सीपीसी के तहत मामलों का हस्तांतरण 

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Constitution of India

यह लेख संत विवेकानंद कॉलेज ऑफ लॉ एंड हायर स्टडीज से बीबीए-एलएलबी के द्वितीय वर्ष के छात्र Abhishek Dubey द्वारा लिखा गया है। यह ‘मामलों के हस्तांतरण (ट्रांसफर) का विस्तृत विश्लेषण’ प्रदान करता है और यह उन मामलों की, जहां स्थानांतरण की अनुमति है और अनुमति नहीं है, प्रकृति, दायरा , उद्देश्यों और आधारों पर भी चर्चा करता है। इस लेख का हिन्दी अनुवाद Krati Gautam द्वारा किया गया है। 

परिचय

पूरी न्यायपालिका को पूरे सम्मान की नजर से देखा जाता है और हर व्यक्ति को न्यायपालिका पर भरोसा है कि जो भी न्यायपालिका के सामने आएगा उसे न्याय मिलेगा। अदालत को बिना भेदभाव और पक्षपात के व्यवहार करना चाहिए। न्याय इस प्रकार दिया जाना चाहिए कि लोगों के मन में न्यायपालिका की स्पष्ट छवि बनी रहे। अदालत पर सद्भावना (गुड फेथ) रखने के लिए, अदालत को न्यायपालिका के सदस्यों के बीच दंड संहिता और सिविल संहिता के तहत उच्च नैतिक मानकों को बनाए रखना चाहिए। न्याय तभी प्राप्त किया जा सकता है जब अदालत दोनों पक्षों की उपस्थिति में सुनवाई करे और अदालत के पास मामलों को एक अदालत से दूसरी अदालत में स्थानांतरित (मूव) करने की शक्ति हो। लेकिन वादी के अधिकार को कम, नियंत्रित या बाधित नहीं किया जा सकता है। सिविल प्रक्रिया में, सिविल अदालत का अधिकार क्षेत्र किसी भी सिविल वाद की जड़ में होता है। यह प्राथमिक मानदंड है जिसमें सिविल न्यायालय निर्णय दे सकता है।

प्रकृति, दायरा  और उद्देश्य

मामले के हस्तांतरण की प्रकृति आपराधिक और सिवल मामलों में हस्तांतरण की शक्ति पर निर्भर करती है-

अदालत के पास मामले को हस्तांतरित करने की शक्ति की यह विशेषताएं है-

  • यह शक्ति सीमित है जहां एक से अधिक अदालतें मुकदमों पर विचार करने के लिए सक्षम हैं और वादी ने ऐसी अदालतों में से एक में मामला दायर किया है।
  • यह शक्ति तब उपलब्ध नहीं है जब वादी एक अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) पर मुकदमा कर रहा है जिसमें “फोरम शॉपिंग खंड” शामिल है।
  • धारा 22 के तहत यह आवेदन केवल एक प्रतिवादी द्वारा दायर किया जा सकता है और इसे एक ही प्रतिवादी द्वारा दायर किया जाना है, भले ही मामले में कई प्रतिवादी हों।
  • मुकदमे के सभी पक्षों (आवेदक (एप्लीकेंट) को छोड़कर) के पास हस्तांतरण के आवेदन (एप्लीकेशन) के खिलाफ आपत्ति दर्ज करने का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय सबसे उपयुक्त न्यायालय का विवादों को निपटाने के लिए निर्धारण करेगा।

सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत मामलों के हस्तांतरण का दायरा (स्कोप)

धारा 24(1) के अनुसार उच्च न्यायालय या जिला न्यायालय किसी भी पक्ष के आवेदन पर, किसी भी मामले को हस्तांतरित और वापस कर सकते हैं, चाहे वह मामला के किसी भी स्तर पर लंबित (पेंडिंग) हो या अनुरोध (अपील) की कार्यवाही पर हो। लेकिन मामलों का हस्तांतरण  एसी किसी अदालत में ही किया जाना चाहिए जो अदालत उस मामले से निपटने के लिए सक्षम है। उच्च न्यायालय के पास किसी भी अदालत से मामले को वापस लेने और इसे किसी अन्य अदालत में हस्तांतरित करने की शक्ति भी है।

