भारत में सिटिज़नशिप से संबंधित कानून

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Constitution of India
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यह लेख मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लॉ, उदयपुर, राजस्थान की छात्रा, Mariya Paliwala ने लिखा है। यह लेख इंडियन कॉन्स्टीट्यूशन के पार्ट II, यानी सिटिज़नशिप पर प्रकाश डालता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है। 

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

आम तौर पर, सिटिज़नशिप एक ऐसा मामला है जिसे लेजिस्लेचर द्वारा देखा जाता है और यह देश के कॉन्स्टीट्यूशनल कानून में शामिल नहीं होता, और आम तौर पर किसी कॉन्स्टीट्यूशन में सिटिज़नशिप से संबंधित प्रावधान होना अद्वितीय (यूनिक) है, जो की इंडियन कॉन्स्टीट्यूशन में है। सिटिज़नशिप को कॉन्स्टीट्यूशन में शामिल करने के पीछे हमारे कॉन्स्टीट्यूशन मेकर्स का यह मकसद था कि उन्हें समय (स्वतंत्रता के कारण पार्टीशन), स्थान (पार्टीशन के कारण विस्थापन (डिस्प्लेसमेंट)) और परिस्थितियों को ध्यान में रख कर यह प्रावधान बनाना था। सरल शब्दों में यह ब्रिटिश भारत के पार्टीशन को 2 भागों, अर्थात भारत और पाकिस्तान में और भारतीय राज्यों को दोनों राष्ट्रों में से किसी में भी शामिल होने की स्वतंत्रता देता है और  उस समय कॉन्स्टीट्यूशन के पार्ट II में सिटिज़नशिप से संबंधित प्रावधानों (आर्टिकल 5, 6, 7, 8, 9, 10 और 11) की बहुत ज्यादा आवश्यकता थी। उस युग की समाप्ति के साथ, इस भाग के अधिकांश आर्टिकल ऐतिहासिक रुचि बन गए। केवल आर्टिकल 11 ही भविष्य के लिए प्रासंगिक (रिलेवेंट) रहा।

आर्टिकल 5: कॉन्स्टीट्यूशन के प्रारंभ के समय सिटिज़नशिप

यह आर्टिकल उन लोगों की सिटिज़नशिप के बारे में विस्तार से बताता है, जिनका उस टेरिटरी में डोमिसाइल था जब कॉन्स्टीट्यूशन शुरू हुआ था, डोमिसाइल की परिस्थितियां कुछ इस प्रकार हैं:

  1. एक व्यक्ति जो भारत में पैदा हुआ हो।
  2. एक व्यक्ति जिसके माता-पिता में से कोई एक भारत में पैदा हुआ हो।
  3. एक व्यक्ति जो इंडियन कॉन्स्टीट्यूशन के लागू होने के तुरंत बाद कम से कम 5 साल के लिए भारत का रेसिडेंट है।

डोमिसाइल क्या है?

भारत में डोमिसाइल, इंडियन सिटिज़नशिप प्राप्त करने के लिए आवश्यक तत्वों में से एक है। हालांकि, ‘डोमिसाइल’ शब्द को कॉन्स्टीट्यूशन में कहीं परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन आम आदमी की भाषा में, डोमिसाइल एक स्थायी (परमानेंट) घर या ऐसा स्थान होता है जहां कोई व्यक्ति रहता है और अनिश्चित (इंडेफिनिट) काल के लिए वहां रहने का इरादा रखता है।

रेसिडेंस, डोमिसाइल से किस प्रकार भिन्न है?

डोमिसाइल के विपरीत, रेसिडेंस का तात्पर्य विशुद्ध (प्योरली) रूप से भौतिक (फिजिकल) तथ्य से है, जिसका अर्थ है कि किसी विशेष स्थान पर रहना, जबकि डोमिसाइल के लिए दो शर्तें हैं जिन्हें पूरा करने की आवश्यकता है अर्थात

  1. रहने का स्थान, और 
  2. अनिश्चित काल के लिए एक जगह पर रहने का इरादा।

इसलिए, डोमिसाइल में रेसिडेंस शामिल है। यह एक बड़ा शब्द है।

डोमिसाइल के प्रकार

डोमिसाइल मूल रूप से 2 प्रकार की होती है, जो इस प्रकार हैं:

डोमिसाइल ऑफ़ ओरिजिन 

इस प्रकार की डोमिसाइल, किसी भी व्यक्ति के जन्म-स्थान से संबंधित होती है। पिता के डोमिसाइल को बच्चे के डोमिसाइल ऑफ़ ओरिजिन के रूप में माना जाता है। मरणोपरांत (पोस्ट-ह्यूमस) बच्चे के मामले में, बच्चे का डोमिसाइल उस देश का होगा जिसमें उसके पिता की मृत्यु के समय उसके पिता का डोमिसाइल था। इसलिए इस प्रकार का डोमिसाइल जन्म के समय कानून के संचालन (ऑपरेशन) से प्राप्त होता है।

डोमिसाइल ऑफ़ चॉइस 

प्रत्येक स्वतंत्र व्यक्ति, अपनी पसंद का डोमिसाइल प्राप्त कर सकता है, जिसमें उसे डोमिसाइल के लिए 2 शर्तों को पूरा करना होता है। डोमिसाइल ऑफ़ चॉइस, वास्तव में किसी दूसरे देश में जाने के साथ-साथ, एनिमस मानेंडी, जिसका यह अर्थ है की ऐसी मन की स्थिति जहा व्यक्ति उस स्थान को, अपना स्थाई रहने का स्थान बनाने के इरादे से रहता है, के साथ हासिल किया जाता है। 

डोमिसाइल, सिटिज़नशिप से कैसे अलग है?

अब्दुर रहमान बनाम स्टेट (ए.आई.आर 1964 पी.ए.टी 384) के मामले में, यह पुष्टि की गई थी कि डोमिसाइल, सिटिज़नशिप से अलग है। व्यक्ति के पास नेशनेलिटी या सिटिज़नशिप और अलग डोमिसाइल हो सकती है, या उसके पास एक डोमिसाइल हो सकता है लेकिन कोई नेशनेलिटी नहीं हो सकती। सरल शब्दों में, डोमिसाइल का तात्पर्य टेरिटरी के संबंध में है, न कि समुदाय (कम्युनिटी) की सदस्यता जो सिटिज़नशिप या नेशनेलिटी की धारणा (नोशन) के मूल में है।

आर्टिकल 6: पाकिस्तान से भारत में माइग्रेट करने वाले व्यक्तियों को सिटिज़नशिप का अधिकार

यह आर्टिकल उन व्यक्तियों से संबंधित है, जो कॉन्स्टीट्यूशन के लागू होने से पहले पाकिस्तान से भारत चले गए थे। सिटिज़नशिप के उद्देश्य से ऐसे व्यक्ति को 2 भागों में वर्गीकृत किया जाता है:

  1. 19 जुलाई 1948 से पहले भारत आने वाले लोगों को भारत का नागरिक माना जाता है, इस शर्त पर कि:
  • वह व्यक्ति या उसके माता-पिता या दादा-दादी का जन्म, गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट, 1935 के अनुसार भारत में हुआ था।
  • व्यक्ति अपने माइग्रेशन की तिथि से भारत में रह रहा है।
  1. जो लोग 19 जुलाई 1948 को या उसके बाद आए हैं। भारत के नागरिक होने के नाते उन इमिग्रेंट्स को निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना होगा:
  • व्यक्ति या उसके माता-पिता या दादा-दादी का जन्म गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट, 1935 के अनुसार भारत में हुआ था।
  • व्यक्ति कोअपनी सिटिज़नशिप के लिए आवेदन (अप्लाई) करना होगा।
  • व्यक्ति को यह साबित करने में सक्षम होना होगा कि वह छह महीने से भारत में रह रहा है।
  • उसे गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट, 1935 या वर्तमान कॉन्स्टीट्यूशन के तहत केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अधिकारी द्वारा खुद को भारत के नागरिक के रूप में रजिस्टर करना होगा।

यदि उपरोक्त शर्तों को पूरा किया जाता है, तो उस व्यक्ति को भारत का नागरिक माना जाएगा।

