मुस्लिम कानून के अनुसार मुस्लिम महिलाएं अपने पति को तलाक कैसे दे सकती हैं

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Muslim Law
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यह लेख Anubhav Pandey द्वारा लिखा गया है। यह लेख बताता है की मुस्लिम कानून/शरिया कानून के अनुसार मुस्लिम महिलाएं अपने पति को तलाक कैसे दे सकती हैं। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar द्वारा किया गया है।

परिचय

मुस्लिम शरिया कानून या मुस्लिम कानून में तलाक को बुरा माना जाता है लेकिन कभी-कभी यह बुराई जरूरी हो जाती है। भारत में अपने पति से तलाक लेने के लिए मुस्लिम महिलाओं को क्या करना चाहिए, इस पर एक विस्तृत लेख यहां दिया गया है।

भारत में मुस्लिम महिलाएं अपने पति से दो प्रथागत तरीकों से तलाक ले सकती हैं-

हालाँकि, व्यक्तिगत शरिया कानून के माध्यम से तलाक को काज़ी की जांच के तहत होना चाहिए, जो ज्यादातर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के नियमों के तहत निर्देशित होता है।

तलाक-ए-तफ़वीज़

  1. इस्लाम ने पत्नी को वैवाहिक बंधन से बाहर आने या मुस्लिम कानून (या शरिया कानून) के तहत मान्यता प्राप्त आधार पर तलाक लेने की प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार दिया है। तलाक का एकतरफा उच्चारण करके विवाह अनुबंध को समाप्त करना अब पति का अनन्य अधिकार क्षेत्र (एक्सक्लूजिव ज्यूरिस्डीक्शन) नहीं रह गया है।
  2. हालाँकि, पत्नी को तलाक का उच्चारण करने का अधिकार नहीं है, जब तक कि उसके पति द्वारा विवाह के अनुबंध के समय उसे ऐसी शक्ति नहीं दी जाती है, फिर भी उसे उसके द्वारा या पक्षों द्वारा सहमत शर्तों पर आपसी सहमति से दलील के आधारों पर, काजी (न्यायालय) के हस्तक्षेप के माध्यम से तलाक लेने का अधिकार दिया जाता है।
  3. यह तलाक के अधिकार का पत्नी द्वारा प्रयोग है, जो उसे उसके पति द्वारा दी गई शक्ति के माध्यम से है, जो शादी के समय या उसके बाद भी वैध है।
  4. पति द्वारा पत्नी के पक्ष में तलाक के अधिकार का प्रत्यायोजन (डेलिगेशन) सशर्त या बिना शर्त हो सकता है। लेकिन, हालांकि यह प्रतिसंहरणीय (रिवोकेबल) नहीं है। 
  5. यह भी माना गया है कि केवल यह तथ्य कि पति ने पत्नी को अपने स्वयं के तलाक के उच्चारण की शक्ति प्रदान की है, पति को तलाक का उच्चारण करने के अपने अधिकार से वंचित नहीं करता है।
  • तलाक-ए-तफ़वीज़ में, पत्नी को अपने पति से तलाक़ लेने की ज़रूरत है क्योंकि तफ़वीज़ के लिए पति की सहमति आवश्यक है।
  • तलाक-ए-तफ़वीज़ में, पति किसी भी व्यक्ति, जी एक एजेंट है को, अपनी पत्नी को तलाक देने का अधिकार देता है, और उस व्यक्ति को पति की ओर से तलाक की घोषणा करने का अधिकार प्राप्त है।
  • तलाक-ए-तफ़वीज़ के माध्यम से तलाक किसी स्थिति के होने या न होने की आकस्मिकता पर निर्भर हो सकता है और यह स्थिति ज्यादातर तब होती है जब पुरुष अपनी पत्नी के प्रति क्रूर होते हैं या उसकी आर्थिक रूप से देखभाल करने में असमर्थ होते हैं।
  • तलाकशुदा जोड़े के पुनर्विवाह का अधिकार जिसका विवाह पत्नी द्वारा तलाक के द्वारा भंग किया गया है, स्वाभाविक रूप से पत्नी द्वारा चुने गए तलाक के तरीके पर निर्भर होना चाहिए।

“तलाक की शक्ति के प्रत्यायोजन का सिद्धांत कुरान में वर्णित एक घटना पर आधारित है जिसमें पैगंबर ने अपनी पत्नियों से कहा था कि वे उसके साथ रहने या उससे अलग होने के लिए स्वतंत्र हैं।”

