कॉन्ट्रेक्ट कानून के तहत नीलामी का अर्थ

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Contract Law
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यह लेख पी.ई.एस. यूनिवर्सिटी की Rhea M B ने लिखा है। इस लेख में लेखक नीलामी (ऑक्शन) के विभिन्न पहलुओं को संबोधित (रेफर) करते हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है। 

परिचय (इंट्रोडक्शन)

नीलामी की शुरुआत 500 ​​ईसा पूर्व में हुई थी, जब इसे पहली बार रोमन साम्राज्य में देखा गया था। वर्ष 1595 में, आधुनिक (मॉडर्न) समय में नीलामी के प्रारंभिक रिकॉर्ड ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में दर्ज किए गए थे (यहां देखें)। नीलामी को सम्पदा (एसेट्स) को समाप्त करने के एक तरीके के रूप में देखा गया था। हाल के दिनों में, यह काफी लोकप्रिय हो गया है और पिछले कुछ वर्षों में बदल गया है और विकसित भी हुआ है। भारत में, सेल ऑफ़ गुड्स एक्ट, 1930 की धारा 64, इसके नियमों से संबंधित है और नीलामी में होने वाली प्रक्रिया को निर्धारित करती है। चल संपत्ति का क्षेत्र, सेल ऑफ़ गुड्स एक्ट, 1930 के तहत और अचल संपत्ति का संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम (ट्रांसफर ऑफ़ प्रॉपर्टी एक्ट), 1882 के तहत देखा जाता है। नीलामी बिक्री, एक ऐसी बिक्री है जो सार्वजनिक होती है जहां इच्छुक खरीदार सामान के लिए बोली लगा सकते हैं। सामान उच्चतम बोली लगाने वाले को बेचा जाता है (इच्छुक खरीदारों द्वारा दी जाने वाली कीमत को बोली कहा जाता है)। आम तौर पर नीलामी में चार पक्ष मौजूद होते हैं: नीलामीकर्ता (ऑक्शनर), बोली लगाने वाले (बिडर), विक्रेता (सेलर) और खरीदार। इस लेख में नीलामी के विभिन्न पहलुओं को संबोधित किया गया है।

नीलामी के प्रकार

विभिन्न प्रकार की नीलामी होती है। सबसे पहले, लाइव नीलामी जो साइट पर होती है जहां संभावित (प्रोस्पेक्टिव) खरीदारों को दिए गए सामान के विवरण (डीटेल्स) के साथ वस्तुओं के बारे में सूचित किया जाता है, नीलामीकर्ता बोली के लिए कॉल करता है और आवश्यक शर्तों को पूरा करने के बाद उच्चतम बोली लगाने वाले को सामान बेच देता है। दूसरा, ऑनलाइन नीलामी जो वस्तुतः एक निश्चित समय पर होती है या कभी-कभी यह वेबसाइट के आधार पर शिथिल (रिलैक्स) और लचीली (फ्लेक्सिबल) होती है। यहां, बोली लगाने वाले बोली लगाते हैं और सबसे अधिक बोली लगाने वाले को सामान मिलता है। तीसरा, सीलबंद बोली नीलामी वह है, जहां विभिन्न बोली लगाने वाले, नीलामीकर्ता को सीलबंद बोलियां जमा करते हैं और इसलिए किसी भी बोली लगाने वाले को यह नहीं पता होता है कि एक दूसरे ने बोली लगाई है।

नीलामी बिक्री के नियम

कुछ नियम हैं जिनका नीलामी बिक्री में पालन करने की आवश्यकता है और वे नीलामी के प्रकार के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। भारत में, सेल ऑफ़ गुड्स एक्ट, 1930 की धारा 64, नीलामी बिक्री से संबंधित है और कुछ नियमों को निर्धारित करती है जिनका नीलामी बिक्री के दौरान पालन किया जाना आवश्यक है। जब माल को लॉट में रखा जाता है, तो प्रत्येक आइटम को अलग से माना जाता है और प्रत्येक व्यक्तिगत आइटम के लिए बिक्री का एक अलग अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट) होता है।