आर्टिकल 7: पाकिस्तान में कुछ माइग्रेंट्स के सिटिज़नशिप के अधिकार 

आर्टिकल 6 और 7, पार्टीशन के समय भारत और पाकिस्तान में लोगों के एक राष्ट्र से दूसरे देश में माइग्रेशन के मुद्दे से संबंधित है। पार्टीशन के परिणाम दूरगामी (फार-रीचिंग) थे, जहाँ लोग अभूतपूर्व (अन्प्रेसिडेन्टिड) माइग्रेशन से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। इसके अलावा, हिंदू पाकिस्तान के रूप में निर्दिष्ट टेरिटरी से इंडियन टेरिटरी में और मुस्लिम इंडियन टेरिटरी से पाकिस्तान की ओर पलायन कर रहे थे।

आर्टिकल 6, पाकिस्तान से भारत में लोगों के माइग्रेशन से संबंधित है, इसके तहत यह तय करने के लिए मानदंड (क्राइटेरिया) निर्धारित करे गए हैं, कि भारत का नागरिक कौन होगा। जबकि आर्टिकल 7, भारत से पाकिस्तान में लोगों के माइग्रेशन से संबंधित है और इसमें मानदंड निर्धारित करे गए हैं, यह तय करने के लिए कि भारत का नागरिक कौन होगा।

इसके अलावा, आर्टिकल 7 का आर्टिकल 5 पर एक अधिभावी (ओवर-राइडिंग) प्रभाव होगा, इस तथ्य के लिए  कि भले ही कोई व्यक्ति आर्टिकल 5 के आधार पर भारत का नागरिक हैं, लेकिन यदि वह 1 मार्च, 1947 के बाद पाकिस्तान चला जाता है, तो उसे भारत का नागरिक नहीं माना जा सकता। हालांकि, इस आर्टिकल के तहत एक अपवाद भी बनाया गया है, जो कहता है की यदि कोई व्यक्ति जो भारत में पुनर्वास (रिसेटलमेंट) की अनुमति के साथ भारत लौटा है, तो उसे कॉन्स्टीट्यूशन के आर्टिकल 6 के तहत निर्धारित सभी शर्तों का पालन करना होगा।

आर्टिकल 6 और 7 में प्रयुक्त शब्द “माइग्रेशन” का अर्थ

कुलथिल मम्मू बनाम स्टेट ऑफ़ केरल के मामले में, “माइग्रेशन” शब्द के अर्थ पर चर्चा की गई थी, जिसमें भारत के सुप्रीम कोर्ट अपनी राय में विभाजित हो गए थे। अधिकांश (मेजोरिटी) न्यायाधीशों ने यह माना कि आर्टिकल 6 और 7 में प्रयुक्त माइग्रेट शब्द का प्रयोग, कॉन्स्टीट्यूशन बनाने के समय के संदर्भ, उद्देश्य और प्रचलित (प्रिवेलिंग) राजनीतिक परिस्थितियों के संदर्भ में किया गया था। सरल शब्दों में, वे इस शब्द की व्याख्या कुछ और नहीं बल्कि स्वेच्छा (वोलंटरी) से भारत से पाकिस्तान स्थायी या अस्थायी (टेम्पररी) रूप से जाने के अर्थ में करते हैं। जबकि अल्पसंख्यकों (माइनॉरिटी) का विचार था कि पाकिस्तान में बसने के लिए माइग्रेशन करने वाले व्यक्ति के इरादे में कुछ स्थायित्व (परमानेंस) का तत्व होना चाहिए। पर क्यूंकि, बहुमत का दृष्टिकोण व्यापक था, इसलिए इसे स्वीकार कर लिया गया।

स्टेट ऑफ़ बिहार बनाम कुमार अमर सिंह (ए आई आर 1955 एस सी 1614: (1966) 3 एस सी आर 706

तथ्य (फैक्ट्स): इस मामले में एक महिला अपने पति को भारत में छोड़कर जुलाई 1948 को कराची गई थी। उसने तर्क दिया कि वह चिकित्सा उद्देश्यों के लिए पाकिस्तान गई थी, जो बेबुनियाद पाया गया था। एक अस्थायी परमिट प्राप्त करने के बाद, जिसमें यह कहा गया था कि वह पाकिस्तान में डोमिसाइल्ड थी और पाकिस्तान की नागरिक थी, वह दिसंबर 1948 में फिर से भारत लौट आई। उस अस्थायी परमिट की समाप्ति पर, वह अप्रैल 1949 में पाकिस्तान फिर वापस चली गई। फिर उन्होंने भारत में स्थायी रूप से बसने के लिए परमिट प्राप्त करने का प्रयास किया, लेकिन उसके प्रयास विफल रहे।

