भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39

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Constitution of India
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यह लेख मानव रचना विश्वविद्यालय के Nikhil Thakur ने लिखा है। इस लेख में, लेखक का उद्देश्य भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 39 की विभिन्न बारीकियों की व्याख्या करना है। इस लेख का अनुवाद Shreya Prakash द्वारा किया गया है।

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परिचय

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ़ द स्टेट पॉलिसी) (डीपीएसपी) को भारतीय संविधान के भाग IV के तहत अनुच्छेद 36 से अनुच्छेद 51 तक में उल्लेख किया गया है। भारतीय संविधान के प्रारूपकारों/ निर्माताओं ने राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (डीपीएसपी) की इस अवधारणा को, आयरिश संविधान, 1937 से अपनाया गया है, जिसने इस अवधारणा को आगे स्पेनिश संविधान से उधार लिया है।

जैसा कि डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने ठीक ही कहा है, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (डीपीएसपी), भारतीय संविधान की नई विशेषता हैं। निर्देशक सिद्धातों के साथ मौलिक अधिकार, भारतीय संविधान का दिल और आत्मा हैं।

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का वर्गीकरण (डीपीएसपी)

भारतीय संविधान में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (डीपीएसपी) के किसी भी वर्गीकरण का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है। हालाँकि, विभिन्न लेखों की सामग्री के आधार पर, उन्हें तीन प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जो हैं:

  1. समाजवादी सिद्धांत, (अनुच्छेद 38, 39, 39A, 41, 42, 43, 43A और 47)
  2. गांधीवादी सिद्धांत और (अनुच्छेद 40, 43, 43B, 46, 47, 48)
  3. उदार-बौद्धिक (लिबरल इंटेलेक्चुअल) सिद्धांत (अनुच्छेद 44, 45, 48, 48A, 49, 50, 51)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39, विशेष रूप से नीति के प्रावधानों या सिद्धांतों से संबंधित है, जो राज्य द्वारा अपनाए जाएंगे। अनुच्छेद 39 में छह उप-खंड हैं, जो हैं:

  1. यह कि सभी नागरिकों को चाहे उनका लिंग कुछ भी हो, चाहे वे पुरुष हों या महिला, समान रूप से आजीविका के पर्याप्त साधनों का अधिकार होगा। [भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39(a)]
  2. यह कि संसाधनों (रिसोर्सेज) और उन संसाधनों और सामग्रियों का स्वामित्व इस तरह से वितरित किया जाएगा, कि यह सामान्य लक्ष्य को पूरा करता हो। [भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39(b)]
  3. यह कि आर्थिक प्रणाली को इस तरह से क्रियान्वित (एग्जिक्यूट) किया जाना चाहिए, कि धन और उत्पादन के साधनों के संकेंद्रण (कंसंट्रेशन) के परिणामस्वरूप एक सामान्य नुकसान न हो। [भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39(c)]
  4. यह कि समान काम के लिए समान वेतन को बढ़ावा दिया जाए। [भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39(d)]
  5. यह कि श्रमिकों के स्वास्थ्य और ताकत के साथ, चाहे वे पुरुष, महिला या बच्चो हो, दुर्व्यवहार या हेरफेर नहीं किया जाएगा। इसके अलावा, आर्थिक आवश्यकता / स्थिति ऐसे व्यवसाय में प्रवेश करने का कारण नहीं होगी, जो विशिष्ट आयु या शक्ति के लिए अनुपयुक्त है। [भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39(e)]
  6. बच्चों को उचित अवसर दिए जाएं, जो उन्हें स्वस्थ तरीके से और स्वतंत्रता और सम्मान की स्थिति में निर्माण करने में मदद करें। इसके अलावा, बचपन और युवावस्था को किसी भी तरह के शोषण से और नैतिक (मोरल) और भौतिक परित्याग (मेटेरियल अबैंडन्मेंट) के खिलाफ संरक्षित किया जाएगा। [भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39(f)]

इस अनुच्छेद के दायरे का विस्तार करने के लिए भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 39 (f) को 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से स्थापित किया गया था। इससे पहले, अनुच्छेद 39 (f) में कहा गया था कि “बचपन और युवाओं को शोषण या हेरफेर के खिलाफ और नैतिक और भौतिक परित्याग के खिलाफ संरक्षित किया जाना चाहिए।”

