भारत में वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ कानून

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Indian Penal Code
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इस लेख में, Shagun Bahl भारत में वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ कानूनी ढांचे (लीगल फ्रेमवर्क) पर चर्चा करती हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है। 

परिचय (इंट्रोडक्शन)

विवाह एक ऐसी स्थिती है जिसमे एक व्यक्ति किसी अन्य विपरीत लिंग के व्यक्ति के साथ, पति या पत्नी के रूप में संबंध में आता है और इस संबंध को कानून द्वारा मान्यता प्राप्त होती है और सहमति और संविद (कॉन्ट्रेक्ट) द्वारा बनाया जाता है। इसे एक पवित्र डोर माना जाता है, जो दो व्यक्तियों को जीवन भर एक साथ बांधता है।

वैवाहिक बलात्कार (मैरिटल रेप)

विवाह जैसी पवित्र बात और बलात्कार जैसे जघन्य (हीनियस) अपराध को एक ही साथ कहना बहुत गलत होगा। लेकिन वास्तविकता उन्हें वैवाहिक बलात्कार के रूप में एक साथ मिलाती हुई प्रतीत होती है।

वैवाहिक बलात्कार एक पति या पत्नी द्वारा अपने पति या पत्नी की सहमति के बिना जबरन संभोग (सेक्शुअल इंटरकोर्स) करने का कार्य है। सहमति वह शब्द है जो वैवाहिक संभोग को वैवाहिक बलात्कार में बदल देता है। विवाह को, पति या पत्नी की सहमति के बिना दूसरे पति या पत्नी के साथ जबरन संभोग करने का लाइसेंस नहीं माना जा सकता है। जबरन संभोग पत्नी पर हमला है जो इसमें भाग नहीं लेना चाहती है और वैवाहिक बंधन एक पति या पत्नी के शरीर पर स्वायत्तता (ऑटोनोमी) का अधिकार नहीं छीन सकता है। यह निश्चित रूप से विवाह में साथी पर यौन, घरेलू, मनोवैज्ञानिक शोषण (साइकोलॉजिकल अब्यूज) का एक रूप है क्योंकि वैवाहिक बलात्कार करने वाला पति अपनी पत्नी की पहचान और उसके साथ होने वाली जबरदस्ती से जुड़ी भावनाओं का अवहेलना (डिसरीगार्ड) और अनादर करता है। विवाह में जोड़े के बीच परस्पर सम्मान, स्थान और सहयोग होना चाहिए न कि घुटन, जो विवाह में पति या पत्नी को जबरन पूर्ण शारीरिक अधिकार देने से जुड़ी होती है। विवाह की पहचान व्यक्ति से होनी चाहिए न कि बेड़ियों से जो उन्हें घुटन भरी शादी में जबरदस्ती फंसाती है।

वैवाहिक बलात्कार: शरीर और दिमाग पर सदमा 

जीवनसाथी, साथी या पूर्व साथी द्वारा बलात्कार अक्सर शारीरिक हिंसा से जुड़ा होता है। यूरोपीय संघ (यूनियन) के तहत नौ देशों के एक अध्ययन (स्टडी) में पाया गया है कि वर्तमान या पूर्व-साथी, सभी यौन हमलों के लगभग 25% के अपराधी थे, और पूर्व-साथियों (उस समय का 50%) और भागीदारों द्वारा हमलों में हिंसा अधिक आम थी (अजनबियों या हाल के परिचितों (25%) द्वारा किए गए हमलों की तुलना में 40%)।

बलात्कार अपने आप में एक दर्दनाक अनुभव है और अगर शादी में पत्नी को इसका सामना करना पड़ता है, तो यह पत्नी के दिमाग पर एक बहुत बुरा निशान छोड़ सकता है और पत्नी को इस तरह से अपमानित कर सकता है कि उस अपमानजनक यौन अनुभव के बाद कभी भी उस साथी के साथ संबंध सही नहीं किया जा सकता है। वैवाहिक बलात्कार किसी अजनबी द्वारा बलात्कार की तुलना में अधिक दर्दनाक अनुभव हो सकता है क्योंकि वैवाहिक बलात्कार में पति और पत्नी के बीच विश्वास बंधन स्पष्ट रूप से टूट जाता है जिसे ठीक भी नही किया जा सकता है। यह मानसिक पीड़ा, अपमान और साथी के प्रति घृणा और अवमानना (कंटेंप्ट) ​​​​की भावना को कायम रखता है।

