पेंशन फंड के बारे में सब कुछ

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यह लेख लॉसिखो से इंटरनेशनल बिजनेस लॉ में डिप्लोमा कर रही Sakshi Garg द्वारा लिखा गया है और Shashwat Kaushik द्वारा संपादित किया गया है। इस लेख में पेंशन फंड से संबंधित जानकारी दी गई है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

दीर्घायु जोखिम वह संभावना है कि लोग अपेक्षा से अधिक समय तक जीवित रहते हैं, जिससे बीमा कंपनियों और पेंशन फंडों की लागत बढ़ जाती है। यह जोखिम इसलिए उत्पन्न होता है क्योंकि अधिक से अधिक लोग लंबे समय तक जीवित रह रहे हैं, और इसके कारण इन कंपनियों और फंडों को उनकी योजना से अधिक धनराशि का भुगतान करना पड़ सकता है। इस जोखिम से सबसे अधिक प्रभावित होने वाली योजनाएँ वे हैं जो आजीवन लाभ का वादा करती हैं, जैसे पेंशन योजनाएँ और वार्षिकियाँ। संक्षेप में, दीर्घायु जोखिम अनुमान से अधिक समय तक जीवित रहने वाले लोगों की अनिश्चितता के बारे में है, जो बीमा कंपनियों और पेंशन फंडों के लिए वित्तीय चुनौतियां पैदा कर सकता है। इसका कारण सेवानिवृत्ति (रिटायरमेंट) की आयु तक पहुंचने वाले लोगों की बढ़ती संख्या और पॉलिसीधारकों और पेंशनभोगियों की लंबी जीवन प्रत्याशा है। आजीवन लाभ की गारंटी देने वाली योजनाएं इस जोखिम के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होती हैं।

पेंशन फंड में दीर्घायु जोखिम का प्रबंधन सेवानिवृत्ति योजनाओं की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण पहलू है। दीर्घायु जोखिम का तात्पर्य व्यक्तियों के जीवन काल और सेवानिवृत्त लोगों की अपेक्षा से अधिक समय तक जीवित रहने की अनिश्चितता से है, जिसके परिणामस्वरूप पेंशन भुगतान में वृद्धि होती है और पेंशन फंड पर वित्तीय दबाव पड़ता है। दीर्घायु जोखिम को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, पेंशन फंड विभिन्न रणनीतियों और तकनीकों को नियोजित करते हैं। 

भारत में पेंशन फंड का ऐतिहासिक संदर्भ

भारतीय पेंशन प्रणाली का इतिहास ब्रिटिश-भारत के आश्रित काल से जुड़ा है। 1881 में, सिविल प्रतिष्ठानों पर रॉयल कमीशन ने पहली बार सरकारी कर्मचारियों को पेंशन लाभ प्रदान किया था। 1919 और 1935 के भारत सरकार अधिनियमों ने और प्रावधान किये थे।

भारत में पेंशन का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366(17) में प्रदान किया गया है, और इस अधिकार को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखा गया है। मार्च 1997 में, भारत में 34.29 मिलियन व्यक्ति थे (1991 की 314 मिलियन की श्रम शक्ति का 10.92 प्रतिशत) जो किसी भी औपचारिक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के अंतर्गत आते थे। केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के संयुक्त सरकारी कर्मचारियों में 11.14 मिलियन (कुल का 32.5 प्रतिशत) शामिल थे, जबकि शेष निजी क्षेत्र में वेतनभोगी कर्मचारी थे।

भारत में सरकारी कर्मचारियों को तीन प्रकार के सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान किए जाते हैं। पहला ग्रेच्युटी है जो ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 द्वारा शासित है। यह अधिनियम सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों पर लागू होता है।

दूसरी है परिभाषित अंशदान (कंट्रीब्यूशन) (डीसी) योजना। प्रत्येक सरकारी कर्मचारी सरकारी भविष्य निधि (जीपीएफ) में वेतन के 6.0 प्रतिशत की दर से योगदान देता है, जिसमें सरकार की ओर से कोई समान योगदान नहीं होता है।

तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण सेवानिवृत्ति लाभ परिभाषित लाभ (डीबी) गैर-अंशदायी (कर्मचारियों के लिए), गैर-वित्तपोषित (अन फंडेड), अनुक्रमित (इंडेक्स्ड) पेंशन योजना है। इसमें विकलांगता और उत्तरजीवी लाभ भी हैं। अधिकतम प्रतिस्थापन (रिप्लेसमेंट) दर सेवा के पिछले दस महीनों के औसत वेतन का 50 प्रतिशत है। सरकार में पेंशन की पूर्ण राशि की अधिकतम सीमा भी उच्चतम वेतन का 50 प्रतिशत है।

भारत में पेंशन फंड कैसे काम करता है?

