एक फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट के तहत सामना किए गए विभिन्न मुद्दे

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यह लेख Anuradha Shinde द्वारा लिखा गया है, जो लॉसिखो से एचआर मैनेजर्स के लिए लेबर, एम्प्लॉयमेंट और इंडस्ट्रियल लॉज में सर्टिफिकेट कोर्स कर रही हैं। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar ने किया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट से क्या तात्पर्य है (व्हाट इज मींट बाय फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट)?

फिक्स्ड-टर्म एम्प्लॉयमेंट (एफटीसी) एक एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट है जिसमें एक ऑर्गनाइजेशन एक कर्मचारी को सीमित समय के लिए भर्ती करता है। आम तौर पर, यह एक वर्ष की अवधि के लिए होता है, हालांकि, आवश्यकता के आधार पर, इसको रिन्यू किया जा सकता है।

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एफटीसी में, कर्मचारी कंपनी के नियमित एम्प्लॉयमेंट में नहीं होते है और वह केवल स्पष्ट और अल्पकालिक (एक्सप्लिसीट एंड शॉर्ट टर्म) कार्यों को करने के लिए है। ऐसी घटनाओं में, कॉन्ट्रैक्ट ऑटोमैटिकली एक विशिष्ट तिथि पर या किसी विशेष असाइनमेंट के कंक्लूजन पर समाप्त हो जाता है। उनका उपयोग विभिन्न कारणों से यह गारंटी देने के लिए किया जाता है कि प्रोजेक्ट में उस विशेष प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए पर्याप्त स्टाफ सदस्य हैं।

एक कर्मचारी के साथ अधिकतम 4 वर्षों के लिए फिक्स्ड टर्म के कॉन्ट्रैक्ट को लगातार दर्ज (एंटर) किया जा सकता है। यदि इस अवधि के बाद कॉन्ट्रैक्ट  रिन्यू हो जाता है, तो संबंधित व्यक्ति स्थायी कर्मचारी बनने का हकदार होता है, जब तक कि एंप्लॉयर उचित साक्ष्य का एक टुकड़ा देने में सफल न हो या यह उचित ठहराने का कोई कारण न हो कि उसे एक फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट पर रहना चाहिए।

काम के विशेष नियमों और शर्तों का एक सेट मौजूद है जैसे भुगतान की जाने वाली मजदूरी, काम की जगह, छुट्टी के लाभ, घंटे और काम की अवधि। हालांकि, एफटीसी नियमित नौकरियों के लिए नहीं दिया जा सकता है लेकिन आम तौर पर उन नौकरियों के लिए दिया जाता है जो अस्थायी (टेंपररी) प्रकृति की हैं। इसके अलावा, यदि कोई नियोक्ता (एंप्लॉयर) छुट्टी पर वर्तमान कर्मचारी को बदलने के लिए इसका उपयोग करना चाहता है तो इसका कभी भी उपयोग नहीं किया जा सकता है।

अधिकांश तकनीकी (टेक्निकल)/आईटी कंपनियों में, एक निश्चित (सर्टेन) चल रहे प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए पेशेवरों (प्रोफेशनल) को कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर काम पर रखा जाता है। फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट पर दोनों पक्षों द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए विधिवत हस्ताक्षर किए जाते हैं। परियोजना के पूरा होने पर, उन्हें नियमित एम्प्लॉयमेंट में समाहित किया जा सकता है। भारत में कई संगठन किसी व्यक्ति को एक वर्ष की अवधि के लिए भर्ती करते हैं और एक वर्ष के बाद उन्हें पेरोल पर ले जाते हैं। परमानेंट एम्प्लॉयमेंट की पेशकश करने से पहले संबंधित प्रोफेशनल की क्षमता हमेशा देखी जाती है।

