लोकतंत्र की विशेषताएं

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Constitution of India

यह लेख डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय लॉ विश्वविद्यालय, लखनऊ की छात्रा Tejaswini Kaushal ने लिखा है। यह लेख अंतरराष्ट्रीय और भारतीय दोनों संदर्भों में लोकतंत्र की विशेषताओं के बारे में विस्तार से बताता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

जैसा की अब्राहम लिंकन ने प्रसिद्ध रूप से व्यक्त किया है कि लोकतंत्र “लोगों की, लोगों द्वारा, लोगों के लिए सरकार” है। लोकतंत्र जनता का शासन है। इसका मूल सिद्धांत यह है कि जनता लगातार, पारदर्शी और स्वतंत्र चुनावों के माध्यम से सरकार का चुनाव करती है। सभ्यता के इतिहास में, दुनिया को राजशाही (मोनार्कियल), शाही (इंपीरियल) और विजय आधारित सत्ता संरचनाओं से लोकप्रिय शासन, आत्मनिर्णय और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में बदलने के लिए लोकतंत्र आवश्यक रहा है। दुनिया में सरकार की एकमात्र ज्ञात प्रणाली जो समानता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता की अवधारणाओं को स्थापित करने का वादा करती है, वह लोकतंत्र है, जहां नागरिक राष्ट्र के लिए निर्णय लेते हैं। सरकार नीतियों को विकसित करने और राष्ट्र के लिए चुनाव करने के लिए चर्चा और बातचीत के आधार पर कार्य करती है, जिसमें लोगों को अपने प्रतिनिधियों का चयन करने, राष्ट्र के मामलों के लिए जिम्मेदारी आवंटित करने और उनकी अस्वीकृति को आवाज देने का अंतिम अधिकार होता है। यह लेख अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय संदर्भों में लोकतंत्र की विशेषताओं पर चर्चा करता है।

लोकतंत्र की अवधारणा

लोकतंत्र को अंग्रेजी में डेमोक्रेसी कहते है जो एक ग्रीक शब्द है, जहाँ ‘ डेमोस’ का अर्थ ‘लोग’ और ‘क्राटोस’ का अर्थ ‘शासन’ है। लोकतंत्र सरकार की एक प्रणाली है जिसमें लोगों के पास कानून बनाने की शक्ति होती है, यानी ‘प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) लोकतंत्र’ और यह तय करते है कि कार्यालय में उनका प्रतिनिधित्व कौन करेगा, यानी ‘प्रतिनिधि लोकतंत्र’। एक लोकतांत्रिक समाज में, समय के साथ जनसंख्या में आम तौर पर वृद्धि हुई है। हालांकि, किसे ‘लोगों’ के रूप में माना जाता है और लोगों के बीच सत्ता कैसे वितरित या प्रत्यायोजित (डेलीगेट) की जाती है, यह समय के साथ और अलग-अलग देशों में अलग-अलग दरों पर विकसित हुआ है। सभा (असेंबली) और संघ (एसोसिएशन) की स्वतंत्रता, संपत्ति के अधिकार, बोलने की स्वतंत्रता, समावेशिता (इंक्लूसिविटी) और समानता, नागरिकता, शासितों की सहमति, मतदान के अधिकार, जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के अन्यायपूर्ण सरकारी वंचन (डेप्रिवेशन) से स्वतंत्रता, और अल्पसंख्यक (माइनॉरिटी) अधिकार लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों में से हैं।

लोकतंत्र ने समय के साथ महत्वपूर्ण बदलाव देखा है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र प्रथम प्रकार का लोकतंत्र था। एक प्रतिनिधि लोकतंत्र, जैसे संसदीय या राष्ट्रपति लोकतंत्र, आज उपयोग में आने वाला सबसे प्रचलित प्रकार का लोकतंत्र है। इस प्रकार के लोकतंत्र में जनता उन प्रतिनिधियों को चुनती है जो सरकार में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे। उदार (लिबरल) लोकतंत्र के सबसे प्रचलित रूप में, बहुमत की शक्ति का प्रयोग प्रतिनिधि लोकतंत्र के मापदंडों (पैरामीटर) के भीतर किया जाता है, लेकिन संविधान बहुमत की शक्ति को प्रतिबंधित करता है और अल्पसंख्यक की रक्षा करता है, आमतौर पर यह सुनिश्चित करके कि सभी के पास कुछ व्यक्तिगत अधिकारों जैसे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या संघ की स्वतंत्रता तक पहुंच है।

