संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882 के तहत सूचना का सिद्धांत 

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Transfer of property act

यह लेख पंजाब विश्वविद्यालय के विधि विभाग के Aksshay Sharma द्वारा लिखा गया है। यह लेख प्रासंगिक उदाहरणों के साथ संपत्ति हस्तांतरण (ट्रांसफर) अधिनियम के तहत सूचना का अर्थ बताता है। यह लेख अधिनियम में दिए गए प्रावधान की भाषा को सरल बनाने का भी प्रयास करता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय

संपत्ति के हस्तांतरण के संबंध में से सूचना की अवधारणा संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 (टीपीए) की धारा 3 के तहत दी गई है। सूचना का मतलब है किसी चीज़ का ज्ञान होना यानी किसी चीज़ को जानना। कानून की दृष्टि से इसका अर्थ है किसी तथ्य का ज्ञान। इसका उपयोग दो पक्षों के परस्पर विरोधी दावों पर निर्णय लेने के लिए किया जाता है। कानून में, किसी तथ्य की सूचना या जानकारी किसी के कानूनी अधिकारों और देनदारियों को प्रभावित करती है। 

टीपीए की धारा 3 के तहत निम्नलिखित सूचना हो सकती है; अर्थात “वास्तविक या व्यक्त सूचना” या “रचनात्मक (कंस्ट्रक्टिव) सूचना”, या इसे तब हस्तांतरी (ट्रांसफरी) पर लगाया जा सकता है जब तथ्य की जानकारी उसके एजेंट द्वारा प्राप्त की गई हो। 

व्यक्त या वास्तविक सूचना 

वास्तविक सूचना का अर्थ है जब कोई व्यक्ति वास्तव में किसी तथ्य के अस्तित्व के बारे में जानता है। यह तथ्य संपत्ति में हित रखने वाले व्यक्ति द्वारा बातचीत के दौरान दी गई निश्चित जानकारी होनी चाहिए। तथ्य की जानकारी अफवाह नहीं होनी चाहिए और इसलिए संपत्ति में हित रखने वाला व्यक्ति ऐसी जानकारी से बंधा नहीं है। 

दूसरे शब्दों में, वास्तविक सूचना तब होती है जब जानकारी ऐसी होती है कि यह एक तर्कसंगत व्यक्ति के दिमाग पर काम करेगी और उसे अर्जित ज्ञान के आधार पर कार्य करने के लिए प्रेरित करेगी। 

रचनात्मक सूचना 

धारा 3 के अनुसार, कहा जाता है कि किसी व्यक्ति को किसी तथ्य की सूचना है, जिसे वह जान सकता था, लेकिन अपनी “घोर लापरवाही” या ” पूछताछ या जांच करने से जानबूझकर प्रविरत (एब्सटेंशन)” के कारण नहीं जानता है। हालाँकि, यह ऐसा ज्ञान है जिसे सामान्य विवेक वाले व्यक्ति को जानना चाहिए। दूसरे शब्दों में, तथ्यों की रचनात्मक सूचना वे तथ्य हैं जिन्हें एक व्यक्ति को जानना चाहिए था, लेकिन घोर लापरवाही या जानबूझकर प्रविरत के कारण वह इसे नहीं जानता है। 

इस प्रकार रचनात्मक सूचना में, एक कानूनी धारणा है, कि एक व्यक्ति को एक तथ्य को ऐसे जानना चाहिए जैसे कि वह वास्तव में इसे जानता हो। 

इसलिए रचनात्मक सूचना उन तथ्यों का ज्ञान है जो अदालत किसी व्यक्ति पर थोपती है। यदि परिस्थितियाँ इंगित करती हैं कि एक उचित रूप से विवेकशील व्यक्ति को हस्तांतरण के लेन-देन से संबंधित किसी विशेष तथ्य को जानना चाहिए, तो यह माना जाएगा कि वह इसे जानता है। 

उदाहरण : A एक पंजीकृत (रजिस्टर्ड) दस्तावेज़ द्वारा B को घर बेचता है। बाद में वह C के साथ उसी घर को बेचने के लिए एक अनुबंध में प्रवेश करता है। कानून C पर रजिस्ट्रार के कार्यालय में रजिस्टरों का निरीक्षण (इंस्पेक्शन) करने का कर्तव्य लगाता है, और यदि वह ऐसा करता है, तो उसे B के पक्ष में बिक्री के बारे में पता चल जाएगा। रजिस्टर का निरीक्षण करने में विफलता C के हितों के लिए हानिकारक होगी, क्योंकि उसे पंजीकृत लेनदेन की रचनात्मक सूचना दी जाएगी। 

पूछताछ या जांच करने से प्रविरत करना 

जानबूझकर प्रविरत को जोन्स बनाम स्मिथ (1841)  के मामले की टिप्पणियों से समझा जा सकता है

