सीआरपीसी के तहत तलाशी और जब्ती से संबंधित प्रक्रिया

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Criminal Procedure Code
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यह लेख किरीत पी. मेहता स्कूल ऑफ लॉ, एनएमआईएमएस के छात्र Abhay ने लिखा है। यह एक विस्तृत लेख है जो तलाशी और जब्ती के दौरान अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं से जुड़े विभिन्न पहलुओं से संबंधित है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta के द्वारा किया गया है।

परिचय

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 का अध्याय VII, जिसमें धारा 91100 शामिल है, जो दस्तावेजों या अन्य चीजों को पेश करने के लिए सम्मन से संबंधित प्रावधान, तलाशी-वारंट प्रावधान और तलाशी और जब्ती से संबंधित अन्य कानूनों से संबंधित है। इस अध्याय के प्रावधान सम्मन और वारंट, उनके मुद्दे, किस तरीके से उन्हें भेजा जाता हैं और निष्पादित (एग्जीक्यूट) किया जाता हैं, से संबंधित हैं।

सम्मन, अदालत से एक व्यक्ति को एक निश्चित समय और स्थान पर उसके सामने पेश होने का आदेश है। आपराधिक और सिविल दोनों मामलों में सम्मन जारी किया जा सकता है। वारंट एक कानूनी दस्तावेज है जो एक न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा एक पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी, तलाशी, संपत्ति जब्त करने या न्याय प्रणाली के प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन) से संबंधित कार्रवाई करने के लिए अधिकृत (ऑथराइज) करता है।

‘तलाशी’ शब्द सरकारी मशीनरी के संचालन को संदर्भित करता है जिसमें किसी छिपी हुई चीज़ का पता लगाने या किसी अपराध के साक्ष्य के टुकड़ों को प्रकट करने के लिए किसी स्थान, क्षेत्र, व्यक्ति, वस्तु आदि की जाँच या सावधानीपूर्वक निरीक्षण (इंस्पेक्ट) करना शामिल है। पुलिस किसी व्यक्ति या कार या परिसर की तलाश कर सकती है, लेकिन केवल आवश्यक और वैध अनुमोदन (एप्रूवल) लेने के बाद ही। “जब्ती” एक कार्रवाई है जो अप्रत्याशित (अनएक्सपेक्टेड) रूप से किसी इकाई या व्यक्ति को अपने कब्जे में लेती है।

तलाशी और जब्ती से संबंधित प्रक्रिया

धारा 91 में कहा गया है कि न्यायालय एक सम्मन जारी कर सकता है या प्रभारी (इन चार्ज) अधिकारी यह कहते हुए एक लिखित आदेश दे सकते है कि व्यक्ति को दस्तावेज या कुछ भी प्रस्तुत करना होगा जिसे जांच या कार्यवाही करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। जिस व्यक्ति के पास उस विशेष दस्तावेज या चीज का कब्जा है, उसे इस अनुरोध का पालन करना होगा और उसे सम्मन या आदेश द्वारा निर्धारित समय और स्थान पर प्रस्तुत करना होगा।

धारा 92 में कहा गया है कि यदि जिला मजिस्ट्रेट और उच्च न्यायालय सहित कानून प्रवर्तन (एनफोर्समेंट) एजेंसियों की राय है कि एक दस्तावेज, पार्सल या कुछ भी जो डाक या टेलीग्राफ प्राधिकरण (अथॉरिटी) की हिरासत में है, जांच, परीक्षण या कार्यवाही के लिए आवश्यक है, तो डाक या टेलीग्राफ प्राधिकरण को न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करना होगा और निर्देशों के अनुसार दस्तावेज़ वितरित करना होगा। न्यायालय डाक या टेलीग्राफ प्राधिकरण को किसी भी दस्तावेज, पार्सल या वस्तु की तलाशी करने की अनुमति दे सकता है जिसके कारण न्यायालय का आदेश लंबित है।

