यह लेख Anaya Jain द्वारा लिखा गया है जो, एन.एम.आई.एम.एस. स्कूल ऑफ लॉ, बैंगलोर की छात्रा हैं। यह एक विस्तृत लेख है जिसमें, आई.सी.आई.सी.आई. बैंक बनाम वीडियोकॉन के मनी लॉन्ड्रिंग मामले का विश्लेषण किया गया है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।
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परिचय (इंट्रोडक्शन)
आई.सी.आई.सी.आई. बैंक-वीडियोकॉन का मामला कोचर्स और वीडियोकॉन समूह के बीच क्विड-प्रो-क्यू सौदेबाजी के आरोपों से संबंधित था। आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के हेड कोचर्स थे। यह मामला, 2012 में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (एस.बी.आई.) के नेतृत्व वाले संघ (कंसोर्टियम), के एक हिस्से के रूप में आई.सी.आई.सी.आई. बैंक द्वारा, वीडियोकॉन समूह को दिए गए क़र्ज़ और न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड नामक फर्म (जो चंदा कोचर के पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन के वेणुगोपाल धूत के बीच एक जॉइंट वेंचर थी), की ओनर्शिप के परिवर्तन के समंबंध में था।
तथ्य (फैक्ट्स)
सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन ने श्रीमति चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर, वीडियोकॉन समूह के हेड वेणुगोपाल धूत और आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के अधिकारियों के खिलाफ एफ.आई.आर दर्ज की क्योंकि उन्होंने नियमों का उल्लंघन करके, क्रेडिट सुविधाओं की मंजूरी दी थी, जिसके कारण आई.सी.आई.सी.आई. बैंक को 1,730 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। .
2 फरवरी, 2019 तक इन्वेस्टीगेशन एजेंसी यह स्थापित नहीं कर पायी कि क्या यह क़र्ज़, फिनेंशिअल फेवर्स के बदले में दिए गए थे, जो उन पर क्रिमिनल कांस्पीरेसी, चीटिंग और करप्शन के लिए मामला दर्ज करने के मूल (कोर) थे।
श्रीमती कोचर ने बैंक के बोर्ड को, वीडियोकॉन समूह के साथ अपने पति (जो बैंक के ग्राहक थे) के अन्य व्यापारिक संबंधों के बारे में खुलासा न करके गलती की थी।
वह उन सलाहकार समूहों का हिस्सा बनी रही, जिन्होंने वीडियोकॉन को क्रेडिट सुविधाओं की मंजूरी दी थी, जबकी उन्हें हितों के टकराव (कनफ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट) के आधार पर खुद को अलग कर लेना चाहिए था।
सी.बी.आई. इन्क्वारी रिपोर्ट उन्हें, बैंक के “कोड ऑफ़ कंडक्ट”, हितों के टकराव से निपटने के लिए बैंक की प्रणाली (सिस्टम) और जिम्मेदारियों, और प्रासंगिक (रिलेवेंट) भारतीय कानूनों, नियमों और दिशानिर्देशों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहराती है।”
इस तथ्य के बावजूद भी कि, आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के बोर्ड ने रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया था, साथ ही अप्रैल 2009 और उसके बाद से उन्हें दिए गए सभी बोनस को वापस लेने का फैसला भी किया था, लेकिन तब भी बोर्ड ने उन्हें एक साल पहले, मार्च के अंत तक क्लीन चिट दे दी थी।
यह स्वीकार करना मुश्किल है, कि बोर्ड को इन सब घटनाओं के बारे में पता नहीं था, क्योंकि एक सूचक ने इन आरोपों को अक्टूबर 2016 में सार्वजनिक किया था, फिर भी बोर्ड ने उन्हें क्लीन चिट दे दी।
तथ्यों की समयरेखा (टाइमलाइन ऑफ़ फैक्ट्स )
