कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत दंड की सूची

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Companies Act
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यह लेख नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची के Amit Garg ने लिखा है। लेखक इस लेख के माध्यम से कंपनी अधिनियम, 2013 में दिए गए दंडों के बारे में चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Archana Chaudhary द्वारा किया गया है।

परिचय

भारत की संसद द्वारा कंपनी अधिनियम, 2013 को लाया गया था, जो कंपनी अधिनियम, 1956 को निरस्त करता है और इसे एक कंपनी, उसके निदेशकों (डायरेक्टर्स) और उसके विघटन (डिजोल्यूशन), निगमन (इनकॉरपोरशन) और कामकाज को विनियमित (रेगूलेट) करने के लिए लागू हुआ था। यह अधिनियम 12 सितंबर 2013 को आधिकारिक राजपत्र में आया था।

कंपनी अधिनियम के तहत दंड

कंपनी अधिनियम, 2013 अधिनियम के नियमों के उल्लंघन में किसी भी गतिविधि के मामले में निदेशकों, कर्मचारियों या यहां तक ​​कि कंपनी पर भी विभिन्न दंड का प्रावधान प्रदान है। अधिनियम के तहत दंड को निर्दिष्ट करने वाले कुछ प्रावधानों का उल्लेख नीचे किया गया है।

धारा 4(5)

अधिनियम की धारा 4 (5) (ii) कहती है कि जहां खंड (i) के तहत नाम के आरक्षण (रिजर्वेशन) के बाद यह पाया जाता है कि नाम गलत है या गलत जानकारी प्रस्तुत करके लागू किया गया था, तो,-

  1. यदि कंपनी को निगमित नहीं किया गया है, तो आरक्षित नाम को रद्द कर दिया जाएगा और उप-धारा (4) के तहत आवेदन करने वाला व्यक्ति दंड के लिए उत्तरदायी होगा, जो 100,000 रुपये तक हो सकता है।
  2. यदि कंपनी को निगमित किया गया है, तो कंपनी को सुनवाई का अवसर देने के बाद रजिस्ट्रार-
  • कंपनी को सामान्य संकल्प (आर्डिनरी रेजोल्यूशन) पारित करने के बाद 3 महीने की अवधि के भीतर अपना नाम बदलने का निर्देश दे सकता है।
  • कंपनियों के रजिस्टर से कंपनी का नाम हटाने के लिए कार्रवाई कर सकता है या
  • कंपनी के परिसमापन (वाइंडिंग अप) के लिए याचिका दायर कर सकता है।

धारा 15

अधिनियम की धारा 15 (2) कहती है कि “यदि कोई कंपनी उप-धारा (1) के प्रावधानों का पालन करने में कोई चूक करती है, तो कंपनी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो उस चूक में शामिल है, उसके ऊपर 1000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा, जो इस तरह के बदलाव के बिना जारी किए गए ज्ञापन (मेमोरेंडम) या आर्टिकल्स की प्रत्येक प्रति पर होगा।”

धारा 16

अधिनियम की धारा 16 (3) में कहा गया है कि “यदि कोई कंपनी उप-धारा (1) के तहत दिए गए किसी भी निर्देश का पालन करने में चूक करती है, तो कंपनी हर दिन के लिए जिसके दौरान डिफ़ॉल्ट जारी रहता है 1000 रुपये के जुर्माने से दंडनीय होगी, और प्रत्येक अधिकारी जो चूक करता है वह जुर्माने से दण्डनीय होगा, जो 5000 रुपए से कम नहीं होगा लेकिन जो 100,000 रुपए तक हो सकता है।”

धारा 17

अधिनियम की धारा 17 (2) कहती है कि “यदि कोई कंपनी इस धारा के प्रावधानों के अनुपालन में कोई चूक करती है, तो कंपनी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, प्रत्येक चूक के दंड के लिए उत्तरदायी होगा जो 1000 रुपए से कम नहीं होगा लेकिन जो 100,000 रूपये तक का हो सकता है।

धारा 26

अधिनियम की धारा 26 (9) में कहा गया है कि “यदि इस धारा के प्रावधानों के उल्लंघन में एक विवरणिका (प्रोस्पेक्टस) जारी की जाती है, तो कंपनी जुर्माने से दण्डनीय होगी जो 50,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 300,000 रुपये तक भी हो सकता है और प्रत्येक व्यक्ति जो जानबूझकर ऐसे विवरणिका को जारी करने का पक्ष रखता है, वह कारावास से दंडित होगा, जिसकी अवधि 3 वर्ष तक की हो सकती है या जुर्माने से भी दंडित हो सकता है, जो 50,000 रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन जो 300,000 रुपए तक हो सकता है, या दोनों से भी दंडनीय होगा।”

धारा 36

अधिनियम की धारा 36 में कहा गया है कि “कोई भी व्यक्ति जो जानबूझकर या लापरवाही से कोई बयान, वादा या भविष्यवाणी करता है जो झूठा या भ्रामक है, या जानबूझकर किसी भी भौतिक तथ्यों (मैटेरियल फैक्ट्स) को छुपाता है, या किसी अन्य व्यक्ति को प्रवेश या प्रस्ताव करने के लिए प्रेरित करता है –

  • प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज) को प्राप्त करने, निपटाने, सदस्यता लेने या हामीदारी (अंडर राइटिंग) करने की दृष्टि से कोई समझौता; या
  • कोई समझौता, जिसका उद्देश्य प्रतिभूतियों की आय से या प्रतिभूतियों के मूल्य में उतार-चढ़ाव के संदर्भ में किसी भी पक्ष को लाभ सुरक्षित करना है; या
  • किसी भी बैंक या वित्तीय संस्थान (फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन) से क्रेडिट सुविधाएं प्राप्त करने के लिए या किसी भी समझौते के लिए, धारा 447 के तहत कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होगा।

धारा 38

अधिनियम की धारा 38 में कहा गया है कि 

  1. कोई भी व्यक्ति जो-
  • किसी कंपनी को उसकी प्रतिभूतियों को प्राप्त करने, या सदस्यता लेने के लिए एक फर्जी नाम से आवेदन करता है या करने के लिए प्रेरित करता है; या
  • किसी कंपनी को अलग-अलग नामों में या उसके नाम या उपनाम के विभिन्न संयोजनों में अपनी प्रतिभूतियों को प्राप्त करने या सदस्यता लेने के लिए कई आवेदन करता है या करने के लिए प्रेरित करता है; या
  • प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) या परोक्ष (इनडायरेक्ट) रूप से एक कंपनी को उसे या किसी अन्य व्यक्ति को फर्जी नाम से प्रतिभूतियों को आवंटित (अलॉट) करने के लिए प्रेरित करता है, या हस्तांतरण (ट्रांसफर) या पंजीकृत (रजिस्टर) करता है, वह धारा 447 के तहत कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होगा।

