सीपीसी का आदेश 9 नियम 7 

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Civil Procedure Code

यह लेख ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी, देहरादून के कानून के छात्र Monesh Mehndiratta द्वारा लिखा गया है। यह लेख उस प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है जहां प्रतिवादी (डिफेंडेंट) स्थगित (एडजर्न्ड) सुनवाई के दिन उपस्थित होता है और पिछली सुनवाई में उसकी गैर-उपस्थिति (नॉन अपीयरेंस) के लिए एक उचित कारण बताता है। इसमें इस मामले से जुड़े आदेश 9 के अन्य नियमों का भी जिक्र है। इस लेख का अनुवाद Shubhya Paliwal द्वारा किया गया है।

परिचय

कल्पना कीजिए कि आपका और आपके सहपाठी (बैचमेट) का झगड़ा हुआ था। आप इस बारे में अपने एक शिक्षक से शिकायत करने का निर्णय लेते हैं। शिक्षक आपकी बात को सुनने के बाद आपके सहपाठी को अपना पक्ष रखने का अवसर देने के लिए बुलाते हैं। वह आता है और अपना मामला प्रस्तुत करता है। जब शिक्षिका आप दोनों की दलीलें सुन रही होती हैं, तो उसी वक्त उन्हें कुछ जरूरी काम करने के लिए बुलाया जाता है। वह आपको और आपके सहपाठी को अगले दिन आने के लिए कहती है। अब, आपकी शिक्षिका के आदेश के अनुसार, आप उसके सामने उपस्थित हुए, लेकिन आपका सहपाठी अनुपस्थित है। आप इस स्थिति में क्या करेंगे? क्या शिक्षिका आपकी लड़ाई को हल कर पाएंगी? क्या होगा अगर, आपके सहपाठी की अनुपस्थिति में, वह उसे दंडित करने का फैसला करती हैं?

अगले दिन, जब आपके सहपाठी ने शिक्षिका से पूछा, तो वह उसे आपके साथ दुर्व्यवहार के लिए दंडित करती हैं। अब, क्या आपको लगता है कि आपके सहपाठी को उसकी अनुपस्थिति का कारण बताने का अवसर दिया जाना चाहिए?

इसी तरह की स्थिति तब होती है जब दीवानी वाद में प्रतिवादी सुनवाई के लिए उपस्थित नहीं होता है। ऐसे में क्या अदालत अंतिम फैसला सुनाने के लिए आगे बढ़ सकती है? क्या प्रतिवादी को अपनी बेगुनाही साबित करने का मौका दिया जाना चाहिए? यदि उसके पास उसकी अनुपस्थिति का कोई उचित (रीजनेबल) कारण है, तो क्या न्यायालय उन आधारों पर उसकी अनुपस्थिति में उसके विरुद्ध पारित डिक्री पर पुनर्विचार करेगा?

इन सभी सवालों पर इस लेख में विचार किया गया है। यह लेख दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) के आदेश 9 के बारे में बात करता है, जो अदालत की सुनवाई में पक्षकारों की उपस्थिति और गैर-उपस्थिति से संबंधित है। आदेश 9 नियम 7-11 विशेष रूप से एक प्रतिवादी के सुनवाई के लिए उपस्थित न होने की स्थिति में पालन की जाने वाली प्रक्रिया की जानकारी प्रदान करता है। यह आगे प्रतिवादी के विरुद्ध उसकी अनुपस्थिति में पारित एकपक्षीय डिक्री को रद्द (सेट असाइड) करने की प्रक्रिया प्रदान करता है। आइए अब इस संबंध में आदेश 9 के नियमों को समझते हैं।

सीपीसी का आदेश 9 

हम सभी जानते हैं कि एक वाद में दो पक्ष होते हैं, यानी वादी और प्रतिवादी। आम तौर पर, सुनवाई के लिए दोनों पक्षों को अदालत में उपस्थित होना चाहिए। लेकिन अगर किसी भी मामले में उनमें से कोई मौजूद नहीं है, तो आदेश 9 लागू होता है। यह आदेश एक वाद में पक्षकारों की उपस्थिति के लिए नियम प्रदान करता है और उनकी अनुपस्थिति के परिणाम भी बताता है। आदेश के नियम 1 के अनुसार, प्रतिवादी को जारी सम्मन में निर्धारित दिन पर दोनों पक्षों को व्यक्तिगत रूप से या उनके वकीलों के माध्यम से अदालत में उपस्थित होना चाहिए।