लोकतंत्र की सामान्य विशेषताएं

स्वाधीनता (लिबर्टी), समानता और बंधुत्व (फैटरनिटी)

पहली फ्रांसीसी क्रांति के आदर्श, यानी, “स्वाधीनता, समानता और बंधुत्व” को लोकतंत्र की कुछ आवश्यक विशेषताओं के रूप में माना जाता है। यह वाक्यांश लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था के मूल सिद्धांतों के लिए है। पूर्ण राजाओं और सम्राटों के शासन ने अक्सर व्यक्तिगत स्वतंत्रता की कीमत पर शांति और व्यवस्था का निर्माण किया है। यह विचार कि स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए एक व्यवस्थित समाज मौजूद हो सकता है, लोकतांत्रिक सिद्धांतों द्वारा समर्थित है। लेकिन कानून और स्वतंत्रता के बीच संतुलन होना चाहिए।

एक संविधान की उपस्थिति

प्रत्येक लोकतांत्रिक देश में आमतौर पर लिखित या मौखिक रूप से दर्ज संविधान होता है। एक संविधान केवल कानूनों या विनियमों का मूल समूह है जो किसी राज्य या समाज को नियंत्रित करता है। यह सरकार की विधायी, कार्यपालिका (एग्जिक्यूटिव) और न्यायिक शाखाओं के कार्यों का निर्माण और रूपरेखा तैयार करता है। सरकार और जनता के अधिकारों और दायित्वों को भी संविधान में उल्लिखित किया जाता है।

यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि दो अलग-अलग प्रकार के संस्थान: औपचारिक (फॉर्मल) और अनौपचारिक (इंफॉर्मल) है। 

  • औपचारिक संस्थान वे हैं जो सरकार के तीन अंगों की तरह औपचारिक कर्तव्यों का पालन करते हैं। 
  • दूसरी ओर, अनौपचारिक संस्थान वे हैं जो राजनीतिक दलों और प्रेस जैसे अनौपचारिक कर्तव्यों का पालन करते हैं। 

लोकतंत्र में, इन संस्थाओं को अक्सर संविधान द्वारा परिभाषित किया जाता है।

कानून का शासन

कानून का शासन एक प्रणाली, प्रक्रिया, संस्था, प्रथा या मानक है जो कानून के सामने सभी लोगों की समानता को कायम रखता है, शासन का एक ऐसा रूप सुनिश्चित करता है जो मनमाना नहीं है, और सत्ता के मनमाने प्रयोग को रोकता है। लोकतंत्र में कानून का शासन मौजूद है। यह कानून के शासन को निरपेक्ष (एब्सोल्यूट) के रूप में दर्शाता है। कानून के शासन का कभी भी उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।

राजनीति में लोकप्रिय भागीदारी

राजनीति में लोकप्रिय भागीदारी लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताओं में से एक है। ऊपर दी गई लोकतंत्र की परिभाषा को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि कोई भी प्रणाली जो नागरिकों को राजनीतिक निर्णय लेने में भाग लेने से हतोत्साहित करती है, लोकतंत्र नहीं है। इसलिए, व्यापक भागीदारी लोकतंत्र का एक मूलभूत घटक है, न कि इसकी विशेषता है। ये या तो प्रत्यक्ष रूप से या प्रतिनिधित्व के माध्यम से वास्तव में पहचानते हैं, कि लोगों को राजनीति में भाग लेना चाहिए।

वैधता (लेजिटिमेसी)

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, लोकतंत्र तब होता है जब लोग नियमों या कानून का पालन करते हैं। राजनीतिक वैज्ञानिक वैधता अधिकार और स्वीकार्यता के रूप में परिभाषित करते हैं, आमतौर पर एक शासी कानून या एक शासन। सरल शब्दों में, वैधता एक राज्य के नागरिकों की स्वीकृति और उसके नेताओं के शासन करने का अधिकार है। लोगों को यह चुनने का अधिकार है कि लोकतंत्र में सरकार में उनका प्रतिनिधित्व कौन करेगा। लोग सर्वसम्मति (अनएनिमस) से यह फैसला करते है कि इस स्थान पर अपने राजनीतिक मामलों को कौन चलाएगा।