सिविल वाद के हस्तांतरण का उद्देश्य

मामलों के हस्तांतरण के पीछे मुख्य उद्देश्य न्याय प्रदान करना या सार्वजनिक भावनाओं को संबोधित करने वाले मामलों को तय करना है। अनुरोध के संबंध में विभिन्न प्रावधान हैं लेकिन इससे न्यायपालिका के तंत्र पर दबाव बनेगा और न्याय में देरी होगी। लेकिन क़ानून ने ऐसी व्यवस्था बनाई है ताकि समस्याएँ न हों यानी अदालतों का वर्गीकरण किया गया है। मामलों का हस्तांतरण एक ऐसा प्रावधान है जो आम जनता के बीच न्यायपालिका के विश्वास को बनाए रखने में मदद करता है।

आवेदन कौन कर सकता है?

सीपीसी की धारा 22 में, वादी को किसी भी सक्षम अदालत में मामला दायर करने का अधिकार है और जब प्रतिवादी को आवेदन के उद्देश्य का पता चल जाता है तो वह मामले के हस्तांतरण के लिए आवेदन कर सकता है। अदालत इस तरह के हस्तांतरण के संबंध में वादी द्वारा की गई आपत्ति पर भी विचार कर सकती है। और आगे, आपत्ति के निस्तारण (क्लीयरेंस) के बाद, अदालत मामले को उस अदालत में हस्तांतरित कर देगी जो उस मामले से निपटने के लिए सक्षम है।

धारा 22 और 23 एक दूसरे से संबंधित हैं। धारा 22 मामलों के लिए आवेदन करने के लिए प्रतिवादी की शक्ति को परिभाषित करती है और धारा 23 उन शर्तों को बताती है जहां हस्तांतरण का आवेदन किया जा सकता है।

शर्तें 

  1. वाद या अन्य कार्यवाही किसी न्यायालय में विचारण के लिए सक्षम न्यायालय में लंबित रही होगी।
  2. हस्तांतरण न्यायालय को हस्तांतरण का आदेश देने वाले न्यायालय के अधीनस्थ (सबोर्डिनेट) होना चाहिए।
  3. अंतरिती (ट्रांसफ़री) न्यायालय को मुकदमे का विचारण करने या निपटाने के लिए सक्षम होना चाहिए, जहां योग्यता में न केवल आर्थिक  बल्कि क्षेत्रीय योग्यता भी शामिल है।

आवेदन किस न्यायालय में स्थित होता है

इसकी कार्यवाई धारा 23 के तहत की जाती है।

  1. जहां कई अदालतों के पास अधिकार छेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) है एक ही अधीनस्थ अदालत में धारा 22 के तहत एक आवेदन अपीलीय अदालत में किया जाएगा।
  2. जहां ऐसी अदालतें अलग-अलग अपीलीय अदालतों के अधीन हैं लेकिन एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ हैं तो उच्च न्यायालय में आवेदन किया जाएगा।
  3. जहां ऐसे न्यायालय स्थानीय सीमा के भीतर विभिन्न न्यायालयों के अधीन हैं, जिनके अधिकार क्षेत्र में वह न्यायालय स्थित है जिसमें मुकदमा लाया गया है।
  4. हस्तन्यतारण के लिए आधार:
  • न्याय के उद्देश्य को पूरा करने के लिए न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वह न्याय दे और न्याय इस तरह से दिया जाए कि अच्छा संदेश जाए, और समाज को इस तरह से संदेश पहुँचाया जाए कि लोगों की आस्था न्यायालय में बनी रहे। विश्वास और भरोसे को जीवित रखने के लिए अदालत का एक अतिरिक्त नैतिक दायित्व होना चाहिए।
  • किसी विशेष विवाद का एकमात्र न्यायिक निर्णय होने की इच्छा।
  • जब कानून का कोई बड़ा सवाल निहित (इन्वॉल्व) हो।
  • अदालत की कार्यवाही के दुरुपयोग को रोकने के लिए
  • देरी और अनावश्यक खर्च से बचने के लिए
  • जहां न्यायाधीश पक्षपाती है या केवल एक हिस्से में रूचि रखता है
  • जहां दो अलग-अलग मामलों में एक ही तथ्य और कानून का सवाल उठता है
  • जब एक ही मामले में दो लोगों ने अलग-अलग न्यायालय में मामला दर्ज किया है।
  • कार्यवाही की बहुलता (मल्टीप्लीसिटी) या परस्पर विरोधी निर्णयों से बचने के लिए।

