एक्स टर्पी कॉज़ा नॉन ओरिटर एक्शियो

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Jurisprudence

यह लेख इंदौर इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ के तृतीय वर्ष के छात्र Adarsh Singh Thakur द्वारा लिखा गया है। इस लेख में उन्होंने एक्स टर्पी कॉज़ा नॉन ओरिटर एक्शियो के सिद्धांत पर विस्तार से चर्चा की है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है। 

अर्थ

जब भी कोई व्यक्ति एक गैरकानूनी कार्य करता है, तो ऐसे कार्य के कारण नुकसान उठाने वाले व्यक्ति को अदालत में उसके खिलाफ उपाय का दावा करने का अधिकार होता है। उदाहरण के लिए, यदि A, B पर हमला करता है, तो B अदालत में उससे हर्जाने का दावा कर सकता है।

लेकिन कुछ मामलों में, वादी को प्रतिवादी से हर्जाने का दावा करने की अनुमति नहीं होती है क्योंकि उसने खुद एक अवैध कार्य किया है और इसलिए उसे अदालत में कोई उपाय नहीं मिल सकता है। इसे एक्स टर्पी कॉज़ा नॉन ओरिटर एक्शियो के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि एक अवैध कार्य के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हो सकती है। यह उन बचावों में से एक है जो प्रतिवादी को उसके दायित्व से छूट देता है क्योंकि वादी ने भी एक अवैध कार्य किया है। इसलिए, इसे “वादी एक गलत काम करने वाले” के बचाव के रूप में भी जाना जाता है।

उदाहरण: A और B ने C के घर में चोरी करने का फैसला किया है लेकिन इस कार्य के दौरान, B की लापरवाही के कारण A घायल हो जाता है। यहां भले ही B लापरवाही का दोषी है, लेकिन A किसी भी नुकसान का दावा नहीं कर सकता क्योंकि चोरी के गैरकानूनी कार्य में शामिल होने के परिणामस्वरूप उसे यह चोट लगी थी और इस प्रकार यह एक्स टर्पी कॉज़ा नॉन ओरिटर एक्शियो की श्रेणी में आता है।

यह बचाव क्यों लागू किया जाता है?

इस बचाव के सबसे स्पष्ट तत्त्वों में से एक यह है कि यह प्रतिवादी को अपने दायित्व से बचने की अनुमति देता है, भले ही वह एक गैरकानूनी कार्य का दोषी हो। इस प्रकार यह एक प्रश्न उठाता है कि यह बचाव क्यों लागू किया जाता है या प्रतिवादी को गलत कार्य के अपने हिस्से के लिए भी दंडित क्यों नहीं किया जाता है।

यह लॉर्ड मैन्सफील्ड द्वारा होल्मन बनाम जॉनसन 1775 1 काउप 341 के मामले में समझाया गया था, जहां उन्होंने कहा था कि यह बचाव वादी को एक अवैध कार्य से कोई लाभ प्राप्त करने से रोकने के लिए लागू किया जाता है। इस प्रकार यह बचाव प्रतिवादी के पक्ष में लागू नहीं किया जाता है बल्कि इसके बजाय, ऐसे वादी को उसके द्वारा किए गए अवैध कार्य का लाभ लेने से रोकने के लिए लागू किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि वादी और प्रतिवादी की भूमिकाओं को उलट दिया जाता है और यदि प्रतिवादी वादी होता और वादी प्रतिवादी होता, तो वादी द्वारा की गई कार्रवाई भी नियम “पोशिअर एस्ट कंडीशिओ डिफेंडेंटिस” के कारण विफल हो जाती, जिसका अर्थ है कि जहां दोनों पक्ष समान रूप से दोषी हैं, तो वहां प्रतिवादी की स्थिति मजबूत होती है।

इसके अलावा, वॉल्श बनाम ट्रेबिलकॉक (1894) 23 एससीआर 695 के मामले में, न्यायालय ने माना है कि एक्स टर्पी कॉज़ा नॉन ओरिटर एक्शियो एक अच्छी तरह से स्थापित कानूनी सिद्धांत है और न्यायालय को एक अवैध अनुबंध या किसी भी दायित्व को लागू नहीं करना चाहिए जो एक अवैध कार्य से उत्पन्न होता है। भले ही प्रतिवादी ने इस बचाव का समर्थन नहीं लिया हो, लेकिन मामले में सबूतों से यह स्पष्ट रूप से साबित हो जाता है कि वादी का कार्य अवैध था, फिर भी अदालत वादी के मुकदमे को सफल होने की अनुमति नहीं दे सकती है।