आम तौर पर इसके लिए वोटिंग का उपयोग किया जाता है, और यह कानून द्वारा मान्यता प्राप्त है जिसे जनता ने अनुमोदित किया है। यही कारण है कि अब्राहम लिंकन ने जोर देकर कहा कि लोकतंत्र सरकार का एक रूप है जो लोगों द्वारा और लोगों के लिए चलाया जाता है। इससे पता चलता है कि लोकतंत्र में नागरिक महत्वपूर्ण हैं।

आवधिक चुनाव

लोकतंत्र में जनता प्रभारी (इंचार्ज) होती है। इस प्रकार, चुनाव अक्सर हर निश्चित वर्षों में होते हैं। यह राज्य की राजनीतिक शक्ति को एक हाथ में केंद्रित होने से रोकने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में, राष्ट्रपति को अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है और अधिकतम दो चार साल के कार्यकाल की सेवा करते है।

यह उजागर करना महत्वपूर्ण है कि बार-बार चुनाव लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक है क्योंकि किसी राज्य को तब लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता है जब केवल एक व्यक्ति अपने संचालन को हमेशा के लिए चलाने का प्रभारी हो। जो लोग सर्वोच्च हैं, उन्हें अपने नेताओं को चुनने और बदलने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव

देश के सभी वयस्क (एडल्ट) नागरिकों को इन चुनावों में मत देने का अधिकार दिया जाना चाहिए, जो पूरी तरह से पारदर्शी और निष्पक्ष होना चाहिए। प्रत्येक मत की सराहना की जानी चाहिए, और प्रतिनिधियों को चुनते समय प्रत्येक मत का समान महत्व होना चाहिए। प्रत्येक लोकतंत्र को इस आवश्यकता को पूरा करना चाहिए, क्योंकि आज भी, कुछ राष्ट्र महिलाओं और गैर-द्विआधारी यौन अभिविन्यास (नॉन बाइनरी सेक्शुअल ओरिएंटेशन) के लोगों को मत देने के अधिकार से इनकार करते हैं। नतीजतन, वे मूल रूप से लोकतंत्र नहीं रह गए हैं, जिससे चुनाव का विचार बेकार हो गया है। इसलिए, न केवल नियमित बल्कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव भी आवश्यक हैं।

शक्तियों का पृथक्करण (सेपरेशन)

शक्तियों के पृथक्करण की धारणा को 18वीं शताब्दी में फ्रांसीसी सामाजिक और राजनीतिक दार्शनिक (फिलॉसफर) चार्ल्स-लुइस डी सेकेंडैट, बैरन डी ला ब्रेडे एट डी मोंटेस्क्यू द्वारा विकसित किया गया था। इसका तात्पर्य यह है कि किसी राज्य की राजनीतिक सत्ता एक व्यक्ति पर केंद्रित नहीं होनी चाहिए। निरंकुशता (ऑथोरिटेरियनिज्म) से बचने के लिए इसे विभाजित और अलग किया जाना चाहिए। यहां, सरकार की शाखाएं राज्य के राजनीतिक अधिकार, यानी कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को साझा करती हैं। राज्य के कानून विधायिका द्वारा बनाए जाते हैं। अदालत कानून की व्याख्या करती है जबकि कार्यपालिका इसे लागू करती है। इन अधिकारियों को अलग रखा जाता है ताकि उनके संचालन में बाधा न आए। सरकारी शाखाओं को केवल यह सत्यापित करने के लिए एक दूसरे के कार्यों की निगरानी करने की अनुमति है कि वे सभी उन कानूनों का पालन करते हैं जिन्हें जनता स्वीकृत करती है।

नियंत्रण और संतुलन (चेक एंड बैलेंस)

शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का और विकास नियंत्रण और संतुलन की अवधारणा है। मोंटेस्क्यू ने अपनी पुस्तक “द स्पिरिट ऑफ़ द लॉज़” में यह तर्क दिया था कि इससे बचने का सबसे बड़ा तरीका शक्तियों के विभाजन के माध्यम से है, जिसमें विभिन्न सरकारी संस्थाएँ विधायी, कार्यकारी और न्यायिक अधिकार का प्रयोग करती हैं, फिर भी ये सभी निकाय कानून द्वारा शासित होते हैं। शोध (रिसर्च) के अनुसार, नियंत्रण और संतुलन की मोंटेस्क्यू की धारणा एक शासी दर्शन है जिसमें सरकार के कुछ विभागों को अन्य शाखाओं को कार्य करने से रोकने का अधिकार दिया जाता है और शक्ति साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

लोकतंत्र में नियंत्रण और संतुलन का अस्तित्व यह सुनिश्चित करता है कि सरकार की विभिन्न शाखाओं को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाता है। यह याद रखना चाहिए कि सरकार की प्रत्येक शाखा को नियंत्रण और संतुलन तंत्र में काम करने के लिए, कानून की सीमा के भीतर स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए स्वायत्तता (ऑटोनोमी) की आवश्यकता होती है। एक लोकतांत्रिक सरकार में नियंत्रण और संतुलन की प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय स्वायत्तता भी महत्वपूर्ण है।

राजनीतिक दलों का अस्तित्व

एक राजनीतिक दल समान विचारधारा वाले व्यक्तियों का एक संघ है जो सत्ता हथियाने के लिए एकजुट होते हैं। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों का अस्तित्व होना चाहिए। सिर्फ एक नहीं, बल्कि दो या दो से अधिक राजनीतिक दल होने चाहिए। यह गारंटी देगा कि आम जनता के पास कई तरह के विकल्प हैं। क्योंकि एक दलीय राज्य में केवल एक ही राजनीतिक दल होता है, इसे लोकतांत्रिक राज्य नहीं कहा जा सकता। ऐसे में जनता के पास कोई वास्तविक विकल्प नहीं है।

लोकतांत्रिक सिद्धांत के अनुसार कि लोग सर्वोच्च हैं, उनके पास यह चुनने का अधिकार है कि उनके राजनीतिक मुद्दों को कौन संभालेगा। दूसरी ओर, एक राज्य लोकतांत्रिक नहीं होगा यदि वहा केवल एक राजनीतिक दल है या कोई भी दल नहीं है, या यदि जनता अपना नेता चुनने के लिए स्वतंत्र नहीं है।

एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के तहत शासन

एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में राजा सरकार नहीं होता है। देश के संविधान के अनुसार, विधायी शाखा सबसे अधिक अधिकार वाली होती है। एक नया प्रशासन जो पूर्व निर्धारित समय के बाद चुना जाता है, उसे केवल निर्णय लेने, उन्हें लागू करने और मौजूदा कानूनों के एक हिस्से में बदलाव करने का अधिकार होता है। इन सभी कार्यों को राष्ट्र के कानूनों के अनुसार किया जाना चाहिए, जो शासी प्रशासन से स्वतंत्र हैं। राष्ट्र के नागरिकों को उनकी योग्यता के आधार पर इन पदों पर नियुक्त किया जाता है।

राज्य का दायित्व

आम जनता के हित में कार्य करना निर्वाचित सरकार का कर्तव्य और दायित्व है। निर्वाचित दल के सत्र के दौरान की गई सभी कार्रवाई केवल एक नेता की नहीं, बल्कि पूरी परिषद की जिम्मेदारी है। लोकतंत्र केवल एक व्यक्ति के बजाय पूरी परिषद को चुनाव करने में सक्षम बनाता है।

कानून के समक्ष समानता 

कानून के समक्ष समानता एक सच्चे लोकतांत्रिक राज्य में मौजूद है। सरकार की यह शैली इस धारणा का समर्थन नहीं करती है कि लोगों के कुछ समूहों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए या नहीं। यहां तक ​​कि एक लोकतांत्रिक राज्य के वैध नेता भी देश की सेवा करते हुए या उसके बाद कानून के अधीन होते हैं।

