बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानून

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Laws for child rights
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यह लेख गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, नई दिल्ली की छात्रा Neha Gururani ने लिखा है। इस लेख में, उन्होंने शोषण (एक्सप्लॉयटेशन) के खिलाफ अधिकार और भारतीय संविधान के संबंधित प्रावधानों, बाल श्रम (लेबर) के मुद्दे और बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए विभिन्न कानूनों पर चर्चा की है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

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परिचय (इंट्रोडक्शन)

भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र (डेमोक्रेसी) है। प्रगति और विकास के इस पथ के पीछे एक महान संघर्ष (स्ट्रगल) छिपा है। भारत सदियों से गुलामी का शिकार रहा है। भारत को गुलामी से मुक्त होने में कई शताब्दियां लगीं और आखिरकार इंडियन पीनल कोड, 1860 के इनैक्ट होने के बाद, भारत में गुलामी को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है। भारतीय संविधान के निर्माताओं (मेकर्स) ने आर्टिकल 23 और 24 के माध्यम से ऐसी प्रथाओं को समाप्त कर दिया है। भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता और सम्मान की गारंटी देता है, इसलिए शोषण, गुलामी और दुर्व्यवहार (इल-ट्रीटमेंट) की कोई गुंजाइश नहीं है।

शोषण का अर्थ है बल की सहायता से दूसरों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं का दुरुपयोग करना। शोषण की प्रथा भारतीय संविधान की मूल अवधारणा (बेसिक कंसेप्ट), प्रिएंबल का उल्लंघन करती है और भारतीय संविधान के आर्टिकल 39 के तहत दिए गए डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी का विरोध करती है जो व्यक्तियों के बीच आर्थिक (इकोनॉमिक) समानता को प्रोत्साहित करती है।

आर्टिकल 23- ‘मनुष्यों की तस्करी’ और जबरन श्रम का निषेध’ (प्रोहिबिशन ऑफ ट्रैफिक इन ह्यूमन बिइंग्स एंड फोर्स्ड लेबर)

भारतीय संविधान का आर्टिकल 23 स्पष्ट (एक्सप्रेस) रूप से मानव तस्करी, जबरन श्रम और इसी तरह की अन्य गतिविधियों पर रोक लगाता है। इसमें यह भी कहा गया है कि इस प्रावधान (प्रोविजन) के किसी भी उल्लंघन को अपराध माना जाएगा और कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को कानून के अनुसार दंडित किया जाएगा।

आर्टिकल 23 की विशेषताएं

इसकी कुछ विशेषताएं हैं जिनसे प्रत्येक व्यक्ति को अवगत (अवेयर) होना चाहिए-

  • शोषण के खिलाफ अधिकार भारतीय संविधान के आर्टिकल 23 के तहत व्यक्तियों के मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) के रूप में निर्धारित (प्रेस्क्राइब्ड) है।
  • यह नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों को शोषण से बचाता है।
  • यह राज्य के साथ-साथ निजी नागरिकों के खिलाफ व्यक्तियों की रक्षा करता है।
  • आर्टिकल 35 संसद को उन कार्यों को दंडित करने के लिए कानून बनाने के लिए अधिकृत (ऑथराइज) करता है जो आर्टिकल 23 के तहत निषिद्ध हैं।

यह आर्टिकल मानव तस्करी और अन्य प्रकार के जबरन श्रम जैसे शोषण की अनैतिक (इम्मोरल) प्रथाओं को समाप्त करने के लिए राज्य पर एक सकारात्मक दायित्व (पॉजिटिव ऑब्लिगेशन) लगाता है।

आर्टिकल 23 द्वारा निषिद्ध प्रथाएं (प्रैक्टिसेज प्रोहिबिटेड बाय आर्टिकल 23)

आर्टिकल 23 स्पष्ट रूप से निम्नलिखित प्रथाओं को प्रतिबंधित करता है:

