विवाह के विघटन के आधार क्या हैं

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Hindu Marriage Act

यह लेख तलाक और विवाह का विघटन, पति पत्नी के इच्छा और आपसी अनुमति से विवाह के विघटन की प्रक्रिया, उसके आधार के बारे में बात करता है। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar द्वारा किया गया है। 

परिचय

तलाक की कार्यवाही में आरोप-प्रत्यारोप की प्रक्रिया से बचने और प्रक्रिया में शामिल अनावश्यक खर्चों से बचने के लिए विवाह के विघटन (डेजोल्यूशन ऑफ़ मैरिज) की अवधारणा विकसित हुई। तलाक की कार्यवाही में विवाह के एक पक्ष को वैधानिक (स्टेच्युटरी) आधारों में से एक के तहत दूसरे पर गलती करने का आरोप लगाना चाहिए। बिना किसी गलती के आधार पर तलाक को विवाह के विघटन के रूप में संदर्भित किया जाता है।

आपसी सहमति से विवाह का विघटन

भारतीय कानूनों के तहत स्पष्ट रूप से मान्यता प्राप्त बिना दोष वाले तलाक का एकमात्र प्रकार आपसी सहमति से तलाक है। यहां पति-पत्नी याचिका देते हैं कि वे एक वर्ष से या उससे अधिक की अवधि के लिए एक साथ रहने में असक्षम रहे हैं और वह दोनो याचिका की प्रस्तुति से ठीक पहले अलग-अलग रह रहे थे; जिसके परिणामस्वरूप वे पारस्परिक (म्यूचुअल) रूप से विवाह को भंग करने के लिए सहमत हुए हैं। याचिका दायर करने से पहले, पति-पत्नी विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे कि बच्चे की हिरासत (कस्टडी), पत्नी को गुजारा भत्ता (एलिमोनी), दहेज की वस्तुओं की वापसी या “स्त्रीधन”, मुकदमेबाजी का खर्च आदि पर सहमत होते हैं। इसके अलावा, पति पत्नी द्वारा मान्य की गई शर्तो का उल्लेख आपसी सहमति से तलाक की याचिका में करना होता है।

पति-पत्नी निम्नलिखित में से किसी भी प्रावधान के तहत आपसी सहमति से विवाह के विघटन के लिए याचिका दायर कर सकते हैं: हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-B, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 28, भारतीय विवाह विघटनअधिनियम 1869 की धारा 10-A

आपसी सहमति से विवाह विघटनके लिए आधार

श्रीमती सुरेष्टा देवी बनाम ओम प्रकाश, (1991) 2 एससीसी 25 के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने विवाह विघटनके कारणों की व्याख्या इस प्रकार की है:

“एक वर्ष की अवधि के लिए ‘अलग रहना’ तुरंत याचिका की प्रस्तुति से पहले होना चाहिए। यह आवश्यक है कि याचिका की प्रस्तुति से ठीक पहले पक्षकार अलग-अलग रह रहे हों। अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) ‘अलग रहना’, हमारे मन को पति और पत्नी की तरह नहीं रहने का संकेत देती है। इसका रहने की जगह से कोई संबंध नहीं है। पक्षकार परिस्थितियों के वजह से एक ही छत के नीचे रह सकते हैं, और फिर भी वे पति और पत्नी के रूप में नहीं रह सकते हैं। पक्षकार अलग-अलग घरों में रह रहे होंगे और फिर भी वे पति-पत्नी के रूप में रह सकते थे। जो आवश्यक प्रतीत होता है वह यह है कि उन्हें वैवाहिक दायित्वों (मैरिटल ऑब्लिगेशन) को निभाने की कोई इच्छा नहीं है और इस मानसिक रवैये के साथ वे याचिका की प्रस्तुति के तुरंत पहले एक वर्ष की अवधि से अलग रह रहे हैं।

  • दूसरी आवश्यकता यह है कि पक्षकार ‘एक साथ रहने में सक्षम नहीं हैं’ यह टूटी हुई शादी की अवधारणा को इंगित करता है, जिसमे पक्षकारों के बिच के शादी के संबंधों को पुनः पहले जैसा करना संभव नहीं होगा।
  • तीसरी आवश्यकता यह है कि वे परस्पर सहमत हैं कि विवाह को भंग कर देना चाहिए।”