क्योंकि यह मानता है कि नागरिकों को मत देने और चुने जाने के समान अधिकार हैं, समानता लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह इंगित करता है कि लोकतंत्र में चुनाव में डाला गया प्रत्येक मत वैध है, चाहे मतदाता की आय या स्थिति कुछ भी हो। समानता का यही अर्थ है।

अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व

ग्रह पर हर देश में किसी न किसी कारण से अल्पसंख्यक मौजूद हैं। अपने सभी निवासियों को समान नागरिकता का अधिकार देना लोकतंत्र की सबसे प्रमुख विशेषताओं में से एक है। अल्पसंख्यकों को उत्पीड़ित या बहिष्कृत (एक्सक्लुड) नहीं किया जाना चाहिए, और सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी शक्ति के भीतर सब कुछ करना चाहिए कि वे एक समान जीवन स्तर का आनंद लें। इसके अतिरिक्त, दुनिया भर में कुछ लोकतंत्र अल्पसंख्यक समूहों के प्रतिनिधित्व पदों को उनकी आबादी के आकार के अनुपात (प्रोपोर्शनेट) में आवंटित करते हैं जबकि अन्य पदों को प्रतिस्पर्धा के लिए छोड़ देते हैं।

मौलिक मानवाधिकार

मौलिक मानवाधिकार भी एक लोकतांत्रिक राज्य का बहुत महत्वपूर्ण पहलू हैं। ये अपरिवर्तनीय अधिकार हैं जो किसी राज्य के नागरिक को जन्म के समय दिए जाते हैं। ये अधिकार राज्य के लोगों को निरंकुशों (ऑटोक्रेट्स) के दुर्व्यवहार से बचाने में सहायता करते हैं। यही कारण है कि एक लोकतांत्रिक राज्य में लोगों के मौलिक मानवाधिकारों को हर राज्य के संविधान में शामिल किया जाना चाहिए। मौलिक मानवाधिकार भी लोकतंत्र के कुशल अभ्यास में योगदान करते हैं। उनमें से एक प्रेस की स्वतंत्रता है। एक लोकतांत्रिक राज्य के मूलभूत सिद्धांतों में से एक प्रेस की स्वतंत्रता है।

भाषण, अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत स्वाधीनता की स्वतंत्रता

एक लोकतंत्र जो जनता की आवाज को दबाता है या रोकता है वह अमान्य है और लोकतंत्र के मौलिक सिद्धांतों में से एक का उल्लंघन करता है। भले ही जनता की आवाज शासन करने वाले दल के आलोचनात्मक हो, इसे खुले तौर पर सुनने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि व्यक्ति प्रतिशोध (रिटेलिएशन) के डर के बिना खुद को व्यक्त कर सकें। इसी तरह, एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के नागरिक को स्वतंत्र रूप से और अपने निर्णय के अनुसार कार्य करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए, जब तक कि वे देश के कानूनों या किसी अन्य व्यक्ति को खतरे में नहीं डालते है। इन्हे किसी भी चीज़ के लिए अपनी अस्वीकृति व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि यह अनिवार्य रूप से सरकार के नेताओं को उनके कार्यों और नीतियों के लिए जवाबदेह ठहराने का एकमात्र तरीका है। ऐसा करके, राज्य लोगों के एक समूह की शक्ति को पूरी तरह से कमजोर कर देता है, जिससे लोकतंत्र के विचार को ही अर्थहीन बना दिया जाता है।

प्रेस की स्वतंत्रता

प्रेस लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, प्रेस की स्वतंत्रता सभी लोकतंत्रों की एक और मूलभूत विशेषता है। सबसे पहले, इस सिद्धांत का पालन करने से जनता को स्वतंत्र रूप से प्रिंट और ऑनलाइन मीडिया आउटलेट स्थापित करने की अनुमति मिलती है ताकि वे सरकारी कार्यों पर रिपोर्ट कर सकें और उन्हें काट सकें। लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों में से एक यह है कि यह सरकार में जवाबदेही को बढ़ावा देता है।

प्रेस की स्वतंत्रता के बिना, कोई लोकतंत्र नहीं हो सकता क्योंकि सरकार को अपनी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा क्योंकि यह स्पष्ट होगा कि कोई भी उन पर नजर नहीं रख रहा है। आज दुनिया के कुछ सबसे भ्रष्ट देश यूरोप और अफ्रीका में पाए जाते हैं।