यह एक जीवनसाथी में भावनात्मक निराशा और उत्पीड़न की भावना का आह्वान (इन्वोक) करता है जो अपने जीवनसाथी के साथ जबरन संभोग का सामना करती है और यह केवल एक बार का ही अनुभव नहीं होता है, क्यूंकि इस तरह के अनुभव के बाद किसी भी पत्नी के लिए सामान्य महसूस करना असंभव हो जाता है।

इस प्रकार के बलात्कार जैसे वैवाहिक बलात्कार और यौन शोषण (सेक्शुअल अब्यूज) अन्य रूपों से भिन्न होते हैं क्योंकि इन मामलों में पीड़ितों को अपने बलात्कारी के साथ एक बंधन में बंद महसूस होता है, अन्य बलात्कारों के विपरीत जिसमें पीड़ित खुद को अपने अपराधी से अलग कर सकता है और उसे इस तरह के दर्दनाक अनुभव से खुद को ठीक करने का समय भी मिल जाता है। यह जीवनसाथी की मानसिक और भावनात्मक स्थिति के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है और इस तरह की बेड़ियों से बाहर आने के लिए उसके पास कोई कानूनी सहारा उपलब्ध न होने के कारण उसके कष्टों को बढ़ा सकता है।

शोधकर्ता (रिसर्चर) फिंकेलहोर और येलो ने अपने 1985 के महानगरीय बोस्टन क्षेत्र के अध्ययन में टिप्पणी (रिमार्क) की और वैवाहिक बलात्कार का सामना करने वाली पत्नी के लिए कुछ शब्दों में इसे अच्छी तरह से समझाया है, जो निम्नलिखित हैं:

“जब एक महिला का किसी अजनबी द्वारा बलात्कार किया जाता है, तो उसे एक भयावह याद के साथ जीना पड़ता है। जब उसका पति उसके साथ बलात्कार करता है तो उसे बलात्कारी के साथ रहना पड़ता है।”

वैवाहिक बलात्कार के साक्ष्य (एविडेंस)

बंद दरवाजों के पीछे, वैवाहिक बलात्कारों के रूप में विवाह की असली बुराई को चित्रित करना कठिन है। बड़े पैमाने पर समाज में विवाहों की वास्तविक तस्वीर को अक्सर उनके विवाहित जीवन के पीछे छिपी वास्तविकताओं को संबोधित (एड्रेस) करने के बजाय विवाहित जोड़े से उच्च नैतिक अपेक्षाओं (हाई मोरल एक्सपेक्टेशन) के बोझ को सहने के लिए अपेक्षाएं रखी जाती है। बंद दरवाजों के पीछे छिपी इन वास्तविकताओं को संबोधित करने के लिए, हमें सबसे पहले खुद से यह सवाल पूछना होगा कि वास्तव में कोई कैसे साबित करेगा कि उसके पति या पत्नी द्वारा उसका बलात्कार किया जा रहा है। वैवाहिक बलात्कार के मामलों में न्याय के लिए, न्यायालयों के समक्ष यह स्थापित करना सर्वोपरि (पैरामाउंट) है कि पति या पत्नी को संभोग करने के लिए मजबूर किया गया था और इन आरोपों को साबित करने के लिए मजबूत सबूतों को पेश किया जाना चाहिए।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम (इंडियन एविडेंस एक्ट), 1872 की धारा 102 के तहत, सबूत पेश करने का बोझ उस व्यक्ति पर होता है जो विफल हो जाएगा यदि दोनों पक्षों की ओर से कोई सबूत नहीं दिया गया तो। इसलिए सबूत का भार उस पति या पत्नी पर होगा जो आरोप लगाएगा कि वह वैवाहिक बलात्कार का शिकार हुआ है। वैवाहिक बलात्कार को साबित करना सबसे कठिन है क्योंकि व्यावहारिक रूप से किसी के विवाहित जीवन की असल बुराई को सामने लाना असंभव है क्योंकि कोई भी इसे कैसे साबित करेगा कि संभोग प्रकृति में “बलात्कार” के समान क्रूर था और क्या समाज इसे स्वीकार करेगा ?

