आईपीसी की धारा 324

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Indian penal Code

यह लेख एमिटी लॉ स्कूल, कोलकाता की छात्रा Shristi Roongta द्वारा लिखा गया है। यह लेख मुख्य रूप से भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत प्रदान की जाने वाली सजा पर चर्चा करता है, साथ ही अन्य प्रासंगिक विवरण जैसे कि अपराध की प्रकृति, धारा 324 के अपवाद और प्रासंगिक केस कानूनों के बारे में भी बात करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है। 

Table of Contents

परिचय

सामान्य शब्दों में, किसी को शारीरिक चोट पहुँचाना चोट कहलाता है। भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) के तहत, चोट को धारा 319 में परिभाषित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि जो कोई भी किसी व्यक्ति को शारीरिक दर्द, बीमारी या दुर्बलता का कारण बनता है उसे चोट कहते है। चोट के विभिन्न पहलुओं को धारा 319 से धारा 338 में शामिल किया गया है। ऐसा ही एक पहलू आईपीसी की धारा 324 के तहत आता है। यह खतरनाक हथियारों या साधनों द्वारा स्वेच्छा से चोट पहुँचाने से संबंधित है। प्रासंगिक कानूनों के तहत हर अपराध के लिए, विशेष रूप से आपराधिक अपराधों के लिए आईपीसी में दंड प्रदान किए जाते हैं, और आईपीसी की धारा 324 के कोई अपवाद (एक्सेप्शन) नहीं है। इस लेख में, धारा 324 के तहत सजा पर चर्चा की जाएगी और भारत भर के विभिन्न न्यायालयों द्वारा पारित विभिन्न निर्णयों के माध्यम से अन्य प्रासंगिक विवरण प्रदान किए जाएंगे।

आईपीसी की धारा 324 के तहत अपराध

आईपीसी की धारा 324 में कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति किसी खतरनाक हथियार या साधन के इस्तेमाल से स्वेच्छा से चोट पहुंचाता है, तो यह कार्य खतरनाक हथियारों या साधनों से स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के दायरे में आता है। धारा आगे बताती है कि स्वैच्छिक चोट इसके कारण होती है: 

  • निशानेबाज़ी, छुरा या काटने के लिए कोई उपकरण (इंस्ट्रूमेंट); या 
  • अपराध के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया कोई भी उपकरण जिससे मृत्यु होने की संभावना हो; या 
  • आग या कोई गर्म पदार्थ; या 
  • किसी भी प्रकार का जहर; या 
  • कोई संक्षारक (कोरोसिव) पदार्थ; या 
  • कोई विस्फोटक पदार्थ; या 
  • कोई भी पदार्थ जो मानव शरीर को सांस लेने, निगलने या रक्त में प्राप्त करने के लिए हानिकारक है; या 
  • कोई जानवर।

धारा 324 आईपीसी के तहत एक अपराध की अनिवार्यता

  1. स्वेच्छा से चोट पहुँचाना, 
  2. खतरनाक हथियारों या साधनों के उपयोग से, और
  3. कार्य जो शारीरिक दर्द, बीमारी या दुर्बलता का कारण होना चाहिए।

धारा 324 के अपवाद

आईपीसी की धारा 334 आईपीसी की धारा 324 का अपवाद है। धारा 324 में, हम देखते हैं कि अगर किसी को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा खतरनाक हथियार या साधनों से स्वेच्छा से चोट पहुंचाई जाती है, तो चोट लगने वाले व्यक्ति को धारा 334 के प्रावधान से बचाया जाएगा, यानी स्वेच्छा से उकसावे पर चोट पहुंचाना। धारा के अनुसार, यदि कोई गंभीर और अचानक उकसावे पर स्वेच्छा से चोट पहुंचाता है और उसे उकसाने वाले व्यक्ति को इस कार्य का इरादा और ज्ञान है, तो ऐसा अपराध करने वाले व्यक्ति को कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि 1 महीने की कारावास या जुर्माना जो 500 रुपये तक हो सकता है। यहाँ एक महत्वपूर्ण तत्व यह है कि चोट पहुँचाने वाले व्यक्ति को अपने कार्य का ज्ञान या इरादा नहीं है।