2. उप धारा के प्रावधान (1) को कंपनी द्वारा जारी किए गए प्रत्येक प्रॉस्पेक्टस में और प्रतिभूतियों के लिए आवेदन के हर रूप में प्रमुखता से प्रस्तुत किया जाएगा।

3. जहां इस धारा के तहत किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया गया है, तो न्यायालय ऐसे व्यक्ति के कब्जे में प्रतिभूतियों को जब्त करने और निपटाने का आदेश भी दे सकता है।

4. उपधारा के तहत प्रतिभूतियों के विघटन या निपटान के माध्यम से प्राप्त राशि को निवेशक शिक्षा और संरक्षण कोष (इन्वेस्टर एजुकेशन एंड प्रोटेक्शन फंड) में जमा किया जाएगा।

धारा 39

अधिनियम की धारा 39 (5) कहती है कि “उप-धारा (3) या उप-धारा (4) के तहत किसी भी चूक के मामले में, कंपनी और उसके अधिकारी जो चूक में शामिल हैं, वे प्रत्येक चूक के दंड के लिए उत्तरदायी होंगे, जो प्रत्येक दिन जिसके दौरान ऐसी चूक जारी रहती है के लिए 1000 रुपये, या 100,000 रूपये जो भी कम हो, होता है।

धारा 40

अधिनियम की धारा 40 (5) कहती है कि “यदि इस धारा के प्रावधानों के अनुपालन में कोई चूक की जाती है, तो कंपनी को जुर्माने से दंडित किया जाएगा जो 50,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 500,000 रुपये तक हो सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी, जो चूक करता है, कारावास से दंडनीय होगा, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकती है, या जुर्माने से जो 50,000 रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन जो 300,000 रुपए तक हो सकता है, या दोनों से दंडनीय होगा।”

धारा 42

अधिनियम की धारा 42 (10) कहती है कि “यदि कोई कंपनी इस धारा के उल्लंघन में कोई प्रस्ताव देती है या पैसे स्वीकार करती है, तो कंपनी, उसके प्रमोटर और निदेशक प्रस्ताव में शामिल राशि या दो करोड़ रुपये, जो भी अधिक हो, उस दंड के लिए उत्तरदायी होंगे और कंपनी जुर्माना लगाने के आदेश के 30 दिनों की अवधि के भीतर ग्राहकों को सभी पैसे वापस कर देगी।

धारा 53

अधिनियम की धारा 53 में कहा गया है कि 

  1. धारा 54 में दिए गए प्रावधान को छोड़कर, कोई कंपनी छूट (डिस्काउंट) पर शेयर जारी नहीं करेगी।
  2. किसी कंपनी द्वारा छूट मूल्य पर जारी किया गया कोई भी शेयर शून्य होगा।
  3. जहां कोई कंपनी इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करती है, कंपनी जुर्माने से दंडनीय होगी जो 100,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 500,000 रुपये तक हो सकता है और प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, कारावास से दंडनीय होगा, जिसकी अवधि 6 महीने तक बढ़ सकती है या जुर्माना जो 100,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 500,000 रुपये तक हो सकता है, या दोनों के साथ दंडनीय होगा।

धारा 56

अधिनियम की धारा 56 (6) कहती है कि “जहां उप-धारा (1) से (5) के प्रावधानों के अनुपालन में कोई चूक होती है तो कंपनी को जुर्माने से दंडित किया जाएगा जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 500,000 रुपये तक हो सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, जुर्माने से दंडनीय होगा जो 10,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 100,000 रुपये तक हो सकता है।

धारा 57

अधिनियम की धारा 57 में कहा गया है कि “यदि कोई व्यक्ति धोखे से किसी कंपनी में किसी प्रतिभूति या हित के मालिक के रूप में, या इस अधिनियम के अनुसरण में जारी किए गए किसी शेयर वारंट या कूपन के मालिक के रूप में चोरी करता है, और इस प्रकार ऐसी कोई प्रतिभूति प्राप्त करता है या प्राप्त करने का प्रयास करता है या ब्याज या ऐसा कोई शेयर वारंट या कूपन, या किसी ऐसे मालिक के कारण कोई धन प्राप्त करता है या प्राप्त करने का प्रयास करता है, तो वह कारावास के साथ दंडनीय होगा, जो एक वर्ष से कम नहीं होगा लेकिन जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माने के साथ दंडनीय होगा जो 100,000 रुपए से कम नहीं होगा लेकिन जो 500,000 रुपए तक हो सकता है।”

धारा 59

अधिनियम की धारा 59 (5) में कहा गया है कि “यदि इस धारा के तहत ट्रिब्यूनल के आदेश का पालन करने में कोई चूक होती है, तो कंपनी जुर्माने से दंडनीय होगी जो 100,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 50,00,000 रुपये तक हो सकता है और कंपनी के प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, एक अवधि के लिए कारावास से दंडनीय होगा, जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माने से दंडनीय होगा जो 100,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 300,000 रुपये तक हो सकता है, या दोनों के साथ दंडनीय होगा।”

धारा 60

अधिनियम की धारा 60 (2) कहती है कि “यदि उप-धारा (1) की आवश्यकताओं के अनुपालन में कोई चूक की जाती है, तो कंपनी 10,000 रुपये का जुर्माना देने के लिए उत्तरदायी होगी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक करने में शामिल था उसे प्रत्येक चूक के लिए 5000 रुपये का जुर्माना देना होगा।

धारा 64

अधिनियम की धारा 64 (2) कहती है कि यदि कोई कंपनी और कंपनी का कोई भी अधिकारी जो चूक में शामिल है, उप-धारा (1) के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, तो वह जुर्माना जो 1000 रुपये तक हो सकता है, या 500,000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है, जो भी कम हो के साथ दंडनीय होगा।

धारा 67

अधिनियम की धारा 67 (5) में कहा गया है कि “यदि कोई कंपनी इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करती है, तो यह जुर्माने से दंडनीय होगा जो 100,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 25,00,000 रुपये तक हो सकता है और प्रत्येक कंपनी अधिकारी, जो चूक में शामिल है, कारावास से दंडित होगे जिसकी अवधि 3 वर्ष तक की हो सकती है और जुर्माने से दंडनीय होगे जो 100,000 रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन जो 25,00,000 रुपए तक हो सकता है।”

धारा 68

अधिनियम की धारा 68 (11) कहती है कि “यदि कोई कंपनी इस धारा के प्रावधानों या प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड द्वारा बनाए गए किसी भी नियम का अनुपालन करने में कोई चूक करती है, तो उप-धारा (2) के खंड (f) के उद्देश्यों के लिए, कंपनी जुर्माने से दंडनीय होगी जो 100,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 300,000 रुपये तक हो सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिलहै, कारावास से दंडनीय होगा, जिसकी अवधि 3 साल तक हो सकती है या जुर्माने से, जो 100,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 300,000 रुपये तक हो सकता है, या दोनों के साथ दंडनीय होगा।”

