भारत में उपलब्ध पेटेंट उल्लंघनों और उपायों का अवलोकन

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Patent Act 1970

यह लेख लॉ फर्म प्रैक्टिस: रिसर्च, ड्राफ्टिंग, ब्रीफिंग और क्लाइंट मैनेजमेंट में डिप्लोमा कर रही Neha Gandhi द्वारा लिखा गया है और ओशिका बनर्जी (टीम लॉसिखो) द्वारा संपादित किया गया है। इस लेख में वह भारत में पेटेंट उल्लंघन और उसके उपायों के बारे में बात करती है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

पेटेंट एक प्रकार की बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) है जो पेटेंट अधिकारियों द्वारा आविष्कारक को उसके विशिष्ट नवाचार (इनोवेशन) पर एकाधिकार का प्रयोग करने के लिए सीमित समय के लिए दी जाती है। एक पेटेंट को एक विशेष एकाधिकार माना जाता है क्योंकि यह अन्वेषकों (इनोवेटर्स) के आविष्कार का उपयोग करने, बेचने, वितरित करने से दूसरों को बाहर करता है। पेटेंट उल्लंघन अवैध है क्योंकि यह पेटेंट धारक के विशेष अधिकार का उल्लंघन करता है। पेटेंट कानूनों और पेटेंट उल्लंघन के परिणामों से अवगत होना व्यक्तियों और कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण है। अपने स्वयं के पेटेंट की रक्षा करने के साथ-साथ दूसरों द्वारा इसका उल्लंघन करने से बचने के लिए कदम उठाना महत्वपूर्ण है। प्रौद्योगिकी के तेजी से आगे बढ़ने के साथ, पेटेंट उल्लंघन की जटिलताओं और यह कैसे नवाचार और प्रगति को प्रभावित करता है, यह समझना महत्वपूर्ण हो गया है। इस लेख का उद्देश्य उसी को प्रतिबिंबित (रिफ्लेक्ट) करना है। 

पेटेंट उल्लंघन के प्रकार 

पेटेंट उल्लंघन के वर्गीकरण पर यहां चर्चा की गई है। 

प्रत्यक्ष उल्लंघन

प्रत्यक्ष उल्लंघन पेटेंट उल्लंघन का सबसे आम और स्पष्ट रूप है। जब कोई तृतीय पक्ष पेटेंट धारक की अनुमति के बिना: 

  • व्यावसायिक रूप से आविष्कार का उपयोग करता है। 
  • आविष्कार का पुनरुत्पादन (रिप्रोड्यूस) करता है।
  • भारत में एक संरक्षित विचार/आविष्कार का आयात (इंपोर्ट) करता है।
  • पेटेंट किए गए आविष्कारों को बेचता है।
  • पेटेंट आविष्कारों को बेचने की पेशकश करता है।

प्रत्यक्ष उल्लंघन, पेटेंट की अवधि के दौरान जानबूझकर या अनजाने में हो सकता है। इसके लिए एक आवश्यकता जिसे पूरा किया जाना है वह यह है की आविष्कृत उत्पाद के उपयोग के लिए मालिक से कानूनी लाइसेंस प्राप्त किए बिना, एक काफी भ्रामक कार्य का प्रदर्शन किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, सैमसंग ने बिना अनुमति लिए फोन बनाने के लिए ऐप्पल कंपनी के समान निर्माण प्रक्रिया का उपयोग करना शुरू कर दिया था। यह ऐप्पल कंपनी के स्वामित्व वाले उत्पाद पर मौजूद पेटेंट का सीधा उल्लंघन है। 

शाब्दिक उल्लंघन

शाब्दिक उल्लंघन एक प्रकार का प्रत्यक्ष उल्लंघन है जिसमें उत्पाद या प्रक्रिया पेटेंट द्वारा संरक्षित प्रत्येक तत्व या रचना की नकल की जाती है, दूसरे शब्दों में, मूल उत्पाद की प्रतिकृति (रेप्लिका) का उपयोग, निर्माण, बिक्री या आयात किया जाता है।

पोलरॉइड कॉरपोरेशन बनाम ईस्टमैन कोडक कंपनी (1986) के मामले में, पोलरॉइड ने दावा किया कि कोडक ने तत्काल फोटोग्राफी से संबंधित उसके पेटेंट अधिकार का उल्लंघन किया है। केंद्रीय विवाद कोडक की तत्काल फोटोग्राफी प्रणाली से संबंधित है, जिसके बारे में पोलरॉइड ने तर्क दिया कि उसने असनी पेटेंट तकनीक का उपयोग किया था। पोलरॉइड का मानना ​​था कि तत्काल फोटोग्राफी से संबंधित इसके चार पेटेंट, जिसमें तत्काल छवि विकसित करने की प्रक्रिया और स्वयं तत्काल कैमरा शामिल है, का कोडक द्वारा उल्लंघन किया गया था। एक लंबे मुकदमे के बाद, अदालत ने यह निर्धारित करते हुए कि कोडक ने वास्तव में पोलरॉइड के पेटेंट का उल्लंघन किया था, पोलरॉइड के पक्ष में फैसला सुनाया। नतीजतन, कोडक को अपनी तत्काल फोटोग्राफी प्रणाली के उत्पादन और बिक्री को रोकने का आदेश दिया गया था और पोलरॉइड को पर्याप्त हर्जाने से सम्मानित किया गया था।

