विचारण से पहले की प्रक्रिया: सी.आर.पी.सी. के तहत विचारण में आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रिया

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Criminal Procedure Code
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यह लेख जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल की तीसरे वर्ष की कानून के छात्रा Mehar Verma द्वारा लिखा गया है। इस लेख में, लेखक सी.आर.पी.सी. के तहत समन, वारंट और उद्घोषणा (प्रोक्लेमेशन) के माध्यम से विचारण (ट्रायल) के समय आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक प्रक्रिया के बारे में बात करती है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

आपराधिक मामले में आरोपी के साथ साथ प्रत्येक व्यक्ति को विचारण का अधिकार है और न्यायालय के समक्ष पेश होने का अधिकार है। एक निष्पक्ष विचारण वह होती है जहां आरोपी को मामले में उपस्थित होने की अनुमति दी जाती है और आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए, न्यायालय को समन या वारंट के माध्यम से विचारण में सभी आरोपी को नोटिस जारी करना आवश्यक होता है। यदि आरोपी फिर भी पेश नहीं होता है, तो अदालत उद्घोषणा जारी कर सकती है। यदि न्यायालय, आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत ‘A’ को समन जारी करता है, तो वह उसे उसके खिलाफ आरोपों के बारे में सूचित करता है और अदालत के सामने पेश होने के लिए कहता है। यदि आरोपी ऐसा करने में विफल रहता है, तो न्यायालय वारंट जारी करेगा, जिसमें किसी तीसरे व्यक्ति को न्यायालय में ‘A’ को पकड़ कर लाने के लिए कहा जाएगा। यदि ‘A’ वहां से भाग जाता है या अपनी इच्छा से खुद को छुपाता है, तो न्यायालय ‘A’ के ​​खिलाफ उद्घोषणा का नोटिस जारी करेगा और ‘A’ की संपत्ति को कुर्क (अटैच) करेगा।

विचारण में आरोपी की उपस्थिति का महत्व

विचारण में आरोपी की उपस्थिति आपराधिक प्रक्रिया का मूल सिद्धांत है, जो यह सुनिश्चित करता है कि आरोपी के मौलिक अधिकारों का उल्लघंन न किया जाए। आरोपी  की उपस्थिति न केवल तथ्यात्मक परिस्थितियों को स्थापित करने में मदद करती है बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि आरोपी के पास बचाव का एक प्रभावी अधिकार है। विचारण में आरोपी की भौतिक उपस्थिति उसे सार्थक (मीनिंगफुल) और सूचित तरीके से भाग लेने, अपना मामला पेश करने का अधिकार, गवाहों का परीक्षण करने का अधिकार और समझने का अधिकार देती है। इस प्रकार एक निष्पक्ष विचारण के संचालन के लिए, विचारण की सभी कार्यवाही आरोपी या उसके वकील के सामने होनी चाहिए और आपराधिक विचारण में एकतरफा निर्णय नहीं होना चाहिए। निष्पक्ष विचारण की भावना में और यह सुनिश्चित करने के लिए कि आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया गया है, अपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 238 के तहत, मजिस्ट्रेट को चार्जशीट की एक प्रति (कॉपी), गवाहों के बयान और आरोपी की जांच के बारे में अन्य सभी आवश्यक दस्तावेजों सहित सभी आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराने होते है। अपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 273 के तहत प्रावधान है कि विचारण के सभी साक्ष्य या कोई अन्य विचारण आरोपी या उसके वकील की उपस्थिति में ही किया जाएगा। इसके अलावा संहिता की धारा 317 में कहा गया है कि यदि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक हो तो, एक मजिस्ट्रेट आरोपी की उपस्थिति के बिना ही विचारण को आगे बढ़ा सकता है।

मोहम्मद हुसैन @ जुल्फिकार बनाम दिल्ली राज्य, के मामले में आरोपी को केवल एक ही गवाह से परीक्षण करने की अनुमति दी गई थी, जबकि वहां माजूद कुल मिलाकर छप्पन गवाह थे। अदालत ने कहा कि आरोपी की दोषसिद्धि (कनविक्शन) को रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि यह एक निष्पक्ष विचारण नहीं है और एक गंभीर आरोप के आरोपी व्यक्ति को विचारण में शामिल होने से इनकार नहीं किया जाना चाहिए।

