वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित क्षेत्र

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Wildlife Protection Act
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यह लेख तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय से बीए एलएलबी (ऑनर्स) की पढ़ाई कर रही लॉ की छात्रा Ilashri Gaur ने लिखा है। यह लेख वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट) की अवधारणा से संबंधित है। यह अधिनियम वन्यजीवों के संरक्षण के संबंध में प्रावधान प्रदान करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

आज की दुनिया नई तकनीकों, मशीनरी, भवनों, कार्यालयों से भरी पड़ी है। हम आधुनिकीकरण (मॉडर्नाइजेशन) के साथ आगे बढ़ रहे हैं लेकिन प्रकृति के मामले में हम पिछड़ रहे हैं। कोई भी पर्यावरण पर ध्यान नहीं दे रहा है, वनों की कटाई और आधुनिकीकरण के कारण पर्यावरण में असंतुलन हो रहा है। विश्व को संरक्षित करने के लिए हमें विश्व की वनस्पतियों और जीवों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। वनों की कटाई से वनों के नुकसान के साथ, वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को भारी नुकसान हुआ है। कई प्रजातियां पहले ही खत्म हो चुकी हैं और कई खत्म होती जा रही हैं। जंगली जानवरों के शिकार और खाने के कारण भी ऐसा हुआ है।

इसलिए, समय की आवश्यकता को समझना और वन्यजीवों की रक्षा करना बहुत आवश्यक है। उनकी रक्षा के लिए सरकार के साथ-साथ लोगों द्वारा भी कई कदम उठाए जा सकते हैं। लोगों को उन चीजों का उपयोग करना बंद कर देना चाहिए जो जंगली जानवरों के शरीर के अंगों से बनी होती हैं जो अवैध वन्यजीव जानवरों के अंगों की मांग को कम करने में मदद करेगी और इससे जानवरों का शिकार भी कम होगा।

अभयारण्यों (सैंक्चुअरी)

दुनिया भर में कई वन्यजीव अभ्यारण्य हैं। यह जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए सरकार या किसी निजी एजेंसी के स्वामित्व (ओन्ड) वाला प्राकृतिक आवास है। इनका उद्देश्य जानवरों के लिए एक आरामदायक जीवन प्रदान करना है। वन्यजीव अभ्यारण्यों के महत्व हैं:

  • लुप्तप्राय (एंडेंजर्ड) प्रजातियों की रक्षा करना।
  • उन्हें उनके प्राकृतिक आवास से स्थानांतरित (रिलोकेट) करना मुश्किल है, इसलिए उनके प्राकृतिक वातावरण में उनकी रक्षा करना आसान है।
  • अभयारण्यों में लुप्तप्राय प्रजातियों की विशेष निगरानी की जाती है। वे संख्या में बढ़ते और प्रजनन (रिप्रोड्यूस) करते हैं और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • जीवविज्ञानी (बायोलॉजिस्ट) और शोधकर्ता (रिसर्चर) वो हैं जो जानवरों पर नजर रखते हैं।
  • ये अभयारण्य प्रजातियों को मनुष्यों और शिकारियों से बचाते हैं।

अभयारण्य की घोषणा

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 26A अभयारण्य की घोषणा को परिभाषित करती है। इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार एक ऐसा क्षेत्र बनाने के अपने इरादे की घोषणा कर सकती है जिसमें वन्यजीवों के संरक्षण के लिए पर्याप्त पारिस्थितिक, वनस्पति, जीव, प्राकृतिक या प्राणी (जूलॉजिकल) महत्व शामिल हो। ‘वन्यजीव’ को राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना (नोटिफिकेशन) के माध्यम से परिभाषित किया गया है। वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने के लिए राज्य विधानसभा द्वारा कानून पास करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

कलेक्टर

राज्य सरकार किसी भी व्यक्ति के अधिकारों की प्रकृति और सीमा के अस्तित्व की जांच और निर्धारण करने के लिए एक अधिकारी को कलेक्टर के रूप में नियुक्त करती है। यहाँ एक कलेक्टर के अधिकारों और शक्ति के बारे में कुछ पॉइंट दिए गए हैं। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 18 के तहत, कलेक्टरों की नियुक्ति को परिभाषित किया गया है।