भारत में, फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट के संबंध में लेबर लॉज के तहत कोई प्रावधान (प्रोविजन) मौजूद नहीं है। इसे देखते हुए, इंडस्ट्रियल एम्प्लॉयमेंट एक्ट (स्थायी (स्टैंडिंग) आदेश), 1946 एक ऐसी श्रेणी (कैटेगरी) का परिचय देता है जो एक कंपनी को परिधान निर्माण (अप्परल मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र में लोगों की भर्ती करने के लिए लचीलापन (फ्लेक्सिबिलिटी) देता है, क्योंकि इसकी बहुत ही बुनियादी मौसमी प्रकृति (बेसिक सीजनल नेचर) लगातार बढ़ती और अप्रत्याशित मांगों (अनप्रेडिक्टेबल डिमांड) को पूरा करने के लिए है। 16 मार्च 2018 को, एफटीसी को पूरी तरह से एक नई कांसेप्ट के रूप में बताए हुए एक्ट में अमेंडमेंट किया गया और राष्ट्रीय स्तर पर फलते-फूलते मौसमी विनिर्माण उद्योगों को लाभ हुआ।

एम्प्लॉयमेंट के प्रकारों को नीचे दिए गए रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है (टाइप्स ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट कैन बी कैटेगराईज्ड एज बिलो)

  • स्थायी या निश्चित अवधि के कर्मचारी (परमानेंट ऑर फिक्स्ड टर्म)
  • अस्थायी (टेंपररी)
  • आकस्मिक कर्मचारी (कैजुअल एम्पलॉइज)
  • प्रशिक्षु (एप्रंटाईसेज ऑर ट्रेनीज)
  • परिवीक्षाधीन अधिकारियों (प्रोबेशनर्स)
  • ठेकेदार और उप-ठेकेदार (कॉन्ट्रेक्टर्स ऑर सब-कॉन्ट्रेक्टर्स)
  • बदली

फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट के लाभ (बेनिफिट्स)

नियोक्ता को (टू द एंप्लॉयर्स)

  1. कर्मचारियों से समर्पण (डेडीकेशन) के स्तर में वृद्धि (इंक्रीज) की उम्मीद है।
  2. किसी विशेष विषय के लिए विशेषज्ञ (एक्सपर्ट) ज्ञान रखने वाला उपयुक्त व्यक्ति प्राप्त करना।
  3. एफटीसी की मदद से और प्रोजेक्ट की आवश्यकता के अनुसार कॉन्ट्रैक्ट पर लोगों को काम पर रखने से, यह एक नियोक्ता को बजट और उपलब्ध संसाधनों (रिसोर्सेज) के उपयोग के लिए उपयुक्त पूर्वानुमान (फोरकास्ट) लगाने में मदद करता है।
  4. नियोक्ता को प्रदर्शन (परफॉर्म) करने वाले उम्मीदवारों को उनके प्रदर्शन को देखकर और संतुष्ट होने पर ही पेरोल पर स्थायी आधार (परमानेंट बेसिस) पर लेने का अवसर मिलता है।
  5. इसे और अधिक आकर्षक बनाने की दृष्टि से, नियोक्ता मातृत्व या पितृत्व अवकाश (मैटरनिटी ऑर पैटर्निटी लीव) लाभों को बदल सकता है।

एक कर्मचारी को (टू एन एम्प्लोयी)

  1. एफटीसी वाले कर्मचारियों को अवकाश, वेतन स्तर और काम के माहौल के संबंध में स्थायी कर्मचारियों के समान प्रकार के लाभ और अधिकार प्राप्त हैं।
  2. कभी-कभी, निश्चित अवधि के कर्मचारियों को उनके विशेष गुणों के लिए स्थायी कर्मचारी की तुलना में बेहतर वेतन दिया जाता है। किसी विशिष्ट कार्य को पूर्ण करने के लिए आवश्यक पेशा और योग्यता (एप्टीट्यूड) जरूरी है।
  3. कर्मचारी के प्रदर्शन और संगठन की आवश्यकता के आधार पर फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट को स्थायी एम्प्लॉयमेंट में कन्वर्ट किया जा सकता है।

निश्चित अवधि अनुबंधों के तहत कर्मचारी अधिकार (एम्प्लोयिज राइट्स अंडर फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट्स):

