क्या पुनर्विवाह के बाद भी विधवा पेंशन का कोई अधिकार है

0
9057
Indira Gandhi National Widows Pension Scheme
Image Source- https://rb.gy/qfxksp

यह लेख स्कूल ऑफ लॉ, यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज, देहरादून से Chandana Pradeep द्वारा लिखा गया है। यह लेख विश्लेषण  (एनालिसिस) करता है कि क्या विधवा के पुनर्विवाह (रीमैरिज) के बाद भी उसे पेंशन प्राप्त करने का अधिकार है। इस लेख का अनुवाद Sakshi kumari ने किया है

Table of Contents

परिचय

विवाह को एक कानूनी शब्दकोश में परिभाषित किया गया है की “विपरीत लिंग के व्यक्ति के साथ पति या पत्नी के रूप में कानूनी (लीगल), सहमति पूर्वक (कंसेंसुअल) और संविदात्मक (कॉन्ट्रैक्चुअल) संबंध में केवल कानून द्वारा मान्यता प्राप्त और स्वीकृत और भंग (डिसोल्वेबल) करने योग्य होने की स्थिति को विवाह कहते है”। पति द्वारा पत्नी के प्रति कर्तव्य (ड्यूटीज) पूरे किए जाते हैं, लेकिन जब पति की मृत्यु हो जाती है तो क्या होता है? ये कर्तव्य कैसे पूरे होंगे?

इस कारण से, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना (इंदिरा गांधी नेशनल विडोज पेंशन स्कीम) नामक एक योजना की शुरुआत हुई, जिसे भारत में 2009 में शुरू किया गया था, ताकि केंद्र सरकार द्वारा पेंशन राशि के अनुदान (ग्रांट) के माध्यम से विधवा की आवश्यक जरूरतों को पूरा किया जा सके। 

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (हिस्टोरिकल बैकग्राउंड)

पहला उदाहरण जहां विधवा पेंशन शुरू की गई थी वह है विश्व युद्ध (वर्ल्ड वार)  के बाद का समय जहां युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की पत्नियों को परिवार के जीवन स्तर की देखभाल करने के लिए एक राशि दी गई थी, जिसे सैनिक पीछे छोड़ गया था।  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विधवा पेंशन पर 50% का कर (टैक्स) लगाया गया था जो न केवल हास्यास्पद (रेडिकल्स) रूप से कम दी गई राशि थी बल्कि कर की कटौती भी की गई थी जिसके वजह से यूनाइटेड किंगडम में बहुत ही अराजकता (क्योस) फैल गई थी।

इन विधवाओं द्वारा सामना किए जा रहे सभी मुद्दों के समाधान के लिए यूनाइटेड किंगडम में युद्ध विधवा संघ (वार विडो एसोसिएशन) (डबल्यू डबल्यू ए) का गठन किया गया था। लगातार प्रयासों के बाद, 1976 में कर कटौती को घटाकर 25% कर दिया गया था।

सामाजिक सुरक्षा अधिनियम (सोशल सिक्योरिटी एक्ट), 1973 की शुरुआत के बाद, जो महिलाएं विधवा हो गई थीं, उनके लिए एक और योजना शुरू की गई थी, जिससे वे लाभ उठा सकती थीं, जो उन पुरुषों के लिए सशस्त्र बल पेंशन योजना (आर्म्ड फोर्सेज पेंशन स्कीम) थी जिनकी मृत्यु सेवा में या सेवा के दौरान हो गई थी, लेकिन इनके बीच की असमानता (डिस्पेरिटी) को लंबे समय तक संबोधित नहीं किया गया था।

वर्ष 2014 तक, जिन्होंने 1973-2005 के बीच अपने जीवनसाथी को खो दिया था, उन्हें इसका लाभ नहीं मिलेगा यदि उन्होंने पुनर्विवाह किया था, एक नए साथी के साथ सहवास (कोहेबिटेशन) किया था या एक नागरिक भागीदारी (सिविल पार्टनरशिप) का गठन किया था। आज भी, एक बार एक विधवा या विधुर  (विडोवर) दूसरी शादी या किसी अन्य साथी के साथ किसी भी प्रकार के सहवास में प्रवेश करता है तो उसके पास विधवा माता-पिता का भत्ता (द विडो पैरेंट्स एलाउंस) और  शोक भत्ता (बेरीवमेंट एलाउंस) प्राप्त करने की अनुमति नहीं है।

विधवा पेंशन का विकास (डेवलपमेंट ऑफ विडो पेंशन)

