वैवाहिक बलात्कार: कैसे यह इच्छा और सहमति की अवधारणा को अनदेखा करता है

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Indian Penal Code
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इस लेख को Deepanshi Dwivedi द्वारा लिखा गया है। इस लेख में वह वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा (कांसेप्ट) को समझाते हुए महिला की सहमति और इच्छा की धारणा (नोशन) पर चर्चा करती हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है। 

परिचय (इंट्रोडक्शन)

वैवाहिक बलात्कार, पत्नी की सहमति के बिना पति द्वारा किया गया बलात्कार है। वैवाहिक बलात्कार में मूल रूप से पति या पत्नी की शारीरिक यातना (टॉर्चर), पति या पत्नी के साथ संभोग (सेक्शुअल इंटरकोर्स) शामिल है।

यदि इस पर ध्यान देते हैं, तो हम देखते हैं कि आम तौर पर विवाहित महिलाएं वैवाहिक बलात्कार की शिकार होती हैं। वे वही हैं जो सामान्य रूप से इसका सामना करती हैं। महिलाओं से जुड़े कई मामले हैं जिनमें वे वैवाहिक बलात्कार की शिकार होती हैं, जो उनकी इच्छा के विरुद्ध और उनकी सहमति के विरुद्ध होते है।

बलात्कार और वैवाहिक बलात्कार

आई.पी.सी. की धारा 375 बलात्कार की अवधारणा (कांसेप्ट) से संबंधित है। यह बलात्कार को परिभाषित करता है ” एक आदमी को बलात्कार का अपराधी तब माना जाता है यदि वह अपने लिंग (पेनिस) को, किसी महिला की योनि (वजिना), मुंह, मूत्रमार्ग (उरेठ्रा), या एनस मे किसी भी हद तक डालता है या उससे ऐसा करवाता है।”

बलात्कार के लिए 6 मानदंड (क्राइटेरिया) पूरे होने चाहिए:

  • उसकी इच्छा के विरुद्ध
  • उसकी सहमति के बिना
  • बल द्वारा सहमति प्राप्त करने पर 
  • जब वह अपनी सहमति का व्यक्त करने में असमर्थ होती है
  • जब वह 18 वर्ष से कम आयु की हो तो उसकी सहमति से या उसके बिना।
  • उसकी सहमति से जब वह अस्वस्थता या नशे के कारण कार्य की प्रकृति को समझने में असमर्थ होती है।

शब्द “सहमति” का अर्थ, भारतीय दंड संहिता की धारा 2 के तहत दिया गया है, अर्थात् सहमति को एक स्पष्ट स्वैच्छिक (वॉलंटरी) समझौते के रूप में परिभाषित किया जाता है, जब महिलाएं शब्दों, इशारों या मौखिक या अशाब्दिक संचार (नॉन वर्बल कम्युनिकेशन) के किसी भी रूप में, विशिष्ट यौन क्रिया (स्पेसिफिक सेक्शुअल एक्ट) में भाग लेने की अपनी इच्छा को व्यक्त करती है।

इसलिए, अगर हम देखते हैं कि महिलाओं की सहमति उनकी इच्छा दिखाने के लिए एक प्रमुख कारक (फैक्टर) है, तो हम अक्सर देखते हैं कि पुरुष महिलाओं पर हावी होते है, और यह प्रथा अभी भी चल रही है लेकिन लोग महिलाओं की सहमति को नजरअंदाज कर देते हैं।

यदि पुरुष अपनी पत्नी के साथ संभोग करना चाहता है तो वह महिला की सहमति नहीं लेता है।

वैवाहिक बलात्कार शादी के बाद एक महिला का बलात्कार है। क्या विवाह दोनों पति-पत्नी के बीच एक अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट) बन जाता है ताकि वे संभोग के लिए महिलाओं की सहमति जानने से इनकार कर सकें? यहां हम पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता की अवधारणा देख सकते हैं। यहां महिलाओं की सहमति लेने से इनकार किया गया है, जो भारत के संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है। आर्टिकल 14 कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण (प्रोटेक्ट) से संबंधित है, इसलिए यहां महिलाओं को भी समान माना जाना चाहिए और संभोग के लिए सहमति के लिए समान अवसर दिया जाना चाहिए।

अगर हम एक महिला की इच्छा के बारे में बात करते हैं तो उसका मतलब उसकी इच्छा, वह है जो वह खुद चाहती है, जबकि सहमति कुछ करने की अनुमति है। यह शब्द व्यक्ति के मन की तर्क शक्ति (रीजनिंग पॉवर) को निर्धारित करता है कि उसे वह कार्य करना है या नहीं।