धारा 74

अधिनियम की धारा 74 (3) कहती है कि “यदि कोई कंपनी जमा (डिपॉजिट) या उसके हिस्से या उस पर किसी भी ब्याज (इंटरेस्ट) को उप-धारा (1) में निर्दिष्ट समय के भीतर या उप-धारा (2) के तहत ट्रिब्यूनल द्वारा अनुमत समय के भीतर चुकाने में विफल रहता है, तब कंपनी, जमा राशि या उसके हिस्से के भुगतान और देय ब्याज के अलावा, जुर्माने से दंडनीय होगी जो एक करोड़ रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो दस करोड़ रुपये तक बढ़ाया जा सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, कारावास से दंडित होगा जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माने से, जो 25,00,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो दो करोड़ रुपये तक हो सकता है, या दोनों से दंडनीय होगा।

धारा 75

अधिनियम की धारा 75 में कहा गया है कि 

  1. जहां कोई कंपनी जमा या उसके हिस्से या उस पर किसी भी ब्याज को चुकाने में विफल रहती है और इस धारा की उप-धारा (1) में निर्दिष्ट समय के भीतर या उप-धारा (2) के तहत ट्रिब्यूनल द्वारा अनुमति दी जा सकती है और यह साबित हो जाता है कि जमाकर्ताओं को धोखा देने के इरादे से या किसी कपटपूर्ण उद्देश्य के लिए जमा स्वीकार किया गया था, कंपनी के प्रत्येक अधिकारी जो इस तरह की जमा राशि की स्वीकृति के लिए इस धारा की उप-धारा (3) में निहित प्रावधानों और धारा 447 के तहत देयता (लायबिलिटी) के पूर्वाग्रह के बिना जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  2. जिसने जमा या उसके हिस्से या उस पर कोई ब्याज चुकाने में कंपनी की विफलता के परिणामस्वरूप कोई नुकसान उठाया था उसके द्वारा कोई भी मुकदमा, कार्यवाही किसी भी व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह या व्यक्तियों के किसी भी संघ द्वारा किया जा सकता है।

धारा 86

अधिनियम की धारा 86 में कहा गया है कि “यदि कोई कंपनी इस धारा के किसी प्रावधान का उल्लंघन करती है, तो कंपनी जुर्माने से दंडनीय होगी जो 100,000 रूपये से कम नहीं होगा, लेकिन 10,00,000 रुपये तक हो सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक करने में शामिल था, कारावास से दंडित होगा, जिसकी अवधि 6 माह तक की हो सकती है, या जुर्माने से, जो 25,000 रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन जो 100,000 रुपए तक हो सकता है, या दोनों से दंडनीय होगा।”

धारा 88

अधिनियम की धारा 88 (5) में कहा गया है कि “यदि कोई कंपनी सदस्यों या डिबेंचर-धारकों या अन्य प्रतिभूति धारकों का रजिस्टर नहीं रखती है या उप-धारा (1) या उप-धारा (2) के प्रावधानों के अनुसार उन्हें बनाए रखने में विफल रहती है तो कंपनी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, जुर्माने से दंडनीय होगा जो 50,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 300,000 रुपये तक हो सकता है।

धारा 91

अधिनियम की धारा 91 (2) कहती है कि “यदि सदस्यों या डिबेंचर-धारकों या अन्य प्रतिभूति धारकों का रजिस्टर उप-धारा (1) में दिए गए नोटिस के बिना, या निर्दिष्ट समय से कम का नोटिस देने या उस उप-धारा में निर्दिष्ट सीमाओं से अधिक निरंतर या कुल अवधि के बाद रजिस्टर बंद कर दिया जाता है, तो कंपनी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, हर दिन के लिए जिसके दौरान रजिस्टर बंद रखा गया था उसके लिए 5000 रुपये के दंड के लिए उत्तरदायी होगा, जो अधिकतम 100,000 रुपये तक हो सकता है।”

धारा 92

अधिनियम की धारा 92 (5) में कहा गया है कि “यदि कोई कंपनी अतिरिक्त शुल्क के साथ धारा 403 के तहत निर्दिष्ट अवधि की समाप्ति से पहले उप-धारा (4) के तहत अपनी वार्षिक रिटर्न दाखिल करने में विफल रहती है, तो कंपनी जुर्माने के साथ दंडनीय होगी जो कि 50,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 500,000 रुपये तक हो सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, वह कारावास से दंडित होगा जिसे 6 महीने तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना लगाया जा सकता है जो 50,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 500,000 रुपये तक हो सकता है, या दोनों के साथ दंडनीय होगा।”

धारा 94

अधिनियम की धारा 94 (4) कहती है कि “यदि इस धारा के तहत आवश्यक किसी भी निरीक्षण (इंस्पेक्शन) या प्रतिलिपि (कॉपी) को बनाने से मना कर दिया जाता है, तो कंपनी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, ऐसे प्रत्येक चूक के लिए 1000 रूपये के जुर्माने जो कि अधिकतम 100,000 रूपये तक बढ़ाया जा सकता है से उत्तरदायी होगा।

धारा 99

अधिनियम की धारा 99 में कहा गया है कि “यदि कंपनी की बैठक को धारा 96 या धारा 97 या धारा 98 के अनुसार आयोजित करने में या ट्रिब्यूनल,कंपनी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी के निर्देश में कोई चूक हो जाती है तो उसे 1,00,000 रुपये के जुर्माने से दंडित किया जाएगा।

धारा 102

अधिनियम की धारा 102 (5) में कहा गया है कि “यदि इस धारा के प्रावधानों के अनुपालन में कोई चूक की जाती है, तो प्रत्येक प्रमोटर, निदेशक, प्रबंधक या अन्य प्रमुख प्रबंधकीय कर्मी जो चूक में शामिल हैं, जुर्माने से दंडनीय होगे जो 50,000 रुपये या प्रमोटर, निदेशक, प्रबंधक या अन्य प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों या उनके किसी रिश्तेदार को मिलने वाली लाभ की राशि का पांच गुना, इसमें से जो भी अधिक हो हो सकता है।

धारा 105

अधिनियम की धारा 105 (3) कहती है कि यदि उप-धारा (2) के अनुपालन में चूक की जाती है, तो कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक करता है, उसे 5000 रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जाएगा।

धारा 111

अधिनियम की धारा 111 (5) में कहा गया है कि यदि इस धारा के प्रावधानों के अनुपालन में कोई चूक की जाती है, तो कंपनी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, 25,000 रुपये के दंड के लिए उत्तरदायी होगा।

धारा 118

अधिनियम की धारा 118 (12) में कहा गया है कि “यदि कोई व्यक्ति बैठक की कार्यवाही में छेड़छाड़ करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे एक अवधि के लिए कारावास जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है जो कि 25,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 1,00,000 रुपये तक हो सकता है।”

धारा 119

अधिनियम की धारा 119 (3) कहती है कि यदि उप-धारा (1) के तहत किसी भी निरीक्षण से इनकार कर दिया जाता है, या यदि उप-धारा (2) के तहत आवश्यक कोई प्रति निर्दिष्ट समय के भीतर प्रस्तुत नहीं की जाती है, तो कंपनी 25,000 रुपये के जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगी और कंपनी के प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, ऐसे प्रत्येक इनकार या चूक के लिए 5000 रुपये के दंड के लिए उत्तरदायी होगे।