सरल शब्दों में, अन्य विकासशील देशों की तरह, भारत में बुजुर्ग आबादी को वित्तीय स्थिरता प्रदान करने के लिए एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली नहीं है। गरीबी और बेरोजगारी का उच्च स्तर, उन लोगों जो बुढ़ापे के करीब हैं के लिए पेरोल करों द्वारा वित्त पोषित राज्य पेंशन व्यवस्था को लागू करना और अधिक चुनौतीपूर्ण बना देता है।

इसके बजाय, भारत एक पेंशन नीति का पालन करता है जहां नियोक्ता और कर्मचारी दोनों पेंशन फंड में योगदान करते हैं। हालाँकि, यह प्रणाली केवल संगठित क्षेत्र के श्रमिकों को कवर करती है, असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले अधिकांश लोगों को उनके बुढ़ापे के लिए औपचारिक सहायता तक पहुंच नहीं मिलती है।

अपनी सीमाओं के बावजूद, भारत में पेंशन और वृद्धावस्था आय सहायता प्रणालियों का एक लंबा इतिहास है। इसकी शुरुआत औपनिवेशिक शासन के दौरान हुई जब 1881 में पहली बार सरकारी कर्मचारियों को पेंशन प्रदान की गई थी। समय के साथ, सभी सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत्ति लाभों को शामिल करने के लिए इन योजनाओं का विस्तार किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, निजी क्षेत्र के श्रमिकों को पेंशन प्रणाली में शामिल करने के लिए कई भविष्य निधि शुरू की गईं।

आज, भारत में सबसे लोकप्रिय सेवानिवृत्ति योजनाएं भविष्य निधि, ग्रेच्युटी और पेंशन योजनाएं हैं। पहली दो योजनाएं सेवानिवृत्ति के चरण में केवल एकमुश्त लाभ देती हैं, लेकिन अंतिम पेंशन योजना मासिक वार्षिकी पर भुगतान करती है। इन योजनाओं में कुछ सामान्य विशेषताएं हैं जिन्हें समझना महत्वपूर्ण है। वे अनिवार्य हैं, व्यवसाय आधारित आय से संबंधित हैं और ये योजनाएं बीमा कवरेज के कारण विकलांगता और मृत्यु में भी सहायक हैं। यदि श्रमिक विकलांग हो जाता है और ऐसी स्थिति में उसकी मृत्यु हो जाती है, तो इस योजना के तहत उसके परिवार को वित्तीय सहायता और लाभ मिलेगा।  

भारत में पेंशन फंड की वर्तमान स्थिति

पिछले कुछ वर्षों में भारत के वित्तीय क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधारों के कारण पेंशन क्षेत्र में कुछ बड़े बदलाव हुए हैं।

राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) का परिचय

एनपीएस 2004 में शुरू की गई एक सरकार समर्थित स्वैच्छिक योगदान सेवानिवृत्ति बचत योजना है। यह एक बहुत लोकप्रिय योजना है; भारत में कोई भी इस योजना से जुड़ सकता है और अपनी सेवानिवृत्ति के लिए पैसे बचा सकता है। एनपीएस आपको अपना पैसा निवेश करने के लिए दो विकल्प देता है: स्टॉक में या बॉन्ड में निवेश।

पेंशन निधि प्रबंधकों का विस्तार

शुरुआत में राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) में पैसे का प्रबंधन करने वाली कुछ ही कंपनियां थीं। इन कंपनियों को पेंशन फंड मैनेजर कहा जाता है, लेकिन सरकार ने कुछ बदलाव किए और अधिक कंपनियों को पीएफएम बनने की अनुमति दी।

अटल पेंशन योजना (एपीवाई)