अक्टूबर 2016- आई.सी.आई.सी.आई. बैंक और वीडियोकॉन समूह दोनों में एक निवेशक (इन्वेस्टर) सूचक अरविंद गुप्ता द्वारा एक ब्लॉग के माध्यम से सवाल उठाए जाने के बाद, संदिग्ध क़र्ज़ अनियमितताओं (इर्रेगुलेरिटीज़) का विषय सामने आया। गुप्ता ने पुष्टि की कि चंदा कोचर ने 2012 में वेणुगोपाल धूत के नेतृत्व वाले वीडियोकॉन समूह के 3,250 करोड़ रुपये के क़र्ज़ को न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स और सुप्रीम एनर्जी (जो उनके पति दीपक कोचर के स्वामित्व वाला एक रेनेवेबल एनर्जी व्यवसाय है) के साथ कॉन्ट्रैक्ट के बदले प्रभावित किया। गुप्ता, प्राइम मिनिस्टर, आर.बी.आई. के गवर्नर और कुछ अन्य अधिकारियों के संपर्क में रहते थे, जिनसे वह जांच का अनुरोध करते थे, लेकिन उनकी शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
मार्च 2018- मामला फिर से सुर्खियों में तब आया जब एक अन्य गुमनाम सूचक ने बैंक और उसके टॉप एडमिनिस्ट्रेशन के खिलाफ शिकायत की, जिसमें कोचर भी शामिल थे, उन पर आरोप लगाया गया की उन्होंने कुछ पैसे बचाने के लिए, 2008 से 2016 तक की अवधि में, कहीं न कहीं 31 क़र्ज़ खातों में जानबूझकर देरी करके बाधा उत्पन्न की। इन आरोपों के कारण सी.बी.आई., एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ई.डी.) और सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (एस.एफ.आई.ओ.) सहित कई अन्य एजेंसियों ने जांच की और कोचर के रिश्तेदारों से भी पूछताछ की।
28 मार्च, 2018- बैंक ने यह व्यक्त किया कि उसने क्रेडिट अप्रूवल के लिए आंतरिक (इंटरनल) प्रक्रियाओं की समीक्षा (रिव्यू) की है और उन्हें ‘सही पाया’ है। इस बयान में यह कहा गया कि वीडियोकॉन ग्रुप को कर्ज देने का फैसला कंसोर्टियम स्तर (लेवल) पर लिया गया था। इस तथ्य के बावजूद कि कोचर क़र्ज़ देने वाले सलाहकार समूह का हिस्सा थी, जिसने इस कर्ज़ को मंजूरी दी थी, लेकिन इसमें उनकी कोई व्यक्तिगत हिस्सेदारी नहीं थी। बैंक के बोर्ड, अतिरिक्त रूप से श्रीमती कोचर में पूर्ण विश्वास रखते थे, उनकी ओर से किसी भी बुरे व्यवहार से इनकार करते थे और किसी भी ‘असंगत (इररिकंसिलेबल) की स्थिति को मना करते थे।
31 मार्च, 2018- सी.बी.आई. द्वारा प्रारंभिक (इनिशियल) इन्क्वारी दर्ज की गई। बाद में इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी ने दीपक कोचर और उनके भाई राजीव कोचर से भी पूछताछ की।
3 अप्रैल, 2018- आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के चेयरमैन एम.के.शर्मा ने सी.ई.ओ. चंदा कोचर के बचाव मे कहा कि बोर्ड को उन पर पूरा भरोसा है और वीडियोकॉन समूह को दिए गए कर्ज़ के संबंध में किसी भी तरह के क्विड-प्रो-क्यू को मना करते हैं।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “बोर्ड इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि, किसी तरह के क्विड-प्रो-क्यू या मुआवजा/कुलपक्षपात (नेपोटिज़्म)/हितों के टकराव जैसा कोई संदेह नहीं है, जैसा कि विभिन्न अफवाहों में बताया जा रहा है।”
4 अप्रैल, 2018- सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (एस.एफ.आई.ओ.) 2012 में आई.सी.आई.सी.आई. बैंक द्वारा वीडियोकॉन समूह को 3,250 करोड़ रुपये का क़र्ज़ देने की जांच के लिए मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स से अनुमति मांग रहा है।
23 मई, 2018- द सेक्युरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (सेबी), आई.सी.आई.सी.आई. बैंक की सी.ई.ओ. और एम.डी. चंदा कोचर को वीडियोकॉन समूह और न्यूपावर रिन्यूएबल्स (जो उनके दोस्त दीपक कोचर द्वारा समर्थित एक संगठन (आर्गेनाईजेशन) है) के साथ कर्ज़ दाता के लेन-देन के बारे में सूचित करता है। बाजार नियामक (रेगुलेटर) ने कोचर और आई.सी.आई.सी.आई. बैंक को 23 मई को 12 पेज का शो-कॉज नोटिस भेजा और नोटिस के मुताबिक जवाब देने के लिए 7 जून तक की अवधि दी।