  • बेगार

यह जबरन मजदूरी का एक रूप है जिसका अर्थ है बिना किसी पारिश्रमिक (रिम्यूनरेशन) के बिना इच्छा के कार्य करना। दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि एक व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध काम करने के लिए बिना भुगतान (पेड) के काम करने के किए मजबूर किया जाता है।

  • बंधुआ मजदूरी/ऋण बंधन (बॉन्डेड लेबर/डेट बॉन्डेज)

आर्टिकल 23 बंधुआ मजदूरी को प्रतिबंधित करता है क्योंकि यह इस आर्टिकल के अनुसार जबरन मजदूरी का एक रूप है। यह एक ऐसी प्रथा है जिसके तहत व्यक्ति को अपना कर्ज चुकाने के लिए काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें जो पैसा मिलता है वह बहुत कम होता है और वे जो काम करते हैं वह दोगुना होता है। अक्सर ये कर्ज अगली पीढ़ियों को हस्तांतरित (पास) हो जाते हैं। इसलिए, इसे जबरन श्रम का एक रूप कहा जाता है।

  • मानव तस्करी

इसका मतलब है किसी इंसान को सामान की तरह बेचना और खरीदना और इसमें महिलाओं और बच्चों की अनैतिक तस्करी शामिल है। हालांकि, गुलामी का स्पष्ट रूप से आर्टिकल 23 के तहत उल्लेख (मेंशन) नहीं किया गया है, लेकिन इसे ‘मानव तस्करी’ के अर्थ में शामिल किया गया है। आर्टिकल 23 के अनुसरण (पर्सुएंस) में, संसद ने मानव तस्करी को दंडित करने के लिए सप्रेशन ऑफ इम्मोरल ट्रैफिक इन वूमेन एंड गर्ल्स एक्ट, 1956 पास किया है।

  • बाल श्रम के अन्य रूप

आर्टिकल 23 के अंदर आने वाली कोई अन्य प्रथा भी इस आर्टिकल द्वारा निषिद्ध है।

आर्टिकल 23 का अपवाद (एन एक्सेप्शन टू आर्टिकल 23)

आर्टिकल 23 के क्लॉज (2) के तहत, राज्य को राष्ट्रीय रक्षा, निरक्षरता (इलेटरेसी) को दूर करने और अन्य सार्वजनिक उपयोगिता (यूटिलिटी) सेवाओं (बिजली, पानी, हवाई और रेल सेवाओं, डाक सेवाओं, आदि) जैसे सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अनिवार्य सेवाओं को लागू करने की अनुमति है, बशर्ते (प्रोवाइडेड) कि सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए ऐसी किसी भी सेवा को अनिवार्य बनाने में, राज्य धर्म, जाति, या वर्ग (क्लास) या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है।

ऐतिहासिक निर्णय (लैंडमार्क जजमेंट्स)

आर्टिकल 23 से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण मामलों पर संक्षेप (ब्रीफ) में इस प्रकार चर्चा की गई है-

आर्टिकल 23 का दायरा विशाल और असीमित है। केवल ‘बेगार’ नहीं है जो इस आर्टिकल के तहत निषिद्ध है। यह आर्टिकल जबरन श्रम पर प्रहार (स्ट्राइक) करता है, चाहे वह किसी भी रूप में हो, क्योंकि यह मानवीय गरिमा (डिग्निटी) का उल्लंघन करता है और बुनियादी (बेसिक) मानवीय मूल्यों (वैल्यूज) का विरोध करता है। इसलिए, जबरन श्रम का भुगतान किया जा रहा है या नहीं, इस पर विचार किए बिना आर्टिकल 23 द्वारा हर प्रकार के जबरन श्रम को प्रतिबंधित किया गया है।  साथ ही, किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध श्रम या सेवाएं प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा, भले ही उसका उल्लेख सेवा कॉन्ट्रैक्ट के तहत किया गया हो। आर्टिकल 23 के तहत ‘बल’ शब्द का बहुत व्यापक (वाइड) अर्थ है। इसमें न केवल शारीरिक या कानूनी बल शामिल है, बल्कि उन आर्थिक परिस्थितियों को भी पहचानता है जो किसी व्यक्ति को न्यूनतम मजदूरी से कम पर उसकी इच्छा के विरुद्ध काम करने के लिए मजबूर करती हैं। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह निजी व्यक्तियों द्वारा आर्टिकल 23 के तहत गारंटी किए हुए नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को दंडित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए।