आपसी सहमति से विवाह विघटन की प्रक्रिया

तलाक की प्रक्रिया आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर कर शुरू की जाती है। याचिका दोनों पक्षों के हलफनामों (एफिडेविट) द्वारा समर्थित है जो उनकी सहमति का संकेत देते हैं। यह प्रथम प्रस्ताव याचिका है जिसे दिवानी न्यायाधीश कनिष्ठ स्तर (सिविल जज सीनियर डिवीजन) की अदालत में पेश किया जाता है। याचिका में दोनों पक्षों द्वारा एक संयुक्त बयान शामिल है कि वे एक साथ रहने में सक्षम नहीं हैं इसलिए अदालत द्वारा तलाक दिया जाना चाहिए। पक्षों को पहली याचिका दायर करने के 6 महीने बाद दूसरी गति याचिका (मोशन पिटीशन) दायर करनी होती है, जहां दोनों पक्षों की उपस्थिति अनिवार्य (मैंडेटरी) होती है। इसके बाद न्यायाधीश द्वारा दोनों पक्षों की सुनवाई की जाती है और अदालत की संतुष्टि पर विवाह भंग कर दिया जाता है। पक्षकारों को द्वितीय गति याचिका पहला प्रस्ताव याचिका दाखिल करने के 6 महीने के बाद और 18 महीने पहले दोनो पक्षकारों को पर्याप्त समय देने के बाद दूसरी प्रस्ताव याचिका पेश करनी होती है। यदि पक्षकार 18 महीने के भीतर द्वितीय गति याचिका प्रस्तुत नहीं करते हैं तो विवाह को न्यायालय द्वारा भंग नहीं किया जा सकता है।

इसके अलावा अगर अदालत द्वारा जांच के समय कोई एक पक्ष तलाक की याचिका पर अपनी सहमति वापस ले लेता है तो अदालत के पास विवाह को भंग करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं रहता है; क्योंकि आपसी सहमति के मामले में अदालत द्वारा विवाह को भंग करने की डिक्री यह केवल पक्षों की निरंतर है आपसी सहमति के बाद ही पारित की जा सकती है।

विवाह का अपरिवर्तनीय रूप से टूटना: विवाह के विघटन का आधार

आपसी सहमति से विवाह के विघटन के अलावा “बिना दोष” के आधार पर विवाह को भंग करने का दूसरा तरीका विवाह के अपरिवर्तनीय टूटने (इरेट्रीवेबल ब्रेकडाउन) की अवधारणा है। न्यूज़ीलैंड पहला देश था जिसने “शादी के अपरिवर्तनीय टूटने” की अवधारणा को तलाक और वैवाहिक कारण संशोधन अधिनियम, 1920 द्वारा स्वीकार किया गया था। तब से कई देशों ने इसे तलाक लेने के लिए एक आधार के रूप में स्वीकार किया है। वास्तव में, यूनाइटेड किंगडम में, यह एकमात्र आधार है जिस पर तलाक की मांग की जा सकती है।

विवाह का अपरिवर्तनीय रूप से टूटना वह स्थिति है जहां विवाह के दोनों पक्षों में से कोई एक या दोनों पक्ष एक-दूसरे के साथ रहने के लिए तैयार नहीं होते हैं, जैसे कि वे अपने पति-पत्नी के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ होते हैं और उनके मतभेद सुलह (रिकंसीलिएशन) से परे होते हैं।

सर्वोच्च न्यायलय ने अपरिवर्तनीय विवाह विघटनको तलाक का आधार बनाने के मामले में पलटी खाई है। विष्णु दत्त शर्मा बनाम मंजू शर्मा के एक हालिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस अवधारणा को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ऐसी स्थिति में जहां एक पक्ष शादी के अपरिवर्तनीय रूप से टूटने के आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर करता है और दूसरा पक्ष जो याचिकाकर्ता के दोष से पीड़ित है इसका विरोध कर रहा है, ऐसी स्थिति में ऐसी अवधारणा न्याय नहीं करेगी। लेकिन राज्य सभा द्वारा पारित किया गया विवाह कानून संशोधन विधेयक (2013), हिंदू विवाह अधिनियम में धारा 13C को जोड़ने का प्रयास करता है, जो कि विवाह के अपरिवर्तनीय रूप से टूटने के आधार पर विवाह को भंग कर देगा। इसके लिए आवश्यक है कि याचिका की प्रस्तुति से ठीक पहले पक्षकारों को कम से कम 3 साल तक अलग-अलग रहना चाहिए। यहां अलग रहने का मतलब एक ही घर में नहीं रहना है।

इस मामले में आपसी सहमति से तलाक के विरोध में विवाह के विघटन की याचिका विवाह के किसी भी पक्ष द्वारा प्रस्तुत की जा सकती है और अदालत विवाह को भंग कर सकती है, भले ही उसके खिलाफ दूसरे पक्ष ने आपत्ति जताई हो। हालाँकि, पत्नी आर्थिक तंगी के आधार पर याचिका पर आपत्ति कर सकती है।

विवाह का विघटन तलाक से किस प्रकार भिन्न है?

