भारत में एसिड अटैक से संबंधित ऐतिहासिक मामले

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Indian penal Code
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इस लेख में, एन.यू.ए.एल.एस., कोच्चि के Ajay Sharma भारत में एसिड अटैक की सजा और कानून पर चर्चा करते हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

भारत में एसिड अटैक की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं और इस अपराध की सबसे ज्यादा शिकार महिलाएं हैं। इन हमलों के लिए विभिन्न कारणों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जैसे समाज में महिलाओं की कमजोरी और पुरुष प्रधान समाज (मेल डोमिनेटेड सोसाइटी) का अस्तित्व (एक्सिस्टेंस)।

किसने भारतीय समाज के साथ-साथ उन कानूनों पर भी सवाल उठाया जो समस्या से निपटने में सक्षम नहीं हैं? एसिड सस्ता और आसानी से मिलने वाला हथियार है जो इसे अपराधी के लिए एक आदर्श उपकरण होता है। एसिड आपके घर के पास किसी भी दुकान पर आसानी से मिल जाता है, कोई भी इसे खरीद सकता है, सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसिड के नियमन के लिए दिशा-निर्देश (गाइडलाइन) पास किए जाने के बावजूद कोई प्रतिबंध (रेस्ट्रिक्शन्स) नहीं है और समस्या उन दिशा-निर्देशों के इम्प्लिमेंटेशन की है।

इस समस्या से निपटने के लिए कोई विशिष्ट (स्पेसिफिक) और सख्त कानून नहीं है क्योंकि एसिड अटैक अन्य अपराधों की तरह नहीं है, इसमें पीड़ित को जीवन भर विकृत (डिसफिगर्ड) चेहरे के साथ जीवित रहना होगा, जिसमें पीड़ित को न केवल समाज से बल्कि कभी-कभी परिवार से भी बहिष्कृत (ऑस्ट्रेसाइज़्ड) का सामना करना पड़ता है। यह अपराध मुख्य रूप से दुनिया के चार देशों बांग्लादेश, पाकिस्तान, भारत और कंबोडिया में किया जाता है।

अन्य सभी देश, पीड़ितों के लिए एक प्रभावी (इफेक्टिव) उपाय का मार्ग प्रशस्त (पेव) करने में लगे हुए हैं। हमारे पड़ोसी देश, बांग्लादेश ने 2002 में एसिड अटैक्स की घटनाओं को रोकने के लिए एक कानून पेश किया। इस विषय पर भारतीय कानून की तुलना में बांग्लादेश द्वारा पास कानून, कानूनी रूप से काफी स्थिर (स्टेबल) है। भारतीय कानून, न तो एसिड अटैक की गंभीरता को प्रभावी ढंग से संबोधित (एड्रेस) करते है और न ही यह पर्याप्त रूप से एसिड अटैक सर्वाइवर्स की करते है।

कंपनसेशन इस अपराध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन भारत में, कोई क्रिमिनल इंज्युरीस कंपनसेशन बोर्ड नहीं है, हां हमने बहुत समय से सुनते आ रहे है कि केंद्र सरकार सभी राज्यों को एक कंपनसेशन बोर्ड बनाने के लिए सूचित करती है, लेकिन अब तक एक भी बोर्ड नहीं है जो इस पर काम करता है।

लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में, 3,00,000 रुपय का न्यूनतम (मिनिमम) कंपनसेशन पर एसिड अटैक सर्वाइवर के लिए तय किया गया था लेकिन वो भी कुछ राज्यों में तय नहीं किया। आइए बिहार के मामले का उदाहरण लेते हैं जिसमें 2 लड़कियों पर एसिड से हमला किया गया था जिसमें लड़कियों को कई चोटें आई थीं और राज्य सरकार ने उन्हें 25,000 दिए थे और लड़कियों पर पहले ही 5,00,000 खर्च किए जा चुके थे। भारत में ऐसी कंपनसेशन प्रोसेसर योजना है।”