  • संजीत रॉय बनाम राजस्थान स्टेट में, राज्य ने  फेमिन रिलीफ एक्ट के तहत लोगों को कुछ कार्यों के लिए नियोजित किया था। लोग अकाल (फेमिन) से बुरी तरह प्रभावित हुए थे, इसलिए राज्य ने उन्हें रोजगार दिया था। हालांकि, इन लोगों को इस आधार पर न्यूनतम मजदूरी से भी कम वेतन दिया गया था और कहा गया था कि यह पैसा अकाल की स्थिति से निपटने में मदद करने के लिए दिया गया है।  जस्टिस भगवती ने कहा कि-

अकाल राहत में कार्य करने वाले व्यक्ति को न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी का भुगतान आर्टिकल 23 के तहत उल्लंघन है। राज्य को ऐसे लोगों की असहायता का अनुचित लाभ उठाने की अनुमति नहीं है।

कैदियों से बिना पारिश्रमिक के लिया गया श्रम ‘जबरन श्रम’ था और संविधान के आर्टिकल 23 का उल्लंघन था। कैदी उनके द्वारा किए गए काम के लिए उचित मजदूरी के भुगतान के हकदार हैं और उनके दावे को लागू करने का कोर्ट का कर्तव्य है। ”

आर्टिकल 24 – फैक्ट्रीज आदि में बच्चों के नियोजन का निषेध (प्रोहिबिशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट ऑफ़ चिल्ड्रन इन फैक्ट्रीज ईटीसी)

भारतीय संविधान का आर्टिकल 24, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को फैक्ट्रीज, खदानों या किसी अन्य खतरनाक जगहों में रोजगार पर रोक लगाता है। यह आर्टिकल बच्चों के कल्याण (वेल्फेयर) के लिए है और बच्चों के सुरक्षित और स्वस्थ जीवन को सुनिश्चित करता है। भारतीय संविधान का आर्टिकल 39 राज्य पर यह सुनिश्चित करने के लिए एक दायित्व लगाता है कि श्रमिकों (वर्कर), पुरुषों और महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और ताकत का दुरुपयोग न हो और उन्हें खतरनाक गतिविधियों में शामिल होने के लिए मजबूर किया जाए जो उनकी उम्र या ताकत के अनुरूप (सूट) नहीं हैं।

बच्चे राष्ट्र का भविष्य होते हैं। प्रत्येक राष्ट्र का यह कर्तव्य है कि वह देश के बच्चों को अच्छा भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य प्रदान करके उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करे ताकि वे अपने जीवन में कुछ अच्छा करने के लिए पर्याप्त मजबूत बन सकें जो अंत में प्रगति में योगदान दे सके और राष्ट्र का विकास कर सके। इसलिए आर्टिकल 24 को आर्टिकल 39(e) और आर्टिकल 39(f) के साथ पढ़ा जाता है।

हालांकि, यह आर्टिकल बच्चों को निर्दोष और हानिरहित (हार्मलेस) नौकरियों या कृषि क्षेत्रों, किराने की दुकान आदि में काम करने पर रोक नहीं लगाता है।

आर्टिकल 24 की विशेषताएं

  • यह आर्टिकल 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक काम करने पर रोक लगाता है।
  • यह लेख आर्टिकल 39(e) और (f) के साथ पढ़ा जाता है।
  • यह बच्चों की सुरक्षा और स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करता है।
  • यह राज्य पर यह सुनिश्चित करने के लिए एक कर्तव्य लगाता है कि आर्टिकल 39 के माध्यम से वित्तीय (फाइनेंशियल) समस्याओं के कारण बच्चों के साथ दुर्व्यवहार और हानिकारक स्थानों पर काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जाता है।
  • यह हानिरहित काम में बच्चों के रोजगार पर रोक नहीं लगाता है।

