यह लेख रमैया इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल स्टडीज, बैंगलोर (बीबीए.एलएलबी)के तीसरे वर्ष के छात्र Kashish Kundlani द्वारा लिखा गया है। इस लेख में, इंडियन पीनल कोड, 1860 के सेक्शन 307 और सेक्शन 308 पर चर्चा की गई है। ये सेक्शंस, अटेम्प्ट टू मर्डर और अटेम्प्ट टू कल्पेबल होमीसाइड के बारे में बात करते हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।
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परिचय (इंट्रोडक्शन)
इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 299 और सेक्शन 300 में कल्पेबल होमीसाइड और मर्डर को परिभाषित किया गया है। दोनों अपराधों के बीच बहुत छोटा सा अंतर है।
इसके अलावा, ऐसा करने का अटेम्प्ट भी इंडियन पीनल कोड के तहत एक अपराध है। उनके अटेम्प्ट्स को सेक्शन 307 और 308 के तहत परिभाषित किया गया है। दोनों सेक्शन्स के तहत, इस तरह के अपराध करने के इरादे (इंटेंशन) और ज्ञान को बहुत अधिक महत्व दिया गया है और दोनों सेक्शन्स के तहत किसी भी व्यक्ति को दोषी ठहराते समय उचित विश्लेषण (एनालिसिस) की आवश्यकता है।
अटेम्प्ट का अर्थ
इंडियन पीनल कोड का सेक्शन 511 किसी भी अपराध को करने के अटेम्प्ट से संबंधित दंड के बारे में बात करता है लेकिन यह “अटेम्प्ट ” शब्द को परिभाषित नहीं करता है।
यदि अपराध करना असंभव है, तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा। यह इस अपवाद (एक्सेप्शन) के साथ है कि किसी को अपराध करने के लिए उकसाना (इंस्टिगेट) करना या उस पर प्रभाव (मेनिप्यूलेट) डालना कोई अपराध नहीं है।
अपराध करने के अटेम्प्ट के तहत यह एक अपराध है।
अपराध के चरण (स्टेजेस ऑफ़ क्राइम)
यदि कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से अपराध करता है या अपराध करने की तैयारी भी करता है, तो अपराध के निम्नलिखित चार चरण मौजूद होने चाहिए।
चरण 1: इरादा
अपराध करने का इरादा एक मानसिक अवस्था है। यह किसी कार्य को करने के लिए व्यक्ति की इच्छा होती है। कानून, इरादे के महत्व पर विचार नहीं करता। जैसे बिना किसी कार्य को करे, केवल अपराध करने का इरादा, अपराध नहीं बनता। दोषी (गिल्टी) मन या बुरा इरादा दिखाई देना चाहिए।
चरण 2: तैयारी (प्रिपरेशन)
इस चरण में अपराध को अंजाम देने की व्यवस्था शामिल होती है। यह ध्यान रखना चाहिए कि इस चरण पर अभी कोई अपराध नहीं किया जाता है।
क्योंकि किसी भी उद्देश्य के लिए तैयारी करना कोई अपराध नहीं है। लेकिन इस चरण पर इंडियन पीनल कोड के तहत कुछ कृत्यों पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए- स्टेट के विरुद्ध युद्ध (वेजिंग वॉर) करने की तैयारी और डकैती करने की तैयारी, इस चरण में दंडनीय है।
इस चरण के लिए एक उदाहरण है- यदि ‘L’ अपने शत्रु ‘S’ को मारने के लिए पिस्तौल खरीदता है और उसे अपनी जेब में रखता है और कुछ नहीं करता। यह कोई अपराध नहीं है, यह सिर्फ अपराध करने की तैयारी है।
चरण 3: अटेम्प्ट
अपराध का अटेम्प्ट तब होता है जब इसकी तैयारी हो जाती है। अटेम्प्ट, एक अपराध करने की दिशा में कोई कार्य करने के लिए होता है।
इंडियन पीनल कोड के अधिकांश सेक्शन्स किसी भी अपराध के अटेम्प्ट को दंडनीय अपराध बनाते हैं।
चरण 4: समापन या सफलता (कंप्लीशन और एकंप्लिशमेंट)
इसे पूर्ण अपराध बनाने के लिए अपराध का पूरा होना बहुत जरूरी है। यदि कोई व्यक्ति अपराध करने का अटेम्प्ट करता है और अंततः उसमें सफल हो जाता है, तो उसे दोषी माना जाएगा।
एक उदाहरण (इलस्ट्रेशन) के माध्यम से, हम 4 चरणों को संक्षेप (ब्रीफ) में प्रस्तुत करेंगे-