वैवाहिक बलात्कार के बारे में ‘उसकी इच्छा के विरुद्ध’ और ‘उसकी सहमति के बिना’ बात करते समय दो तथ्य हैं जिन्हें हमें ध्यान में रखना चाहिए। बलात्कार का सार सहमति की अनुपस्थिति है। सहमति में व्यक्ति आम तौर पर विशेष कार्य के लिए अपनी इच्छा को व्यक्त करता है। हर कार्य उसकी इच्छा के विरुद्ध किया जाता है; हम कह सकते हैं कि सहमति का अभाव है लेकिन सहमति के बिना हर कार्य इच्छा के विरुद्ध नहीं है। इसलिए, वैवाहिक बलात्कार में, महिलाओं की इच्छा और सहमति दोनों कारक गायब होते हैं।

क्या इच्छा के खिलाफ और बिना सहमति के संबंध में कोई कानून है?

आई.पी.सी. की धारा 375, यौन अपराध अधिनियम (सेक्शुअल ऑफेंसेस एक्ट), 1959 की धारा 1 पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि शादी के बाद पुरुष अपनी पत्नी का बलात्कार नहीं कर सकता क्योंकि पत्नी ने शादी के लिए सहमति देकर खुद को पुरुष को दे दिया है। 

यदि एक महिला ने विवाहित पुरुष के साथ संभोग के लिए सहमति नहीं दी है, तो उसे भी ना कहने का अधिकार है। शादी का मतलब यह नहीं है कि पत्नी ने हमेशा शारीरिक बल के लिए सहमति दी है। (दिल्ली उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और सी हरि शंकर की बेंच ने कहा)। उन्होंने कहा कि पुरुष और महिला दोनों को शारीरिक संबंध में ना कहने का अधिकार है। लेकिन साथ ही दिल्ली उच्च न्यायालय का कहना है कि वैवाहिक बलात्कार तलाक का आधार नहीं हो सकता।

लेकिन कानून विवाहित महिलाओं की स्थिति को देखने में विफल रहता है, जो दैनिक आधार पर पुरुष के कार्यों और वैवाहिक बलात्कार का शिकार होती हैं।

वैवाहिक बलात्कार अपराध क्यों नहीं है?

पति और पत्नी के बीच इच्छा के बिना हुए संभोग को दुनिया के लगभग हर देश में एक अपराध के रूप में मान्यता दी गई है। भारत उन छत्तीस देशों में से एक है, जिन्होंने अभी तक वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा है।

यह आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह विवाहित महिलाओं और अविवाहित महिलाओं को बलात्कार और यौन उत्पीड़न से समान सुरक्षा से वंचित (डिनाई) करके उनके बीच भेदभाव करता है।

1860 के दशक में जब आईपीसी का मसौदा (ड्राफ्ट) तैयार किया गया था, उस समय एक विवाहित महिला को एक स्वतंत्र व्यक्ती के रूप में नहीं माना जाता था। बल्कि, उन्हें अपने पति की संपत्ति के रुप में माना जाता था। 

साथ ही, यह भारत के संविधान के आर्टिकल 21 का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि “कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। जिसमें निम्नलिखित शमिल है:

  1. जीवन का अधिकार: मानव को गरिमा (डिग्निटी) के साथ जीवन जीने के लिए सुनिश्चित करना।
  2. सम्मान के साथ जीने का अधिकार
  3. निजता (प्राइवेसी) का अधिकार
  4. लैंगिक समानता (जेंडर इक्वालिटी) और संवेदनशीलता (सेंसटिविटी)

सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 21 में स्पष्ट रूप से अंतरंग (इंटिमेट) संबंधों के संबंध में निर्णय लेने के अधिकार को मान्यता दी है। जबरदस्ती यौन सहवास (कोहाबिशन) करना, मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। साथ ही, हम यह भी कह सकते हैं कि भारत में इस संबंध में कोई नियम नहीं है कि वैवाहिक संबंध से व्यक्ति की निजता का अधिकार समाप्त हो जाता है।

जैसा कि हमारा संविधान सभी को सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार में महिलाओं का कोई अधिकार नहीं है, उन्हें पति द्वारा किसी न किसी तरह से शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित (टॉर्चर) किया जाता है। महिलाओं की सहमति के बिना संभोग उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है और सम्मान के साथ जीने के लिए जीवन को कमजोर करता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित (पेंडिंग) एक मामले में कहा गया है कि वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण (क्रिमिनलाइजेशन) “विवाह की संस्था को अस्थिर (डिस्टेबल) कर देगा” और “पतियों को परेशान करने” का एक आसान साधन बन सकता है।

लेकिन फिर, उन महिलाओं के बारे में क्या जिन्हें रोज प्रताड़ित किया जाता है? अदालत उन्हें उनके अधिकार क्यों नहीं देती? क्या शादी के बाद महिलाएं अपने सभी मानव अधिकार खो देती हैं?