धारा 121

अधिनियम की धारा 121 (3) कहती है कि “यदि कंपनी अतिरिक्त शुल्क के साथ धारा 403 के तहत निर्दिष्ट अवधि की समाप्ति से पहले उप-धारा (2) के तहत रिपोर्ट दर्ज करने में विफल रहती है, तो कंपनी जुर्माने के साथ दंडनीय होगी जो 1,00,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 5,00,000 रुपये तक हो सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक करता है, वह जुर्माने से दण्डनीय होगा जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 1,00,000 रुपये तक हो सकता है।”

धारा 127

अधिनियम की धारा 127 में कहा गया है कि “जहां एक कंपनी द्वारा लाभांश (डिविडेंड) घोषित किया गया है, लेकिन भुगतान नहीं किया गया है या उसके संबंध में वारंट घोषणा की तारीख से तीस दिनों के भीतर लाभांश के भुगतान के हकदार किसी भी शेयरधारक को पोस्ट नहीं किया गया है, तो कंपनी के प्रत्येक निदेशक, यदि वह जानबूझकर चूक करता है को कारावास से दंडित किया जा सकता है, जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना जो 1000 रुपये से कम नहीं होगा और कंपनी भी उस अवधि के दौरान 18% प्रति वर्ष की दर से साधारण ब्याज का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगी।”

धारा 128

अधिनियम की धारा 128 (6) में कहा गया है कि “यदि प्रबंध निदेशक, वित्त के प्रभारी पूर्णकालिक निदेशक (होल टाइम डायरेक्टर इन चार्ज ऑफ फाइनेंस), मुख्य वित्तीय अधिकारी (चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर) या कंपनी के किसी अन्य व्यक्ति ऐसे प्रावधानों का उल्लंघन करते है, तो ऐसे प्रबंध निदेशक, वित्त के प्रभारी पूर्णकालिक निदेशक, मुख्य वित्तीय अधिकारी या कंपनी के ऐसे अन्य व्यक्ति को एक अवधि के लिए कारावास, जिसे 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माने से दंडनीय होगा जो कि 50,000 रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन जो 5,00,000 रुपए तक या दोनों के साथ दंडनीय हो सकता है।”

धारा 129

अधिनियम की धारा 129 (7) कहती है कि “यदि कोई कंपनी इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करती है, तो प्रबंध निदेशक, वित्त के प्रभारी पूर्णकालिक निदेशक, मुख्य वित्तीय अधिकारी या बोर्ड द्वारा कर्तव्य के साथ आरोपित कोई अन्य व्यक्ति इस धारा की आवश्यकताओं का अनुपालन करने के लिए और ऊपर वर्णित किसी भी अधिकारी की अनुपस्थिति में, सभी निदेशकों को एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जा सकता है, जिसे 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना लगाया जा सकता है जो 50,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 5,00,000 रुपए तक हो सकता है या दोनों के साथ दंडनीय हो सकता है।”

धारा 134

अधिनियम की धारा 134 (8) कहती है कि “यदि कोई कंपनी इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करती है, तो कंपनी को जुर्माने से दंडित किया जाएगा जो 50 हजार रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 25 लाख रुपये तक हो सकता है और प्रत्येक कंपनी का अधिकारी जो चूक करता है, वह कारावास से, जिसकी अवधि 3 वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो 50,000 रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन जो 500,000 रुपए तक हो सकता है, या दोनों से दंडनीय होगा।”

धारा 136

अधिनियम की धारा 136 (3) कहती है कि “यदि इस धारा के प्रावधानों के अनुपालन में कोई चूक की जाती है, तो कंपनी 25,000 रुपये के जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, 5000 रुपये के जुर्माने के लिए उत्तरदायी होंगे।”

धारा 137

अधिनियम की धारा 137 (3) में कहा गया है कि “यदि कोई कंपनी अवधि की समाप्ति से पहले उप-धारा (1) या उप-धारा (2), धारा 403 में निर्दिष्ट वित्तीय विवरणों की प्रति दर्ज करने में विफल रहती है तो कंपनी हर दिन जिसके दौरान विफलता जारी रहती है, के लिए 1000 रुपये के जुर्माने से दंडनीय होगी, लेकिन जो 10 लाख रुपये से अधिक नहीं होगा, और कंपनी के प्रबंध निदेशक और मुख्य वित्तीय अधिकारी और उनकी अनुपस्थिति में, कोई अन्य निदेशक, जिस पर इस धारा के प्रावधानों के अनुपालन की जिम्मेदारी बोर्ड द्वारा दी जाती है, और, ऐसे किसी निदेशक की अनुपस्थिति में, कंपनी के सभी निदेशक, कारावास से, जिसकी अवधि 6 महीने तक हो सकती है या जुर्माने से, जो एक 1,00,000 से कम नहीं होगा, लेकिन जो 5,00,000 रुपए तक हो सकता है, या दोनों से दंडनीय होगा।”

धारा 147

अधिनियम की धारा 147 में कहा गया है कि 

  1. “यदि धारा 139 से 146 (दोनों सहित) के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन किया जाता है, तो कंपनी जुर्माने से दण्डनीय होगी जो 25 हजार रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जिसे 5 लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, एक अवधि के लिए कारावास से, जिसे 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माने से, जो 10,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 1,00,00 रुपये तक हो सकता है, या दोनों के साथ दंडनीय होगा।
  2. यदि किसी कंपनी का अंकेक्षक (ऑडिटर) धारा 139, धारा 143, धारा 144 या धारा 145 के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करता है, तो जुर्माने से दण्डनीय होगा जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जिसे 5,00,000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है: बशर्ते कि अगर किसी अंकेक्षक ने कंपनी या उसके शेयरधारकों या लेनदारों या कर अधिकारियों को धोखा देने के इरादे से जानबूझकर ऐसे प्रावधानों का उल्लंघन किया है, तो उसे एक अवधि के लिए 1 साल के कारावास के साथ और जुर्माना के साथ दंडित किया जाएगा, जो 25,000 रूपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 1,00,000 रुपये तक हो सकता है।
  3. जहां एक अंकेक्षक को उप-धारा (2) के तहत दोषी ठहराया गया है, वह निम्नलिखित के लिए उत्तरदायी होगा-
  • कंपनी को उसके द्वारा प्राप्त पारिश्रमिक (रिमूनरेशन) वापस करना; और
  • कंपनी, वैधानिक निकायों या प्राधिकरणों या किसी अन्य व्यक्ति को अपनी ऑडिट रिपोर्ट में दिए गए विवरणों के गलत या भ्रामक बयानों से होने वाले नुकसान के लिए भुगतान करना।