लियान

यह पति द्वारा पत्नी पर व्यभिचार (एडल्टरी) का आरोप है जो उसे विवाह के विघटन (डिजॉल्यूशन) के लिए मुकदमा दायर करने और आरोप को झूठा साबित करने पर तलाक लेने का अधिकार देता है। मुस्लिम कानून के अनुसार, जब तक न्यायाधीश द्वारा कोई निर्णय पारित नहीं किया जाता है, तब तक विवाह कायम रहता है और उत्तराधिकार (इनहेरिटेंस) के पारस्परिक (म्यूचुअल) अधिकार तब होते हैं, जब दोनों में से कोई एक डिक्री पारित होने से पहले मर जाता है

  • लियान के सिद्धांत के तहत इस तरह के विवाह को भंग करने के लिए, न्यायालय को न्यायिक रूप से यह निर्धारित करना होगा कि क्या व्यभिचार का आरोप अन्यायपूर्ण था या नहीं और क्या पति आरोपों से मुकर गया है या नहीं।
  • साक्ष्य का मुहम्मदन कानून अब लागू नहीं है और सामान्य दीवानी न्यायालयों ने काज़ियों की जगह ले ली है, ये न्यायालय ऐसे अधिकारी हैं जो साक्ष्य के सामान्य नियमों के अनुसार संतुष्ट होने पर विवाह के विघटन के लिए एक डिक्री पारित करते हैं कि, एक पति द्वारा झूठा आरोप लगाया गया था। सख्त मुहम्मदन कानून के अनुसार लियान की औपचारिकताओं (फॉर्मेलिटी) का पालन करना अनावश्यक है।
  • जहां एक मुस्लिम पति ने अपनी पत्नी पर व्यभिचार का झूठा आरोप लगाया और पत्नी के विवाह के विघटन के लिए एक मुकदमा लाने पर उसने आरोप को झूठा स्वीकार किया, लेकिन उस समय आरोप लगाने को सही ठहराने का प्रयास किया, उस समय यह मान लेना पर्याप्त है कि पति अपने आरोप से मुकर गया है।

ये लियान के मुस्लिम कानून के तहत तलाक की प्रक्रिया है-

  • पति द्वारा पत्नी पर व्यभिचार (ज़िना) का आरोप।
  • आरोपी पत्नी द्वारा कौटुंबिक न्यायालय के समक्ष एक नियमित मुकदमा दायर किया जाना है।
  • यदि पति पीछे हटता है या आरोप को सही ठहराता है तो आरोप साबित हो जाते हैं और तलाक के लिए आधार उचित हो जाते है।
  • हालाँकि, यदि पति अपनी पत्नी द्वारा किए गए व्यभिचार के अपने आरोपों पर जोर देता है, तो आगे, पति को चार शपथ लेनी होती है और बाद में पत्नी को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए चार शपथ लेनी होती है और यदि साबित हो जाता है, तो वह तलाक की हकदार है।

यह भारत में लियान की विधि के तहत मुस्लिम महिलाओं द्वारा पति से तलाक लेने की प्रक्रिया थी।

पुनर्विवाह: उस जोड़े का पुनर्विवाह जिसका विवाह लियान द्वारा भंग कर दिया गया है, वह हमेशा के लिए निषिद्ध है। पुनर्विवाह पर पूर्ण प्रतिबंध है।

  • यह बताया जा सकता है कि जिस जोड़े का विवाह लियान द्वारा भंग कर दिया गया है, उसका पुनर्विवाह विशेष विवाह अधिनियम के तहत संभव है यदि उसमें निर्धारित शर्तों को पूरा किया जाता है। विशेष विवाह अधिनियम के तहत ऐसा विवाह कानून में पूरी तरह से वैध है।

मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939

तफ़वीज़ और लियान केवल दो तरीके नहीं हैं जो मुस्लिम पत्नी को तलाक लेने का अधिकार प्रदान करते हैं और वह भी न्यायालय के साधन के माध्यम से। पति की नपुंसकता को भी विघटन के आधार के रूप में मान्यता दी गई है।

किसी अन्य आधार पर, चाहे वह कितना भी वैध या उचित क्यों न हो, मुस्लिम कानून मुस्लिम महिलाओं को अपनी मर्जी से वैवाहिक बंधन तोड़ने की अनुमति नहीं देता है। यह मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1939 मुस्लिम महिलाओं को अनुपयुक्त विवाह के दुखों से मुक्त करने के लिए अस्तित्व में आया। प्रथागत दायित्वों और वैधानिक दायित्वों दोनों को तलाक देने से पहले एक समानांतर मार्ग पर आगे बढ़ाया जाता है।

