आईपीसी के तहत कल्पेबल होमीसाइड (धारा 299) 

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2486
Indian penal code
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यह लेख Yashovardhan Agarwal द्वारा लिखा गया है, जो वर्तमान में हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से बी.ए.एलएलबी (ऑनर्स) कर रहे हैं। यह एक विस्तृत लेख है जो कल्पेबल होमीसाइड के बारे में बात करता है और संबंधित केस कानूनों की मदद से इससे संबंधित कई बारीकियों के बारे में विस्तार से चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar ने किया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

होमिसाइड एक शब्द है और इसका ओरिजिन लैटिन शब्द ‘होमो’ से हुआ है जिसका अर्थ है मानव और ‘कैडेरे’ जिसका अर्थ है हत्या। हत्या का कार्य एक ऐसा कार्य है जो शुरू से ही मानव जीवन का हिस्सा रहा है। पहले इंसान भोजन के लिए या प्रभुत्व (डॉमिनांस) बनाने के लिए एक-दूसरे को मारते थे, राजा प्रदेशों को जीतने के लिए हत्या करते थे और अब लोग एक-दूसरे को ईर्ष्या, लोभ आदि से मारते हैं। 

मानव हत्या सबसे गंभीर कार्यों में से एक है जो एक व्यक्ति कर सकता है क्योंकि यह एक इंसान पर शारीरिक चोट का हाइएस्ट ऑर्डर है, इसलिए होमीसाइड के संबंध में रेगुलेशंस वास्तव में गंभीर हैं, उदाहरण के लिए, कल्प्रिट्स को आमतौर पर लाइफ इंप्रीजनमेंट या डेथ पेनाल्टी की सजा दी जाती है। क्योंकि ये ज्यूडिशियरी द्वारा दी जाने वाली सबसे कठोर सजा हैं।

भारत में होमीसाइड को दो रूपों में डिवाइड किया गया है – कल्पेबल होमीसाइड (इंडियन पीनल कोड की धारा 299) और कल्पेबल होमीसाइड जिससे मर्डर का अपराध नई बनता है (इंडियन पीनल कोड की धारा 300)। इन दोनों में बहुत कम अंतर है लेकिन यह अंतर लीगल सिस्टम के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होते हैं क्योंकि फेअर जजमेंट देना इन मतभेदों पर निर्भर है।

इस लेख में, हम तीसरे प्रकार के अनलॉफुल होमीसाइड पर चर्चा करेंगे, ‘कल्पेबल होमीसाइड’। कल्पेबल होमीसाइड क्या है, इसके इंग्रेडिएंट्स क्या हैं, कल्पेबल होमीसाइड और मर्डर के बीच अंतर, इसके बारे में सजा और हमारे कंटेंशंस को साबित करने के लिए कुछ लैंडमार्क केसेस?

वैध या गैरकानूनी होमीसाइड (लॉफ़ुल और अनलॉफुल होमीसाइड)

होमीसाइड के केस में कल्प्रीट हमेशा कल्पेबल नहीं हो सकता। यह लॉफुल होमीसाइड की धारणा को प्राप्त करता है जहां आरोपी के पास अपराध करने का एक वैलिड कारण था। इन मामलों में, व्यक्ति पर कानून द्वारा मुकदमा चलाने की प्रवृत्ति नहीं होगी और उसे आरोपों से छूट भी दी जा सकती है।

इनमें सेल्फ डिफेंस में या मिस्टेक ऑफ़ फैक्ट से हुई मृत्यु या बोनाफाइड एक्जीक्यूशन ऑफ़ लॉ आदि शामिल हो सकता है। इसलिए होमीसाइड लॉफुल और अनलॉफुल भी हो सकती है। लॉफुल होमीसाइड में जस्टिफाइबल और एस्क्यूजेबल होमीसाइड शामिल हो सकती है। अनलॉफुल होमीसाइड में रेश और नेगलिजेंट से मृत्यु (धारा 304-A), सुसाइड (धारा 309) या कल्पेबल होमीसाइड शामिल हो सकती है।

कल्पेबल होमीसाइड

जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है कि कल्पेबल होमीसाइड एक प्रकार का अनलॉफुल होमीसाइड है। कल्पेबल होमीसाइड से संबंधित कानून इंडियन पीनल कोड, 1862 (आई.पी.सी) में दिया गया हैं। जिसके अनुसार कल्पेबल होमीसाइड दो प्रकार की होती है-

कल्पेबल होमीसाइड मर्डर की श्रेणी में नहीं आता है (धारा 299 आई.पी.सी)

इसे केवल कल्पेबल होमीसाइड के रूप में संदर्भित किया जा सकता है, यह इंडियन पीनल कोड, 1862 की धारा 299 के दायरे में आता है जिसमें कहा गया है कि:

किसी व्यक्ति के मृत्यु का कारण बनने या ऐसी शारीरिक चोट पहुँचाने के इरादे से किया गया कार्य जिससे मृत्यु होने की चांसेज हो या यह पता हो कि वह अपने कार्य से मृत्यु का कारण बन सकता है, वह कल्पेबल होमीसाइड का अपराध करेगा।

शर्तें (कंडीशंस)

डेफिनिशन को विभाजित करने के बाद, हमें 3 कंडीशंस मिलती हैं जिन्हें आई.पी.सी की धारा 299 को आकर्षित करने के लिए पूरा करना होता है ये हैं-