धारा 93 यह निर्धारित करती है कि तलाशी वारंट कब जारी किया जा सकता है। सबसे पहले, यदि न्यायालय का मानना ​​​​है कि जिस व्यक्ति को सम्मन या आदेश संबोधित किया गया है, वह दस्तावेज या कार्यवाही के लिए आवश्यक चीज नहीं लाएगा, तो उस व्यक्ति के खिलाफ वारंट जारी किया जा सकता है। यह तब भी जारी किया जा सकता है जब न्यायालय उस व्यक्ति को नहीं जानता जिसके पास दस्तावेज़ हो सकता है। न्यायालय उस विशेष स्थान या भाग को निर्दिष्ट कर सकता है जहाँ तक निरीक्षण का विस्तार होगा और निरीक्षण का प्रभारी व्यक्ति दिए गए न्यायालय के आदेश का पालन करेगा और निरीक्षण की सीमा का विस्तार नहीं करेगा। केवल जिला मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ही किसी दस्तावेज की तलाशी की अनुमति दे सकता है जो डाक या तार प्राधिकरण की हिरासत में है।

धारा 94 उन स्थानों पर की गई तलाशी से संबंधित है, जिनमें ऐसी संपत्ति होने का संदेह है जो चोरी की हो सकती हैं या जाली दस्तावेज हो सकती हैं। जांच या सूचना के बाद, यदि किसी जिला मजिस्ट्रेट, उप प्रभागीय (सब डिविजनल) मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट की राय है कि किसी स्थान का उपयोग चोरी की संपत्ति को जमा करने या बेचने के लिए किया गया होगा या उसका उपयोग इस धारा में उल्लिखित और निर्धारित आपत्तिजनक वस्तुओं के उत्पादन के लिए किया गया होगा, तो वह पुलिस अधिकारी (एक कांस्टेबल के पद से ऊपर) को आवश्यकता पड़ने पर सहायता के साथ ऐसे स्थान में प्रवेश करने के लिए वारंट द्वारा अधिकृत कर सकता है।

पुलिस को दिए गए वारंट में निर्दिष्ट तरीके से उस जगह की तलाशी लेनी होती है, जो आपत्तिजनक या चोरी की संपत्ति को अपने कब्जे में ले लेती है। उसे मजिस्ट्रेट को सब कुछ बताना होता है या अपराधी को मजिस्ट्रेट के पास ले जाने तक उसकी रक्षा करनी होती है। वह आपत्तिजनक वस्तु का किसी सुरक्षित स्थान पर निपटान कर सकता है और यदि उसे कोई व्यक्ति मिलता है जो आपत्तिजनक वस्तु या चोरी की संपत्ति की जमा, बिक्री या उत्पादन में शामिल हो सकता है, तो वह उस व्यक्ति को हिरासत में ले सकता है और बाद में उसे मजिस्ट्रेट के सामने ले जा सकता है।

धारा 94 के अनुसार आपत्तिजनक मानी जाने वाली वस्तुओं में निम्नलिखित चीज़े है–

धारा 95 कुछ प्रकाशनों को ज़ब्त करने की घोषणा करने के लिए न्यायालय को शक्ति प्रदान करती है। न्यायालय इन प्रकाशनों के लिए तलाशी वारंट जारी कर सकता है और यदि राज्य सरकार को पता चलता है कि किसी लेख, समाचार पत्र, दस्तावेज़ या पुस्तक में कुछ ऐसा हो सकता है जो आईपीसी की निम्नलिखित धाराओं 124A, 153A, 153B, 292, 293 या 295A के तहत दंडनीय है तो वह ऐसी सामग्री की प्रत्येक प्रति को सरकार को जब्त करने की घोषणा कर सकते है। मजिस्ट्रेट किसी भी पुलिस अधिकारी को उन दस्तावेजों को जब्त करने के लिए अधिकृत कर सकते है। वारंट के अनुसार, पुलिस किसी भी परिसर में संदिग्ध दस्तावेज की तलाशी के लिए प्रवेश कर सकती है और उसकी तलाशी ले सकती है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि तलाशी के लिए नियुक्त पुलिस अधिकारी सब-इंस्पेक्टर के पद से नीचे का नहीं हो सकता। शब्द “अखबार” और “पुस्तक” का वही अर्थ है जो पुस्तक के प्रेस और पंजीकरण अधिनियम, 1867 में कहा गया है, और “दस्तावेज़” शब्द में कोई भी ड्रॉइंग, पेंटिंग, फोटोग्राफ या अन्य दृश्य प्रस्तुतियां शामिल हैं।

