रजिस्ट्रेशन एंड डिसोल्युशन ऑफ मैरिज अंडर मुस्लिम लॉ (मुस्लिम कानून के तहत विवाह का पंजीकरण और वियोजन)

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Registration and Dissolution of Marriage under Muslim Law
Image Source- https://rb.gy/my9qif

यह नोएडा के सिम्बायोसिस लॉ स्कूल की छात्रा Khushi Rastogi द्वारा लिखा गया है। इस लेख में, वह मुस्लिम कानून के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के मुस्लिम विवाह, पंजीकरण (रेजिस्ट्रेशन) और विवाह के वियोजन (डिसोल्युशन ) पर चर्चा करती है। इस लेख का अनुवाद  Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

इस्लाम के अंदर विवाह एक दांपत्य संबंध (मैट्रमोनीअल रिलेशन्शिप) होने के साथ-साथ एक संस्था (ऑर्गेनाइजेशन) भी है जो बच्चों के जनन (प्रोक्रीऐशन), आपसी प्रेम को बढ़ावा देना, आपस में एक दूसरे की सहायता करना और परिवारों की रचना के उद्देश्य से एक पुरुष और महिला के बीच यौन गतिविधियों (सेक्सुअल एक्टिविटीज) को कानूनी रूप से वैध बनाती है, जिसे समाज में एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। हिंदू धर्म की तरह ही, इस्लाम भी विवाह का मजबूत समर्थक है। हालाँकि, इस्लाम में विवाह की अवधारणा (कंसेप्ट) हिंदू अवधारणा से बहुत भिन्न है, हिंदू अवधारणा के अनुसार विवाह केवल एक नागरिक संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) ही नहीं बल्कि एक महत्वपूर्ण संस्कार है।

मुस्लिम विधि (मुस्लिम लॉ) विभिन्न संहिताबद्ध और असंहिताबद्ध सूत्र (कोडिफाइड एंड अनकोडिफाइड सोर्सेस) जैसे की- कुरान, इज्मा, क़ियास, रीति-रिवाज, उर्फ, मिसाल (कस्टम), इक्विटी और  भी काई विभिन्न प्रबंधन है जिससे प्राप्त किया गया है। मुस्लिम विधि में मनन के 4 प्रमुख सुन्नी स्कूल  हैं- हनीफा, हमबली, मलिकी और शफई। ये चार स्कूल एक-दूसरे की वैधता का सम्मान करते हैं और सदियों से कानूनी तर्क वितर्क (लीगल डिबेट) में उन्होंने एक दूसरे को प्रभावित किया है। भारत में, मुस्लिम कानून के लिए हनीफा स्कूल प्रमुख है।

मुस्लिम निकाह के लिए सामान्य यह सब आवश्यक हैं:

  1.  दोनों पक्ष में शादी करने की क्षमता होनी चाहिए।( कैपेसिटी टू मैरी)
  2.  प्रस्ताव (इजाब) और स्वीकृति (क़ुबूल) ।(प्रपोज़ल एंड एक्सेप्टेन्स)
  3. दोनों पक्षों की स्वतंत्र मंजूरी।(फ्री कन्सेन्ट)
  4. एक प्रतिफल (जिसे मेहर कहते हैं)।(कन्सिडरेशन)
  5. कोई कानूनी बाधा नहीं।(नो लीगल इम्पीडिमेंट)
  6. पर्याप्त गवाह (शिया और सुन्नी में भिन्न)।(विटनेस)

विवाह का वर्गीकरण (क्लासिफिकेशन ऑफ़ मैरिज)

मान्य विवाह (साहीह) (वैलिड मेरिज)