  1. मौत का कारण बनने का इरादा।
  2. ऐसी शारीरिक चोट पहुंचाने का इरादा जिससे मृत्यु होने की संभावना हो।
  3. जब यह पता हो कि वह इस तरह के कार्य से मृत्यु का कारण बन सकता है।

रेखांकन (इलस्ट्रेशन)

  • A यह नहीं जानता कि D के दिमाग में एक ट्यूमर है, वह D को उसके मृत्यु का कारण बनने के इरादे से या इस ज्ञान के साथ कि ऐसे कार्य से मृत्यु होने की संभावना है, उसे क्रिकेट के बल्ले से सिर पर जोर से मारता है।
  • ट्यूमर के फटने से D की मृत्यु हो जाती है।
  • A कल्पेबल होमीसाइड के लिए लाएबल है जो हत्या की श्रेणी में नहीं आता।

निर्णय विधि (केस लॉ)

यह नारा सिंह चालान बनाम स्टेट ऑफ उड़ीसा  (1997) के मामले में आयोजित किया गया था कि आईपीसी के धारा 299 जीनस है और आई.पी.सी का धारा 300 स्पीसीज है। इसलिए, कल्पेबल होमीसाइड के संबंध में कोई सेपरेट धारा नहीं है, यह मर्डर का अपराध नहीं है, यह आई.पी.सी का धारा 300 का हिस्सा है जो मर्डर को परिभाषित करता है।

यहां, कोर्ट ने देखा कि:

“उचित सजा तय करने के लिए जो वर्तमान अपराध के अनुपात (प्रोपोर्शनेट) में है, आई.पी.सी ने कल्पेबल होमीसाइड को तीन डिग्री में विभाजित किया है। पहला सबसे गंभीर रूप है जो कि मर्डर है जिसे आई.पी.सी के धारा 300 के तहत परिभाषित किया गया है, दूसरा दूसरी डिग्री का कल्पेबल होमीसाइड है जो आई.पी.सी के धारा 304 भाग 1 के तहत दंडनीय है और तीसरा कल्पेबल होमीसाइड की सबसे कम डिग्री है जो आई.पी.सी के धारा 304 भाग 2 के तहत दंडनीय है । ”

कल्पेबल होमीसाइड मर्डर के बराबर

इसे केवल मर्डर के रूप में संदर्भित किया जा सकता है, यह आई.पी.सी की धारा 300 के दायरे में आता है जिसमें कहा गया है कि:

कल्पेबल होमीसाइड यह मर्डर है, यदि कार्य मृत्यु का कारण बनने के इरादे से किया गया है या यदि यह ऐसी शारीरिक चोट का कारण बनाने के इरादे से किया गया है जिससे व्यक्ति की मृत्यु होने की संभावना है या यदि दी गई शारीरिक चोट पर्याप्त है मृत्यु का कारण बनने के लिए प्रकृति का सामान्य क्रम या यदि इसमें ज्ञान शामिल है कि किया गया कार्य इतना हानिकारक है कि सभी संभावना में यह मृत्यु या ऐसी शारीरिक चोट का कारण बन सकता है जिससे मृत्यु होने की संभावना है और बिना किसी बहाने के ऐसा कार्य करता है।

शर्तें (कंडीशंस)

परिभाषा को विभाजित करने के बाद, हमें 4 कंडीशंस मिलती हैं जिन्हें आई.पी.सी की धारा 300 को आकर्षित करने के लिए पूरा करना होता है, ये हैं-

  1. मौत का कारण बनने का इरादा।
  2. इस तरह की शारीरिक चोट पहुंचाने का इरादा, जैसा कि अपराधी जानता है कि उस व्यक्ति की मृत्यु होने की संभावना है जिसे नुकसान हुआ है।
  3. किसी भी व्यक्ति को शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादे से और शारीरिक चोट लगने का इरादा ऑर्डिनरी कोर्स ऑफ़ नेचर में मौत का कारण बनने के लिए पर्याप्त है।
  4. कार्य करने वाला व्यक्ति जानता है कि यह इतना ज्यादा खतरनाक है कि सभी संभावनाओं में, मृत्यु या ऐसी शारीरिक चोट का कारण बनता है जिससे मृत्यु होने की संभावना है, और मृत्यु या ऐसी चोट के जोखिम को उठाने के लिए बिना किसी बहाने के ऐसा कार्य करता है। 

रेखांकन (इलस्ट्रेशन)

  • X जानता है कि Z के दिमाग में एक ट्यूमर है और वह मौत का कारण बनने के इरादे से उसे बार-बार अपने बल्ले से सिर पर मारता है, और
  • Z बाद में मर जाता है।
  • X मर्डर के लिए लाएबल है।

इंडियन पीनल कोड 1862 कि धारा  300 के अपवाद (एक्सेप्शन)

कल्पेबल होमीसाइड तब मर्डर की कैटेगरी में आता है जब कार्य मृत्यु का कारण बनने के इरादे से किया जाता है लेकिन नीचे बताए गए मामलों में यह प्रिंसिपल लागू नहीं होता है। नीचे दिए गए कार्य कल्पेबल होमीसाइड की श्रेणी में आ सकते हैं जो मर्डर की श्रेणी में नहीं आते है। एक्सेप्शन 1-5 (D) और (F) में आई.पी.सी की धारा 300 के उदाहरण उन स्थितियों को परिभाषित करते हैं जब कल्पेबल होमीसाइड मर्डर की श्रेणी में नहीं आता है, ये इस प्रकार हैं-