नीलामीकर्ता द्वारा हथौड़े को बजाने के बाद और बिक्री पूरी होने की घोषणा करके ही बिक्री पूरी होती है, तब तक खरीदार के पास रद्द करने का मौका होता है। विक्रेता स्पष्ट रूप से बोली लगाने का अधिकार सुरक्षित रख सकता है और किसी भी व्यक्ति को उसकी ओर से बोली लगाने के लिए कह सकता है। हालांकि, अगर विक्रेता बोली लगाने के अपने अधिकार को स्पष्ट रूप से सूचित करने में विफल रहता है, तो वह न तो नीलामी में बोली लगा सकता है और न ही उसकी ओर से नीलामी में बोली लगाने के लिए किसी को भी नियुक्त (अपॉइंट) कर सकता है। इस नियम का खंडन (कॉन्ट्रेडिक्ट) करने वाली किसी भी बिक्री को धोखाधड़ी के रूप में माना जा सकता है। इसके अलावा, यदि कोई आरक्षित मूल्य (रिजर्व प्राइस) निर्धारित है, तो बोली आरक्षित मूल्य से ऊपर की होनी चाहिए।

यदि बोली आरक्षित से कम है तो बिक्री का कोई अनुबंध नहीं है। इसके अलावा, यदि विक्रेता या उसकी ओर से काम करने वाला कोई व्यक्ति जानबूझकर कीमत बढ़ाता है, तो अन्य संभावित खरीदारों से उच्च बोली प्राप्त करने के लिए यह खरीदार की तरफ से पर शून्य (वायडेबल) है।

नीलामी अनुबंध (ऑक्शन कॉन्ट्रेक्ट)

एक नीलामी में, विक्रेता और खरीदार दोनों होते हैं और यह सामान्य बिक्री से अलग होता है क्योंकि उस वस्तु या संपत्ति के लिए कई खरीदार बोली लगाते हैं। ये खरीदार आपस में प्रतिस्पर्धा (कॉम्पटिशन) करते हैं और अन्य खरीदारों को पछाड़ने की कोशिश करते हैं और जो सबसे अधिक बोली लगाने वाला होता है उसे संपत्ति या सामान का हिस्सा मिल जाता है।

एक अनुबंध का गठन (कांस्टीट्यूट) करने के लिए प्रस्ताव (ऑफर), स्वीकृति और प्रतिफल (कंसीडरेशन) के सामान्य सिद्धांत (प्रिंसिपल्स) लागू होते हैं। बड़े पैमाने पर जनता के लिए एक प्रस्ताव होता है और इच्छुक पक्ष बोली लगाने के लिए स्वतंत्र होती हैं। नीलामी में स्वीकृति को हथौड़े के बजने से दर्शाया जाता है। यदि अधिक बोली लगाई गई है तो विक्रेता माल या संपत्ति देने से इंकार नहीं कर सकता है और एक बार स्वीकृति मिलने के बाद खरीदार अपनी बात से बदल नहीं सकता है। नीलामी में एक बाध्यकारी अनुबंध (बाइंडिंग कॉन्ट्रेक्ट) बनाया जाता है।

एक अनुबंध के वैध होने के आवश्यक तत्वों को, भारतीय अनुबंध अधिनियम (इंडियन कॉन्ट्रेक्ट एक्ट), 1872 के तहत बताया गया है। भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 10 के अनुसार, प्रस्ताव, स्वीकृति और प्रतिफल होना चाहिए, पक्षों को वयस्क (मेजर) होना चाहिए और स्वस्थ दिमाग का होना चाहिए, वस्तु वैध होनी चाहिए और स्पष्ट रूप से शून्य घोषित नहीं की जानी चाहिए और सेल ऑफ़ गुड्स एक्ट के प्रावधानों (प्रोविजंस) के अनुसार, इस मामले में एक विक्रेता और खरीदार कम से कम दो पक्ष होने चाहिए। इन वस्तुओं की बिक्री के लिए शर्तों के प्रदर्शन और प्रतिफल के साथ बिक्री के लिए एक समझौता होना चाहिए और यह चल संपत्ति पर लागू होता है।