धारा 324 की अनिवार्यता

  1. स्वेच्छा से चोट पहुँचाना 
  2. किसी और द्वारा गंभीर और अचानक उत्तेजना
  3. कार्य का कोई इरादा और ज्ञान नहीं 

इस धारा के तहत अपराध समाशोधनीय (कंपाउंडेबल) है।

आईपीसी की धारा 324 के तहत सजा

आईपीसी की धारा 324 के तहत किए गए अपराध के लिए, आरोपी को कारावास की सजा दी जाती है, जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना दिया जा सकता है या दोनों।

आईपीसी की धारा 324 के तहत अपराध की प्रकृति

इस धारा के तहत किया गया अपराध निम्नलिखित प्रकृति का है:

संज्ञेय

संज्ञेय अपराध वे अपराध हैं जिनमें एक पुलिस अधिकारी बिना वारंट या अदालत की पूर्व अनुमति के गिरफ्तारी कर सकता है। इसलिए, इस धारा के तहत किए गए किसी भी अपराध के लिए एक पुलिस अधिकारी अपराधी को बिना किसी वारंट या अदालत की अनुमति के गिरफ्तार कर सकता है। उदाहरण- हत्या, बलात्कार या दहेज हत्या। इन मामलों में, एक पुलिस अधिकारी उस व्यक्ति को बिना वारंट या अदालत की पूर्व अनुमति के गिरफ्तार कर सकता है जो ऐसा अपराध कर रहा है। 

गैर-जमानती

गैर-जमानती अपराध वे हैं जिनमें अभियुक्त को जमानत नहीं दी जाती है। यह गंभीर अपराधों के मामलों में होता है। उदाहरण – हत्या या बलात्कार। इसलिए, किसी भी खतरनाक हथियार या साधन के उपयोग से स्वेच्छा से चोट पहुंचाने वाले व्यक्ति को गैर-जमानती अपराध के तहत गिरफ्तार किया जाएगा। 

अशमनीय (नॉन-कंपाउंडेबल)

अशमनीय अपराधों में, पीड़ित द्वारा समझौता नहीं किया जा सकता है या आरोपी के खिलाफ आरोप नहीं हटाए जा सकते हैं क्योंकि अपराध गंभीर प्रकृति का है। चूंकि इस धारा के तहत अपराध गंभीर प्रकृति के हैं, इसलिए, यह एक अशमनीय अपराध है। उदाहरण- खतरनाक हथियारों या साधनों से स्वेच्छा से चोट पहुँचाने के मामलों में या किसी व्यक्ति को तीन दिन या उससे अधिक समय तक गलत तरीके से कैद रखने के मामलों में। 

किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा मुकदमा चलाया जा सकता है

इस धारा के तहत मामलों की सुनवाई मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है। एक मजिस्ट्रेट दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 190 के तहत या तो शिकायत प्राप्त होने पर या पुलिस की रिपोर्ट पर या पुलिस के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से सूचना प्राप्त करने पर कि ऐसा अपराध किया गया है, अपराध की सुनवाई कर सकता है।

शमनीय या अशमनीय अपराध

भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत किया गया अपराध एक अशमनीय अपराध है। सबसे पहले, समझते हैं कि एक शमनीय अपराध क्या है। आईपीसी के तहत, एक शमनीय अपराध एक ऐसा अपराध है जिसमें एक व्यक्ति, यानी पीड़ित जिसने मामला दायर किया है, अभियुक्त के खिलाफ आरोपों को खारिज करने की अनुमति देकर समझौता करने के लिए सहमत होता है। हालाँकि, यह समझौता वास्तविक होना चाहिए और विचार के लिए सहमत नहीं होना चाहिए। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 320 में अपराधों के प्रशमन (कंपाउंडिंग) का वर्णन है। 

अब, एक अशमनीय अपराध एक ऐसा अपराध है जिसमें समझौता नहीं किया जा सकता है। शमनीय अपराधों में किए गए समझौते कम गंभीर प्रकृति के होते हैं, हालांकि, अशमनीय अपराध गंभीर होते हैं। इसलिए, अशमनीय अपराधों में, पीड़ित अभियुक्त के विरुद्ध आरोपों को वापस नहीं ले सकता है। अशमनीय अपराधों में, राज्य, यानी पुलिस शिकायत करती है। 