  • यदि यह किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो सेल्फ कंट्रोल से बाहर जाता है और गंभीर और अचानक उत्तेजना (प्रोवोकेशन) के कारण किसी की मृत्यु का कारण बनता है, तो यह हत्या के बराबर नहीं है।
  • जब अपराधी किसी की मृत्यु का कारण बनता है, जबकि व्यक्ति और संपत्ति की निजी रक्षा के अपने अधिकार का गुड फेथ में प्रयोग करता है, तो यह मर्डर के लिए कल्पेबल होमीसाइड नहीं है।
  • यदि कोई पब्लिक सर्वेंट अपने कर्तव्यों (ड्यूटीज) का पालन करते हुए और गुड फेथ के साथ किसी की मृत्यु का कारण बनता है, तो यह कल्पेबल होमीसाइड मर्डर नहीं है और वह मानता है कि उसके कार्य लॉफुल थे।
  • यदि कोई व्यक्ति किसी की मृत्यु का कारण बनता है, तो यह कल्पेबल होमीसाइड मर्डर नहीं है, यह अचानक झगड़े पर पैशन में कि गई अचानक लड़ाई में किया गया कार्य है।
  • यह कल्पेबल होमीसाइड नहीं है, जब कोई 18 वर्ष से ज्यादा उम्र का व्यक्ति अपनी सहमति से मृत्यु का शिकार होता है।

इसेंशियल इंग्रेडिएंट्स

कल्पेबल होमीसाइड मर्डर के बराबर नहीं है

आई.पी.सी की धारा 299 के तहत दी गई डेफिनिशन के अनुसार, व्यक्ति कल्पेबल होमीसाइड के लिए लाएबल हयह साबित करने के लिए प्रमुख रूप से 3 आवश्यक इंग्रेडिएंट्स हैं कि, जो कि मर्डर नहीं है। य़े हैं-

  1. मौत का कारण बनने का इरादा।
  2. ऐसी शारीरिक चोट पहुंचाने इरादा जिससे मृत्यु होने की संभावना हो।
  3. ऐसा कार्य जब यह पता हो कि वह इस तरह के कार्य से मृत्यु का कारण बन सकता है।

कल्पेबल होमीसाइड मर्डर के बराबर है

आई.पी.सी की धारा 300 के तहत दी गई डेफिनिशन के अनुसार, यह साबित करने के लिए कि व्यक्ति कल्पेबल होमीसाइड से मर्डर के लिए के लिए लाएबल है इसलिए प्रमुख रूप से 4 इसेंशियल इंग्रेडिएंट्स हैं। य़े हैं-

  1. मौत का कारण बनने का इरादा।
  2. इस तरह की शारीरिक चोट पहुंचाने का इरादा, जैसा कि अपराधी जानता है कि उस व्यक्ति की मृत्यु होने की संभावना है जिसे नुकसान हुआ है।
  3. किसी भी व्यक्ति को शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादे से और शारीरिक चोट लगने का इरादा ऑर्डिनरी कोर्स ऑफ़ नेचर में मौत का कारण बनने के लिए पर्याप्त है।
  4. कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता है कि वह कार्य इतना ज्यादा खतरनाक है, कि सभी संभावनाओं में यह मृत्यु या ऐसी शारीरिक चोट का कारण बन सकता है जिससे मृत्यु होने की संभावना है, और वह मृत्यु या ऐसी चोट के जोखिम को उठाने के लिए बिना किसी बहाने के ऐसा कार्य करता है। 

जिस व्यक्ति की मृत्यु का इरादा था, उसके अलावा किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु कारित करके कल्पेबल होमीसाइड (कल्पेबल होमीसाइड बाय कॉजिंग द डेथ ऑफ़ ए पर्सन अदर दैन ए पर्सन हूज डेथ वाज इंटेंडेड)

आई.पी.सी की धारा 301 में ‘जिस व्यक्ति की मौत का इरादा था, उसके अलावा किसी अन्य व्यक्ति की मौत के कारण कल्पेबल होमीसाइड’ की धारणा (नोशन) दी गई है, जिसमें कहा गया है कि:

एक व्यक्ति कल्पेबल होमीसाइड करता है जब वह दूसरे व्यक्ति को मारने की कोशिश करते हुए किसी तीसरे व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है। यहां उस व्यक्ति के इरादे पर विचार नहीं किया जाता है जिसने किसी तीसरे व्यक्ति को मार डाला या गंभीर रूप से चोट पहुंचाई, जिसे वह मारना या चोट पहुंचाना नहीं चाहता था।

रेखांकन (इलस्ट्रेशन)

  • आइए मान लें, मिस्टर A था जो मिस्टर B से नाराज था क्योंकि उसने A का बिजनेस टूक ओवर कर लिया था।
  • वह मिस्टर B को मारने की योजना बनता है और उसके लिए वह एक बंदूक खरीद खरीदने की योजना बनाता है।
  • वह मिस्टर B को सड़क पर देखता है। वह अपनी बंदूक निकालता है और मिस्टर B को गोली मार देता है।
  • गलती से गोली एक पोल की वजह से मुड़ जाती है और अंत में मिस्टर C को मार देती है।
  • अब कानून के अनुसार, मिस्टर A ने कल्पेबल होमीसाइड किया है।