नीलामी अनुबंध के प्रकार

नीलामी में आम तौर पर विक्रेता, खरीदार, नीलामकर्ता और संभावित बोली लगाने वाले शामिल होते हैं। नीलामी अनुबंध तीन प्रकार के होते हैं: “खेप अनुबंध (कन्साइनमेंट कॉन्ट्रेक्ट)”, “पंजीकरण अनुबंध (रजिस्ट्रेशन कॉन्ट्रेक्ट)”, और “बोली बुलाने का अनुबंध”।

  • बोली बुलाने का अनुबंध विक्रेता और खरीदार के बीच होता है। इस अनुबंध में आइटम को उच्चतम बोली लगाने वाले को बेचा जाता है और हथौड़े के बजाने से यह स्पष्ट होता है जो स्वीकृति को इंगित (इंडिकेट) करता है और यह विक्रेता और खरीदार के बीच एक बाध्यकारी अनुबंध है।
  • एक खेप अनुबंध विक्रेता और नीलामीकर्ता के बीच एक अनुबंध है। यह अनुबंध प्रदान की गई या दी गई सेवाओं से संबंधित है जिसमें विज्ञापन (एडवरटाइजमेंट), व्यवस्था, बोली बुलाना आदि शामिल हैं। इसमें विक्रेता द्वारा संपत्ति को बेचने की अनुमति देने का वादा भी शामिल है, आदि।
  • पंजीकरण अनुबंध नीलामीकर्ता और संभावित बोली लगाने वालो के बीच होता है, यह लिखित और मौखिक दोनों हो सकता है। यह बोलीदाताओं की भागीदारी, नियमों और शर्तों का पालन करने के लिए समझौता, जमा, और बहुत कुछ है, अगर वे खरीदार बन जाते हैं।

नीलामीकर्ता की भूमिका (रोल)

यह भाग उन कर्तव्यों (ड्यूटीज) और देनदारियों (लायबिलिटीज़) को संबोधित करता है जो नीलामीकर्ता को नियंत्रित (कंट्रोल) करते हैं और वह एक एजेंट के रूप में भूमिका निभाता है।

एक एजेंट के रूप में नीलामकर्ता

एक नीलामकर्ता को विक्रेता का एजेंट माना जा सकता है; इसलिए विक्रेता एजेंट का प्रमुख (प्रिंसिपल) बन जाता है। उसे विक्रेता की इच्छा के अनुसार कार्य करना चाहिए और प्रमुख के हित को ध्यान में रखते हुए सद्भावपूर्वक (गुड फेथ) कार्य करना चाहिए।

अनुबंध जो दायरे (स्कोप) से बाहर है उनके लिए नीलामकर्ता का प्राधिकार (अथॉरिटी) बाध्यकारी नहीं है। एक एजेंट के रूप में एक नीलामीकर्ता का अधिकार समाप्त हो जाता है जब बिक्री पूरी हो जाती है और खरीदार लागत का भुगतान करता है और राशि एकत्र की जाती है, और एक बार जब नीलामी समाप्त हो जाती है, तो किसी भी तरह से बिक्री के अनुबंध को बिना किसी विशेष अधिकार के बदला नहीं जा सकता है।

नीलामकर्ता का कर्तव्य

नीलामकर्ता के कंधों पर कुछ कर्तव्य होते हैं; उसे बिक्री से पहले सभी नियमों और शर्तों, विवरण और माल की गुणवत्ता (क्वालिटी) का उल्लेख करना होगा। यदि कोई लागू क़ानून नहीं है तो एजेंसी के कानून नीलामीकर्ता के अधिकारों को नियंत्रित करते हैं। नीलामकर्ता को सद्भावपूर्वक और विक्रेता के हित में कार्य करना चाहिए।

एक नीलामीकर्ता की देयताएं (लायबिलिटीज)