ऐतिहासिक निर्णय

आर्टिकल 24 के संबंध में कुछ निर्णय विधि (केस लॉज) निम्नलिखित हैं –

“सरकार द्वारा दिया गया तर्क बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। निर्माण कार्य खतरनाक रोजगार है और इसलिए, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को निर्माण कार्य में नियोजित नहीं किया जाना चाहिए, भले ही निर्माण कार्य विशेष रूप से एम्प्लॉयमेंट ऑफ़ चिल्ड्रन एक्ट, 1938 के शेड्यूल के तहत उल्लिखित न हो। राज्य सरकार को सलाह दी जाती है कि निर्माण कार्य को एक्ट के शेड्यूल में शामिल करने और देश के किसी भी हिस्से में आर्टिकल 24 का उल्लंघन न हो यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल आवश्यक कदम उठाएं जाने चाहिए।

  • एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडु स्टेट के मामले में, एक सरकारी वकील एम.सी. मेहता ने आर्टिकल 32 के तहत एक जनहित याचिका (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) दायर की और कोर्ट को सूचित किया कि बच्चे शिवकाशी क्रैकर कारखानों में कैसे लगे हुए हैं। यद्यपि संविधान आर्टिकल 24 के तहत बच्चों के शोषण और रोजगार पर रोक लगाता है, यह राज्य को आर्टिकल 41 के तहत उन्हें मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का भी निर्देश देता है और अभी भी बड़ी संख्या में बच्चे खतरनाक स्थानों पर काम कर रहे हैं। कई राज्य सरकारों द्वारा बाल श्रम को प्रतिबंधित करने वाले संवैधानिक (कांस्टीट्यूशनल) प्रावधानों और विभिन्न एक्ट्स के बावजूद, बाल श्रम का मुद्दा अनसुलझा रहा है और दिन-प्रतिदिन समाज के लिए खतरा बनता जा रहा है। जस्टिस हंसरिया द्वारा कहा गया था कि-

14 साल से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक गतिविधियों में नियोजित नहीं किया जा सकता है और सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में अवैध रूप से काम करने वाले ऐसे बच्चों के सामाजिक, आर्थिक और मानवीय (ह्यूमेनिटेरियन) अधिकारों को रोकने के लिए राज्य को कुछ दिशानिर्देश निर्धारित करने चाहिए। साथ ही, यह आर्टिकल 24 का उल्लंघन है और उन्हें मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है। साथ ही चाइल्ड लेबर रिहैबिलिटेशन वेल्फेयर फंड की स्थापना (एस्टेब्लिश) करने तथा प्रत्येक बच्चे को 20,000 रुपये मुआवजा (कंपनसेशन) देने का भी निर्देश दिया है।

बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानून

आर्टिकल 24 द्वारा दिए गए दायित्वों को पूरा करने के लिए और बाल अधिकारों पर युनाइटेड नेशन कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ चाइल्ड जैसे कुछ अंतरराष्ट्रीय उपकरणों (इंस्ट्रूमेंट) में, और भारत की संसद ने बच्चों के कल्याण और समृद्धि के लिए कुछ एक्ट बनाए है।