इसे प्रिंसिपल ऑफ़ ट्रासफर्ड इंटेंट ऑर ट्रांसफर्ड नॉलेज ऑर डॉक्ट्रिन ऑफ़ ट्रांसफर ऑफ़ मलिस के रूप में भी माना जाता है।

आईपीसी की धारा 299 और धारा 300 के नजरिए से (थ्रू द पर्सपेक्टिव ऑफ़ धारा 299 एंड धारा 300 ऑफ़ आई.पी.सी)

कानून उन मामलों के बीच कोई अंतर नहीं करता जहां व्यक्ति की मृत्यु हुई, चाहे उसकी मृत्यु जानबूझकर हुई हो या अनजाने में हुई हो। आई.पी.सी की धारा 299 और धारा 300 के अनुसार, कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि किसी की चोट या मृत्यु या कार्य के परिणामों को जानने का इरादा केवल किसी विशेष व्यक्ति के संबंध में है। इसलिए, एक व्यक्ति जिसने जानबूझकर किसी को गोली मार दी है, लेकिन गलती से गोली ने अपनी दिशा बदल दी है, जिससे दूसरे व्यक्ति की मौत हो गई, गोली चलाने वाला व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की मौत के लिए उतना ही लाएबल है जितना कि वह उस व्यक्ति के लिए होता जिसे वह गोली मारने का इरादा रखता था।

निर्णय विधि (केस लॉ)

यह कोई नया कानून नहीं है, यह ब्रिटिश काल का है। आर. वी. लैटिमर (1886) के मामले में एक व्यक्ति लड़ाई में शामिल हो गया और लड़ाई के दौरान, उस आदमी को पीटने के लिए उसने अपनी बेल्ट निकाली और बेल्ट से मारा, लेकिन उसने पलट कर एक महिला को टक्कर मार दी, वह गंभीर रूप से घायल हो गई। यहां कोर्ट ने आयोजित किया,

इस फैक्ट की अनदेखी करते हुए कि महिला को नुकसान पहुंचाने का उसका कोई इरादा नहीं था, डिफेंडेंट को महिला को लगी चोटों के लिए लाएबल ठहराया जाना चाहिए। मेन्स रीआ को उस पुरुष से जिसे वह अपनी बेल्ट से मारने जा रहा था उससे हटकर महिला के ऊपर स्थानांतरित कर दिया गया है।

लेजिस्लेशन का यह भाग इतना कन्फ्यूज करने वाला है कि कुछ कोर्टें भूल जाती हैं कि इस प्रकार का कानून भी मौजूद है, यह राजबीर सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूपी के मामले से स्पष्ट है।

यहां सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान मामले में आई.पी.सी की धारा 301 पर विचार नहीं करने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट को फटकार (थ्रश) लगाई।

इस मामले में एक अन्य व्यक्ति पर चलाई गई गोली से एक लड़की की मौत हो गई। हाई कोर्ट ने अपने डिसीजन में कहा कि इसमें गलती हुई थी और आरोपी का लड़की को मारने का कोई इरादा नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में आरोपी के इरादे को नजरअंदाज किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी माना कि इस कार्य को दुर्घटना बताने के पीछे इलाहाबाद हाई कोर्ट के रीजन को कायम नहीं रखा जाना चाहिए क्योंकि उनका रीजन गलत था। अंत में उन्हें अपने कार्यों के लिए लाएबल ठहराया गया।

सजा (पनिशमेंट)

जैसा कि हम जानते हैं कि आई.पी.सी 1862 के अनुसार दो प्रकार की कल्पेबल होमीसाइड है। कल्पेबल होमीसाइड (धारा 299 आई.पी.सी) और कल्पेबल होमीसाइड नॉट अमांउटिंग टू मर्डर (धारा 300 आई.पी.सी)। इसलिए आई.पी.सी में दिए गए दोनों अपराधों के लिए सजा के संबंध में दो अलग-अलग प्रोविजन हैं।

आई.पी.सी धारा 304

आई.पी.सी की धारा 304 कल्पेबल होमीसाइड के लिए सजा की प्रोविजन बताता है, जो कि हत्या की श्रेणी में नहीं आता (धारा 299 आई.पी.सी), इसमें कहा गया है कि जो कोई भी इरादे से मौत का कारण बनता है या ऐसी शारीरिक चोट का कारण बनता है जिससे मौत होने की संभावना है या जब उसे यह पता होता है कि ऐसे कार्य के कारण मौत की संभावना है, उसे लाइफ इंप्रिजनमेंट या दोनों में से किसी एक अवधि के कारावास के लिए लाएबल होगा, जिसे 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और फाइन के लिए भी लाएबल होगा (धारा 304(1) आई.पी.सी)।