4. केंद्र सरकार, अधिसूचना (नोटिफिकेशन) द्वारा, किसी वैधानिक निकाय या प्राधिकरण या एक अधिकारी को कंपनी या व्यक्तियों को नुकसान का शीघ्र भुगतान सुनिश्चित करने के लिए उपधारा (3) के खंड (ii) के तहत निर्दिष्ट करेगी और ऐसा निकाय, प्राधिकरण या अधिकारी कंपनी या व्यक्तियों को हर्जाने का भुगतान करने के बाद, इस तरह के नुकसान के संबंध में केंद्र सरकार के साथ एक रिपोर्ट दर्ज करेगा जैसा कि उक्त अधिसूचना में निर्दिष्ट किया जा सकता है।

5. जहां, किसी कंपनी की ऑडिट, एक ऑडिट फर्म द्वारा की जा रही हो, तो ऐसे मामले में, यह साबित हो जाता है कि ऑडिट फर्म के साझेदार या भागीदारों ने कपटपूर्ण तरीके से काम किया है या कंपनी या उसके निदेशकों या अधिकारियों द्वारा या उसके संबंध में या उसके संबंध में, चाहे सिविल या इस अधिनियम या उस समय लागू किसी अन्य कानून में प्रदान किए गए आपराधिक के रूप में, इस तरह के कार्य के लिए ऑडिट फर्म के संबंधित भागीदार और फर्म कअलग-अलग होंगे।

धारा 157

अधिनियम की धारा 157 (2) कहती है कि “यदि कोई कंपनी अतिरिक्त शुल्क के साथ धारा 403 के तहत निर्दिष्ट अवधि की समाप्ति से पहले उप-धारा (1) के तहत निदेशक पहचान संख्या (डायरेक्टर आइडेंटिफिकेशन नंबर) प्रस्तुत करने में विफल रहती है, तो कंपनी जुर्माने के साथ दंडनीय होगी जो कि 25,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 1,00,000 रुपये तक हो सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, को जुर्माने से दंडित किया जाएगा जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 1,00,000 रुपये तक हो सकता है।”

धारा 159

अधिनियम की धारा 159 में कहा गया है कि “यदि कोई व्यक्ति या कंपनी का निदेशक, धारा 152, धारा 155 और धारा 156 के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करता है, तो ऐसे व्यक्ति या कंपनी के निदेशक को एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जा सकता है जिसे 6 महीने तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माने से दंडित किया जा सकता है जो 50,000 रुपये तक हो सकता है और एक और जुर्माने के साथ जो पहले दिन के बाद हर दिन के लिए 500 रुपये तक हो सकता है, जिसके दौरान उल्लंघन जारी रहता है।”

धारा 172

अधिनियम की धारा 172 में कहा गया है कि “यदि कोई कंपनी इस अध्याय के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करती है और जिसके लिए कोई विशेष दंड प्रदान नहीं किया गया है, तो कंपनी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, जुर्माने से दंडनीय होगा जो कि 50,000 रुपए से कम नहीं होगा लेकिन जो 5,00,000 रुपए तक हो सकता है।”

धारा 173

अधिनियम की धारा 173 (4) कहती है कि “कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जिसका कर्तव्य इस धारा के तहत नोटिस देना है और जो ऐसा करने में विफल रहता है, 25,000 रुपये के दंड के लिए उत्तरदायी होगा।”

धारा 178

अधिनियम की धारा 178 (8) में कहा गया है कि “धारा 177 और इस धारा के प्रावधानों के किसी भी उल्लंघन के मामले में, कंपनी को जुर्माने से दंडित किया जाएगा जो 1,00,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 5,00,000 रुपये तक हो सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी, जो चूक करता है, कारावास से, जिसकी अवधि 1 वर्ष तक की हो सकती है या जुर्माने से दंडनीय होगा जो 25,000 रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन जो 1,00,000 रुपए तक हो सकता है।

धारा 182

अधिनियम की धारा 182 (4) में कहा गया है कि “यदि कोई कंपनी इस धारा के प्रावधानों के उल्लंघन में कोई योगदान करती है, तो कंपनी को जुर्माने से दंडित किया जाएगा जो इस तरह योगदान की गई राशि का पांच गुना तक हो सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक करता है, कारावास से, जिसकी अवधि 6 महीने तक की हो सकती है और जुर्माने से दंडनीय होगा, जो इस प्रकार योगदान की गई राशि का पांच गुना तक हो सकता है।

धारा 185

अधिनियम की धारा 185 (2) कहती है कि “यदि कोई ऋण (लोन) अग्रिम (एडवांस्ड) है या उप-धारा (1) के प्रावधानों के उल्लंघन में इसकी गारंटी या सुरक्षा दी जाती है या प्रदान की जाती है, तो कंपनी जुर्माने के साथ दंडनीय होगी जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगी लेकिन जो 5,00,000 रुपये तक हो सकता है, और निदेशक या अन्य व्यक्ति जिसे कोई ऋण दिया गया है या गारंटी या सुरक्षा दी गई है या उसके द्वारा या अन्य व्यक्ति द्वारा लिए गए किसी भी ऋण के संबंध में प्रदान की गई है, कारावास से, जो 6 महीने तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माने से, जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 5,00,000 रुपये तक हो सकता है, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

धारा 186

अधिनियम की धारा 186 (13) कहती है कि “यदि कोई कंपनी इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करती है, तो कंपनी को जुर्माने से दंडित किया जाएगा जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 5,00,000 रुपये तक हो सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक करता है, वह कारावास से, जिसकी अवधि 2 वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से दंडनीय होगा जो 25,000 रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन जो 1,00,000 रुपए तक हो सकता है।

धारा 187

अधिनियम की धारा 187 (4) कहती है कि “यदि कोई कंपनी इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करती है, तो कंपनी को जुर्माने से दंडित किया जाएगा जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 25,00,000 रुपये तक हो सकता है और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी, जो चूक करता है, कारावास से, जिसकी अवधि 6 माह तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो 25,000 रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन जो 1,00,000 रुपए तक हो सकता है, या दोनों से दंडनीय होगा।”

धारा 188

अधिनियम की धारा 188 (5) कहती है कि “किसी कंपनी का कोई निदेशक या कोई अन्य कर्मचारी, जिसने इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए अनुबंध या व्यवस्था में प्रवेश किया था या अधिकृत किया था,-

  1. सूचीबद्ध कंपनी के मामले में कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो 25,000 रुपए से कम नहीं होगा, किंतु जो 5,00,000 रुपए तक हो सकेगा, या दोनों से दंडनीय होगा; और
  2. किसी अन्य कंपनी के मामले में, जुर्माने से दण्डनीय होगा जो 25,000 रुपए से कम नहीं होगा लेकिन जो 5,00,000 रुपए तक हो सकता है।”

धारा 189

अधिनियम की धारा 189 (6) कहती है कि “प्रत्येक निदेशक जो इस धारा के प्रावधानों और इसके तहत बनाए गए नियमों का पालन करने में विफल रहता है, 25,000 रुपये के दंड के लिए उत्तरदायी होगा।”

