कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 177

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Companies Act 2013

यह लेख कर्नाटक स्टेट लॉ यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल के छात्र Naveen Talwar द्वारा लिखा गया है। इस लेख में कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 177 पर विस्तार से चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

परिचय

एक पारदर्शी जवाबदेही प्रणाली अच्छे कॉर्पोरेट प्रशासन की वजह से होती है। भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहारा, सत्यम और एनरॉन सहित कई कॉर्पोरेट घोटालों के बाद, निवेशकों का विश्वास हासिल करके, देश की वित्तीय स्थिति को बढ़ावा देने के लिए कॉर्पोरेट प्रशासन तेजी से महत्वपूर्ण हो गया। वित्तीय विवरणों की सटीकता सुनिश्चित करने के साधन के रूप में, लेखापरीक्षा समिति (ऑडिट कमीटी) की भूमिका आवश्यक है। कंपनी के मंडल (बोर्ड) ने काम को संभालने के लिए विभिन्न समितियों की स्थापना करके इस अधिकार को प्रत्यायोजित (डेलीगेट) किया, जिसमें अधिक विशेषज्ञता और तकनीकी निर्णयों की आवश्यकता होती है क्योंकि मंडल के लिए हर निर्णय को उचित परिश्रम के साथ लेना और उसे आवश्यक समय और प्रयास देना मुश्किल होता है। नतीजतन, मंडल लेखापरीक्षा समिति की स्थापना करता है, जिसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि एक कंपनी निवेशकों के साथ-साथ तीसरे पक्ष को सटीक, पर्याप्त और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करती है जो स्वतंत्र अध्ययन करते हैं जो कंपनी के प्रदर्शन का आकलन करते हैं। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 177 एक लेखापरीक्षा समिति के गठन का प्रावधान करती है, जिस पर इस लेख में विस्तार से चर्चा की गई है।

लेखापरीक्षा समिति क्या है

लेखापरीक्षा समिति सार्वजनिक कंपनियों में कॉरपोरेट शासन प्रणाली का एक मूलभूत तत्व है। इसका उद्देश्य कंपनी की आंतरिक नियंत्रण प्रक्रियाओं, वित्तीय रिपोर्टिंग और घोषणाओं की विश्वसनीयता में जनता के विश्वास को बढ़ावा देना है। इसकी मुख्य जिम्मेदारियां प्रकटीकरण और वित्तीय रिपोर्टिंग हैं। यह लेखापरीक्षक की निष्पक्षता, प्रभावशीलता और प्रदर्शन का मूल्यांकन और रिकॉर्ड करता है। यह वित्तीय विवरण और लेखापरीक्षा रिपोर्ट की भी जांच करता है।

कंपनी अधिनियम, 2013 के अध्याय XII (धारा 173-195) में निदेशक मंडल (बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स) की बैठकों और मंडल की शक्तियों को नियंत्रित करने वाले प्रावधान शामिल हैं, और कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 177 में विशेष रूप से लेखापरीक्षा समिति का उल्लेख है। कंपनी (मंडल की बैठकें और उसकी शक्तियां) नियम 2014 के नियम 6 के साथ पठित, कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 177 के अनुसार प्रत्येक सूचीबद्ध कंपनी, साथ ही कंपनियों के अन्य निर्दिष्ट वर्गों के पास मंडल की एक लेखापरीक्षा समिति होनी चाहिए।

कंपनी अधिनियम में दिए गए के अलावा, सूचीबद्ध कंपनियां भी लेखापरीक्षा समिति से संबंधित सेबी (सूचीकरण बाध्यताएं और प्रकटीकरण आवश्यकताएं) नियम 2015 के विनियम (रेगुलेशन) 18 की आवश्यकताओं के अधीन हैं।

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 177

अधिनियम की धारा 177 और कंपनी (मंडल की बैठकें और शक्तियों) नियम, 2014 के नियम 6 के अनुसार कंपनियों के निम्नलिखित वर्ग और प्रत्येक सूचीबद्ध कंपनी के लिए मंडल की एक लेखापरीक्षा समिति होना आवश्यक है:

