क्या भारत में किसी महिला पर सामूहिक बलात्कार करने का आरोप लगाया जा सकता है- वर्तमान कानूनी स्थिति

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Indian Penal Code
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यह लेख रमैया इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल स्टडीज की छात्रा Sneha Mahawar द्वारा लिखा गया है। इस लेख में सामूहिक बलात्कार और हिरासत में होने वाले बलात्कार (कस्टोडियल रेप) की अवधारणा पर चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

Table of Contents

बलात्कार का परिचय (इंट्रोडक्शन)

बलात्कार (रेप) शब्द, लैटिन भाषा के ‘रैपेरे’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है जब्त करना या अपहरण करना। भारतीय दंड संहिता, 1860 में धारा 375376D यानी (375, 376A, 376B, 376C, 376D) से बलात्कार की परिभाषा और ऐसे अपराध करने की सजा का उल्लेख किया गया है। यह किसी अन्य व्यक्ति पर उनकी सहमति के बिना या उनकी इच्छा के विरुद्ध जबरन संभोग (फोर्स्फुल सेक्शुअल इंटरकोर्स) करने का कार्य है। बलात्कार एक जघन्य (हीनियस) अपराध है जो कानून की नजर में दंडनीय है।

सामूहिक बलात्कार (गैंगरेप)

धारा 376(2)(g) “सामूहिक बलात्कार” शब्द का प्रयोग करती है। सामूहिक बलात्कार तब होता है जब एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा एक महिला के साथ, उसकी इच्छा और सहमति के विरुद्ध बलात्कार किया जाता है। यह एक प्रकार का बलात्कार है जिसमें एक से अधिक अपराधी शामिल होते हैं। सामूहिक बलात्कार में, यह आवश्यक नहीं है कि समूह के प्रत्येक व्यक्ति ने बलात्कार का अपराध किया हो, जिससे दोष का स्तर (लेवल) बहुत अधिक है।

किसी भी व्यक्ति, जो उस समूह या गिरोह का हिस्सा है, द्वारा किया गया कोई भी कार्य जिसे बलात्कार का अपराध करने के एक सामान्य इरादे से किया जाता है उसे कानून की नजर में दंडित किया जाता है और बलात्कार माना जाता है। यहां तक ​​कि जब कुछ व्यक्ति यौन उत्पीड़न (सेक्शुअल असॉल्ट) में शामिल नहीं होते हैं या ऐसा नहीं करते हैं, लेकिन दूसरों को ऐसा अपराध करने में मदद करते हैं, तब भी उन्हें बलात्कारी माना जाता है और वह यह दावा करके बच नहीं सकते कि उन्होंने बलात्कार का अपराध नहीं किया है। इस तरह के अपराध के लिए दंड, भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376D में प्रदान किया गया  है।

क्या किसी महिला पर सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया जा सकता है?

प्रिया पटेल बनाम स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश 

इस मामले में सवाल ‘क्या एक महिला पर सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया जा सकता है?’ का जवाब दिया गया था। यहां, यह कहा गया था कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 375 में प्रदान की गयी बलात्कार की परिभाषा के अनुसार एक महिला बलात्कार नहीं कर सकती है, लेकिन यदि कोई महिला बलात्कार करने के कार्य को सुविधाजनक बनाती है तो उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है और सामूहिक बलात्कार के अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता है। यह नियम भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 34 में निहित सामान्य आशय के सिद्धांत (प्रिंसिपल ऑफ़ कॉमन इंटेंशन) पर आधारित था।

सजा

धारा 376(2)(g) में सामूहिक बलात्कार की सजा दी गयी है और कहा गया है कि जब किसी महिला का, व्यक्तियों के समूह या गिरोह द्वारा बलात्कार किया जाता है तो उन्हें कम से कम 10 साल के कठोर कारावास की सजा हो सकती है जिसे अपराधियों के लिए आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और उसे जुर्माना देने या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस तरह के अपराध के शिकार के लिए सभी चिकित्सा खर्चों और पुनर्वास (रिहैबिलिटेशन) के लिए जुर्माना, उचित और न्यायसंगत (जस्ट) होगा।