हालाँकि, यह याद रखना चाहिए कि इस स्वतंत्रता की अक्सर एक सीमा होती है। अधिकांश राष्ट्र इसे देशद्रोह (ट्रीजन) का अपराध मानते हैं, जब प्रेस सरकार को अपमानित करने का प्रयास करती है या जनता से सरकार पर हमला करने का आग्रह करती है और जिसकी सजा मौत है।

भारत में लोकतंत्र

लोकतंत्र की उत्पत्ति प्राचीन काल से एक पौराणिक शहर एथेंस में पाई जा सकती है। प्राचीन सभ्यताओं में से एक भारत में थी। पूरे वैदिक काल में सभाओं और समितियों का अस्तित्व यहीं से शुरू होता है, जहां से भारत के लोकतंत्र का इतिहास शुरू होता है। अधिकांश प्राचीन शहर और राष्ट्र राजशाही थे, हालांकि उनमें से सभी नहीं थे। लोकतंत्र का विचार गायब नहीं था और पूरे मुगल काल में कई रूपों में मौजूद था। भारत पर ब्रिटिश का कब्जा तब हुआ था जब लोकतंत्र का विचार सबसे पहले अपने नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण हो गया था।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों में से एक भारत में है, भारत में दुनिया की सबसे बड़ी मत देने वाली आबादी है। भारत में दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान भी है। अपनी स्थापना के बाद से, भारत ने एक प्रगतिशील रुख अपनाया है। भारतीयों ने महिलाओं को मत देने का अधिकार दिया है, प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा की है और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को शामिल किया है। भारतीयों ने धर्मनिरपेक्षता (सेकुलरिज्म) जैसे सिद्धांतों को भी शामिल किया है, जो अभी भी अन्य लोकतंत्रों में व्यापक रूप से प्रचलित नहीं हैं, लेकिन भारतीय संविधान में यह शुरुआत से ही शामिल हैं। भारत मे लोकतांत्रिक के अस्तित्व और विस्तार की गारंटी देने वाला प्रमुख साधन भारत का संविधान है।

भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएं

निम्नलिखित लेख भारतीय लोकतंत्र के कुछ पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है जिन्हें भारत में अत्यधिक आवश्यक माना जाता है और दुनिया भर में चर्चा की जाती है। भारतीय लोकतंत्र में निम्नलिखित विशिष्ट बिंदुओं के अलावा सामान्य रूप से ऊपर सूचीबद्ध सभी विशेषताएं शामिल हैं:

लोकप्रिय संप्रभुता (सोवरेग्निटी)

भारत में, आम जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है और अपने विचारों से उनके व्यवहार को नियंत्रित करती है। लोकतांत्रिक सरकारों को विभिन्न मुद्दों पर जनता की राय बनाने के लिए आवश्यक संस्थाएँ प्रदान करनी चाहिए। विधायिका लोकप्रिय राय का आकलन करने और व्यक्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण मंच प्रदान करती है।

संघवाद (फेडरलिज्म)

भारत में एक संघीय सरकार है जो शासन के एकात्मक रूप की ओर थोड़ा अधिक झुकती है। इसलिए, भारत को कभी-कभी एक अर्ध-संघीय (क्वासी फेडरल) संरचना के रूप में वर्णित किया जाता है। संघवाद के रूप में जानी जाने वाली प्रणाली संघीय सरकार और राज्यों के बीच अधिकार को विभाजित करती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत को राज्यों का संघ कहा गया है। भारतीय संविधान घोषणा करता है कि राज्य स्वतंत्र हैं। और अनुसूची VII में संघीय सरकार और राज्यों के बीच अधिकार का आवंटन सरकार की संघीय प्रणाली के लिए एक मजबूत मामला बनाता है। कुछ क्षेत्रों में, उन्हें पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है, जबकि अन्य में, वे केंद्र पर निर्भर हैं।

बहुमत का नियम

देश भर में नियमित, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होते हैं। कहा जाता है कि जिस दल को सबसे ज्यादा मत मिले हैं, वह चुनाव जीत गया है।