अधिकार निर्धारित करने के लिए कलेक्टर

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 19 परिभाषित करती है कि इस धारा के तहत किसी भी दावे को ऐसी घोषणा की तारीख से दो महीने के भीतर प्रस्तुत करना आवश्यक है। दावे में लिखित रूप में और निर्धारित तरीके से ऐसे अधिकारों की प्रकृति और सीमा शामिल है।

अधिकारों के संग्रहण (एक्रुअल) पर रोक

  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 20 अधिकारों के संग्रहण पर रोक को परिभाषित करती है। इसका अर्थ है कि ऐसी अधिसूचना में निर्दिष्ट क्षेत्र की सीमा के भीतर समाविष्ट (कंप्राइजिंग) भूमि पर वसीयतनामा, उत्तराधिकार (सक्सेशन) या निर्वसीयत (इंटेस्टेट) को छोड़कर कोई अधिकार प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

उद्घोषणा जांच (प्रोक्लेमेशन इंक्वायरी)

उद्घोषणा जांच कलेक्टर द्वारा की जाती है। कलेक्टरों को वही शक्तियाँ प्राप्त हैं जो मुकदमों की सुनवाई के लिए सिविल अदालतों में निहित हैं। कलेक्टर 60 दिनों की अवधि के भीतर एक उद्घोषणा प्रकाशित (पब्लिश) करेगा।

शक्तियां

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 23 कलेक्टर की शक्तियों को परिभाषित करती है। कलेक्टर निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग कर सकते है:

  • किसी भी भूमि में प्रवेश करना और सर्वेक्षण (सर्वे) करना, उसका सीमांकन (डिमार्केट) करना और किसी अन्य अधिकारी को ऐसा करने के लिए अधिकृत (ऑथराइज) करना।
  • इसके लिए एक सिविल अदालत पर भी समान शक्ति निहित है।

कलेक्टर की शक्तियों का समर्पण (डेलिगेशन) 

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 26 कलेक्टर की शक्ति के समर्पण से संबंधित है। राज्य सरकार, सामान्य आदेश या विशेष आदेश द्वारा, निर्देश देती है कि शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है। कलेक्टर द्वारा किए जाने वाले कार्यों को धारा 19 से 25 के तहत प्रदान किया गया है। इसे अन्य अधिकारियों द्वारा प्रयोग और पालन किया जा सकता है जैसा कि आदेश में निर्दिष्ट है।

अधिकारों का अधिग्रहण (एक्विजिशन)

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 24 अधिकारों के अधिग्रहण से संबंधित है और वे इस प्रकार हैं:

  • यदि कोई व्यक्ति धारा 19 में निर्दिष्ट किसी भूमि पर अधिकार का दावा करता है तो कलेक्टर उसे पूर्ण या आंशिक रूप से स्वीकार या अस्वीकार करने का आदेश पास कर सकते है।
  • यदि दावा पूर्ण या आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तो कलेक्टर कर सकता है कि:
  1. उस भूमि को प्रस्तावित अभयारण्य की सीमा से बाहर कर दे, या
  2. ऐसी भूमि का अधिग्रहण करने के लिए आगे बढ़ें, जब तक कि भूमि के मालिक और धारक और सरकार के बीच एक समझौता न हो और यदि मालिक सरकार को अपने अधिकारों को आत्मसमर्पण करने के लिए सहमत हो गया हो और मुख्य वन्यजीव वार्डन के परामर्श से भूमि अधिग्रहण अधिनियम में प्रदान किए गए मुआवजे का भुगतान करे।

अधिग्रहण की कार्यवाही

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 25 अधिग्रहण की कार्यवाही से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि:

  • ऐसी भूमि के अधिग्रहण के लिए कलेक्टर कार्रवाई करता है और भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत कार्यवाही जारी रहती है।
  • ऐसी भूमि के अधिग्रहण के लिए, दावेदार को एक इच्छुक व्यक्ति माना जाएगा और धारा 9 के तहत नोटिस देने के अनुसरण (पर्सुएंस) में कलेक्टर के सामने पेश होगा।
  • कलेक्टर दावेदार या अदालत की सहमति से भूमि या धन में, पूर्ण या आंशिक रूप से मुआवजा दे सकते है।
  • सार्वजनिक मार्ग या आम पास्टर के रुकने की स्थिति में कलेक्टर, राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति से, सार्वजनिक रुकावट के लिए वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।
  • इस अधिनियम के तहत किसी भी भूमि के अधिग्रहण को सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अधिग्रहण माना जाएगा।