अनिवार्यताएं

एक्स टर्पी कॉज़ा के बचाव में 2 आवश्यक तत्व हैं:

  1. प्रतिवादी को हुए नुकसान के लिए वादी द्वारा वाद लाया जाता है और प्रतिवादी इस तरह के नुकसान के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार होता है।
  2. वादी की कार्रवाइयाँ एक विशिष्ट कार्यवाही में होनी चाहिए जो कि अवैध है।

इस प्रकार जब भी किसी मामले में इन 2 शर्तों को पूरा किया जाता है तो प्रतिवादी को एक्स टर्पी कॉज़ा के बचाव का दावा करने का अधिकार होता है और वादी द्वारा लाया गया मुकदमा विफल हो जाता है।

उदाहरण: यदि A चोरी की कार में एक यात्री है जिसे वह जानता है कि वह चोरी की है और फिर भी स्वतंत्र रूप से वह इसमें भाग लेता है, यदि यह कार दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है और वह घायल हो जाता है, तो उसे कार के चालक से हर्जाना नहीं मिल सकता क्योंकि A भी इस आपराधिक कार्य में शामिल था और इसलिए एक्स टर्पी कॉज़ा नॉन ओरिटर एक्शियो के संचालन से यहां कोई कार्रवाई नहीं हो सकती है।

एक्स टर्पी कॉज़ा के परीक्षण

एक्स टर्पी कॉज़ा का बचाव बहुत कठिन है इसलिए कोई स्पष्ट कानूनी सिद्धांत नहीं है जिसे अदालतों द्वारा सार्वभौमिक (यूनिवर्सल) रूप से लागू किया जा सकता है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि इस बचाव की अनुमति कब दी जा सकती है। इसलिए, न्यायालयों द्वारा कई परीक्षण तैयार किए गए हैं जो इस बचाव के दायरे और उन मामलों को समझने में बहुत मददगार हैं जिनमें इसकी अनुमति दी जा सकती है।

निर्भरता का परीक्षण

इस कार्य के अनुसार, जब भी वादी को अपने मामले के आधार के रूप में, अपने अवैध कार्य पर निर्भर रहना पड़ता है तो यह बचाव लागू होता है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि यह साबित करने के लिए कि उसे प्रतिवादी की वजह से नुकसान हुआ है, उसे यह दिखाना होगा कि उसने एक अवैध कार्य किया था। ऐसे मामलों में न्यायालय वादी के दावे को सफल होने की अनुमति नहीं देता है। इस प्रकार यदि वादी साबित कर सकता है कि मामले में कार्रवाई का एक कारण है और इसे साबित करने में उसे अपने अवैध कार्य पर विश्वास करने की आवश्यकता नहीं है, तो उसके दावे को सफल होने की अनुमति दी जाती है।

टिनस्ले बनाम मिलिगन (1993) 3 डब्ल्यूएलआर 126 में, दावेदार और प्रतिवादी प्रेमी थे और उन्होंने दावेदार के नाम पर एक संपत्ति खरीदी थी ताकि प्रतिवादी को सामाजिक सुरक्षा लाभ मिल सके और इस प्रकार यह धोखाधड़ी का एक कार्य था जिसके द्वारा लाभ प्राप्त किया जा सकता था। बाद में उनका रिश्ता टूट गया और दावेदार ने यह दावा करते हुए संपत्ति के एकमात्र स्वामित्व (ओनरशिप) का दावा किया कि यह उसके नाम पर ही पंजीकृत (रजिस्टर्ड) थी, जबकि प्रतिवादी ने दावा किया कि यह उन दोनों के लिए विश्वास पर आयोजित किया गया था। हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने निर्भरता के परीक्षण को लागू करते हुए कहा कि प्रतिवादी को केवल इस तथ्य पर निर्भर रहना था कि उसने संपत्ति की कीमत में भी योगदान दिया था और उनके बीच एक समझौता था कि यह उन दोनों के स्वामित्व में होगा, इसलिए, अवैध कार्य पर निर्भरता आवश्यक नहीं थी।