  1. दस करोड़ रुपये की न्यूनतम चुकता पूंजी (कैपिटल) वाली सभी सार्वजनिक कंपनियां।
  2. कम से कम एक सौ करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली सभी सार्वजनिक कंपनियां।
  3. कुल बकाया ऋण, उधार, डिबेंचर, या पचास करोड़ रुपये से अधिक जमा वाली सभी सार्वजनिक कंपनियाँ।

इस नियम के उद्देश्य के लिए चुकता शेयर पूंजी, टर्नओवर, बकाया ऋण, उधार, डिबेंचर, या जमा राशियां, जो सबसे हाल ही में लेखापरीक्षित वित्तीय विवरणों की तारीख पर मौजूद हैं, को ध्यान में रखा जाएगा।

लेखापरीक्षा समिति की संरचना

कंपनी अधिनियम के अनुसार

2013 के कंपनी अधिनियम की धारा 177 (2) में कहा गया है कि लेखापरीक्षा समिति में कम से कम तीन निदेशक होने चाहिए, जिनमें स्वतंत्र निदेशकों का बहुमत होगा। लेखापरीक्षा समिति के अध्यक्ष और अधिकांश सदस्य वित्तीय विवरणों को पढ़ने और समझने में सक्षम होंगे।

सेबी (एलओडीआर) विनियम, 2015 के विनियम 18 के अनुसार

लेखापरीक्षा समिति में कम से कम तीन निदेशक होने चाहिए। स्वतंत्र निदेशकों को लेखापरीक्षा समिति का कम से कम दो-तिहाई हिस्सा बनाना चाहिए। यदि सूचीबद्ध इकाई के पास बकाया एसआर इक्विटी शेयर हैं, तो केवल स्वतंत्र निदेशक ही लेखापरीक्षा समिति में काम कर सकते हैं। लेखापरीक्षा समिति में ऐसे सदस्य शामिल होने चाहिए जो सभी वित्तीय रूप से साक्षर हों और कम से कम एक व्यक्ति जिसके पास लेखांकन या वित्तीय प्रबंधन के संबंधित क्षेत्र में विशेषज्ञता हो। लेखापरीक्षा समिति का अध्यक्ष एक स्वतंत्र निदेशक होगा। लेखापरीक्षा समिति के सचिव कंपनी सचिव होंगे।

लेखापरीक्षा समिति का पुनर्गठन

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 177(3) प्रदान करती है कि कंपनी अधिनियम के लागू होने से ठीक पहले मौजूद कंपनी की प्रत्येक लेखापरीक्षा समिति को अधिनियम के कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) के एक वर्ष के भीतर पुनर्गठित किया जाना चाहिए।

लेखापरीक्षा समिति के कार्य

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 177(4) के अनुसार, प्रत्येक लेखापरीक्षा समिति को मंडल द्वारा निर्धारित संदर्भ की लिखित शर्तों के अनुसार काम करना चाहिए, जिसमें निम्नलिखित को शामिल होना चाहिए: –

  1. कंपनी के लेखा परीक्षकों की नियुक्ति, पारिश्रमिक (रिम्यूनरेशन) और नियुक्ति की शर्तों के लिए सुझाव।
  2. लेखा परीक्षक की स्वतंत्रता और प्रदर्शन, साथ ही साथ लेखा परीक्षा प्रक्रिया की दक्षता (एफिशिएंसी) की जांच और निगरानी करना।
  3. लेखापरीक्षा  रिपोर्ट और वित्तीय विवरणों की जांच;
  4. संबंधित पक्षों के साथ कंपनी के लेन-देन की स्वीकृति या बाद में कोई संशोधन।
  5. इंटर-कॉर्पोरेट निवेश और ऋण का परीक्षण।
  6. आवश्यकतानुसार कंपनी के उपक्रमों (अंडरटेकिंग) या संपत्तियों का मूल्यांकन।
  7. आंतरिक वित्तीय नियंत्रणों और जोखिम प्रबंधन प्रणालियों का मूल्यांकन।
  8. ओपन ऑफर और संबंधित मामलों के माध्यम से जुटाई गई धनराशि के अंतिम उपयोग की निगरानी करना।