“ऐसे मामले जिनमें अदालत अपने सामने मौजूद सबूतों से संतुष्ट है कि जिस पक्ष पर आरोप लगाया गया है वह जानबूझकर जांच करने से बचने के उद्देश्य से जांच से दूर रहा है। “

जानबूझकर प्रविरत के लिए, कुछ शुरुआती बिंदु, कुछ संकेत या संदेह होना चाहिए जिसके लिए लेनदेन के बारे में सच्चाई सामने लाने के लिए कुछ जांच की आवश्यकता होगी। यदि ऐसे मामलों में हस्तांतरी वास्तविक सच्चाई को न जानने के कपटपूर्ण इरादे से जांच करने में विफल रहता है, तो अदालत यह मान लेगी कि हस्तांतरी को उस तथ्य के बारे में कुछ जानकारी थी। 

उदाहरण के लिए, यदि किसी संपत्ति को स्वामित्व विलेख (टाइटल डीड) जमा करके बैंक में बंधक  (मॉर्गेज) करता है और बंधककर्ता (मॉर्गेजर) बाद में बंधक के तथ्य का खुलासा किए बिना संपत्ति को एक महिला को बेच देता है, और वह स्वामित्व विलेख का निरीक्षण करने पर जोर नहीं देती है, तो यह माना जाएगा कि खरीदार जानबूझकर पूछताछ करने से प्रविरत रहा और उस पर बंधक की रचनात्मक सूचना थोप दी जाएगी। 

घोर लापरवाही

रचनात्मक सूचना वहां भी लागू होती है जहां हस्तांतरी को कुछ तथ्य पता होना चाहिए था, लेकिन घोर लापरवाही के कारण वह इससे अनजान है। हडस्टन बनाम विनी में घोर लापरवाही को समझाया गया था अर्थात “घोर लापरवाही का मतलब केवल लापरवाही नहीं है”। इसका अर्थ ऐसी “गंभीर प्रकृति” की लापरवाही, है जो “स्पष्ट जोखिमों के प्रति मानसिक उदासीनता” के दृष्टिकोण को इंगित करती है।

उदाहरण के लिए, यदि हस्तांतरी कागज पर यह पढ़ने में विफल रहता है कि संपत्ति भार (चार्ज) के अधीन है, जबकि कागजात उसके कब्जे में हैं, तो अदालत बिना किसी सूचना की याचिका पर विचार नहीं करेगी और भार के ज्ञान या सूचना को लागू कर देगी। 

इस प्रकार रचनात्मक सूचना हस्तांतरी द्वारा हस्तांतरण से संबंधित लेनदेन के संबंध में उचित परिश्रम की मांग करती है। 

उदाहरण : A ने अपनी संपत्ति B को 10 लाख में बेच दी और उस पर कब्ज़ा B को सौंप दिया। B अनुबंध के समापन के समय तुरंत 5 लाख का भुगतान करता है और शेष 5 लाख 6 महीने के बाद देने का वादा करता है। 

तथ्य यह है कि 5 लाख की शेष राशि का भुगतान B द्वारा A को किया जाना है, स्वामित्व विलेख में लिखा गया है। B अंततः A को शेष राशि का भुगतान करने में विफल रहता है और स्वामित्व विलेख को C के पास जमा करके इस संपत्ति को बंधक (मॉर्गेज) कर देता है और स्वामित्व विलेख के आधार पर C से 5 लाख का ऋण प्राप्त करता है। 

B, C को भी भुगतान करने में विफल रहता है और यह संपत्ति जो C के पास बंधक की गई थी, C द्वारा बेच दी जाती है। 

अब A अपने 5 लाख की वसूली के लिए C के विरुद्ध वाद दायर करता है। यह प्रश्न कि C उत्तरदायी है या नहीं, C पर रचनात्मक सूचना लगाकर तय किया जाएगा। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि स्वामित्व विलेख में पहले ही लिखा गया था कि B को A को शेष राशि का भुगतान करना होगा और ये स्वामित्व विलेख C के कब्जे में थी और इन स्वामित्व विलेख के आधार पर B को ऋण दिया गया था। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि C को स्वामित्व विलेख की प्रकृति के बारे में “जानना होगा”। 

इसके अलावा, C को एक उचित विवेकपूर्ण व्यक्ति के रूप में इस तथ्य पर ध्यान देने के लिए स्वामित्व विलेख की सावधानीपूर्वक जांच करनी चाहिए कि B को A को 5 लाख का भुगतान करना है। 

यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है तो उसने टीपीए की धारा 3 के तहत “घोर लापरवाही” की है। इसके अलावा, यदि उसने विलेख की जांच की थी और A को भुगतान के तथ्य का पता लगाया था, तो उसे आगे की जांच करनी चाहिए थी। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो वह टीपीए की धारा 3 के तहत “जानबूझकर पूछताछ या तलाशी से प्रवरित करने” का दोषी है। 

