भारत में धन शोधन के लिए सजा

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Prevention of Money Laundering Act 2002

यह लेख एलएलएम (संवैधानिक कानून) की छात्रा Diksha Paliwal ने लिखा है। यह लेख “धन शोधन” (मनी लॉन्ड्रिंग) शब्द के संक्षिप्त परिचय के साथ शुरू होता है, इसके बाद इसके प्रभाव और परिणामों की एक संक्षिप्त चर्चा प्रदान करता है। लेख का बाद वाला भाग धन शोधन से संबंधित कानूनों के साथ-साथ कुछ महत्वपूर्ण मामलो से संबंधित है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

भारत सरकार द्वारा प्रदान किए गए आंकड़ों के अनुसार, धन शोधन के लिए आपराधिक कानून लागू होने के बाद से, पिछले 17 वर्षों में प्रवर्तन निदेशालय (एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट) ने धन शोधन के लगभग 5400 मामले दर्ज किए हैं। हालांकि आश्चर्यजनक रूप से अब तक केवल 23 लोगों को ही दोषी पाया गया है। मार्च 2022 तक रिपोर्ट किए गए कुल 5422 मामलों के साथ, लगभग 1,04,702 करोड़ रुपये के अपराध की संलग्न आय के साथ, धन शोधन की बढ़ती आपराधिक स्थिति स्पष्ट है।

ये धन शोधन घोटाले देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर करते हैं और पूरी सरकार को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अस्थिर करते हैं। एकीकृत (यूनिफाइड) और कठोर कानूनों और विनियमों (रेगुलेशन) के अभाव में, ये शिकारी हमेशा अपने कुख्यात आपराधिक दिमाग से लोगों के संसाधनों (रिसोर्सेज) का शोषण करेंगे।

इस लेख का उद्देश्य धन शोधन की उल्लेखनीय अवधारणाओं पर विस्तार से चर्चा करना है।

धन शोधन क्या है

आम आदमी की भाषा में, “धन शोधन” शब्द का अर्थ है अवैध स्रोतों (सोर्स) से अर्जित धन को वैध रूप से अर्जित धन में परिवर्तित करना, अर्थात काले धन को सफेद में परिवर्तित करना। अपराधी, धन शोधन के माध्यम से, अधिक मात्रा में धन उत्पन्न करते हैं। यह उनके अवैध मूल को छिपाने के लिए अवैध रूप से अर्जित आपराधिक आय का प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) है। इन अपराधियों में ईमानदारी और नैतिक मूल्यों के लिए बहुत कम सम्मान है। इसलिए, वे इन अवैध गतिविधियों को अंजाम देते हैं, जिससे वे अपने स्रोत को खतरे में डाले बिना भारी मुनाफा कमाने में सक्षम हो सके। पिछले कुछ वर्षों में धन शोधन के मामलों में बहुत वृद्धि देखी गई है।

अवैध हथियारों की बिक्री, वेश्यावृत्ति (प्रॉस्टिट्यूशन), तस्करी, मानव तस्करी, संगठित अपराध से जुड़ी गतिविधियाँ, मादक पदार्थों (ड्रग) की तस्करी, गबन (एंबेजलमेंट), रिश्वतखोरी, कंप्यूटर धोखाधड़ी से संबंधित घोटाले आदि जैसी गतिविधियाँ, बड़ी मात्रा में आय अर्जित कर सकती हैं। हालाँकि, चूंकि इन गतिविधियों से उत्पन्न आय अवैध है, इसलिए इन गतिविधियों से कमाई करने वाले अपराधियों को इन अवैध कार्यों को वैध बनाने की आवश्यकता है, और धन शोधन का वास्तव में यही मतलब है।

धन शोधन के मुद्दे पर अंकुश लगाने के लिए विशेष रूप से बनाए गए कानून यानी धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (इसके बाद पीएमएलए के रूप में संदर्भित है) के अनुसार, धन शोधन को एक ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, जाने या अनजाने में शामिल हो जाता है या अपराध की आय से जुड़ी किसी गतिविधि में किसी की सहायता करता है जिसमें छुपाना, कब्ज़ा करना, प्राप्त करना, या उपयोग करना और दावा करना शामिल है। धन शोधन की यह परिभाषा पीएमएलए की धारा 3 में प्रदान की गई है।

सीधे शब्दों में कहें तो धन शोधन आपराधिक या अवैध गतिविधियों से अर्जित धन को सफेद धन में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। पी चिदंबरम बनाम प्रवर्तन निदेशालय (2019) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि धन शोधन पैसे के अवैध स्रोतों को छिपाने की प्रक्रिया है, जहां शोधनकर्ता (लॉन्ड्रर) अवैध गतिविधियों से अर्जित आपराधिक आय को धन में बदल देता है, इस प्रकार, इसे एक वैध संपत्ति बना देता है। अदालत ने आगे कहा कि धन शोधन न केवल किसी देश की वित्तीय प्रणाली बल्कि उसकी अखंडता (इंटीग्रिटी) और संप्रभुता (सोवरेग्निटी) के लिए भी एक गंभीर खतरा है।