नीलामकर्ता की देयताएं तब बढ़ जाती है जब विक्रेता को, अपने कर्तव्य के अनुसार प्रदर्शन न करने या विक्रेता द्वारा निर्धारित निर्देशों का पालन करने में विफल होने पर नुकसान होता है। यदि धोखाधड़ी, माल की डिलीवरी में विफलता आदि की स्थिति होती है तो नीलामीकर्ता को खरीदार के प्रति उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। 

एक नीलामीकर्ता को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है यदि वह उस व्यक्ति की ओर से संपत्ति बेचता है जिसके पास इसका स्वामित्व (ओनरशिप) नहीं है, भले ही इसमें सद्भावना सही मालिक के प्रति उत्तरदायी है और जिसने भी उसके साथ अन्याय किया है, वह उसके खिलाफ मुकदमा शुरू करके नुकसान का दावा कर सकता है।

यदि नीलामकर्ता प्रधान की जानकारी के बिना बिक्री से गुप्त रूप से लाभ उठाता है तो उसे उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

ऑनलाइन नीलामी

तकनीकों के विकास और डिजिटल दुनिया में बढ़ते विकास के साथ, ऐसे कई ई-अनुबंध और लेनदेन हैं जो कानून के अंदर आते हैं। जब लोगों की सुविधा की बात आती है तो ऑनलाइन नीलामी को प्राथमिकता (प्रेफररेंस) दी जाती है। यह खरीदारों को, उस कीमत पर विकल्पों में से चुनने में मदद करता है, जिस पर वे बोली लगाने में सहज होते हैं।

ऑनलाइन नीलामियां नेट पर होती हैं, जो प्रभावी, त्वरित (क्विक) और विक्रेता की वांछित (डिजायर) दर को हासिल किया जा सकत है क्योंकि यह आभासी (वर्चुअल) दुनिया में होता है। यह विक्रेता की पसंद होती है की वह किसे बेचना चाहता है और वह राशि प्राप्त करता है जिससे वह संतुष्ट हो।

ऑनलाइन नीलामी, कानूनी अनुबंध हैं और बाध्यकारी हैं। यह बड़े पैमाने पर जनता के लिए एक खुला निमंत्रण है और इच्छुक संभावित खरीदार बोली लगा सकते हैं और प्रस्ताव दे सकते हैं, यह नीलामीकर्ता पर निर्भर है कि वह प्रस्ताव को स्वीकार करे या अस्वीकार करे। एक बार स्वीकृति मिलने के बाद यह एक समझौता बन जाता है जहां खरीदार माल के बदले में प्रतिफल राशि का भुगतान करता है। ये ई-अनुबंध हैं और सॉफ्टवेयर द्वारा निष्पादित (एक्जीक्यूट) किए जाते हैं और यदि सभी तत्व संतुष्ट होते हैं तो यह एक वैध अनुबंध बन जाता है। 

ऑनलाइन नीलामी चलाने के लिए कुछ आवश्यकताएं हैं, इसके लिए सभी खरीदारों और विक्रेताओं को बोली लगाने वाली वेबसाइट पर पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) करना आवश्यक है। विक्रेताओं को बिक्री के लिए वस्तुओं को सूचीबद्ध (लिस्ट) करना होता है और बोली लगाने की प्रक्रिया के लिए एक समय निर्धारित किया जाता है और इच्छुक बोलीदाता अपनी आई.डी. के साथ लॉग इन कर सकते हैं। यदि आरक्षित के ऊपर बोली सफल होती है तो खरीदार और विक्रेता माल के भुगतान और वितरण के बारे में संवाद करते हैं।

साथ ही, ऑनलाइन नीलामी और बोली-प्रक्रिया (बिडिंग प्रोसेस), धोखाधड़ी और अन्य जोखिमों के खतरे में हो सकती है। इसलिए, इन परिस्थितियों से बचने के लिए विस्तृत (डिटेल) पृष्ठभूमि (बैकग्राउंड) की जांच की जानी चाहिए।

एक नीलामी को खराब करने वाले कारक (फैक्टर्स)

ऑनलाइन धोखाधड़ी

धोखाधड़ी के सबसे आसान प्रकार हैं जहां खरीदार ऑनलाइन नीलामी साइट पर आइटम के लिए भुगतान करता है लेकिन इच्छित सामान की डिलीवरी प्राप्त नहीं करता है।

