जांच के दौरान किसी संपत्ति को जब्त करने की पुलिस की शक्ति

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Criminal Procedure Code

यह लेख Shashank Singh Rathor द्वारा लिखा गया है, जो वर्तमान में आइडियल इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी और स्कूल ऑफ लॉ, जो की जी.जी.एस.आई.पी.यू., दिल्ली से संबद्ध (एफिलिएटेड) है, से बी.ए.एल.एल.बी. की डिग्री कर रहे है। यह लेख, सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत पुलिस अधिकारियों को प्रदान की गई शक्ति पर प्रकाश डालता है और सी.आर.पी.सी. की धारा 102 पर नेवादा प्रॉपर्टीज निर्णय के निहितार्थों (इंप्लीकेशन) पर भी चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

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परिचय 

आप इस पर कैसी प्रतिक्रिया (रिएक्शन) देंगे अगर मैं आपको बताऊं कि अपराधिक प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की धारा 102 के तहत पुलिस अधिकारियों को आपकी किसी भी संपत्ति को जब्त करने की शक्ति प्रदान की गई है? कल्पना कीजिए कि, आपके पड़ोस में एक अपराध किया गया है और पुलिस आपकी संपत्ति को इस संदेह पर जब्त कर लेती है कि आप उस विशेष अपराध के पीछे मास्टरमाइंड हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे? 

उस समय आप शायद पुलिस की शक्ति पर एक दम असहाय, खुद को आहत में महसूस करेंगे। खैर, आप सोच रहे होंगे कि आप एक ऐसे देश का हिस्सा हैं जहां पुलिस सब कुछ केवल शक के आधार पर ही कर सकती है। वैसे अगर आपको इस तरह की कोई भी शंका है तो यह लेख आपको इससे संबंधित ज्यादातर चीजों को समझाने की कोशिश करेगा।

यह लेख चर्चा करने जा रहा है कि सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत पुलिस वास्तव में किस चीज को जब्त कर सकती है? इसके अलावा, सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के दायरे से बाहर क्या है? क्या पुलिस अधिकारी सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के दायरे में अचल (इम्मूवेबल) और चल संपत्ति (मूवेबल) दोनों को जब्त करने के लिए अधिकृत (ऑथराइज) हैं या नहीं। यह लेख उन निर्णयों और महत्त्वपूर्ण मामले का भी विश्लेषण करता है, जो प्रत्यक्ष (डायरेक्टली) या अप्रत्यक्ष (इनडायरेक्टली) रूप से धारा 102 से संबंधित हैं। इसके अलावा, अचल संपत्ति की जब्ती से संबंधित कानून में आगे के संशोधनों के बारे में कुछ सुझाव और सिफारिशें भी हैं जिन्हें लागू किया जा सकता है या पुलिस अधिकारियों द्वारा उनका ध्यान रखा जा सकता है। 

चल समपत्ति

सी.आर.पी.सी. के तहत चल संपत्ति की ऐसी कोई परिभाषा नहीं दी गई है। सी.आर.पी.सी. की धारा 2 (y) के अनुसार, भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) की धारा 22 के तहत परिभाषित नियम और भाव सी.आर.पी.सी. में भी समान रूप से लागू होते हैं।

आई.पी.सी. की धारा 22 के तहत ‘चल संपत्ति’ शब्द को परिभाषित किया गया है, जिसमें जमीन और जमीन से जुड़ी चीजों को छोड़कर या जमीन से जुड़ी किसी भी चीज के साथ, स्थायी रूप से जुड़ी हुई चीजों को छोड़कर, हर विवरण की भौतिक (कॉरपोरियल) संपत्ति शामिल है। इस प्रकार, कोई भी संपत्ति या वस्तु जो स्थायी रूप से पृथ्वी से नही जुड़ी है, वह चल संपत्ति कहलाती है।

अपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 102

सी.आर.पी.सी., 1973 की धारा 102 कुछ संपत्ति को जब्त करने के लिए पुलिस अधिकारियों की शक्ति को मान्य करती है।