दूसरे, जो कोई भी मृत्यु का कारण बनने के इरादे के बिना या ऐसी शारीरिक चोट के कारण मृत्यु का कारण बनता है जिससे मृत्यु होने की संभावना है या उसे यह पता नहीं है कि उसके कार्य से मृत्यु हो सकती है, उसे एक अवधि के लिए इंप्रिजनमेंट की सजा दी जाएगी जो 10 वर्ष तक हो सकती है, और फाइन (धारा 304 (2) आई.पी.सी) के लिए भी लाएबल होगा।  

यदि मृत्यु का कारण बनने वाला कार्य मृत्यु का कारण बनने के इरादे के बिना किया जाता है, लेकिन यह पता होता है कि मृत्यु ऐसे कार्य के कारण होने हो सकती है, तो व्यक्ति को किसी एक अवधि के लिए इंप्रिजनमेंट की सजा दी जाएगी जिसे 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और फाइन के लिए भी लाएबल होगा।

निर्णय विधि (केस लॉ)

शनमुगम बनाम स्टेट ऑफ तमिलनाडु के मामले में, यह माना गया कि धारा 304 के तहत अपराधों को कॉग्निजेबल, नॉन-कॉग्निजेबल और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट द्वारा ट्राइबल माना जा सकता है। इसी बात को लेकर अक्यूज्ड व मृतक के बीच झगड़ा हो गया। अक्यूज्ड को आईपीसी की धारा 304 के भाग 1 के तहत लाइफ इंप्रिजनमेंट की सजा सुनाई गई है।

यदि हम इस मामले में देखते हैं कि धारा 300 के तहत एक्सेप्शन 4 यहां लागू होता है। इसलिए यह आई.पी.सी की धारा 299 के तहत आएगा। धारा 304 के भाग 1 को इसलिए आकर्षित किया गया क्योंकि यह फैक्ट्स से स्पष्ट था कि मृत्यु का कारण बनने या ऐसी शारीरिक चोट का कारण बनने का स्पष्ट इरादा था जिससे मृत्यु होने की संभावना हो।

आई.पी.सी धारा 302

आई.पी.सी की धारा 302 मर्डर या कल्पेबल होमीसाइड के लिए सजा की प्रोविजन बताता है (जैसा कि आई.पी.सी की धारा 300 में कहा गया है), इसमें कहा गया है कि जो कोई भी हत्या करेगा वह लाइफ इंप्रिजनमेंट या डेथ पेनाल्टी के लिए लाएबल होगा और वह फाइन के लिए भी लाएबल होगा।

मृत्यू दंड (डेथ पेनाल्टी) धारा 302 

हालाँकि, डेथ पेनाल्टी केवल रेअरेस्ट ऑफ़ रेअर मामले में ही दि जा सकती है जो बचन सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब के मामले में ऑब्जर्व किया गया था, जिसमें यह देखा गया था कि जब कोर्ट लाइफ इंप्रिजनमेंट का सहारा ले सकती है, तो कोर्ट को क्यों जाना है मौत की सजा जैसी अमानवीय (इनह्यूमन) सजा के लिए। भारतीय ज्यूडिशियरी ने कुछ कंडीशंस को डिफाइन किया है जिसमें मौत की सजा का इस्तेमाल एक सहारा के रूप में किया जा सकता है, ये मच्छी सिंह और अन्य बनाम स्टेट ऑफ पंजाब में निर्धारित किए गए थे जो इस प्रकार हैं:

  1. जब की गई मर्डर अत्यंत क्रूर, रेडिक्युलस, शैतानी (डीबोलिकल),  विद्रोही (रेवोल्टिंग) या निंदनीय (रिप्रिहेंसिब्ल) तरीके से की जाती है जो समुदाय के तीव्र और अत्यधिक आक्रोश (इंडिग्नेशन) को जगाती है। उदाहरण के लिए, किसी के घर को जिंदा जलाने के इरादे से आग लगाना;
  2. अपराध की भयावहता बड़े पैमाने पर है जिसका अर्थ है कई मौतों का कारण;
  3. जब व्यक्ति की जाति और पंथ के कारण मृत्यु होती है;
  4. जब अक्यूज्ड का मोटिव क्रूरता या पूर्ण भ्रष्टता (डिप्रिवटी) थी; तथा
  5. जब मर्डर का विक्टिम एक मासूम बच्चा हो, एक असहाय महिला या व्यक्ति (वृद्धावस्था या दुर्बलता के कारण), एक सार्वजनिक व्यक्ति, आदि।

लेकिन यह डीटर्माइन करना अभी भी व्यक्तिपरक (सब्जेक्टिव) है कि क्या रेअरेस्ट ऑफ़ रेअर है और क्या नहीं। इसलिए यह एक अस्पष्टता छोड़ता है कि किन मामलों में डेथ पेनाल्टी लागू किया जा सकता है और मुकेश एंड एनआर बनाम स्टेट फॉर एनसीटी ऑफ दिल्ली एंड ओआरएस (निर्भया केस) में हाल के घटनाक्रमों के साथ, जहां सभी अक्यूज्ड को मौत की सजा सुनाई गई थी, इस विषय को देश भर में कई गरमागरम बहसों का केंद्र बना दिया, प्रमुख सवाल यह है कि अन्य देशों की तरह भारत डेथ पेनाल्टी को समाप्त करने का प्रयास क्यों नहीं कर सकता जब ज्यूडिशियरी के पास लाइफ इंप्रीजनमेंट जैसा कोई सहारा मौजूद है।