  1. पेंशन: एक फिक्स्ड टर्म के कर्मचारी को एक स्थायी कर्मचारी को दी जाने वाली विभिन्न पेंशन योजनाओं तक पहुंच की पेशकश (एक्सेस) की जानी चाहिए। यह नियोक्ता के पक्ष में काम करता है क्योंकि उसे एफटीसी कर्मचारी को कोई अतिरिक्त मुआवजा (एडिशनल कंपनसेशन) प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है।
  2. छुट्टी की पात्रता (हॉलिडे एंटायटलमेंट): नियमित कर्मचारियों या कर्मचारी किसी कंपनी में शामिल होने की तारीख से वार्षिक अवकाश (एन्युआल लीव) के हकदार होते हैं। एफटीसी कर्मचारियों (पूर्ण और अंशकालिक (पार्ट टाइम) दोनों) को उनकी वार्षिक पात्रता के 1/12 हिस्से की दर से मासिक अवकाश अग्रिम (मंथली लीव एडवांस) रूप से मिलता है।
  3. गर्भावस्था: वैधानिक मातृत्व अवकाश (स्टेचूटरी मैटरनिटी लीव) का लाभ प्राप्त करने और परमानेंट कर्मचारियों को समान वेतन पाने के लिए फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट के बेसिस पर कर्मचारी होने चाहिए। इस तरह की वैधानिक मातृत्व अवकाश एक फिक्स्ड टर्म के कॉन्ट्रैक्ट की समाप्ति पर समाप्त हो जाती है।

एक निश्चित अवधि के कॉन्ट्रैक्ट और एक स्थायी कॉन्ट्रैक्ट के बीच क्या अंतर है (व्हाट इज द डिफरेंस बिटवीन फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट एंड ए परमानेंट कॉन्ट्रैक्ट)?

फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट 

कर्मचारी वह व्यक्ति होते हैं जिनका किसी कंपनी के साथ एक एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट होता है जो किसी विशेष तिथि पर या किसी विशिष्ट कार्य के पूरा होने पर समाप्त होता है। फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट में उन कर्मचारियों को शामिल किया गया है जिनका कॉन्ट्रैक्ट एक फिक्स्ड तिथि पर या एक निश्चित प्रोजेक्ट के पूरा होने पर समाप्त हो जाएगा। एक फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट कई महीनों से लेकर एक वर्ष या उससे अधिक तक अलग हो सकता है।

स्थायी निश्चित अवधि का कॉन्ट्रैक्ट (परमानेंट फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट)

फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट को स्वचालित (ऑटोमैटिकली) रूप से एक स्थायी कॉन्ट्रैक्ट बनाया गया माना जाएगा, जो नियोक्ता के अधिकार को उचित नोटिस पर एक अच्छे कारण के लिए समाप्त करने का अधिकार बनाए रखता है। यदि एक फिक्स्ड टर्म के कर्मचारी व्यवसाय के साथ 4 साल तक पहुंचते हैं, तो वह स्वचालित रूप से स्थायी कर्मचारी बन सकते हैं।

वर्तमान स्थिति में फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्टों की आवश्यकता क्यों है?

टेक्सटाइल और लेदर आधारित उद्योगों जैसे कुछ इंडस्ट्रियल सेक्टर में काम की मौसमी प्रकृति के कारण, जनशक्ति (मैनपॉवर) की आवश्यकता अलग-अलग डिग्री में होती है। ऐसे उत्पादों की मांग में हमेशा उतार-चढ़ाव होता है, जो ग्राहकों, त्योहारों आदि पर निर्भर करता है। कभी-कभी उत्पाद बहुत तेजी से पुराने हो जाते हैं, जिससे उपभोक्ताओं (कंज्यूमर्स) में ऐसे उत्पादों को खरीदने के लिए कोई उत्सुकता नहीं रह जाती है, जिसके परिणामस्वरूप बाजार में उनकी कोई मांग (डिमांड) नहीं होती है।