सूचना (नोटिस)

सीपीसी की धारा 22 के अनुसार समय का उल्लेख करना और फिर आवेदन की सूचना देना अनिवार्य है। वाद में आवेदन करने वाले सभी पक्षों को सूचना दी जानी चाहिए, चाहे वह वादी हो या प्रतिवादी या केवल विरोधी पक्षों का हो। धारा 22 के प्रावधानों के तहत आवेदन की सूचना वाद के प्रत्येक पक्ष को और उस न्यायालय को दी जानी चाहिए जिसके समक्ष यह किया गया है। लेकिन यह माना गया है कि आवेदन पर सूचना देकर ही दोष को ठीक किया जा सकता है।

आपत्तियों की सुनवाई

सीपीसी की धारा 21 मुकदमे के स्थान के अधिकार छेत्र पर कोई आपत्ति पर किसी भी अपीलीय या पुनरीक्षण अदालत द्वारा अनुमति नहीं दी जाएगी, जब तक कि इस तरह की आपत्ति जल्द से जल्द संभव अवसर पर अदालत में नहीं ली गई हो और ऐसे सभी मामलों में जहां मुद्दों का निपटारा हो गया हो और जब तक कि न्याय का परिणाम विफल न हो।

सीपीसी की धारा 22 उन मुकदमों को हस्तांतरित करने की शक्ति देती है जो एक से अधिक न्यायालयों में स्थापित किए जा सकते हैं- जहां एक मुकदमा दो या दो से अधिक न्यायालयों में से किसी एक में स्थापित किया जा सकता है और ऐसे न्यायालयों में से एक में संस्थित किया जाता है, जहां कोई भी प्रतिवादी दूसरे को सूचना के बाद पक्षकारों को कम से कम संभव अवसर में मिल सकता है और ऐसे सभी मामलों में जहां मुद्दों का निपटारा इस तरह के समझौते पर या उससे पहले हो जाता है, अन्य पक्षों की आपत्तियों पर विचार करने के बाद, मुकदमे को किसी अन्य अदालत में हस्तांतरित करने के लिए आवेदन किया जाता है और जिस अदालत में आवेदन किया जाता है, वह यह निर्धारित करेगा कि वाद के अधिकार छेत्र वाले कई न्यायालयों में से कौन इस मामले के साथ आगे बढ़ेगा।

स्वत: हस्तांतरण 

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 24 के तहत, उच्च न्यायालय द्वारा किसी मुकदमे के हस्तांतरण, अपील या पुनरीक्षण (रिवीज़न) के मामले में अधिकार छेत्र का प्रयोग किया जाता है और जिला न्यायालय किसी भी पक्ष द्वारा प्रस्तुत किसी भी आवेदन से बाध्य नहीं होता है। उच्च न्यायालय और जिला न्यायालयों के न्यायाधीशों के पास स्वतः के मामले में विवेकाधीन शक्तियाँ हैं। सीपीसी की धारा 24 के तहत उच्च न्यायालय, मुकदमे के हस्तांतरण के लिए किसी भी पक्ष द्वारा प्राप्त आवेदन पर उसे को एक अदालत से दूसरे अदालत में हस्तांतरित कर सकता है।

धारा 24 किसी भी आधार को स्पष्ट रूप से नहीं बताता है जिसमें मामले को एक अदालत से दूसरे अदालत में हस्तांतरित किया जा सकता है, लेकिन कुछ सिद्धांत और आधार हैं जिनका एक अदालत से दूसरे अदालत में मामलों को हस्तांतरित करने के लिए पालन किया जाना है।

मामलों के हस्तांतरण के लिए तथ्यों और कानून को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

धारा 24 भी उच्च न्यायालय को एक अदालत से दूसरे अदालत में मामलों को हस्तांतरित करने का अधिकार देती है।