नियमों के अनुसार, भारत में मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 के तहत एक मुस्लिम महिला को तलाक देने के तरीके यहां दिए गए हैं-

  • जब एक पति 4 साल की अवधि के लिए लापता हो जाता है, यानी चार साल की अवधि के लिए पति के ठिकाने का पता नहीं है ऐसे कहा जाता है। यदि कोई महिला 1.01.2017 को इस प्रावधान के तहत तलाक के लिए मुकदमा दाखिल करती है और उसका पति डिक्री की घोषणा के 6 महीने के भीतर, यानी 30.06.2017 के भीतर खुद या अपने एजेंट के माध्यम से पेश होता है और न्यायालय को संतुष्ट करता है कि वह अपना वैवाहिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए तैयार है, तो ऐसे समय न्यायालय तलाक को रद्द कर देगी।
  • तलाक तब दिया जा सकता है जब पति ने उपेक्षा (नेगलेक्ट) की हो या दो साल की अवधि के लिए उसका भरण-पोषण करने में विफल रहा हो।
  • जब पति को सात साल या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास की सजा सुनाई गई हो। कोई भी तलाक तब तक नहीं दिया जाना चाहिए जब तक कि उचित न्यायालय द्वारा सजा को साबित न कर दिया जाए।
  • जब विवाह के समय पति नपुंसक था और ऐसा ही बना रहता है, तो न्यायालय इस मामले में पति को अपने पक्ष को सही ठहराने के लिए बुलाएगी।
  • जब पति दो साल की अवधि के लिए पागल हो गया हो या कुष्ठ रोग (लेप्रोसी) या एक विषाणुजनित यौन रोग (वायरलेंट वेनरल डिजीज) (एक बीमारी जो यौन संपर्क से होती है और संचरित (ट्रांसमिट) होती है, या जो वीर्य (सीमेन), ​​योनि स्राव (वेजिनल सिक्रिशन), या संभोग के दौरान रक्त के माध्यम से संचरित होती है) से पीड़ित हो।
  • जब महिला का विवाह, उसके पिता या किसी अन्य अभिभावक द्वारा पंद्रह वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले करा दिया गया था, तो अठारह वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले विवाह के बारे में फिर से विचार किया जा सकता है, बशर्ते कि विवाह समाप्त नहीं हुआ हो (जब यौन संबंध अभी तक स्थापित नहीं हुआ है) 
  • पत्नी के प्रति क्रूरता भी तलाक का आधार है। क्रूरता तब होती है जब पति निम्न में से कोई एक कार्य करता है-
    • आदतन (हैबिचुअली) उसके साथ मारपीट करता है या क्रूरता से उसके जीवन को दयनीय बना देता है, भले ही ऐसा आचरण शारीरिक दुर्व्यवहार की कोटि में न आए।
    • बुरी ख्याति (एविल रेप्यूट) की महिलाओं के साथ संबंध बनाना या बदनाम जीवन जीना।
    • उसे अनैतिक जीवन जीने के लिए मजबूर करने का प्रयास करता है।
    • उसकी संपत्ति का निपटान करता है या उस पर उसके कानूनी अधिकारों का प्रयोग करने से रोकता है।
    • उसे उसके धार्मिक पेशे या अभ्यास के पालन में बाधा डालता है।
    • यदि उसकी एक से अधिक पत्नियाँ हैं, तो वह कुरान के आदेश के अनुसार उसके साथ समान व्यवहार नहीं करता है।

मुस्लिम महिलाओं का धर्मांतरण, मुस्लिम कानून के तहत तलाक के लिए पूर्ण आधार नहीं है

एक विवाहित मुस्लिम महिला द्वारा इस्लाम के अलावा किसी अन्य धर्म में धर्मांतरण और इस्लाम धर्म का त्याग उसके विवाह को भंग नहीं करता है, बशर्ते कि इस तरह के त्याग, या धर्मांतरण के बाद, महिला अपने विवाह के विघटन के लिए ऊपर वर्णित किसी भी एक आधार पर डिक्री प्राप्त करने की हकदार होगी। बशर्ते कि, यह किसी अन्य धर्म से इस्लाम में परिवर्तित महिला पर लागू नहीं होगा, जो अपने पूर्व धर्म को फिर से स्वीकार करती है।