रेखांकन (इलस्ट्रेशन)

धारा 299 आई.पी.सी: कल्पेबल होमीसाइड मर्डर की श्रेणी में नहीं आती है

  • A, एक गहरा गड्ढा खोदता है और उसे घास और मिट्टी से ढक देता है, वह मौत का कारण बनने के इरादे से या उसे यह पता होता है कि उससे मृत्यु होने की संभावना है। B इसे एक कठिन मैदान समझकर उस पर खड़े होने की कोशिश करता है और मर जाता है। A कल्पेबल होमीसाइड के लिए लाएबल है जो हत्या की श्रेणी में नहीं आता।
  • A ने एक ट्रक चालक को अपने ट्रक को C की कार पर पटकने के लिए स्लैम किया, उसने ऐसा मौत का कारण बनने के इरादे से या यह पता होने के बाद किया कि ऐसे कार्य से C की मृत्यू होने की संभावना है। C किराने का सामान खरीदने बाजार गया। ट्रक उसकी कार के साथ दुर्घटनाग्रस्त (क्राश) हो जाता है, C की मृत्यु हो जाती है। A कल्पेबल होमीसाइड के लिए लाएबल है जो हत्या की श्रेणी में नहीं आता।
  • A यह नहीं जानता कि D के दिमाग में एक ट्यूमर है, मृत्यु का कारण बनने के इरादे से या यह पता होने बाद की ऐसे कार्य से D कि मृत्यु होने की संभावना है, वह उसे क्रिकेट के बल्ले से सिर पर जोर से मारता है। ट्यूमर के फटने से D की मृत्यु हो जाती है। A कल्पेबल होमीसाइड के लिए लाएबल है जो हत्या की श्रेणी में नहीं आता।

धारा 300 आई.पी.सी कल्पेबल होमीसाइड मर्डर के बराबर होता है

  • X मौत का कारण बनने के इरादे से पॉइंट ब्लैंक रेंज पर एक शॉटगन के साथ Z को गोली मारता है, और Z बाद में मर जाता है। X हत्या के लिए लाएबल है।
  • X जानता है कि Z के दिमाग में एक ट्यूमर है और वह मौत का कारण बनने के इरादे से उसे बार-बार अपने बल्ले से सिर पर मारता है, और Z की बाद में मृत्यु हो जाती है। X हत्या के लिए लाएबल है।
  • X मौत का कारण बनने के इरादे से भीड़-भाड़ वाले मॉल में मशीन गन से फायरिंग शुरू कर देता है, और बाद में 10 लोगों को मर्डर कर देता है। X मर्डर के लिए लाएबल है

आई.पी.सी कि धारा 300 का एक्सेप्शन 

  1. X घर आने पर पाता है कि उसकी पत्नी A के साथ सो रही है। वह गंभीर और अचानक उकसावे (सडन प्रोवोकेशन) के नीचे चाकू से वार करके A की मौत का कारण बनता है। X आईपीसी की धारा 300 के तहत लाएबल नहीं है।
  2. X पर उन ठगों ने हमला किया जिनके पास बंदूकें थीं, प्राइवेट डिफेंस में X ने अपनी लाइसेंसी बंदूक से सभी ठगों को मार डाला। X आई.पी.सी के धारा 300 के तहत लाएबल नहीं है।
  3. X एक पुलिस अधिकारी है, एक दिन जब वह ड्यूटी पर था, उसने देखा कि कुछ लुटेरे हथियारों के साथ एक घर में प्रवेश कर रहे हैं, X लुटेरों का सामना करता है और उन्हें यह मानकर मारता है कि वह पड़ोस के निवासियों को नुकसान पहुंचाएंगे। X आई.पी.सी की धारा 300 के तहत लाएबल नहीं है।
  4. X और Y के बीच गंदी लड़ाई हुई, X गुस्से में आकर Y को पेट पर इतना जोर से घूंसा मारता है कि Y ka आंतरिक रूप से खून बहने लगता है और वह मर जाता है। X आई.पी.सी की धारा 300 के तहत लाएबल नहीं है।
  5. A जो एक वयस्क है, B को दस मंजिला इमारत से कूदने के लिए उकसाता है, B 18 वर्ष से कम उम्र का है और यह समझने में कैपेबल नहीं है कि A क्या करने पर विचार कर रहा है और मर जाता है, यहां A उकसाने वाली मर्डर के लिए लाएबल है।

धारा 302 आई.पी.सी

  • A, B को मारने के इरादे से उस पर गोली मारता है, लेकिन गोली खराब उद्देश्य के कारण मुड़ जाती है और C को मार देती है। A आई.पी.सी की धारा 301 के तहत कल्पेबल होमीसाइड के लिए लाएबल है।
  • A अपनी कार चला रहा था, शराब के नशे में वह 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ी चला रहा था, वह नियंत्रण खो देता है और कार को फुटपाथ पर रैंप कर देता है जिससे वहां सो रहे लगभग सभी लोगों की मौत हो जाती है। A आई.पी.सी की धारा 301 के तहत कल्पेबल होमीसाइड के लिए लाएबल है।