आरोपी की उपस्थिति हासिल करने के लिए प्रक्रिया

चूंकि आरोपी की उपस्थिति और दोनों पक्षों का विचारण, एक निष्पक्ष विचारण का सार है, इसलिए संहिता का एक पूरा अध्याय एक समन, वारंट या उद्घोषणा, और संपत्ति की कुर्की के संबंध में सभी प्रतिवादियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने की प्रक्रिया के बारे मे बताता है। किसी अपराध का संज्ञान (कॉग्निजेंस) लेने के बाद मजिस्ट्रेट को यह तय करना होता है कि आरोपी की उपस्थिति के लिए समन या वारंट जारी किया जाए या नहीं।

गिरफ्तारी का समन

समन अदालत द्वारा दिया गया एक आदेश है, जिसमें एक व्यक्ति को आपराधिक मामलों में अदालत के सामने पेश होने के लिए कहा जाता है।

समन का रूप

संहिता की धारा 61 समन का रूप प्रदान करती है। प्रत्येक समन:

  1. लिखित में होना चाहिए;
  2. एक डुप्लीकेट प्रति बनाई जानी चाहिए;
  3. इस पर ऐसे न्यायालय के पीठासीन (प्रीसाइडिंग) अधिकारी या उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित किसी अन्य अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए;
  4. कोर्ट की मुहर होनी चाहिए।

संहिता की अनुसूची 2 का फॉर्म 1, समन का प्रारूप (फॉर्मेट) प्रदान करता है और इसमें आरोपी का नाम, आरोपी का पता, समन जारी करने की तिथि, मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर और न्यायालय की मुहर शामिल है।

समन कैसे भेजा जाता है?

संहिता की धारा 62 समन भेजने की प्रक्रिया प्रदान करती है। इस धारा का खंड (क्लॉज) (1) कहता है कि प्रत्येक समन को, एक पुलिस अधिकारी या अदालत के किसी अधिकारी या अन्य लोक सेवकों द्वारा भेजा जाएगा, जो संबंधित राज्य सरकार के नियमों के अधीन होगा।

इस धारा के खंड (2) में कहा गया है कि यदि संभव हो तो समन की प्रति, व्यक्तिगत रूप से समन भेजे गए व्यक्ति को दी जानी चाहिए।

धारा के खंड (3) में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति जिसे समन भेजा गया है, उसे डुप्लिकेट प्रति के पीछे हस्ताक्षर करना होगा, यदि यह सेवारत अधिकारी द्वारा आवश्यक है।

कॉर्पोरेट निकायों और सोसायटियों पर समन की तामील (सर्विस)

संहिता की धारा 63 के अनुसार, निगम के सचिव, स्थानीय प्रबंधक या निगम के किसी अन्य प्रमुख अधिकारी को तामील करके कॉर्पोरेट निकायों और सोसायटियों पर समन किया जा सकता है। समन भारत में निगम के मुख्य अधिकारी को संबोधित एक पत्र या डाक के माध्यम से दिया जा सकता है। ऐसे मामलों में, समन की तामील तब पूरी होती है जब डाक के सामान्य क्रम में पत्र आते हैं।

इस धारा में ‘निगम’ में सोसायटी पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत सोसायटी शामिल नहीं है, बल्कि इसमें केवल एक निगमित कंपनी या अन्य कॉर्पोरेट निकाय शामिल हैं।

जब समन किए गए व्यक्ति न मिल सकें तब तामील

संहिता की धारा 64 में कहा गया है कि ऐसे मामलों में जहां व्यक्ति सम्यक् तत्परता (ड्यू डिलीजेंस) के बाद भी नहीं मिल सकता है, तो समन की एक प्रति उसके साथ रहने वाले उसके परिवार के वयस्क (एडल्ट) पुरुष सदस्य को दी जा सकती है। धारा यह भी प्रावधान करती है कि यदि समन देने वाला अधिकारी आवश्यक समझे तो वह डुप्लीकेट प्रतियों पर हस्ताक्षर करवा सकता है।

सरकारी सेवक पर तामील

धारा 66 में प्रावधान है कि जिन मामलों में समन किया गया व्यक्ति कोई सरकारी कर्मचारी है, तो अदालत उस कार्यालय के प्रमुख को समन की एक प्रति भेज देगी, जिसमें ऐसा व्यक्ति काम करता है। तत्पश्चात, मुख्य अधिकारी संहिता की धारा 62 में निर्धारित शर्तों का पालन करते हुए समन किए गए व्यक्ति पर इसकी तामील करेगा और इसे अपने हस्ताक्षर के तहत न्यायालय को लौटा देगा। आरोपी के हस्ताक्षर सबूत के तौर पर काम करते हैं।