उदाहरण: आनंद चिंतामणि दिघे बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में, राज्य सरकार ने गुजराती अनुवाद सहित मी नाथूराम गोडसे बोल्टो आहे (मैं नाथूराम गोडसे बोल रहा हूं) नामक सभी रूपों में पुस्तक को जब्त करने के लिए एक नोटिस को इस कारण से जब्त कर लिया था कि उक्त पुस्तक के प्रकाशन से सार्वजनिक शांति भंग होगी, विभिन्न समूहों या समुदायों के बीच वैमनस्य (डिसहार्मनी) या शत्रुता, घृणा या द्वेष की भावना को बढ़ावा मिलेगा।

धारा 97 एक ऐसे व्यक्ति की तलाशी के बारे में है जिसका सीमित किया गया है और ऐसा करना एक अपराध है। यदि किसी जिला, उप प्रभागीय या प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के पास ऐसा मानने का कोई कारण है, तो वह तलाशी वारंट जारी कर सकता है। जिस व्यक्ति को तलाशी वारंट संबोधित किया जाता है, उसे बंद व्यक्ति की तलाशी लेनी होती है और अगर उसे बंद व्यक्ति मिल जाता है, तो उसे आगे की कार्यवाही के लिए उसे तुरंत मजिस्ट्रेट के सामने ले जाना होगा। धारा 98 में 18 साल से कम उम्र की एक बच्ची सहित एक अपहृत महिला की बहाली (रेस्टोरेशन) के पहलुओं को शामिल किया गया है। धारा 99 में तलाशी वारंट के निर्देश शामिल हैं। जारी किए गए सभी तलाशी वारंट पर धारा 38, 70, 72, 74, 77, 78 और 79 के प्रावधान लागू होते हैं।

तलाशी वारंट और सम्मन से संबंधित प्रपत्र (फॉर्म)

एक बार दायर किए जाने के बाद अधिकारी को विशेष अपराध के बारे में जानकारी प्राप्त होने के बाद वारंट की तलाशी के लिए प्रपत्र संख्या 10 है। प्रपत्र संख्या 11 किसी विशेष स्थान की तलाशी के लिए है जो जमा करने का संदिग्ध स्थान है। प्रपत्र संख्या 30 के तहत, उस व्यक्ति के लिए विशेष सम्मन जारी किया जाता है, जिस पर छोटे-मोटे अपराध करने का आरोप होता है। प्रपत्र संख्या 33 के तहत गवाहों को सम्मन निष्पादित किया जाता है। ये तलाशी वारंट और सम्मन से संबंधित प्रपत्र हैं।

बंद स्थान के प्रभारी व्यक्ति द्वारा तलाशी के लिए अनुमति

यदि किसी स्थान की तलाशी लेनी है या निरीक्षण करना, बंद करना है, तो उस स्थान के रहने वाले या प्रभारी व्यक्ति को धारा 100 में उल्लिखित अधिकारी को प्रवेश देना होगा और उसे वह सभी सुविधाएं प्रदान करनी होंगी जो तलाशी के लिए उपयुक्त या आवश्यक हैं। यदि प्रवेश प्राप्त नहीं किया जा सकता है, तो पुलिस अधिकारी धारा 47 (2) में निर्दिष्ट तरीके से आगे बढ़ सकता है।

यदि किसी व्यक्ति पर ऐसा कुछ छिपाने का संदेह है जिसके लिए अधिकारी तलाशी ले रहा है, तो उस व्यक्ति की तलाशी ली जा सकती है ताकि वह छुपी हुई वस्तु मिल सके। अगर कोई महिला कुछ वस्तु छुपा रही है तो महिला की किसी दूसरी महिला द्वारा तलाशी की जा सकता है; लेकिन की गई तलाशी के लिए शालीनता का सख्ती से पालन किया जाएगा। इस धारा के अनुसार, उस विशेष समाज या इलाके के दो या दो से अधिक सम्मानित और स्वतंत्र निवासियों को बुलाना महत्वपूर्ण है।