इस प्रकार, हस्तांतरी पर रचनात्मक सूचना लगाया जाना है या नहीं, यह लेन-देन के आसपास की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इस प्रकार यह तथ्य का प्रश्न है न कि कानून का प्रश्न है।

इसी तरह, जहां बैंक स्वामित्व विलेख लौटाता है, जो कि उसके द्वारा दिए गए ऋण के खिलाफ उसके पास एकमात्र प्रतिभूति (सिक्योरिटी) है, और मालिक ओवरड्राफ्ट सुरक्षित करने के लिए उसी स्वामित्व विलेख को दूसरे बैंक के पास बंधक रखता है, तो पहला बैंक शीर्षक विलेख को अलग करने में घोर लापरवाही का दोषी है (लॉयड्स बैंक बनाम पीएफ गुज़दार एंड कंपनी)।

रचनात्मक सूचना के रूप में दस्तावेज़ का पंजीकरण 

धारा 3 के स्पष्टीकरण 1 के अनुसार, यदि अचल संपत्ति से संबंधित लेनदेन को कानून के तहत एक पंजीकृत लिखत (इंस्ट्रूमेंट) द्वारा निष्पादित (एग्जिक्यूट) करने की आवश्यकता है, तो दस्तावेज़ का पंजीकरण रचनात्मक सूचना के रूप में माना जाएगा। ऐसे लिखत की सूचना ऐसे लिखत के पंजीकरण की तारीख से मानी जाएगी। 

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पंजीकरण की सूचना केवल तभी दी जाती है जब यह कानून द्वारा आवश्यक हो। यदि कानून के तहत पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, तो पंजीकरण का तथ्य टीपीए के तहत सूचना में नहीं आता है। 

A एक पंजीकृत दस्तावेज़ द्वारा B को घर बेचता है। बाद में वह C के साथ उसी घर को बेचने के लिए एक अनुबंध में प्रवेश करता है। कानून C पर रजिस्ट्रार के कार्यालय में रजिस्टरों का निरीक्षण करने का कर्तव्य लगाता है, और यदि वह ऐसा करता है, तो उसे B के पक्ष में बिक्री के बारे में पता चल जाएगा। रजिस्टर का निरीक्षण करने में विफलता C के हितों के लिए हानिकारक होगी, क्योंकि उसे पंजीकृत लेनदेन की रचनात्मक सूचना दी जाएगी। इस प्रकार सभी खरीदार अनिश्चितताओं और किसी भी प्रकार के जोखिम से बचने के लिए रजिस्टर में दर्ज शीर्षक की जांच करने में परिश्रम करने के लिए कानूनी दायित्व के तहत हैं। 

धारा 3 के आगे स्पष्टीकरण 1 में कहा गया है कि पंजीकरण की रचनात्मक सूचना केवल तभी होगी जब 3 शर्तें पूरी होंगी:

  1. यह दस्तावेज़ पंजीकरण अधिनियम, 1908 के अनुसार पंजीकृत किया गया था।
  2. यह कि लिखत या ज्ञापन (मेमोरेंडम) को पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 51 के तहत रखी गई पुस्तक या रजिस्टरों में विधिवत दर्ज किया गया है।
  3. और यह कि लेनदेन का विवरण पंजीकरण अधिनियम की  धारा 55 के तहत सूचकांक (इंडेक्स) में सही ढंग से दर्ज किया गया है ।

सूचना के रूप में वास्तविक कब्ज़ा 

धारा 3 के स्पष्टीकरण 2 के अनुसार, अचल संपत्ति प्राप्त करने वाले व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा की उसे किसी अन्य व्यक्ति के स्वामित्व की सूचना थी, जिसके पास उस समय वास्तव में संपत्ति है। 

इसका मतलब यह है कि जब अंतरणकर्ता (ट्रांसफर)/मालिक के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के पास संपत्ति का वास्तविक कब्जा है, तो उस संपत्ति के संभावित खरीदार के लिए उन सभी अधिकारों का पता लगाना आवश्यक है, जो वास्तविक कब्जे वाले व्यक्ति के पास संपत्ति वास्तव में हैं। 

इस प्रकार यह अगले खरीदार का कर्तव्य है कि वह उस व्यक्ति से कब्जे की सटीक प्रकृति के बारे में पूछताछ करे, जिसके पास उस समय वास्तव में संपत्ति है। 

उदाहरण के लिए, A अपनी संपत्ति को 10 वर्षों के लिए एक पंजीकृत पट्टा (लीज) विलेख द्वारा B को किराए पर देता है। उक्त अवधि की समाप्ति से पहले, A C के साथ एक अन्य अनुबंध में प्रवेश करता है, जिसके द्वारा वह इसे प्रतिफल (कंसीडरेशन) के लिए C को बेचने के लिए सहमत होता है। अब C को किरायेदार (B) से B के कब्जे की प्रकृति के बारे में पूछताछ करनी चाहिए, क्योंकि C भी B के स्वामित्व की रचनात्मक सूचना से बंधा होगा। 