न्यायालय की शक्ति और कर्तव्य

सीपीसी की धारा 24 के तहत हस्तांतरित और वापसी की सामान्य शक्ति।

  1. किसी भी पक्ष का आवेदन प्राप्त होने पर और पक्षकारों को सूचना देने पर या फिर बिना किसी आवेदन के प्राप्त होने पर भी उच्च न्यायालय या जिला न्यायालय किसी भी स्तर पर चाहे परीक्षण, कार्यवाही या सुनवाई हो।  
  2. किसी भी सिविल मामले को चाहे वह लंबित हो या निर्णय लिया गया हो या वह विचारण के चरण में हो, अधीनस्थ न्यायालय में हस्तांतरित करना जो उस मामले से निपटने में सक्षम हो।
  3. जिला न्यायालय या उच्च न्यायालय के पास भी मामले को वापस लेने की शक्ति है, चाहे वह कार्यवाही के लिए लंबित हो, या परीक्षण के उद्देश्य से तय किया गया हो और इसे किसी भी अदालत में हस्तांतरित किया जा सकता है जो उसके अधीनस्थ है और उस मामले से निपटने में भी सक्षम है।
  4. जहां वाद या कार्यवाही को हस्तांतरित किया जाता है, अदालत उस बिंदु से कार्यवाही शुरू कर सकती है जहां इसे हस्तांतरित किया गया है या शुरुआत से शुरू कर सकती है।
  5. इस खंड के प्रयोजन के लिए, अतिरिक्त और सहायक न्यायाधीशों के न्यायालय जिला न्यायालय के अधीनस्थ होंगे।

अदालत का कर्तव्य- जब एक आवेदन पर एक मामले का हस्तांतरण किया जाता है, तो अदालत को निष्पक्षता पर विचार करते हुए न्यायिक रूप से कार्य करना चाहिए और न्याय की भावना से निर्देशित होना चाहिए न कि व्यक्तिपरकता से। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पीठासीन (प्रीसाइडिंग) अधिकारी के हाथों उसे न्याय नहीं मिलेगा।

टिप्पणी 

यदि पक्षकार यह दावा करता है कि न्यायालय का पीठासीन अधिकारी पक्षपाती है या पक्ष द्वारा पीठासीन अधिकारी के संबंध में उसपर कोई अन्य आरोप लगाया जाता है, तो अधिकारी को आरोप के कारण जानने के लिए बुलाया जाना चाहिए। लेकिन पीठासीन अधिकारी मामलों के फैसले के लिए कारण नहीं बता सकते।

सुनवाई के बाद हस्तांतरण के लिए आवेदन

यह सच है कि हस्तांतरण का आवेदन कार्यवाही के चरण के बावजूद सीमित आधार पर किया जा सकता है और न्यायालय के पास स्थानांतरण के संबंध में विवेकाधीन शक्ति है। लेकिन ऐसे मामले को हस्तांतरित करने के लिए एक वैध आधार होना चाहिए और अगर हस्तांतरित के पीछे दुर्भावनापूर्ण मंशा है तो अदालत ऐसे आवेदन को खारिज कर सकती है।

कारणों की रिकॉर्डिंग

मामलों को हस्तांतरित करने या वापस लेने के लिए एक उच्च अधिकारी को आवेदन जमा करने में, अदालत को धारा 24 सीपीसी के तहत एक कारण दर्ज करना चाहिए। यह कहा गया है कि अदालत को हमेशा आवेदन के कारण के साथ मामले का एक छोटा बयान दर्ज करना चाहिए।

हस्तांतरण के लिए आवेदन एवं उनके कारण को मुख्य मामले से अलग अभिलिखित (रिकॉर्ड) किया जाना चाहिए तथा ऐसे हस्तांतरण आवेदन का अभिलेख पृथक रूप से अभिलेख कक्ष में रखा जाना चाहिए। मूल आदेश को कार्यवाही अभिलेख में रखा जाना चाहिए तथा इसकी प्रति संबंधित न्यायालय को दी जानी चाहिए।