उदाहरण: रूप चंद बनाम हरियाणा राज्य के मामले में, अदालत ने दोहराया कि यह एक अच्छी तरह से स्थापित कानूनी अवधारणा है कि जांच एजेंसी को स्वतंत्र गवाहों की सहायता करनी चाहिए, जब प्रतिबंधित वस्तुएं जब्त की जाती हैं, और ऐसी स्थिति में उनकी असमर्थता अभियोजन मामले पर संदेह डालती है। लेकिन अगर उनमें से कोई भी तलाशी का गवाह बनने के लिए तैयार नहीं है या उपलब्ध नहीं है, तो पुलिस उन्हें ऐसा करने के लिए लिखित रूप में आदेश जारी कर सकती है। अगर कोई व्यक्ति बिना उचित कारण बताए गवाह बनने से इनकार करता है, तो ऐसे व्यक्ति को आईपीसी की धारा 187 के तहत अपराधी माना जाएगा।

तलाशी, बुलाए गए निवासियों की उपस्थिति में आयोजित की जाती है। जब्त की गई सभी सामग्रियों की सूची पर गवाहों को हस्ताक्षर करने होंगे। जब तक सम्मन में विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया जाता है, तब तक किसी गवाह को कार्यवाही में शामिल होने की आवश्यकता नहीं होती है। अधिभोगी (ओक्यूपेंट) तलाशी के हर चरण में उपस्थित हो सकते है।

पुलिस अधिकारी को अधिभोगी को जब्त की गई वस्तुओं की एक प्रति देनी होती है; धारा 101 उन चीजों के निपटान से संबंधित है जो अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) से परे तलाशी में पाई जाती हैं। यदि किसी न्यायालय द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर तलाशी वारंट जारी किया जाता है, तो जब्त की गई वस्तुओं की सूची के साथ चीजों को तुरंत अदालत में ले जाना होता है। धारा 103 के तहत मजिस्ट्रेट अपनी मौजूदगी में तलाशी लेने का निर्देश दे सकते है।

पुलिस अधिकारी की शक्तियां

जबकि समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखना पुलिस की जिम्मेदारी है; हम सभी ने ऐसी घटनाओं के बारे में सुना है जहां पुलिस ने अपनी सीमाएं लांघी और हमारे अधिकारों का उल्लंघन किया है। तो यहां भारत में तलाशी और जब्ती से संबंधित पुलिस शक्तियों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है।

कानून पुलिस और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को शक्ति प्रदान करता है। कुछ संपत्ति को जब्त करने की पुलिस अधिकारियों को शक्ति दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में धारा 102 के तहत दी गई है। कोई भी पुलिस अधिकारी किसी भी संपत्ति को जब्त कर सकता है जो ज्ञात या चोरी होने का संदेह हो सकती है या ऐसी परिस्थितियों में पाई जाती है जो किसी भी अपराध के होने का संदेह पैदा करती हैं। पुलिस अधिकारी को जब्ती की सूचना वरिष्ठ (सीनियर) अधिकारी को देनी होगी यदि वह उस वरिष्ठ अधिकारी के अधीनस्थ (सबऑर्डिनेट) है जो थाने का प्रभारी है। प्रत्येक पुलिस अधिकारी जब्ती की सूचना अधिकार क्षेत्र वाले मजिस्ट्रेट को तत्काल देगा। जहां जब्त की गई संपत्ति ऐसी है कि इसे आसानी से न्यायालय में नहीं ले जाया जा सकता है, वह किसी भी व्यक्ति को एक बांड के निष्पादन पर अदालत के समक्ष संपत्ति देने और संपत्ति के निपटान के बारे में अदालत के अगले आदेशों को प्रभावी करने के लिए बोंड के निष्पादन पर हिरासत दे सकता है। 

पुलिस आपके घर या कार्यालय में वारंट के बिना तलाशी ले सकती है यदि उन्हें संदेह है कि आपके पास छिपी हुई वस्तुएं हैं जिन्हें अवैध माना जाता है, जैसे कि नशीले पदार्थ, आदि। एक साझा घर के लिए, यदि आप मौजूद नहीं हैं, तो पुलिस वारंट के बिना साझा क्षेत्रों की तलाश करेगी, लेकिन आपकी निजी चीजों को तलाशी नहीं करेगी। पुलिस बिना अनुमति के जब्त कार की तलाशी भी ले सकती है।