धन शोधन की प्रक्रिया को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है, अर्थात् प्लेसमेंट, लेयरिंग और एकीकरण (इंटीग्रेशन) चरण। आइए प्रत्येक चरण का संक्षिप्त अवलोकन करें।

  • पहले चरण में वैध वित्तीय प्रणाली में पैसा रखना शामिल है, इसलिए इसे प्लेसमेंट कहा जाता है। यह ऋण या क्रेडिट, जुआ, डमी चालान, सम्मिश्रण (ब्लेंडिंग) धन, आदि के पुनर्भुगतान के माध्यम से किया जा सकता है। इस चरण में, धन शोधन के अपराध में शामिल अपराधी काले धन के स्रोत को छिपाने के लिए अवैध रूप से अर्जित धन को वित्तीय प्रणाली में डाल देते है। यह एकमुश्त (लम सम) अवैध रूप से अर्जित धन के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के आकर्षण को छिपाने या रोकने के लिए किया जाता है।
  • दूसरे चरण को लेयरिंग कहा जाता है, जिसमें वेब लेनदेन के विभिन्न जटिल चरण शामिल होते हैं, जिनमें मुख्य रूप से अपतटीय (ऑफशोर) तकनीकें शामिल होती हैं। यह चरण पैसे को वित्तीय प्रणाली में अच्छी तरह से स्थानांतरित (मूव) करने के लिए है। यह चरण सुनिश्चित करता है कि एक बार पैसा वैध वित्तीय प्रणाली में प्रवेश कर जाए, तो सरकार और कानून के अधिकारियों के लिए धन शोधन की गतिविधि को ट्रैक करना लगभग असंभव हो जाता है। कई लेन-देन यह सुनिश्चित करने के लिए किए जाते हैं कि धन का स्रोत और स्वामित्व अनदेखा रहे। पूरी प्रक्रिया एक दिखावा है और कानून को झांसा देने के लिए की जाती है। उदाहरण: रियल एस्टेट, सोने की खरीदारी, स्टॉक में निवेश, शेल कंपनियों में निवेश, आदि।
  • तीसरे चरण में, लॉन्डरिंग से अर्जित काले धन को विभिन्न तरीकों से जैसे ऋण, लाभांश (डिविडेंड), निवेश आदि के माध्यम से अर्थव्यवस्था में समाहित (एब्जॉर्ब) किया जाता है। इस चरण को एकीकरण भी कहा जाता है। इस चरण के बाद, शोधनकर्ता द्वारा वित्तीय प्रणाली में भेजे जाने वाले धन को विभिन्न निवेशों के माध्यम से अपराधी के पास वापस भेज दिया जाता है। इस प्रकार, पैसा वैध संपत्ति में परिवर्तित हो जाता है।

भारत में धन शोधन विरोधी कानून और विनियम

आपराधिक गतिविधि से प्राप्त धन अधिक से अधिक अपराध को आकर्षित करने के लिए बाध्य है। साथ ही, यह देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बाधित करता है और इसकी स्थिरता को खतरे में डालता है। धन शोधन के संभावित शिकार भी किसी भी अन्य समान अपराधों की तुलना में बहुत अधिक हैं। एक ऐसे देश में जहां धन का असमान वितरण पहले से ही इसके विकास में बाधक है, धन शोधन की बढ़ती आपराधिक गतिविधियां सोने पर सुहागा की तरह हैं। इन कारणों से, सरकार के लिए इन अवैध गतिविधियों से संबंधित अलग नियम और विनियम बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।

धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए), धन शोधन निवारण (रिकॉर्ड का रखरखाव) नियम, 2005 के साथ, धन शोधन गतिविधियों के निषेध के लिए अधिनियमित सबसे महत्वपूर्ण कानून हैं। इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर धन शोधन की रोकथाम के लिए स्थापित एक अंतर-सरकारी निकाय वित्तीय कार्रवाई टास्क फोर्स मौजूद है, जिसका भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है। विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1974, बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988, भारतीय दंड संहिता, 1860 और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 कुछ अन्य कानून हैं जिनमें धन शोधन के अपराध से संबंधित कुछ प्रावधान हैं।

वित्तीय कार्रवाई टास्क फोर्स 

वित्तीय कार्रवाई टास्क फोर्स (इसके बाद एफएटीएफ के रूप में संदर्भित है) एक निकाय है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धन शोधन और आतंकवादी वित्तपोषण (फाइनेंसिंग) निगरानी के रूप में कार्य करता है। यह एक अंतर-सरकारी निकाय है जो उपर्युक्त कारणों से संबंधित अवैध आपराधिक गतिविधियों को रोकने के लिए मानक (स्टैंडर्ड) या नियम निर्धारित करता है। निकाय के सदस्य के रूप में लगभग 200 देश हैं। बदले में एफएटीएफ के सदस्य धन शोधन और आतंकवादी वित्तपोषण के क्षेत्र में राष्ट्रीय कानून बनाते हैं। निकाय की स्थापना वर्ष 1989 में पेरिस में आयोजित जी-7 सबमिट में की गई थी। भारत एफएटीएफ का 34वां सदस्य बना था।