गैर-शाब्दिक उल्लंघन

गैर-शाब्दिक उल्लंघन को समानता के सिद्धांत के नाम से भी मान्यता प्राप्त है। इस प्रकार के उल्लंघन में, कथित आविष्कार को “ट्रिपल आइडेंटिटी टेस्ट” से गुजरना पड़ता है। इसका मतलब यह है कि जब कोई आविष्कार पेटेंट किए गए आविष्कार के समान होता है, और इसलिए वह महत्वपूर्ण रूप से समान कार्य करता है, और समान परिणाम भी उत्पन्न करता है, लेकिन नाम, आकार या रूप में भी अंतर कर सकता है, तो उस आविष्कार को पहले पेटेंट आविष्कार का गैर-शाब्दिक उल्लंघन कहा जाएगा। 

रवि कमल बाली बनाम कला टेक और अन्य (2008), के ऐतिहासिक मामले में वादी को ‘टैम्पर लॉक/सील्स’ के लिए पेटेंट प्रदान किया गया था और प्रतिवादी ने ‘सील टेक’ के नाम से एक समान प्रकार के उत्पाद का निर्माण किया, जिसमें वादी के लॉक के समान कार्यात्मक विशेषताएं थीं। कानून की अदालत ने समानता के सिद्धांत को लागू किया था, और वादी के पक्ष में निर्णय दिया था कि दोनों उत्पादों का एक ही कार्य था और एक ही सामग्री से बना था, केवल मामूली अंतर निर्माण का था जो कि एक नवाचार का गठन नही करता है।

अप्रत्यक्ष उल्लंघन

अप्रत्यक्ष उल्लंघन तब होता है जब कोई तीसरा पक्ष प्रत्यक्ष उल्लंघन का समर्थन, योगदान या प्रचार करता है। उल्लंघन या तो गलती से या जानबूझकर किया जा सकता है। 

प्रेरित उल्लंघन

प्रेरित उल्लंघन में, उल्लंघन करने के इरादे से या उसके बिना, उल्लंघन करने की प्रक्रिया में इरादतन सहायता शामिल होती है। किसी भी मामले में, उल्लंघनकर्ता को उल्लंघन के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा। सहायता के रूप में निम्नलिखित हो सकता है:

  • उत्पाद के निर्माण में सहायता करना।
  • उचित लाइसेंस के बिना पेटेंट उत्पाद को इखट्टा करना।
  • उत्पाद के उत्पादन पर तीसरे पक्ष को निर्देश प्रदान करना।
  • पेटेंट की गई वस्तुओं के निर्देशों को प्रिंट करना और उन्हें बेचना।
  • लाइसेंस योजना या प्रक्रिया।

अंशदायी (कंट्रीब्यूटरी) उल्लंघन

अंशदायी उल्लंघन एक प्रकार का अप्रत्यक्ष उल्लंघन है जिसमें उल्लंघनकर्ता पेटेंट उत्पादों के निर्माण के लिए विशेष रूप से उपयोग किए जाने वाले उत्पाद के हिस्सों को बेचता या आपूर्ति करता है। उल्लंघनकर्ता को तब भी उत्तरदायी ठहराया जाता है जब वह निर्माण प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेता है।

जानबूझकर उल्लंघन

जानबूझकर उल्लंघन तब होता है जब कोई स्वेच्छा से पेटेंट आविष्कार की अवहेलना करता है। इस मामले में प्रमाण का भार पेटेंट धारक पर होता है। उल्लंघनकर्ता लिखित रूप में पूरी तरह से कानूनी राय का बचाव कर सकता है। जानबूझकर उल्लंघन के लिए तीन चरणों वाली प्रक्रिया है:

  • पेटेंट आविष्कार के बारे में ज्ञान,
  • सद्भाव है कि उल्लंघनकर्ता पेटेंट किए गए आविष्कार के लिए उत्तरदायी नहीं होगा,
  • उल्लंघनकर्ता का विश्वास उचित है। 

यदि जानबूझकर उल्लंघन साबित हो जाता है, तो अदालत मजबूत निवारक (वास्तविक नुकसान का 3 से 4 गुना) आदेश दे सकती है, जिसमें अदालती खर्च, वकील की फीस आदि शामिल हैं। 

सबूत का बोझ 

पेटेंट उल्लंघन में सबूत का बोझ मूल रूप से पेटेंटकर्ता (वादी) पर होता है। हालांकि, ट्रिप्स ने पेटेंट अधिनियम, 1970 में धारा 104A को शामिल करके संशोधन किया, जिससे “सबूत के उलटे बोझ” की अवधारणा शुरू हुई। यह दर्शाता है कि यदि पेटेंट की विषय वस्तु एक प्रक्रिया है और इसका परिणाम;