सामूहिक बलात्कार के मामलों के लिए ऐतिहासिक निर्णय

जहां मृत्युदंड दिया गया था

स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र बनाम विजय मोहन जाधव और अन्य (शक्ति मिल बलात्कार मामला)

इस मामले में, एक फोटो जर्नलिस्ट जो 22 साल की महिला थी, के साथ 5 पुरुष सदस्यों के एक समूह ने बेरहमी से सामूहिक बलात्कार किया था, जिसमें एक नाबालिग भी शामिल था। उसके साथ बलात्कार किया गया था जब वह मुंबई में शक्ति मिल्स नामक एक खराब हो चुकी मिल की तस्वीरें ले रही थी। अदालत ने बलात्कार के तीन आरोपियों को मौत की सजा देकर फैसला सुनाया, जो वयस्क (एडल्ट) थे और कई बार अपराध कर चुके थे। इसके अलावा गिरोह के नाबालिग को किशोर न्याय बोर्ड (ज्युवेनाइल जस्टिस बोर्ड) के तहत दोषी ठहराया गया और 3 साल की सजा सुनाई गई थी।

इस मामले को ‘दुर्लभ से दुर्लभ (रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर)’ करार दिया गया था क्योंकि पहली बार बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिए मृत्युदंड दिया गया था।

स्टेट बनाम राम सिंह और अन्य (निर्भया बलात्कार मामला)

इस मामले में मृतक पीड़ित 23 वर्षीय महिला के साथ एक नाबालिग समेत छह लोगों ने चलती बस में बेरहमी से बलात्कार किया और उसे प्रताड़ित (टॉर्चर) किया गया था। पीड़िता को इस हद तक प्रताड़ित किया गया कि उसके साथ न केवल बलात्कार किया गया, बल्कि उसे गुदा मैथुन (एनल सेक्स) करने के लिए भी मजबूर किया गया था, आरोपी ने उसके जननांगों (जेनिटल) के अंदर लोहे की रॉड डाली और उसकी आंतों को उसके शरीर से बाहर निकाल दिया गया था और उसके जननांगों को बहुत नुकसान पहुंचा था। उसके साथ बलात्कार करने के बाद, उसे उसके पुरुष मित्र के साथ, जो उसे बचाने की कोशिश करते हुए गंभीर रूप से घायल और बेहोश हो गया था, उसे सर्दियों की रात में दिल्ली की सड़कों पर नग्न अवस्था में चलती बस से बाहर फेंक दिया गया था।

कोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के आरोपी, पांच वयस्कों को मौत की सजा सुनाई। इनमें से एक ने जेल में ही आत्महत्या कर ली थी और बाकी को फांसी पर लटका दिया गया था। इसके अलावा, आरोपी जो नाबालिग था, उसे 3 साल के लिए सुधार सुविधा (रिफॉर्म फैसिलिटी) के लिए भेज दिया गया था।

जहां आजीवन कारावास की सजा दी गई थी

मोहन लाल और अन्य बनाम पंजाब राज्य

इस मामले में, एक छात्रा के साथ उसके शिक्षकों ने बलात्कार किया, जिसमें राज्य के निदेशक (डायरेक्टर) भी शामिल थे। इस मामले को शुरू में निचली अदालत में ले जाया गया था और 10 साल के कारावास की सजा के साथ-साथ आरोपी पर क्रमशः 2000/- रुपये और 3000/- रुपये का जुर्माना लगाया गया था और डिफ़ॉल्ट जुर्माना के मामले में और डेढ़ साल की कठोर कारावास जोड़ा गया था। लेकिन, पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील दायर की गई थी।

मामले को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में ले जाया गया, जिसमें ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और पार्टियों के संबंधों को देखते हुए सजा को 10 साल के कारावास से बढ़ाकर आजीवन कारावास कर दिया था।

अयनावरम बलात्कार मामला

इस मामले में, 11 साल की बच्ची के साथ अलग-अलग मौकों पर 17 लोगों ने उसका बलात्कार किया था। उसे सुनने की दुर्बलता थी। वह अपने माता-पिता के साथ रहती थी और एक माली, लिफ्ट ऑपरेटर, प्लंबर, सुरक्षा गार्ड द्वारा उसके साथ बलात्कार किया गया था।