धारा 102 के अनुसार –

  1. कोई भी पुलिस अधिकारी ऐसी किसी भी संपत्ति को जब्त कर सकता है जिसकी रिपोर्ट की गई हो या जिसकी चोरी होने का संदेह हो, या जो ऐसी परिस्थितियों में पाई जा सकती है जो किसी अपराध के होने का संदेह पैदा करती हैं।
  2. यदि पुलिस थाने के प्रभारी (इन चार्ज) के अलावा किसी अन्य निचले क्रम के पुलिस अधिकारी ने संपत्ति को जब्त कर लिया है तो वह इसकी सूचना थाने के प्रभारी को देने के लिए बाध्य होगा।
  3. उप-धारा (1) के तहत आने वाले प्रत्येक पुलिस अधिकारी को तुरंत अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिक्शन) वाले मजिस्ट्रेट को जब्ती की रिपोर्ट करनी चाहिए और ऐसे मामलों में जहां संपत्ति इस तरह की है कि इसे अदालत में नहीं ले जाया जा सकता है, या यदि उसे सुरक्षित करने में कठिनाई हो रही है तो ऐसी संपत्ति की हिरासत के लिए उचित व्यवस्था, या यदि पुलिस हिरासत में संपत्ति की निरंतर हिरासत की जांच की आवश्यकता नहीं है और जांच के लिए प्रासंगिक नहीं माना जा सकता है, तो पुलिस अधिकारी बांड निष्पादित (एग्जीक्यूट) करने पर किसी को भी उसकी हिरासत प्रदान कर सकता है और इसके निपटान के संबंध में न्यायालय के अगले आदेशों के निष्पादन के लिए, जब आवश्यक हो, न्यायालय के समक्ष पेश करने का वचन दिया जाता है।

यह भी प्रदान किया गया है कि यदि उप-धारा (1) के तहत जब्त की गई संपत्ति तेजी से और प्राकृतिक क्षय (नेचुरल डीके) के अधीन है और ऐसी संपत्ति का मालिक अनुपस्थित या अज्ञात है और ऐसी संपत्ति का मूल्य ₹500 से कम है तो इसे पुलिस अधीक्षक (सुपरिटेंडेंट) के आदेश के तहत तत्काल नीलामी द्वारा बेचा जा सकता है और ऐसी प्रक्रिया के लिए, सी.आर.पी.सी. की धारा 457 और धारा 458 में परिभाषित प्रावधानों को इस तरह की बिक्री की शुद्ध आय के लिए यथासंभव व्यावहारिक रूप से लागू किया जाना चाहिए।

यह धारा कुछ शर्तों को पूरा करने पर प्रकाश डालती है-

  • यदि जब्त करने वाला पुलिस अधिकारी निरीक्षक (इंस्पेक्टर) के पद से नीचे है तो उसे जब्ती की रिपोर्ट तुरंत थाना प्रभारी या वरिष्ठ (सीनियर) अधिकारी को सौंपनी चाहिए।
  • उसके बाद वरिष्ठ अधिकारी को जब्त की गई संपत्ति की रिपोर्ट उस अधिकार क्षेत्र के मजिस्ट्रेट को देनी होगी।

इस धारा के अनुसार, पुलिस की शक्ति विवेकाधीन है, और लूट, चोरी, हत्या आदि के मामले में संपत्ति को जब्त करना अनिवार्य नहीं है।

संपत्ति को जब्त करने का उद्देश्य

कानून के अनुसार, पुलिस को चार मुख्य आधारों के तहत आरोपी की संपत्ति को जब्त करने की शक्ति है :

1. सम्पत्ति को सुरक्षित रखने के लिए

मामले की जांच के लिए और ऐसी संपत्ति को किसी भी तरह के और नुकसान या अपराध से बचाने के लिए पुलिस के पास कीमती संपत्ति जैसे पैसे, गहने, महंगे इलेक्ट्रॉनिक्स आदि को जब्त करने का अधिकार है। कभी-कभी पुलिस अधिकारी आरोपी या अपराधी द्वारा किसी भी तरह की छेड़छाड़ से बचाने के लिए ऐसे काम करते हैं।

2. ज़ब्ती 

पुलिस के पास कुछ संपत्ति को जब्त करने की शक्ति है यदि उनका मानना ​​​​है कि ऐसी संपत्ति को अपराध करने के लिए इस्तेमाल किया गया था या उसे उस अपराध के दौरान हासिल किया गया था।

कुछ संपत्तियों के उदाहरण जिन्हें जब्त किया जा सकता है:

  • कुछ वाहनों को विभिन्न स्थितियों या परिस्थितियों में ज़ब्त किया जा सकता है, जो किसी तरह अपराध से संबंधित हैं।
  • वह राशि जो किसी अपराध के लिए दी या ली जा सकती है जैसे ड्रग्स या अवैध जुआ के गैरकानूनी व्यवहार के लिए कोई राशि।
  • संदिग्ध व्यक्तियों के किसी भी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, जो किसी न किसी तरह से उस विशेष अपराध से जुड़े हैं।