  1. एक नया उत्पाद है, और
  2. इस बात की काफी संभावना है कि एक समान उत्पाद एक ही प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है और उचित प्रयासों के बावजूद पेटेंटकर्ता प्रक्रिया को निर्धारित करने में विफल रहता है।

फिर गैर-उल्लंघन साबित करने के लिए सबूत का बोझ प्रतिवादी पर होता है।

पेटेंट उल्लंघन से संबंधित सिद्धांत

सामानता का सिद्धांत

समानता का सिद्धांत एक कानूनी नियम है जिसे पेटेंट उल्लंघन का पता लगाने के लिए लागू किया जाता है। सिद्धांत उत्पाद में मामूली परिवर्तन को भी उल्लंघन के रूप में वर्गीकृत करता है। सरल शब्दों में, यदि उल्लंघन किया गया उत्पाद महत्वपूर्ण रूप से समान कार्य करता है, उसी तरह और समान परिणाम उत्पन्न करता है, तो यह समानता के सिद्धांत के तहत पेटेंट उल्लंघन का कारण बनेगा। 

समानता के सिद्धांत की सीमाएं

  1. सभी तत्व नियम: एक पेटेंट उत्पाद के सभी तत्व उल्लंघन किए गए उत्पाद में मौजूद होने चाहिए।
  2. सार्वजनिक समर्पण (डेडीकेशन) का सिद्धांत: यह सिद्धांत तब लागू होता है जब एक पेटेंटकर्ता सार्वजनिक रूप से पेटेंट की विषय वस्तु का खुलासा करता है लेकिन इसका दावा नहीं करता है। इसके बाद कोई भी उल्लंघन के डर के बिना इसका इस्तेमाल कर सकता है।
  3. पूर्व कला का अस्तित्व: आविष्कार पहले से ही सार्वजनिक रूप से उपलब्ध और ज्ञात है, पेटेंट आवेदन दाखिल करने से पहले पूर्व कला के अस्तित्व को दर्शाता है। दूसरे शब्दों में, आविष्कार अनोखा नहीं है या पहले से ही किसी रूप में मौजूद है।
  4. इतिहास विबंधन (एस्टोपल) का अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन): इसे फ़ाइल-रैपर विबंधन के रूप में भी जाना जाता है, यह उल्लंघन के कानूनी बचाव के रूप में उत्पन्न होता है। यह वहां लागू होता है जहां एक पेटेंट आवेदन पूर्व कला के आधार पर पेटेंट कार्यालय द्वारा अस्वीकार किए गए दावे को संशोधित करता है या रद्द करता है।

ग्रेवर टैंक बनाम लिंडे एयर (1950) के ऐतिहासिक मामले में, विवादित पेटेंट सूत्रीकरण (फॉर्मुलेशन) क्षारीय (एल्कलाइन) पृथ्वी धातु (मेटल) सिलिकेट (मैग्नीशियम का उपयोग करके) और कैल्शियम का मिश्रण था। आरोपी ने मैंगनीज और सिलिकेट का इस्तेमाल किया, लेकिन क्षारीय पृथ्वी धातु का नहीं। विशेषज्ञों ने कहा कि मैंगनीज, मैग्नीशियम के उद्देश्य को पूरा करता है और इसके समान है। इस मामले में, अदालत ने कहा था कि “अपने काम में यथोचित रूप से कुशल व्यक्ति को बदले जाने वाले तत्व के बारे में पता होना चाहिए”। मैंगनीज के साथ मैग्नीशियम का आदान-प्रदान एक ही क्षेत्र में काम करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए स्पष्ट था और यह एक महत्वपूर्ण परिवर्तन था। इसलिए अदालत ने समानता के सिद्धांत के तहत पेटेंट उल्लंघन की खोज को सही ठहराया।

रंगीन भिन्नता का सिद्धांत

यह सिद्धांत एक लैटिन कहावत “क्वांडो एलिक्विड प्रोहिबेटर एक्स डायरेक्टो, प्रोहिबेटर एत पर ऑब्लिकम” से लिया गया है, जिसका अर्थ “जो प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता है, उसे अप्रत्यक्ष रूप से भी नहीं किया जाना चाहिए” है। इस सिद्धांत के अनुसार, पेटेंट उल्लंघन के दावों का सामना करने के लिए एक पेटेंट आविष्कार में मामूली बदलाव करने की प्रथा को काफी हद तक पेटेंट किए गए आविष्कार के समान माना जाता है, भले ही इसमें कुछ स्पष्ट अंतर हो। इसका मतलब यह है कि एक उल्लंघनकर्ता पेटेंट किए गए आविष्कार में सूक्ष्म परिवर्तन करके दायित्व की उपेक्षा नहीं कर सकता है। यह तय करने के लिए कि कोई भिन्नता रंगीन है या नहीं, अदालत द्वारा विचार किए गए कुछ कारक यहां दिए गए हैं:

  1. कथित आविष्कार और आरोपित उत्पाद या प्रक्रिया के बीच समानता की सीमा।
  2. दो उत्पादों या प्रक्रियाओं के बीच अंतर की मात्रा।
  3. आरोपिट उत्पाद या प्रक्रिया का उद्देश्य या इच्छित उपयोग।
  4. पेटेंट के उपयोग के समय प्रासंगिक उद्योग (इंडस्ट्री) का योग्यता स्तर।
  5. आरोपित उत्पाद या प्रक्रिया को बनाने में शामिल कठिनाई का स्तर
  6. प्रासंगिक उद्योग में निश्चितता का स्तर।
  7. स्व-निर्माण या पूर्व ज्ञान की डिग्री।
  8. कॉपी करने या पेटेंट उल्लंघन के सीधे उल्लंघन के अन्य तरीकों का प्रमाण।

फाइजर इनकॉरपोरशन बनाम कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड (2020) के मामले में सूजन-रोधी दवा सेलेकोक्सिब के पेटेंट पर विवाद शामिल है। फाइजर ने आरोप लगाया कि कैडिला की दवा के जेनेरिक संस्करण (वर्जन) ने फाइजर के पेटेंट का उल्लंघन किया, लेकिन कैडिला ने तर्क दिया कि इसका उत्पाद फाइजर के उत्पाद से अलग था और इसलिए पेटेंट का उल्लंघन नहीं करता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि कैडिला का उत्पाद फाइजर के उत्पाद का एक रंगीन भिन्नता थी, और इसलिए उल्लंघन था। 