30 मई, 2018- आई.सी.आई.सी.आई. बैंक बोर्ड में एक स्वायत्त (ऑटोनोमस) जांच शुरू हुई।
जून 2018- बैंक ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी.एन. श्रीकृष्ण को आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के बोर्ड द्वारा स्थापित स्वतंत्र पैनल का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया।
8 जून, 2018- आई.सी.आई.सी.आई. बैंक और चंदा कोचर को, बाजार नियामक सेबी के शो-कॉज नोटिस का जवाब देने के लिए और समय की अवधि चाहिए थी।
5 जुलाई, 2018- कोचर को सेबी द्वारा, कथित (अलेज्ड) उल्लंघन के लिस्टिंग डिस्क्लोजर स्टैंडर्ड्स पर शो-कॉज नोटिस का जवाब देने के लिए 10 जुलाई तक की अवधि मिली। कोचर और बैंक 7 जुलाई की समय सीमा में जवाब देने में असमर्थ रहे इसलिए उन्हें अधिक समय की अवधि चाहिए थी क्योंकि वह इस नोटिस का जवाब के लिए पर्याप्त दस्तावेजी सबूत इक्क्ठे नहीं कर पाए।
4 अक्टूबर, 2018- आई.सी.आई.सी.आई. बैंक बोर्ड ने, चंदा कोचर के शीघ्र सेवानिवृत्ति (रिटायरमेंट) के अनुरोध को स्वीकार किया। बैंक का कहना है कि बोर्ड द्वारा स्थापित इन्वेस्टीगेशन अप्रभावित रहेगी और कुछ लाभ इन्वेस्टीगेशन के परिणाम पर निर्भर होंगे।
24 जनवरी, 2019- सी.बी.आई. ने चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन समूह के एम.डी. वेणुगोपाल धूत के खिलाफ, 2012 में बैंक द्वारा कंपनी को दिए गए कथित क़र्ज़ चूक (डिफ़ॉल्ट) को लेकर एफ.आई.आर. दर्ज की।
30 जनवरी, 2019- वीडियोकॉन क़र्ज़ मामले में, न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाले पैनल ने पाया कि कोचर ने बैंक की कोड ऑफ़ कंडक्ट का उल्लंघन किया था। सर्वेक्षण (सर्वे) के बाद, बैंक के बोर्ड का कहना था कि वह अपनी इंटरनल पॉलिसीस के तहत उसके विभाजन को “टर्मिनेशन फॉर कॉज़” के रूप में देखेंगे।
मामला
एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट ने आई.सी.आई.सी.आई. बैंक की पूर्व सी.इ.ओ चंदा कोचर, दीपक कोचर, वीडियोकॉन समूह के विज्ञापनदाता (एडवरटाइजर) वेणुगोपाल धूत और अन्य के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का आपराधिक मामला दर्ज किया, ताकि 1,875 करोड़ रुपये के अग्रिम (एडवांसेज) या क़र्ज़ (जो बैंक द्वारा कॉर्पोरेट समूहों को दिया गया था) की मंजूरी में कथित अनियमितताओं और भ्रष्ट आचरण का परीक्षण किया जा सके। अधिकारीयों ने कहा कि सेंट्रल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी ने, प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत एनफोर्समेंट केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट का दस्तावेजीकरण (डॉक्युमेंटेड) किया, इस मुद्दे पर सेंट्रल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी की शिकायत को दो बार पहले दर्ज किया गया था। ई.सी.आई.आर. एक ऐसी चीज है जिसकी तुलना पुलिस एफ.आई.आर से की जा सकती है।
एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट मामले में आरोपियों की सूची सी.बी.आई. के बराबर है। सी.बी.आई. ने सूची में चंदा कोचर, दीपक कोचर और धूत और उनके संगठनों वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड का नाम लिया था। ई.डी. मामले की सूची में धूत द्वारा स्थापित कंपनी सुप्रीम एनर्जी और दीपक कोचर के नियंत्रण वाली कंपनी न्यूपावर रिन्यूएबल्स का भी नाम एफ.आई.आर में था।