अटल पेंशन योजना एक सरकार प्रायोजित (स्पॉन्सर्ड) पेंशन योजना है जो असंगठित क्षेत्र पर लक्षित है और इसका उद्देश्य व्यक्तियों को उनके योगदान के आधार पर पेंशन प्रदान करना है।

सरकार ने पेंशन क्षेत्र में विदेशी स्रोतों से अधिक धन निवेश करने की अनुमति देने का निर्णय लिया। इस बदलाव का मतलब है कि पेंशन को अब अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से अधिक निवेश मिल सकता है। जबकि भारत में वित्तीय क्षेत्र के अन्य हिस्सों में संगठित और सावधानीपूर्वक नियोजित सुधार देखे गए हैं, पेंशन क्षेत्र में परिवर्तन कम व्यवस्थित और अधिक अव्यवस्थित रहे हैं। पेंशन फंड में इस अनियमित बदलाव के पीछे मुख्य कारण यह है कि यह राजकोषीय (फिस्कल) और कर नीतियों, श्रम बाजार, स्वास्थ्य और बीमा क्षेत्र जैसे विभिन्न बिंदुओं से जटिल और परस्पर जुड़ा हुआ है। यह जटिल पहलू पेंशन सुधारों को अधिक चुनौतीपूर्ण और समय लेने वाला बनाता है।

  • राजकोषीय और कर नीतियां: सरकारी राजकोषीय और कर नीतियां पेंशन फंड से प्रभावित होती हैं। ये नीतियां निर्धारित करती हैं कि व्यक्तियों को पेंशन योजनाओं में उनके योगदान पर कितना कर लाभ मिलता है और पेंशन फंड पर उनकी आय पर कितना कर लगाया जाता है। 
  • श्रम बाज़ार: राज्य पेंशन निधि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब लोगों के पास स्थिर रोजगार होता है, तो उनके पेंशन फंड में नियमित रूप से योगदान करने की अधिक संभावना होती है। 
  • स्वास्थ्य और बीमा क्षेत्र: स्वास्थ्य और बीमा क्षेत्र पेंशन फंड से जुड़े हुए हैं क्योंकि सेवानिवृत्ति के दौरान स्वास्थ्य और बीमा की ज़रूरतें आवश्यक विचार हैं। बढ़ते स्वास्थ्य खर्चों से पेंशनभोगियों के वित्त पर दबाव पड़ सकता है, जिससे पेंशन फंड से उनके निकासी स्वरूप पर असर पड़ सकता है

इस जटिलता के कारण, अन्य वित्तीय क्षेत्र के सुधारों की तुलना में पेंशन सुधारों को उच्च प्राथमिकता नहीं दी गई है। सरकार पेंशन फंड की जटिलताओं को पूरी तरह से दूर करने से पहले अन्य क्षेत्रों को सुचारू करना पसंद करती है। यह दृष्टिकोण, यद्यपि अपेक्षित है, और कभी-कभी समग्र सुधार प्रक्रिया में देरी कर सकता है।

अन्य क्षेत्रों के साथ पेंशन प्रणाली के अंतर्संबंध सुधार प्रक्रिया को मेहनती और लंबा बनाते हैं, और वे संभावित रूप से समग्र वित्तीय क्षेत्र के सुधार की गति को बाधित या विलंबित कर सकते हैं।

भारत में पेंशन निधि व्यवस्था का विश्लेषण

भारत में अधिकांश व्यक्ति पेंशन के दायरे से बाहर हैं। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के पास कोई संरचित सामाजिक सुरक्षा प्रणाली नहीं है। बीमा विनियामक (रेगुलेटरी) और विकास प्राधिकरण ने 31 अक्टूबर 2001 को भारत सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें असंगठित क्षेत्र में पेंशन सुधारों के लिए कुछ समयबद्ध सिफारिशें की गई हैं। नीचे सुझाए गए कुछ सुधार है:

  1. कुछ जन जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए ताकि लोग पेंशन योजना के बारे में बेहतर तरीके से जागरूक हों और अपने लाभ के लिए उन योजनाओं का उपयोग करें।
  2. पेंशन योजनाओं के लिए योगदान और योजनाओं का चयन विभिन्न तरीकों से और विभिन्न संगठनों, जैसे बैंकों, परिसंपत्ति (एसेट) प्रबंधन कंपनियों, डाकघरों, गैर सरकारी संगठनों और सामान्य हितों वाले अन्य समूहों के माध्यम से किया जा सकता है।
  3. एकीकृत प्रदाता (इंटीग्रेटेड प्रोवाइडर) ग्राहकों द्वारा किए गए योगदान का रिकॉर्ड रखने के लिए जिम्मेदार होगा।
  4. योगदान का निधि प्रबंधन या तो एकीकृत प्रदाता संगठन के भीतर या किसी विशेष अनुमोदित संगठन के माध्यम से संभाला जा सकता है।
  5. पेंशन विनियमन अद्यतन (अपडेट) जारी रखना अधिक महत्वपूर्ण है और यह जांचना चाहिए कि वे प्रासंगिक हैं और सेवानिवृत्त लोगों की जरूरतों को प्रभावी ढंग से पूरा कर रहे हैं।

भारत में पेंशन सुधार की आवश्यकता

वैश्विक तुलना: मर्सर सीएफएस वैश्विक पेंशन सूचकांक (इंडेक्स) में भारत 44 देशों में से 41वें स्थान पर है। एमसीजीपीआई 44 वैश्विक पेंशन प्रणालियों का एक व्यापक अध्ययन है, जो दुनिया की 65 प्रतिशत आबादी के लिए जिम्मेदार है।

सूचकांक तीन मानदंडों पर देशों को रैंक करता है:

  1. पर्याप्तता: भावी सेवानिवृत्त लोगों को क्या लाभ मिलने की संभावना है?
  2. स्थिरता: क्या जनसांख्यिकीय (डेमोग्राफिक) और वित्तीय चुनौतियों के बावजूद, मौजूदा प्रणालियाँ काम करना जारी रख सकती हैं?
  3. सत्यनिष्ठा: क्या निजी पेंशन योजनाओं को इस तरह से विनियमित किया जाता है जो दीर्घकालिक सामुदायिक विश्वास को प्रोत्साहित करता है?

भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के लोग, किसी भी पेंशन योजना से वंचित हैं। शामिल करने की यह कमी बुजुर्गों के लिए वित्तीय असुरक्षा का कारण बनती है।

भारत में वर्तमान श्रमिकों में से कम से कम 85 प्रतिशत किसी भी पेंशन योजना के सदस्य नहीं हैं, और बुढ़ापे में, उनके पेंशन से वंचित रहने या केवल सामाजिक पेंशन प्राप्त करने की संभावना है। यहां तक ​​कि पेंशन योजनाओं के अंतर्गत आने वाले लोगों के लिए भी प्राप्त राशि अक्सर अल्प और जीविका के लिए अपर्याप्त होती है। कार्यक्रमों, व्यवसायों और क्षेत्रों के आधार पर लाभों में भिन्नता पेंशन प्रणाली के भीतर असमानताओं को जन्म देती है। सभी बुजुर्गों में से, 57 प्रतिशत को सार्वजनिक व्यय से कोई आय सहायता नहीं मिलती है, और 26 प्रतिशत गरीबी उन्मूलन (एलिविएशन) के हिस्से के रूप में सामाजिक पेंशन प्राप्त करते हैं। पेंशन क्षेत्र वर्तमान में सरकार की राजकोषीय योजना पर एक महत्वपूर्ण बोझ डालता है। सुधारों का लक्ष्य एक स्थायी पेंशन प्रणाली बनाना होना चाहिए जो लंबी अवधि में वित्तीय रूप से व्यवहार्य हो, जो सरकार की वित्तीय बाधाओं के साथ सेवानिवृत्त लोगों की जरूरतों को संतुलित करती हो। वृद्धावस्था आय सहायता प्रणाली में सार्वजनिक व्यय का 11.5 प्रतिशत हिस्सा शामिल था, और उप-राष्ट्रीय सरकारें 60 प्रतिशत से अधिक वहन करती थीं।

सेवानिवृत्ति के बाद के लाभों पर कर छूट की मौजूदा प्रणाली जरूरतमंद लोगों को प्रभावी ढंग से लक्षित नहीं कर रही है। सुधारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लाभ मुख्य रूप से उच्च आय वर्ग को लाभ पहुंचाने के बजाय इच्छित प्राप्तकर्ताओं तक पहुंचे।