कौन से कार्य पेटेंट उल्लंघन की श्रेणी में नहीं आते हैं

ऐसे कई कार्य हैं जो उल्लंघन की श्रेणी में नहीं आते –

  1. स्वतंत्र आविष्कार: पेटेंट का दावा किए गए आविष्कार के संदर्भ या उपयोग के बिना, आरोपित उत्पाद या प्रक्रिया को स्वतंत्र रूप से आरोपी पक्ष द्वारा विकसित किया गया था। स्वतंत्र आविष्कार को साबित करने के लिए, आरोपी पक्ष को आम तौर पर अपने आविष्कार का सबूत देने की जरूरत होती है, जैसे कि उनकी विकास गतिविधियों के रिकॉर्ड, प्रयोगशाला नोटबुक या गवाहों की गवाही। इस साक्ष्य को यह प्रदर्शित करना चाहिए कि आरोपी पक्ष पेटेंट धारक के समान समस्या पर काम कर रहा था और स्वतंत्र रूप से और पेटेंट के दावा किए गए आविष्कार के संदर्भ के बिना उसी समाधान पर पहुंचा।
  2. पेटेंट समाप्ति: जब एक पेटेंट की समय सीमा समाप्त हो जाती है, तो आविष्कार के लिए आविष्कारक के अनन्य (एक्सक्लूसिव) अधिकार प्रभावी नहीं होते हैं और कोई भी पेटेंट का उल्लंघन किए बिना आविष्कार का उपयोग कर सकता है। पेटेंट की अवधि आमतौर पर कानून द्वारा निर्धारित की जाती है और आमतौर पर पेटेंट आवेदन दाखिल करने की तिथि से 20 वर्ष होती है। पेटेंट समाप्त हो जाने के बाद, दावा किया गया आविष्कार सार्वजनिक डोमेन का हिस्सा बन जाता है और पेटेंट के उल्लंघन के डर के बिना किसी के द्वारा स्वतंत्र रूप से उपयोग किया जा सकता है। यह साबित करने के लिए कि पेटेंट की अवधि समाप्त हो गई है, आरोपी पक्ष आमतौर पर पेटेंट दाखिल करने की तारीख और संबंधित पेटेंट कानून का प्रमाण प्रदान कर सकता है ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि पेटेंट अपनी अवधि के अंत तक पहुंच गया है।
  3. अनुसंधान (रिसर्च) और परीक्षण: परीक्षण या मूल्यांकन के उद्देश्य से एक पेटेंट आविष्कार के प्रायोगिक उपयोग को उल्लंघन नहीं माना जाता है। दूसरे शब्दों में, आरोपी पक्ष दावा करता है कि वे दावा किए गए आविष्कार का उपयोग उसके प्रदर्शन का परीक्षण और मूल्यांकन करने के लिए कर रहे थे, और यह कि वे आविष्कार को बेचने या किसी अन्य प्रकार से व्यावसायिक रूप से उसका फायदा उठाने का इरादा नहीं रखते थे।
  4. सरकारी उपयोग: कई देशों में, सरकार को अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने और जनता को सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से पेटेंट का उल्लंघन किए बिना एक पेटेंट आविष्कार का उपयोग करने का अधिकार होता है। आरोपी उत्पाद या प्रक्रिया का उपयोग सरकार द्वारा या उसकी ओर से किया जाता है और इसलिए यह पेटेंट के अधीन नहीं है। यह बचाव इस विचार पर आधारित है कि सरकार के पास विभिन्न सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए पेटेंट किए गए आविष्कारों का उपयोग करने का अधिकार होना चाहिए, जैसे कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए या आवश्यक सेवाओं के प्रावधान के लिए, बिना उल्लंघन के दावों के अधीन।
  5. पूर्व उपयोग: यदि कोई व्यक्ति पेटेंट दिए जाने से पहले एक पेटेंट किए गए आविष्कार का उपयोग कर रहा है, तो वे प्रासंगिक क्षेत्राधिकार (ज्यूरिसडिक्शन) के कानूनों के आधार पर पेटेंट का उल्लंघन किए बिना इसका उपयोग जारी रख सकते हैं। पूर्व उपयोग को साबित करने के लिए, आरोपी पक्ष को आम तौर पर पेटेंट दाखिल करने की तिथि से पहले आरोपी उत्पाद या प्रक्रिया के अपने उपयोग का प्रमाण देने की आवश्यकता होती है।
  6. उचित उपयोग:  उचित उपयोग की अवधारणा आलोचना, टिप्पणी, समाचार रिपोर्टिंग, शिक्षण, छात्रवृत्ति (स्कॉलरशिप) या अनुसंधान जैसे उद्देश्यों के लिए एक पेटेंट आविष्कार के सीमित उपयोग की अनुमति देती है। बचाव इस विचार पर आधारित है कि एक पेटेंट आविष्कार के कुछ उपयोगों को पेटेंट का उल्लंघन किए बिना अनुमति दी जानी चाहिए, भले ही उन्हें सार्वजनिक भलाई को बढ़ावा देने और रचनात्मक और बौद्धिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने के लिए अन्यथा उल्लंघनकारी माना जाएगा। उचित उपयोग साबित करने के लिए, आरोपी पक्ष को आम तौर पर यह दिखाने की आवश्यकता होती है कि पेटेंट किए गए आविष्कार का उनका उपयोग कॉपीराइट कानून के तहत अनुमेय उद्देश्य के लिए था और यह दायरे और प्रभाव में उचित था। 
  7. पहली बिक्री सिद्धांत: पहली बिक्री सिद्धांत, जिसे शून्यीकरण (एक्जॉसशन) सिद्धांत के रूप में भी जाना जाता है, यह प्रदान करता है कि पेटेंट धारक द्वारा या उनकी अनुमति के साथ पेटेंट की गई वस्तु की बिक्री उनके पेटेंट अधिकारों को समाप्त कर देती है और खरीदार को पेटेंट का उल्लंघन किए बिना वस्तु का उपयोग या पुनर्विक्रय (रीसेल) करने की अनुमति देती है। यह सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि पेटेंट धारक के पेटेंट किए गए आविष्कार के अनन्य अधिकार सीमित हैं और पेटेंट किए गए उत्पाद का उपयोग, बिक्री या वितरण करने के लिए दूसरों के अधिकारों को अनावश्यक रूप से प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए। पहली बिक्री के सिद्धांत को अक्सर पेटेंट उत्पादों के पुनर्विक्रय से जुड़े मामलों में लागू किया जाता है, जैसे इस्तेमाल की गई किताबें, सीडी, या अन्य उत्पाद जो कानूनी रूप से बिक्री या हस्तांतरण (ट्रांसफर) के माध्यम से प्राप्त किए गए थे। पहली बिक्री सिद्धांत को लागू करके, इन उत्पादों को पेटेंट का उल्लंघन किए बिना फिर से बेचा जा सकता है या अन्यथा वितरित किया जा सकता है, बशर्ते कि उत्पाद को इस तरह से परिवर्तित या संशोधित नहीं किया गया हो जिससे एक नया पेटेंट उल्लंघन हो।
  8. पेटेंट की अमान्यता या अप्रवर्तनीयता (अनएंफोर्सेबिलिटी): यदि कोई पेटेंट अमान्य या अप्रवर्तनीय पाया जाता है, तो कोई भी कार्य जो अन्यथा उल्लंघन का गठन करता, उसे उल्लंघनकारी नहीं माना जाएगा।