वर्ष 1995 में शुरू किया गया एक राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (नेशनल सोशल एसिस्टेंस प्रोग्राम) (एनएसएपी) है जो भारत सरकार द्वारा ग्रामीण विकास मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ रूरल डेवलपमेंट) के अधीन है। भारतीय संविधान के तहत राज्य की नीतियों के निदेशक सिद्धांतों (डायरेक्टिव प्रिंसिपल ऑफ स्टेट पॉलिसी) में गरीबों और जरूरतमंद लोगों के संबंध में कुछ कल्याणकारी उपायों (वेलफेयर मेजर्स) की आवश्यकता होती है, इसलिए एनएसएपी के तहत, इस समस्या से निपटने के लिए भारत के संविधान में 7 वीं अनुसूची (शेड्यूल) के आइटम 23 और 24, अनुच्छेद 41 के प्रावधानों (प्रोविजन) के बारे में कुछ योजनाएं शुरू की गईं। यह कार्यक्रम पूरी तरह से केंद्र सरकार की मदद से चलाया गया था, वित्त पोषण (फंडिंग), पात्रता मानदंड (एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया) आदि से संबंधित वर्षों में बहुत सारे बदलाव हुए हैं।

एनएसएपी द्वारा पांच घटक (कंपोनेंट) बनाए गए हैं जो निम्नलिखित हैं:

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन अधिनियम (आईजीनओएपीए)

यह योजना उन लोगों पर लागू होती है जिनकी आयु 60 वर्ष और उससे अधिक है, जो एक ऐसे परिवार से हैं जो सरकार द्वारा बताई गई शर्तों के अनुसार गरीबी रेखा से नीचे है।

यह योजना 60-79 वर्ष आयु वर्ग (ग्रुप) के लोगों को 200 रुपये और 80 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को 500 रुपये प्रदान करती है।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना (आईजीएनडबल्यूपीएस)

इस योजना के साथ-साथ इंदिरा गांधी वृद्धावस्था (ओल्ड ऐज) पेंशन योजना को वर्ष 2009 में पेश किया गया था जिसके तहत 30-79 वर्ष की आयु के बीच की एक विधवा को पूर्व शर्तों (प्रायर कंडीशन) को पूरा करने पर केंद्र सरकार की ओर से पेंशन के रूप में 300 रुपये दिए जाते है। 

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन योजना (इंदिरा गांधी नेशनल डिसएबिलिटी पेंशन स्कीम) (आईजीएनडीपीएस)

यह योजना उन लोगों के लिए है जो सरकार द्वारा वर्णित गंभीर गरीबी (सीवर पॉवर्टी) से ग्रस्त परिवारों से हैं और इसके तहत 18-79 वर्ष के आयु वर्ग के बीच गंभीर रूप से विकलांग लोगों को 300 रुपये की राशि दी जाती है।

राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना (एनएफबीएस)

20000 रुपये वह राशि है जो इस योजना के तहत दी जाती है, यदि परिवार के एकमात्र कमाने वाले की मृत्यु हो जाती है जो की 18-59 वर्ष के बीच के उम्र का है और जिसका परिवार में गरीबी रेखा से नीचे है।

अन्नपूर्णा योजना

यह योजना उन बुजुर्गों के लिए फायदेमंद है, जो इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन के तहत पेंशन के पात्र (एलिजिबल) होने के बावजूद इसे प्राप्त नहीं कर रहे हैं। इन लोगों को हर महीने 10 किलो अनाज उनके घरों तक पहुंचाया जाता है।

विधवा पेंशन के लिए पात्रता मानदंड (एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया)

किसी व्यक्ति को विधवा पेंशन प्राप्त करने के लिए कुछ मानदंडों का पालन करना पड़ता है और वे निम्नलिखित हैं:

  1. विधवा को दोबारा शादी नहीं करनी चाहिए।
  2. विधवाओं की पारिवारिक आय 10,000 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  3. आयु 18-60 वर्ष के बीच होनी चाहिए।

आवेदक (एप्लीकेंट) जिस राज्य में रह रहा है, उसके अनुसार पात्रता मानदंड अलग-अलग होती हैं।

विधवा पेंशन के लाभ

  1. पेंशन योजना के तहत विधवाओं को केंद्र सरकार के माध्यम से वित्तीय सहायता (फाइनेंशियल हेल्प)  प्रदान की जाती है।
  2. अपने पति की मृत्यु की तारीख से, विधवा को 300 रुपये की पेंशन मिलना शुरू हो जाती है (यह राशि उस राज्य के अनुसार भिन्न हो सकती है जहां विधवा रहती है)।
  3. विधवा के खाते में सीधा लेनदेन (डायरेक्ट ट्रांजेक्शन) होती है।
  4. 80 वर्ष से अधिक आयु की विधवाओं को प्रति माह (राज्य के अनुसार परिवर्तन के अधीन) 500 रुपये की पेंशन राशि मिलती है।