धन शोधन निवारण (रिकॉर्ड का रखरखाव) नियम, 2005

ये नियम भारतीय रिजर्व बैंक के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) द्वारा प्रदत्त (कंफर) शक्तियों के प्रयोग में अधिनियमित किए गए थे। इन नियमों को लागू करने का उद्देश्य लेन-देन की प्रकृति और मूल्य के रिकॉर्ड के रखरखाव, रखरखाव की प्रक्रिया और तरीके और जानकारी प्रस्तुत करने के लिए समय और बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और बिचौलियों (इंटीमीडियरी) के ग्राहकों की पहचान के रिकॉर्ड का सत्यापन (वेरिफिकेशन) प्रदान करना हैं।

धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए)

धन शोधन की रोकथाम के लिए विधेयक (बिल) लोकसभा में वर्ष 1998 में पेश किया गया था, जो अंततः वर्ष 2002 में पारित हुआ और 2005 में लागू हुआ। तब से, अधिनियम में कई संशोधन हुए हैं। अधिनियम पीएमएलए के प्रावधानों और इसके तहत बनाए गए अन्य नियमों को लागू करने के लिए विभिन्न वैधानिक निकायों की स्थापना करता है। अधिनियम धन शोधन से संबंधित अपराधों के परीक्षण के लिए विशेष अदालतों की स्थापना भी करता है। बाद के भाग में, लेख पीएमएलए के महत्वपूर्ण प्रावधानों के बारे में विस्तार से बात करेगा।

विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1974

यह अधिनियम वर्ष 1974 में राष्ट्र के भीतर विदेशी मुद्रा को बनाए रखने के प्रयास के रूप में पारित किया गया था। अधिनियम मुख्य रूप से निवारक (प्रिवेंटिव) हिरासत की अवधारणा के साथ अधिनियमित किया गया था। प्रासंगिक प्रावधान धारा 3 (कुछ व्यक्तियों को हिरासत में लेने के आदेश देने की शक्ति), धारा 4 (हिरासत के आदेशों का निष्पादन (एग्जिक्यूशन)), धारा 5 (हिरासत की जगह और शर्तों को विनियमित करने की शक्ति), और धारा 11 (हिरासत के आदेशों को रद्द करना) है।

बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988

अधिनियम के अनुसार, एक बेनामी लेनदेन, एक ऐसे लेनदेन को दर्शाता है जिसमें एक व्यक्ति संपत्ति को दूसरे को स्थानांतरित करता है, जहां पक्षों या एक पक्ष की पहचान छुपाई जाती है। धन शोधन में शामिल अपराधी अक्सर अपनी पहचान और संपत्ति की खरीद में निवेश किए गए धन के स्रोतों को छिपाने के लिए ऐसे बेनामी लेनदेन में शामिल हो जाते हैं। अधिनियम की धारा 3 स्पष्ट रूप से बेनामी लेनदेन को प्रतिबंधित करती है और उन्हें शून्य घोषित करती है।

भारतीय दंड संहिता, 1860 और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973

भारतीय दंड संहिता एक प्राथमिक मूल कानून है जो विभिन्न अपराधों से निपटता है और उसी के लिए सजा प्रदान करता है, जबकि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 एक प्रक्रियात्मक कानून है जो आपराधिक मामलों में प्रक्रिया का पालन करने का प्रावधान करता है। दंड संहिता विभिन्न अपराधों के लिए प्रदान करती है जिनका उल्लेख पीएमएलए में भी किया गया है, और अपराध, जब अदालत में पेश किए जाते हैं, तो सीआरपीसी के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हैं, जब तक कि वे पीएमएलए की धारा 65 के तहत पीएमएलए के प्रावधानों के साथ असंगत न हों।

धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) का अवलोकन

पीएमएल जनवरी 2003 को अधिनियमित किया गया था और वर्ष 2005 में लागू हुआ था। अधिनियम मुख्य रूप से भारत में धन शोधन के अपराध को रोकना चाहता है और इसके तीन प्रमुख उद्देश्य हैं, अर्थात्; धन शोधन के अपराध को प्रतिबंधित और नियंत्रित करना, धन शोधन से प्राप्त अवैध धन से प्राप्त संपत्ति को जब्त करना और धन शोधन के अपराध से जुड़े अन्य सभी मुद्दों से निपटने और उनको विनियमित करने के लिए है।