इस अनुच्छेद का एकमात्र उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत के लोगों या नागरिकों को आजीविका के पर्याप्त साधन, धन का उचित वितरण, समान कार्य के लिए समान वेतन, बच्चों और श्रमिकों की सुरक्षा प्रदान की जाए। यह सब सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी राज्य की है।

अनुच्छेद 39 का सार उपखंड (b) और (c) के तहत वर्णित किया गया है। अनुच्छेद 39 (b) और (c) एक कल्याणकारी समाज (वेलफेयर सोसाइटी) सुनिश्चित करने और एक समतावादी समाज (ईगेलिटेरियन सोसाइटी) को बढ़ावा देने से संबंधित है।

केस

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जैसे किसी भी क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया में विकास, व्यक्ति के सम्मान के अधिकार के उल्लंघन में नहीं होगा। इसलिए, यहां सर्वोच्च न्यायालय ने देखा कि भारतीय संविधान के निर्माताओं की भी राय थी कि ऐसा समाज नहीं होना चाहिए जहां व्यक्तियों ने किसी प्रकार की गरिमा सुनिश्चित नहीं की हो।

बिहार राज्य बनाम कामेश्वर सिंह एआईआर (1952) के एक ऐतिहासिक सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में माननीय न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि कोई भी कानून जिसका उद्देश्य कुछ लोगों के हाथों में धन/ भूमि की संकेंद्रण को दूर करना है और एकता को बढ़ावा देना है, समतावादी दृष्टिकोण समग्र रूप से समाज के लिए फायदेमंद होगा और यह एक समावेशी (इंक्लूसिव) विकास को प्रोत्साहित करेगा, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 (b) और (c) के तहत बताए गए कारणों को आगे बढ़ाएगा।

असम सिलिमेनाइट लिमिटेड बनाम भारत संघ (1992) के तहत माननीय न्यायालय ने समझाया कि “समुदाय के भौतिक संसाधन” क्या हैं, जिनका उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 (b) के तहत किया गया है। न्यायालय ने कहा, उपर्युक्त शब्द का अर्थ और इसमें वे सभी चीजें शामिल हैं, जो समग्र रूप से समुदाय के लिए धन पैदा करने के लिए उपयुक्त हैं।

उपर्युक्त मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि कोई भी अधिनियम, कानून, आदि जिसका उद्देश्य लौह और इस्पात (स्टील) उद्योग की महत्वपूर्ण मांग को पूरा करने के लिए रेफ्रेक्ट्रीज के उत्पादन और आपूर्ति का विस्तार करना है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 (b) के तहत अच्छी तरह से संरक्षित है। 

इसके अलावा, “समुदाय के भौतिक संसाधन” न केवल उन संसाधनों को शामिल करते हैं जो पहले से ही राज्य के हाथों में निहित हैं बल्कि वे भी हैं जो निजी व्यक्तियों के हाथों में हैं, जैसा कि संजीव कोक एमएफजी कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (1982) के मामले में निर्धारित किया गया है और फिर से तिनसुखिया इलेक्ट्रिक सप्लाई कंपनी लिमिटेड बनाम असम राज्य (1989) में दोहराया गया था।

टीएन बनाम एल अबू कवूर बाई (1983) और जिलुभाई नानभाई खाचर बनाम गुजरात राज्य (1994) के मामले में यह माना गया था कि भौतिक संसाधनों में चल और अचल संसाधन जैसे भूमि, भवन आदि शामिल हैं। राज्यों द्वारा निजी उद्यमों (इंटरप्राइजेज) या उपक्रमों (अंडरटेकिंग्स) और सेवाओं का राष्ट्रीयकरण भौतिक संसाधनों के दायरे में आने के योग्य है; यह दृष्टिकोण असम सिलिमेनाइट लिमिटेड बनाम भारत संघ (1992) के मामले में देखा गया था।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 (d) का उद्देश्य समान कार्य के लिए पुरुषों और महिलाओं के बीच समान वेतन सुनिश्चित करना है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने रणधीर सिंह बनाम भारत संघ (1982), जीत सिंह बनाम एमसीडी (1986) और दिल्ली पशु चिकित्सा एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1984) के मामले से निपटने के दौरान अनुच्छेद 39 (d) पर भरोसा किया। माननीय न्यायालय ने दिल्ली पुलिस बल, दिल्ली प्रशासन और केंद्र सरकार में ड्राइवरों के वेतनमान (पेय स्केल) की असमानताओं को अमान्य कर दिया था।