कभी-कभी बाजार में कुछ उत्पादों की भारी मांग होती है। ऐसी स्थितियों में, उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग से निपटने (टैकल) के लिए, नियोक्ता हमेशा समय पर सामग्री या अंतिम उत्पाद की आपूर्ति के लिए एक प्रतिभाशाली कार्यबल (टैलेंटेड वर्कफॉर्स) से सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली सेवाओं का लाभ उठाने की कोशिश करते हैं। वह फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्टों को वरीयता (प्रिफरेंस) देते हैं, जो उनके खर्चों को नियंत्रण में रखते हैं और मांग में वृद्धि या कमी से निपटते हैं।

नियोक्ता यदि अपने मौजूदा कर्मचारी को निश्चित अवधि के कर्मचारी में बदलना चाहता है (एंप्लॉयर ईफ विशेस टू कन्वर्ट हिज़ एग्जिस्टिंग एम्प्लॉयी इंटू फिक्स्ड टर्म वर्कर)

इंडस्ट्रियल एम्प्लॉयमेंट (स्टैंडिंग ऑर्डर्स) सेंट्रल (अमेंडमेंट) रूल्स, 2018 के नियम 3A में कहा गया है कि नियोक्ता मौजूदा स्थायी कामगारों के पदों को अपने औद्योगिक प्रतिष्ठान में परिवर्तित नहीं करेगा। निश्चित अवधि के कर्मचारियों के लिए, समाप्ति नोटिस देना अनिवार्य नहीं है क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट स्वतः समाप्त हो जाता है या कॉन्ट्रैक्ट की तारीख को रद्द हो जाता है।

नए प्रावधान में नियम 3(3A) नियोक्ता को अपने किसी भी स्थायी कर्मचारी को फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट में बदलने से रोकता है। यह अनिवार्य रूप से नियोक्ता या संगठन के प्रबंधन को स्थायी श्रमिकों के शोषण से ऐसी प्रथाओं को लागू करने से रोकने के लिए व्यवहार में लाया जाता है।

निश्चित अवधि के कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें समाप्त हो रही हैं (द कंडीशंस ऑफ़ फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट कमिंग टू एन एंड)

  • जिन शर्तों के तहत नियोक्ता कॉन्ट्रैक्ट समाप्त करना चाहता है, उन्हें कॉन्ट्रैक्ट के तहत प्रदान किया जाना चाहिए। ऐसी घटना में, न्यूनतम (मिनिमम) नोटिस:
    • यदि व्यक्ति ने एक महीने या उससे अधिक समय तक काम किया है तो एक सप्ताह आवश्यक है।
    • यदि व्यक्ति ने 2 वर्ष या उससे अधिक समय तक कार्य करना जारी रखा है तो प्रत्येक वर्ष के लिए एक सप्ताह।
    • इसे पूरा करने के लिए यह नियोक्ताओं पर भी लागू होता है।
  • नियोक्ता और कर्मचारी के बीच एक फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट में यह एक शर्त है कि कॉन्ट्रैक्ट अवधि की समाप्ति से पहले लिखित नोटिस के आधार पर कॉन्ट्रैक्ट को समाप्त करने के लिए किसी भी पक्ष को अनुमति देने वाला क्लॉज शामिल होता है। कॉन्ट्रैक्ट के पूरा होने पर, यह सहमत तिथि पर समाप्त होता है और नियोक्ता को नोटिस देने की आवश्यकता नहीं होती है। यदि काम दो साल के एम्प्लॉयमेंट के बाद समाप्त हो जाता है, तो कर्मचारी अतिरेक भुगतान (रेडनडंसी पेमेंट) और स्थायी कर्मचारी के लिए लागू समान अधिकारों के लिए पात्र हो सकता है।
  • किसी भी अन्य एग्रीमेंट की तरह, एक फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट में भी एक प्रावधान होता है जिसमें नियोक्ता विशिष्ट मानदंडों (क्राइटेरिया) के आधार पर फिक्स्ड तारीख से पहले कॉन्ट्रैक्ट को समाप्त कर सकते हैं।
  • एक फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट में एक समाप्ति तिथि निर्धारित करने वाला एम्प्लॉयमेंट, लेबर लॉज के उद्देश्यों के लिए समाप्ति को बर्खास्तगी (डिस्मिसल) माना जाता है।
  • यदि कोई कर्मचारी किसी फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट को उसकी समाप्ति तिथि या समाप्ति से पहले समाप्त करना चाहता है, तो वह नियोक्ता को हर्जाने (डैमेजेस) का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी (लाएबल) हो सकता है।