मुस्लिम कानून के तहत तलाक का एक और प्रावधान है-

  • ज़िहार: यह एक ऐसी विधी है जिसमें पति अपनी पत्नी की तुलना अपनी माँ या निषिद्ध डिग्री के भीतर किसी अन्य महिला से करता है, जिससे पत्नी को, अपने पति के विरुद्ध तब तक पास आने से मना करने का अधिकार मिलता है जब तक कि वह प्रायश्चित नहीं कर लेता और चूक में पत्नी को काजी से न्यायिक तलाक के लिए आवेदन करने का अधिकार देता है। तलाक का यह रूप इस देश में अज्ञात है और ज़िहार का कोई भी मामला भारत में न्यायालयों के सामने नहीं आया है।
  • खुला: मुस्लिम विवाह के विघटन का यह रूप उस पक्ष के बीच आम सहमति पर आधारित है जहां पहल पत्नी की ओर से की जाती है, जो पति को प्रतिफल (कंसीडरेश) का भुगतान करती है, ताकि वह महर को पूरी तरह या आंशिक रूप से त्यागकर उसकी सहमति प्राप्त कर सके।

तलाक के बाद मुस्लिम महिलाओं के अधिकार

एक तलाकशुदा महिला इन चीज़ों की हकदार है-

  • उसके पूर्व पति द्वारा इद्दत अवधि के भीतर उसे एक उचित जीवन जीने के लिए उचित भरण-पोषण।
  • जहां वह अपने तलाक से पहले या बाद में पैदा हुए बच्चों का भरण-पोषण करती है, ऐसे बच्चों के जन्म की संबंधित तारीख से दो साल की अवधि के लिए उसके पूर्व पति द्वारा उचित जीवन जीने के लिए भरण-पोषण।
  • उसके विवाह के समय या उसके बाद किसी भी समय मुस्लिम कानून के अनुसार महर या दहेज की राशि के बराबर एक राशि जिसके लिए दुसरे पक्ष ने मंजूरी दी थी, का भुगतान किया जाता है।
  • वे सभी संपत्तियां, जो उसे शादी से पहले या शादी के समय या शादी के बाद उसके रिश्तेदारों या दोस्तों या पति या पति के किसी रिश्तेदार या उसके दोस्तों द्वारा दी जाती हैं।

आम गलतियाँ जो तलाक लेने के बाद मुस्लिम महिलाएँ करती हैं

  1. घबराएं नहीं: तलाक के उच्चारण के बाद, 3 मासिक धर्म या 3 चंद्र महीने या बच्चे के जन्म तक गर्भावस्था की पूरी अवधि के लिए इद्दत की एक विशेष अवधि होती है। इद्दत की उस अवधि में पत्नी को अपने पति के घर पर रहने और यहां तक ​​कि भरण-पोषण का दावा करने का भी अधिकार है।
  2. महिलाओं को अपने माता-पिता से पैसे तुरंत उधार नहीं लेने चाहिए। उसे क्रेडिट कार्ड प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए जैसे कि तलाक अंततः हो रहा है। उस क्रेडिट में पति का दायित्व मौजूद रहेगा यदि पूर्ण रूप से नहीं तो अधिकांश रूप से तो होगा ही।
  3. व्यभिचार न करें : भावनात्मक असंतुलन के कारण महिलाएं अक्सर इस जाल में फंस जाती हैं। अधिकतर यह पाया गया है कि तलाक की मांग करने वाले पुरुष अक्सर इद्दत की अवधि के दौरान अन्य महिलाओं के साथ यौन संबंध में आते हैं, केवल यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनकी पत्नी व्यभिचार करती है और तलाक के लिए उचित आधार स्थापित किया जाता है। 

मुस्लिम कानून के अनुसार मुस्लिम महिलाएं अपने पति के साथ तलाक कैसे ले सकती हैं, यह सब जानकारी काफी है। आप क्या सोचते हैं, क्या मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम कानून में वर्णित तलाक देने के लिए समान रूप से अधिकार है या सिक्के का एक और पहलू भी है जिसे हम अभी तक नहीं देख पाए हैं? नीचे टिप्पणी करें। और हां शेयर करना ना भूलें।

संदर्भ

  • MANU/JK/0455/2015, Mohd.Naseem Bhat V Bilqees Akhtar and Ors
  • Carroll Lucy and Kapoor Harsha, “Talaq-i-Tafwid: The Muslim Woman’s Contractual Access to Divorce”, Published by Women Living Under Muslim Laws in 1996,
  • Justice, Kader,S.k, “Dissolution of Muslim marriage and remarriage of the divorced couple”,  (2004) 1 LW (JS) 41
  • Altafen v. Ebrahim (27 All. L.J. 811)
  • MUSLIM WOMEN (PROTECTION OF RIGHTS ON DIVORCE) ACT, 1986
  • http://timesofindia.indiatimes.com/life-style/relationships/man-woman/6-mistakes-women-make-in-a-divorce/articleshow/19033796.cms 

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