जैसा कि इस लेख के पिछले भाग में उल्लेख किया गया है, पीएमएलए की धारा 3 में धन शोधन के अपराध को परिभाषित किया गया है। यह किसी भी व्यक्ति को धन शोधन के अपराध का दोषी बनाती है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, जानबूझकर या अनजाने में आपराधिक गतिविधि की आय को सफेद धन में परिवर्तित करने की गतिविधि में शामिल होता है, जिससे इन आय के स्रोत को वैध दिखाया जाता है।

अधिनियम उस प्रावधान की भी गणना करता है जो बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और बिचौलियों पर सभी ग्राहकों की पहचान के रिकॉर्ड को सत्यापित करने और बनाए रखने के लिए एक दायित्व डालता है और वित्तीय खुफिया इकाई-भारत (फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट-इंडिया) (एफआईयू-आइएनडी) द्वारा निर्धारित प्रपत्रों (फॉर्म) के अनुसार लेन-देन का पूरा विवरण होता हैं। यह एफआईयू-आइएनडी को बैंकिंग संस्थानों या किसी अन्य वित्तीय संस्थानों या बिचौलियों पर जुर्माना लगाने का अधिकार भी देता है, यदि वे पीएमएलए के प्रावधानों का पालन करने में विफल रहते हैं, और यह अधिनियम की धारा 13(2) के तहत प्रदान किया गया है।

अधिनियम धन शोधन के मामलों की जांच करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (“ईडी”) को और अधिक सशक्त बनाता है और ईडी को अस्थायी रूप से कुर्की (अटैचमेंट) (धारा 5), कुर्की की पुष्टि (धारा 8(3)), और धन शोधन में शामिल संपत्ति को जब्त करने (धारा 9) की शक्ति भी देता है। यह अपराधों के परीक्षण के लिए किसी भी न्यायिक प्राधिकरण (अथॉरिटी), अपीलीय न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) और विशेष अदालतों की स्थापना का भी प्रावधान करता है।

कानूनी ढांचा

धारा 43 के तहत पीएमएलए धन शोधन के अपराधों की सुनवाई के लिए कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में विशेष अदालतों की स्थापना का प्रावधान करता है। अधिनियम धन शोधन से प्राप्त किसी भी संपत्ति की कुर्की और जब्ती से संबंधित कार्यवाही करने के लिए न्यायिक प्राधिकरण (धारा 6), निदेशक या किसी अन्य प्राधिकरण (धारा 49), और एक अपीलीय न्यायाधिकरण (धारा 25) की नियुक्ति का प्रावधान करता है।

वांछित (डिजायर्ड) उद्देश्यों की प्राप्ति के साथ-साथ अपने दायरे को बढ़ाने के लिए अधिनियम ने एक दूसरे के साथ सहयोग बढ़ाकर धन शोधन के खतरे को रोकने के लिए देशों के बीच एक द्विपक्षीय समझौते के प्रावधान की गणना की है। यह प्रावधान पीएमएलए की धारा 56 के तहत वर्णित है। इन समझौतों को या तो पीएमएलए के प्रावधानों को लागू करने या सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए निष्पादित किया जाता है जो पीएमएलए या उस देश के संबंधित कानूनों के तहत उल्लिखित किसी भी अपराध को होने से रोकेगा। सरकार धन शोधन की किसी भी जांच के संबंध में अनुबंधित राज्य से सहायता मांग सकती है। इसके अलावा, पीएमएलए में इसके अपराधों के दोषी व्यक्तियों के संबंध में पारस्परिक (रेसिप्रोकल) समझौतों के प्रावधान भी हैं।

पीएमएलए के अधिनियमन के बाद, केंद्र सरकार ने वर्ष 2004 में एक वित्तीय खुफिया इकाई की भी स्थापना की, जिसके प्रमुख के रूप में निदेशक हैं। अधिनियम की धारा 12 के अनुसार, संगठन अब वित्तीय संस्थानों, बिचौलियों आदि से नकद लेनदेन रिपोर्ट और संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट प्राप्त करता है। प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक को पीएमएलए के तहत अपराधों की जांच और मुकदमा चलाने की शक्ति प्रदान की गई है।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और वित्तीय खुफिया इकाई-भारत (एफआईयू-आईएनडी)

निदेशालय के प्रवर्तन की स्थापना वर्ष 1956 में नई दिल्ली के मुख्यालय के रूप में की गई थी। ईडी, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा) और पीएमएलए के कुछ प्रावधानों को लागू करने के लिए जिम्मेदार है। यह धन शोधन के मामलों की जांच और पीएमएलए के तहत अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन l से संबंधित काम करता है। ईडी संचालन उद्देश्यों के लिए राजस्व विभाग (रिवेन्यू डिपार्टमेंट) के नियंत्रण में काम करता है; फेमा के नीतिगत पहलू, इसके कानून और इसके संशोधन आर्थिक मामलों के विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स) के दायरे में आते हैं। हालांकि, पीएमएलए के तहत नीति के किसी भी पहलू से संबंधित मुद्दों को राजस्व विभाग द्वारा निपटाया जाता है। फेमा के अधिनियमन से पहले, ईडी ने फेमा के तहत नियमों और विनियमों को लागू किया था। वर्तमान में ईडी के मुख्यालय में दो विशेष निदेशक और मुंबई में एक विशेष निदेशक हैं।