उद्योग में उपयोग किए जाने वाले कुछ प्रमुख दृष्टिकोण

बीमांकिक (एक्चरियल) मॉडलिंग

इस दृष्टिकोण में, हम भविष्य की मृत्यु दर निर्धारित करने और पेंशन योजना प्रतिभागियों की जीवन प्रत्याशा (एक्सपेक्टेंसी) का अनुमान लगाने के लिए सांख्यिकीय और गणितीय तकनीकों का उपयोग करते हैं। बीमांकिक मॉडलिंग, भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में सटीक भविष्यवाणी करके वित्तीय अनिश्चितता को प्रबंधित करने के लिए सांख्यिकीय मॉडल का उपयोग करती है, निगम, बीमांकिक मॉडलिंग का उपयोग करते हैं।

जोखिम एकत्रीकरण  

पेंशन फंड प्रक्रिया का उद्देश्य लोगों से पैसा इकट्ठा करना और उसे एक साथ निवेश करना है। यह प्रक्रिया व्यक्ति कितने समय तक जीवित रहेगी, इस बारे में अनिश्चितता के प्रभाव को कम करने में मदद करती है, जिसे दीर्घायु जोखिम कहा जाता है। हर किसी के पैसे को एक पूल में डालने की इस प्रक्रिया के माध्यम से, फंड उस स्थिति को संभाल सकते हैं जब कुछ लोग अपेक्षा से अधिक समय तक जीवित रहते हैं। जब लोगों का एक विविध समूह भाग लेता है, तो लंबे समय तक जीवित रहने वाले लोगों का समर्थन करने के लिए अतिरिक्त लागत उन लोगों के साथ जुड़ जाती है जिनकी असामयिक मृत्यु हो जाती है। इस तरह, जोखिम को कई व्यक्तियों के बीच विभाजित किया जाता है, जिससे पेंशन फंड के लिए सभी की सेवानिवृत्ति आवश्यकताओं का प्रबंधन और योजना बनाना आसान हो जाता है।

कुछ पेंशन फंड लोगों को अपेक्षा से अधिक समय तक जीवित रहने के जोखिम से बचाने के लिए बीमा पॉलिसियों और वार्षिकी अनुबंधों का उपयोग करते हैं। वे अपना जोखिम बीमा कंपनी को हस्तांतरित कर देते हैं। वे एक समझौता करते हैं। इस समझौते के अनुसार, पेंशन फंड बीमा कंपनियों को एक निश्चित राशि का भुगतान करते हैं, लेकिन बदले में, बीमा सेवानिवृत्त लोगों को उनके जीवित रहने तक नियमित आय का भुगतान करता है। इस तरह, यदि व्यक्ति अनुमानित समय से अधिक समय तक जीवित रहते हैं तो पेंशन फंडों को लाभ वापस करने के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि बीमा कंपनी भुगतान के लिए जिम्मेदार होगी।

पेंशन फंड के साथ स्मार्ट निवेश लोगों के लंबे समय तक जीवित रहने के जोखिम से निपटने का सही तरीका है। वे लंबे समय तक जीवित रहने वाले लोगों को भुगतान करने की बढ़ती लागत को शामिल करने के लिए अपने निवेश से पैसा कमाने की कोशिश करते हैं। वे यह तय करके ऐसा करते हैं कि अपना पैसा कहां निवेश करना है और ऐसे निवेशों का चयन करते हैं जिनमें उच्च रिटर्न अर्जित करने की क्षमता हो। यह सही निवेश निर्णय लेकर, पेंशन फंड यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके पास न केवल अभी व्यक्तियों को बल्कि भविष्य में, जब लोग लंबे समय तक जीवित रहेंगे, पेंशन का भुगतान करने के लिए पर्याप्त धन हो।

नियमित निगरानी और पुनर्संतुलन

पेंशन फंड नियमित रूप से जांच करते हैं कि उनके पास कितना पैसा है और अगर लोग लंबे समय तक जीवित रहे तो उन्हें कितना जोखिम का सामना करना पड़ेगा। यदि लोगों के लंबे समय तक जीवित रहने के कारण उन्हें भुगतान की जाने वाली धनराशि बढ़ जाती है, तो पेंशन फंड को अपनी रणनीति बदलनी पड़ सकती है। वे समायोजित (एडजस्ट) कर सकते हैं कि वे अपना पैसा कैसे निवेश करते हैं, लोग फंड में कितना पैसा योगदान करते हैं, और वे पेंशन के रूप में कितना भुगतान करते हैं। रणनीतियों में ये सभी बदलाव पेंशन फंडों को वित्तीय रूप से मजबूत रहने में मदद करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि वे सेवानिवृत्त लोगों को अपने दायित्वों का भुगतान कर सकें।                  