चरण 1: इरादा- ‘X’ ‘Y’ को मारने की योजना बनाता है।
चरण 2: तैयारी- उसे मारने के लिए पिस्तौल खरीदता है।
चरण 3: अटेम्प्ट- X पिस्तौल को Y पर पॉइंट करता है और उसे गोली मार देता है।
चरण 4: समापन- Y बंदूक की गोली के कारण मारा जाता है।
तब X को मर्डर का दोषी ठहराया जाएगा।
लेकिन अगर Y केवल घायल होता है तो X को अटेम्प्ट टू मर्डर का दोषी माना जाएगा।
सेक्शन 307 और सेक्शन 308 का कार्य क्षेत्र (स्कोप ऑफ़ सेक्शन 307 एंड सेक्शन 308)
इंडियन पीनल कोड का सेक्शन 307 अटेम्प्ट टू मर्डर के बारे में बताता है।
जो कोई भी दोषी इरादे या ज्ञान के साथ कोई कार्य करता है, और यह जानते हुए कि उस कार्य से मृत्यु होने की संभावना है या उसे यह ज्ञान है कि उस कार्य या चोट के परिणाम मृत्यु हो सकती है, तभी उसे मर्डर का दोषी माना जाएगा।
उदाहरण के लिए- मिस्टर T, मिस्टर P के मर्डर की योजना बनाते है। वह मिस्टर P के भोजन में मिलाने के इरादे से कुछ जहरीले रसायन (केमिकल्स) एकत्र (कलेक्ट) करते है।
जब तक मिस्टर T ने खाना नहीं परोसा, तब तक उसने कोई अपराध नहीं किया।
लेकिन अगर वह मिस्टर P की मेज पर जहरीला भोजन रखता है, या मिस्टर P के नौकर को देता है, तो मिस्टर T, अटेम्प्ट टू मर्डर के अपराधी माने जाएंगे।
इस अपराध के इंग्रेडिएंट्स
- किए गए कृत्य की प्रकृति।
- अपराध करने का इरादा या ज्ञान।
- इसके प्रति अपराध करना या निष्पादन (एक्सिक्यूशन)।
- प्रकृति के सामान्य क्रम (कोर्स) में ऐसा कार्य करने से मृत्यु निश्चित है।
दो सबसे महत्वपूर्ण इंग्रेडिएंट्स
अपराध करने का ज्ञान या इरादा होना
सेक्शन 307 के तहत किए गए किसी भी कार्य पर निर्णय लेने के लिए, 3 चीज़े अनिवार्य हैं-
- किए गए कार्य की प्रकृति।
- अपराध करने का इरादा या ज्ञान।
- इस अपराध के प्रति अपराध करना या निष्पादित करना।
इस सेक्शन का उद्देश्य यह है कि अभियुक्त (अक्यूज़ड) का इरादा या ज्ञान महत्वपूर्ण हो।
मर्डर का अपराध करने के लिए इरादा या ज्ञान सबसे आवश्यक है।
बिना किसी इरादे या ज्ञान के, यह निर्धारित करना मुश्किल होगा कि क्या ‘अटेम्प्ट टू मर्डर’ किया गया था।
इस अपराध के प्रति अपराध का प्रदर्शन या निष्पादन (द परफॉरमेंस और एक्सीक्यूटिंग ऑफ़ एन ऑफेंसेज़ टुवर्ड्स इट)
किसी कार्य को करने का केवल गलत और बुरा इरादा ही अपराध करने के लिए पर्याप्त नहीं है। कार्य को दंडनीय बनाने के लिए, एक शारीरिक और स्वैच्छिक (वोलन्टरी) कार्य या चूक दिखाई देनी चाहिए। किया गया कार्य भी प्रकृति के सामान्य क्रम में मृत्यु का कारण बनने में सक्षम होना चाहिए।
आई.पी.सी. के सेक्शन 307 के तहत सजा
इस सेक्शन के तहत दस साल तक की कैद हो सकती है। अपराधी को जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।
मर्डर करने के अटेम्प्ट में, यदि किसी व्यक्ति को चोट लगती है, तो अपराधी को 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की अवधि के लिए कैद किया जा सकता है। इसके साथ किसी भी तरह का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति पहले से ही आजीवन कारावास की सजा काट चुका है और मर्डर करने के इरादे से किसी को फिर से चोट पहुंचाता है, तो उसे मृत्युदंड से दंडित किया जाएगा।
इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 308 कल्पेबल होमीसाइड के अटेम्प्ट के बारे में बात करती है।
जो कोई भी इस इरादे या ज्ञान के साथ कोई कार्य करता है कि ऐसे कार्य से किसी व्यक्ति की मृत्यु होने की संभावना है, उसे कल्पेबल होमीसाइड का दोषी माना जाएगा।