मेरे अनुसार वैवाहिक बलात्कार एक दंडनीय अपराध होना चाहिए क्योंकि इसमें वे सभी तत्व शामिल हैं, जो बलात्कार का गठन (कांस्टीट्यूट) करते हैं। यह आई.पी.सी. की कई धाराओं और भारत के संविधान का भी उल्लंघन है।

शादी के बाद यह मतलब नहीं है कि महिलाएं अपने सभी अधिकार खो देती हैं और अगर हम वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण करते हैं, तो यह विवाह की संस्था को अस्थिर नहीं करता है, बल्कि कई विवाहित महिलाओं को उनकी सहमति के बिना और उनकी इच्छा के विरुद्ध और कभी-कभी वहां भी बलात्कार होने से बचाएगा जहां सहमति तो है लेकीन वह भी बल द्वारा प्राप्त की गई है।

यदि हम देखते हैं कि ऐसे कई देश हैं जिनमें वैवाहिक बलात्कार एक अपराध है, लेकिन यह विवाह को अस्थिर नहीं करता है। व्यक्तिगत गरिमा दूसरे की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है।

वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने के लिए कारक

जब हमारे देश में शारीरिक हिंसा अवैध है, तो यौन हिंसा कानूनी कैसे हो सकती है? साथ ही, बलात्कार अवैध है तो वैवाहिक बलात्कार कानूनी कैसे हो सकता है?

जब पति द्वारा पत्नी को पीटना अपराध है, तो उस पर शारीरिक बल का इस्तेमाल करना भी अपराध है, विवाहित महिलाओं पर मारपीट करना अपराध है तो यह क्यों नहीं है? यहां अपवाद (एक्सेप्शन) को हटा दिया जाना चाहिए ताकि महिलाएं अपनी वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना निर्णयात्मक (डिसीजनल) गोपनीयता के अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग कर सकें।

पुट्टस्वामी के फैसले में विवाहित और अविवाहित महिलाओं के अधिकारों के बीच कोई अंतर नहीं था और भारतीय न्यायशास्त्र (ज्यूरिस्प्रूडेंस) में ऐसा कुछ भी नहीं है कि एक महिला शादी के बाद अपने मौलिक अधिकारों को छोड़ देती है। फिर वैवाहिक बलात्कार अपराध क्यों नहीं है?

वैवाहिक बलात्कार व्यक्ति की निजता, गरिमा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है। एक महिला को अपने शरीर और अपने जीवन पर पूर्ण स्वायत्तता (ऑटोनोमी) होती है, भले ही वह विवाहित हो या नहीं।

इस पर अभी भी एक तर्क है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराधी बनाया जाना चाहिए या नहीं, कई लोग कहते हैं कि इस अपराध को अपराधीकरण करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि विवाहित महिलाएं पहले से ही घरेलू हिंसा अधिनियम से महिलाओं के संरक्षण (प्रोटेक्शन ऑफ़ वूमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट) 2005 जैसे कई कार्यों द्वारा संरक्षित हैं।

सी.ई.डी.ए.डबल्यू. (महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन पर सम्मेलन (कनवेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ़ डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट वूमन)) और राष्ट्रीय स्तर की समिति जैसे कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों ने आई.पी.सी. की धारा 375 से वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को हटाने की सिफारिश की है जो बलात्कार को परिभाषित करता है। 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (नेशन फैमिली हेल्थ सर्वे) (एन.एफ.एच.एस. -4) के 2018 के सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में 31% महिलाएं अपने जीवनसाथी के हाथों शारीरिक, भावनात्मक (इमोशनल) या यौन आघात (असॉल्ट) का अनुभव करती हैं। साथ ही 15-49 वर्ष की आयु वर्ग की 83% विवाहित महिलाओं ने दावा किया कि उन्होंने अपने पतियों के हाथों और उनकी इच्छा के विरुद्ध यौन उत्पीड़न का अनुभव किया है। 

आई.पी.सी. की धारा 375 में कहा गया है कि जिसमें अपवाद शामिल है “अपनी पत्नी के साथ एक पुरुष द्वारा संभोग या यौन क्रिया, जहां पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम नहीं है, तो वह कार्य बलात्कार नहीं है …”।