निर्णय (जजमेंट): यह माना गया कि इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि महिला को, 1 मार्च, 1947 के बाद भारत के टेरिटरी से पलायन करने के लिए माना जाना चाहिए, हालांकि उसका पति भारत में ही रह रहा था। इस आर्टिकल में माइग्रेशन 26 जनवरी 1950 से पहले, यानी 1 मार्च 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच के माइग्रेशन को संदर्भित करता है।

आर्टिकल 8: इंडियन ओरिजिन के व्यक्तियों का सिटिज़नशिप अधिकार जो भारत से बाहर रह रहे हैं

आर्टिकल 8 एक गैर-बाधा (नॉन-ऑब्सटैंट) क्लॉज़ से शुरू होता है, अर्थात “आर्टिकल 5 में कुछ भी होने के बावजूद”, यह आर्टिकल उन लोगों को भी इंडियन सिटिज़नशिप प्रदान करता है, जिनके पास डोमिसाइल नहीं हैं लेकिन कुछ शर्तों को पूरा करने के बाद।

यह आर्टिकल उन व्यक्तियों से संबंधित है जो या जिनके माता-पिता या दादा-दादी भारत में पैदा हुए थे, लेकिन वे विदेश में रह रहे हैं। ऐसे व्यक्ति को भारत का नागरिक माना जाएगा बशर्ते कि उन्होंने भारत के कांसुलर रेप्रेज़ेंटेटिव या भारत के डिप्लोमेटिक रिप्रेजेन्टेटिव द्वारा भारत के नागरिक के रूप में रजिस्ट्रेशन कराया है, जहां वे रह रहे हों। इसके अलावा, रजिस्ट्रेशन केवल नागरिक द्वारा एक आवेदन पर किया जा सकता है।

आर्टिकल 8 और आर्टिकल 5 और 6 के बीच अंतर यह है कि, आर्टिकल 8 न केवल कॉन्स्टीट्यूशन के प्रारंभ की तारीख से बल्कि भविष्य के लिए भी सिटिज़नशिप पर भी लागू होता है, जबकि आर्टिकल 5  और 6, केवल कॉन्स्टीट्यूशन के प्रारंभ के समय होने वाली सिटिज़नशिप से संबंधित है। 

आर्टिकल 9: किसी अन्य राष्ट्र की सिटिज़नशिप प्राप्त करके अपनी सिटिज़नशिप का त्याग करने वाले व्यक्ति

यह आर्टिकल इस तथ्य पर विस्तार से बताता है कि, यदि एक व्यक्ति जिसने अपनी इच्छा से किसी अन्य विदेशी राज्य की सिटिज़नशिप प्राप्त कर ली हो, तो वह भारत का नागरिक नहीं रहेगा। यह केवल कॉन्स्टीट्यूशन के लागू होने से पहले किसी विदेशी राष्ट्र की सिटिज़नशिप के स्वैच्छिक अधिग्रहण (ऐक्विज़िशन) से संबंधित है। कॉन्स्टीट्यूशन के प्रारंभ के बाद विदेशी सिटिज़नशिप के स्वैच्छिक अधिग्रहण के मामलों को सिटिज़नशिप एक्ट, 1955 के तहत भारत सरकार द्वारा देखा जाना चाहिए।

इसके अलावा, इस सवाल पर कि क्या किसी व्यक्ति ने इस देश की सिटिज़नशिप को समाप्त करके किसी अन्य देश की सिटिज़नशिप को हासिल किया है, तो इस सवाल पर केंद्र सरकार द्वारा जांच की जानी चाहिए, और केंद्र सरकार द्वारा इस सवाल का फैसला करने के बाद ही स्टेट गवर्नमेंट उस व्यक्ति के साथ एक विदेशी के रूप में व्यवहार किया जाना चाहिए। इसके अलावा, यह हो सकता है कि नागरिक द्वारा एक विदेशी सरकार से पासपोर्ट प्राप्त किया गया हो और यह मामला आक्षेपित (इम्प्यून) नियम के अंतर्गत आता हो, तो निष्कर्ष यह हो सकता है कि उसने किसी अन्य देश की सिटिज़नशिप प्राप्त कर ली है, लेकिन यह निष्कर्ष केवल एक्ट के तहत अधिकृत (ऑथोराइज़्ड) व्यक्तियों द्वारा ही निकाला जा सकता है। इसलिए, इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन सभी मामलों में जहां कार्रवाई का प्रस्ताव है, जहाँ एक व्यक्ति जो इस देश में रह रहा हो और उसने किसी अन्य राज्य की सिटिज़नशिप हासिल कर ली हो तो इसका परिणाम यही होगा की इसने इस देश की सिटिज़नशिप खो दी है। हालांकि इस सवाल पर केंद्र सरकार का विचार होना बेहद जरूरी है। इसके अलावा, विदेशी राज्य को कॉन्स्टीट्यूशन के आर्टिकल 367(3) के तहत परिभाषित किया गया है।