कल्पेबल होमीसाइड और मर्डर के बीच प्रमुख अंतर

“सभी मर्डर कल्पेबल होमीसाइड हैं, लेकिन सभी कल्पेबल होमीसाइड मर्डर नहीं हैं” यह एक बहुत ही सामान्य फ्रेज है जिसका उपयोग कल्पेबल होमीसाइड और मर्डर के बीच अंतर स्थापित करने के लिए किया जाता है। यह उस पॉइंट के बारे में बात करता है जिसे मैंने पहले ही साबित कर दिया है कि कल्पेबल होमीसाइड जीनस है और मर्डर स्पीसीज है। उनके बीच मुख्य अंतर यह है कि मर्डर कल्पेबल होमीसाइड का अधिक गंभीर रूप है। मर्डर में अस्पष्टता की कोई उपस्थिति नहीं है कि कार्य हो सकता है या नहीं, क्योंकि यह आई.पी.सी की धारा 299 को देखते हुए है, जहां स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि यह कल्पेबल होमीसाइड में मौजूद है:

“मृत्यु का कारण बनने या ऐसी शारीरिक चोट का कारण बनने के इरादे से किया गया कार्य जिससे मृत्यु होने की संभावना है या यह पता है कि वह अपने कार्य से मृत्यु का कारण बन सकता है, वह कल्पेबल होमीसाइड का अपराध करेगा”।

यदि आप देखते हैं कि “संभावित” यह की कई घटनाएं यह दर्शाती हैं कि अस्पष्टता का एक एलीमेंट है कि अक्यूज्ड का कार्य व्यक्ति को मार सकता है या नहीं भी मौजूद है। जबकि, मर्डर के मामले में, जिसे आई.पी.सी की धारा 300 के तहत परिभाषित किया गया है, “संभावित” शब्दों का ऐसा कोई उल्लेख नहीं है जो दर्शाता है कि आरोपी की ओर से अस्पष्टता का कोई मौका नहीं बचा है, आरोपी निश्चित रूप से है कि उसका कार्य निडरता से मृत्यु का कारण बनेगा।

जैसा कि सर जेम्स स्टीफन ने उल्लेख किया है, कल्पेबल होमीसाइड और मर्डर के बीच अंतर करना बेहद मुश्किल है क्योंकि दोनों का अंतिम परिणाम मृत्यु है। लेकिन दोनों अपराधों में शामिल इरादे और ज्ञान के एक बहुत ही कम अंतर के लिए अंतर की उपस्थिति है, हालांकि यह सब बहुत कम है। वास्तविक अंतर कार्य की डिग्री में निहित है, दोनों अपराधों के बीच इरादे और ज्ञान की डिग्री में बहुत व्यापक अंतर है।

निर्णय विधि (केस लॉ)

रेग बनाम गोविंदा के मामले के माध्यम से, कल्पेबल होमीसाइड और मर्डर के बीच स्पष्ट अंतर था। मामले की जानकारी के अनुसार पति-पत्नी में कहासुनी हो गई, जिससे नाराज होकर पति ने पत्नी को पीट दिया। पत्नी बेहोश हो गई और पति ने पत्नी को जगाने के लिए बंद हथेलियों से उसे घूंसा मारा लेकिन दुर्भाग्य से, मस्तिष्क में आंतरिक रक्तस्राव के कारण पत्नी की मृत्यु हो गई। इस प्रकार, जस्टिस मेलविल, ने माना कि वह व्यक्ति आई.पी.सी की धारा 299 के तहत लाएबल था क्योंकि स्पष्ट रूप से मौत का कारण नहीं था और यह कार्य इतना गंभीर नहीं था कि मौके पर ही मौत हो जाए।

कल्पेबल होमीसाइड के संबंध में सबसे दिलचस्प निर्णय (द मोस्ट इंटरेस्टिंग जजमेंट रिगार्डिंग कल्पेबल होमीसाइड)

कल्पेबल होमीसाइड के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण जजमेंट इस प्रकार हैं:

भगवान सिंह बनाम स्टेट ऑफ उत्तराखंड 

इस मामले के बारे में फैसला हाल ही में दिया गया था लेकिन मामला 2007 का है। इसमें 5 लोग घायल हुए थे और उनमें से 2 ने जश्न में हुई गोलियों की वजह से दम तोड़ दिया था। सीजेआई एस ए बोबडे, बीआर गवई और सूर्यकांत, जेजे से युक्त सुप्रीम कोर्ट की फ्यूरियस बेंच ने कहा:

उत्सव की गोलीबारी की घटनाओं में वृद्धि हुई है क्योंकि उन्हें एक स्टेटस सिंबल के रूप में देखा जाता है। सुरक्षा के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लाइसेंसी बंदूक का इस्तेमाल उत्सव के आयोजनों में नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह बहुत घातक हो सकता है।

एकत्रित साक्ष्य के अनुसार आरोपी ने बंदूक को घर की छत की ओर रखा दुर्भाग्य से गोलियां मुड़कर घायल हो गईं। आरोपी ने खुद को दोषी नहीं ठहराया क्योंकि उसका किसी की मौत का कारण बनने का कोई इरादा नहीं था। कोर्ट ने देखा कि आरोपी सार्वजनिक रूप से एक भरी हुई बंदूक ले जा रहा था और उसने अपने आस-पास की उचित देखभाल नहीं की। उसे इस बात का अंदाजा होना चाहिए था कि छर्रे किसी की ओर झुक सकते हैं और चोट पहुंचा सकते हैं।