निम्नलिखित मामलों के कानूनों में, अदालतों ने वर्णन किया है कि कब एक अपराध को शमनीय माना जा सकता है और कब नही।

मथुरा सिंह और अन्य बनाम यूपी राज्य (2009)

यह मामला मूल रूप से धारा का ऐतिहासिक विवरण देता है। कैसे यह धारा शमनीय से अशमनीय बन गई। इस मामले का फैसला 27 अप्रैल, 2009 को हुआ था। हालांकि, उस तारीख तक, 2005 की दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम अधिसूचना द्वारा लागू नहीं किया गया था। इसलिए, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि आईपीसी की धारा 324 के तहत किया गया अपराध इस मामले में न्यायालय की अनुमति से शमनीय होगा। जब 31 दिसंबर, 2009 को अधिसूचना प्रकाशित हुई, तो आईपीसी की धारा 324 के तहत अपराध अशमनीय हो गया। इसलिए, कथित संशोधन के अस्तित्व में आने से पहले, आईपीसी की धारा 324 के तहत अपराध न्यायालय की अनुमति से शमन योग्य था, और यह एक अशमनीय अपराध नहीं था। हालाँकि, जब संशोधन अस्तित्व में आया, तो इसने धारा के दृष्टिकोण को बदल दिया। चूंकि इस धारा के तहत अपराध एक गंभीर प्रकृति का है, इसलिए इसे अशमनीय बनाया गया है।

हीराभाई झावेरभाई बनाम गुजरात राज्य (2010)

इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ द्वारा पारित फैसले के खिलाफ की गई अपील को स्वीकार कर लिया। एकल न्यायाधीश की खंडपीठ ने अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत दोषी ठहराया और 250/- रुपये का जुर्माना और छह माह के कारावास का सज़ा सुनायी। गुजरात उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ द्वारा आईपीसी की धारा 324 के तहत दंडनीय अपराध को कम करने के लिए अदालत से अनुमति मांगने के लिए खारिज किए गए आवेदन के खिलाफ भी अपील की गई थी। 

सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि, 23 जून, 2006 तक, जब दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 का संशोधन, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में किया गया था, को लागू किया गया था, धारा 324 के तहत अपराध को अशमनीय बनाया गया था। हालाँकि, इस मामले में, संशोधन लागू होने से पहले, यानी 23 जुलाई, 1986 को अपराध किया गया था। इसलिए, न्यायालय ने माना कि इस धारा के तहत अपराध समझौता योग्य था क्योंकि संशोधन के प्रावधान मामले के तथ्यों पर लागू नहीं थे।

सुंदरराजन बनाम राज्य, पुलिस निरीक्षक के माध्यम से (2015)

इस मामले में, एक मुद्दा उठाया गया था कि जो अपराध न्यायालय के समक्ष साबित हो गया है, वह फैसले की तारीख पर अशमनीय था, क्या दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 के लागू होने के बाद आईपीसी की धारा 324 के संबंध में अपराध के प्रशमन की अनुमति दी जा सकती है? 

मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि अपराध 25 मई, 1999 को किया गया था, यानी कि संशोधन के अस्तित्व में आने से पहले। इसलिए, आईपीसी की धारा 324 के तहत, अपराध समझौता योग्य रहता है, और समझौते की याचिका को स्वीकार किया जाना चाहिए।

आईपीसी की धारा 324 और धारा 326 के बीच अंतर

धारा 324 धारा 326
स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों या साधनों से चोट पहुँचाना। खतरनाक हथियारों या साधनों से स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुँचाना।
चोट खतरनाक हथियारों से गंभीर नहीं है। चोट गंभीर है।
अपवाद धारा 334 है। अपवाद धारा 335 है।
सजा कारावास है, जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है। सज़ा आजीवन कारावास हो सकता है या 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
आरोपी पर या तो जुर्माना लगाया जा सकता है या नहीं, या कारावास के साथ जुर्माना लगाया जा सकता है। आरोपी पर जुर्माना लगाया जाएगा।

न्यायिक घोषणाएं

अनवारुल हक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2005)

इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने देखा कि जो कोई भी आईपीसी की धारा 324 के तहत परिभाषित स्वेच्छा से चोट पहुंचाता है, उसे दोषी ठहराया जाएगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति “एक उपकरण, जिसका उपयोग अपराध के हथियार के रूप में किया जाता है, जिसके कारण मृत्यु होने की संभावना है, को निर्दिष्ट उपकरण की प्रकृति और उपकरण का उपयोग कैसे किया जाता है, के साथ व्याख्या की जानी चाहिए। अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना चाहिए कि आरोपी व्यक्ति ने स्वेच्छा से चोट पहुंचाई है और यह चोट आईपीसी की धारा 324 के तहत बताए गए एक उपकरण के कारण हुई है।

पर्वत चंद्र मोहंती बनाम ओडिशा राज्य (2021)

इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्ताओं ने अपराध करने के लिए हथियार के रूप में बांस की लाठियों और लकड़ी के डंडों का इस्तेमाल किया था। आईपीसी की धारा 324 अभिव्यक्ति का उपयोग करती है, “अपराध के हथियार” और अपीलकर्ताओं द्वारा किए गए प्रस्तुतीकरण को न्यायालय द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था क्योंकि उक्त हथियारों के उपयोग से मृत्यु होने की संभावना नहीं थी। इसलिए, न्यायालय ने कहा कि यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि इस्तेमाल की गई लाठियों और डंडों से मौत होने की संभावना नहीं थी, क्योंकि यह हथियार या हथियारों के उपयोग के तरीके पर निर्भर करता है।

रमेश उर्फ ​​दपिंदर सिंह बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2021)

इस मामले में अपीलकर्ता पुलिस द्वारा आईपीसी की धारा 302, 323 और 324 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दर्ज किए गए आरोपी थे। निचली अदालत ने सभी अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए पहली गिनती में आजीवन कारावास, दूसरी और तीसरी गिनती में एक साल और तीन साल के कठोर कारावास और जुर्माने से दंडित किया। 

इस मामले में दरांती (सिकल) जैसे खतरनाक हथियार से एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई। निचली अदालत के फैसले को हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय और बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था।

रेखा फलदेसाई बनाम गोवा राज्य (2023)

हाल ही में, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि स्कूल में एक बच्चे को गलत इरादे से ठीक करने के लिए शारीरिक बल का प्रयोग, आईपीसी की धारा 324 के तहत अपराध नहीं है। गोवा राज्य के बच्चों की अदालत ने शिक्षक, यानी आरोपी को आईपीसी की धारा 324 और गोवा बाल अधिनियम, 2003 की धारा 2 (m) के तहत लगभग 6 और 9 साल की उम्र के दो बच्चों को मारने का दोषी ठहराया था। आईपीसी की धारा 324 के तहत आरोपी को 10,000 जुर्माना भरने को कहा गया।

निष्कर्ष

किसी भी खतरनाक हथियार के इस्तेमाल से जानबूझकर किसी को चोट पहुँचाना एक गंभीर मुद्दा है क्योंकि ऐसे हथियार या साधन किसी व्यक्ति की जान ले सकते हैं। भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत, खतरनाक हथियार से स्वैच्छिक चोट पहुंचाने वाले व्यक्ति को कारावास, जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाता है। इसलिए, लोगों को अन्य लोगों द्वारा इस तरह के कार्यों से बचाने के लिए कड़े कानून बनाना महत्वपूर्ण है। किसी को मौत की हद तक चोट पहुंचाना एक ऐसी चीज है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और अदालतों को ऐसे व्यक्तियों को सजा देनी चाहिए। क्योंकि इस तरह के कार्यों से पीड़ित और उसके परिवार को अपूरणीय क्षति (इरिवोकेबल लॉस) होती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

धारा 324 के तहत अपराध जमानती है या गैर जमानती?

यह एक गैर-जमानती अपराध है, और कारावास 3 साल तक का हो सकता है।

धारा 324 के तहत अपराध संज्ञेय है या असंज्ञेय? 

यह एक संज्ञेय अपराध है, जिसका अर्थ है कि पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है। 

आईपीसी की धारा 324 के तहत किया गया अपराध शमनीय है या अशमनीय है? 

यह दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 के अनुसार अशमनीय है।

संदर्भ

 

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