विधायिका के भीतर भी, बहुमत का शासन एक आवश्यक भूमिका निभाता है। विधायी निर्णयों के लिए बहुमत नियम एक निर्णय लेने वाला सिद्धांत है जो बहुमत या आधे से अधिक मतों के साथ विकल्पों का समर्थन करता है। महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले संगठनों में, जैसे कि लोकतांत्रिक देशों के कई विधायिकाओं में, यह द्विआधारी निर्णय नियम है जो सबसे अधिक बार उपयोग किया जाता है।

सहमति का नियम

मजबूरी या जबरदस्ती के बजाय, चचुना हुए दल लोगों की अनुमति से शासन करेगा। लोकतंत्र में लोगों की सहमति महत्वपूर्ण है क्योंकि लोगों की भागीदारी लोगों को यह विश्वास करने की अनुमति देगी कि वे सत्ता में हैं और खुद को लोकतंत्र के अन्य सिद्धांतों का पालन करने वाली सरकार द्वारा शासित होने की अनुमति देंगे।

कल्याण उन्मुख (वेल्फेयर ओरिएंटेड) सरकार

एक कल्याणकारी राज्य शासन का एक रूप है जिसमें राज्य सक्रिय रूप से अपने लोगों की आर्थिक और सामाजिक भलाई की रक्षा करता है और आगे बढ़ाता है। यह समान अवसर, समान आर्थिक वितरण, और एक सभ्य जीवन के लिए छोटी-छोटी आवश्यकताओं तक पहुँचने में असमर्थ लोगों के लिए सार्वजनिक जिम्मेदारी के विचारों पर आधारित है। व्यापक वाक्यांश आर्थिक और सामाजिक संगठनात्मक (ऑर्गेनाइजेशनल) प्रकारों की एक विस्तृत श्रृंखला का उल्लेख कर सकता है।

भारत ने संविधान के भाग IV में “राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों” को लागू करके एक कल्याणकारी राज्य स्थापित करने का प्रयास किया है। भारत सरकार लगातार अपने नागरिकों के कल्याण के लिए प्रयास करती है और नागरिकों की भलाई में सुधार के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। भारत में निर्वाचित अधिकारियों को अपने घटकों के कल्याण को सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए।

समझौता आधारित सरकार

एक समझौता सरकार वह है जिसमें रियायतों (कंसेशन) के आदान-प्रदान के माध्यम से असहमति का समाधान किया जाता है; यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें विरोध या प्रतिस्पर्धी दावों, सिद्धांतों आदि को मांगों के पारस्परिक संशोधन के माध्यम से समायोजित किया जाता है। लोकतंत्र एक तरह का समझौता और समायोजन आधारित शासन है। यह मुख्य रूप से ऐसे रियायतों के परिणाम पर कार्य करता है। सत्ताधारी दल के अंदर और बाहर दोनों के अलग-अलग दृष्टिकोणों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। कई दृष्टिकोण हैं जिन पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।

बहुदलीय (मल्टी पार्टी) प्रणाली

राजनीति के संदर्भ में, एक बहुदलीय प्रणाली वह है जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल राष्ट्रीय चुनावों में भाग लेते हैं और व्यक्तिगत रूप से या गठबंधन के माध्यम से सरकार का नियंत्रण जीतने की क्षमता रखते हैं। भारत में एक बहुदलीय प्रणाली है, जिसका अर्थ है कि दो से अधिक दल कार्यालय के लिए चुनाव लड़ सकते हैं और किसी भी दल के पास राष्ट्र की बागडोर संभालने का मौका है। यह राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों और भौगोलिक क्षेत्रों से सभी विभिन्न मांगों का प्रतिनिधित्व करने में मदद करता है।