3. कंट्राबेंड

सरल शब्दों में, कंट्राबेंड ऐसी संपत्ति को संदर्भित करता है जिसे पुलिस अधिकारियों द्वारा जब्त किया जा सकता है क्योंकि ऐसी चीजें को रखना पहले से ही एक अपराध है। इस प्रकार की संपत्ति में अवैध ड्रग्स, बिना लाइसेंस के हैंडगन आदि शामिल हैं।

4. साक्ष्य

पुलिस उस संपत्ति को हिरासत में ले सकती है, जो आरोपी व्यक्ति के खिलाफ सबूत बनाने में मदद कर सकती है।   

निदेशकों (डायरेक्टर्स) द्वारा नेवादा प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य 

निदेशकों के द्वारा नेवादा प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2019) में इस मुद्दे को यह कहते हुए सुलझाया कि सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत किसी भी संपत्ति में अचल संपत्ति शामिल नहीं है।

मामले के तथ्य

निम्नलिखित मामले में अपील भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष नेवादा प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका के कारण उत्पन्न हुई, बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा “किशोर शंकर सिग्नापुरकर बनाम महाराष्ट्र राज्य” में दिए गए फैसले पर, एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि सी.आर.पी.सी. की धारा 102 की उप-धारा (1) में “कोई भी संपत्ति” शब्द में अचल संपत्ति शामिल नहीं है और इसलिए, पुलिस अधिकारी किसी भी अचल संपत्ति को जांच के लिए जब्त नहीं कर सकता है, भले ही वह अचल संपत्ति उचित रूप से संदिग्ध हो या उसे अपराध की जांच के बीच संदिग्ध पाया गया हो।

हालांकि, अचल संपत्ति से संबंधित किसी भी दस्तावेज या शीर्षक के कागजात को जब्त करने से पुलिस आधिकारी को प्रतिबंधित नहीं किया जाता है, क्योंकि यह अचल संपत्ति की जब्ती से अलग है।

उठाए गए मुद्दे

  • माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न था कि क्या अचल संपत्ति अपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 102 के तहत “कोई संपत्ति” अभिव्यक्ति के अंतर्गत आती है?

निर्णय

भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने यह फैसला सुनाया था। 

  • सबसे पहले, पीठ ने इस विशेष प्रावधान को लागू करने के पीछे विधायिका के इरादे का विश्लेषण किया। न्यायालय ने कहा कि इस प्रावधान को बनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य पुलिस अधिकारी को ऐसी संपत्ति को जब्त करने के लिए अधिकृत करना है जो ऐसी स्थिति में पाई जा सकती है जिससे उस स्थान पर किसी अपराध के होने का संदेह पैदा हो। लेकिन सख्त अर्थ में, केवल चल संपत्ति को ही हिरासत में लिया जा सकता है या जब्त किया जा सकता है, लेकिन अचल संपत्ति को नहीं। हालांकि संदिग्ध अचल संपत्ति से संबंधित दस्तावेज या कागजात जब्त किए जा सकते हैं, विशेष रूप से अचल संपत्ति को जब्त नहीं किया जा सकता है।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि अचल संपत्ति की जब्ती या हिरासत के लिए सी.आर.पी.सी. की धारा 145 और 146, कानून के अनुसार प्रभावी हो सकती है। हालांकि, सी.आर.पी.सी. की धारा 102 पुलिस अधिकारी को जांच के लिए किसी व्यक्ति को उसकी अचल संपत्ति से हटाने के लिए अधिकृत करने या अनुमति देने का अधिकार नहीं देती है।
  • माननीय न्यायालय ने “ऐसी स्थितियाँ जो किसी भी अपराध के होने पर संदेह पैदा कर सकती हैं” अभिव्यक्ति की भी जांच की। न्यायालय ने कहा कि जब न्यायोचित संतुष्टि की बात आती है तो केवल ‘संदेह’ एक व्यापक और कमजोर शब्द है, और सी.आर.पी.सी. की धारा 102 पुलिस अधिकारियों को अचल संपत्ति के मामलों पर दृढ़ राय रखने और मूल्यांकन या निर्णय लेने की अनुमति या अधिकार नहीं देती है। न्यायालय ने आगे कहा कि यह नहीं भुलाया जा सकता है कि निर्णय लेना न्यायालय की शक्ति है; लेकिन पुलिस का काम किसी भी अपराध की जांच करना है। सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के दायरे में अचल संपत्ति की जब्ती को शामिल करके, पुलिस को किसी की अचल संपत्ति को उनके मात्र अनुमान के आधार पर जब्त करने की अत्यधिक शक्ति होगी। इसके अलावा, अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि भूमि, घर आदि से संबंधित मामला या विवाद सिविल अदालत के अधिकार क्षेत्र में आता है, और किसी सिविल मामले को आपराधिक विवाद में बदलने के ऐसे किसी भी अनुचित प्रयास को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने निम्नलिखित मामलो में कानूनों को ध्यान में रखा था –