जब सभी कानूनी आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं और दोनों पक्षों को प्रभावित करने वाली या विवाह निषेध (प्रोहिबिटेड) करने वाली कोई परिस्थिति नहीं होती, तब विवाह सही या ‘ साहीह ‘ (वैलिड) माना जाता है। निषेध कुछ समय के लिए, अस्थाई (टेंपरेरी) या फिर हमेशा के लिए, स्थाई (परमानेंट) भी हो सकते हैं, स्थायी निषेध के मामलों में: विवाह अवैधानिक/ अमान्य घोषित (वर्ल्ड) किया जाता है और यदि निषेध अस्थायी हैं तो विवाह अनियमित (इरेगुलर) घोषित किया जाता है।

 मान्य विवाह के प्रभाव (इफेक्ट्स ऑफ़ वैलिड मेरिज)

  1. पति और पत्नी के बीच सहवास (कोहैबिटेशन) जायज़ हो जाता है।
  2. वैध विवाह या मान्य विवाह से जन्म लेने वाले बच्चे वैध होते हैं और उन्हें अपने माता-पिता की संपत्ति के वारिस होने का भी अधिकार होता है।
  3. पति और पत्नी के बीच विरासत के पारस्परिक अधिकार (म्यूचुअल राइट ऑफ़ इन्हेरेटेंस) स्थापित होते हैं। अर्थात पति की मृत्यु के बाद पत्नी पति की संपत्ति में उत्तराधिकार (इनहेरिट) की हकदार होती है और पत्नी की मृत्यु के बाद पति को भी उसकी संपत्ति विरासत में मिल सकती है।
  4. विवाह के प्रयोजनों के लिए निषिद्ध संबंध (प्रोहिबीटेड रिलेशन्शिप) पति और पत्नी के बीच बनाए जाते हैं और उनमें से प्रत्येक को निषिद्ध डिग्री के भीतर दूसरे के संबंधों से शादी करने की मनाही होती है।
  5. पत्नी का दहेज (डोवर) लेने का अधिकार विवाह पूर्ण होने के बाद ही पूर्ण रूप से स्थापित हो जाता है।
  6. विवाह, पत्नी को पति से भरण-पोषण का अधिकार भी देता है। (राइट टू मेंटिनेंस)
  7. विवाह के विघटन के बाद, विधवा या तलाकशुदा पत्नी पर इद्दत का पालन करने का दायित्व होता है, जिसके दौरान वह पुनर्विवाह नहीं कर सकती।

अवैधानिक/ अमान्य  विवाह (बाटिल) (वॉइड मेरिज)

विवाह शुरू से ही अमान्य (वॉइड अब इनिशियो)होने के कारण दोनों पक्षों के बीच कोई कोई भी अधिकार या दायित्व नहीं बनाता और ऐसे विवाह से जन्म लेने वाले बच्चे नाजायज/ अवैध (इलेजिटिमेट) होते हैं। रक्त संबंध, विवाह-सम्बन्ध (एफिनिटी) या पालन-पोषण के नियमों द्वारा निषिद्ध विवाह अमान्य होता है। इसी तरह, इद्दत अवधि के दौरान किसी अन्य की पत्नी या तलाकशुदा पत्नी के साथ विवाह भी अमान्य होता है।

अनियमित विवाह (फासीद) (इरेगुलर मेरिज)

किसी भी औपचारिकता (फॉर्मैलिटी) में कामी होने के कारण, या फिर किसी भी बाधा के होने के कारण, जिसे ठीक किया जा सकता है, विवाह अनियमित हो जाता है, हालाँकि, यह अनियमितता प्रकृति में हमेशा के लिए नहीं होती और इसे दूर किया जा सकता है। इसी प्रकार, विवाह अपने आप में अवैध नहीं है। प्रतिबंधों में सुधार के बाद इसे क़ानूनी रूप से मान्य बनाया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में या निम्नलिखित निषेधों के साथ विवाह को ‘फासीद’ कहा जाता है: 