धारा 190

अधिनियम की धारा 190 (3) कहती है कि “यदि उप-धारा (1) या उप-धारा (2) के प्रावधानों के अनुपालन में कोई चूक की जाती है, तो कंपनी 25,000 रुपये के जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, प्रत्येक चूक के लिए 5000 रुपये के जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगा।”

धारा 194

अधिनियम की धारा 194 (2) कहती है कि “यदि कोई निदेशक या कंपनी का कोई प्रमुख प्रबंधकीय कर्मी उप-धारा (1) के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, तो ऐसे निदेशक या प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों को एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जा सकता है, जिसे 2 साल तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माने से दंडित होगा, जो 1,00,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 5,00,000 रुपये तक हो सकता है।

अधिनियम की धारा 194 (3) कहती है कि “जहां एक निदेशक या अन्य प्रमुख प्रबंधकीय कर्मी उप-धारा (1) के उल्लंघन में किसी भी प्रतिभूति (सिक्योरिटी) का अधिग्रहण (एक्वायर) करते हैं, वह उप-धारा (2) में निहित प्रावधानों के अधीन, उत्तरदायी होगा और कंपनी को इसे अभ्यर्पित (सरेंडर) करना होगा और कंपनी रजिस्टर में उसके नाम पर अर्जित प्रतिभूतियों को पंजीकृत नहीं किया जाएगा, और यदि वे अभौतिक रूप में हैं, तो यह डिपॉजिटरी को दोनों मामलों में इस तरह के अधिग्रहण और ऐसी प्रतिभूतियों को रिकॉर्ड नहीं करने के लिए सूचित भी करेगा।”

धारा 195

अधिनियम की धारा 195 (2) में कहा गया है कि “यदि कोई व्यक्ति इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, तो उसे एक अवधि के लिए कारावास, जिसे 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माने से दंडनीय होगा जो 5,00,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 25 करोड़ रुपये या इनसाइडर ट्रेडिंग से होने वाले मुनाफे का तीन गुना, जो भी अधिक हो, या दोनों के साथ बढ़ाया जा सकता है। ”

धारा 203

अधिनियम की धारा 203 (5) कहती है कि “यदि कोई कंपनी इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करती है, तो कंपनी को जुर्माने से दंडित किया जाएगा जो 1,00,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 5,00,000 रुपये तक हो सकता है और प्रत्येक निदेशक और कैपिटल कंपनी के प्रबंधकीय कर्मचारी जो चूक में शामिल हैं, 50,000 रुपये के जुर्माने से दंडनीय होगे और जहां उल्लंघन जारी रहता है वहा जुर्माना 1000 रूपए तक का हो सकता है।

धारा 204

अधिनियम की धारा 204 (4) कहती है कि “यदि कोई कंपनी या कंपनी का कोई अधिकारी या कंपनी सचिव, इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, तो कंपनी, कंपनी का प्रत्येक अधिकारी या कंपनी सचिव, चूक करने पर, जुर्माने से दण्डनीय होगा, जो 1,00,000 रुपए से कम नहीं होगा लेकिन जो 5,00,000 रुपए तक हो सकता है।”

धारा 206

अधिनियम की धारा 206 (7) में कहा गया है कि “यदि कोई कंपनी इस धारा के तहत कोई भी जानकारी या स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने या किसी भी आवश्यक दस्तावेज को प्रस्तुत करने में विफल रहती है, तो कंपनी और कंपनी के प्रत्येक अधिकारी, जो चूक में शामिल है, जुर्माना के साथ दंडनीय होगे जिसे 1,00,000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है और लगातार विफलता के मामले में, एक अतिरिक्त जुर्माना जो पहले दिन के बाद जिसके दौरान विफलता जारी रहती है500 रुपये तक हो सकता है,, से दंडनीय होगा।

धारा 207

अधिनियम की धारा 207 (4) कहती है कि “

  1. यदि कंपनी का कोई निदेशक या अधिकारी इस धारा के तहत रजिस्ट्रार या निरीक्षक द्वारा जारी निर्देश की अवज्ञा (डिसओबे) करता है, तो निदेशक या अधिकारी को कारावास से दंडित किया जा सकता है, जिसे 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माने के साथ जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 1,00,000 रुपये तक हो सकता है, से दंडनीय हो सकता है।
  2. यदि कंपनी के किसी निदेशक या अधिकारी को इस धारा के तहत किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है, तो निदेशक या अधिकारी को, जिस तारीख को वह इस तरह से दोषी ठहराया गया है, उसी दिन से अपना पद खाली कर दिया गया माना जाएगा और किसी भी कंपनी में पद धारण करने के लिए अयोग्य ठहराया जाएगा।”

धारा 229

अधिनियम की धारा 229 में कहा गया है कि “जहां एक व्यक्ति जिसे निरीक्षण, पूछताछ या जांच के दौरान स्पष्टीकरण देने या बयान देने की आवश्यकता होती है, या किसी कंपनी या अन्य निकाय कॉर्पोरेट का कोई अधिकारी या अन्य कर्मचारी जो जांच के अधीन है,-

  1. संपत्ति या मामलों से संबंधित कंपनी या निकाय कॉर्पोरेट के दस्तावेजों को नष्ट, विकृत (म्यूटीलेट) या मिथ्याकरण (फालसीफाई), या छुपाता या छेड़छाड़ या अनधिकृत रूप से हटा देता है, या विनाश, विकृति या मिथ्याकरण या छिपाने या छेड़छाड़ या अनधिकृत हटाने के लिए एक पक्ष है;
  2. कंपनी या कॉर्पोरेट निकाय से संबंधित किसी भी दस्तावेज़ में झूठी प्रविष्टि करता है, या बनाने का एक पक्ष है; या
  3. एक स्पष्टीकरण प्रदान करता है जो झूठा है या जिसे वह जानता है कि वह झूठा है;

वह धारा 447 में प्रदान किए गए तरीके से धोखाधड़ी के लिए दंडनीय होगा।”

धारा 243

अधिनियम की धारा 243 (2) कहती है कि “कोई भी व्यक्ति जो जानबूझकर किसी कंपनी के प्रबंध निदेशक या अन्य निदेशक या प्रबंधक के रूप में कार्य करता है, जो उप-धारा (1) के खंड (b) और कंपनी के निदेशक का उल्लंघन करता है, वह कारावास से, जिसकी अवधि 6 महीने तक हो सकती है, या जुर्माने से, जो 5,00,000 रुपये तक हो सकता है, या दोनों से दंडनीय होगा।

धारा 267

अधिनियम की धारा 267 में कहा गया है कि “जो कोई भी इस अध्याय या किसी योजना, या किसी आदेश, ट्रिब्यूनल या अपीलीय ट्रिब्यूनल के प्रावधानों का उल्लंघन करता है या गलत बयान देता है या ट्रिब्यूनल या अपीलीय ट्रिब्यूनल के सामने झूठा सबूत देता है इस अधिनियम के तहत दायर संदर्भ या अपील के रिकॉर्ड के साथ या छेड़छाड़ करने का प्रयास करता है, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि 7 साल तक हो सकती है और जुर्माना जो 10 लाख रुपये तक हो सकता है, से दंडनीय होगा।