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज़ एक्ट) (पॉक्सो) के तहत एक विशेष अदालत ने 17 में से 15 आरोपियों को दोषी ठहराया यानी,

  • 5 आरोपियों को उम्रकैद की सजा दी गई थी।
  • 1 आरोपी को 7 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।
  • 9 आरोपियों को 5 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।
  • अन्य दो आरोपियों में से एक की बीमारी से मृत्यु हो गई थी और दूसरा जो माली था, उसको साक्ष्य (एविडेंस) को देखते हुए बरी कर दिया गया था।

हिरासत में बलात्कार (कस्टोडियल रेप)

भारतीय दंड संहिता, 1860 में धारा 376(2)(A), (B) और (C) शामिल हैं जो अपराध की एक नई श्रेणी (कैटेगरी) बनाते हैं, जिसे ‘हिरासत में बलात्कार’ के नाम से जाना जाता है। सामान्य अर्थ में, हिरासत शब्द का अर्थ है किसी चीज या किसी व्यक्ति, विशेषकर बच्चों की देखभाल करने का कानूनी अधिकार। यह किसी और की संपत्ति का अस्थायी (टेंपरेरी) कब्जा या देखभाल है। लेकिन कानून के अर्थ में, यह किसी व्यक्ति को कैद या हिरासत में रखने की स्थिति है, आमतौर पर तब जब उसका मुकदमा लंबित (पेंडिंग) हो। यह बच्चे की कस्टडी से अलग है और इसलिए दोनों को एक जैसा समझ कर गलत नहीं समझा जाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को जिसे अभिरक्षा (कस्टडी) दी जाती है, अभिरक्षक (कस्टोडियन) के रूप में जाना जाता है। अभिरक्षक का उस व्यक्ति पर पूर्ण नियंत्रण (कंट्रोल) होता है जिस पर उसकी अभिरक्षा होती है।

नियंत्रण में गतिशीलता (मोबिलिटी), स्वतंत्रता, भोजन, पानी, व्यक्ति का दुनिया के साथ बाहरी संबंध शामिल हैं। ऐसी परिस्थितियों में बलात्कार करने के अपराध को गंभीर अपराध माना जाता है और जिसके साथ बलात्कार हुआ है, उस व्यक्ति की शारीरिक अखंडता (बॉडिली इंटीग्रिटी) के साथ-साथ दूसरे व्यक्ती के देखभाल करने के उसके कर्तव्य का उल्लंघन भी माना जाता है।

हिरासत में बलात्कार का बढ़ना और उदाहरण

हिरासत में होने वाले बलात्कार का मुद्दा 1970 के दशक के अंत में और 1980 के दशक की शुरुआत में तब सामने आया जब पुलिस हिरासत में महिलाओं के साथ बलात्कार की लगातार घटनाओं का सिलसिला सामने आने लगा। इस मुद्दे को महिला आंदोलन के द्वारा आगे लाया गया था।

हिरासत में होने वाले बलात्कार को आमतौर पर राज्य की हिरासत में, उन पुलिस या सेना या अन्य सुरक्षा बलों (सिक्योरिटी फोर्स) के माध्यम से किया जाता है, जिन्हें व्यक्तियों के जीवन की रक्षा के लिए नियुक्त किया जाता है, और इसके कारण एक महिला की शील (मोडेस्टी) भंग होती है। हिरासत में बलात्कार की अवधारणा (कांसेप्ट) में न केवल सुरक्षा बल बल्कि अस्पताल, मानसिक संस्थान, आश्रय गृह (शेल्टर होम) और किशोर गृह भी शामिल हैं, जहां लोगों को उनके स्वास्थ्य को फिर से जीवंत (रिजूवनेट) करने के लिए भेजा जाता है, लेकिन वहाँ उनके साथ क्रूरतापूर्वक बलात्कार किया जाता है।

सजा

हिरासत में होने वाले बलात्कार के लिए निर्धारित (प्रेस्क्राइब) सजा कम से कम 10 साल का कठोर कारावास है जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और अपराधी जुर्माना देने के लिए भी उत्तरदायी होगा।