कोई लाभ नहीं का सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार, एक अपराधी को अपने आपराधिक कार्य से कोई लाभ लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और इसलिए न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी व्यक्ति द्वारा ऐसा मुकदमा विफल हो जाना चाहिए। टॉर्ट्स के कानून में, यह सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि टॉर्ट्स के कानून का उद्देश्य दावेदार को कोई लाभ कमाने के बजाय उसे हुए नुकसान की भरपाई करना है।

मर्फी बनाम कल्हेन (1977) क्यूबी 94 के मामले में, टिमोथी मर्फी नाम के एक व्यक्ति ने जॉन कुल्हेन नामक एक व्यक्ति को कुछ अन्य लोगों की मदद से पीटने का फैसला किया था और हमले के दौरान, उसे प्रतिवादी द्वारा एक तख्ती से मारा गया था, जिसकी वजह से उसकी मृत्यु हो गई। मर्फी की विधवा ने अपने और अपने बच्चे के लिए हर्जाने के लिए कुल्हेन के खिलाफ कार्रवाई की। प्रतिवादी ने उसकी मृत्यु के तथ्य को स्वीकार किया था, लेकिन टर्पी कॉज़ा नॉन ओरिटर एक्शियो का बचाव किया। न्यायाधीश ने दावेदार के पक्ष में अनुमति दी थी, इसलिए, प्रतिवादी ने अपील की अदालत में अपील की जहां यह माना गया कि दावेदार को कोई हर्जाना नहीं मिल सकता क्योंकि मृतक स्वयं एक अवैध कार्य में शामिल था और इसलिए वह यहां से कोई लाभ अर्जित नहीं कर सकता।

उदाहरण: यदि A चोरी के लिए B के घर में प्रवेश करता है और B को इस बारे मे पता चलते ही वह A को बंदूक से गोली मारता है जिससे उसकी मौत हो जाती है। यहाँ भले ही B ने उचित बल से अधिक प्रयोग किया हो, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि A की विधवा उससे किसी प्रकार की क्षति का दावा कर सकती है क्योंकि A भी एक अवैध कार्य में शामिल था।

आनुपातिकता (प्रोपोर्शनलिटी) परीक्षण

इस परीक्षण के अनुसार यदि प्रतिवादी द्वारा वादी को हुई चोट किसी ऐसे कार्य के माध्यम से है जो वादी के अवैध कार्य के अनुपात से बाहर है, तो टर्पी कॉज़ा नॉन ओरिटर एक्शियो के बचाव की अनुमति नहीं दी जाएगी।

लेन बनाम होलोवे (1967) 3 डबल्यूएलआर 1003 में, दावेदार एक बूढ़ा माली था, जिसका प्रतिवादी के साथ विवाद था, जो एक कैफे चलाता था, जहां देर रात युवक आते थे। एक दिन दावेदार ने प्रतिवादी की पत्नी पर गाली-गलौज की और प्रतिवादी जो उसके बिस्तर पर था उठकर बाहर चला गया। दावेदार ने सोचा कि प्रतिवादी उसे मारने वाला था इसलिए उसने प्रतिवादी को मुक्का मारा जिसके परिणामस्वरूप प्रतिवादी ने भी दावेदार की आंख में मुक्का मारा जिसके कारण उसे टांके आए और सर्जरी की आवश्यकता हुई। ट्रायल जज ने प्रतिवादी को दोषी ठहराया लेकिन हर्जाना कम कर दिया। इसलिए, दावेदार ने अधिक हर्जाने की अपील की और प्रतिवादी ने दावा किया कि एक्स टर्पी कॉज़ा नॉन ओरिटर एक्शियो के कारण वह उत्तरदायी नहीं हो सकता। यह माना गया कि प्रतिवादी द्वारा मारा गया मुक्का एक क्रूर प्रहार था जो एक छोटी सी लड़ाई की वजह से हुआ था और दावेदार भी एक बुजुर्ग व्यक्ति था, इसलिए, एक्स टर्पी कॉज़ा नॉन ओरिटर एक्शियो का बचाव इस मामले में नहीं लाया जा सकता और दावेदार की अपील को अनुमति दी गई थी।