नियम 2 आगे प्रावधान करता है कि यदि यह पाया जाता है कि वादी की गलती के कारण प्रतिवादी को कोई सम्मन जारी नहीं किया गया था, तो अदालत द्वारा वाद खारिज कर दिया जाएगा। बेगम पारा नासिर खान बनाम लुइजा मटिल्डा फर्नांडीस (1984) के मामले में न्यायालय ने कहा कि कानून का मौलिक नियम कहता है कि प्रत्येक पक्ष को अपना मामला पेश करने का उचित अवसर दिया जाना चाहिए। सम्मन की तामील (सर्विस) इस उद्देश्य की पूर्ति का एक साधन है। इसलिए, यदि प्रतिवादी को कोई सम्मन जारी नहीं किया गया है, या यदि उसे अपना प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं दिया गया है, तो प्रतिवादी के खिलाफ कोई डिक्री पारित नहीं की जा सकती है। आदेश आगे वह प्रक्रिया भी प्रदान करता है जब दोनों पक्षों में से कोई एक उपस्थित होता है। वर्तमान लेख मुख्य रूप से आदेश 9 सीपीसी के नियम 7 के तहत प्रतिवादी से संबंधित है।

सीपीसी के आदेश 9 का नियम 7

नियम 7 उन मामलों में प्रक्रिया प्रदान करता है जहां प्रतिवादी पिछली सुनवाई में अनुपस्थित था लेकिन उसके बाद की सुनवाई में उपस्थित होता है और पिछली सुनवाई में उसकी अनुपस्थिति के लिए उचित कारण बताता है। यह प्रदान करता है कि ऐसी स्थिति में जहां अदालत ने एकपक्षीय वाद की सुनवाई स्थगित कर दी है और प्रतिवादी उसकी अनुपस्थिति के लिए एक उचित कारण प्रदान करता है, अदालत अपने नियमों और शर्तों पर, उसे सुन सकती है और वाद से उसी तरह निपट सकती है जैसे कि प्रतिवादी निर्धारित तिथि को सुनवाई के लिए उपस्थित था।

अर्जुन सिंह बनाम. मोहिन्दर कुमार (1964) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि प्रतिवादी सुनवाई के निश्चित दिन पर अपनी अनुपस्थिति के लिए कोई अच्छा या उचित कारण दिखाने में सक्षम है, तो उसे आगे की कार्यवाही में भाग लेने के लिए प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा। हालाँकि, वह अपनी उस स्थिति का दावा नहीं कर सकता जैसे कि परीक्षण की शुरुआत से पहले थी। आदेश 9 सीपीसी का नियम 7 इस सिद्धांत पर आधारित है कि प्रतिवादी को तब तक अपना बचाव करने का अधिकार है जब तक कि अदालत द्वारा वाद पूरी तरह से तय नहीं हो जाता है, और इसे ईस्ट इंडिया कॉटन मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड बनाम एस.पी. गुप्ता (1985) में उदारतापूर्वक (लिबरली) समझा जाना चाहिए। 

नियम 7 की आवश्यकताएं 

एक वाद में नियम 7 को लागू करने के लिए, निम्नलिखित आवश्यकताओं या शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए:

  • प्रतिवादी को सुनवाई के लिए निर्धारित पिछले दिन उपस्थित नहीं होना चाहिए।
  • उसकी पिछली अनुपस्थिति या गैर-उपस्थिति के लिए उसके पास एक अच्छा या उचित कारण होना चाहिए।
  • अदालत ने उनकी अनुपस्थिति में एकपक्षीय सुनवाई स्थगित कर दी है।
  • अदालत के पास, उसे लागत का भुगतान करने या कोई अन्य शर्त लगाने का आदेश देने की विवेकाधीन (डिस्क्रेशनरी) शक्ति है।

आदेश 9 नियम 7 से संबंधित अन्य नियम

सीपीसी के आदेश 9 के नियम 8, 9, 10 और 11 प्रतिवादी की उपस्थिति या गैर-उपस्थिति से संबंधित हैं। आइए इन्हें विस्तार से समझते हैं।