ईडी को निम्नलिखित कार्य सौंपे गए हैं, अर्थात्;

  • फेमा के प्रावधानों के उल्लंघन से संबंधित खुफिया सूचनाओं को इकट्ठा करना, यह खुफिया जानकारी ईडी द्वारा केंद्रीय और राज्य खुफिया एजेंसियों, शिकायतों आदि के कई स्रोतों से प्राप्त की जाती है।
  • “हवाला” विदेशी मुद्रा रैकेटियरिंग, निर्यात आय की गैर-वसूली, विदेशी मुद्रा का गैर-प्रत्यावर्तन (नॉन-रिपेट्रिएशन) और फेमा में उल्लिखित अन्य प्रकार के उल्लंघन जैसी गतिविधियों में फेमा के प्रावधानों के संदिग्ध उल्लंघनों का पता लगाने के लिए।
  • फेरा, 1973 और फेमा, 1999 के उल्लंघन के मामलों का न्यायनिर्णयन (एडजुडिकेट) करना और ऐसे मामलों की पूरी कार्यवाही को संभालना।
  • विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (सीओएफईपीओएसए) के तहत निवारक हिरासत के मामलों की प्रक्रिया और सिफारिश करना।
  • पीएमएलए अपराध के अपराधी के खिलाफ सर्वेक्षण (सर्वे), तलाशी, जब्ती, गिरफ्तारी, अभियोजन कार्रवाई आदि जैसी सभी कार्यवाही करने के लिए।
  • उन देशों की सहायता करना जो द्विपक्षीय समझौते के पक्ष हैं और धन शोधन के मामलों में विदेशों से सहायता प्राप्त करना चाहते हैं।

भारत सरकार ने वर्ष 2004 में वित्तीय खुफिया इकाई-भारत की स्थापना की। एफआईयू-आइएनडी संदिग्ध वित्तीय लेनदेन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने, प्रसंस्करण, विश्लेषण और प्रसार (डिससेमिनेट) करने के उद्देश्य से स्थापित एक केंद्रीय राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करती है। इसके अलावा, यह धन शोधन और अन्य संबंधित अपराधों को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खुफिया, जांच और प्रवर्तन एजेंसियों के प्रयासों के समन्वय (कोऑर्डिनेट) और मजबूती के लिए भी जिम्मेदार है। यह एक स्वतंत्र निकाय है जो सीधे वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक खुफिया परिषद (इकोनॉमिक इंटेलिजेंस काउंसिल) (ईआईसी) को रिपोर्ट करता है।

अपीलीय न्यायाधिकरण

पीएमएलए, धारा 25 के तहत केंद्र सरकार द्वारा अपने राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रावधान करता है। अधिनियम की धारा 28 न्यायाधिकरण के लिए सदस्यों की नियुक्ति की योग्यता प्रदान करती है। इसमें अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य शामिल होते हैं। न्यायिक प्राधिकरण और अधिनियम के तहत स्थापित किसी भी अन्य प्राधिकरण के खिलाफ अपील सुनने के लिए न्यायाधिकरण का गठन किया गया है।

भारत में धन शोधन के लिए सजा

पीएमएलए की धारा 4 में धन शोधन के अपराध के लिए सजा का प्रावधान है। यह प्रदान करता है कि धन शोधन के दोषी व्यक्ति को 3 साल के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे 7 साल तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। साथ ही, कारावास कठोर होगा। हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि स्वापक ओषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम (नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट), 1985 के तहत अपराधों से संबंधित मामलों में, व्यक्ति को कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा जो 7 साल के बजाय 10 साल तक बढ़ सकता है।

पीएमएलए की धारा 5 में धन शोधन में शामिल संपत्ति की कुर्की का प्रावधान है। यह धारा प्रदान करती है कि निदेशक, संयुक्त निदेशक या उप निदेशक को 180 दिनों के लिए संपत्ति को कुर्क करने का अधिकार है जो धन शोधन में शामिल है। बशर्ते कि निदेशक, संयुक्त निदेशक या उप निदेशक के पास यह विश्वास करने का कारण हो कि ऐसा व्यक्ति आपराधिक कार्यवाही के कब्जे में है। यह कुर्की आयकर अधिनियम, 1961 की दूसरी अनुसूची में निर्धारित तरीके से की जाती है। प्राधिकरण का मानना ​​है कि कारण लिखित में होंगे, और इस तरह की कुर्की से संबंधित आदेश मुहरबंद होगा। इस तरह की कुर्की के बाद 30 दिनों के भीतर न्यायिक प्राधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराई जाएगी।