दूसरा मौका योजना (सेकेंड चांस स्कीम), जहां हारने वाले बोलिदाता को मौका दिया जाता है, उच्चतम बोली लगाने वाले को पैसे भेजने के लिए बोला जाता है लेकिन उसे माल कभी प्राप्त नहीं होता है।

ट्राइएंगुलेशन वह है जहां उच्च मूल्य का उत्पाद काफी कम कीमत पर सूचीबद्ध होता है, जबकि मूल उत्पाद चोरी हुए क्रेडिट कार्ड का उपयोग करके किसी अन्य वेबसाइट से खरीदा जाता है और खरीदार को भेजा जाता है जिसने उत्पाद को अपेक्षाकृत (रिलेटिवली) कम मूल्य पर खरीदा है।

अवैध वस्तुओं या उत्पादों को निर्दोष खरीदारों को ऑनलाइन बेचा जाता है; कभी-कभी ये उत्पाद नकली होते हैं जहां खरीदारों को कोई वारंटी नहीं होती है, और भारतीय अनुबंध अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, यदि वस्तु और प्रतिफल राशि गैरकानूनी है तो अनुबंध शून्य है।

नकली उत्पादों की अक्सर ऑनलाइन नीलामी की जाती है और दुर्भाग्य से खरीदार इन गतिविधियों का शिकार हो जाते हैं और बहुत सारा पैसा खो देते हैं। यह समझा जा सकता है कि ट्रेडमार्क के मालिक की जानकारी के बिना यह सामान ट्रेडमार्क धारण करते हैं।

कभी-कभी झूठी एस्क्रो साइटे बन जाती है जो मूल साइट के समान होती है और खरीदार द्वारा इस साइट पर पैसा भेजा जाता है, विक्रेता अनजान होता है और खरीदार माल को पुनर्जीवित (रिवाईव) नहीं करता है।

यह देखा गया है कि चोरी के उत्पादों को इन साइटों पर बेचा जाता है और ये उत्पाद अवैध हैं इसलिए अनुबंध शून्य है।

मिसरिप्रेजेंटेशन

हार्सटन डेवलपमेंट बनाम ब्लेकेन के मामले में, डेवलपर ने नीलामी में साइट खरीदी थी। नीलामी के दौरान विक्रेताओं ने संपत्ति के बारे में कई तरह की टिप्पणियां (रिमार्क) कीं, जिसे अदालत ने गलत बयानी माना था। अदालत ने विक्रेताओं को नुकसान के लिए भुगतान करने का आदेश दिया और उन्हें खरीदारों से संपत्ति वापस खरीदनी पड़ी।

विक्रेता ने नीलामी के दौरान बयान दिए थे, वे बयान असत्य थे और इसके परिणामस्वरूप खरीदार को नुकसान हुआ और इसलिए नुकसान का दावा किया गया था। 

नीलामी में अभ्यास (प्रैक्टिसेज)

नॉकआउट समझौता (अग्रीमेंट)

यह खरीदारों के बीच एक समझौता है कि उनमें से केवल एक ही बोली लगाएगा और यह उनके बीच प्रतिस्पर्धा को रोकता है। एक बार नीलामी समाप्त हो जाने के बाद वे प्राप्त लाभ को साझा करेंगे। यह अवैध है अगर यह दूसरे को धोखा देने के इरादे से किया जाता है।

डंपिंग

इस टीके में संभावित खरीदारों को बोली लगाने से हतोत्साहित (डिस्करेज) करना शामिल है, ताकि वे सामान को डिफॉल्ट करके उसकी खरीदारी न करें, ताकि संभावित खरीदार उसमे भाग न लें। इस प्रकार यह सुनिश्चित करता है कि कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है जो अनुचित है।