नियम 8

नियम 8 के अनुसार, जब सुनवाई के लिए निर्धारित दिन पर प्रतिवादी उपस्थित होता है, लेकिन वादी अनुपस्थित होता है, तो अदालत एक आदेश पारित करके वाद को खारिज कर देगी। लेकिन अगर प्रतिवादी, वादी की अनुपस्थिति में भी वादी के किसी भी दावे को स्वीकार करता है, तो अदालत उस विशेष दावे के संबंध में वादी के पक्ष में प्रतिवादी के खिलाफ एक आदेश पारित करेगी और शेष वाद को खारिज कर देगी।

यह तभी लागू होता है जब एक वादी हो और वह सुनवाई के लिए उपस्थित न हो; यदि एक से अधिक वादी हैं, तो इस नियम के लागू होने के लिए उन सभी को अनुपस्थित होना चाहिए। यदि इनमें से कोई एक प्रकट होता है तो नियम 10 लागू होगा। हालाँकि, वादी के अपने परिवार या रिश्तेदारों में मृत्यु के कारण उपस्थित नहीं होने की स्थिति में वाद खारिज नहीं किया जा सकता है। यह पी.एम.एम. पिल्लयथिरी अम्मा बनाम के. लक्ष्मी अम्मा (1967) के मामले में आयोजित किया गया था।

नियम 9

नियम 9 यह प्रावधान करता है कि यदि कोई वाद आदेश 9 के नियम 8 के अनुसार खारिज कर दिया जाता है, तो वादी को उसी कारण के लिए एक नया वाद दायर करने से रोक दिया जाता है, लेकिन उसे बर्खास्तगी (डिस्मिसल) के ऐसे आदेश को रद्द करने के लिए एक आवेदन दायर करने की अनुमति है। लेकिन वाद को खारिज करने के आदेश को रद्द करने का आदेश प्राप्त करने के लिए, उसे अदालत को संतुष्ट करना होगा कि सुनवाई के लिए निर्धारित दिन पर उसकी अनुपस्थिति का उचित कारण था।

अदालत के पास विवेकाधीन शक्ति है कि वह उसे लागत का भुगतान करने या इस संबंध में कोई शर्त लगाने के लिए कह सकती है। हालाँकि, वादी के लिए यह साबित करना आवश्यक है कि उसके उपस्थित न होने का एक उचित कारण था। बर्खास्तगी के वाद का फैसला करते समय अदालत को यह विचार करना चाहिए कि क्या वादी ने ईमानदारी से निश्चित दिन पर सुनवाई के लिए उपस्थित होने की कोशिश की या वह जानबूझकर इससे बच रहा था (मोतीचंद बनाम अंत राम, 1952)। यह नियम आगे कहता है कि जब तक दूसरे पक्ष को नोटिस के माध्यम से सूचित नहीं किया जाता है, तब तक कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।

नियम 10

इस नियम में परिकल्पना (एनवीसेज) की गई है कि जहां एक वाद में एक से अधिक वादी हैं, लेकिन सुनवाई के लिए निर्धारित दिन पर केवल कुछ ही उपस्थित होते हैं, तो अदालत यह मानते हुए वाद को आगे बढ़ाएगी कि सभी वादी सुनवाई के लिए उपस्थित हुए हैं।

नियम 11

नियम 11 के अनुसार, जब किसी वाद में एक से अधिक प्रतिवादी हों और कुछ उपस्थित हों, लेकिन बाकी उपस्थित न हों, तो न्यायालय कार्यवाही करेगा, लेकिन निर्णय के दौरान, उपस्थित न होने वालों के विरुद्ध आदेश पारित कर सकता है। ऐसी स्थिति में, अदालत पेश होने वाले प्रतिवादियों के खिलाफ या उनके पक्ष में एक डिक्री पारित कर सकती है, लेकिन जो पेश नहीं हुए यह उनके लिए एकपक्षीय होगा।

प्रतिवादी के खिलाफ एकपक्षीय फैसला

जैसा कि आदेश 9 के नियम 7 के तहत दिया गया है, अदालत की सुनवाई के दिन प्रतिवादी की अनुपस्थिति में एक पक्षीय डिक्री पारित करेगी। लेकिन क्या होगा यदि वह सुनवाई की अगली तारीख को पेश होता है और अपनी गैर-उपस्थिति के लिए एक अच्छा कारण देता है? क्या उसके विरुद्ध यह आज्ञा रद्द की जाएगी?