परिवार पेंशन और विधवा पेंशन

पारिवारिक पेंशन

पारिवारिक पेंशन वह राशि है जो कर्मचारी के परिवार द्वारा नियमित (रेगुलर) रूप से प्राप्त की जाती है, जिसका निधन सरकारी सेवा में रहते हुए हो गया था। वर्ष 2004 तक, केवल मृतक के पति या पत्नी को ही पेंशन मिल सकती थी, लेकिन उसके बाद, एक बदलाव किया गया था कि आश्रित (डिपेंडेंट) बेटी या बेटे को भी जीवनसाथी की मृत्यु के बाद पेंशन मिल सकती थी, बशर्ते कि उनकी उम्र 25 से कम होनी चाहिए।

ऐसे संशोधन (अमेंडमेंट) किए गए हैं जो बहुत अधिक लोगों को इस पेंशन का लाभ उठाने के योग्य बनाते हैं, जिसमें आश्रित माता-पिता और विधवा, तलाकशुदा या अविवाहित बेटियां शामिल हैं।

यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जहां मृतक अपनी पत्नी से अलग हो जाता है, तो यदि बच्चे पारिवारिक पेंशन का उपयोग करने से इनकार करते हैं, तो इसका उपयोग पत्नी द्वारा किया जा सकता है। शारीरिक रूप से विकलांग बच्चे भी इस पेंशन का लाभ उठा सकते हैं जहां उन्हें इस पेंशन का आजीवन लाभ मिलेगा।

पारिवारिक पेंशन में अपवाद (एक्सेप्शन) भी मौजूद हैं। एक सरकारी कर्मचारी को कम्यूटेड पेंशन से छूट दी जा सकती है और गैर-सरकारी कर्मचारी के मामले में, कम्यूटेड पेंशन को आंशिक (पार्शियल) रूप से छूट दी गई है।

विधवा पेंशन

विधवा पेंशन वह पेंशन है जो केंद्र सरकार द्वारा विधवाओं को प्रदान की जाती है। एक संशोधन था जो 2013-14 में किया गया था, जहां आयु सीमा को कम किया गया था, और 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग की महिलाओं को पेंशन दी गई थी जिसके तहत मासिक पेंशन के रूप में 300 रुपये की राशि दी जाती थी।

सिफारिश को लागू करने के लिए, आईजीएनडबल्यूपीएस को प्रति वर्ष 392 करोड़ रुपये के अतिरिक्त परिव्यय (एडिशनल आउटले) की आवश्यकता होगी, जिससे अतिरिक्त 11 लाख गरीब विधवाओं को लाभ होगा। यह पेंशन केवल विधवाओं को मिल रही है, जबकि अन्य महिलाएं जिनकी कभी शादी नहीं हुई है, परित्यक्त (अबंडन) आदि इसमें शामिल नहीं हैं, और यह वर्षों से चिंता का एक गंभीर कारण रहा है।

भारत में तमिलनाडु और केरल जैसे कुछ राज्य इन मानदंडों के तहत इन महिलाओं को विधवा पेंशन के लिए पात्र बनाते हैं, लेकिन इसे प्रभावी होने के लिए पूरे भारत में लागू किया जाना है।

हरियाणा (78 प्रतिशत), हिमाचल प्रदेश (77 प्रतिशत), बिहार (82 प्रतिशत), झारखंड (78 प्रतिशत), ओडिशा (74 प्रतिशत), असम (84 प्रतिशत) और दादरा और नगर हवेली (78 प्रतिशत) में बुजुर्गों में आईजीएनएओपीएस और आईजीएनडब्ल्यूपीएस के बारे में जागरूकता (अवेयरनेस) की सबसे अधिक संख्या है। अध्ययन में कहा गया है कि जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर (लेवल) बढ़ता है, आईजी एनओएपीएस, आईजीएनडबल्यूपीएस  और अन्नपूर्णा योजना के लिए जागरूकता का स्तर बढ़ता है।

क्या पुनर्विवाह के बाद विधवा पेंशन का लाभ उठाया जा सकता है?

पुनर्विवाह द्वारा विधवा पेंशन का लाभ उठाया जा सकता है या नहीं, यह सवाल एक लंबे समय से चला आ रहा है और इसे केवल केस कानूनों की एक श्रृंखला (सीरीज) के माध्यम से समझा जा सकता है।

एक विधवा परिवार पेंशन के मामले में पुनर्विवाह के बाद पेंशन के लिए पात्र है लेकिन विधवा पेंशन के मामले में नहीं।

केस कानून

सुमन बनाम हरियाणा राज्य (2020)

सुमन बनाम हरियाणा राज्य का यह मामला एक ऐतिहासिक (हिस्टॉरिक) निर्णय है और विधवा पेंशन का नवीनतम विकास (लेटेस्ट डेवलपमेंट) है क्योंकि यह पेंशन योजना की वर्तमान स्थिति को दर्शाता है।