एसिड क्या है? ब्लैक लॉ डिक्शनरी के अनुसार, एसिड का अर्थ है “7 से नीचे पी.एच. वाला घोल। इसका स्वाद खट्टा होता है, हाइड्रॉक्सिल छोड़ता है, और लिटमस पेपर को लाल बनाता है। मजबूत एसिड संक्षारक (करोसिव) होते हैं और कमजोर व्यावहारिक (प्रेक्टिकल) रूप से हानिरहित होते हैं। इसे मिनरल, अनोर्गेनिक , प्राकृतिक और ऑर्गेनिक एसिड के नाम से भी जाना जाता है”, लेकिन दुर्भाग्य से इंडियन पीनल कोड, एसिड क्या है, इसको परिभाषित नहीं करती है।

भारत में कानून (लॉज़ इन इंडिया)

भारत में एसिड अटैक से संबंधित कोई विशेष कानून नहीं है। सेक्शन 326A और 326B को क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) एक्ट, 2013 (एक्ट नंबर 13) से कोड में जोड़ा गया, जिसका उद्देश्य एसिड आदि के उपयोग से गंभीर चोट पहुंचाना या अपनी इच्छा से एसिड फेंकना या फेंकने की कोशिश करना, जिससे उस व्यक्ति के शरीर के किसी भी हिस्से को स्थायी (परमनेन्ट) या आंशिक (पार्शियल) क्षति (डेमेज) हो, या वह विकृत, या जल जाए या अपंग (मेम्स) या डिसेबल हो जाये, तो इस मामले में यह सेक्शन सजा के लिए विशिष्ट (स्पेसिफिक) प्रावधान (प्रोविज़न) करता है।

इंडियन पीनल कोड का सेक्शन 326A कहता है कि – जो कोई व्यक्ति, किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर के किसी अंग को स्थायी या आंशिक क्षति या विकृति, या चोट या अपंग या विकृत या डिसेबल करता है या एसिड फेंककर या एसिड का इस्तेमाल करके गंभीर चोट का कारण बनता है, एसिड, या किसी अन्य साधन का उपयोग करने के इरादे से या इस ज्ञान के साथ कि उसे ऐसी चोट लगने की संभावना है, ;तो उस व्यक्ति को किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जा सकता है, जिसकी अवधि 10 वर्ष से कम नहीं होगी और जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सजता है और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा। 

बशर्ते (प्रोवाइज़ो) कि ऐसा जुर्माना पीड़ित के इलाज में मेडिकल एक्सपेंसिस को पूरा करने के लिए उचित होगा।

बशर्ते यह भी कि इस सेक्शन के तहत लगाए गए किसी भी जुर्माने का भुगतान पीड़ित को किया जाएगा।

इंडियन पीनल कोड का सेक्शन 326B कहता है कि- जो कोई किसी व्यक्ति पर एसिड फेंकता है या फेंकने की कोशिश करता है या किसी व्यक्ति को एसिड पिलाने का प्रयास करता है, या किसी अन्य साधन का उपयोग करने की कोशिश करता है, उसको स्थायी या आंशिक क्षति या विकृति या जलने के इरादे से या अपंग या अक्षमता या उस व्यक्ति को गंभीर चोट लगने के इरादे से, तो ऐसे व्यक्ति को किसी भी अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा जो 5 साल से कम नहीं होगा और जिसे 7 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।

कंपनसेशन

सेक्शन 326B के अनुसार सेक्शन 326A के तहत, राज्य सरकार द्वारा देय कंपनसेशन इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 326A के तहत पीड़ित को देने वाले जुर्माने के भुगतान के अतिरिक्त (एडिशन) होगी।

सी.आर.पी.सी. के सेक्शन 357C के अनुसार, सभी अस्पताल, सार्वजनिक (पब्लिक) या निजी, चाहे केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकायों (बॉडी) या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चलाए जा रहे हों, इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 326A, 376, 376A, 376B, 376C, 376D या सेक्शन 376E  के तहत कवर किए गए किसी भी अपराध में पीड़ितों को तुरंत फर्स्ट एड या चिकित्सा उपचार प्रदान करेंगे और ऐसी घटना के बारे में तुरंत पुलिस को सूचित करेंगे।

ये सेक्शन, जस्टिस जे.एस.वर्मा कमिटी की सिफारिश के बाद डाले गए और यह भारत के लॉ कमीशन की 226वीं रिपोर्ट का प्रस्ताव भी था जो विशेष रूप से एसिड अटैक से संबंधित थी।