हस्तांतरण का प्रभाव

हस्तांतरण आदेश बनते ही प्रभावी हो जाता है। इसकी प्रभावशीलता अधीनस्थ न्यायालय को इसके हस्तांतरण पर निर्भर नहीं करेगी।

मुआवज़ा

यदि हस्तांतरण के लिए आवेदन खारिज कर दिया जाता है या यदि अदालत को लगता है कि हस्तांतरण एक अच्छे कारण के लिए नहीं किया गया है, तो अदालत विरोधी पक्ष को मुआवजा देने के लिए कह सकती है, लेकिन यह 2000 रुपये से अधिक नहीं होगा।

अपील

धारा 96 परिभाषित करती है कि मूल अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में किसी भी अदालत द्वारा पारित प्रत्येक डिक्री से अदालत में अपील की जाएगी और अदालत के पास ऐसी अदालतों के फैसले से अपील सुनने का अधिकार है।

किसी भी ऐसे अपील की अनुमति नहीं है जहां अदालत ने पक्षों की सहमति से एक डिक्री पारित की हो।

यदि मूल मामले की कुल कीमत 10000 रपये से अधिक नहीं है तो कोई अपील नहीं होगी। समझौते को चुनौती देने वाली पक्ष धारा 96(1) और 96(3) के तहत अपील दायर कर सकती है। धोखाधड़ी, गलत बयानी आदि के आधार पर एक डिक्री को चुनौती दी जा सकती है।

मूल डिक्री की अपील, एक पक्षीय होने पर की जा सकती है।

संशोधन

सीपीसी की धारा 115 – उच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न्यायालय द्वारा तय किए गए किसी भी मामले के लिए पुनरीक्षण की मांग कर सकता है यदि ऐसा अधीनस्थ न्यायालय ने

  1. क़ानून से परे अपनी शक्ति का प्रयोग किया है।
  2. क़ानून में बताए गए अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं किया है।
  3. जब अधीनस्थ न्यायालय अवैध रूप से अधिकार छेत्र का प्रयोग करते हैं।

मामले जहां हस्तांतरण की अनुमति है

एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में मामलों के हस्तांतरण की अनुमति तब दी जाती है जब:-

  1. पक्षकार के मन में वाजिब धमकी है कि जिस अदालत में मामला लंबित है, वहां उसे न्याय नहीं मिलेगा।
  2. सुविधा का संतुलन।
  3. जब दो व्यक्तियों ने एक ही वाद के लिए, पर विभिन्न न्यायालयों में एक दूसरे के विरूद्ध वाद दायर किया हो।
  4. जहां अलग-अलग अदालतों में मुकदमे लंबित हैं लेकिन तथ्यों और कानून का समान प्रश्न उठता है।
  5. जहां न्यायाधीश पक्षपात और भेदभाव कर रहा है।

मामले जहां हस्तांतरण की अनुमति नहीं है

  1. जहां आवेदक के लिए मात्र सुविधा का संतुलन हो।
  2. जहां न्यायाधीश मामले के फैसले के बारे में पहले से ही राय दे देते हैं।
  3. जहां गलत आदेश के केवल तथ्य होते हैं।
  4. जहां दावा किया गया हो कि विरोधी पक्ष इलाके का प्रभावशाली व्यक्ति है।
  5. जहां दावा किया जाता है कि न्यायालय आवेदक के निवास स्थान से काफी दूरी पर स्थित है।

निष्कर्ष

हस्तांतरण की शक्ति का प्रयोग उचित सावधानी और ध्यान से और न्याय के हित में किया जाना चाहिए। अदालत को परस्पर विरोधी हित तय करना चाहिए। सर्वोपरि विचार न्याय है और यदि न्याय का उद्देश्य मामले को हस्तांतरण करने की मांग करता है तो अदालत संकोच नहीं करेगी। लेकिन कुछ सीमाएं हैं जहां मामलों का हस्तांतरण किया जा सकता है या ऐसे उदाहरण जिनके तहत यह किया जा सकता है या नहीं किया जा सकता है, वहां असुविधा और जटिलता हो सकती है। इसलिए मामलों के हस्तांतरण के लिए प्रासंगिक कारकों पर विचार किया जाना है।

 

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