अधिग्रहण की कार्यवाही पूरी करने की समय-सीमा

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 25A अधिग्रहण की कार्यवाही को पूरा करने की समय सीमा से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि अभयारण्य की घोषणा की अधिसूचना की तारीख से 2 साल की अवधि के भीतर कलेक्टर धारा 19 से 25 के तहत कार्यवाही पूरी करेगा। अधिसूचना किसी भी कारण से विफल नहीं होगी, यदि ऐसा है, तो कार्यवाही 2 महीने की अवधि के भीतर पूरी नहीं होगी।

अभयारण्यों का संरक्षण

अभयारण्यों की सुरक्षा के विभिन्न तरीके हैं। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में विभिन्न धाराओं के तहत वन्यजीवों की रक्षा के विभिन्न तरीके बताए गए हैं।

अभयारण्य में प्रवेश पर प्रतिबंध (रिस्ट्रिक्शन)

धारा 27 प्रवेश पर प्रतिबंध से संबंधित है जिसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति इसके अलावा प्रवेश नहीं करेगा कि-

  •  वह लोक सेवक है जो ड्यूटी पर है।
  • वह व्यक्ति जिसे मुख्य वन्यजीव वार्डन या किसी अधिकृत अधिकारी द्वारा अनुमति दी गई हो।
  • जिसका अभयारण्य की सीमा के भीतर अचल (इम्मूवेबल) संपत्ति पर कोई अधिकार है।
  • सार्वजनिक राजमार्ग से अभयारण्य से गुजरने वाला व्यक्ति।

प्रत्येक व्यक्ति यदि वह अभयारण्य में रहता है तो बाध्य होगा कि:

  1. अभयारण्य में एक अपराध को रोकना चाहिए।
  2. यदि किसी का मानना ​​है कि इस अधिनियम के विरुद्ध कोई अपराध किया गया है तो अपराधी को खोजने और गिरफ्तार करने में मदद करनी चाहिए।
  3. किसी भी जंगली जानवर की मौत की सूचना मुख्य वन्यजीव वार्डन या अधिकृत अधिकारी को कार्यभार संभालने के लिए देनी चाहिए।
  4. कोई भी व्यक्ति किसी जंगली जानवर को छेड़ नहीं सकता और न ही अभयारण्य की जमीन पर कूड़ा-करकट को फेंक सकता है।
  5. अगर आग लगती है तो उसे बुझाना चाहिए और अभयारण्य को आग से बचाना चाहिए।

अनुमति देना

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 28 अनुमति देने से संबंधित है। अनुमति केवल इस उद्देश्य के लिए दी जाएगी:

  1. वन्यजीवों की जांच या अध्ययन करने के लिए
  2. फोटोग्राफी के लिए
  3. वैज्ञानिक अनुसंधान (रिसर्च) के लिए
  4. पर्यटन के लिए
  5. किसी भी व्यक्ति के साथ वैध व्यापार का लेन-देन करने के लिए

अभयारण्य में प्रवेश करने की अनुमति ऐसी शर्तों पर जारी की जाएगी और भुगतान किया जाएगा।

बिना अनुमति के अभयारण्य में विनाश निषिद्ध (प्रोहिबिट) है

धारा 29 एक अभयारण्य में विनाश से संबंधित है जो बिना अनुमति के निषिद्ध है। इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अभयारण्य में या उसके बाहर पानी के प्रवाह को रोकने या बढ़ाने जैसे किसी भी कार्य को करके किसी अभयारण्य से वन उपज सहित किसी भी वन्यजीव को नष्ट, शोषण या हटायेगा नहीं या जंगली जानवरों के आवास को नष्ट या नुकसान नहीं पहुंचाएगा। जब तक राज्य सरकार पानी के प्रवाह जैसे परिवर्तनों से संतुष्ट नहीं हो जाती, तब तक कोई अनुमति नहीं दी जाएगी, यदि सरकार को लगता है कि यह वन्यजीवों की भलाई के लिए है, तो परिवर्तन किया जा सकता है।