1. तीस्ता अतुल सीतलवाड़ बनाम गुजरात राज्य 

तीस्ता अतुल सीतलवाड़ बनाम गुजरात राज्य” में, याचिकाकर्ता ने दलील दी कि पुलिस अधिकारी द्वारा उसके बैंक खाते की निरंतर जब्ती वैध नहीं है क्योंकि यह संपत्ति नहीं है और अपराध से संबंधित नहीं है, इसलिए उसका खाता डिफ्रीज किया जाना चाहिए। अदालत ने मामले का विश्लेषण करने के बाद फैसला सुनाया कि बैंक खाता सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के दायरे में आता है और इसे संपत्ति के रूप में गिना जाएगा और पुलिस द्वारा धारा 102 के तहत बैंक खाते को फ्रीज करना वैध है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने, इस मामले में, महाराष्ट्र राज्य बनाम तपस नियोगी में बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया, जहां संबंधित उच्च न्यायालय ने कहा कि एक आरोपी का बैंक खाता एक संपत्ति नहीं है और वह संपत्ति के दायरे में नहीं आ सकता है इसलिए बैंक खाते को धारा 102 के तहत जब्त नहीं किया जा सकता है ।

2. बिनोद कुमार बनाम बिहार राज्य  

बिनोद कुमार बनाम बिहार राज्य के मामले में वादी ने निर्धारित समय में भवन का अधूरा निर्माण होने के कारण सिविल न्यायालय में मुकदमा दायर किया था। आखिरकार, प्रतिवादी ने उस भवन के निर्माण के लिए निर्धारित राशि का भुगतान न करने के लिए सिविल मामले में एक आपराधिक शिकायत दर्ज की। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सिविल विवाद को अपराधिक विवाद में बदलने के किसी भी प्रयास को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।

3. आर.के डालमिया आदि बनाम दिल्ली प्रशासन  

आर.के डालमिया आदि बनाम दिल्ली प्रशासन के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि सी.आर.पी.सी. की धारा 102 की उप-धारा (1) में अभिव्यक्ति ‘किसी भी संपत्ति’ को भारतीय दंड संहिता 1860 के तहत उल्लिखित परिभाषा के अनुसार स्पष्ट किया जाना चाहिए, जो केवल चल संपत्ति तक ही सीमित नहीं है। वास्तव में भारतीय दंड संहिता 1860 के अनुसार, विशेष संपत्ति विशेष प्रावधान के दायरे में आती है या नहीं, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि वह विशिष्ट संपत्ति किसी अपराध के अधीन है या नहीं।

4. गुजरात राज्य और अन्य बनाम उपयोगिता उपयोगकर्ता कल्याण संघ और अन्य 

गुजरात राज्य और अन्य बनाम उपयोगिता उपयोगकर्ता कल्याण संघ और अन्य के मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि यह पता लगाने के लिए कि कोई भी मामला एक मिसाल कायम करेगा या नहीं, यह सब न्यायालय द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव की संरचना पर निर्भर करता है। न्यायालय को कथित प्रस्ताव को सावधानी से तैयार करना चाहिए और फिर उसके अर्थ को उलटते हुए शब्द को सम्मिलित (इंसर्ट) करना चाहिए। यदि उत्तर विपरीत है, तो मामला एक मिसाल कायम करेगा।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के बहुमत के फैसले ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के पहले के फैसले का समर्थन किया और कहा कि किशोर शंकर सिग्नापुरकर बनाम महाराष्ट्र राज्य में, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कानून को सही ढंग से रखा और बॉम्बे विज्ञान और अनुसंधान (रिसर्च) शिक्षा संस्थान बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य में उसी उच्च न्यायालय के फैसले ने कानून को सही ढंग से निर्धारित नहीं किया। 

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता, “पैनल के न्यायाधीशों में से एक,” ने अलग सहमति वाला फैसला सुनाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत पुलिस ऐसी किसी भी संपत्ति को जब्त करने के लिए अधिकृत है, जिसके चोरी होने का संदेह हो। साथ ही उन्होंने कहा कि चोरी या डकैती चल संपत्ति की हो सकती है, अचल संपत्ति की नहीं। कुछ संपत्ति की वास्तविक शारीरिक हिरासत के लिए ‘जब्त’ शब्द का प्रयोग किया गया है।