हिरासत में किए गए बलात्कार के मामलों के लिए ऐतिहासिक निर्णय

श्रीमती रमीज़ा बी बनाम डी अर्मुगम (रमीज़ा बी का मामला)

इस मामले में, रमीज़ा बी एक 26 वर्षीय कामकाजी महिला थी, जो अपने पति अहमद हुसैन के साथ घर लौट रही थी, जो की एक रिक्शा चालक था। वे अपने घर की ओर जा रहे थे लेकिन तभी पुलिस अधिकारियों ने उन्हें देर रात घूमने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। उसे जुर्माना भरने को कहा गया था। रमीज़ा को हिरासत में रखा गया और 3 पुलिस अधिकारियों ने उसके साथ बलात्कार किया, जबकि उसके पति को जुर्माना भरने के लिए पैसे लाने के लिए घर भेज दिया गया था। लौटने के बाद, उन्होंने अपनी पत्नी पर पुलिस कर्मियों द्वारा किए गए हमले का विरोध किया, लेकिन पुलिस कर्मियों ने उन्हें बेरहमी से पीट-पीट कर मार डाला।

बाद में, रमीज़ा बी ने इस घटना के बारे में शिकायत की जिसके कारण हिंसक विरोध हुआ और दंगे हुए और चार पुलिस कर्मियों को निलंबित (सस्पेंड) भी कर दिया गया था। ऐसी गतिविधियों के परिणामों के कारण, रमीज़ा बी के बलात्कार और अहमद हुसैन की मृत्यु के बारे में जांच करने के लिए एक जांच आयोग (इनक्वायरी कमीशन) का गठन (कांस्टीट्यूशन) किया गया था। आयोग की कार्यवाही की अवधि के दौरान, पुलिस ने पीड़िता के चरित्र पर सवाल करके हत्या और बलात्कार का बचाव किया और यह साबित करने की कोशिश की कि रमीज़ा बी की शादी कई बार पहले भी हुई थी और अहमद हुसैन से उसकी शादी एक वैध शादी नहीं थी और वह गलत तरीके से उसके साथ सहवास (कोहैबिट) कर रही थी। 

हालांकि, आयोग ने कहा कि पुलिस अधिकारी बलात्कार करने के साथ-साथ हत्या करने के भी दोषी थे और उन पर मुकदमा चलाया जाएगा। इसके बाद, उन्हें इस आधार पर बरी कर दिया गया था कि जांच आयोग द्वारा दर्ज किए गए सबूत सत्र अदालत (कोर्ट ऑफ़ सेशन) में अस्वीकार्य थे।

तुका राम और अनर बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र (मथुरा बलात्कार मामला)

इस मामले में मथुरा एक युवा अनाथ लड़की थी जो अपने भाई गामा के साथ रहती थी। वह नुशी के घर पर मजदूरी का काम करती थी। जब वह नौकरी पर थी तो उसने अशोक नाम के एक लड़के के साथ यौन संबंध (सेक्शुअल रिलेशन) बनाए जो नुशी की बहन का बेटा था। तभी अशोक और मथुरा ने शादी करने का फैसला किया और भाग गए।

मथुरा के भाई ने रिपोर्ट दर्ज कराई कि मथुरा का अपहरण कर लिया गया था और सभी संबंधित पक्षों जिनमें अशोक, नुशी और अन्य रिश्तेदार शामिल थे, उनको पुलिस स्टेशन लाया गया था। अपने बयान दर्ज करने के बाद सभी लोग स्टेशन से बाहर चले गए और रात के 10:30 बज चुके थे। गणपत, जो एक पुलिस कांस्टेबल था, उस ने मथुरा को पुलिस थाने के अंदर रुकने के लिए कहा। फिर उसने गेट बंद कर दिया और थाने के अंदर की लाइट बंद कर दी और उसे बाथरूम के अंदर ले गया और विरोध करने पर भी उसके साथ बलात्कार किया। फिर दूसरा पुलिसकर्मी आया जिसका नाम तुकाराम था जिसने उसके साथ बलात्कार करने की भी कोशिश की लेकिन वह असफल रहा क्योंकि वह अत्यधिक नशे में था।