आग लगाना मना है

धारा 30 आग लगाने पर रोक से संबंधित है। यह कहती है कि कोई भी व्यक्ति किसी अभयारण्य में आग नहीं लगाएगा या अभयारण्य में आग लगाकर ऐसे अभयारण्य को खतरे में नहीं डाल देगा।

अभयारण्य में हथियारों  के साथ प्रवेश निषेध है

धारा 31 हथियारों के साथ अभयारण्य में प्रवेश पर रोक लगाने से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि मुख्य वन्यजीव वार्डन या अधिकृत अधिकारी से लिखित में अनुमति लेने के अलावा कोई भी व्यक्ति हथियारों के साथ प्रवेश नहीं करेगा।

हानिकारक पदार्थों के उपयोग पर प्रतिबंध है

धारा 32 अभयारण्य में हानिकारक पदार्थों के उपयोग पर प्रतिबंध से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार के रसायनों (कैमिकल), विस्फोटकों या किसी अन्य पदार्थ का उपयोग नहीं करेगा जो अभयारण्य में जंगली जानवरों को चोट पहुंचा सकते है।

अभयारण्यों का नियंत्रण

धारा 33 अभयारण्यों के प्रबंधन से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि मुख्य वन्यजीव वार्डन प्राधिकरण (अथॉरिटी) होता है जो वन्यजीव अभयारण्यों का नियंत्रण, प्रबंधन और रखरखाव करता है:

  1. यह सड़कों, भवनों, पुलों, बाड़ों या फाटकों का निर्माण कर सकता है और ऐसी अन्य चीजें भी बना सकता है जो अभयारण्यों के लिए आवश्यक हैं।
  2. वे ऐसे कदम उठा सकते हैं जो जंगली जानवरों की सुरक्षा और अभयारण्य के संरक्षण को सुनिश्चित करें।
  3. वे ऐसे उपाय कर सकते हैं जो वन्यजीवों और आवास के सुधार में मदद करें।
  4. वे वन्यजीवों के कल्याण के लिए पशुओं के चरने और पशुधन (लाइवस्टॉक) को नियंत्रित या प्रतिबंधित कर सकते हैं।

पशुधन का टीकाकरण

धारा 33A पशुधन के टीकाकरण से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि वन्यजीव वार्डन ऐसे उपाय करेंगे जो अभयारण्य के 5 किलोमीटर के भीतर रखे गए पशुओं में संचारी (कम्युनिकेबल) रोगों के खिलाफ टीकाकरण के लिए निर्धारित किए जा सकते हैं।

कोई भी व्यक्ति किसी भी पशुधन का टीकाकरण किए बिना न तो ले जाएगा और न ही इसका कारण बनेगा।

सलाहकार समिति

धारा 33B ​​सलाहकार समिति के मामले से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार मुख्य जीवन वार्डन से मिलकर एक सलाहकार समिति का गठन करती है और अभयारण्य के भीतर राज्य विधायिका (लेजिस्लेचर) के सदस्य को शामिल करती है। पंचायती राज संस्थाओं के तीन प्रतिनिधि (रिप्रेजेंटेटिव), गैर-सरकारी संगठनों के दो प्रतिनिधि और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय (एक्टिव) तीन व्यक्ति, घरेलू मामलों से निपटने वाले विभागों से एक-एक प्रतिनिधि हैं। समिति के सदस्य-सचिव के रूप में मानद (ऑनरेरी) वन्यजीव वार्डन और अभयारण्य के कार्यालय प्रभारी (इनचार्ज) होगे।

अभयारण्य के बेहतर संरक्षण और प्रबंधन के लिए किए जाने वाले उपायों पर समिति सलाह देगी। समिति कोरम सहित अपनी स्वयं की प्रक्रिया को विनियमित (रेगुलेट) करेगी।

हथियार रखने वाले कुछ व्यक्तियों का पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन)

धारा 34 किसी भी क्षेत्र को अभयारण्य घोषित किए जाने के 3 महीने के भीतर हथियार रखने वाले कुछ व्यक्तियों के पंजीकरण से संबंधित है। ऐसे किसी भी अभ्यारण्य के 10 किलोमीटर के भीतर रहने वाले और शस्त्र अधिनियम के तहत लाइसेंस रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इस तरह के रूप में आवेदन किया जाएगा और शुल्क का भुगतान निर्धारित समय अवधि के भीतर किया जाएगा।

राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क)

एक राष्ट्रीय उद्यान एक पार्क है जिसका उपयोग सुरक्षा उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यह प्राकृतिक सौंदर्य के स्थानों की रक्षा करता है। राष्ट्रीय उद्यान प्राकृतिक सुंदरता के लिए एक सुरक्षित घर प्रदान करता है और जानवरों की रक्षा करता है।

राष्ट्रीय उद्यानों की घोषणा

धारा 35 राष्ट्रीय उद्यानों की घोषणा से संबंधित है। इस धारा में कहा गया हैं कि:

  • एक ऐसा क्षेत्र जो पारिस्थितिक (इकोलॉजिकल) है, जिसमें जीव, वनस्पति या वन्य जीवन से संबंधित अन्य लाभ हैं, उसको राष्ट्रीय उद्यान के रूप में गठित करने की आवश्यकता है। वन्यजीवों की रक्षा के लिए अधिसूचना द्वारा इसका गठन किया जा सकता है।
  • यदि किसी क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित करने का इरादा है तो इसे पहले भूमि की जांच और दावों के निर्धारण के लिए लागू किया जाता है।
  • उस व्यक्ति के अलावा कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता जो जानवर के लिए पशुधन लाता है।
  • राज्य सरकार के पास राष्ट्रीय उद्यानों में शामिल होने वाली भूमि के सभी अधिकार हैं। राज्य सरकार को एक अधिसूचना जारी कर उस क्षेत्र की सीमा निर्दिष्ट करनी चाहिए जो राष्ट्रीय उद्यान के भीतर है।
  • राष्ट्रीय बोर्ड की सिफारिशों पर ही राष्ट्रीय उद्यानों की सीमाओं में परिवर्तन किया जा सकता है।

संरक्षण रिजर्व

धारा 36 संरक्षण रिजर्व की घोषणा और प्रबंधन से संबंधित है। जैसा कि नीचे बताया गया है:

एक संरक्षण रिजर्व की घोषणा और प्रबंधन

धारा 36A, एक संरक्षण रिजर्व की घोषणा और प्रबंधन से संबंधित है। राज्य सरकार स्थानीय समुदाय (कम्युनिटी) के परामर्श के बाद घोषणा करती है कि राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों से सटे सरकार के स्वामित्व वाला कोई भी क्षेत्र एक संरक्षित क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। केंद्र सरकार के पास अपनी पूर्व चिंता के साथ संरक्षण रिजर्व पर अधिकार है।

संरक्षण रिजर्व प्रबंधन समिति

धारा 36B, संरक्षण रिजर्व के समिति प्रबंधन से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार मुख्य वन्यजीव वार्डन को संरक्षण रिजर्व के संरक्षण, प्रबंधन और रखरखाव की सलाह देने के लिए एक संरक्षण रिजर्व प्रबंधन समिति का गठन करेगी।

वन एवं वन्यजीव विभाग के लिए समिति में एक प्रतिनिधि होता है, जो उस समिति का सदस्य सचिव (सेक्रेटरी) होता है। प्रत्येक ग्राम पंचायत का एक प्रतिनिधि जिसके अधिकार क्षेत्र में रिजर्व स्थित है और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों के तीन प्रतिनिधि और कृषि और पशुपालन विभाग से एक-एक प्रतिनिधि होने चाहिए।

सामुदायिक रिजर्व

धारा 36C और धारा 36D सामुदायिक रिजर्व की घोषणा और प्रबंधन से संबंधित है।

सामुदायिक रिजर्व की घोषणा और प्रबंधन

धारा 36C सामुदायिक रिजर्व की घोषणा और प्रबंधन से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार किसी भी निजी या सामुदायिक भूमि को राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य या संरक्षण रिजर्व के भीतर नहीं घोषित करती है, तो जीवों, वनस्पतियों और पारंपरिक या सांस्कृतिक संरक्षण मूल्यों और प्रथाओं की रक्षा के लिए एक सामुदायिक रिजर्व होगा।

धारा 18 की उप-धारा (2), धारा 27 की उप-धारा (2), (3) और (4), धारा 30, 32 और धारा 33 के खंड (b) और (c) के प्रावधान अभयारण्य के संबंध में लागू हो सकते है।