इस मामले में, सुमन जो कि विधवा है उसने अपने पति की मृत्यु के 3 महीने बाद अपने देवर से “करेवा” की रस्म के माध्यम से पुनर्विवाह किया था, लेकिन उसे अभी भी विधवा पेंशन मिल रही थी। आगे की जांच के बाद, यह पाया गया कि सुमन पेंशन रोकने के लिए कार्यालय गई थी, जिसके कारण इस मामले में पंजाब और हरियाणा की अदालत ने यह माना था कि सुमन का पेंशन के रूप में दी गई राशि को रोकने का इरादा था और इसलिए इस मामले में, याचिकाकर्ता (पिटीशनर) उक्त योजना से कोई और लाभ प्राप्त नहीं कर सका और न ही प्रतिवादी (रिस्पोंडेंट) उसे जारी की गई किसी भी राशि की वसूली (रिकवर)कर सके।

उच्च न्यायालय ने कहा है कि जो समारोह हुआ था, उसके पास पुनर्विवाह के रूप में माने जाने के लिए पर्याप्त सबूत थे। अदालत ने कहा कि विधवा पेंशन का मकसद ऐसी महिला को आर्थिक सहायता देना है जो या तो असहाय या बेसहारा है, जिसके पास पति की मौत के बाद आय (इनकम) का कोई नियमित स्रोत (सोर्स) नहीं है।

हालांकि पारिवारिक पेंशन की स्थिति पर नजर डालें तो स्थिति कुछ और ही है।

रेणु गुप्ता बनाम एम/ओ रक्षा (2018)

रेणु गुप्ता बनाम एम/ओ डिफेंस के इस मामले में यह माना गया कि पुनर्विवाह के बाद भी, सरकारी सेवा के कर्मचारी की विधवा पारिवारिक पेंशन की हकदार होगी। इस मामले के तथ्य इस प्रकार थे:

रेणु गुप्ता, जो विधवा थीं, उन्होंने पुनर्विवाह के बाद अपने बेटे के नाम पर पेंशन स्थानांतरित (ट्रांसफर) करने के लिए बार-बार अनुरोध (रिक्वेस्ट) किया, लेकिन हर बार इसे खारिज कर दिया गया क्योंकि ट्रिब्यूनल ने कहा था कि यह याचिका परिणामों को समझे बिना की गई थी। एक प्रावधान था जिसमें कहा गया था कि वह केवल तब तक पेंशन प्राप्त कर सकता है जब तक कि बेटा 25 वर्ष का नहीं हो जाता। सीसीएस (पेंशन) नियम, 1972 के आधार पर अदालत ने इसे खारिज कर दिया था, जहां वह कानूनी रूप से पेंशन की हकदार थी और उसके बेटे को पेंशन राशि फिर से हस्तांतरित (रिट्रांसफर) करने के लिए अदालत पर कोई रोक नहीं थी और वह पारिवारिक पेंशन की भी हकदार थी।

सुझाव

हालांकि विधवा पेंशन एक कुशल (इफेक्टिव) पेंशन है, लेकिन कुछ कमियां हैं जो इस प्रकार हैं:

  • विधवा पेंशन पाने वाली महिलाओं की आयु पूरे भारत में एक समान होनी चाहिए और अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नहीं होनी चाहिए।
  • इस पेंशन योजना में अन्य महिलाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए, जैसे कि जिनके पति लापता, परित्यक्त आदि हैं। पति के लौटने की अवधि 7 वर्ष से कम अवधि की होनी चाहिए ताकि महिला को जल्दी इस योजना का लाभ मिल सके। 
  • लोगों को प्रदान की जाने वाली विभिन्न योजनाओं के बारे में पर्याप्त जागरूकता होनी चाहिए, जैसे-जैसे ज्ञान बढ़ता है, जागरूकता बढ़ती है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों को शिक्षित करने के लिए नियमित शिविर और कार्यशालाएँ आयोजित की जानी चाहिए।

निष्कर्ष

भारत में विधवा पेंशन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना (आईजीएनडबल्यूपीएस) की योजना द्वारा दी जाती है जो उन विधवाओं के लाभ के लिए है जिनके पास आय का कोई स्रोत नहीं है या सरकार द्वारा निर्धारित राशि से कम कमाती हैं।

हालंकि, विधवा के लिए फायदेमंद यह योजना, पुनर्विवाह के बाद प्रभावी नहीं हो जाती है, क्योंकि इस पेंशन का उद्देश्य काम नहीं करेगा, क्योंकि एक बार जब वह पुनर्विवाह कर लेती है, तो यह धारणा है कि, वह अब विधवा नहीं होगी और उसकी उसके दैनिक जीवन के अधिकार और आवश्यक जरूरतें पुनर्विवाह पर उसके नए पति द्वारा पूरी की जाएंगी और वह अब कानून की नजर में विधवा नहीं है।

संदर्भ

 

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here