  1. गवाहों की आवश्यक संख्या के बिना अनुबंधित विवाह;
  2. इद्दत अवधि के दौरान दूसरी महिला के साथ विवाह;
  3. यदि कोई पुरुष एक महिला के साथ विवाह करता है उसके अभिभावक (गार्जियन) की सहमति के बिना, जब ऐसी सहमति आवश्यक समझी जाती है;
  4. धर्म के अंतर के कारण से विवाह का निषिद्ध हो जाना;
  5. यदि गर्भवती महिला के साथ विवाह करना, जब गर्भावस्था पतिलंघन (अडल्टरी) या व्यभिचार (फॉर्निकेशन) के कारण नहीं हुई थी;
  6. शादी पांचवीं बार करना ।

मुता  या निकाह मुताह

मुताह शब्द का शाब्दिक अर्थ है “आनंद विवाह- महज़ मज़े के लिए शादी” (प्लेजर मेरिज)। मुताह विवाह एक सीमित समय तक की अवधि के लिए एक अस्थायी समझौता होता है, जिस पर दोनों पक्ष सहमत होतें है। कोई निर्धारित न्यूनतम या अधिकतम समय सीमा नहीं होती, यह एक दिन, एक महीने या वर्ष (वर्षों) के लिए भी हो सकती है। विवाह निश्चित अवधि की समाप्ति के बाद स्वयं ही भंग हो जाता है, हालांकि यदि ऐसी कोई समय सीमा व्यक्त या लिखित नहीं की गई होती, तो विवाह को स्थायी माना जाता है। इस प्रकार के विवाह को सुन्नी मुसलमानों द्वारा देह व्यापार (प्रॉस्टिट्यूशन) के रूप में देखा जाता है और इस कारण की वजह से सुन्नियों द्वारा इसे अनुमोदित नहीं किया जाता।

हालाँकि, इसे बारहवे शिया संप्रदाय (ट्वेल्वर शिया सेक्ट), जो ईरान के प्रमुख संप्रदाय है, और भारत की शिया आबादी का 90% हिस्सा बनाते है उनके द्वारा वैध माना जाता है। ईरान में, मुताह शब्द का कभी कभी ही प्रयोग किया जाता है और इस प्रथा को ‘सिगाह’ कहा जाता है। सिगाह के नियम निर्धारित हैं जैसे- अस्थायी विवाह का संविदा एक घंटे से 99 वर्ष तक के लिए आकर्षित किया जा सकता है; यह अनिश्चित अवधि के लिए नहीं हो सकता। यह प्रावधान मुताह को निकाह या स्थायी विवाह से अलग करता है, जिसकी कोई समय सीमा नहीं है। हालाँकि, निकाह की तरह, सिगाह में भी, दुल्हन को कुछ आर्थिक लाभ (मॉनेटरी बेनफिट) मिलना चाहिए।

मुताह के लिए किसी गवाह की जरूरत नहीं पड़ती और किसी भी अन्य अनुबंध की तरह, महिला विवाह में एक पार्टी होने के नाते, अपने यौन संबंध के लिए शर्तें निर्धारित कर सकती है पर सिर्फ इस समय सीमा, में उसका दैनिक रखरखाव (डेली मेंटिनेंस) भी शामिल हो सकता है। उसके अस्थायी पति को इन शर्तों का सम्मान करना चाहिए। निर्दिष्ट अवधि के अंत में विवाह अपने आप ही भंग हो जाता है। अवधि कितनी भी कम क्यों न हो, महिला को दो मासिक ऋतु-चक्र (मेंस्ट्रूअल साइकिल) तक संयम (एब्सटीनेंस) का अभ्यास करना पड़ता है।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि, अस्थायी पति और पत्नी संविदा को दुबारा शुरू  कर सकते हैं लेकिन पति को इस पर ध्यान दिए बिना पत्नी को राशि का भुगतान करना होगा। पति को रिश्ते में अपनी श्रेष्ठ स्थिति के विवाह-चिह्न को रद्द करने का एकतरफा अधिकार होता है। लेकिन महिला उसके साथ यौन संबंध बनाने से इंकार कर सकती है या उसे छोड़ भी सकती है, लेकिन ऐसी स्थिति में उसे, उससे प्राप्त राशि वापस करनी होगी।