पेटेंट उल्लंघन के खिलाफ उपलब्ध बचाव

  1. विबंधन: विबंधन एक कानूनी सिद्धांत है जिसे पेटेंट उल्लंघन के दावे के खिलाफ बचाव के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। विबंधन का सिद्धांत बताता है कि कोई व्यक्ति उस अधिकार का दावा नहीं कर सकता है जिसे उसने पहले छोड़ दिया है या समाप्त कर दिया है। पेटेंट उल्लंघन के संदर्भ में, विबंधन को तब बचाव के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जब पेटेंट धारक ने बयान दिया है या ऐसा कार्य किया है जो इंगित करता है कि उन्हें विश्वास नहीं है कि आरोपी पक्ष उनके पेटेंट का उल्लंघन कर रहा है। उदाहरण के लिए, यदि पेटेंट धारक ने आरोपी पक्ष को पेटेंट किए गए आविष्कार का उपयोग करने के लिए लाइसेंस दिया है या आरोपी पक्ष को अपने पेटेंट अधिकारों का दावा किए बिना एक महत्वपूर्ण अवधि के लिए पेटेंट आविष्कार का उपयोग करने की अनुमति दी है, तो पेटेंट धारक को बाद में यह दावा करने से रोका जा सकता है कि आरोपी पक्ष उनके पेटेंट का उल्लंघन कर रहा है।
  2. लाइसेंस: एक लाइसेंस पेटेंट मालिक और किसी अन्य पक्ष के बीच कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता है, जिसमें पेटेंट मालिक दूसरे पक्ष को किसी प्रकार के मुआवजे के बदले में पेटेंट किए गए आविष्कार का उपयोग करने की अनुमति देता है। पेटेंट उल्लंघन के दावे के संदर्भ में, एक लाइसेंस के बचाव का तर्क है कि आरोपी उत्पाद या प्रक्रिया का उपयोग लाइसेंस या पेटेंट मालिक के साथ अन्य समझौते के तहत किया जा रहा है जो उपयोग की अनुमति देता है। इसका मतलब यह है कि आरोपी पक्ष को पेटेंट आविष्कार का उपयोग करने का अधिकार है, और इसलिए उसे पेटेंट के उल्लंघन के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
  3. वादी मुकदमा करने का हकदार नहीं है: वादी जो पेटेंट उल्लंघन का दावा कर रहा है, उसके पास उल्लंघन के लिए मुकदमा दायर करने का कानूनी अधिकार नहीं है। इस बचाव को कई कारणों से उठाया जा सकता है, जैसे स्थायी होने की कमी, पेटेंट का असाइनमेंट, पेटेंट की अमान्यता, परिसीमा (लिमिटेशन) का क़ानून, या एक समझौता या लाइसेंसिंग समझौता। उदाहरण के लिए, यदि पेटेंट किसी और को सौंपा गया है, तो मूल मालिक अब उल्लंघन के लिए मुकदमा करने का हकदार नहीं है और इसके बजाय नए मालिक को मुकदमा लाना होगा। इसी तरह, यदि पेटेंट अमान्य पाया जाता है, तो वादी उल्लंघन के लिए मुकदमा करने का हकदार नहीं है क्योंकि उनके पास लागू करने के लिए वैध पेटेंट नहीं है। 

पेटेंट उल्लंघन के उपाय

पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 108 “उल्लंघन के मामले में राहत” से संबंधित है। पेटेंट के उल्लंघन में दायर मुकदमे के उपाय को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है, वे हैं:

  1. निषेधाज्ञा (इंजंक्शन): पेटेंट उल्लंघन के संदर्भ में, निषेधाज्ञा एक अदालती आदेश है जिसके लिए उल्लंघन करने वाले पक्ष को उल्लंघनकारी उत्पाद बनाने, उपयोग करने, बेचने या आयात करने से रोकने की आवश्यकता होती है। यह एक निवारक उपाय है जिसका उद्देश्य पेटेंट के मूल्य को संरक्षित करना और पेटेंट धारक को आगे होने वाले नुकसान को रोकना है। निषेधाज्ञा प्राप्त करने के लिए, पेटेंट धारक को यह साबित करना होता है कि उनका पेटेंट वैध है और प्रतिवादी द्वारा इसका उल्लंघन किया गया है। निषेधाज्ञा तीन प्रकार का होती है:
  • अस्थायी निषेधाज्ञा: यह एक प्रकार का अस्थायी उपाय है जो मामले के अंतिम फैसले से पहले प्रदान किया जाता है। इसका उपयोग पेटेंट धारक की यथास्थिति (स्टेट्स क्यू) को बनाए रखने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, उनके अपने मुकदमे में सफल होने की संभावना है और अगर उल्लंघनकारी गतिविधि को जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो उन्हें अपूरणीय (इररिपेरेबल) क्षति होगी। पेटेंट धारक को अस्थायी निषेधाज्ञा देने से पहले अदालत को तीन कारकों पर विचार करना चाहिए- 
  1. प्रथम दृष्टया मामला
  2. असुविधा का संतुलन।
  3. अपूरणीय क्षति
  • स्थायी निषेधाज्ञा: यह एक प्रकार का स्थायी उपाय है जो तब दिया जाता है जब अदालत द्वारा मामला अंतिम रूप से तय किया जाता है। इसके लिए उल्लंघन करने वाले पक्ष को स्थायी रूप से उल्लंघनकारी गतिविधि को रोकने की आवश्यकता होती है। अदालत मौद्रिक हर्जाना भी दे सकती है, जैसे कि किसी भी लाभ के लिए मुआवजा जो उल्लंघन करने वाले पक्ष ने उल्लंघनकारी गतिविधि के परिणामस्वरूप बनाया है। एक स्थायी निषेधाज्ञा प्राप्त करने के लिए, पेटेंट धारक को एक मुकदमा दायर करना होता है और यह साबित करना होता है कि उनका पेटेंट वैध है और प्रतिवादी द्वारा इसका उल्लंघन किया गया है। हालांकि, एक स्थायी निषेधाज्ञा प्राप्त करना एक जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया हो सकती है, और पेटेंट धारक के पास अपने दावे का समर्थन करने के लिए मजबूत सबूत होने चाहिए।
  • एक पक्षीय निषेधाज्ञा: एक पक्षीय निषेधाज्ञा एक अस्थायी उपाय है जिसका उपयोग अत्यावश्यक स्थितियों में किया जाता है और बिना सुनवाई के प्रदान किया जाता है। यह पेटेंट उल्लंघन के लिए एक शक्तिशाली उपाय है, लेकिन इसका उपयोग सावधानी के साथ किया जाना चाहिए, क्योंकि बाद में इसे अनुचित पाए जाने पर प्रतिवादी को नुकसान हो सकता है। यह आमतौर पर तत्काल स्थितियों में उपयोग किया जाता है जहां वादी को तत्काल राहत की आवश्यकता होती है और पूर्ण सुनवाई के लिए पर्याप्त समय नहीं होता है।