22 जनवरी, 2019 को सेंट्रल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी ने, आई.सी.आई.सी.आई. बैंक लिमिटेड के पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर और सी.ई.ओ., चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर और वी.एन. धूत जो वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज़ की, जो क़र्ज़दाता और निजी संस्थाओं के बीच लेनदेन में कथित असंगतियों के सम्बन्ध में थी।
एफ.आई.आर में आई.सी.आई.सी.आई. बैंक और वीडियोकॉन समूह से संबंधित कंपनियों के बीच क़र्ज़ के लेनदेन का विवरण था। इसकी शुरुआत उस समयरेखा से होती है, जब एक्सचेंज से जुड़ी कंपनियों की स्थापना की गई थी। सी.बी.आई. की प्रक्रिया उस समय, क़र्ज़ के लेनदेन को स्पष्ट करने के लिए आगे बढ़ती है, जिसमें चंदा कोचर, दीपक कोचर और वेणुगोपाल धूत और उनकी कंपनियों के बीच कथित रूप से क्विड-प्रो-क्यू भी शामिल थी।
शामिल संस्थाएं (द एंटिटिस इंवॉल्वड)
3 जुलाई, 2008 को, सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड को इनकॉरपोरेट किया गया था, और पहले डायरेक्टर्स वी.एन. धूत (9990 शेयर) और वसंत काकडे (10 शेयर) थे।
15 जनवरी, 2009 को, दीपक कोचर द्वारा मैनेज्ड पिनेकल एनर्जी ट्रस्ट को अस्तित्व में लाया गया था। इस समय के बीच, 24 दिसंबर, 2008 को न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स की स्थापना हुई और कंपनी के पहले डायरेक्टर दीपक कोचर, वी.एन. धूत और सौरभ धूत थे।
15 जनवरी, 2009 को- न्यूपावर से वी.एन. धूत और सौरभ धूत ने इस्तीफा दे दिया। प्रस्थान से पहले, वी.एन. धूत ने दीपक कोचर को प्रत्येक वारंट के लिए 10 रुपये के रेट से 19,97,500 वारंट जारी किए, प्रत्येक वारंट के लिए 11 रुपये के प्रारंभिक भुगतान पर।
5 जून 2009 को, वी.एन. धूत और दीपक कोचर समूह (पैसिफिक कैपिटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड) के पास न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स के 24,996 शेयर, सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड में चले गए, जो न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स के 95 प्रतिशत शेयरहोल्डर में बदल गए।
क़र्ज़ लेनदेन (द लोन ट्रांसेक्शन्स)
क़र्ज़ लेनदेन, जून 2009 से अक्टूबर 2011 तक हुए। चंदा कोचर ने 1 मई 2009 को आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के सी.ई.ओ. का पद संभाला। जैसा कि एफ.आई.आर. में बताया गया था, इस अवधि के दौरान विभिन्न वीडियोकॉन समूह कंपनियों को छह “हाई वैल्यू” क़र्ज़ दिए गए थे।
30 जून 2009 को, मिलेनियम एप्लायंसेज इंडिया लिमिटेड- एक वीडियोकॉन समूह की कंपनी- को 175 करोड़ रुपये का आवधिक (टर्म) क़र्ज़ दिया गया था।
26 अगस्त 2009 को, वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को 300 करोड़ रुपये का क़र्ज़ दिया गया। सी.बी.आई. ने कहा कि यह मंजूरी समिति द्वारा मानकों (स्टैंडर्ड्स) और नीति के उल्लंघन में थी, हालांकि यह निर्दिष्ट (स्पेसिफाई) नहीं किया गया कि किन नियमों का उल्लंघन किया गया था।
17 नवंबर 2010 को स्काई अप्लायंसेज लिमिटेड को 240 करोड़ रुपये के क़र्ज़ की मंजूरी मिली।
17 नवंबर 2010 को टेक्नो इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को 110 करोड़ रुपये मंजूर किए गए।
30 मई, 2011 को, एप्लीकॉम्प इंडिया लिमिटेड को 300 करोड़ रुपये का क़र्ज़ स्वीकृत किया गया था।
31 अक्टूबर 2011 को वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज को 750 करोड़ रुपये का कर्ज मंजूर किया गया था।