ऐसे मामलों में, जब तामील करने वाला अधिकारी उपस्थित न हो, तब तामील का सबूत

अदालत को समन की तामील के सबूत की आवश्यकता होती है। धारा 68 में यह प्रावधान है कि जिन मामलों में समन न्यायालय के स्थानीय अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) से बाहर जारी किया गया था, और ऐसे मामलों में जहां समन देने वाला व्यक्ति विचारण के समय उपलब्ध नहीं है, ऐसे मामलों में एक हलफनामा (एफिडेविट) जिसमें कहा गया था कि समन न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। हलफनामा और समन की दूसरी प्रति अनुमेय (एडमिसिबल) साक्ष्य हैं और हलफनामे में दिए गए बयानों को तब तक सत्य माना जाता है जब तक कि इसके विपरीत साबित न हो जाए।

गिरफ्तारी का वारंट

ऐसे मामलों में जहां समन का अनुपालन नहीं किया जाता है या यदि अपराध बेहद गंभीर होते हैं, तो अदालत वारंट जारी कर सकती है। एक वारंट अदालत द्वारा किसी तीसरे पक्ष को दिया गया आदेश है, आमतौर पर यह एक पुलिस अधिकारी को अदालत के समक्ष एक व्यक्ति को पकड़ कर लाने के लिए होता है। वारंट जमानती भी हो सकता है और गैर जमानती भी।

गिरफ्तारी वारंट का फॉर्म और विषय

संहिता की धारा 70 गिरफ्तारी और अवधि के वारंट का रूप प्रदान करती है। गिरफ्तारी का हर वारंट निम्नलिखित रूप में होना चाहिए:

  • लिखित में होना चाहिए;
  • पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए;
  • न्यायालय की मुहर होनी चाहिए।

वारंट तब तक लागू रहेगा जब तक कि इसे निष्पादित करने वाले न्यायालय द्वारा इसे रद्द नहीं किया जाता है।

संहिता की अनुसूची 2 का फॉर्म 2 वारंट जारी करने का प्रारूप प्रदान करता है, इसमें उस व्यक्ति या व्यक्तियों का नाम और पद होना चाहिए जो वारंट निष्पादित (एग्जीक्यूट) कर रहा हैं, आरोपी का नाम और पता, वारंट जारी करने की तारीख, मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर और न्यायालय की मुहर लगी होनी चाहिए।

गिरफ्तारी वारंट के निष्पादन के तरीके

संहिता की धारा 72 के तहत, गिरफ्तारी का वारंट आमतौर पर एक पुलिस अधिकारी द्वारा निष्पादित किया जाता है। हालाँकि, यदि तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है और उस समय कोई पुलिस अधिकारी उपलब्ध नहीं है, तो न्यायालय किसी अन्य व्यक्ति को वारंट निष्पादित करने का निर्देश दे सकता है।

यह धारा यह भी प्रावधान करती है कि जब वारंट एक से अधिक अधिकारी या व्यक्ति को निर्देशित किया जाता है, तो वारंट उनमें से किसी या उन सभी द्वारा निष्पादित किया जा सकता है।

जिस व्यक्ति के विरुद्ध वारंट जारी किया गया है, उसके गिरफ्तार होने पर प्रक्रिया

जिस व्यक्ति के विरुद्ध वारंट जारी किया गया है, उसके गिरफ्तार होने पर प्रक्रिया, संहिता की धारा 80 में वर्णित है। जब न्यायालय के स्थानीय अधिकार क्षेत्र के बाहर वारंट जारी किया जाता है, तो व्यक्ति को मजिस्ट्रेट या जिला अधीक्षक (डिस्ट्रिक्ट सुपरिटेंडेंट) या मूल अधिकार क्षेत्र के आयुक्त (कमीशनर) के समक्ष ले जाया जाता है। हालांकि, अगर गिरफ्तारी की जगह वारंट जारी करने वाली अदालत के 30 किलो मीटर के भीतर है, तो गिरफ्तार व्यक्ति को वारंट जारी करने वाली अदालत में ही ले जाया जाएगा। उदाहरण के लिए, दिल्ली के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट सोनीपत में एक व्यक्ति का गिरफ्तारी वारंट जारी करते हैं। हालांकि आरोपी दिल्ली-सोनीपत की सीमा पर रहता है और उसका आवास मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट से 30 किलोमीटर के दायरे में है, तो इस मामले में आरोपी को दिल्ली के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया जाएगा न कि सोनीपत के मजिस्ट्रेट के पास।