किसी के पति या पत्नी द्वारा संभोग या जबरन यौन संबंध की क्रूरता को साबित करने के लिए, ऐसे कुछ सबूत हैं जिन पर कोई भी पुष्टि (सब्सटेंशिएट) कर सकता है –

  • योनि (वैजीनल) और एनल क्षेत्रों में शारीरिक चोट, घाव, चोट लगना।
  • संभोग में क्रूर आचरण (कंडक्ट), उदाहरण के लिए- बैटरी, मानसिक यातना (मेंटल टॉर्चर)।
  • उनके जननांगों (जेनिटल) और मलाशय (रेक्टम) को नुकसान पहुंचाने के सबूत इस बात का पुख्ता सबूत देते हैं कि महिला के साथ बहुत हिंसक बलात्कार हुआ है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम (आई.ई.ए.) के तहत, जब यह आरोप लगाया जाता है कि पीड़िता ने यौन कार्य करने के लिए सहमति दी है और इसे अस्वीकार कर दिया जाता है, तो अदालत इसे मान लेती है।
  • पुरुष पीड़ितों के मामले में लिंग क्षेत्र के आसपास नाखून के निशान, खरोंच और शारीरिक चोटें शामिल होना।

भारत, वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने के लिए तैयार क्यों नहीं है?

भारत सदियों पुरानी परंपराओं में फंसा हुआ है और भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की बातचीत पिछले कुछ दशकों से लगभग रुकी हुई है क्योंकि भारतीय मानसिकता अभी भी यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि वैवाहिक बलात्कार एक अपराध है और हम विवाहों की पवित्रता को बचाने के लिए इतने फंस गए हैं और अंधे हो चुके हैं की हम यह नहीं जानते कि इस प्रकार के विवाह पहले ही टूट चुके हैं और ठीक होने से परे हैं। हम एक देश के रूप में इस बात को करने में इतने पीछे हैं कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों से उन न्यायाधीशों का अनुमान लगाया जा सकता है जो एल.जी.बी.टी. के मुद्दे पर विचार करने में असमर्थ थे। इन सभी सामाजिक मुद्दों का उत्तर एक ही है क्योंकि हमारी भारतीय मानसिकता, भारतीय परंपरा प्रणाली (ट्रेडिशन सिस्टम) और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने के अपने दृष्टिकोण (माइंडसेट) में इतनी कठोर है कि उन्होंने अपनी आंखें और कान बंद कर लिए हैं और समाज के सामने आने वाले वास्तविक समकालीन (कंटेंपरेरी) मुद्दों को संबोधित नहीं करना चाहती हैं।

https://bpr.berkeley.edu/2015/10/29/trapped-in-traditions-prison/ साइट पर प्रकाशित (पब्लिश) एक लेख, एक राष्ट्र के रूप में हम वैवाहिक बलात्कार को एक अपराध के रूप में संबोधित करने में क्यों विफल होते हैं, इस तस्वीर को साफ करता है। पहली बार, 2013 के आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक (क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) बिल) ने भारत के कानूनी कोड के भीतर बलात्कार की परिभाषा स्थापित (एस्टेब्लिश) की और इसे करने वाले को सख्त जेल की सजा की घोषणा की थी। अपनी प्रगतिशील (प्रोग्रेसिव) प्रकृति के बावजूद, विधेयक वैवाहिक बलात्कार या किसी भी प्रकार के हमले को अपराध नहीं बनाता है।

2013 के आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक की धारा 375 में कहा गया है कि “अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध या यौन कार्य करना, यदि पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम नहीं है, तो वह बलात्कार नहीं माना जाएगा।”

वैवाहिक बलात्कार दुनिया भर में महिलाओं के उपर किए जाने वाले प्रमुख अपराधों में से एक है। बिना त्रुटि (एरर) के वैवाहिक बलात्कार के बारे में निश्चित आंकड़े इकट्ठा करना मुश्किल है, विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्डल हेल्थ आर्गेनाइजेशन) द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि दुनिया भर में कम से कम 10% और ज्यादा से ज्यादा 69% महिलाएं एक अंतरंग (इंटिमेट) पुरुष साथी द्वारा शारीरिक रूप से हमला करने की बात स्वीकार करती हैं। 