बाद में, जब वह लड़की अपने परिवार और दोस्तों से मिली तो उसने उन्हें पूरी घटना बताई और उसकी चिकित्सकीय जांच की गई थी। मेडिकल जांच में कहा गया था कि उसके हाइमन में पुराने फटने का पता चला है लेकिन उसे कोई शारीरिक चोट नहीं आई है।

बाद में हाईकोर्ट ने आरोपी को दोषी पाया और सजा सुनाई लेकिन फिर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पलट दिया। कोर्ट ने पुलिस कांस्टेबल गणपत और तुकाराम को बरी कर दिया था क्योंकि कोई लड़की पर कोई शारीरिक चोट नहीं मिली थी, जिससे पता चलता है कि मथुरा ने विरोध नहीं किया और अधिकारियों को अपनी सहमति दी थी।

माया त्यागी, मेरठ बनाम इतो, बड़ौत (माया त्यागी मामला)

इस मामले में, पीड़िता अपने पति ईश्वर त्यागी और अपने पति के दो दोस्तों के साथ कार से, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में यात्रा कर रही थी, तभी बागपत थाने के पास उनकी कार खराब हो गई। फिर ईश्वर त्यागी अपने दो दोस्तों के साथ टायर को ठीक करने के लिए निकल पड़े। उनके जाने के बाद, सादे कपड़ों में एक पुलिस अधिकारी आया और उसने माया त्यागी के साथ छेड़छाड़ की। माया त्यागी के पति ने जब यह देखा तो उन्होंने पुलिस अधिकारी को थप्पड़ मार दिया।

यह पुलिस अधिकारी फिर 10 पुलिसकर्मियों के साथ लौटा। फिर उन्होंने, माया त्यागी के साथ आए ईश्वर त्यागी और उसके दो दोस्तों की गोली मारकर हत्या कर दी। इस मामले की पीड़िता माया त्यागी को फिर कार से बाहर निकाला और निर्वस्त्र कर बाजार में घुमाया गया था। जब उसने विरोध किया तो उन्होंने उस पर लाठी से हमला किया गया था। बाद में, उसे पुलिस स्टेशन ले जाया गया और बेरहमी से प्रताड़ित किया गया और उस पर झूठे आरोप लगाए गए, जिसमें कहा गया कि वह एक डकैत की पत्नी थी और उन लोगों के द्वारा की गई हत्याओं से उन्हें बचा रही थी।

न्यायिक जांच (ज्यूडिशियल इंक्वायरी) के दौरान, पुलिसकर्मियों ने उसे ‘आसान गुण (ईजी वर्च्यू)’ की महिला कहकर अपने कार्यों को सही ठहराने की कोशिश की क्योंकि ईश्वर त्यागी से उसकी शादी उसकी दूसरी शादी थी, इसलिए वह इस तरह की हिंसा की हकदार थी।

माया त्यागी, उसके पति और उसके दो दोस्तों पर लगाए गए आरोपों पर कोर्ट ने कहा कि वे सभी आरोप झूठे थे क्योंकि वे डकैत नहीं थे और पुलिस अधिकारियों ने उन्हें झूठा फंसाया था। न्यायिक समिति ने माया त्यागी द्वारा अपने ऊपर पुलिस अधिकारियों द्वारा बताई गई सभी दर्दनाक घटनाओं को सच पाया गया था। हालांकि, कोई पेनेट्रेशन नहीं हुआ था और इसलिए पुलिस अधिकारियों को बरी कर दिया गया था।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

इसलिए, बलात्कार एक जघन्य अपराध है जिसके लिए सुधारों की आवश्यकता है ताकि अपराधियों को कानून की शक्ति के बारे में सख्ती से पता चले और वह कानून की सीमाओं को पार न करें। कुछ सुधार जैसे बलात्कारियों के लिए सजा में वृद्धि और पुलिस अधिकारियों, जो ड्यूटी के समय अपना काम नहीं करते हैं और न ही समय पर प्राथमिकी (एफ.आई.आर.) दर्ज करते हैं, या सबूतों को उचित रूप से नहीं संभालते हैं, उनके लिए सख्त सजा के प्रावधान होने चाहिए। इस तरह के सुधारों को तस्वीर में लाना होगा ताकि बलात्कार की अपराध दर (रेट) को कम किया जा सके।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

 

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