अधिसूचना जारी होने के बाद सामुदायिक रिजर्व में भूमि के उपयोग पैटर्न में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा।

सामुदायिक रिजर्व प्रबंधन समिति

  • धारा 36D सामुदायिक रिजर्व प्रबंधन समिति से संबंधित है। राज्य सरकार एक सामुदायिक रिजर्व प्रबंधन समिति का गठन करेगी जो रखरखाव और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार प्राधिकरण होगी।
  • समिति में पांच प्रतिनिधि होंगे।
  • सामुदायिक रिजर्व के प्रबंधन को तैयार करने और लागू करने के लिए समिति एक सक्षम प्राधिकारी होगी।
  • समुदाय को एक अध्यक्ष का चुनाव करना चाहिए जो समिति रिजर्व में मानद वन्यजीव वार्डन भी हो सकता है।

क्षेत्रों को अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की केंद्र सरकार की शक्ति 

धारा 38 क्षेत्रों को अभयारण्यों या राष्ट्रीय उद्यानों के रूप में घोषित करने की केंद्र सरकार की शक्ति को परिभाषित करती है। इसमे कहा गया है कि:

  • राज्य सरकार अपने नियंत्रण में किसी भी क्षेत्र को अनुदान (ग्रांट) या हस्तांतरण करती है। केंद्र सरकार, निर्दिष्ट क्षेत्र की शर्तों से संतुष्ट होने पर, अधिसूचना द्वारा इसे अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर सकती है।
  • केंद्र सरकार के पास अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की शक्ति है यदि सरकार धारा 35 में दी गई शर्तों से संतुष्ट है।
  • एक अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान जिसे केंद्र सरकार द्वारा घोषित किया जाता है, उस अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान की शक्तियां और कर्तव्य मुख्य वन्यजीव वार्डन या वार्डन की ओर से एक अधिकृत अधिकारी को दिए जाते हैं।

वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान के बीच अंतर

आधार वन्यजीव अभ्यारण्य राष्ट्रीय उद्यान
अर्थ यह प्राकृतिक आवास है, जो जंगली जानवरों के संरक्षण के लिए सरकार या निजी एजेंसी के स्वामित्व में है। यह एक संरक्षित क्षेत्र है जिसे सरकार द्वारा वन्यजीवों के लिए स्थापित किया गया है।
संरक्षित पशु, पक्षी, कीड़े, सरीसृप (रेप्टाइल्स) आदि। वनस्पति, जीव, परिदृश्य (लैंडस्केप), आदि।
उद्देश्य वन्यजीव आबादी और उनके आवास को बनाए रखने के लिए। प्राकृतिक और ऐतिहासिक वस्तुओं और वन्य जीवन की रक्षा करने के लिए।
प्रतिबंध कम प्रतिबंधित है और सभी के लिए खुला हुआ है। अत्यधिक प्रतिबंधित है, किसी भी साधारण व्यक्ति को अनुमति नहीं है।
आधिकारिक (ऑफिशियल) अनुमति आवश्यक नहीं है। आवश्यक है।
सीमा तय नहीं है। कानून द्वारा तय है।
मानव गतिविधि कुछ हद तक अनुमति है। बिल्कुल भी अनुमति नहीं है।

निष्कर्ष

यह अधिनियम वन्यजीवों के संरक्षण के लिए सभी प्रावधान प्रदान करता है। यह अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के कल्याण के लिए प्रतिबंध और पंजीकरण प्रदान करता है। इस पूरे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का निष्कर्ष निकालने के लिए, मेरे अनुसार, राष्ट्रीय संरक्षण अधिनियम में एक स्थायी आयोग होनी चाहिए। एक आयोग विशेष रूप से वन्यजीव संरक्षण पर काम कर सकती है क्योंकि सरकार के पास इसकी निगरानी के लिए पर्याप्त समय नहीं है।

जैसे कि आजकल कई जानवर विभिन्न कारणों से मरते हैं, इसलिए उन पर निगरानी रखना आवश्यक है ताकि इस अधिनियम को गंभीरता से लिया जा सके। यह अधिनियम जानवरों की सुरक्षा के लिए विभिन्न कार्यों की रक्षा करता है लेकिन ऐसा कोई नहीं है जो विशेष रूप से केवल इस अधिनियम के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित कर सके।

 

 

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