डेरिवेटिव के माध्यम से जोखिम का हस्तांतरण (ट्रांसफर)

कुछ पेंशन फंडों द्वारा एक विशेष समझौते की रणनीति का उपयोग किया जाता है, जैसे कि दीर्घकालिक विनिमय और दीर्घायु विकल्प, जोखिम को बैंकों जैसे अन्य संगठनों में हस्तांतरित करने के लिए। ये समझौते पेंशन फंड के लिए बीमा के रूप में कार्य करते हैं, उन्हें मदद करते हैं और यदि व्यक्ति अनुमान से अधिक समय तक जीवित रहते हैं तो उन्हें अपर्याप्त धन से बचाते हैं। इन अनुबंधों के तहत, उनके वित्त पर लंबी उम्र का प्रभाव कम हो जाता है।                 

                  

परिसंपत्ति-देयता प्रबंधन (एएलएम)

पेंशन फंड की निवेश रणनीतियों को उनकी भुगतान देनदारियों के साथ पंक्तिबद्ध (लाइन अप) करें, जिसे परिसंपत्ति-देयता प्रबंधन कहा जाता है। लंबे समय तक जीवित रहने वाले लोगों के जोखिम को प्रबंधित करने के लिए, पेंशन फंड एएलएम तकनीकों का उपयोग करते हैं जिसमें निवेश किया गया समय और राशि उनके द्वारा किए जाने वाले पेंशन भुगतान के समय और राशि से मेल खाती है। इस योजना के माध्यम से, वे यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके पास भविष्य में अपनी पेंशन का भुगतान करने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध है। इससे पेंशन फंड को उम्मीद से अधिक लंबे समय तक जीवित रहने वाले लोगों के प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है।                                                        

भारत में पेंशन-क्षेत्र की प्रगति

एनपीएस और हाल ही में एपीवाई की शुरुआत के बाद से, भारत में पेंशन क्षेत्र का विस्तार हुआ है। ग्राहकों की कुल संख्या मार्च 2017 में 1.5 करोड़ से तीन गुना बढ़कर मार्च 2022 तक 5.2 करोड़ से अधिक हो गई है। संख्या के संदर्भ में, जैसा कि उम्मीद की जा सकती है, इसमें एपीवाई का वर्चस्व (डोमिनेटेड) है। एपीवाई ग्राहकों की कुल संख्या (इसके पुराने संस्करण, एनपीएस लाइट सहित) 93 लाख से चार गुना बढ़कर 405 लाख हो गई है। पेंशन ग्राहक आधार में एपीवाई ग्राहकों की हिस्सेदारी 78 प्रतिशत से अधिक है।

प्रबंधन के तहत पेंशन संपत्ति 1,75,000 करोड़ रुपये से चार गुना से अधिक बढ़ गई है। इस 5 साल की अवधि के दौरान 7,37,000 करोड़ रु. अधिकांश संपत्ति एनपीएस के पास है, जो 1,70,000 करोड़ रुपये से 7,11,000 करोड़ रुपए बढ़ी है, जो कुल परिसंपत्ति का 96 प्रतिशत है; शेष प्रतिशत एपीवाई द्वारा योगदान किया जाता है। निजी क्षेत्र में एनपीएस, जिसमें कॉर्पोरेट और सभी नागरिक मॉडल शामिल हैं, कुल संपत्ति का 16 प्रतिशत हिस्सा है। इस प्रकार, जबकि पेंशन संख्या एपीवाई द्वारा संचालित होती है, पेंशन संपत्तियां एनपीएस द्वारा संचालित होती हैं।