गिरफ्तारी के बाद मजिस्ट्रेट द्वारा प्रक्रिया

गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने का अधिकार है। संहिता की धारा 81 में कहा गया है कि यदि अपराध जमानती है और गिरफ्तार व्यक्ति मजिस्ट्रेट, जिला अधीक्षक या आयुक्त की आवश्यकता के अनुसार जमानत देने को तैयार है या वारंट पर प्रतिभूति (सिक्योरिटी) देने का निर्देश दिया गया है और गिरफ्तार व्यक्ति ऐसी प्रतिभूति देने के लिए तैयार है, तो जिला अधीक्षक या आयुक्त ऐसी प्रतिभूति या जमानत लेंगे और न्यायालय को एक बॉन्ड भेजेंगे।

यदि अपराध गैर-जमानती है, तो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या सत्र (सेशन) न्यायाधीश न्यायालय के समक्ष प्राप्त जानकारी और दस्तावेजों के आधार पर गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत दे सकते हैं।

संपत्ति की उद्घोषणा और कुर्की

उद्घोषणा का अर्थ है व्यक्ति को स्वयं न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने का अंतिम अवसर देना और यह तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति वारंट लेने से बचता है या फरार हो जाता है। एक व्यक्ति को उसके निवास या अंतिम ज्ञात पते पर एक उद्घोषणा नोटिस दिया जाता है, जिसमें उसे न्यायालय के समक्ष पेश होने के लिए 30 दिन का समय दिया जाता है और यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो अदालत उसके फरार होने की उद्घोषणा करती है। ऐसे व्यक्ति को देश में किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किया जा सकता है और उसकी संपत्ति को कुर्क और बेचा भी जा सकता है।

फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा

धारा 82 के खंड (1) में कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति फरार हो जाता है या जानबूझकर छुपा रहता है ताकि वारंट निष्पादित नहीं किया जा सके, तो न्यायालय ऐसे व्यक्ति के खिलाफ एक लिखित उद्घोषणा जारी कर सकता है, जिसमें उसे इस उद्घोषणा के 30 दिनों के भीतर निर्दिष्ट समय और स्थान पर उपस्थित होने की आवश्यकता होती है।

इस धारा का खंड (2) उद्घोषणा को प्रकाशित करने की प्रक्रिया प्रदान करता है:

  • इसे उस नगर या ग्राम के, जिसमे ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है, किसी स्थान में सार्वजनिक रूप में पढ़ा जाना चाहिए;
  • यह उस घर के किसी भाग पर लगाया जाएगा, जिसमें व्यक्ति सामान्य रूप से निवास करता है;
  • उसकी एक प्रति उस न्यास सदन के किसी सहजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी;
  • उद्घोषणा को एक दैनिक समाचार पत्र में भी प्रकाशित किया जा सकता है यदि न्यायालय को लगता है कि यह आवश्यक है।

न्यायालय द्वारा लिखित में दिए गए एक बयान को स्वीकार्य सबूत माना जाता है कि उद्घोषणा की गई थी। बयान में यह शामिल है कि इस धारा की आवश्यकता का अनुपालन किया गया है और जिस तारीख को उद्घोषणा की गई थी।

फरार व्यक्ति की संपत्ति की कुर्की

धारा 83 के तहत, यदि न्यायालय का मानना ​​है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ उद्घोषणा जारी की गई है, अपनी समस्त संपत्ति या उसके किसी भाग को उस न्यायालय की स्थानीय अधिकार क्षेत्र से हटाने वाला है, तो न्यायालय उद्घोषणा जारी करने के साथ ऐसी संपत्ति को कुर्क करने का आदेश दे सकता है।

यदि कुर्क करने का आदेश दी गई संपत्ति एक चल संपत्ति है, तो इस धारा के तहत कुर्की की जाएगी:

  1. जब्ती से;
  2. एक रिसीवर नियुक्त करके;
  3. उद्घोषित व्यक्ति को ऐसी संपत्ति के वितरण को प्रतिबंधित करने वाले लिखित आदेश द्वारा;
  4. उपरोक्त में से किसी या सभी आदेशों द्वारा।