हालाँकि, कब्जे की रचनात्मक सूचना के लिए, कब्जा वास्तविक कब्ज़ा होना चाहिए न कि रचनात्मक कब्ज़ा। उदाहरण के लिए, A, B को जमीन बेचने का अनुबंध करता है, और B किसी अन्य व्यक्ति को जमीन पर कब्जा दे देता है। A आगे C को जमीन बेचता है। इस मामले में C, B के हित के सूचना से प्रभावित नहीं होता है। 

एजेंट की सूचना 

एजेंसी के कानून का सामान्य सिद्धांत यह है कि एक एजेंट अपने प्रिंसिपल के स्थान पर खड़ा होता है, इस प्रकार एजेंट द्वारा तथ्य की सूचना को प्रिंसिपल द्वारा सूचना के रूप में माना जाएगा। यह कानूनी कहावत क्वि फैसिट पर एलियम फैसिट अर्थात जो दूसरे के माध्यम से करता है, वह वह स्वयं के द्वारा करता हैपर आधारित है। 

किसी तथ्य की सूचना प्रिंसिपल पर लगाई जाएगी भले ही उसके एजेंट ने वास्तव में वादी को तथ्य संप्रेषित (कम्यूनिकेट) किया हो या नहीं। इसके पीछे सिद्धांत यह है कि किसी भी व्यक्ति को केवल एक एजेंट नियुक्त करके सूचना के सिद्धांत से छुटकारा पाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह निर्दोष पक्ष की रक्षा के लिए है। गोकुल दास बनाम ईस्टर्न मॉर्गेज एंड कंपनी में यह माना गया कि किसी वकील द्वारा प्राप्त ज्ञान या जानकारी, किसी भी मामले में, उसे भी बाध्य करेगी। 

हालाँकि, एजेंट का ज्ञान प्रिंसिपल के ज्ञान के रूप में काम नहीं करेगा, जहाँ एजेंट धोखाधड़ी से प्रिंसिपल से तथ्य छिपाता है। लेकिन केवल तथ्य छुपाने से यह पहलू बचाव नहीं माना जाएगा। बचाव के रूप में कार्य करने के लिए, प्रिंसिपल पर रचनात्मक सूचना लगाने वाले पक्ष को एजेंट के साथ मिलकर काम करना चाहिए या एजेंटों की धोखाधड़ी के बारे में पता होना चाहिए। 

निष्कर्ष 

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि रचनात्मक सूचना कैविएट एम्प्टर (खरीददार की जागरूकता) के नियम की अभिव्यक्ति है। ऐसा इसलिए है क्योंकि रचनात्मक सूचना के अनुसार, एक व्यक्ति को एक तथ्य को ऐसे जानना चाहिए जैसे कि वह वास्तव में इसे जानता हो। यह माना गया कि संपत्ति हस्तांतरण में एक हस्तांतरी को अपने हितों की सुरक्षा के लिए कुछ तथ्यों का पता लगाना और सत्यापित (वेरिफाई) करना चाहिए। इस प्रकार उसे लेन-देन की प्रकृति के बारे में पता होना चाहिए। ये तथ्य संपत्ति या हस्तांतरणकर्ता से संबंधित हो सकते हैं, जैसे कि क्या संपत्ति किसी भी भार या बाधा से मुक्त है या क्या हस्तांतरणकर्ता संपत्ति को हस्तांतरित करने में सक्षम है या नहीं। 

यदि संपत्ति पर भार है तो हस्तांतरणकर्ता को भार की सटीक प्रकृति का पता लगाना चाहिए। कानून इसे हस्तांतरण करने वाले का कर्तव्य मानता है, एक उचित विवेकपूर्ण व्यक्ति के रूप में तथ्यों का पता लगाने के लिए उचित रूप से सतर्क और मेहनती होना, हस्तांतरणकर्ता के कब्जे में संपत्ति से संबंधित दस्तावेजों का निरीक्षण करना, संबंधित व्यक्तियों का निरीक्षण करना, यहां तक ​​कि यदि आवश्यक हो तो प्रासंगिक वैधानिक अधिकारियों के साथ भी निरीक्षण करना चाहिए। ऐसा न करने पर रचनात्मक सूचना लगाई जाएगी। 

संदर्भ

  • एसएन शुक्ला द्वारा संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम
  • संपत्ति कानून, पूनम प्रधान सक्सेना
  • मुल्ला, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 13वां संस्करण, डॉ. पूनम प्रधान सक्सेना

 

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