अलग-अलग एपीवाई ग्राहक डेटा लिंग मिश्रण में सुधार दिखाता है, महिला ग्राहकों की हिस्सेदारी मार्च 2017 में 37.6 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2022 तक 44 प्रतिशत हो गई; आयु मिश्रण भी 18-25 आयु वर्ग के युवा समूह के पक्ष में बढ़ रहा है, जो मार्च 2017 में 32 प्रतिशत की हिस्सेदारी से बढ़कर मार्च 2022 तक 44 प्रतिशत हो गया है। हालांकि, एपीवाई खातों का बड़ा हिस्सा, या लगभग 77 प्रतिशत, 1,000 रुपये प्रति माह की पेंशन राशि के लिए, इसके बाद 5,000 रुपये के लिए 15 प्रतिशत और शेष 8 प्रतिशत बीच में कही है। एपीवाई में 1,000 रुपये पेंशन का हिस्सा कई कारकों के कारण हो सकती है, प्रमुख कारण आर्थिक है, लक्षित आबादी कम आय वाले परिवार हैं जहां रोजमर्रा के उपभोग व्यय को बचत पर प्राथमिकता दी जाती है।

2016-17 से 2020-21 की 5 साल की अवधि के लिए एनपीएस ग्राहकों (सभी नागरिक मॉडल) की सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं पर पीएफआरडीए द्वारा एक सर्वेक्षण से पता चला कि 24 प्रतिशत महिला ग्राहक थीं, शेष 76 प्रतिशत पुरुष ग्राहक थे। यह एपीवाई के मामले में बेहतर लिंग संतुलन के विपरीत है। अधिकांश नामांकन 26-35 वर्ष (33 प्रतिशत) और 36-45 वर्ष (31 प्रतिशत) आयु वर्ग से थे। अधिकांश ग्राहक उच्च शिक्षित थे: 81 प्रतिशत से अधिक ग्राहक स्नातक या उच्च योग्यता वाले थे।

अधिकांश ग्राहक अपेक्षाकृत उच्च आय समूह से थे: दो-तिहाई नामांकन 5-10 लाख रुपये (36 प्रतिशत) और 10-25 लाख रुपये (30 प्रतिशत) के आय समूहों से थे। विभिन्न राज्यों में, महाराष्ट्र से नामांकन सबसे अधिक 17 प्रतिशत था।

आगे बढ़ते हुए, एनपीएस (निजी क्षेत्र) तेजी से विस्तार करने के लिए तैयार है क्योंकि कॉर्पोरेट कर्मचारियों और अपेक्षाकृत संपन्न परिवारों की संख्या बढ़ रही है, उदाहरण के लिए, स्व-रोज़गार और पेशेवर जैसे डॉक्टर, वकील और छोटे व्यवसाय के मालिक, एनपीएस में शामिल होने के गुण देखते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े किसानों और व्यापारियों और एकमुश्त आय वाले लोगों के लिए एनपीएस की संभावना है, क्योंकि एनपीएस को मानक मासिक योगदान की आवश्यकता नहीं होती है।

शुरुआत से ही विभिन्न एनपीएस योजनाओं में रिटर्न की दर 9.0-12.7 प्रतिशत के बीच रही है, जो वैकल्पिक बचत साधनों की तुलना में बहुत प्रतिस्पर्धी रही है। पिछले पांच वर्षों में यह सीमा 8.1-13.3 प्रतिशत रही है। जैसी कि उम्मीद की जा सकती थी, इक्विटी-उन्मुख एनपीएस योजना ने 13.3 प्रतिशत का वार्षिक रिटर्न कमाया है। एक अति-रूढ़िवादी सरकारी-प्रतिभूति-उन्मुख (ओरिएंटेड) एनपीएस योजना ने 8 प्रतिशत से अधिक का वार्षिक रिटर्न दर्ज किया है। एपीवाई ने पिछले 5 वर्षों में 8.8 प्रतिशत का उच्च औसत वार्षिक रिटर्न भी दर्ज किया है, शुरुआत से ही वार्षिक रिटर्न 9.4 प्रतिशत रहा है (तालिका-3)।