तलाक और विवाह का विघटन यह दोनो शब्द दो लगभग समान अवधारणाओं को संदर्भित करने के लिए उपयोगित किए जाते है। ये वे प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा एक पति और पत्नी अपने विवाह को समाप्त करते हैं। एक विवाह को समाप्त करने की प्रक्रिया एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न होती है, हालांकि अधिकांश राज्य इन दोनों अवधारणाओं के बीच अंतर नहीं करते हैं। तलाक केवल एक पति या पत्नी द्वारा दूसरे पर आरोप लगाने पर ही दिया जा सकता है। इस प्रकार विवाह का विघटन “कोई गलती न होना (नो फॉल्ट)” तलाक के संदर्भ में किया जाने लगा। लेकिन दोनों प्रक्रियाओं का अंतिम परिणाम एक ही रहता है अर्थात विवाह का अंत।

तलाक मांगने का आधार

सामान्य रूप से भारतीय कानून और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 विशेष रूप से अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक के लिए निम्नलिखित दोष आधारों को पहचानता है: 

  1. व्यभिचार (एडल्ट्री)
  2. क्रूरता 
  3. परित्याग (डिजर्टेशन)
  4. रूपांतरण (कन्वर्जन)
  5. मानसिक विकार
  6. सिज़ोफ्रेनिया
  7. विषाणुजनित (वायरलेंट) और असाध्य कुष्ठ रोग (इंक्युरेबल लेप्रोसी)
  8. संचारी यौन रोग फॉर्म
  9. नए धार्मिक आदेश में प्रवेश करना
  10. सात साल या उससे अधिक की अवधि के लिए जीवित के रूप में नहीं सुना जाने पर मृत्यु की धारणा
  11. न्यायिक अलगाव (ज्यूडिशियल सेपरेशन) के एक डिक्री के साथ गैर-अनुपालन (नॉन कंप्लायंस)
  12. वैवाहिक अधिकारों की बहाली (रेस्टिट्यूशन ऑफ़ कंजुगल राइट्स) के एक डिक्री के साथ गैर-अनुपालन (एक पति या एक पत्नी के रूप में अपने दायित्वों की पूर्ति)। 

पीड़ित पक्ष को उपरोक्त दोष आधारों में से एक आधार को पति या पत्नी के खिलाफ उचित क्षेत्राधिकार (ज्यूरिस्डिक्शन) की अदालत में साबित करना होगा, आरोप को सफलतापूर्वक साबित करने पर तलाक की अनुमति दी जाती है।

विवाह विघटन

दूसरी ओर, “कोई दोष न होना” के आधार पर विवाह के विघटन के दावे का आधार यह है कि दो पक्षों में से कम से कम एक का दावा है कि विवाह अब व्यवहार्य (वायबल) नहीं है और मतभेद अप्रासंगिक (इरेकंसीलेबल) हैं। यहां पक्ष एक-दूसरे पर विभिन्न दोषों का आरोप लगाने का रास्ता चुनने के बजाय आपसी सहमति से अपनी शादी को भंग करने का फैसला करते हैं। यदि कोई पक्ष किसी गलती के आधार पर अपनी याचिका को आधार बनाता है तो विवाह के विघटन का दावा नहीं किया जा सकता है, लेकिन केवल लंबी मुकदमेबाजी द्वारा तलाक लिया जा सकता है।

विवाह के विघटन का दावा करने के लिए विवाह के पक्षकारों को विभिन्न मुद्दों जैसे बच्चे की हिरासत, पत्नी को गुजारा भत्ता, संपत्ति के मुद्दों आदि पर सहमत होना पड़ता है, जबकि तलाक के मामले में ऐसे मुद्दों को अदालत द्वारा ही सुलझाया जाता है।

दो प्रक्रियाओं (तलाक और विवाह के विघटन) का अंतिम परिणाम एक ही होने के कारण, विवाह के विघटन की अवधारणा समय और पक्षों के खर्च को बचाने के लिए समय के साथ विकसित हुई, जो बताती है कि यदि दोनों पक्ष चाहते हैं कि विवाह भंग हो या यदि विवाह समाप्त हो गया है और सुलह से परे टूट गया है।

संदर्भ 

 

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