आर्टिकल 10: सिटिज़नशिप का अधिकार कब जारी रहता है?

आर्टिकल 10, संसद को सिटिज़नशिप के अधिग्रहण और समाप्ति के संबंध में कानून या कोई प्रावधान बनाने का अधिकार देता है। उस शक्ति का प्रयोग करते हुए, यह सिटिज़नशिप के अधिकारों को छीन सकता है, जो उपरोक्त आर्टिकल के प्रावधानों के तहत किसी व्यक्ति को प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा, उपरोक्त आर्टिकल्स  के तहत सिटिज़नशिप के अधिकार को केवल प्रत्यक्ष (डायरेक्ल्टी) रूप से व्यक्त कानून या उद्देश्य द्वारा बनाए गए संसद के एक्ट द्वारा नष्ट किया जा सकता है, और इसे परोक्ष (इंडिरेक्टली) रूप से नहीं लिया जा सकता है।

आर्टिकल 11: संसद को सिटिज़नशिप के अधिकार से संबंधित कानून बनाना है 

एंट्री 17, लिस्ट I, स्केड्यूल 7 के तहत संसद के पास सिटिज़नशिप, नेचरलाइजेशन और एलियंस से संबंधित कानून बनाने का अधिकार है। इस आर्टिकल के पीछे मुख्य उद्देश्य यह है कि इस तथ्य के बावजूद कि सिटिज़नशिप से संबंधित कुछ नियम पार्ट II में निहित हैं, संसद के पास सिटिज़नशिप के अधिग्रहण, समाप्ति आदि से संबंधित कोई भी प्रावधान करने का निरंकुश (अनफेटेरड) अधिकार है। अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए, संसद ने 1955 में सिटिज़नशिप एक्ट, कानून बनाया है। यह एक्ट, सिटिज़नशिप के अधिग्रहण और समाप्ति से संबंधित प्रावधानों का विस्तार में वर्णन करता है। इसके अलावा, सिटिज़नशिप एक्ट, 1955 में वर्ष 2003 और 2005 में बदलते समय के साथ, भारत की विदेशी सिटिज़नशिप की अवधारणा (कांसेप्ट) को पेश करने के उद्देश्य से, विशेष रूप से भारत के साथ इंडियन प्रसार (डायस्पोरा) के व्यवहार को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से कई बदलाव किए गए थे।

निष्कर्ष (कन्क्लूज़न)

इसलिए, भारत में एलियंस देश के नागरिकों की सुरक्षा के लिए प्रदान किए गए सभी फंडामेंटल राइट्स का आनंद नहीं मिलता है, जिसमें आर्टिकल 15, 16, 18(2), 19 और 29 शामिल हैं, जिन्हें मौलिक अधिकार घोषित किया गया है और जो केवल नागरिकों को दिए गए हैं, न कि एलियंस को। इसके अलावा, नागरिकों को प्रेसिडेंट (आर्टिकल 58), वइस-प्रेसिडेंट (आर्टिकल 66), गवर्नर ऑफ़ द स्टेट (आर्टिकल 157), हाई कोर्ट (आर्टिकल 217) और सुप्रीम कोर्ट (आर्टिकल 124) के न्यायाधीश, अटॉर्नी जनरल (आर्टिकल 76), और एडवोकेट जनरल (आर्टिकल 165) जैसे कुछ उच्च पदों को धारण करने का अधिकार है। साथ ही, वोट का अधिकार केवल भारत के नागरिकों को दिया जाता है।

 

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