जयपाल बनाम हरियाणा राज्य (1988) में, माननीय न्यायालय ने फिर से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 (d) पर भरोसा किया और स्थायी और अस्थायी कर्मचारियों या नियमित (रेगुलर) या आकस्मिक (कैज़ुअल) श्रमिकों सहित कर्मचारियों के बीच वेतनमान की असमानताओं की तब तक निंदा की जब तक वे इसी तरह का काम करते रहे।

सर्वोच्च न्यायालय कर्मचारी कल्याण एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1989) और हरबंस लाल बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (1989) के माध्यम से, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि अनुच्छेद 39 (d) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 16 के माध्यम से समर्थित है और इन दो अनुच्छेदों के तहत उन सभी उचित वर्गीकरणों का उल्लेख किया गया है, जो अनुच्छेद 39 (d) के मामले में लागू नहीं किया जाएगा। इसलिए, विभिन्न अन्य प्रतिष्ठानों और संस्थानों के तहत कार्यरत (इंप्लॉयड) कर्मचारी, वेतनमान में समानता का दावा नहीं कर सकते जैसा कि असम सिलिमेनाइट लिमिटेड बनाम भारत संघ (1992) के मामले में देखा गया है। इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम पीडी अत्री (1999) के तहत माननीय न्यायालय ने कहा कि दूसरे राज्य के कर्मचारी, उस राज्य में भुगतान की समानता का दावा नहीं कर सकते हैं जहां ऐसा व्यक्ति रहता है या नियोजित होता है।

वी. मार्कंडेय बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1989) और मेवा राम कनौजिया बनाम अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (1989) के तहत, न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि वेतनमान, कर्मचारी की शैक्षिक योग्यता के अधीन है।

यदि एक प्रतिष्ठान को कोई आवास सुविधा प्रदान की जाती है और दूसरे को नहीं, तो उस स्थिति में, अदालत उस प्रतिष्ठान में कम आय वाले कर्मचारियों को आवासों के आवंटन (एलॉटमेंट) के संबंध में मैनडमस की रिट जारी नहीं कर सकती क्योंकि अन्य प्रतिष्ठान वही प्रदान कर रहे हैं। इसके अलावा, अदालत ऐसे प्रतिष्ठानों को सामाजिक कल्याण के आधार पर घर आवंटित करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती जैसा कि जगदीश प्रसाद बनाम एमसीडी (1993) में हुआ था।

अनुच्छेद 39 से संबंधित कानून

स्वतंत्रता के बाद से, कर्मचारियों और उनकी सुरक्षा से संबंधित विभिन्न कानून बनाए गए हैं, जिनका उद्देश्य शोषण जैसी बुरी प्रथाओं से बचना और उन पर अंकुश लगाना है:

  1. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, (द मिनिमम वेजेस एक्ट) 1948
  2. मजदूरी पर संहिता, (द कोड ऑन वेजेस) 2020
  3. अनुबंध श्रम विनियमन और उन्मूलन अधिनियम (द कॉन्ट्रैक्ट लेबर रेगुलेशन एंड अबॉलिशन एक्ट), 1970
  4. बाल श्रम निषेध और विनियमन अधिनियम, (द चाइल्ड लेबर प्रोहिबिशन एंड रेगुलेशन एक्ट) 1986
  5. बंधुआ मजदूरी प्रणाली उन्मूलन अधिनियम, (द बोंडेड लेबर प्रोहिबिशन एंड रेगुलेशन एक्ट) 1976
  6. खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (द माइंस एंड मिनिरल (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट), 1957
  7. मातृत्व लाभ अधिनियम (द मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट), 1961
  8. समान पारिश्रमिक अधिनियम, (द इक्वल रेम्युनरेशन एक्ट) 1976

समाज के कल्याण के लिए अपनाई गई सरकारी योजनाएं

अनुच्छेद 39 का उद्देश्य एक कल्याणकारी समाज सुनिश्चित करना है। इसलिए, वर्षों से, सरकार द्वारा समावेशिता (इन्क्लूसिविटी), कल्याणकारी समाज आदि सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न योजनाओं और नीतियों को अपनाया गया है, उनमें से कुछ हैं:

1. प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन योजना

उपर्युक्त योजना का उद्देश्य उन कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, जो स्ट्रीट वेंडर, कृषि से संबंधित पहलुओं, निर्माण श्रमिकों, रिक्शा, ऑटो व्हीलर, कूड़ा बीनने आदि के रूप में लगे हुए हैं। इसका उद्देश्य समाज में समावेशिता को बढ़ावा देना है।