इन प्रश्नों पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाना चाहिए, और इसलिए नियम 7 के अनुसार, यदि न्यायालय प्रतिवादी द्वारा दिए गए कारण से संतुष्ट है, तो एकपक्षीय डिक्री को रद्द कर दिया जाएगा। अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रक्रिया है और डिक्री को रद्द करने के लिए कौन आवेदन कर सकता है? इन सवालों के जवाब सीपीसी के आदेश 9 के नियम 13 में हैं।

एकपक्षीय डिक्री का अर्थ

एक डिक्री जो निर्धारित दिन में प्रतिवादी की अनुपस्थिति में, लेकिन वादी की उपस्थिति में प्रतिवादी के खिलाफ सुनवाई के लिए पारित की जाती है, वह एकपक्षीय डिक्री कहलाती है। यह डिक्री न तो शून्य है और न ही व्यर्थ और निष्क्रिय (वॉयड) है; बल्कि, यह शून्यकरणीय है जब तक कि इसे विरोधी पक्ष, यानी प्रतिवादी द्वारा वैध आधार पर कानूनी रूप से रद्द नहीं किया जाता है। तब तक, यह किसी भी अन्य डिक्री की तरह प्रवर्ती (ऑपरेटिव) और प्रवर्तनीय (एनफोर्सेबल) है और एक वैध डिक्री के तहत शामिल किया गया है। यह पांडुरंग रामचंद्र बनाम शांतिबाई रामचंद्र (1989) के मामले में आयोजित किया गया था।

डिक्री को रद्द करने की प्रक्रिया

एकपक्षीय डिक्री को रद्द करने की प्रक्रिया इस प्रकार है:

  • डिक्री को रद्द करने का आवेदन प्रतिवादी द्वारा दायर किया जा सकता है जिसके खिलाफ यह पारित हुआ है। एक से अधिक प्रतिवादियों के मामले में उनमें से कोई भी ऐसा कर सकता है। उनकी मृत्यु के मामले में, उनके कानूनी प्रतिनिधि (रिप्रेजेंटेटिव) आवेदन दायर कर सकते हैं।
  • यह आवेदन उस अदालत में दायर किया जाना चाहिए जिसने उसके खिलाफ यह एकपक्षीय डिक्री पारित की थी। हालाँकि, यदि इसे किसी श्रेष्ठ न्यायालय द्वारा उलट या संशोधित किया जाता है, तो उस विशेष न्यायालय में आवेदन दायर किया जाना चाहिए।
  • प्रतिवादी के पास यह साबित करने का भार है कि उसकी गैर-उपस्थिति के लिए एक उचित और पर्याप्त कारण मौजूद था और उसने पेश होने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं कर सका।
  • आवेदन पर विचार करते समय, अदालत को यह विचार करना होगा कि क्या प्रतिवादी ने ईमानदारी से पेश होने की कोशिश की या जानबूझकर पेश नहीं हुआ।
  • एक उचित और पर्याप्त कारण के अस्तित्व के बारे में न्यायालय की संतुष्टि के बाद, यह एकपक्षीय आदेश को रद्द कर सकता है। परिमल बनाम वीणा (2011) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आदेश को रद्द करने के लिए आवेदन का फैसला करते समय, अदालत को एक उदार दृष्टिकोण का पालन करना चाहिए और आदेश को रद्द करने के लिए कारण बताना चाहिए।
  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यदि प्रतिवादी सुनवाई की तारीख जानता था और फिर भी पेश नहीं हुआ तो अदालत केवल सम्मन में अनियमितता (इरेगुलेरिटी) के आधार पर डिक्री को रद्द नहीं करेगी।

प्रतिवादी के खिलाफ एकपक्षीय डिक्री को रद्द करने के लिए आधार और कारण

एकपक्षीय डिक्री को रद्द करने के लिए दो आधार हैं। य़े हैं:

  • पर्याप्त कारण
  • प्रतिवादी को सम्मन की विधिवत (ड्यूली) तामील करने में विफलता।

उदाहरण: X ने Y और Z के खिलाफ एक वाद दायर किया जिसमें उनके खिलाफ एकपक्षीय डिक्री पारित की गई थी। बाद में, यह पाया गया कि Z को सम्मन तामील नहीं किया गया था, और इसलिए, अदालत को उसके खिलाफ डिक्री को रद्द करना पड़ा, लेकिन Y को डिक्री को रद्द करने के लिए अपनी गैर-उपस्थिति के लिए एक उचित और पर्याप्त कारण देना पड़ा।