इसके अलावा, 2014 के कंपनी (मंडल की बैठकें और इसकी शक्तियाँ) नियमों के नियम 6A में उल्लिखित शर्तों के अधीन, लेखापरीक्षा समिति कंपनी के प्रस्तावों में शामिल किए जाने वाले संबंधित पक्ष लेनदेन के लिए सर्वग्राही अनुमोदन (ओमनिबस अप्रूवल) भी दे सकती है। यदि लेखापरीक्षा समिति धारा 188 द्वारा शामिल नहीं किए गए लेनदेन को मंजूरी नहीं देती है, तब भी उसे मंडल को सिफारिशें करनी चाहिए।

लेन-देन जिसमें 1 करोड़ रुपये तक की राशि शामिल है, कंपनी के एक निदेशक द्वारा लेखापरीक्षा समिति के अनुमोदन के बिना किया गया है और लेन-देन की तारीख के तीन महीने के भीतर लेखापरीक्षा समिति द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है, तो लेखापरीक्षा समिति के विवेक पर शून्य हो सकता है। हालाँकि, यदि लेन-देन में किसी निदेशक के संबंधित पक्ष शामिल है या किसी अन्य निदेशक द्वारा अधिकृत (ऑथराइज्ड) है, तो संबंधित निदेशक को लेन-देन के परिणामस्वरूप हुए किसी भी नुकसान के लिए कंपनी को क्षतिपूर्ति करनी होगी। हालांकि, धारा 188 में निर्दिष्ट लेनदेन के अलावा होल्डिंग कंपनी और इसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी के बीच लेनदेन को इस खंड के प्रावधानों से छूट दी गई है।

लेखापरीक्षा समिति की शक्तियाँ

कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 177(5) और 177(6) लेखापरीक्षा समिति की निम्नलिखित शक्तियों का प्रावधान करती हैं:

  1. लेखापरीक्षा समिति, मंडल के सामने वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने से पहले, लेखापरीक्षकों से आंतरिक नियंत्रण तंत्र, लेखापरीक्षा के दायरे, उनकी टिप्पणियों सहित, और वित्तीय विवरणों की समीक्षा (रिव्यू) पर उनकी राय पूछने की शक्ति रखती है।
  2. लेखापरीक्षा समिति कंपनी के प्रबंधन, बाहरी और आंतरिक लेखापरीक्षकों, और लेखापरीक्षकों से किसी भी प्रासंगिक मुद्दों के बारे में बात कर सकती है।
  3. लेखापरीक्षा समिति के पास अपने संदर्भ की शर्तों में सूचीबद्ध मामलों से संबंधित किसी भी मामले को देखने की शक्ति है या जिन्हें मंडल ने संदर्भित किया है, और इस उद्देश्य के लिए समिति बाहरी स्रोतों (सोर्स) से पेशेवर सलाह ले सकती है।
  4. कंपनी के रिकॉर्ड में निहित जानकारी तक पूरी पहुंच प्राप्त करने के लिए शक्ति है।

सेबी (एलओडीआर) विनियम, 2015 के अनुसार

2015 के सेबी (एलओडीआर) विनियमों के अनुसार, लेखापरीक्षा समिति के पास निम्नलिखित शक्तियाँ होंगी:

  1. किसी भी गतिविधि की जांच करना जो इसके संदर्भ की शर्तों के अंतर्गत आती है।
  2. किसी भी कर्मचारी से जानकारी के बारे में पूछताछ करना।
  3. कानूनी या अन्य पेशेवर सलाह प्राप्त करना।
  4. यदि आवश्यक हो, तो यह प्रासंगिक विशेषज्ञता वाले बाहरी लोगों की उपस्थिति को सुरक्षित करेगा।

मंडल की रिपोर्ट में खुलासा

धारा 177(8) के अनुसार, धारा 134(3) के तहत मंडल की रिपोर्ट को लेखापरीक्षा समिति की संरचना का खुलासा करना चाहिए, और अगर मंडल ने लेखापरीक्षा समिति की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं किया, तो ऐसा करने के कारणों को ऐसी रिपोर्ट में खुलासा किया जाना चाहिए।