हालांकि एसिड अटैक एक अपराध है जो किसी भी पुरुष या महिला के खिलाफ किया जा सकता है, भारत में इसका एक विशिष्ट लिंग आयाम (डाइमेंशन) है क्योंकि रिपोर्ट किए गए ज्यादातर एसिड अटैक महिलाओं पर किए गए हैं, विशेष रूप से युवतियों पर प्रोपोज़ल को ठुकराने के लिए, शादी के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के लिए, दहेज से इनकार करने आदि के लिए। हमलावर इस तथ्य को सहन नहीं कर पता कि उसे अस्वीकार कर दिया गया है और वह उस महिला को पूरी तरह नष्ट करने की कोशिश करता है क्योंकि उसने, उसके सामने खड़े होने का साहस किया। 

जैसा कि हम जानते हैं कि अमेंडमेंट से पहले इस विशेष अपराध से संबंधित कोई विशिष्ट सेक्शन या कानून नहीं था। पहले इस को आई.पी.सी. के सेक्शन 326 के तहत देखा जाता था, जो ‘खतरनाक हथियारों या साधनों से अपनी इच्छा से गंभीर चोट पहुंचाने’ से संबंधित है। यह प्रावधान एसिड सहित ‘संक्षारक पदार्थों (सब्स्टेन्सेस)’ का उपयोग करके गंभीर चोट पहुंचाने से भी संबंधित है।

आई.पी.सी. में सेक्शन 326A के शामिल होने से पहले के कुछ मामले 

मारेपल्ली वेंकट श्री नागेश बनाम स्टेट ऑफ़ ए.पी., आरोपी को अपनी पत्नी के चरित्र के बारे में संदेह था और उसने, उसकी योनि (वजिना) में मर्क्यूरिक क्लोराइड डाला और रेनल फेलर के कारण उसकी मृत्यु हो गई। आरोपी को आई.पी.सी. के सेक्शन 302 और 307 के तहत आरोपित किया गया और दोषी ठहराया गया।

देवानंद बनाम द स्टेट के मामले में एक व्यक्ति ने अपनी अलग हुई पत्नी पर एसिड फेंक दिया क्योंकि उसने उसके साथ रहने से इनकार कर दिया था। पत्नी को स्थायी रूप से विकृति और एक आंख की हानि का सामना करना पड़ा। आरोपी को सेक्शन 307 के तहत दोषी ठहराया गया और 7 साल की कैद हुई।

स्टेट ऑफ़ कर्नाटक बाइ जलाहल्ली पुलिस स्टेशन बनाम जोसेफ रोड्रिग्स, यह एसिड अटैक से जुड़े सबसे प्रसिद्ध मामलों में से एक है। नौकरी का ऑफर ठुकराने पर आरोपी ने हसीना नाम की लड़की पर एसिड फेंक दिया। इस गहरे जख्म ने उसकी शारीरिक बनावट को बदल दिया और उसके चेहरे का रंग बदल दिया और उसे अंधा बना दिया। आरोपी को आई.पी.सी. के सेक्शन 307 के तहत दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। ट्रायल कोर्ट ने, आरोपी को 2,00,000 रुपये के कंपनसेशन के अलावा 3,00,000 रुपये के जुर्माने का भुगतान, हसीना के माता-पिता को देने को कहा।

एसिड अटैक से जुड़े ऐतिहासिक मामले (लैंडमार्क केसेस रिलेटेड टू एसिड अटैक)

लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, यह एक ऐतिहासिक मामला था, इस मामले में, लक्ष्मी (एसिड पीड़ित) द्वारा याचिका (पेटिशन) दायर की गयी थी । इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को एसिड के नियमन (रेग्युलेशन) का निर्देश जारी किया था। अदालत ने कंपनसेशन की समस्या का भी समाधान किया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सेक्शन 357A ,पीड़ित या उसके आश्रितों (डिपेंडेंट्स) को कंपनसेशन के उद्देश्य से धन उपलब्ध कराने के लिए एक योजना तैयार करने का प्रावधान करता है, जिन्हें अपराध के परिणामस्वरूप नुकसान या चोट का सामना करना पड़ा है और जिन्हें रिहैबिलिटेशन की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि एसिड अटैक के पीड़ितों को राज्य सरकार/केंद्र शासित प्रदेश द्वारा कम से कम 3 लाख रुपये की कंपनसेशन दी जानी चाहिए जिससे उनकी देखभाल और रिहैबिलिटेशन किया जा सके।