धन शोधन के अपराध के लिए संपत्ति को जब्त किए जाने के बाद, ऐसी संपत्ति वहां से और फिर केंद्र सरकार में निहित होगी, जैसा कि पीएमएलए की धारा 9 के तहत प्रदान किया गया है। इस प्रकार, जब्ती के बाद, संपत्ति के सभी अधिकार और शीर्षक सरकार के होंगे।

धन शोधन के प्रभाव

धन शोधन राजनीतिक स्थिरता को भंग करने के साथ-साथ देश की वित्तीय स्थिरता के लिए एक गंभीर खतरा है। यह वित्तीय संस्थानों को नष्ट करने की प्रवृत्ति रखता है, जिन्हें अक्सर किसी देश की आर्थिक समृद्धि का स्तंभ माना जाता है। कोई कल्पना कर सकता है कि यह किसी देश के आर्थिक विकास पर कितना प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। यह देश के विकास को खतरे में डालने की कीमत पर भ्रष्टाचार, अपराध और अन्य अवैध गतिविधियों के लिए एक सुगम मार्ग की सुविधा प्रदान करता है। इतना ही नहीं, इससे व्यापक आर्थिक अस्थिरता का खतरा भी बढ़ जाता है। हालांकि इन प्रभावों को मापना मुश्किल है, लेकिन इनका बहुत ही परेशान करने वाला प्रभाव है। इन अपराधों के संभावित शिकार किसी भी अन्य अपराध की तुलना में बहुत अधिक हैं। धन शोधन के प्रभाव केवल आर्थिक नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं हैं; इसकी महत्वपूर्ण सामाजिक लागत को भी जोखिम हैं। यह अपराधियों के लिए मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी, आतंकवाद आदि जैसी भयानक अवैध गतिविधियों को अंजाम देने का मार्ग प्रशस्त करता है। यह अपराध न केवल एक देश के लिए बल्कि पूरे विश्व समुदाय के लिए एक गंभीर खतरा है।

मामले 

विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ (2022)

मामले के तथ्य

वर्तमान मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने उन याचिकाओं के एक समूह का निपटारा किया, जिन्होंने अधिनियम में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के साथ-साथ धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। इनके अलावा कुछ याचिकाकर्ताओं ने इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार ईडी द्वारा अपनाई गई जांच प्रक्रिया को भी चुनौती दी थी। साथ ही, कुछ याचिकाकर्ताओं ने 2002 अधिनियम की संशोधित धारा 45 की प्रभावकारिता पर विचार करते हुए उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का भी विरोध किया है, जिसे याचिकाकर्ताओं द्वारा चुनौती दी गई थी।

मामले के मुद्दे

  • पीएमएलए संवैधानिक रूप से मान्य है या नहीं। साथ ही, क्या गिरफ्तारी से संबंधित प्रावधान सीआरपीसी के संबंधित प्रावधानों के विपरीत हैं?
  • क्या अपराध की आय को बेदाग संपत्ति के रूप में पेश करना पीएमएलए के तहत एक अपराध माना जाता है, ऐसी स्थिति में जहां इस तरह की आय को छुपाने, कब्जे, अधिग्रहण या अपराध की आय के उपयोग से जोड़ा नहीं जाता है?
  • धारा 3, धारा 5, धारा 8, धारा 50, धारा 63, प्रस्तावना (प्रिएंबल), अनुसूचियां, तलाशी और जब्ती, गिरफ्तारी, ईडी मैनुअल, अपीलीय न्यायाधिकरण, और जमानत प्रावधान 2002 अधिनियम के कुछ प्रावधान थे, जो वैधता के लिए विचाराधीन थे।

अवलोकन और निर्णय

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि गिरफ्तारी के प्रावधान सीआरपीसी के समान नहीं हैं, इसे असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता है। इसने आगे कहा कि गिरफ्तारी के प्रावधान समान रूप से कड़े और उच्च मानकों के हैं, जैसा कि सीआरपीसी में प्रदान किया गया है। पीएमएलए के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए दो कानूनों के प्रावधान में भिन्नता का कारण है। अदालत ने कहा कि प्रावधान संविधान के अनुरूप हैं।

अदालत ने अपराध की आय को बेदाग संपत्ति के रूप में पेश करने के मुद्दे से निपटते हुए कहा कि अपराध की आय को बेदाग संपत्ति के रूप में ‘पेश करना’ या ‘दावा करना’ एक अलग कार्य है जिसमें धन शोधन में शामिल होना शामिल है, और इसे छुपाने, कब्जे में रखने, प्राप्त करने या अपराध की आय के उपयोग के साथ जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि पीएमएलए के तहत अपराध करने के अभियुक्त व्यक्ति के खिलाफ आगे बढ़ना एक विधेय (प्रेडिकेट) अपराध है।