एक सतर्क तंत्र का गठन

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 177 की उपधारा (9) और (10) और कंपनियों की (मंडल की बैठकें और इसकी शक्तियां) नियम, 2014 के नियम 7 के अनुसार प्रत्येक सूचीबद्ध कंपनी और कंपनियों को अपने निदेशकों और कर्मचारियों के लिए किसी भी उचित चिंताओं या शिकायतों की रिपोर्ट करने के लिए एक सतर्क तंत्र बनाने की आवश्यकता है। इन कंपनियों में वे कंपनियां शामिल हैं जो सार्वजनिक जमा स्वीकार करती हैं और जिन्होंने बैंकों और अन्य सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों से 50 करोड़ रुपये से अधिक का पैसा उधार लिया है।

अन्य कंपनियों के मामले में

अन्य कंपनियों के मामले में, निदेशक मंडल को अन्य निदेशकों और कर्मचारियों के लिए उनकी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए एक सतर्क तंत्र के उद्देश्य से लेखापरीक्षा समिति में काम करने के लिए एक निदेशक नामित करना चाहिए। जिन कंपनियों के लिए लेखापरीक्षा समिति की आवश्यकता होती है, वे लेखापरीक्षा समिति के माध्यम से सतर्कता तंत्र की देखरेख के लिए जिम्मेदार होती हैं। यदि समिति के किसी भी सदस्य का किसी विशेष स्थिति में हितों का टकराव होता है, तो उन्हें खुद को अलग करना होगा ताकि समिति के अन्य सदस्य स्थिति को संभाल सकें।

कर्मचारियों और निदेशक की सुरक्षा

सतर्क तंत्र निदेशकों, कर्मचारियों, या तंत्र का उपयोग करने वाले किसी अन्य व्यक्ति के उत्पीड़न के खिलाफ उचित सुरक्षा प्रदान करता है। यह उचित या असाधारण मामलों में, जैसा भी लागू हो, लेखापरीक्षा समिति के अध्यक्ष या लेखापरीक्षा समिति की भूमिका में सेवा करने के लिए नामित निदेशक तक सीधी पहुँच प्रदान करता है।

तुच्छ शिकायत पर कार्रवाई

एक निदेशक या कर्मचारी को डाट लगाई जा सकती है यदि वे बार-बार तुच्छ शिकायतें दर्ज करते हैं, और उस क्षमता में सेवा करने के लिए नामित लेखा परीक्षा समिति या निदेशक भी उचित कार्रवाई कर सकते हैं।

लेखापरीक्षा समिति के प्रावधानों का गैर-अनुपालन

कंपनी पर 1 लाख रुपये से 5 लाख रुपये के बीच जुर्माना लगाया जाएगा और चूक करने वाले किसी भी कंपनी अधिकारी को एक साल तक की कैद और 25,000 रुपये से 1 लाख रुपये के बीच जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।

निष्कर्ष

आंतरिक नियंत्रण प्रणाली की प्रभावशीलता (सफलता) की गारंटी के लिए प्रक्रियाओं की नियमित समीक्षा करने के लिए लेखापरीक्षा समिति की स्थापना की जाती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि वित्तीय परिणामों की रिपोर्टिंग हर समय सटीक और पेशेवर हो। परिणामस्वरूप, लेखापरीक्षा समिति का कार्य सटीक और खुली वित्तीय रिपोर्टिंग के लिए एक चैनल के रूप में कार्य करना है। इसलिए, 2013 के कंपनी अधिनियम में दंडात्मक प्रावधान अब चूक करने वाली कंपनियों और अधिकारियों दोनों के लिए सख्त और अधिक गंभीर हैं। एक संगठन के संचालन की गहन जांच और आंतरिक नियंत्रण प्रणाली के रखरखाव से विभिन्न प्रकार की धोखाधड़ी और अन्य लेखांकन अनियमितताओं (इरेगुलेरिटी) का पता लगाने और रोकथाम में सहायता मिल सकती है।

मजबूत लेखापरीक्षा प्रणाली विभिन्न प्रकार के जोखिम जो किसी संगठन में उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे कि सूचना जोखिम, धोखाधड़ी जोखिम, संपत्ति का दुरुपयोग जोखिम और संचालन पर प्रबंधन जोखिम, को कम करने में सहायता कर सकती हैं। एक कंपनी उचित लेखापरीक्षा प्रणाली के बिना आंतरिक या बाहरी उद्देश्यों के लिए सटीक वित्तीय रिपोर्ट तैयार नहीं कर सकती है। नतीजतन, लेखापरीक्षा समिति कंपनी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

संदर्भ

 

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