वैवाहिक बलात्कार के मामले में सरकार ने महिलाओं को कई अधिकारों से वंचित कर दिया है, मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन किया गया है जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि ‘महिलाओं की गरिमा की रक्षा’ में स्पष्ट रूप से महिला शब्द का उल्लेख है लेकिन वैवाहिक बलात्कार को अपराध न बनाने के बाद सभी गड़बड़ हैं। 

साथ ही जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ का कहना है कि “ना कहने का अधिकार (सेक्स को) शादी के बाद भी होना चाहिए”

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

मेरे अनुसार वैवाहिक बलात्कार, हालांकि वह आई.पी.सी. की धारा 375 में एक अपवाद है, लेकिन तब भी इसको भारत जैसे देश में एक आपराधिक अपराध बनाया जाना चाहिए, क्योंकि यह आई.पी.सी. की कई अन्य धाराओं और भारत के संविधान का भी उल्लंघन है, व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और व्यक्ति की गरिमा का सम्मान करने के लिए कई नियम और अधिनियम बनाए गए हैं, इसलिए कोई भी कानून, नियम और अधिनियम जो सभी का उल्लंघन करता है उसे शून्य (वॉयड) घोषित किया जाना चाहिए और ऐसे कार्यों को अपराध घोषित किया जाना चाहिए जिसमें स्पष्ट रूप से यह दिखता है कि वह महिलाओं का कितना अपमान करते है, उन्हें ना कहने का अधिकार नहीं देते है और न ही उन्हें उनके व्यक्तिगत अधिकारों तक पहुंच प्रदान करते है।

वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण किया जाना चाहिए, क्योंकि हम सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि कैसे पुरुष अपनी शक्ति और बल का उपयोग महिलाओं पर करते है और महिलाओं की इच्छा को नकारते है। जिसके परिणामस्वरूप कई महिलाएं शिकार होती हैं जो किसी न किसी कारण से आत्महत्या कर लेती हैं क्योंकि यह उनकी इच्छा के  और सहमति के भी विरुद्ध होता है लेकिन सहमति को बल द्वारा प्राप्त किया जाता है। चूंकि प्राचीन काल से ही पुरुषों को महिलाओं पर हावी होने का अधिकार है लेकिन आधुनिक भारत में इस कानून में संशोधन (अमेंडमेंट) किया जाना चाहिए।

साथ ही, वैवाहिक बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को दंडित किया जाना चाहिए और उन सभी पतियों को दंडित करने के लिए एक कठोर कानून बनाया जाना चाहिए जो सोचते हैं कि “पुरुषों और महिलाओं के बीच विवाह, पुरुष की यौन आवश्यकता की पूर्ति के लिए होता है”। वह व्यक्ति सोचता है कि महिलाएँ इतनी सक्षम नहीं हैं कि वह पुरुष और पतियों द्वारा लिए गए निर्णय को नकार सकें।

यहां तक ​​कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून भी बनाए गए हैं, लेकिन उनसे कोई सुधार नहीं हुआ है, इसलिए महिलाओं के लिए और कानून और कार्य होने चाहिए। वैवाहिक बलात्कार के मामले में पति भी महिलाओं को स्वतंत्र रूप से सहमति देने का अधिकार नहीं देता है, वैवाहिक बलात्कार भी आर्टिकल 14, आर्टिकल 15, आर्टिकल 21 और धारा 375 का उल्लंघन है क्योंकि यह एक तरफ कहता है कि बलात्कार एक अपराध है लेकिन दूसरी ओर वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को धारा में शामिल करता है। साथ ही, यह व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन है।

यह एक अपराध होना चाहिए क्योंकि हमारे देश में कई महिलाएं वैवाहिक बलात्कार की शिकार हैं। साथ ही, कुछ मामलों में वैवाहिक बलात्कार एक पुरुष को महिलाओं के खिलाफ और अधिक क्रूर बना सकता है क्योंकि वह जानता है कि एक महिला यानी उसकी पत्नी के साथ बलात्कार करने में कोई सजा नहीं है।

एंडनोट्स

  • Text from IPC section 375
  • Text from IPC section 375, under criminal law
  • Section 375, IPC
  • Said by Delhi High court in the plea of marital rape
  • To have and to hold: the marital rape exemption and the fourteenth amendment ,99 (6) Harry. L.
  • Right to abstain from sexual intercourse is a long-recognised principle of Indian constitutional jurisprudence, Govind v. state of M.P., AIR (1975) SC 1378(INDIA)
  • Article by sumedha  Chaudhary, case of RTI Foundation vs Union of India.
  • Article published “my refusal meant nothing to him “.
  • National family health survey report 2018

 

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