उन्होंने आगे कहा कि सी.आर.पी.सी. की धारा 102 की उप-धारा 3 के अनुसार, यदि संपत्ति इस तरह की है कि उसे अदालत में पेश करने के लिए परिवहन (ट्रांसपोर्ट) करना मुश्किल है या उस संपत्ति को हिरासत में लेने के लिए ऐसा आवास प्रदान करना बहुत मुश्किल है, तो ऐसी संपत्ति बांड निष्पादित करने पर किसी को भी सौंपी जा सकती है। यह इंगित करता है कि संपत्ति को न्यायालय के समक्ष पेश करने में सक्षम होना चाहिए और कुछ आवास के अंदर रखने में भी सक्षम होना चाहिए। हालांकि, अचल संपत्ति के साथ यह संभव नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि जमींदारों और किरायेदारों के बीच विवाद में, अगर किराए की संपत्ति को जब्त कर लिया जाएगा तो यह किराये के कानूनों का मजाक होगा।

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने आगे उल्लेख किया कि ऐसी परिस्थितियों में जहां कोई व्यक्ति वसीयत बनाता है, तो ऐसे में “वसीयत” जब्त की जाएगी, न कि वसीयत संपत्ति। क्योंकि ऐसी स्थिति में अचल संपत्ति की जब्ती एक अराजक (क्योटिक) समस्या पैदा करेगी।

मामले का संक्षिप्त विश्लेषण

निदेशकों के द्वारा नेवादा प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य का मामला, माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक है। चूंकि इस फैसले के परिणाम दूरगामी (फाररीचिंग) हो सकते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस फैसले ने सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत प्रदान किए गए पुलिस अधिकारियों की शक्ति का सीमांकन (डिमार्केट) किया है।

न्यायालय द्वारा सुनाया गया फैसला पूरी तरह से न्यायोचित और सही था। न्यायालय ने सहमति व्यक्त की कि अचल संपत्ति निम्नलिखित कारणों से सी.आर.पी.सी. की धारा 102 की उपधारा (1) में उल्लिखित “किसी भी संपत्ति” अभिव्यक्ति के अंतर्गत नहीं आनी चाहिए:

  • सी.आर.पी.सी. की धारा 102 में ‘जब्त’ शब्द स्पष्ट रूप से टिप्पणी करता है कि इस धारा के पीछे का तर्क संपत्ति की भौतिक हिरासत लेना है।
  • अचल संपत्ति ऐसी चीज है जिसे भौतिक रूप से जब्त या हिरासत में नहीं लिया जा सकता है, इसे केवल कुर्क (अटैच) या सील किया जा सकता है।  
  • सी.आर.पी.सी. के अध्याय VIIA के अनुसार, किसी भी अचल संपत्ति को सील करने की शक्ति केवल न्यायालय के पास है।
  • धारा 102 के अनुसार, जब्त की गई संपत्ति के चोरी होने, लूटने आदि का संदेह है, लेकिन एक ‘अचल’ संपत्ति की चोरी नहीं की जा सकती है।
  • धारा 102 की उपधारा (3) स्पष्ट रूप से कहती है कि संपत्ति इस प्रकार की होनी चाहिए जिसे न्यायालय के समक्ष पेश और समायोजित (अकोमोडेट) किया जा सके; अचल संपत्ति के साथ ये दोनों चीजें असंभव हैं।

इसके बाद, उपरोक्त तर्कों से यह व्याख्या की जा सकती है कि पुलिस अधिकारियों को एक अचल संपत्ति को कुर्क करने, सील करने और जब्त करने का अधिकार नहीं है।

विधि आयोग की रिपोर्ट

न्यायमूर्ति के जयचंद्र रेड्डी की अध्यक्षता में भारत के विधि आयोग द्वारा प्रस्तुत 154 वीं विधि आयोग की रिपोर्ट ने सी.आर.पी.सी. पर एक कानूनी सुधार का नेतृत्व किया, जिसमें संहिता की धारा 102 में बदलाव की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया।

त्वरित सुनवाई का अधिकार हमारे देश की अपराधिक प्रक्रिया में सुरक्षित है। इसलिए, इसे प्राप्त करने के लिए, सी.आर.पी.सी. की धारा 102 (3) में एक संशोधन किया गया था और यह सुनिश्चित करने के लिए एक परन्तुक (प्रोविजो) खंड जोड़ा गया था कि अदालत के आचरण के कारण संपत्ति को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होना चाहिए।