धारा 301

अधिनियम की धारा 301 में कहा गया है कि “किसी भी समय या तो समापन आदेश पारित करने से पहले या बाद में, यदि ट्रिब्यूनल संतुष्ट है कि एक अंशदायी (कंट्रीब्यूटरी) या कंपनी की संपत्ति, खाते या कागजात रखने वाला व्यक्ति भारत छोड़ने वाला है या कॉल के भुगतान से बचने के लिए या कंपनी के मामलों के संबंध में परीक्षा से बचने के उद्देश्य से, अन्यथा फरार होने के लिए, या अपनी किसी भी संपत्ति को हटाने या छुपाने वाला है, ट्रिब्यूनल कुछ कारण से यह कर सकती है- 

  1. अंशदायी को तब तक हिरासत में रखा जाना चाहिए जब तक ट्रिब्यूनल आदेश जारी करेगा और 
  2. उसकी किताबें और कागजात और चल संपत्ति को जब्त कर लिया जाएगा और सुरक्षित रूप से उस समय तक रखा जाएगा जब तक ट्रिब्यूनल आदेश दे।”

धारा 331

धारा 331(1) जहां एक कंपनी का परिसमापन किया जा रहा है और इस अधिनियम के शुरू होने के बाद की गई, ली गई या की गई कुछ भी धारा 328 के तहत कंपनी के कर्ज को सुरक्षित करने के लिए गिरवी रखी गई या चार्ज की गई संपत्ति में रुचि रखने वाले व्यक्ति की कपटपूर्ण वरीयता के रूप में अमान्य है, तो, किसी भी अधिकार या देनदारियों के पूर्वाग्रह के बिना, इस प्रावधान के अलावा, पसंदीदा व्यक्ति समान देनदारियों के अधीन होगा, और उसके पास वही अधिकार होंगे, जैसे कि उसने ऋण के लिए प्रतिभू के रूप में व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होने का वचन दिया था। संपत्ति पर गिरवी या प्रभार की सीमा या उसके ब्याज का मूल्य, जो भी कम हो।

धारा 337

अधिनियम की धारा 337 में कहा गया है कि “यदि कोई व्यक्ति, कथित अपराध के समय किसी कंपनी का अधिकारी है, जिसे बाद में ट्रिब्यूनल द्वारा समाप्त करने का आदेश दिया गया है या जो बाद में स्वैच्छिक समापन के लिए एक प्रस्ताव पारित करता है,-

  1. झूठे बहाने या किसी अन्य धोखाधड़ी के माध्यम से, किसी व्यक्ति को कंपनी को क्रेडिट देने के लिए प्रेरित किया है;
  2. कंपनी या किसी अन्य व्यक्ति के लेनदारों को धोखा देने के इरादे से, संपत्ति के खिलाफ किसी भी निष्पादन के आरोप में कोई उपहार या हस्तांतरण, या उस पर भार लगाया है या बनाया है  या
  3. कंपनी के लेनदारों को धोखा देने के इरादे से, कंपनी के खिलाफ प्राप्त धन के भुगतान के लिए किसी भी असंतुष्ट निर्णय या आदेश की तारीख से या उस तारीख से 2 महीने के भीतर कंपनी की संपत्ति के किसी भी हिस्से को छुपाया या हटा दिया है,

वह कारावास से, जिसकी अवधि 1 वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जो 3 वर्ष तक की हो सकती है, और जुर्माने से दंडनीय होगा, जो 1,00,000 रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन जो 3,00,000 रुपए तक हो सकता है।

धारा 338

अधिनियम की धारा 338 (1) कहती है कि “जहां एक कंपनी को बंद किया जा रहा है, अगर यह दिखाया गया है कि कंपनी द्वारा समापन के शुरू होने से ठीक पहले दो साल की अवधि के दौरान खाते की उचित किताबें नहीं रखी गई थीं, या कंपनी के निगमन (इनकॉर्पोरेशन) और समापन की शुरुआत के बीच की अवधि, जो भी कम हो, कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, जब तक कि वह यह नहीं दिखाता कि उसने ईमानदारी से काम किया है, एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जा सकता है जो 1 वर्ष से कम नहीं होगा लेकिन जो 3 साल तक हो सकता है और जुर्माने के साथ जो 1,00,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 3,00,000 रुपये तक हो सकता है।”

धारा 339

अधिनियम की धारा 339 (1) कहती है कि “यदि किसी कंपनी के समापन के दौरान, ऐसा प्रतीत होता है कि कंपनी का कोई भी व्यवसाय कंपनी के लेनदारों या किसी अन्य व्यक्ति या किसी के लिए धोखा देने के इरादे से किया गया है, ट्रिब्यूनल, आधिकारिक परिसमापक (ऑफिशियल लिक्विडेटर), या कंपनी परिसमापक या कंपनी के किसी लेनदार या योगदानकर्ता के आवेदन पर, यदि वह ऐसा करना उचित समझता है, घोषित कर सकता है कि कोई भी व्यक्ति, जो निदेशक है या रहा है, कंपनी के प्रबंधक, या अधिकारी या कोई भी व्यक्ति जो ऊपर दिए तरीके से व्यवसाय चलाने के लिए जानबूझकर पक्ष थे, कंपनी के सभी या किसी भी ऋण या अन्य देनदारियों के लिए देयता की किसी भी सीमा के बिना व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे, जैसा कि ट्रिब्यूनल निर्देश दे सकता है।”

धारा 392

अधिनियम की धारा 392 में कहा गया है कि “धारा 391 के प्रावधानों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि कोई विदेशी कंपनी इस अध्याय के प्रावधानों का उल्लंघन करती है, तो विदेशी कंपनी जुर्माने से दण्डनीय होगी जो 1,00,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जिसे 3,00,000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है। और एक निरंतर अपराध के मामले में, एक अतिरिक्त जुर्माना के साथ दण्डनीय होगा, जो उल्लंघन जारी रहने के बाद हर दिन के लिए 50,000 रुपये तक हो सकता है और विदेशी कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है, कारावास से दंडनीय होगा जो एक अवधि के लिए 6 महीने तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 5,00,000 रुपये तक हो सकता है।

धारा 405

अधिनियम की धारा 405 (4) कहती है कि “यदि कोई कंपनी उप-धारा (1) या उपधारा (3) के तहत किए गए आदेश का पालन करने में विफल रहती है, या जानबूझकर कोई जानकारी या आंकड़े प्रस्तुत करती है जो किसी भी भौतिक संबंध में गलत या अपूर्ण है। कंपनी को और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूक में शामिल है को 6 महीने के कारावास से दंडित किया जाएगा और जुर्माने के लिए उत्तरदाई होगा जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 3,00,000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।