  • एंप्लॉयमेंट ऑफ चिल्ड्रन एक्ट, 1938: यह एक्ट 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को रेलवे और परिवहन (ट्रांसपोर्ट) के अन्य साधनों में रोजगार पर रोक लगाता है।
  • चाइल्ड लेबर (प्रोहिबिशन एंड रेगुलेशन) एक्ट, 1986: यह एक्ट बच्चों को कुछ रोजगारों में संलग्न (इंगेज) करने पर रोक लगाता है और उन बच्चों के रोजगार की स्थिति को नियंत्रित करता है जहां उन्हें काम करने के लिए प्रतिबंधित नहीं किया जाता है।
  • माइन्स एक्ट, 1952: इस एक्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि खदान में काम करने वाले व्यक्ति की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए। इस प्रकार, खदानों में बच्चों के रोजगार पर रोक लगाना है।
  • फैक्ट्रीज एक्ट, 1948: यह 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को फैक्ट्रीज में काम पर रोक लगाता है। यह एक्ट 14 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों को नियोजित (एम्प्लॉय) करने के लिए कुछ प्रतिबंध (रिस्ट्रिक्शन) और उचित प्रक्रिया निर्धारित करता है।
  • प्लांटेशन लेबर एक्ट, 1951: यह एक्ट रोजगार की न्यूनतम (मिनिमम) आयु 12 वर्ष निर्धारित करता है और आगे 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे जो काम कर रहे है उनके लिए समय-समय पर फिटनेस जांच के प्रावधान को निर्धारित करता है।
  • मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट, 1961: यह एक्ट मोटर परिवहन क्षेत्र में 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है।
  • एप्रेंटिसेज एक्ट, 1961: यह एक्ट 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को एप्रेंटिसेशिप ट्रेनिंग लेने से रोकता है।
  • बीड़ी एंड सिगार वर्कर (कंडीशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट) एक्ट, 1966: यह बीड़ी और सिगार बनाने वाले किसी भी इंडस्ट्रियल परिसर में 14 साल से कम उम्र के बच्चों के रोजगार पर रोक लगाता है।

इन कानूनों के अलावा, बाल श्रम के मामले को देखने के लिए देश भर में कई कमिटिज और कमिशंस स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा, कई एनजीओ भी बच्चों के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। कई पुनर्वास (रिहैबिलिटेशन) केंद्र स्थापित किए गए हैं जो बाल श्रम के कारण अत्यधिक शोषित बच्चों के जीवन को एक नया आकार दे रहे हैं।

भारत ने युनाइटेड नेशन का सदस्य होने के नाते, बच्चे के अधिकारों की रक्षा के लिए इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाइजेशन कन्वेंशन्स जैसे कई अंतर्राष्ट्रीय कंवेंशन की पुष्टि की है।

एनसीपीसीआर की स्थापना

नेशनल कमिशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) भारत सरकार की एक कमिशन है जिसकी स्थापना 2007 में कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स एक्ट, 2005 के तहत की गई थी। इस वैधानिक निकाय (स्टेच्यूटरी बॉडी) का उद्देश्य सभी कानूनों, नीतियों (पॉलिसीज), कार्यक्रमों को सुनिश्चित करना है और प्रशासनिक तंत्र (एडमिनिस्ट्रेटिव मैकेनिज्म) भारतीय संविधान और युनाइटेड नेशन कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ चाइल्ड के तहत निहित बाल अधिकारों के प्रावधानों के अनुसार हैं। यह कमिशन केंद्र और राज्य दोनों स्तरों (लेवल) पर स्थापित है। यह उनके खिलाफ अपराध या बच्चे के अधिकार के किसी भी उल्लंघन के मामले में चिल्ड्रन कोर्ट के त्वरित परीक्षण (स्पीडी ट्रायल) के लिए भी काम करता है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

सभ्यता (सिविलाइजेशन) की उत्पत्ति के बाद से, मजबूत ने कमजोर पर शोषण किया है। ऐसे में कमजोरों को इस तरह के शोषण से बचाना और उन्हें हर क्षेत्र में खुद को सशक्त (एंपावर) बनाने के समान अवसर प्रदान करना समय की मांग है। इसके अलावा, बाल श्रम एक अपराध है जो समाज में एक अभिशाप के रूप में प्रचलित है। यह देश के विकास में बाधक है।  स्वस्थ बच्चे ही देश को उज्जवल भविष्य की ओर ले जाते हैं। बाल श्रम कलंक (ब्लेमिश) है और बच्चों के भविष्य को तबाह कर रहा है और अंत में देश की प्रगति में बाधक साबित होता है। इसलिए, कानूनों का उचित इंप्लीमेंटेशन परम आवश्यकता है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

  • AIR 1982 SC 1943
  • AIR 1983 SC 328
  • AIR 1983 SC 1155
  • AIR 1983 SC 1473
  • AIR 1997 SC 669
  • The Constitution of India by P. M. Bakshi

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