लेकिन वास्तव में, किसी भी राज्य ने विक्टिम कंपनसेशन स्कीम निर्धारित नहीं की और 25,000 से 3 लाख तक का कंपनसेशन राज्य दर राज्य पर निर्भर करता है, जो पीड़ित के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि एसिड अटैक पीड़िता को पूरे जीवन में कई प्लास्टिक सर्जरी से गुजरना होता है। 

परिवर्तन केंद्र बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, इस मामले में,  एसिड अटैक पीड़ितों की दुर्दशा (प्लाइट) जैसे कि मुफ्त चिकित्सा देखभाल, रिहैबिलिटेशन सेवा या सर्वाइवर कंपनसेशन स्कीम्स के तहत पर्याप्त कंपनसेशन, को दर्शाते हुए एक पी.आई.एल. दर्ज की गयी थी, जिसमें दो दलित लड़कियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला गया– जो एसिड अटैक पीड़िता थीं। इस मामले में, अदालत ने यह विचार किया कि लक्ष्मी मामले में अदालत के आदेश और निर्देशों के बावजूद, भारत में अधिकांश आबादी के लिए अभी भी एसिड आसानी से उपलब्ध है। इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्देश जारी किया कि राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों को गंभीरता से चर्चा करनी चाहिए और अपने संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के सभी निजी अस्पतालों के साथ इस मामले को उठाना चाहिए कि निजी अस्पताल एसिड अटैक के पीड़ितों के इलाज से इनकार न करें और यह कि ऐसे पीड़ितों को दवाएं, भोजन, बिस्तर और प्लास्टिक सर्जरी सहित पूर्ण उपचार प्रदान किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक अलग क्रिमिनल इंज्युरी कंपनसेशन बोर्ड स्थापित करने की कोई आवश्यकता नहीं है और अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संबंधित राज्य सरकार/केंद्र शासित प्रदेश, 3 लाख रुपये से अधिक कंपनसेशन की राशि भी दे सकते हैं। 

कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार/केंद्र शासित प्रदेश को बिना उचित अनुमति के एसिड की सप्लाई करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और एसिड के वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) पर जांच करने में विफलता के लिए संबंधित अधिकारियों को भी जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए।

स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र बनाम अंकुर पंवार (प्रीति राठी केस), महाराष्ट्र में एसिड अटैक में इस तरह के पहले आदेश में यहां के स्पेशल वूमेन कोर्ट ने अंकुर पंवार को मौत की सजा सुनाई। आरोपी को 2013 में बांद्रा स्टेशन पर प्रीति राठी पर एसिड फेंकने के आरोप में दोषी ठहराया गया था, जब उसने अपने नर्सिंग करियर को आगे बढ़ाने के लिए चुना, और उसके शादी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। स्पेशल जज अंजू एस. शेंडे ने कहा, “घटती (मिटिगेटिंग) और विकट (अग्ग्रावेटिंग) परिस्थितियों , मामले के तथ्य और सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एसिड अटैक के फैसले के अनुसार, आरोपी को मौत के घाट उतार दिया गया।

अन्य देशों में कानून (लॉज़ इन अदर कंट्रीज़)

बांग्लादेश

2002 में, बांग्लादेशी सरकार ने दो एक्ट्स पास किए, एसिड कंट्रोल एक्ट  2002 और एसिड क्राइम प्रिवेंशन एक्ट, 2002। यह एक्ट, एसिड अटैक में शामिल लोगों की सजा को संबोधित करता है और खुले बाजारों में एसिड के आयात (इम्पोर्ट) और बिक्री को प्रतिबंधित करते हैं।

कानूनों की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं:

  • नेशनल एसिड कंट्रोल काउंसिल फंड की स्थापना
  • एसिड अपराधों के पीड़ितों के लिए रिहैबिलिटेशन सेंटर की स्थापना 
  • एसिड अपराधों के पीड़ितों के लिए उपचार
  • एसिड अपराध आदि के शिकार लोगों के लिए कानूनी सहायता का प्रावधान।

