नेंट) रहा है या इसके स्कोर में गिरावट आई है। 

दोनों देशों में महिलाओं को असमानता से बचाने वाले कौन से कानून हैं?

इस खंड में, केवल उस विशेष देश के कानूनों पर चर्चा की जाएगी।

भारत 

संवैधानिक प्रावधान (कांस्टीट्यूशनल प्रोविजंस)

आर्टिकल 14 

यह आर्टिकल नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करता है। इसका तात्पर्य यह है कि उनके साथ कानून के समक्ष समान व्यवहार किया जाएगा और उन्हें कानून के तहत समान सुरक्षा भी प्राप्त होगी। लैंगिक समानता के संदर्भ में, यह महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी क्षेत्रों में महिलाएं किसी भी अनुचित पूर्वाग्रह (अनफेयर बायस) के अधीन नहीं हैं और किसी भी मनमाने निर्णय से पीड़ित नहीं हैं। इसमें यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि निर्णय मनमाना नहीं है, अस्वीकृति या भेदभाव (डिस्क्रिमिनेशन) के लिए एक वैध कारण दिया जाना चाहिए।

इसके साथ ही, इस आर्टिकल का उपयोग, विशाखा बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान में विशाखा दिशानिर्देशों (गाइडलाइंस) के माध्यम से सम्मान के साथ काम करने और सेक्शुअल हैरेसमेंट से सुरक्षित रहने के अधिकार प्रदान करके कार्यस्थल (वर्कप्लेसिस) पर जाने वाली महिलाओं के लिए लैंगिक समानता प्रदान करने के लिए भी किया गया है।

आर्टिकल 15

यह आर्टिकल लिंग, धर्म, जाति, जन्म स्थान के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव को प्रतिबंधित (प्रोहिबिट) करता है और इसलिए इसे लैंगिक असमानता के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण हिस्सा कहा जा सकता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह आर्टिकल, राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान (प्रोविजंस) बनाने की भी अनुमति देता है। 

आर्टिकल 16

यह आर्टिकल सभी नागरिकों को रोजगार में समान अवसर प्रदान करता है और कहता है कि किसी को भी लिंग, जाति, जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव का सामना नही करना पड़ेगा।

आर्टिकल 38 

यह आर्टिकल राज्य के लिए एक डायरेक्टिव प्रिंसिपल है और यह, राज्य को लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने का निर्देश देता है। इसमें आगे कहा गया है कि सरकार को लोगों के लिए आय, स्थिति और अवसरों में असमानताओं को कम करने का प्रयास करना चाहिए।

आर्टिकल 39 

यह आर्टिकल मूल रूप से कहता है कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान रूप से सुनिश्चित करे- काम से संबंधित गतिविधियों में शामिल लोगों के लिए पर्याप्त आजीविका (लाइवलीहुड), समान वेतन और स्वास्थ्य का अधिकार।

बिल्स और एक्ट्स

भारत सरकार द्वारा कुछ महत्वपूर्ण अधिनियम (इनैक्टमेंट्स) हैं जिन पर इस संदर्भ में चर्चा की जानी चाहिए।

इक्वल रेम्युनरेशन एक्ट,1976

इस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार, जब नौकरी के लिए रेम्युनरेशन की बात आती है तो एंप्लॉयर कोई अनुचित भेदभाव नहीं कर सकता है और समान प्रकार के कार्य के लिए भुगतान (पेमेंट) समान प्रकृति का होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, किसी नौकरी के असाइनमेंट, पदोन्नति या महिलाओं के ट्रांसफर में भी कोई अंतर नहीं होना चाहिए, जब तक कि काम की प्रकृति महिलाओं के लिए अनुपयुक्त (अनस्यूटेबल) न हो।

वूमेंस रिजर्वेशन बिल

हालांकि यह लोकसभा में एक लंबित (पेंडिंग) बिल है (यहां देखें), इसे राज्यसभा में पास कर दिया गया है और निश्चित रूप से महिलाओं के लिए फायदेमंद होगा क्योंकि यह उन्हें संसद में पर्याप्त रूप से उनका प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंट) करने में सक्षम बनाएगा। यह बिल संसद के लोअर हाउस में महिलाओं के लिए 33% सीटों को आरक्षित (रिज़र्व) करने का प्रयास करता है जिसका उपयोग वे बारी-बारी से करेंगी।

प्रासंगिक मामले (रेलीवेंट केसेस)

इंदिरा साहनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 1992

यह मामला रेलीवेंट है क्योंकि यह सभी नागरिकों को न्याय और समानता प्रदान करने की आवश्यकता पर केंद्रित है। इसमें उल्लेख है कि किसी भी अनडिजायरेबल प्रेक्टिस को समाप्त करने के प्रावधान होने चाहिए क्योंकि उससे  धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए, राज्य महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए प्रावधान बना सकता है।