अटूट रूप से संबंधित परीक्षण

ऐसे मामलों में जहां वादी अपने दावे के लिए अवैध कार्य पर भरोसा नहीं करता है, लेकिन वह कार्य दावे के साथ अटूट रूप से संबंधित है (बहुत निकट से जुड़ा हुआ है) तो एक्स टर्पी कॉज़ा का बचाव भी होता है। यह परीक्षण निर्भरता परीक्षण से संबंधित है।

उदाहरण के लिए, क्रॉस बनाम किर्कबी (2000) ईडबल्यूसीए सीआइवी 426 के मामले में, प्रतिवादी ने शिकार के लिए अपनी भूमि का उपयोग किया और दावेदार शिकार में हस्तक्षेप करने वाला एक व्यक्ति था जिसकी प्रेमिका को प्रतिवादी ने उसकी भूमि से जबरन हटा दिया था। नतीजतन, दावेदार का प्रतिवादी के साथ विवाद हो गया और इससे उसे चोटें आईं और उसे मिर्गी के दौरे भी पड़ने लगे। इसलिए, दावेदार हर्जाने के लिए वाद लाया। ट्रायल जज ने प्रतिवादी की एक्स टर्पी कॉज़ा की याचिका को खारिज कर दिया था और उसे उत्तरदायी ठहराया था इसलिए उसने अपील की अदालत में अपील की। प्रतिवादी की अपील को अटूट संबंध के परीक्षण को लागू करने की अनुमति दी गई थी और यह माना गया था कि जहां वादी का दावा उसके आपराधिक कार्य से इतना निकटता से जुड़ा हुआ है कि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता है, तो अदालत वादी को किसी भी नुकसान की वसूली की अनुमति नहीं दे सकती है।

सार्वजनिक विवेक परीक्षण

इस परीक्षण के अनुसार, मामले का निर्णय करते समय न्यायालय देखता है कि वादी को हर्जाना वसूल करने की अनुमति देना सार्वजनिक विवेक के अनुसार है या नहीं। यह इस सवाल पर भी विचार करता है कि क्या हर्जाना देने से अपराध को बढ़ावा मिलेगा या नहीं।

किरखम बनाम सीसी ग्रेटर मैनचेस्टर पुलिस (1990) 2 क्यूबी 283 के मामले में, किरखम एक शराबी था जो अवसाद (डिप्रेशन) से पीड़ित था और उसने दो बार आत्महत्या करने का भी प्रयास किया और इस तरह उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। छुट्टी मिलने के बाद उसकी पत्नी ने उसे शराब पीने से रोका जिससे वह हिंसक हो गया और उसकी पत्नी ने पुलिस को फोन किया और उन्हें उसकी स्थिति के बारे में भी बताया। इसलिए यह निर्णय लिया गया कि उसे हिरासत में रखा जाना चाहिए लेकिन पुलिस जेल अधिकारियों को उसकी स्थिति के बारे में सूचित करने में विफल रही और उसने आत्महत्या कर ली। उसकी पत्नी हर्जाने के लिए मुकदमा लेकर आई थी। प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि वोलेंटी नॉन फिट इंजुरिया और एक्स टर्पी कॉजा को यहां लगाया जा सकता है, लेकिन अदालत ने माना कि अस्वस्थ व्यक्ति के मामले में, वोलेंटी नॉन फिट इंजुरिया का बचाव, उसका जीवन लेने के बाद लागू नहीं किया जा सकता था और सार्वजनिक विवेक परीक्षण को लागू करके अदालत ने माना कि वादी के पक्ष में हर्जाना देने से, सार्वजनिक विवेक प्रभावित नहीं होगा और इस प्रकार प्रतिवादी को उत्तरदायी ठहराया गया था।