अदालत ने धारा 2(1)(na) पर विचार करते हुए कहा कि इसमें प्रयुक्त शब्द “अभिव्यक्ति” प्रासंगिक है और इसे एक विस्तृत अर्थ दिया जाना चाहिए और यह ऐसा होना चाहिए कि इसमें ईडी के अधिकारियों, न्यायिक प्राधिकरण, और विशेष न्यायालय द्वारा जांच प्रक्रिया शामिल हो। इसने यह भी कहा कि धारा 2(1)(na) के तहत प्रयुक्त शब्द “जांच” में न्यायिक अधिकारियों द्वारा जांच को भी शामिल करना है। अदालत ने आगे कहा कि 2002 अधिनियम की धारा 2(1) के खंड (u) में जोड़ी गई अभिव्यक्ति मुख्य प्रावधान से परे नहीं जाती है और इसके अनुरूप है।

अदालत ने कहा कि पीएमएलए की धारा 3 संपत्ति को बेदाग दिखाने तक सीमित नहीं है। इसने कहा कि शब्द “और” को “या” के रूप में पढ़ा जाना है। साथ ही, प्रावधान की व्यापक व्याख्या की जानी चाहिए। अधिनियम की धारा 50 पर विचार करते हुए, अदालत ने कहा कि इसके तहत प्रक्रिया को एक जांच के रूप में माना जाना चाहिए न कि एक अन्वेषण (इन्वेस्टिगेशन) के रूप में। अदालत ने आगे कहा कि ईडी अधिकारी “पुलिस अधिकारी” नहीं हैं और इसलिए अधिनियम की धारा 50 के तहत उनके द्वारा दर्ज किए गए बयान संविधान के अनुच्छेद 20(3) से प्रभावित नहीं हैं। इसके अलावा, ईसीआईआर एक प्राथमिकी (एफआईआर) नहीं है। अदालत ने आगे पीएमएलए की धारा 4, 5, 8, और 45 को वैध माना और इस प्रकार याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को खारिज कर दिया कि वे कानून के अनुसार नहीं हैं।

मुरली कृष्ण चक्रला बनाम उप निदेशक (2022)

संक्षिप्त तथ्य

मुरली कृष्ण चक्रला, एक चार्टर्ड एकाउंटेंट और वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता पर पीएमएलए के तहत आरोप लगाया गया था। इस मामले में, याचिकाकर्ता को अपने मुवक्किल (क्लाइंट) को एक प्रासंगिक प्रपत्र जारी करने के लिए कहा गया था। यहां मुवक्किल को आयात के लिए भुगतान करना आवश्यक था। याचिकाकर्ता ने दस्तावेजों की समीक्षा के बाद, अपने मुवक्किल के पक्ष में प्रपत्र 15CB जारी किया।

ईडी ने पांच व्यक्तियों की जांच की, और इन व्यक्तियों के खिलाफ आरोप थे कि उन्होंने फर्जी बैंक खाते खोले, प्रविष्टि (एंट्री) के धोखाधड़ी बिल जमा किए, उन धोखाधड़ी खातों में बड़ी रकम स्थानांतरित की, और फिर इन लेनदेन को कानूनी बनाने के लिए विदेशों में आयात के लिए कई लोगों को स्थानांतरित कर दिया गया।

जांच के बीच की अवधि में, ईडी को एक सीए से पांच आरोपियों में से एक के नाम पर कुछ प्रपत्र 15CB मिले। हालांकि, सीए ने तर्क दिया कि उन्हें केवल प्रपत्र जारी करने के लिए धन शोधन का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

मामले का मुद्दा

क्या चार्टर्ड एकाउंटेंट को 15CB जारी करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है?

निर्णय और अवलोकन

मद्रास उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को बरी कर दिया और कहा कि प्रपत्र 15CB जारी करने के लिए मुवक्किल द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज की सरलता के लिए पीएमएलए के तहत एक सीए पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

नरेंद्र कुमार गुप्ता बनाम सहायक निदेशक, प्रवर्तन निदेशालय द्वारा राज्य प्रतिनिधि (2022)

संक्षिप्त तथ्य

वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता, नरेंद्र कुमार गुप्ता को एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार आधार में धन शोधन के अपराध के दुष्प्रेरण (एबेटमेंट) का दोषी ठहराया गया था, जहां उन्होंने अपनी हांगकांग कंपनी के बैंक खाते में अपराध की आय प्राप्त की, जिससे 22.60 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की हानि हुई। हालाँकि, नरेंद्र कुमार ने तर्क दिया कि वह अभी-अभी एक अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति, अर्थात् सुखजीत का शिकार हुआ है। उसने कहा कि सुखजीत ने उसे कंपनी के काम के लिए जरूरी कुछ दस्तावेजों पर दस्तखत करने को कहा था। साथ ही, याचिकाकर्ता ने कहा कि अन्य तीन आरोपियों को एक ही मामले में कड़ी शर्तों पर जमानत मिली है, और इस तरह, वह भी उन्हीं शर्तों पर जमानत के हकदार हैं।

हालांकि, ईडी ने अदालत के समक्ष अनुरोध किया कि उसे जमानत नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि याचिकाकर्ता अपने कार्यों की अनदेखी नहीं कर सकता है, और पीएमएलए की धारा 70 के अनुसार वह अपनी कंपनी की गतिविधियों के लिए भी जिम्मेदार है।

मामले के मुद्दे

क्या अदालत को ऐसी शर्तों के तहत पीएमएलए के सभी प्रावधानों पर विचार करने के बाद याचिकाकर्ता को जमानत देनी चाहिए?