सी.आर.पी.सी. की धारा 102(3) के तहत, ‘उचित आवास में कठिनाई या पुलिस हिरासत में संपत्ति का निरंतर प्रतिधारण (रिटेंशन) आवश्यक नहीं माना जाता है’ जैसे शब्दों को शामिल करना, भारतीय अदालतों के लिए धारा की अधिक स्पष्टता के साथ व्याख्या करना आसान बनाता है। 

अन्य देशों के साथ तुलनात्मक विश्लेषण

जांच के लिए, कभी-कभी किसी आरोपी की किसी भी संदिग्ध संपत्ति को अपने कब्जे में लेना आवश्यक होता है, क्योंकि यह जांच का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो जांच अधिकारी को कुछ सुराग दे सकता है और उसे आगे की जांच में आगे बढ़ने में मदद कर सकता है। फिर भी, यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस चरण के दौरान आरोपी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन होने की संभावना कम से कम हो और प्राधिकरण (अथॉरिटी) को इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए।

अन्य देशों में संपत्ति की जब्ती से जुड़े कानून के नियम और प्रावधान निम्नलिखित हैं:

  • कनाडा

कनाडा की आपराधिक प्रक्रिया, 1985 की धारा 489 का पालन करते हुए, कनाडाई पुलिस अधिकारी वारंट के साथ या उसके बिना किसी भी संपत्ति जिसके लिए उनके पास यह मानने के लिए उपयुक्त आधार हैं कि यह उस अपराध करने के दौरान पाई गई थी जो की संसद के इस अधिनियम या किसी अन्य अधिनियम का उल्लंघन करता है को जब्त कर सकते हैं। इस प्रकार, कनाडाई आपराधिक प्रक्रिया में, चल और अचल संपत्ति के बीच पुलिस अधिकारी द्वारा जब्ती के लिए ऐसा कोई विभाजन नहीं है, जो भारतीय न्यायालय के फैसले के विपरीत है। 

  • अमेरिका

अमेरिका में किसी भी संपत्ति की जब्ती सिविल ज़ब्ती और आपराधिक ज़ब्ती के दायरे में आती है। अमेरिका में, पुलिस अधिकारी को न केवल चल संपत्ति जिसके किसी भी प्रकार के अपराध में इस्तेमाल या शामिल होने का संदेह हो सकता है बल्कि अचल संपत्ति को भी जब्त करने का अधिकार है।

  • दक्षिण अफ्रीका

दक्षिण अफ्रीका का आपराधिक प्रक्रिया अधिनियम, 1977 प्रमुख रूप से पुष्टि करता है कि पुलिस कुछ भी जब्त कर सकती है, बशर्ते वे गणतंत्र या अन्य जगहों पर अपराध होने का सबूत प्रदान करें या इस तथ्य का सबूत प्रदान करें कि अपराध करने की योजना बनाई गई थी। इसके अलावा, दक्षिण अफ्रीका की अदालत के फैसले के अनुसार, यह माना गया कि जब्ती शब्द में न केवल संदिग्ध संपत्ति पर कब्जा करना शामिल है, बल्कि बाद में उसी को हिरासत में लेना भी शामिल है।

सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत बैंक खातों और धन की जब्ती

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भीमजी रामजी गुजराती बनाम एंपरर (1944) के मामले में बैंक खाते की जब्ती को कानूनी माना। इस मामले में, पुलिस ने कथित अवैध व्यापार के संबंध में प्राप्त कुछ जानकारी के आधार पर आरोपियों को उनके कब्जे में एक निश्चित राशि के साथ पकड़ा था। न्यायालय ने इस धन की जब्ती को सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत वैध माना गया था।

महाराष्ट्र राज्य बनाम तापस डी नियोगी (1999) के अन्य फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पुलिस के पास सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत एक आरोपी के बैंक खाते को जब्त करने की शक्ति है क्योंकि ‘संपत्ति’ शब्द के दायरे में बैंक खाता शामिल है। सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी को बाद के फैसलों में भी दोहराया गया था। तीस्ता अतुल सीतलवाड़ बनाम गुजरात राज्य (2018) के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने तापस डी. नियोगी के फैसले पर भरोसा किया और कहा कि आरोपी या किसी अन्य व्यक्ति का खाता जो उक्त अपराध से जुड़ा है को किसी भी स्थिति मे जब्त किया जा सकता है। अदालत ने यह भी माना कि सी.आर.पी.सी. की धारा 102 में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे कि पुलिस को आरोपी को इस तरह की जब्ती से पहले एक पूर्व नोटिस जारी करने की आवश्यकता होती है और जांच पूरी होने पर आरोपी द्वारा खाते को डी-फ्रीजिंग के लिए आवेदन किया जा सकता है।

हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय का यह रुख हमेशा एक जैसा नहीं रहा है। न्यायालय ने विभिन्न मामलों में आदेश दिया है के सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत बैंक खाते को “संपत्ति” के रूप में नहीं माना जा सकता है, और यह कहते हुए न्यायालय ने खातों की डी-फ्रीजिंग का आदेश भी दिया है। उदाहरण के लिए, सर्वोच्च न्यायालय ने स्वर्ण सभरवाल बनाम पुलिस आयुक्त (1987) के मामले में कहा कि यदि यह पाया जाता है कि जब्ती झूठे संदेह पर हुई है, तो पुलिस अधिकारियों को आरोपी को मुआवजा देने का निर्देश दिया जाएगा।

इसके अलावा, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने पूर्वांचल सड़क सेवा बनाम राज्य (1990) के मामले में कहा कि  सी.आर.पी.सी. की धारा 102 लागू करने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि एक वास्तविक जब्ती हो। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि “जब्ती” का अर्थ संपत्ति का वास्तविक कब्जा है और इसलिए, केवल बैंक खाते पर प्रतिबंध लगाने को सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के अर्थ में “जब्ती” नहीं कहा जा सकता है। न्यायालय ने जयेंद्र सरस्वती स्वामीगल (2) बनाम तमिलनाडु राज्य (2005) के मामले में भी सख्ती से कहा है कि जांच पूरी होने के बाद बैंक खाते को जब्त नहीं किया जा सकता है। 

कोविड-19 के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर की जब्ती: सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत कानूनी है या अवैध है

दिल्ली उच्च न्यायालय ने, मैट्रिक्स सेल्युलर (इंटरनेशनल) सर्विसेज लिमिटेड बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) (2021) के मामले में, कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान अवैध रूप से बेचे जाने वाले (उच्च लाभ मार्जिन पर बेचे गए) ऑक्सीजन सिलेंडर और अन्य चिकित्सा उपकरणों की जब्ती को संबोधित किया, जिसमें पूरे दिल्ली एनसीआर में ऑक्सीजन सिलेंडर की कम मांग देखी गई। इस मामले में खान चाचा और दयाल ऑप्टिकल्स जैसे हाई प्रोफाइल नाम भी थे। पुलिस द्वारा ऑक्सीजन सिलेंडरों को अवैध रूप से जब्त करने के मुद्दे पर, न्यायालय ने कहा कि सी.आर.पी.सी. की धारा 102 पुलिस को किसी भी संपत्ति को जब्त करने की अनुमति देती है जो चोरी होने के संदेह में है या संदिग्ध परिस्थितियों में पाई जाती है, जो एक अपराध के करने का संकेत देती है। अदालत ने इस आधार पर सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत ऑक्सीजन सिलेंडरों की जब्ती को कानूनी माना क्योंकि सिलेंडर संदिग्ध परिस्थितियों में पाए गए थे और आरोपी को कोविड ​​​​-19 प्रोटोकॉल और लॉकडाउन उपायों का उल्लंघन करते हुए पाया गया था।