ऐतिहासिक निर्णय

  • वी.एस. कुट्टन पिल्लई बनाम रामकृष्णन के मामले में, तलाशी वारंट की प्रक्रियात्मक वैधता को बरकरार रखा गया था, जिसमें यह माना गया था कि आरोपी के कब्जे वाले परिसर की तलाशी किसी भी तरह से उसे अपने खिलाफ सबूत देने के लिए मजबूर नहीं करती थी और इस प्रकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन नहीं है।
  • रमेश बनाम लक्ष्मी बाई के मामले में, यह माना गया था कि एक बेटे को उसके पिता की हिरासत में नहीं रखा जाना चाहिए या उसे गैरकानूनी नजरबंदी के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, और तदनुसार, उसके लिए कोई तलाशी वारंट जारी नहीं किया जा सकता है।
  • माताजोग डोबे बनाम एच.सी. भारी के मामले में अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां वैधानिक (स्टेच्यूटरी) प्रावधानों का पालन नहीं किया गया है, तलाशी  के समर्थन में साक्ष्य की विश्वसनीयता कम हो सकती है और प्रदान किए गए साक्ष्यो पर अविश्वास किया जा सकता है जब तक कि प्रतिवादी प्रावधानों के किसी भी गैर-अनुपालन के लिए पर्याप्त कारण नहीं देता है।
  • महाराष्ट्र राज्य बनाम तापस डी. नियोगी के मामले में, यह सही ठहराया गया था कि संहिता की धारा 102 के तहत ‘बैंक खाते’ को संपत्ति के रूप में सुनिश्चित किया जाता है और पुलिस अधिकारी को ऐसे बैंक खाते के संचालन को जब्त करने का अधिकार है, अगर ये संपत्तियां विशेष रूप से उस अपराध से संबंधित हैं जिसके लिए जांच की जा रही है।
  • मध्य प्रदेश राज्य बनाम पलटन मल्लाह के मामले में, यह माना गया था कि अवैध तलाशी के तहत प्राप्त साक्ष्य पूरी तरह से खारिज नहीं किए जाते है जब तक कि इससे आरोपी को गंभीर पूर्वाग्रह (प्रेजुडिस) न हो। अदालतों को हमेशा इस तरह के साक्ष्यों को स्वीकार करने या न करने का फैसला करने का विवेक दिया गया है।
  • मोदन सिंह बनाम राजस्थान राज्य के मामले में, यह माना गया था कि यदि अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) अधिकारी द्वारा लापता वस्तुओं को पुनः प्राप्त करने का साक्ष्य देना है, तो इस आधार पर वसूली के सबूत से इनकार करना उचित नहीं है कि जब्ती गवाह अभियोजन पक्ष के संस्करण (वर्जन) को स्वीकार नहीं करते हैं।

निष्कर्ष

तलाशी और जब्ती का अधिकार समाज की बेहतरी के लिए एक अनिवार्य शक्ति है; तलाशी और जब्ती स्वभाव से एक अत्यंत व्यक्तिपरक (सब्जेक्टिव) तंत्र है, और शक्ति के प्रयोग पर विशिष्ट प्रक्रियात्मक सीमाएं भी हैं। तलाशी और जब्ती करने के लिए अधिकृत अधिकारियों के पास विशिष्ट शक्तियां होती हैं और प्रत्येक स्तर पर जिम्मेदारी से एक वरिष्ठ अधिकारी को रिपोर्ट करना आवश्यक होता है ताकि कोई भी अधिकारी मनमाने ढंग से कार्य न कर सके।

तलाशी लेने और जब्त करने का अधिकार विशेष रूप से कानून में निर्धारित होना चाहिए और संबंधित अधिकारी को निर्धारित नियमों और प्रक्रिया के अनुपालन में कार्य करना चाहिए। पुलिस अधिकारियों को पूछताछ करने, लोगों को गिरफ्तार करने, तलाशी लेने, व्यक्तियों और उनकी संपत्ति की जब्ती करने और यहां तक ​​कि ड्यूटी के दौरान उचित बल का उपयोग करने का अधिकार प्रदान किया जाता है; फिर भी इस शक्ति को कानून की सीमाओं के भीतर प्रयोग किया जाना चाहिए, और जब अधिकारी उन सीमाओं से अधिक हो जाते हैं तो वे अभियोजन के लिए एकत्रित किसी भी जानकारी की स्वीकार्यता को खतरे में डाल देते हैं।

 

 

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