2. हर्जाना: हर्जाना, पेटेंट उल्लंघन के लिए एक उपाय है जो पेटेंट धारक को किसी भी ऐसे नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति करता है जो उन्हें उल्लंघनकारी गतिविधि के परिणामस्वरूप हुआ है। हर्जाना को मौद्रिक मुआवजे के रूप में दिया जा सकता है, जैसे किसी खोए हुए लाभ या अन्य वित्तीय नुकसान के लिए मुआवजा जो पेटेंट धारक को हुआ हो। हर्जाने का मुख्य उद्देश्य वादी को हुए नुकसान या चोट की भरपाई करना है।

3. जब्ती, समपहरण (फॉरफीचर) या विनाश: अदालतें यह आदेश दे सकती हैं कि उल्लंघनकारी होने के लिए निर्धारित वस्तुओं को हिरासत में लिया जाना चाहिए, जब्त किया जाना चाहिए, या ऐसे तरीके से समाप्त किया जाना चाहिए जैसा की अदालतो को उपयुक्त लगता है।

ऐतिहासिक निर्णय 

1. नोवार्टिस एजी बनाम भारत संघ (2013)

यह मामला पेटेंट उल्लंघन के सिद्धांत से संबंधित भारत में अत्यधिक महत्वपूर्ण कानूनी विवाद है। स्विस फार्मास्युटिकल कंपनी नोवार्टिस एजी ने भारतीय पेटेंट कार्यालय द्वारा अपनी कैंसर रोधी दवा “ग्लिवेक” के पेटेंट के लिए आवेदन करने से इनकार करने के बाद इस मामले को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में लाया। मामले का केंद्रीय मुद्दा “सदाबहार” की अवधारणा था, जहां कंपनियां अपने उत्पादों में मामूली बदलाव करके अपने पेटेंट के जीवन को बढ़ाने की कोशिश करती हैं। नोवार्टिस ने दावा किया कि उसका उत्पाद एक नया आविष्कार था और इस प्रकार पेटेंट संरक्षण के योग्य था। हालांकि, पेटेंट कार्यालय ने यह कहते हुए पेटेंट को खारिज कर दिया कि यह केवल एक मौजूदा दवा का एक संशोधन था और कोई नया आविष्कार नहीं था। 

सर्वोच्च न्यायालय ने अंततः नोवार्टिस के खिलाफ फैसला सुनाया, और यह निर्धारित किया की इसका उत्पाद एक नया आविष्कार नहीं था और इसलिए पेटेंट के लिए योग्य नहीं था। इस फैसले को सार्वजनिक स्वास्थ्य और दवा तक पहुंच के लिए एक सकारात्मक परिणाम के रूप में देखा गया क्योंकि इसने पेटेंट की सदाबहारता को रोका और यह सुनिश्चित किया कि दवा के सामान्य संस्करण अधिक सस्ती कीमतों पर उपलब्ध होंगे।

2. फाइजर इनकॉरपोरेशन बनाम डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज लिमिटेड (2004)

इस मामले में, फाइजर, एक फार्मास्युटिकल कंपनी, ने डॉ. रेड्डीज लैबोरेट्रीज, भारत की एक साथी फार्मास्युटिकल कंपनी, पर विरोधी भड़काऊ दवा “सेलेब्रेक्स” पर अपने पेटेंट का उल्लंघन करने के लिए मुकदमा दायर किया। मामले में केंद्रीय मुद्दा पेटेंट दवाओं के अनिवार्य लाइसेंस पर भारतीय पेटेंट अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या था। डॉ. रेड्डी की प्रयोगशालाओं ने दवा के एक सामान्य संस्करण के निर्माण के लिए एक अनिवार्य लाइसेंस की मांग की, यह दावा करते हुए कि यह भारतीय आबादी के लिए सस्ती दवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंततः डॉ. रेड्डी की प्रयोगशालाओं के पक्ष में फैसला सुनाया और अनिवार्य लाइसेंस प्रदान किया, जिससे कंपनी को दवा के एक सामान्य संस्करण का उत्पादन करने की अनुमति मिली। इस फैसले को सार्वजनिक स्वास्थ्य और भारत में दवा तक पहुंच के लिए एक महत्वपूर्ण जीत माना गया, क्योंकि इसने पेटेंट दवाओं के अनिवार्य लाइसेंसिंग से संबंधित प्रमुख कानूनी सिद्धांतों की स्थापना की।