सुझाव और सिफारिशें

  • चूंकि हमारे माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के क्षेत्र से अचल संपत्ति की जब्ती को बाहर कर दिया है, इसका मतलब है कि पुलिस अधिकारी इस धारा के तहत प्रदान की गई शक्ति का उपयोग करके किसी भी प्रकार की अचल संपत्ति को जब्त नहीं कर पाएंगे। हमारी विधायिका को यह स्पष्ट करने के लिए सी.आर.पी.सी. की धारा 102 में संशोधन करना चाहिए कि संबंधित धारा में इस्तेमाल की गई कोई भी संपत्ति केवल चल संपत्ति के बारे में बात करती है और अचल संपत्ति को अब सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के दायरे में नहीं गिना जाएगा। यह भविष्य में किसी भी प्रकार के भ्रम से बचने और व्याख्या करने में आसान बनाने के लिए किया जाना चाहिए।
  • इसके अलावा, इसके संबंध में पुलिस अधिकारियों से पूर्ण अधिकार क्षेत्र छीनना कुछ मामलों में हानिकारक हो सकता है। जैसा कि कुछ मामलों में, न केवल चल बल्कि अचल संपत्ति की तत्काल जब्ती की आवश्यकता होती है क्योंकि कभी-कभी संदिग्ध व्यक्ति से किसी भी प्रकार से सबूतों के साथ छेड़छाड़ को रोकने के लिए आवश्यक होता है और यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि सबूतों के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ के कारण मुकदमे में बाधा नहीं आनी चाहिए। इसलिए, ऐसी अप्रत्याशित (अनफोरसीएबल) स्थितियों को ध्यान में रखते हुए, कुछ प्रावधानों को सम्मिलित या संशोधित किया जाना चाहिए।
  • अंत में, पुलिस अधिकारी द्वारा किसी भी अचल संपत्ति को जब्त करते समय, मजिस्ट्रेट के आदेश या अनुमति को अनिवार्य रूप से सामने रखा जाना चाहिए और मजिस्ट्रेट को ऐसे मामलों में अधिकार क्षेत्र रखने का अधिकार दिया जा सकता है और वह अपराध की गंभीरता के आधार पर अनुमति दे सकता है। इसलिए, इससे पहले कि किसी भी तरह के सबूतों के साथ छेड़छाड़ की जा सके, गंभीर अपराधों में आरोपी या अपराधी के खिलाफ एक त्वरित प्रक्रिया शुरू की जा सकती है और पुलिस को ऐसी परिस्थितियों में तेजी से कार्रवाई करने का प्राधिकरण हो सकता है, और प्रारंभिक चरण में मजिस्ट्रेट से आदेश लिया जा सकता है। इसलिए, संपत्ति को सील किया जा सकता है और जितनी जल्दी हो सके हिरासत में लिया जा सकता है, जिससे अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) पक्ष को अपने तथ्यों को साबित करने में मदद मिल सके। 

निष्कर्ष

कई सालों तक भारतीय अदालतों में यह बहस का विषय रहा कि अचल संपत्ति सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के दायरे में आती है या नहीं। नेवादा प्रॉपर्टीज के फैसले के साथ, अदालत ने अंततः यह निष्कर्ष निकाला कि अचल संपत्ति को सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत जब्त नहीं किया जा सकता है।

खंडपीठ ने कई परिस्थितियों का पता लगाया जिसमें अचल संपत्ति को जब्त या हिरासत में लिया जा सकता है और यह कानून के विभिन्न अन्य प्रावधानों को कैसे नुकसान पहुंचा सकता है। भारतीय वन अधिनियम, 1927 और नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम, 1985 जैसे कानूनों में भी संबंधित अधिकारियों द्वारा केवल ‘चल संपत्ति’ को जब्त करने का प्रावधान है।

अब तक, हम सभी जानते हैं कि धारा 102 ऐसी संपत्तियों के बारे में बात करती है जिन पर संदेह है या कथित तौर पर चोरी या लूट की गई हो सकती है। लेकिन यह कुछ ऐसा है जो अचल संपत्ति के साथ संभव नहीं है क्योंकि इसे चोरी या लूटा नहीं जा सकता है।

नेवादा प्रॉपर्टीज निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने सी.आर.पी.सी. की धारा 102 की उपधारा (1) में ‘किसी भी संपत्ति’ की अभिव्यक्ति को बहुत अच्छी तरह से सीमांकित किया है। न्यायालय का फैसला कि अचल संपत्ति सी.आर.पी.सी. की धारा 102 में शामिल नहीं है, विभिन्न चिंताओं का समाधान करेगा और एक आरोपी व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा भी करेगा।   

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

क्या सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत अचल संपत्ति को जब्त किया जा सकता है?

निदेशकों द्वारा नेवादा प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2019) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार, सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत अचल संपत्ति को जब्त नहीं किया जा सकता है।

क्या पुलिस के लिए बैंक खाते को जब्त करने से पहले आरोपी को नोटिस देना जरूरी है?

तीस्ता अतुल सीतलवाड़ बनाम गुजरात राज्य (2018) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार, सी.आर.पी.सी. की धारा 102 के तहत बैंक खाते को जब्त करने से पहले पुलिस को आरोपी को कोई नोटिस देने की आवश्यकता नहीं है ।

क्या जांच पूरी होने के बाद भी पुलिस संपत्ति को जब्त करना जारी रख सकती है?

जयेंद्र सरस्वती स्वामीगल (2) बनाम तमिलनाडु राज्य (2005) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार, जांच पूरी होने के बाद बैंक खाते को जब्त नहीं किया जा सकता है। 

संदर्भ

 

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