निश्चित अवधि के कॉन्ट्रैक्ट के संबंध में चिंताएं (कंसर्न  रिगार्डिंग फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट)

  • फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट की मुख्य चिंताओं में से एक स्माल और मीडियम साइज एंटरप्राइज (एमएसएमई) हैं क्योंकि वह फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट का विकल्प (ऑप्शन) नहीं चुन सकते क्योंकि वे कम लाभ मार्जिन के साथ काम करते हैं। बल्कि, उनकी पसंद कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स से चिपके रहना है, जिन्हें वे कम वेतन दे सकते हैं। और यह प्रमुख मुद्दों में से एक बन जाता है क्योंकि स्माल और मीडियम साइज एंटरप्राइज भारत में उद्योगों का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं।
  • एफटीसी में, नियोक्ताओं को काम पर रखने और नौकरी से निकालने की पूरी छूट मिलती है। कभी-कभी, यह कर्मचारियों को नियोक्ताओं के कदाचार (मालप्रैक्टिस) को सहन करने के लिए मजबूर करता है और अकुशल (अनस्किल्ड) श्रमिक नियोक्ता के अनैतिक (अनस्क्रपलस) कार्यों के प्रति संवेदनशील (वल्नरेबल) हो जाते हैं।
  • कई बार, फिक्स्ड टर्म के श्रमिकों को स्थायी श्रमिकों के समान काम करने की स्थिति प्रदान नहीं की जाती है। यह निश्चित रूप से फिक्स्ड टर्म के श्रमिकों की ओर से अनुचित साबित होता है क्योंकि वे लंबे समय तक काम करते हैं और फिर भी उन्हें स्थायी कर्मचारियों की तुलना में कम वेतन मिलता है। चिंता के कुछ अन्य क्षेत्र अलाउंस, एम्प्लॉयमेंट की समाप्ति, मजदूरी आदि हैं।
  • आम तौर पर, एम्प्लॉयमेंट का कॉन्ट्रैक्ट सेवा के लिए आवश्यक नोटिस अवधि निर्दिष्ट (स्पेसिफाई) करता है यदि कर्मचारी कॉन्ट्रैक्चुआल नोटिस के अंत से पहले इस्तीफा देना और छोड़ना चाहता है; ऐसे मामलों में, नियोक्ता के पास शायद ही कोई विकल्प हो।
  • एफटीसी के नॉन रिनीवल या समाप्ति को कानून की नजर में बर्खास्तगी माना जाता है, जिसका अर्थ है कि एक फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट के तहत काम करने वाला कोई भी कर्मचारी जिसकी दो या अधिक वर्षों की निर्बाध (अनइंटरप्टेड) सेवा है, वह अनुचित बर्खास्तगी के लिए दावा (क्लेम) दायर करने का पात्र है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट कार्य और स्थायी एम्प्लॉयमेंट के बीच मध्य मार्ग प्रदान करता है। कॉन्ट्रैक्चुआल नौकरियों के मामले में लोगों को कई बार मजदूरी या खराब काम करने की स्थिति के मुद्दे का सामना करना पड़ता है। जबकि, स्थायी एम्प्लॉयमेंट में, संगठन कर्मचारियों को काम पर रखने और निकालने के लिए स्वतंत्र नहीं है। फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट की कांसेप्ट के कारण, कुशल श्रमिको को सबसे अधिक फायदा होता हैं और अकुशल या अर्ध-कुशल श्रमिकों को नियोक्ताओं की अनुचित (अनफेअर) प्रथाओं को सहन करने के लिए मजबूर किया जाता है। हम यह कहकर निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि दोनों प्रकार के बीच एक संतुलन बनाने की जरूरत है, जिससे कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए स्वस्थ काम की स्थिति पैदा हो सके।

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