उदाहरण के लिए- P ने D को गोली मार दी क्योंकि वह D के शब्दों से उत्तेजित (प्रोवोक) हो गया था। यदि D की मृत्यु हो जाती है, तो P को कल्पेबल होमीसाइड का दोषी ठहराया जाएगा। जबकि यदि D की मृत्यु नहीं होती है तो P को इस सेक्शन के तहत अटेम्प्ट टू कल्पेबल होमीसाइड के लिए दोषी ठहराया जाएगा।
इस अपराध के इंग्रेडिएंट्स
- कार्य की प्रकृति।
- अपराध करने का इरादा या ज्ञान।
- मौत का कारण बनने की संभावना।
- अपने कार्य को अंजाम देना या उसके प्रति अपना कार्य करना।
- कल्पेबल होमीसाइड मर्डर की श्रेणी में नहीं है।
आई.पी.सी. के सेक्शन 308 के तहत सजा
सेक्शन 308 में कहा गया है कि, इस सेक्शन के तहत किसी भी आरोपी को 3 साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों की सजा दी जाएगी।
यदि कोई व्यक्ति कल्पेबल होमीसाइड के अटेम्प्ट से, किसी दूसरे व्यक्ति को घायल कर देता है, तो अपराधी को एक वर्ष तक की अवधि के लिए कारावास, जो 7 वर्ष तक बड़ाई जा सकती है, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
क्या मर्डर और कल्पेबल होमीसाइड का अटेम्प्ट एक बेलेबल और कॉग्निजेबल अपराध है?
बेलेबल अपराध- ऐसे अपराध जिनमें गिरफ्तार व्यक्ति को रिहा करने के लिए अदालत से अनुमति की आवश्यकता नहीं होती। गिरफ्तार व्यक्ति को जरूरी औपचारिकताओं (रिक्वायरमेंट्स) को पूरा करके रिहा किया जा सकता है और पुलिस, व्यक्ति को मना नहीं कर सकती है।
कॉग्निजेबल अपराध- ऐसा अपराध जिसमें पुलिस को किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार होता है और मजिस्ट्रेट की अनुमति से या बिना एफ.आई.आर. दर्ज कर, जांच शुरू करने का भी अधिकार होता है।
मर्डर और कल्पेबल होमीसाइड का अटेम्प्ट बेलेबल और कॉग्निजेबल अपराध है।
निर्णय विधि (केस लॉज़)
लियाकत मियां और अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ बिहार, 1973
इस मामले में, हरदेव महतोन के घर में डकैती करने के आरोप में सेशंस कोर्ट ने चारों अपीलकर्ताओं (अप्पीलेंटस) को आई.पी.सी. के सेक्शन 395 के तहत दोषी ठहराया था।
ट्रायल के दौरान यह निर्धारित (हेल्ड) किया गया कि अपीलकर्ता नंबर 2 पर भी आई.पी.सी. के सेक्शन 307 के तहत अटेम्प्ट टू मर्डर का आरोप लगाया जाएगा। जब अपीलकर्ता डकैती कर रहे थे, तब अपीलकर्ता नंबर 2 ने बुरहान महतोन पर बंदूक तान दी, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया।
सेशंस कोर्ट ने माना कि बुरहान महतोन की मृत्यु इसलिए हुई क्योंकि उन्होंने अभियुक्त नंबर 2 द्वारा पहुंचाई चोटों के कारण दम तोड़ दिया और आरोपी नंबर 2 को सेक्शन 307 के तहत अटेम्प्ट टू मर्डर का दोषी ठहराया जाएगा।
ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को सेक्शन 395 के तहत डकैती और सेक्शन 307 के तहत अटेम्प्ट टू मर्डर के लिए दोषी ठहराया। उसने डकैती के सभी आरोपियों को सजा दी और उन्हें नौ साल कैद की सजा सुनाई। आरोपी को नौ साल के कठोर कारावास की सजा भी सुनाई गई है। यह माना गया कि आरोपी नंबर 2 को एक साथ दोनों दंडो का भुगतान करना होगा।
चारों दोषियों ने हाई कोर्ट में याचिका दर्ज़ की। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और उनकी याचिका खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी साक्ष्यों (एविडेंस) पर विचार किया और उनकी अपीलों को खारिज कर दिया।
बिशन सिंह और अन्य बनाम स्टेट (2007) आई.एन.एस.सी. 1015 (9 अक्टूबर 2007)
मामले के तथ्य