उपर्युक्त टिनस्ले बनाम मिलिगन मामले में इस परीक्षण की आलोचना की गई थी और उस मामले में यह माना गया था कि यह परीक्षण गलत था, लेकिन पटेल बनाम मिर्जा (2016) यूकेएससी 42 के मामले में,यह परीक्षण लागू किया गया था और यह माना गया था कि यह एक्स टर्पी कॉज़ा के मामलों को निर्धारित करने के लिए सही परीक्षण था। इस मामले में, दावेदार ने प्रतिवादी को अधिक पैसे कमाने के लिए अंदरूनी जानकारी का उपयोग करने के लिए पैसे दिए थे, जो एक अपराध है। सूचना गलत थी और इसलिए दावेदार ने प्रतिवादी से राशि वसूल करने के लिए वाद दायर किया। यह माना गया कि निर्भरता के परीक्षण को लागू नहीं किया जा सकता और सार्वजनिक विवेक के परीक्षण को लागू किया जाना था जिसके अनुसार दावेदार को राशि वसूल करने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि यह दोनों पक्षों को उनके मूल पदों पर वापस लाएगा और इस प्रकार वसूली की अनुमति नहीं देने पर, प्रतिवादी अन्यायपूर्ण रूप से समृद्ध होगा जो कि जनहित के अनुरूप नहीं था। इसलिए यहां ये अयोजित किया गया था की प्रतिवादी राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है और अदालत द्वारा सार्वजनिक विवेक के परीक्षण की वैधता को सही ठहराया गया था।

अपवाद

  • एक्स टर्पी कॉज़ा के बचाव के लिए निम्नलिखित अपवाद हैं। एजेंटों और ट्रस्टियों के मामलों में, यह बचाव लागू नहीं होता है जहां वे किसी अन्य व्यक्ति के लिए संपत्ति रखते हैं, भले ही जिस उद्देश्य के लिए संपत्ति का उपयोग किया जाना है वह गैरकानूनी है।

उदाहरण के लिए , यदि A, B को लूट करने के लिए रखता है, A, B पर लूट से प्राप्त हुए पैसों का अपना हिस्सा प्राप्त करने के लिए मुकदमा नहीं कर सकता है। लेकिन अगर B, A का एजेंट है जो C से A का पैसा प्राप्त कर रहा है तो यहां A को B से उस पैसे को वसूल करने का अधिकार है, भले ही कार्य की अवैधता के कारण A C से ऐसी राशि की वसूली नहीं कर सकता है।

  • यदि अवैधता इतनी तुच्छ है कि वादी को अपने मामले के लिए उस पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है और यह सार्वजनिक नीति के खिलाफ होगा कि वह उसे हर्जाने की वसूली से वंचित करे, तो अदालत द्वारा इस बचाव की अनुमति नहीं है।

उदाहरण के लिए, केदार नाथ मोटानी बनाम प्रह्लाद राय और अन्य के मामले में, वादी के पूर्ववर्ती (प्रेडिसेसर) के पास प्रतिवादी के नाम पर फ़र्ज़ी संपत्तियाँ थीं जिससे वह अधिकारियों की भुगतान की उच्च दरों से बच सके। उसकी मृत्यु के बाद, प्रतिवादियों ने इस पर स्वामित्व का दावा किया और कहा कि एक्स टर्पी कॉज़ा नॉन ओरिटर एक्शियो के कारण वादी संपत्ति का दावा नहीं कर सका। उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी के पक्ष में फैसला सुनाया इसलिए वादी ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। यह माना गया कि फ़र्ज़ी संपत्तियों का तथ्य अधिकारियों को पता था, इसलिए कोई धोखाधड़ी नहीं थी और वादी का प्रतिवादी के खिलाफ कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा नहीं था। इसके अलावा, वादी अवैधता के तथ्य पर भरोसा किए बिना संपत्ति की बेनामी प्रकृति को साबित कर सकता है, इसलिए, इस तरह की तुच्छ अवैधता से वादी को संपत्ति के स्वामित्व का दावा करने से नहीं रोकना चाहिए।

निष्कर्ष

एक्स टर्पी कॉज़ा नॉन ओरिटर एक्शियो प्रतिवादी के लिए उपलब्ध बचावों में से एक है। यह बचाव बहुत कठिन है जिसके परिणामस्वरूप न्यायालयों को इस बचाव की प्रयोज्यता (एप्लीकेबिलिटी) का निर्धारण करने में कई अलग-अलग परीक्षणों के साथ आना पड़ा। इस बचाव में वादी के अवैध कार्य के कारण, उसे प्रतिवादी से किसी भी मुआवजे का दावा करने की अनुमति नहीं है। यह बचाव सार्वजनिक नीति के सिद्धांत के अनुरूप प्रदान किया गया है, कि किसी भी व्यक्ति को उसके अवैध कार्य से लाभ की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

 

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