यदि विचाराधीन संपत्ति अचल है और जहां राज्य सरकार को राजस्व (रेवेन्यू) देने वाली भूमि का भुगतान किया जाता है, वहां संपत्ति को जिले के कलेक्टर के माध्यम से कुर्क किया जाता है और अन्य सभी मामलों में कुर्की निम्नलिखित द्वारा की जाएगी:

  1. कब्जा करके;
  2. एक रिसीवर नियुक्त करके;
  3. उद्घोषित व्यक्ति को किराए के भुगतान पर रोक लगाकर;
  4. उपरोक्त में से किसी एक या सभी आदेशों से।

यदि कुर्क की गई संपत्ति खराब होने वाली प्रकृति की है, जिसमें पशुधन (लाइव स्टॉक) शामिल है, तो न्यायालय तत्काल बिक्री का आदेश दे सकता है।

कुर्की के बारे में दावे और आपत्ति

संहिता की धारा 84 के अनुसार, यदि संपत्ति की कुर्की के 6 महीने के भीतर उद्घोषित व्यक्ति को छोड़कर किसी भी व्यक्ति द्वारा कोई आपत्ति की जाती है, यह दावा करते हुए कि कुर्क की गई संपत्ति में उसका हित है, तो न्यायालय को दावे या आपत्ति के बारे में पूछताछ करने की आवश्यकता है।

ऐसी आपत्ति या दावे के लिए वाद उस न्यायालय में किया जा सकता है, जिसने कुर्की जारी की है या उस न्यायालय में जिसने कुर्की की है, यदि न्यायालय भिन्न हो।

कोई भी व्यक्ति जिसका दावा या आपत्ति अस्वीकार्य है, वह ऐसे आदेश की तिथि से एक वर्ष के भीतर अपील कर सकता है।

कुर्क की हुई संपत्ति को निर्मुक्त (रिलीज) करना, विक्रय (सेल) और वापस करना

संहिता की धारा 85 के अनुसार, यदि उद्घोषित व्यक्ति 30 दिनों की समाप्ति से पहले न्यायालय के समक्ष पेश होता है, तो कुर्क की गई संपत्ति को निर्मुक्त कर दिया जाता है।

यदि उद्घोषित व्यक्ति उपस्थित नहीं होता है, तो कुर्क की गई संपत्ति राज्य सरकार के व्ययनाधीन (डिस्पोजल) पर रहेगी। हालाँकि, सरकार कुर्की की तारीख से 6 महीने की समाप्ति से पहले संपत्ति को तब तक नहीं बेच सकती जब तक कि संपत्ति खराब न हो और संपत्ति को बेचना मालिक के सर्वोत्तम हित में न हो।

यदि दो वर्ष के भीतर, अपनी इच्छा से उद्घोषित व्यक्ति अदालत के सामने आता है और यह साबित करता है कि वह फरार नहीं हुआ था, बल्कि उसके पास उद्घोषणा की कोई सूचना नहीं थी, तो कुर्क की गई संपत्ति को वापस कर दिया जाता है और यदि वह पहले ही बेची जा चुकी है, तो बिक्री की आय उसे दी जाती है।

निष्कर्ष

आपराधिक प्रक्रिया संहिता, विचारण में आरोपी की उपस्थिति को उचित महत्व देती है और इस प्रकार संहिता का एक पूरा अध्याय आरोपी की उपस्थिति से संबंधित है। न्यायालय समन जारी कर किसी व्यक्ति को निर्धारित फॉर्म में न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए कह सकता है। समन लिखित रूप में किया जाता है और एक डुप्लीकेट प्रति पर हस्ताक्षर करके न्यायालय द्वारा मुहर लगाई जाती है। समन न्यायालय के किसी भी लोक अधिकारी या राज्य सरकार द्वारा निर्धारित अन्य लोक सेवकों द्वारा तामील किया जा सकता है।

ऐसे मामलों में जहां समन का अनुपालन नहीं किया जाता है या गंभीर अपराध होते हैं, अदालत निर्धारित प्रपत्र में वारंट जारी करती है। समन की तरह वारंट भी लिखित रूप में बनाया जाता है, सील किया जाता है और न्यायालय द्वारा हस्ताक्षरित किया जाता है।

यदि आरोपी फरार होने की कोशिश करता है और वारंट से बचता है, तो न्यायालय एक व्यक्ति को अदालत के सामने पेश होने का अंतिम मौका देते हुए एक उद्घोषणा जारी कर सकता है। यदि न्यायालय आवश्यक समझे, तो उद्घोषित व्यक्ति की संपत्ति को भी कुर्क कर सकता है।

 

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