कोर्ट ने उसे दोषी करार दिया। यह अपराध आई.पी.सी की धारा 299 के तहत कल्पेबल होमीसाइड का मामला है, जो आई.पी.सी की धारा 304 भाग 2 के तहत दंडनीय है।

राम कुमार बनाम स्टेट ऑफ़ छत्तीसगढ़ 

इस मामले में अपीलेंट अपनी भाभी के प्यार में इस कदर पागल हो जाता है कि शादी से एक दिन पहले उसने उसे खेत में बुलाया और उसके सिर पर कुल्हाड़ी से वार कर दिया। लड़की दौड़कर अपने घर की ओर गई और फिर एफ.आई.आर दर्ज कराने पुलिस कार्यालय गई। उसके बाद उसे अस्पताल ले जाया गया लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई। कोर्ट ने एफ.आई.आर की कानूनी प्रकृति पर ध्यान देने की कोशिश की कि क्या यह मृत्यु पूर्व घोषणा के साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य थी।

कोर्ट ने धर्म पाल बनाम स्टेट ऑफ यूपी के मामले को रेफर किया है। यह देखा गया कि यदि विक्टिम की मृत्यु कोर्ट के सामने पेश होने से पहले हो जाती है तो एफ.आई.आर को डाइंग डिक्लेरेशन के रूप में माना जा सकता है।

इस मामले में अपीलेंट को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट द्वारा आई.पी.सी (हत्या की सजा) की धारा 302 के तहत दंडित किया गया था, लेकिन आरोपी ने डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में क्रिमिनल अपील दायर की, यहां कोर्ट ने, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को देखते हुए जिसमें दिखाया गया था कि अगर लड़की जल्दी अस्पताल पहुंच जाती तो उसे बचाया जा सकता था, उसने अपीलकर्ता की सजा को बदल दिया और उसे धारा 304 भाग 1 आई.पी.सी (कल्पेबल होमीसाइड) के तहत सजा सुनाई। 

न्याय और सुधार सेवा मंत्री बनाम एस्टेट स्ट्रानशम-फोर्ड

यह एक दक्षिण अफ़्रीकी मामला है जिसमें कैंसर से पीड़ित एक मरीज़ कोर्ट में गया और कोर्ट की अनुमति मांगी ताकि डॉक्टर को अपना जीवन समाप्त करने और उसकी पीड़ा समाप्त करने की अनुमति मिल सके। वह दक्षिण अफ्रीका के संविधान के तहत अधिकारों के बिल में निहित अपने अधिकार के रूप में इसकी मांग कर रहे थे और यह भी कहा कि डॉक्टर पर कल्पेबल होमीसाइड का आरोप नहीं लगाया जाना चाहिए, कोर्ट ने एप्लीकेंट को चिकित्सा व्यवसायी (मेडिकल प्रैक्टिशनर) को असिस्टेड युथनेशीया के लिए जाने की अनुमति दी थी। लेकिन दुर्भाग्य से, फैसले के 2 घंटे बाद उनकी मृत्यु हो गई। हाई कोर्ट ने कहा कि जब तक राज्य व्यक्ति को अनुमति नहीं देता, तब तक इसे आम उपयोग में नहीं माना जाता है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

इस लेख में, हमने चर्चा की कि कल्पेबल होमीसाइड क्या है। इसका अर्थ है किसी ऐसे कार्य से किसी की मृत्यु करना जो इतना घातक हो कि मृत्यु का कारण बन सकता है। इंडियन पीनल कोड के अनुसार कल्पेबल होमीसाइड दो प्रकार की होती है। एक ऐसा कल्पेबल होमीसाइड जो मर्डर की श्रेणी में नहीं है। (धारा 299 आई.पी.सी), कल्पेबल होमीसाइड जो हत्या की राशि में है। (धारा 300 आई.पी.सी)।

हमने चर्चा की कि आई.पी.सी की धारा 302 और धारा 304 के तहत कल्पेबल होमीसाइड के संबंध में सजा का उल्लेख किया गया है।

कल्पेबल होमीसाइड के लिए सजा (धारा 300) धारा 302 के तहत दी जाती है जो या तो मौत की सजा या लाइफ इंप्रीजनमेंट के साथ-साथ फाइन भी है। कल्पेबल होमीसाइड के लिए सजा (धारा 299) धारा 304 के तहत दी जाती है जो या तो 10 साल की कैद या फाइन या दोनों है। इरादा मौजूद होने पर इसे लाइफ इंप्रीजनमेंट तक बढ़ाया जा सकता है।

एक्ट में एक दिलचस्प धारा भी है जो एक व्यक्ति को गलती से दूसरे व्यक्ति को मारने की बात करती है, जबकि वह किसी अन्य व्यक्ति को मारने की कोशिश कर रहा था, यह आई.पी.सी की धारा 301 है। हमें कल्पेबल होमीसाइड के कुछ बहुत ही रोचक मामलों के बारे में पता चला, भगवान सिंह के मामले के माध्यम से हमें जश्न मनाने के संबंध में नियमों के बारे में पता चला, हमें दक्षिण अफ्रीका के मंत्री न्याय के मामले के माध्यम से इच्छामृत्यु की वैधता की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति का पता चला।

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