2. प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना

इस योजना का उद्देश्य नियोक्ताओं को प्रोत्साहन प्रदान करके अकुशल (अनस्किल्ड) और अर्ध-कुशल श्रमिकों के लिए समाज में रोजगार को प्रोत्साहित करना है।

3. आम आदमी बीमा योजना

यह एक सामाजिक सुरक्षा योजना है, जिसका उद्देश्य उन सभी श्रमिकों को बीमा कवर प्रदान करना है जो ग्रामीण भूमिहीन परिवारों के अंतर्गत आते हैं।

4. अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना

योजना उन सभी कर्मचारियों को मौद्रिक सहायता प्रदान करती है जो किसी भी कारण से बेरोजगार हो गए हैं।

5. बंधुआ मजदूर के पुनर्वास के लिए केंद्रीय क्षेत्र की योजना (सेंट्रल सेक्टर स्कीम फॉर रिहैबिलिटेशन ऑफ़ बोंडेड लेबर), 2016

इस केंद्रीय योजना का उद्देश्य बंधुआ मजदूरों की पहचान करना और उनका पुनर्वास करना है जिसके तहत केंद्र सरकार मौद्रिक सहायता प्रदान करेगी।

6. स्वरोजगार के लिए गतिधारा योजना (गतिधारा स्कीम फॉर सेल्फ एम्प्लॉयमेंट) 

यह पश्चिम बंगाल राज्य में शुरू की गई एक राज्य-विशिष्ट योजना है। इस योजना का उद्देश्य उन सभी युवाओं को रोजगार प्रदान करना है जो बेरोजगार हो गए हैं।

7. महिला श्रमिकों के कल्याण के लिए गैर सरकारी संगठनों को सहायता अनुदान योजना (ग्रांट इन ऐड स्कीम टू ऐनजीओ फॉर वेलफेयर ऑफ़ वूमेन लेबर)

इस योजना का उद्देश्य महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करना है। यह योजना उन सभी गैर सरकारी संगठनों, संस्थानों और संगठनों के पक्ष में धन प्रस्तुत करेगी, जो महिलाओं के कल्याण के लिए स्थापित किए गए हैं।

8. राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना

यह योजना गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) श्रमिकों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है।

9. संशोधित एकीकृत आवास योजना (रिवाइज्ड इंटीग्रेटेड हाउसिंग स्कीम)

यह एक एकीकृत आवास योजना है जो लोहा, अभ्रक (माइका), चूना पत्थर आदि खानों में काम करने वाले श्रमिकों को आवास सुविधाओं के साथ सहायता करती है। इस योजना का लाभ उठाने के लिए एकमात्र शर्त यह है कि लाभार्थी के पास पहले से कोई पक्का घर नहीं होना चाहिए।

10. गरीब कल्याण रोजगार योजना

यह योजना कोविड-19 महामारी का एक परिणाम थी, जिसके तहत सरकार का उद्देश्य उन सभी प्रवासी श्रमिकों को रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना है जो विस्थापित (डिस्प्लेस्ड) हो गए हैं और आगे उन्हें अपने उद्यमों को फिर से स्थापित करने के लिए धन उपलब्ध कराना है।

11. दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना

दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना (डीएवाई) का उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को कौशल और प्रशिक्षित (ट्रेंड) करना है। योजना का मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक रोजगार का विस्तार और सृजन करना है और लोगों को धन उपलब्ध कराना है ताकि वे अपना उद्यम स्थापित कर सकें।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39 यह सुनिश्चित करता है कि राज्य नीतियों, विनियमों आदि को तैयार करते समय या उससे पहले प्रत्येक व्यक्ति को आजीविका के पर्याप्त साधन सुनिश्चित करने पर उचित विचार करेगा, इस तथ्य के बावजूद कि ऐसा व्यक्ति पुरुष या महिला है, समान वेतन महिलाओं के प्रति समाज के रूढ़िबद्ध व्यवहार पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से समान कार्य को बढ़ावा दिया जाएगा, कर्मचारियों को किसी भी प्रकार के शोषण से बचाया जाएगा या उनकी रक्षा की जाएगी, बच्चों के स्वास्थ्य पर उचित विचार किया जाएगा और आगे पर्याप्त अवसर सुनिश्चित किए जाएंगे

एकमात्र खामी जिसका उल्लेख यहां किया जा सकता है, वह है भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 के दायरे में अन्य लिंगों की गैर-समावेशीता, क्योंकि इसमें केवल पुरुष और महिलाएं शामिल हैं।

संदर्भ

 

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