अवलोकन और निर्णय

मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि यहां याचिकाकर्ता को ईडी द्वारा दर्ज प्राथमिकी के अनुसार अभियुक्त के रूप में फंसाया नहीं गया था। अदालत ने यह भी देखा कि ईडी याचिकाकर्ता और प्रतिबद्ध कार्यालय के बीच कोई सीधा संबंध साबित करने में विफल रही। अदालत ने याचिकाकर्ता को जमानत दे दी और कहा कि पीएमएलए के अनुसार, धन शोधन का अपराध नहीं हो सकता है यदि अपराध की कोई प्रत्यक्ष कार्यवाही नहीं की जाती है। अदालत ने यह भी कहा कि महज संदेह और आधी-अधूरे अन्वेषण के आधार पर किसी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।

निष्कर्ष

धन शोधन का अपराध अवैध धन को सफेद धन में बदलना है। 2002 के धन शोधन निवारण अधिनियम को विधायिका द्वारा धन शोधन के अपराध के बढ़ते मुद्दे को रोकने के लिए एक व्यापक कानून के रूप में अधिनियमित किया गया था। भले ही प्रथम दृष्टया अपराध खतरनाक नहीं लगता है, तथापि, यह एक गंभीर अपराध है जो देश की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और, सबसे महत्वपूर्ण, अर्थव्यवस्था को परेशान करता है। धन शोधन का अपराध न केवल सरकार को धमकी देता है बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी नष्ट कर देता है। यह आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाता है और बैंकिंग प्रणाली के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है। धन शोधन एक वैश्विक समस्या है और देशों के बीच सहयोग से इसे रोकने की जरूरत है।

हालांकि, मौजूदा कानून में धन शोधन के अपराधों से निपटने के लिए उचित प्रक्रिया का अभाव है। जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी उद्धृत (कोट) किया है, पीएमएलए के तहत योजना सीआरपीसी के प्रावधान के आवेदन को बाहर करती है। हालांकि पीएमएलए की धारा 65, सीआरपीसी के प्रयोग का प्रावधान करती है, बशर्ते यह पीएमएलए के साथ असंगत न हो। पीएमएलए के प्रावधानों के बेहतर कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) के लिए हमें एक उचित प्रक्रिया की आवश्यकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या पीएमएलए के तहत संभावित अभियुक्तों को प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट प्रदान करना आवश्यक है?

अधिनियम किसी भी प्रावधान के लिए प्रदान नहीं करता है जो संभावित अभियुक्तों को रिपोर्ट की आपूर्ति को अनिवार्य करता है, हालांकि यह प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट की रिकॉर्डिंग के लिए प्रदान करता है। हालांकि, कुछ कानून विशेषज्ञों और न्यायविदों का मानना ​​है कि रिपोर्ट को अनिवार्य रूप से प्रदान करने की अनुपस्थिति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदान किए गए जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को खतरे में डालती है।

पीएमएलए के तहत जमानत के क्या प्रावधान हैं?

सर्वोच्च न्यायालय ने, कई फैसलों में, यह माना है कि पीएमएलए की धारा 45 के अनुसार पीएमएलए के तहत अपराध के लिए आरोपित व्यक्ति को जमानत देते समय अदालत कड़ी शर्तों का विकल्प चुनेगी; जमानत देने की दो शर्तें प्रदान की जाती हैं, अर्थात्, सरकारी वकील को सुना जाना चाहिए, और दूसरा, अदालत को लगता है कि यह मानने के लिए उचित आधार मौजूद हैं कि व्यक्ति कथित अपराध का दोषी नहीं है।

क्या पीएमएलए की धारा 19 असंवैधानिक है?

सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि धारा 19, जो गिरफ्तारी की शक्तियों से संबंधित है, बिल्कुल भी असंवैधानिक नहीं है और इसका धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के उद्देश्यों के साथ उचित संबंध है। न्यायामूर्ति ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ (बैंच), जिसमें न्यायामूर्ति दिनेश माहेश्वरी और सी टी रविकुमार शामिल हैं, ने कहा कि प्रावधान मनमानी के दोष से ग्रस्त नहीं है।

संदर्भ

 

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