इस मामले में, बिशन सिंह और गोविंद बल्लभ को इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 147 और 308/149 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था। 6 के समूह में से, वे केवल दो ही बचे थे। वादी (प्लेंटिफ) हरीश भट्ट पर आरोपियों ने लाठियों से हमला किया। उन्होंने उसकी जेब से 400 रुपये भी निकाल लिए। उसे बचाने के लिए वादी के भाई घनश्याम ने बीच-बचाव किया। लेकिन सभी आरोपियों ने हरीश भट्ट को जान से मारने के इरादे से हमला कर दिया। नतीजतन, हरीश भट्ट की मृत्यु नहीं हुई, लेकिन उनके हमले के कारण उन्हें कई गंभीर चोटें आईं।
ट्रायल कोर्ट
ट्रायल जज ने अपीलकर्ता को अपराध करने के लिए आई.पी.सी. के सेक्शन 147 और आई.पी.सी. के सेक्शन 308/149 के तहत दोषी ठहराया। अदालत ने उन्हें आई.पी.सी. के सेक्शन 147 के तहत एक साल और आई.पी.सी. के सेक्शन 308/149 के तहत चार साल की सजा सुनाई।
अपनी एफ.आई.आर. में, बताने वाले ने कहा कि उन्हें आरोपियों ने धमकी दी थी। उन्होंने तर्क दिया कि यह कृत्य मर्डर के इरादे से किया गया था, लेकिन अपराध आई.पी.सी. की 147 और 323 के तहत दर्ज किया गया था, जबकि इसे सेक्शन 308 के तहत दर्ज किया जाना चाहिए।
जज ने सेक्शन 308 के इंग्रेडिएंट्स की गैर मौजूदगी का विश्लेषण करने के बाद उन्हें सेक्शन 323 और 325 के तहत दोषी ठहराया।
रामबाबू बनाम स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश, 1 अप्रैल 2019
इस मामले में, अपीलकर्ता को इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 307 के तहत दोषी ठहराया गया था। अदालत ने उसे 5 साल कैद की सजा सुनाई और उस पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया।
अदालत ने माना कि अपीलकर्ता सेक्शन 307 के तहत दोषी है और जमानत नहीं दी जाएगी। कोर्ट ने यह भी माना कि दूसरे व्यक्ति को लगी चोट, उसकी गंभीरता की परवाह किए बिना, सेक्शन 307 के तहत दंड को आकर्षित (अट्रैक्ट) करेगी। सभी चोटों को एक अपराध माना जाएगा और ऐसा करने वाले व्यक्ति को दोषी माना जाएगा।
निष्कर्ष (कन्क्लूज़न)
सेक्शन 307 और 308 के विश्लेषण के बाद, यह अच्छी तरह से स्थापित हो गया है कि न केवल अपराध करना, बल्कि अटेम्प्ट करना भी दंडनीय है। लेकिन यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अटेम्प्ट, दंडनीय होने के लिए, एक इरादे की उपस्थिति और अपराध की तैयारी महत्वपूर्ण है।
इस सेक्शन में सुधार की आवश्यकता तब उत्पन्न होती है जब सेक्शन 307 और 308 का विश्लेषण सेक्शन 511 के साथ किया जाता है। सेक्शन 511 के तहत, सभी अपराध, प्रदर्शन करने की संभावना की परवाह किए बिना, एक अपराध के रूप में माने जाते है, और इस एक्ट के तहत दंडनीय है। सेक्शन 307 और 308 में, इरादा, ज्ञान और इसे करने के साधन, ऐसे तत्व हैं जिन्हें अदालत, किसी कार्य को अपराध बनने के लिए आवश्यक मानती हैं।
उदाहरण के लिए- यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे की पॉप गन का उपयोग करके किसी अन्य व्यक्ति को मारने की धमकी देता है। यह कोई अपराध नहीं माना जाएगा क्योंकि इसे करने के लिए आवश्यक व्यवस्था या उचित साधनों का अभाव है। लेकिन इसी तरह कुछ स्थितियों में, यदि कोई व्यक्ति किसी चीज पर बंदूक चलाता है यह सोचकर कि वहां कोई व्यक्ति है लेकिन वहां वास्तव में कोई नहीं है, तो पिछले उदाहरण को सेक्शन 511 के तहत दंडनीय माना जाएगा। जबकि बाद वाले उदाहरण को सेक्शन 307 के तहत दंडनीय नहीं माना जाएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह एक असंभव अटेम्प्ट है और ऐसा अपराध करने के लिए साधन या उचित तैयारी मौजूद नहीं है।
संदर्भ (रेफरेन्सेस)