कंबोडिया

कंबोडिया में, कंबोडियन कानून- रेग्युलेशन ऑफ़ कॉन्संट्रेट एसिड को नवंबर 2011 में पास किया गया। यह कानून, एसिड हिंसा को अपराध बनाता है जो सभी प्रकार के केंद्रित एसिड के लिए रेग्युलेशन और नियंत्रण प्रदान करता है। कानून भविष्य में उप-डिक्री द्वारा सूची को पूरक (सप्पलीमेंट) करने की क्षमता के साथ “कॉन्संट्रेट एसिड” शब्द की व्यापक (वाइड) परिभाषा प्रदान करता है। इसके अलावा, इस तरह के उपयोग की अनुमति देने वाले संबंधित मंत्रालय द्वारा जारी लाइसेंस या अनुमति पत्र की आवश्यकता के द्वारा एसिड के आयात, परिवहन (ट्रांसपोर्ट), वितरण, रिटेल और स्टोरेज को नियंत्रित करता है।

एसिड अटैक से आज भी जल रहा भारत (एसिड अटैक स्टिल बर्निंग इंडिया)

क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) एक्ट, 2013 द्वारा पीनल कोड में सेक्शन 326A और 326B जोड़ें गए थे , इससे अपराध को रोका या घटाया नहीं जा सका और अपराध दर (रेट) अभी भी वही है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी लेटेस्ट आंकड़े यह थे कि वर्ष 2011, 2012 और 2013 में 83,85 और 66 मामले दर्ज किए गए थे, लेकिन 2014 में यह संख्या बढ़कर 309 हो गई- पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ो से लगभग 4 गुना ज्यादा। एसिड अटैक का अधिकांश हिस्सा उत्तर प्रदेश (185), मध्य प्रदेश (53) में था। 

निष्कर्ष और सुझाव (कन्क्लूज़न एंड सजेशन)

एसिड अटैक में क्रूरता की ऊंचाई, रेप के मामलों से कहीं ज्यादा होती है। रेप में पीड़िता की आत्मा को नष्ट किया जाता है, लेकिन फिर भी अगर उसे सुरक्षित स्थान पर रखा जाए तो वह अपनी पहचान बताए बिना रह सकती है; लेकिन एसिड अटैक के मामले में, उन्हें (पीड़ितों) को अपने विकृत शरीर के साथ घूमना पड़ता है। और एंड में मैं, एक विशेष कानून बनाने का सुझाव देना चाहूंगा, जो एसिड अटैक और एसिड पीड़ित की समस्या से संबंधित है क्योंकि एसिड पीड़ितों को अपने पूरे जीवन में समस्या का सामना करना पड़ता है।

सुझाव (सजेशन)

  • विशिष्ट कानून बनाने के लिए यह सबसे पहले एसिड के रेगुलेशन को देखना होगा।
  • इंडियन एविडेंस एक्ट में 1872 , सेक्शन 114B डाला जाना चाहिए जो एसिड अटैक के बारे में उपधारणा (प्रीसंपशन) के बारे में बताता है और जिसकी अनुशंसा (रेकमेंडेशन) जस्टिस जे.एस. वर्मा कमिटी में भी की गयी थी।
  • केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को आगे आना चाहिए और एक अलग फंड बनाना चाहिए जो एसिड पीड़ितों को देय कंपनसेशन से संबंधित होना चाहिए।
  • जो पीड़ित काम नहीं कर सकते उन्हें पेंशन भी मिलनी चाहिए।

संदर्भ (रेफरेन्सेस)

  • Laxmi Vs. Union of India 2014 4 SCC 427
  • Proposal for the inclusion of acid attacks as specific offences in the Indian Penal Code and a law for compensation for victims of crimes, Law Commission of India,2008 at p.3
  • Marepally Venkata Sree Nagesh  Vs.  State of A.P, 2002 CriLJ 3625
  • Devanand Vs. The State  1987 (1) Crimes 314
  • State of Karnataka by Jalahalli Police Station vs. Jospeh Rodrigues  Decided in the Hon’ble High Court of Kerala on 22/8/2006
  • Laxmi v. Union of India  2014 4 SCC 427
  • Inserted in the Code of Criminal Procedure,1973 by Act 5 of 2009
  • Parivartan Kendra Vs. Union of India  2015 (13) SCALE 325
  • State of Maharashtra v. Ankrur Panwar  Decided in September 2016
  • The data submitted by the Ministry of Home Affair to the Supreme Court in the (Laxmi V. Union Of India )

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