एफ.आई.आर के अनुसार, स्काई अप्लायंसेज, टेक्नो इलेक्ट्रॉनिक्स और एप्लीकॉम्प इंडिया को मंजूर किए गए क़र्ज़ उन्हें वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज से इन संगठनों द्वारा लिए गए असुरक्षित (अनसेक्यूर्ड) क़र्ज़ के रिम्बर्स को सशक्त बनाने के लिए थे। इसके अलावा, वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज को, संगठन के मौजूदा कर्ज़ों के रेफाइनैंसिंग के लिए एक क़र्ज़ की भी स्वीकृति मिली।
इस तरह के कर्ज़ों ने एन.पी.ए. (नॉन-परफार्मिंग एसेट्स) को आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के लिए अनुचित नुकसान और उधारदाताओं और आरोपी व्यक्तियों के लिए अनुचित लाभ में बदल दिया है।
द एलिज्ड क्विड प्रो क्वो
कथित पारिश्रमिक या कथित क्विड प्रो क्वो, सी.बी.आई. द्वारा विस्तृत, वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (वी.आई.इ.एल) को 26 अगस्त, 2009 को दिए गए 300 करोड़ रुपये के क़र्ज़ के कारण है। चंदा कोचर, सेंक्शनिंग कमिटी के सदस्यों में से एक थीं।
- 7 सितंबर, 2009 को यह क़र्ज़ वी.आई.इ.एल को दे दिया गया था।
- अगले दिन, 8 सितंबर, 2009 को, वी.एन. धूत ने दीपक कोचर द्वारा मैनेज्ड न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स को 64 करोड़ रुपये हस्तांतरित (ट्रांसफर) किए।
- सुप्रीम एनर्जी के माध्यम से वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज से न्यूपावर रिन्यूएबल्स को क़र्ज़ हस्तांतरित किया गया था।
- सी.बी.आई. के अनुसार, यह न्यूपावर रिन्यूएबल्स को अपना पहला पावर प्लांट प्राप्त करने वाली पहली मेजर कैपिटल थी।
नतीजतन, वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड/वी.एन. धूत के माध्यम से, चंदा कोचर को वी.आई.इ.एल के लिए, 300 करोड़ रुपये का आवधिक क़र्ज़ का समर्थन करने के लिए अनलॉफुल ग्रैटिफिकेशन/अन्ड्यू प्रिफर्ड पोजीशन मिली।
चंदा कोचर के खिलाफ एफ.आई.आर.- सी.बी.आई. का आरोप
सी.बी.आई. ने सभी आरोपी व्यक्तियों को इंडियन पीनल कोड के प्रावधानों के तहत क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी, और चीटिंग की धाराएं लगाई और द प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट के प्रावधानों से संबंधित धाराएं भी लगाई। इस आयोजन में छापेमारी भी की गयी थी। धूत पर आरोप था कि उन्होंने दीपक कोचर के न्यूपॉवर संगठन में अपनी कंपनी सुप्रीम एनर्जी के माध्यम से निवेश किया था, जो कि चंदा कोचर के 1 मई 2009 को बैंक के सी.ई.ओ. के रूप में पद संभालने के बाद आई.सी.आई.सी.आई. बैंक द्वारा दिए गए कर्ज़ों के लिए एक मुआवजा या क्विड प्रो क्वो था।
सी.बी.आई. ने दावा किया कि, दीपक कोचर और धूत के बीच कांस्पीरेसी के माध्यम से न्यूपावर और सुप्रीम एनर्जी के स्वामित्व के बीच एक्सचेंजेस हुए थे।
इनिशियल इन्क्वारी के दौरान, सी.बी.आई. ने पाया कि जून 2009 और अक्टूबर 2011 के बीच वीडियोकॉन समूह और उससे संबंधित कंपनियों को आई.सी.आई.सी.आई. बैंक की नीतियों के कथित उल्लंघन में 1,875 करोड़ रुपये के छह क़र्ज़ जारी किए गए थे, जो तब इन्क्वारी का हिस्सा बन गए थे।
सी.बी.आई. ने आरोप लगाया की 2012 में, क़र्ज़ों को नॉन-परफार्मिंग एसेट्स घोषित किया गया था, जिससे बैंक को 1,730 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।
निष्कर्ष (कन्क्लूज़न)
यह मामला भारत के सबसे बड़े बैंकों में से एक पर कॉर्पोरेट एडमिनिस्ट्रेशन के दिशा-निर्देशों पर सवाल उठाता है। आई.सी.आई.सी.आई. बैंक का दृश्य कॉरपोरेट भारत में हाल के दिनों में शासन (गवर्नेंस) में चूक के कुछ उदाहरणों में से एक है। यह कॉरपोरेट मिस-एडमिनिस्ट्रेशन की अवधि में कॉरपोरेट बोर्ड्स के कार्यों पर कड़ी निगरानी रखने के लिए नियामकों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।