भारत एक ऐसा देश है जिसने आंशिक रूप (पार्शियली) से विवाह के पूर्व पति-पत्नी की तरह रहना (लिव-इन रिलेशनशिप) को मंजूरी दी है; हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के लिए विवाह के इस रूप को संवैधानिक रूप से अमान्य करना अभी भी काफी मुश्किल होगा। आधुनिक युग में, दुनिया भर की नारीवाद इस व्यवस्था को वेश्या वृत्ति के बराबर देखते हैं। निकाह मुताह के कई पक्ष करने वाला हैं जो यह मानते हैं कि एक संविदा होने के नाते, यह व्यवस्था लिव-इन रिलेशनशिप से बेहतर है।

मुस्लिम कानून के तहत विवाह का पंजीकरण (रेजिस्ट्रेशन ऑफ़ मेरिज अन्डर मुस्लिम लॉ)

इसलाम में विवाह का पंजीकरण अनिवार्य और आवश्यक है, क्योंकि इसलाम में विवाह को एक सविनय संविदा (सिविल कन्ट्रैक्ट) के रूप में माना जाता है। मुस्लिम विवाह पंजीकरण अधिनियम 1981 (मुस्लिम मेरिज रेजिस्ट्रेशन ऐक्ट) की धारा 3 ( सेक्शन 3) के अनुसार- ” कोई भी विवाह, जो की इस अधिनियम के शुरू होने के बाद, दो मुसलमानों के बीच अनुबंधित होगा, उसको निकाह समारोह के समापन से तीस दिनों के भीतर, इस धारा के अनुसार पंजीकृत कराना जरुरी होगा और किया जाएगा”। निकाहनामा मुस्लिम विवाहों में एक प्रकार का कानूनी दस्तावेज है जिसमें विवाह की आवश्यक शर्तें / विवरण शामिल होते हैं।

इस अधिनियम के अनुसार, एक निकाहनामा में यह सब शामिल होता है:

  1. विवाह का स्थान (स्थान का पता लगाने के लिए पर्याप्त विवरण के साथ।(प्लेस ऑफ मैरिज)
  2. दूल्हे का पूरा नाम (फुल नेम ऑफ द ब्राइडग्रूम)
  3. उम्र (ऐज)
  4. पता (एड्रेस)
  5. दूल्हे के पिता का पूरा नाम (फुल नेम ऑफ ब्राइडग्रूम फादर)
  6. पिता जीवित हैं या मृत (वेदर फादर इज अलाइव और डेड)
  7. विवाह के समय दूल्हे की सविनय स्थिति क्या थी – अविवाहित विधुर तलाकशुदा विवाहित है, और यदि हां, तो कितनी पत्नियां जीवित हैं (सिविल कंडीशन ऑफ ब्राइडग्रूम)
  8. निकाह के अनुसार दूल्हे/वकील/अभिभावक के हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान दूल्हे द्वारा या अपने वकील या अभिभावक के माध्यम से व्यक्तिगत रूप से किया गया था। (सिग्नेचर और थंब इंप्रेशन)
  9. निकाह-खान का पूरा नाम (वह व्यक्ति जो निकाह समारोह आयोजित करता है। (फुल नेम ऑफ निकाह-खान)
  10. निकाह-खान के हस्ताक्षर (यानी तारीख के साथ निकाह समारोह आयोजित करने वाला व्यक्ति।) (सिग्नेचर ऑफ निकाह खान)
  11. डोवर की राशि निश्चित (अमाउंट ऑफ डोवर फिक्स्ड)
  12. डोवर के भुगतान का तरीका (मैनर ऑफ पेमेंट ऑफ डोर)
  13. गवाहों के नाम उनके माता-पिता, निवास और पते के साथ (नेम ऑफ विटनेसेस)

विवाह का विघटन (डिसोल्युशन ऑफ मैरिज)

मुस्लिम कानून के तहत तलाक या विघटन की 2 श्रेणियां हैं:

  1. अदालती या न्यायिक (ज्यूडिशियल)
  2. न्यायेतर या अतिरिक्त न्यायिक (एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल)

अतिरिक्त-न्यायिक साधनद्वारा तलाक को आगे 3 उपखंडों में विभाजित किया जाता है:

  1. पति द्वारा- तलाक, इला और जिहार।
  2. पत्नी द्वारा- तलाक-ए-तफ़वीज़, लियान
  3. आपसी सहमति से- खुला और मुबारत

तलाक 2 श्रेणियों में आता है:

  •  तलाक-ए-सुन्नत

इसे आगे दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. तलाकअहसानी

तलाक की घोषणा तुहर की अवधि (दो मासिक धर्म चक्रों के बीच पवित्रता की अवधि) के दौरान की जाती है, इसके बाद इद्दत की अवधि के दौरान संभोग (सेक्शूअल इन्टर्कोर्स) से परहेज किया जाता है। यहां, इद्दत के पूरा होने से पहले किसी भी समय तलाक को रद्द किया जा सकता है, इस प्रकार जल्दबाजी में किए गए तलाक और अनुचित तलाक को रोका जा सकता है।

  1. तलाक-ए-हसन

पति को लगातार तीन तुहरों के दौरान तीन बार तलाक शब्द का उच्चारण करना आवश्यक है। यह महत्वपूर्ण है कि जब तुहर की किसी भी अवधि के दौरान कोई संभोग नहीं होता है तो उच्चारण किए जाते हैं। इद्दत की अवधि की परवाह किए बिना, विवाह अपरिवर्तनीय रूप से भंग हो जाता है।

  • तलाक-ए-बिद्दत

यह इस्लामी तलाक का एक रूप है जो तुरंत होता है। यह किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को मौखिक, लिखित या हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक रूप में तीन बार “तलाक” शब्द कहकर अपनी पत्नी को कानूनी रूप से तलाक देने की अनुमति देता है। यह भारत में मुसलमानों के बीच प्रचलित है, विशेष रूप से इस्लाम के हनफ़ी स्कूल के अनुयायियों (ऐड्हीरन्ट) के बीच। इसे “तीन तलाक” के रूप में भी जाना जाता है और यह बहुत बहस और विवाद का विषय रहा है।

शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य में, यह प्रस्तुत किया गया था कि:

विभिन्न प्रसिद्ध विद्वानों के अनुसार, तलाक-ए-बिद्दत (एकतरफा ट्रिपल-तलाक) की यह प्रथा, जो व्यावहारिक रूप से महिलाओं के साथ चल-संपत्ति (चैटल) की तरह व्यवहार करती है, न तो मानव अधिकारों और लैंगिक समानता के आधुनिक सिद्धांतों के अनुरूप है और न ही इस्लामी आस्था का एक अभिन्न अंग है। मुस्लिम महिलाओं को ऐसी घोर प्रथाओं के अधीन किया जाता है जो उन्हें संपत्ति के रूप में मानती हैं, जिससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 में निहित उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। यह प्रथा कई तलाकशुदा महिलाओं और उनके बच्चों, विशेष रूप से समाज के कमजोर आर्थिक वर्गों से संबंधित लोगों के जीवन पर भी कहर बरसाती है।”

उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां अदालत ने तत्काल तीन तलाक को अमान्य कर दिया हैं। शमीम आरा बनाम. यूपी राज्य में, न्यायालय ने देखा कि:

पवित्र कुरान में तलाक का सही कानून यह है कि:

  1. तलाक के लिए उचित कारण होना चाहिए।
  2. तलाक की घोषणा से पहले 2 मध्यस्थों (आर्बिट्रैटर) द्वारा पति और पत्नी के बीच सुलह के प्रयासों होने चाहिए। यदि प्रयास विफल हो जाते हैं, तो केवल तलाक प्रभावी होगा।

अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को “असंवैधानिक (अनकंस्टीट्यूशनल)” घोषित किया। मोदी सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल, 2017 (द मुस्लिम वूमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज),बिल 2017) नामक एक बिल पेश किया और इसे संसद में पेश किया जिसे लोकसभा द्वारा 28 दिसंबर 2017 को पारित किया गया। यह बिल किसी भी हार्ड कॉपी के रूप में या इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से रिकॉर्ड किया गया तलाक-ए-बिद्दत,  उदाहरण के लिए, ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप को गैरकानूनी और अमान्य बनता है और ऐसा करने पर पति को तीन साल की कैद की सजा भी मिल जाती है।

हालांकि, प्रस्तावित अधिनियम के खिलाफ सिद्धांतों में से एक लगातार एक संज्ञेय और गैर-जमानती (कॉग्निजेबल एंड नॉन बेलेबल) अपराध के रूप में एक सामान्य अपराध की स्वीकृति रही है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

मुताह विवाह की धारणा हमारे देश में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। भारत में, अस्थायी विवाह को मान्यता नहीं दी जाती, हालांकि कुछ ऐसे हैं जो मुताह विवाह का अनुबंध करते हैं लेकिन ऐसे विवाह अदालत में लागू नहीं होते। हैदराबाद को उस प्रथा का केंद्र माना जाता है जहां विवाह को एक या दो दिनों के लिए कम समय के लिए स्थापित किया जा सकता है। हैदराबाद के एक मामले में यह माना गया कि अनिर्दिष्ट अवधि के लिए मुताह और जीवन के लिए मुताह (मुताह फॉर लाइफ) के बीच कोई अंतर नहीं है; मुता शब्द के उपयोग से भी जीवन के लिए एक स्थायी निकाह विवाह का अनुबंध किया जा सकता है; उस अवधि का विवरण जिसके लिए एक मुता विवाह अकेले अनुबंधित किया जाता है, विवाह को निर्दिष्ट अवधि के लिए एक अस्थायी विवाह बनाता है।

अस्थायी ” मुताह ” विवाह की प्रथा आधुनिक समय में व्यापक है और अक्सर यूरोप, अमेरिका (डियरबोर्न, मिशिगन के शिया भागों) और मध्य पूर्व में इमामों और अन्य इस्लामी नेताओं द्वारा व्यवस्थित की जाती है। आमतौर पर बेसहारा विधवाओं और अनाथ लड़कियों को अस्थायी विवाह के चंगुल में डाल दिया जाता है, जिन्हें अक्सर वृद्ध पुरुषों को बेच दिया जाता है। महिलाओं के लिए, ऐसी कोई इच्छा या खुशी नहीं है जो उन्हें इस तरह के दुख में ले जाती है; यह किराए का भुगतान करने और खुद को और अपने बच्चों को खिलाने का चरम साधन है। नतीजतन, इस व्यवस्था को विभिन्न देशों द्वारा व्यापक आलोचना मिली है क्योंकि यह वेश्यावृत्ति के वैधीकरण को प्रोत्साहित करती है।

महिलाओं के अधिकारों पर संघर्षों को नए प्रतिनिधि निकाय बनाकर सबसे अच्छा निपटाया जाता है, जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान हैं कि महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो। शाह बानो मामले में, इसका मतलब मुस्लिम व्यक्तिगत कानूनी संस्था (मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) को मुस्लिम समुदाय के वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने के बजाय मुस्लिम पर्सनल लॉ को प्रशासित करने के लिए एक नया तंत्र बनाना होगा। एक नया तंत्र बनाना भारत में मुसलमानों की राजनीतिक वास्तविकता के प्रति अधिक संवेदनशील है, जो यह है कि वे व्यापक रूप से फैले हुए समूहों से मिलकर बने हैं जो महत्वपूर्ण मतभेदों की विशेषता रखते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रावधान भी करेगा कि मुस्लिम महिलाओं की उन संस्थानों तक कुछ पहुंच हो जो उनके जीवन को नियंत्रित करने वाले नियम बनाते हैं।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

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