2016-17 से 2021-22 की 5 साल की अवधि के दौरान इन दोनों योजनाओं (एनपीएस और एपीवाई) के तहत पेंशन में जनसंख्या को शामिल करना, कुल जनसंख्या के हिस्से के रूप में 1.2 प्रतिशत से बढ़कर 3.7 प्रतिशत हो गया है, और संपत्ति के रूप में सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 1.2 प्रतिशत से बढ़कर 3.2 प्रतिशत हो गया है (तालिका-4)। इससे पता चलेगा कि पेंशन-क्षेत्र, हालांकि देर से शुरू हुआ, अर्थव्यवस्था के साथ-साथ जनसंख्या की नाममात्र वृद्धि की तुलना में बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है। ये संख्याएँ जितनी प्रभावशाली हैं, वे कई अन्य देशों के विकास की तुलना में फीकी हैं। उदाहरण के लिए, ओईसीडी देशों में लगभग हर किसी के पास किसी न किसी रूप में पेंशन तक पहुंच है, जो वृद्धावस्था सामाजिक सुरक्षा लाभ के रूप में दोगुनी है।

भारत में पेंशन फंड पर भविष्य का दृष्टिकोण

भारत में पेंशन फंड पर भविष्य के दृष्टिकोण के कुछ प्रमुख पहलू यहां दिए गए हैं:

  1. बढ़ती मांग: बुजुर्ग आबादी की वृद्धि के साथ पेंशन उत्पादों और योजनाओं की मांग बढ़ रही है। अच्छी पेंशन योजनाएं जीवन समर्थन प्रदान करती हैं और बुजुर्ग व्यक्ति के जीवन की वित्तीय सुरक्षा में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  2. कवरेज का विस्तार: व्यापक सेवानिवृत्ति सुरक्षा को शामिल करने के लिए अनौपचारिक क्षेत्र के व्यक्तियों को कुछ पेंशन योजना प्रदान की जानी चाहिए।
  3. प्रौद्योगिकी अपनाना: पेंशन फंड को उन्नत प्रौद्योगिकी से जुड़ना चाहिए, दक्षता में सुधार करना चाहिए और व्यक्तियों को अधिक व्यक्तिगत सेवानिवृत्ति योजनाएं प्रदान करनी चाहिए।
  4. वित्तीय साक्षरता: व्यक्तियों को पेंशन योजनाओं में भाग लेने और सूचित सेवानिवृत्ति योजना निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए जनता के बीच वित्तीय साक्षरता एक प्राथमिकता होगी।
  5. निवेश विविधीकरण: पेंशन फंड अधिक रिटर्न पाने और नुकसान की संभावना को कम करने के लिए कई प्रकार की योजनाओं में निवेश करने पर विचार कर सकते हैं। इस प्लानिंग से वे अपने फंड और खतरे का प्रबंधन कर सकते हैं।
  6. नियमित सुधार: चुनौतियों का सामना करने, उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करने और आर्थिक परिवर्तनों के अनुसार धन का प्रबंधन करने के लिए नियमित सुधार आवश्यक हैं।
  7. सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सार्वजनिक और निजी भागीदारी व्यक्तियों को बेहतर रिटर्न के साथ बेहतर निवेश योजनाएं प्रदान करने में मदद करती है, जो पुनः प्रयास करने वालों को आकर्षक लाभ प्रदान करती हैं।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि पेंशन योजना के तहत उम्मीद से अधिक समय तक जीवित रहने वाले लोग आर्थिक रूप से मजबूत रहें। लोग अपेक्षा से अधिक समय तक जीवित रह रहे हैं इसलिए यह बीमा कंपनी और पेंशन फंड के लिए एक चुनौती बनती जा रही है। इस चुनौती का सामना करने के लिए, बीमा कंपनी को इस जोखिम को प्रभावी ढंग से संभालने के लिए कुछ अच्छी रणनीतियाँ बनानी चाहिए। 

लोगों के लंबे समय तक जीवित रहने के जोखिम से निपटने के लिए पेंशन फंड कुछ चीजें कर सकते हैं और कुछ रणनीतियां बना सकते हैं। वे अपने कुछ जोखिम को हस्तांतरित करने और तदनुसार अपनी संपत्ति और देनदारियों का प्रबंधन करने के लिए बीमा का उपयोग कर सकते हैं। उन्हें अनौपचारिक क्षेत्र सहित लोगों तक बेहतर पहुंच बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना होगा। यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति भी उनकी योजनाओं को समझें। ये दृष्टिकोण भारत में पेंशन फंड के भविष्य को आकार देने, उन्हें अधिक सुरक्षित बनाने और उनकी आवश्यकताओं के अनुसार अधिक लाभ प्रदान करने में मदद करेंगे।

 संदर्भ

 

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