धारा 447

अधिनियम की धारा 447 में कहा गया है कि “इस अधिनियम या किसी अन्य कानून के तहत किसी भी ऋण को देते सहित किसी भी दायित्व के पूर्वाग्रह के बिना, कोई भी व्यक्ति जो धोखाधड़ी का दोषी पाया जाता है, उसे 6 महीने के कारावास से दंडित किया जाएगा जो 10 साल तक बढ़ाई जा सकती है और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगी जो धोखाधड़ी में शामिल राशि से कम नहीं होगी, लेकिन जो धोखाधड़ी में शामिल राशि के तीन गुना तक बढ़ाई जा सकती है: बशर्ते कि जहां विचाराधीन धोखाधड़ी में जनहित शामिल हो, कारावास की अवधि 3 वर्ष से कम नहीं होगी।”

धारा 448

अधिनियम की धारा 448 में कहा गया है कि “इस अधिनियम में अन्यथा प्रदान की गई यदि किसी रिटर्न, रिपोर्ट, प्रमाण पत्र, वित्तीय विवरण, प्रॉस्पेक्टस, विवरण या अन्य दस्तावेज में, या इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान के उद्देश्य के लिए आवश्यक है।

  1. जो कि किसी सही विवरण में असत्य है, यह जानते हुए कि वह असत्य है; या
  2. जो किसी सही तथ्य को छोड़ देता है, यह जानते हुए कि वह तात्विक है, वह धारा 447 के तहत उत्तरदायी होगा।”

धारा 449

अधिनियम की धारा 449 में कहा गया है कि “इस अधिनियम में अन्यथा प्रदान किए गए अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर गलत साक्ष्य देता है-

  1. इस अधिनियम के तहत अधिकृत शपथ या गंभीर शपथ पर किसी भी जांच पर; या
  2. किसी भी हलफनामे, बयान या गंभीर प्रतिज्ञान में, या इस अधिनियम के तहत किसी भी कंपनी के समापन के बारे में, या इस अधिनियम के तहत उत्पन्न होने वाले किसी भी मामले के बारे में, वह एक अवधि के लिए कारावास से दंडनीय होगा जो 3 साल से कम नहीं होगा लेकिन जो 7 साल तक हो सकता है और जुर्माना जो 10 लाख रुपये तक हो सकता है।

धारा 450

अधिनियम की धारा 450 में कहा गया है कि “यदि कोई कंपनी या किसी कंपनी का कोई अधिकारी या कोई अन्य व्यक्ति इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान या उसके तहत बनाए गए नियमों, या किसी शर्त, सीमा या प्रतिबंध का उल्लंघन करता है, जिसके अधीन कोई अनुमोदन, मंजूरी, किसी भी मामले के संबंध में सहमति, पुष्टि, मान्यता, निर्देश या छूट दी गई है, और जिसके लिए इस अधिनियम में कहीं और कोई दंड प्रदान नहीं किया गया है, कंपनी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी या अन्य व्यक्ति जो चूक में शामिल है जुर्माने से दण्डनीय होगा जो 10000 रुपये तक हो सकता है।

धारा 451

अधिनियम की धारा 451 में कहा गया है कि “यदि कोई कंपनी या कंपनी का कोई अधिकारी जुर्माना या कारावास से दंडनीय कोई अपराध करता है और जहां तीन साल की अवधि के भीतर दूसरी या बाद के अवसरों में वही अपराध किया जाता है, तो वह कंपनी और उसका प्रत्येक अधिकारी, जो चूक करता है, उस अपराध के लिए दिए गए कारावास के अतिरिक्त, ऐसे अपराध के लिए जुर्माने की दोगुनी राशि से दंडनीय होगा।”

धारा 452

अधिनियम की धारा 452 में कहा गया है कि “

  1. यदि किसी कंपनी का कोई अधिकारी या कर्मचारी-
  • कंपनी की नकदी सहित किसी भी संपत्ति पर गलत तरीके से कब्जा कर लेता है; या
  • उसके पास ऐसी कोई संपत्ति है जिसमें नकदी भी शामिल है, इसे गलत तरीके से रखता है या जानबूझकर इसे लेखों में व्यक्त या निर्देशित और इस अधिनियम द्वारा अधिकृत उद्देश्यों के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए लागू करता है, वह कंपनी की शिकायत पर या किसी भी सदस्य या लेनदार या उसके सहयोगी की शिकायत पर, जुर्माने से दंडनीय होगा जो 1,00,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 5,00,000 रुपये तक हो सकता है।

2. उप-धारा (1) के तहत अपराध का विचारण करने वाला न्यायालय ऐसे अधिकारी या कर्मचारी को उसके द्वारा निर्धारित समय के भीतर, ऐसी किसी संपत्ति या नकद को गलत तरीके से प्राप्त करने या जानबूझकर गलत आदेश देकर ऐसी संपत्ति या नकद या गलत तरीके से फायदा लेने पर 2 साल तक के कारावास से दण्डित किया जाएगा।

धारा 453

अधिनियम की धारा 453 में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी भी नाम या शीर्षक के तहत व्यापार करता है, जिसमें शब्द ‘लिमिटेड’ या शब्द ‘प्राइवेट लिमिटेड’ या कोई मेल या उसकी नकल अंतिम शब्द है, वह व्यक्ति या उनमें से प्रत्येक व्यक्ति, जब तक कि सीमित देयता के साथ विधिवत रूप से शामिल नहीं किया जाता है, या जब तक कि सीमित देयता के साथ एक निजी कंपनी के रूप में विधिवत रूप से शामिल नहीं किया जाता है तो वह जुर्माने से दंडनीय होगा जो 500 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन उसे 2000 रूपये तक बढ़ाया जा सकता है।

धारा 454

अधिनियम की धारा 454 (8) कहती है कि 

  1. जहां कंपनी आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से नब्बे दिनों की अवधि के भीतर निर्णायक अधिकारी या क्षेत्रीय निदेशक द्वारा लगाए गए दंड का भुगतान नहीं करती है, कंपनी जुर्माने से दण्डनीय होगी जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगा लेकिन जो 5,00,000 रुपये तक हो सकता है।
  2. जहां कंपनी का कोई अधिकारी चूक करता है, और आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से 90 दिनों की अवधि के भीतर दंड का भुगतान नहीं करता है, ऐसा अधिकारी कारावास से दंडनीय होगा जिसे 6 महीने तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माने से दण्डनीय होगा जो 25,000 रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन जो 1,00,000 रुपये तक हो सकता है।

धारा 464

अधिनियम की धारा 464 (3) कहती है कि “उपधारा (1) के उल्लंघन में व्यापार करने वाले संघ या साझेदारी का प्रत्येक सदस्य जुर्माने से दंडनीय होगा जो 1,00,000 रुपये तक हो सकता है और वह ऐसे व्यवसाय में व्यक्तिगत रूप से किए गए सभी दायित्वों के लिए भी उत्तरदायी होगा।

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