वैवाहिक बलात्कार पर भारतीय विधायिका (लेजिस्लेचर) और न्यायपालिका (ज्यूडिशियरी) का रुख महिलाओं की भूमिका की सांस्कृतिक अपेक्षाओं, सेक्स के उद्देश्य के बारे में पारंपरिक मान्यताओं और मौजूदा कानूनों के द्वारा बनाया जाता है, जो वैवाहिक बलात्कार को स्वीकार करने और उसका अपराधीकरण करने में विफल रहते हैं।

भारतीय समाज ने हमेशा सामाजिक कार्यकर्ताओं, एन.जी.ओ., और अनगिनत भारतीय महिलाओं की आवाज को दबाने की कोशिश की है, जो बिना किसी कानूनी सहारा के हमारी अदालतों से न्याय मांगती हैं और उन्हें हमेशा घरेलू हिंसा अधिनियम (डोमेस्टिस वायलेंस एक्ट), 2005 के तहत वैवाहिक बलात्कार को संबोधित करने के तरीके दिखाए जाते हैं, जो की वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में संबोधित करने के लिए अपने आप में ही अपर्याप्त है।

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, (प्रोटेक्शन ऑफ़ वूमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट) 2005, वैवाहिक बलात्कार सहित महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए नागरिक उपचार (सिविल रेमेडीज) प्रदान करता है। वैवाहिक बलात्कार को एक आपराधिक गलत के बजाय एक नागरिक गलत (सिविल रॉन्ग) के रूप में देखना बिल्कुल अनुचित है। यह लगभग एक महिला को उसके बलात्कारी के साथ रहने के लिए मजबूर करना है और महिला के अधिकारो का उल्लंघन करने के बराबर है।

वैवाहिक बलात्कार या पति-पत्नी के बलात्कार का अपराधीकरण, भारत में वास्तविकता से बहुत दूर लगता है क्योंकि न तो इस देश के कानून के निर्माता और न ही भारतीय न्यायिक प्रणाली वैवाहिक बलात्कार और बलात्कार के बीच की खाई को कम करने के लिए तैयार हैं क्योंकि ये दोनों ही जघन्य अपराध हैं जो पीड़ित को अपनी पुरी जिंदगी के लिए डरा सकते हैं।

कानूनी समाधान (लीगल सॉल्यूशन)- भारत में तलाक कानूनों में बदलाव और वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण

भारत में वैवाहिक बंधनों को पवित्र माना जाता है और भारत में विवाह केवल यौन संबंध बनाने पर नहीं पनपते है। लेकिन क्या यह आधुनिक (मॉडर्न) संदर्भ में वास्तविकता है या आज के विवाह के समाज में सिर्फ छलावा है। ये इस समय की दुनिया की कुछ कठोर वास्तविकताएं हैं जिनमें वैवाहिक बंधन उतना पवित्र नहीं है जितना माना जाता है। वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में अपराध घोषित करने और अपमानजनक विवाह से तलाक लेने के लिए वैवाहिक बलात्कार को कानूनी आधार बनाकर देश के तलाक कानूनों में संशोधन करने की सख्त आवश्यकता है। वैवाहिक बलात्कारों के अपराधीकरण का देश में तलाक के कानूनों पर भी प्रभाव पड़ेगा क्योंकि “वैवाहिक बलात्कार” भी जोड़ों के लिए तलाक के लिए मामला दायर करने का आधार बन सकता है जैसे क्रूरता, व्यभिचार (एडल्टरी) आदि अन्य आधार हैं।

वैवाहिक बलात्कार को तलाक का आधार बनाकर तलाक कानूनों में बदलाव निश्चित रूप से वैवाहिक बलात्कार के सभी पीड़ितों के लिए एक बड़ी राहत होगी जो अब कानूनी रूप से अपने संबंधित पति या पत्नी के खिलाफ कार्रवाई करने में सक्षम होंगे। दूसरी राहत यह होगी कि, जो वैवाहिक बलात्कार के शिकार होते है, वह अब तलाक के कानूनों में बदलाव के माध्यम से सक्षम अदालत से उस शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के लिए मुआवजे (कंपनसेशन) की मांग कर सकते हैं, जो उनके पति या पत्नी द्वारा वैवाहिक बलात्कार के कारण हुई है।

अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण (इंटरनेशनल स्टैंडपॉइंट)- वैवाहिक बलात्कार

अंतरराष्ट्रीय स्तर (लेवल) पर, कई विकसित देशों ने वैवाहिक कानून को अपराध घोषित कर दिया है क्योंकि सभ्य समाजों में महिलाओं पर यौन हमले के लिए कोई जगह नहीं है, चाहे यह कार्य उनके विवाह के अंदर किया गया ही या बाहर। इन समाजों में वैवाहिक बलात्कारों को बहुत पहले ही अपराध घोषित कर दिया गया है क्योंकि एक संस्था के रूप में विवाह आपसी सम्मान और साहचर्य (कंपैनियनशिप) पर टिका होता है और जीवनसाथी पर किसी भी प्रकार का जबरन यौन कार्य किसी की गरिमा (डिग्निटी) और विवाह के संघ (यूनियन) पर बहुत बड़ा हमला होता है। किसी भी सभ्य समाज में, इसे कानूनी मुहर लगाकर अभ्यास करने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है।अंतरराष्ट्रीय देशों के सांसदों ने वैवाहिक बलात्कार के निवारक प्रभाव (डिटरेंट इफेक्ट) को महसूस करते हुए समाज पर इसे समाप्त करने का फैसला किया है और वैवाहिक बलात्कारों को अपराध घोषित कर दिया है।

https://thewire.in/36111/indian-exceptionism-cannot-be-a-valid-excuse-for-india-not-to-criminalise- में प्रकाशित लेख, वैवाहिक-बलात्कार या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैवाहिक बलात्कार पर दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

अमेरिका में, पूरे देश में पति-पत्नी का बलात्कार अवैध है। कई लैटिन अमेरिकी, दक्षिण पूर्व एशिया, यूरोपीय देशों और अफ्रीकी देशों में इस आशय के कानून पास करने के साथ, वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण, दुनिया में तेजी से आदर्श बन रहा है। वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ कानूनों वाले देशों की सूची वाली एक तालिका (टेबल) यहां पाई जा सकती है। 2.6 अरब महिलाएं अभी भी उन देशों में रहती हैं जहां वैवाहिक बलात्कार अपराध नहीं है, और 35 देशों में पति-पत्नी का बलात्कार पूरी तरह से कानूनी है।

न्यायिक रूप से जागृति (आवेकनिंग)- भारत में इसका भविष्य क्या है?

चुनौतीपूर्ण सवाल यह है कि “क्या भारत वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण कर सकता है”? क्या वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने का कोई रास्ता है?

वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने का एकमात्र तरीका भारतीय संविधान के आर्टिकल 32 के तहत रिट याचिकाओं और उनके समक्ष दायर जनहित याचिकाओं (पी.आई.एल.) के माध्यम से न्यायालयों को राजी करना है ताकि उन्हें न्यायिक रूप से जागृत किया जा सके कि भारत के लिए वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण करने का समय आ गया है, की समाज में हो रहे विनाशकारी प्रभावों के आलोक में बलात्कार और पारंपरिक बेड़ियों को तोड़ते हुए भारतीय मानसिकता को आगे बढ़ाने के लिए, अन्य उन्नत राष्ट्रों ने इस सामाजिक बुराई से निपट लिया है। फिर भी, भारत वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण करने से बहुत दूर है, लेकिन सक्रिय (एक्टिव) न्यायिक सक्रियता (ज्यूडिशियल एक्टिविज्म) और भारत में वैवाहिक बलात्कार के असंख्य पीड़ितों को न्याय पर निर्भर रहने के लिए, माननीय न्यायालयों को राजी करने के लिए सैद्धांतिक (प्रिंसिपल) वकालत के ईमानदार प्रयासों के साथ इसे एक जीवित वास्तविकता में बदलने की उम्मीद है।

 

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