पर्याप्त कारण

सुनवाई के दिन प्रतिवादी को अदालत में उपस्थित होने से रोकने के लिए पर्याप्त कारण पर्याप्त था या नहीं, इसका निर्णय प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर किया जाना चाहिए। यह अदालत ने सलिल दत्ता बनाम टी.एम. और एम.सी. (पी) लिमिटेड (1993) के मामले में भी देखा था। न्यायालयों द्वारा अब तक पहचाने गए पर्याप्त कारण के उदाहरण हैं:

  • तारीख की एक वास्तविक गलती;
  • ट्रेन के आगमन में देरी;
  • प्रतिवादी या वकील की बीमारी;
  • धोखा
  • किसी ज्ञात व्यक्ति की मृत्यु;
  • कैद होना;
  • हड़तालें आदि।

प्रतिवादी के लिए उपलब्ध उपचार

यदि प्रतिवादी के विरुद्ध एक पक्षीय डिक्री पारित की जाती है, तो वह निम्नलिखित उपायों (रेमेडीज) का हकदार है:

  • डिक्री को रद्द करने के लिए अदालत से अनुरोध करते हुए एक आवेदन दायर करें,
  • वह सीपीसी की धारा 96 के अनुसार इस तरह की डिक्री के खिलाफ अपील कर सकता है।
  • वह समीक्षा (रिव्यू) के लिए आवेदन भी दाखिल कर सकता है।

भानु कुमार जैन बनाम. अर्चना कुमार (2004), के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि उपाय की प्रकृति समवर्ती (कॉनकरेंट) होती हैं और वे प्रतिवादियों द्वारा एक साथ उपयोग किए जा सकते हैं।

निष्कर्ष

सीपीसी का आदेश 9 नियम 7 स्पष्ट रूप से प्रावधान करता है कि प्रतिवादी की अनुपस्थिति में पारित डिक्री यानी एक पक्षीय डिक्री, को रद्द करने के लिए, उसे सुनवाई के लिए निर्धारित दिन पर अपनी गैर-उपस्थिति के लिए एक अच्छा कारण देना होगा। इस संबंध में विचार करने योग्य प्रश्न यह है कि क्या पूर्व न्याय (रेस जुडिकेटा) का नियम (इस नियम के अनुसार, यदि कोई वाद एक सक्षम न्यायालय द्वारा निर्णित किया जाता है, तो इसे एक ही न्यायालय में एक ही न्यायालय में एक ही अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) के तहत उसी वाद हेतुक (कॉस ऑफ एक्शन) पर पुनः स्थापित नहीं किया जा सकता है।) तब लागू होता है जब एकपक्षीय डिक्री को रद्द करने के लिए आवेदन किया जाता है। यह देखा गया कि यदि डिक्री को रद्द करने के लिए किए गए आवेदन को कानूनी आधार या गुण-दोष के आधार पर खारिज कर दिया जाता है, तो प्रतिवादी को दूसरा आवेदन दायर करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। ऐसी स्थिति में पूर्व न्याय का नियम लागू होगा। लेकिन अगर बर्खास्तगी गैर-उपस्थिति या अन्य परिस्थितियों के कारण होती है, तो दूसरा आवेदन दायर किया जा सकता है (प्रह्लाद सिंह बनाम कर्नल सुखदेव सिंह, 1987)।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि नियम 7 प्रतिवादी को उसकी गैर-उपस्थिति के लिए लागत का भुगतान करने और नियमों या शर्तों को लागू करने का आदेश देने के लिए अदालत की विवेकाधीन शक्ति देता है, जैसा कि वह कार्यवाही के साथ आगे बढ़ने के लिए उपयुक्त समझता है। क्या प्रतिवादी द्वारा बताए गए कारण उचित या पर्याप्त हैं, प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर अदालत द्वारा व्यक्तिगत रूप से तय किया जाना है। हालांकि, अगर एक प्रतिवादी इस संबंध में एक अलग वाद दायर करता है, तो ऐसा वाद अदालत में चलने योग्य नहीं होता है।

संदर्भ 

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