3. एरिक्सन बनाम इंटेक्स टेक्नोलॉजी (2014)

यह मामला मोबाइल प्रौद्योगिकी उद्योग में पेटेंट के उल्लंघन से जुड़ा है। मोबाइल प्रौद्योगिकी से संबंधित एरिक्सन के मानक-आवश्यक (स्टैंडर्ड एसेंशियल) पेटेंट (एसईपी) के उल्लंघन के लिए भारतीय उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी इंटेक्स टेक्नोलॉजी के खिलाफ स्वीडिश दूरसंचार (टेलीकम्युनिकेशन) कंपनी एरिक्सन द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष मामला लाया गया था।

एसईपी पेटेंट हैं जिन्हें तकनीकी मानक के कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) के लिए आवश्यक माना जाता है और कुछ उत्पादों के निर्माण के लिए आवश्यक है। मामले के केंद्र में मुद्दा एसईपी के लिए उचित और गैर-भेदभावपूर्ण (एफआरएएनडी) लाइसेंसिंग का सिद्धांत था। एरिक्सन ने दावा किया कि इंटेक्स ने एरिक्सन से लाइसेंस प्राप्त किए बिना अपने एसईपी का इस्तेमाल किया था और एरिक्सन द्वारा मांगी गई लाइसेंस फीस उचित थी।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एरिक्सन के पक्ष में फैसला सुनाया और इंटेक्स को एरिक्सन के एसईपी का उपयोग बंद करने और एरिक्सन को उचित रॉयल्टी का भुगतान करने का आदेश दिया। अदालत ने यह भी फैसला सुनाया कि एसईपी धारकों का दायित्व है कि वे अपने पेटेंट को एफआरएएनडी शर्तों पर लाइसेंस दें और लाइसेंसधारियों को एफआरएएनडी लाइसेंस की शर्तों का न्यायिक निर्धारण करने का अधिकार है।

4. बजाज ऑटो लिमिटेड बनाम टीवीएस मोटर कंपनी लिमिटेड जेटी (2009)

इस मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि टीवीएस ने बजाज के पेटेंट का उल्लंघन किया था, क्योंकि टीवीएस द्वारा निर्मित तिपहिया का डिज़ाइन काफी हद तक बजाज के समान पाया गया था। अदालत ने कहा कि बजाज को दिया गया पेटेंट एक नए और उपयोगी आविष्कार के लिए था और टीवीएस द्वारा निर्मित तिपहिया का डिज़ाइन पेटेंट किए गए डिज़ाइन का पुनरुत्पादन था।

अपने फैसले में, अदालत ने पेटेंट धारक के अधिकारों के उल्लंघन के साथ पीड़ित पक्ष को संपत्ति के रूप में मानने के महत्व पर जोर दिया। इस मामले में निर्णय ने निष्पक्ष और प्रतिस्पर्धी (कंपेटिटिव) कारोबारी माहौल बनाए रखने के लिए कंपनियों को दूसरों के पेटेंट का सम्मान करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। कुल मिलाकर, इस मामले ने भारत में पेटेंट और बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा के महत्व को मजबूत किया।

निष्कर्ष

अंत में, पेटेंट उल्लंघन, पेटेंट मालिक की सहमति के बिना पेटेंट आविष्कार के अनधिकृत (अनऑथराइज्ड) उपयोग या निर्माण को संदर्भित करता है। भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970 पेटेंट उल्लंघन को संबोधित करने के लिए कई उपाय प्रदान करता है, जिसमें निषेधाज्ञा, क्षति और जब्ती, समपहरण या विनाश शामिल हैं। हालांकि, भारतीय कानूनी प्रणाली की जटिलता और पेटेंट विवाद को हल करने में लगने वाले समय के कारण इन उपायों को लागू करना एक चुनौती बना हुआ है। अपने पेटेंट आविष्कारों की रक्षा के लिए, भारत में व्यवसायों को उल्लंघन के लिए निगरानी करने और आवश्यक होने पर उचित कानूनी कार्रवाई करने में सक्रिय होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, व्यवसायों के लिए भारतीय पेटेंट कानून और उल्लंघन के मामले में उनके लिए उपलब्ध उपायों की पूरी समझ होना महत्वपूर्ण है। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि उनके बौद्धिक संपदा अधिकार पर्याप्त रूप से सुरक्षित हैं और उन्हें अपने पेटेंट किए गए आविष्कारों के किसी भी अनधिकृत उपयोग के लिए उचित मुआवजा मिलता है। व्यवसायों के लिए पेटेंट दाखिल करने से पहले उचित परिश्रम और अनुसंधान करना महत्वपूर्ण है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनका आविष्कार नया है। यह उल्लंघन के जोखिम को कम करने में मदद करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि पेटेंट लागू करने योग्य है। 

संदर्भ

 

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