एक नीलामी में निहित (इंप्लाइड) शर्तें और वारंटी

नीलामी बिक्री के लिए निहित शर्तें लागू नहीं होती हैं। नीलामकर्ता वारंट करता है कि उसके पास बिक्री करने का अधिकार है; वह अपने प्रमुख के शीर्षक के दोषों के लिए भी उत्तरदायी नहीं है, साथ ही नीलामीकर्ता द्वारा खरीदार द्वारा भुगतान की गई कीमत के खिलाफ माल का कब्जा जरूरी है। 

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

नीलामी के कई कानूनी निहितार्थ (इंप्लीकेशंस) हैं, खासकर अनुबंध कानून के तहत। यह एक बढ़िया तरीका है जो लचीला है जहां इच्छुक खरीदार खुद के खिलाफ प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। तकनीको की प्रगति के साथ ऐसे दिन अब जा चुके हैं जब हमें नीलामी के घरों को देखने जाना पड़ता था। हम इसे अपने घर पर आराम से कर सकते हैं। यह लेख ऑनलाइन नीलामी से निपटने में शामिल पेचीदगियों (इंट्रिकेसी) और उसके दुष्प्रभावों को समझने का प्रयास करता है; इसलिए यह उपभोक्ताओं को इससे बचाने के लिए कड़े नियमों और विनियमों की मांग करता है। इसलिए, नीलामी बिक्री में अनुबंध कानून बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

एक नीलामी बिक्री वह जगह है जहां इच्छुक और संभावित खरीदार किसी वस्तु के लिए बोली लगाते हैं जिसमें वे रुचि रखते हैं और उच्चतम बोली लगाने वाले को उत्पाद मिलता है, यह औपचारिक (फॉर्मल) रूप से हथौड़ा मारने के साथ समाप्त होता है जिसका अर्थ प्रस्ताव की स्वीकृति होता है। विभिन्न प्रकार की नीलामी होती है जैसे, लाइव, ऑनलाइन, सीलबंद-बोली नीलामियां आदि। सेल ऑफ़ गुड्स एक्ट, 1930 की धारा 64 के तहत नियमों, प्रक्रिया, विक्रेता के अधिकारों और एक वैध बिक्री के गठन से संबंधित है।

एक नीलामकर्ता विक्रेता का एजेंट होता है और वह अच्छी नियत के साथ कार्य करता है। उसे प्रधान या विक्रेता की जानकारी के बिना कपटपूर्ण (फ्रॉडुलेंट) गतिविधियों में लिप्त (इंडल्ज) नहीं होना चाहिए, या विशेष लाभ प्राप्त नहीं करना चाहिए। साथ ही, यदि कोई लागू क़ानून नहीं है, तो एजेंसी के कानून शासित होते हैं।

ऑनलाइन नीलामी सौदा करने के लिए अधिक बेहतर तरीका है क्योंकि यह आसान और लचीला है जो कि शर्तों के प्रकार पर निर्भर करता है जिसे पूरा करने की आवश्यकता होती है। ऑनलाइन नीलामी समझौते बाध्यकारी हैं और एक वैध अनुबंध के लिए शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए। इसके साथ ही, विभिन्न प्रकार की धोखाधड़ी होती है जिससे खरीदार को सावधान रहना चाहिए। धोखाधड़ी वाले लेनदेन में शामिल होने की स्थिति में वे कानून प्रवर्तन (एनफोर्कमेंट) एजेंटों की मदद ले सकते हैं। अनुबंध के कानून के तहत अवैध वस्तुओं को शून्य घोषित किया जाता है। नीलामी में अभ्यास जैसे डैंपिंग और दिखावा बोली करना खरीदार के अनुरोध (रिक्वेस्ट) पर शून्य करने योग्य हैं।

यह एक वर्ग तक सीमित नहीं होना चाहिए और तकनीकों में वृद्धि, नए संस्थानों के आगमन और माल और संपत्ति बेचने के लिए इस तरीके के उपयोग में वृद्धि के साथ नीलामी के क्षेत्र में कानूनों और विनियमों को विकसित करने की आवश्यकता है।

बिब्लियोग्राफी और संदर्भ (रेफरेंस)

  • Harsten Developments v Bleaken,[2012] EWHC 2704 (Ch) M5.5.4

 

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