दत्तात्रेय मोतीराम मोरे बनाम स्टेट ऑफ़ बॉम्बे, 1952

इस मामले ने नगर पालिकाओं में महिलाओं के रोजगार के लिए सीटों के आरक्षण के प्रावधान का बचाव किया। इसमें कहा गया है कि यह महिलाओं के अनुकूल (फेवरेबल) भेदभाव होगा और यह संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन (ऑफेंड) नहीं करता है, इसके बजाय ऐसा प्रावधान आर्टिकल 15(3) के अनुसार योग्य होगा।

यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका

स्टेट्यूट्स और प्रावधान

यूनाइटेड स्टेट्स के संविधान में 19वां अमेंडमेंट

1920 में इस संशोधन (अमेंडमेंट) के द्वारा, महिलाओं को स्थायी (परमानेंट) मतदान का अधिकार दिया गया, जिसे महिला मताधिकार (सफरेज) के रूप में भी जाना जाता है। इस संशोधन के माध्यम से राज्यों को, किसी भी व्यक्ति को उनके लिंग के आधार पर वोट देने के अधिकार से वंचित (प्रोहिबिट) करने से मना किया गया था। इसे लोकतंत्र में महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रावधानों में से एक माना जा सकता है क्योंकि जब सरकार तय करने की बात आती है तो यह महिलाओं को पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा देता है ।

इक्वल पे एक्ट

इस एक्ट के माध्यम से, एंप्लॉयर के लिए एक ही प्रकार की नौकरी या किसी अन्य समान नौकरी के लिए एक महिला को कम वेतन देना अवैध बना दिया गया था। यह निर्णय लिया गया कि रेम्युनेरेशन समान नहीं तो, एक जैसा होना चाहिए। यह एक्ट, पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन अंतर को कम करने के लिए पास किया गया था।

सिविल राइट्स एक्ट

यह एक्ट 1964 में पेश (इंट्रोड्यूस्ड) किया गया था। यह सभी क्षेत्रों में विशेष रूप से मतदान शिक्षा और जाति या लिंग के आधार पर सार्वजनिक (पब्लिक) सुविधाओं के उपयोग में किसी भी प्रकार के भेदभाव को प्रतिबंधित (प्रोहिबिट) करता है। इस एक्ट ने एक इक्वल एंप्लॉयमेंट ऑपर्च्युनिटी कमीशन का भी प्रावधान किया जो इन प्रावधानों को लागू करने में सहायता करेगी।

प्रासंगिक मामले (रेलीवेंट केसेस)

कॉर्निंग ग्लास वर्क्स बनाम ब्रेनन 

कॉर्निंग ग्लासवर्क्स कंपनी की महिला कर्मचारियों ने वेतन भुगतान के दौरान लिंग के आधार पर भेदभाव की शिकायत की। कंपनी द्वारा यह तर्क दिया गया कि वेतन में अंतर नाइट शिफ्ट के कारण था जिसमें पुरुष शामिल थे, जबकि कंपनी की महिलाओं को रात के समय काम करने से रोक दिया गया था। कंपनी के अनुसार, इससे काम करने की स्थिति में अंतर आया और इसलिए वेतन में भी उचित (रीजनेबल) वृद्धि हुई।

यह यू.एस. सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित (हेल्ड) किया गया था कि एंप्लॉयर महिलाओं को कम मजदूरी का भुगतान करने के लिए कोई अस्पष्ट (वेग) कारण नहीं दे सकते हैं और नाइट शिफ्ट की शर्तें काफी हद तक रेगुलर शिफ्ट के समान हैं।

इस मामले में समान काम के लिए समान वेतन और मजदूरी के भुगतान के संबंध में लिंगों के बीच भेदभाव को खत्म करने के प्रयास पर जोर दिया गया।

ऐसे कौन से कानून या नीतियां हैं जिन्हें यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका, भारत से अपना सकता है और उसे अपनाना चाहिए?

नेशनल पॉलिसी फॉर द एंपावरमेंट ऑफ वूमेन (2001)

यह 2001 में अपनाई गई महिला सशक्तिकरण योजना (स्कीम) थी (यहां देखें)। यह नीति (पॉलिसी) समानता को बढ़ावा देने और महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करने के लिए बनाई गई थी। इसका उद्देश्य एक ऐसा वातावरण बनाना था जो महिलाओं के विकास को बढ़ावा दे। नीति के प्रावधानों का उद्देश्य राष्ट्र के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक (इकोनॉमिक) जीवन में महिलाओं की भागीदारी और निर्णय लेने के लिए समान अवसर और समान पहुंच प्रदान करना था। इसमे कुछ प्रासंगिक नुस्खों (प्रिस्क्रिप्शन) में शामिल हैं:

  • न्यायिक प्रणाली (सिस्टम) महिलाओं के खिलाफ अपराधों के प्रति अधिक संवेदनशील (सेंसिटिव) होगी और पैट्रियार्की  में महिला भेदभाव से जुड़ी समस्याओं को रोकने के लिए प्रभावी प्रावधान बनाने का प्रयास करेगी।
  • यह भी निर्णय लिया गया कि गरीबी रेखा से नीचे की अधिकांश आबादी महिलाएं थीं और इसलिए उनकी आर्थिक स्थिति के उत्थान (अपलिफ्ट) के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का इंप्लीमेंटेशन करना होगा।
  • इस नीति में महिलाओं और लड़कियों के लिए शिक्षा की समान पहुंच प्रदान करना, एक लिंग-संवेदनशील समाज का निर्माण करना भी शामिल था।
  • यह नीति महिलाओं की पोषण (न्यूट्रीशन) संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी निर्धारित (प्रेस्क्राइब) की गई है क्योंकि वे इनफैंसी, एडोलेसेंस और एडल्टहूड के दौरान कुपोषण (मेलन्युट्रिशन) की शिकार होती हैं।

सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एंप्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वूमेन (स्टेप)

  • यह महिलाओं के लिए 1986 में शुरू की गई एक महत्वपूर्ण योजना थी (यहां देखें)।
  • इसने 16 वर्ष और उससे अधिक आयु की महिलाओं की रोजगार की स्थिति में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित किया।
  • इसमें ऐसे कार्यक्रम शामिल थे जो महिलाओं के रोजगार और उद्यमिता (एंटरप्रेन्योरशिप) कौशल (स्किल्स) में सुधार करेंगे।
  • भोजन, आतिथ्य (हॉस्पिटैलिटी), आईटी, कृषि, बागवानी (हार्टिकल्चर) जैसे कई अलग-अलग उद्योगों में सुधार लाने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम के कौशल और महिलाओं को रोजगार के विभिन्न क्षेत्रों के लिए अपेक्षित (रिक्विसाइट) सॉफ्ट कौशल के साथ सक्षम करना भी शामिल है।

महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण

भारत का संविधान सुरक्षात्मक (प्रोटेक्टिव) भेदभाव की अनुमति देता है और राजनीतिक व्यवस्था में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित (रिजर्विंग) करके और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए कोटा होने के कारण, इसने इन दोनों क्षेत्रों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की आवश्यकता को पूरा किया, जो भारतीय संविधान के आर्टिकल 15(3) में पाया जाता है।

भारत में महिलाओं के लिए अधिकांश कानूनों की चर्चा हमने यू.एस. में उपयुक्त विकल्प रखने से पहले की थी, लेकिन सीटों के लिए आरक्षण अभी तक नहीं किया गया है और इस तरह के बदलाव को लागू करके इन क्षेत्रों में अंतर को निश्चित रूप से संबोधित (एड्रेस) किया जा सकता है।

जैसे कि पहले चर्चा की गई है, महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में अंतर को हटाने में यू.एस. को लगातार खराब स्थान दिया गया है। एक राष्ट्र के लिए, जो कई अलग-अलग क्षेत्रों (स्फीयर्स) में फल-फूल (थ्राइविंग) रहा है और कई देशों के लिए एक रोल मॉडल के रूप में भी कार्य करता है, लेकिन इस राष्ट्र  में महिलाओं को प्रदान की गई सीटों की संख्या निराशाजनक (डिसापॉइंटिंग) है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

भारत और यू.एस. दोनों के पास लिंग असमानता से जुड़ी समस्याओं का उचित हिस्सा है और हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि हालांकि वे इसे सुधारने के लिए कदम उठा रहे हैं, फिर भी दोनों देशों के लिए इस संबंध में सुधार की बहुत बड़ी गुंजाइश (स्कोप) है। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, यू.एस. निश्चित रूप से नीतियों से लाभ (बेनिफिट) ले सकता है क्योंकि यह महिलाओं की जरूरतों को बढ़ावा देने के लिए विशेष रूप से समर्पित (डेडीकेटेड) टीमों और आयोगों का निर्माण करेगा। इसके अलावा, अन्य कानून प्रवर्तन (एंफोर्समेंट) बॉडीज भी महिलाओं से संबंधित मुद्दों के प्रति संवेदनशील हो जाएंगे और उनकी स्थितियों में सुधार के उपाय करेंगे।

स्टेप जैसे कार्यक्रम महिलाओं के लिए रोजगार की संभावना बढ़ाने में मदद करेंगे और आरक्षण का उपयोग, रोजगार में अंतर को हटाने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए एक शुरुआत के रूप में भी किया जा सकता है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

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