राजनीतिक समानता

राजनीतिक समानता वह है जिसमे सभी नागरिकों को अपनी सरकारें चलाने के तरीके में समान अधिकार होता है। सभी नागरिकों की प्राथमिकताओं और हितों का समान रूप से ध्यान रखना लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है। यह एक व्यक्ति, एक मत, कानून के समक्ष समानता (भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14), और समान स्वतंत्र भाषण अधिकार (भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19) जैसे विचारों में परिलक्षित (रिफ्लेक्ट) होता है। नागरिकों के महत्वपूर्ण समूहों में मतदान के अलावा अन्य प्रकार की भागीदारी में समानता सहित नागरिकों के बीच समान राजनीतिक भागीदारी, सभी नागरिकों की प्राथमिकताओं और आवश्यकताओं के समान विचार को बढ़ावा देती है। जाति, पंथ (क्रीड), धर्म, लिंग, या जातीयता की परवाह किए बिना, हर कोई जो भारतीय नागरिक है, मत देने का पात्र है। इस प्रकार, सिद्धांत को भारत में उच्च सम्मान में रखा जाता है।

सामूहिक जवाबदेही

विधायिका, जो चुनी हुई सरकार से बनी होती है, सामूहिक रूप से चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह होती है। एक भारतीय लोकतंत्र में, राज्यों और केंद्र दोनों में मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से अपने संबंधित मंत्रियों के लिए जिम्मेदार होती है। कोई भी मंत्री किसी भी सरकारी कार्रवाई के लिए पूरी तरह से जवाबदेह नहीं होता है। सभी कार्य पूर्ण मंत्रिपरिषद के दायरे में आते हैं।

व्यक्तिगत गरिमा

समानता का अधिकार (भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14), भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार (भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19), जीवन और स्वाधीनता का अधिकार (भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21), आदि सहित विभिन्न अधिकारों के माध्यम से भारतीय लोकतंत्र द्वारा व्यक्तिगत गरिमा की रक्षा की जाती है। यह उन विशेषताओं में से एक है जो अपने देश में एक लोकतांत्रिक संरचना के साथ नागरिकों की संतुष्टि सुनिश्चित करती है।

अधिकार के रूप में शिक्षा

लोकतंत्र में हर व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार है। भारत में प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार है, और जाति, रंग, पंथ या नस्ल के आधार पर शिक्षा में कोई पक्षपात नहीं होता है। 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चे अब प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम हैं। 14 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना राज्य की नीति का निर्देशक सिद्धांत है (भारतीय संविधान का अनुच्छेद 45)।

संघ बनाने का अधिकार

भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां हर कोई अपने संगठन या संघ बनाने के लिए स्वतंत्र है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सभी भारतीय नागरिकों को “संगठन, संघ या सहकारी समितियां (कॉपरेटिव सोसायटी) स्थापित करने” की स्वतंत्रता दी गई है। समुदाय या समाज के अन्य लोगों के साथ बातचीत करने के लिए संचार (कम्यूनिकेशन) प्रत्येक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों में से एक है।

स्वतंत्र न्यायपालिका

भारत में न्यायालय स्वतंत्र हैं और किसी भी सरकारी एजेंसी या राजनीतिक दल द्वारा शासित नहीं हैं। भारत की न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से अपने निर्णय लेती है और विधायी के किसी भी प्रभाव के अधीन नहीं है। यह स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्णय लेने की अनुमति देता है।

लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है। जब सरकार संविधान में उल्लिखित स्वतंत्रताओं और अधिकारों का दमन करती है, तो जनता न्यायपालिका का सहारा लेती है। इसलिए, विधायी और सरकार को नियंत्रण में रखने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका का होना महत्वपूर्ण है।

भारत इस प्रणाली का उपयोग करता है, जो कई व्यक्तियों को नागरिकों के प्रतिनिधियों के रूप में सेवा करने का मौका देता है। अन्य प्रणालियों के विपरीत जहां सिर्फ एक या दो पक्ष प्रतिस्पर्धा करते हैं, यह जनता के लिए व्यापक विविधता के विकल्प भी प्रदान करता है।

संविधान की सर्वोच्चता

भारत में, न तो संसद और न ही न्यायपालिका को संविधान पर कोई प्राथमिकता है। प्रत्येक व्यक्ति को संविधान की सीमाओं के भीतर कार्य करना आवश्यक है, और प्रत्येक व्यक्ति के लिए इससे आने वाली शक्तियों की सीमाएं भी हैं। जैसा कि कई अवसरों पर न्यायपालिका द्वारा कहा और दोहराया गया है, कि संविधान सर्वोपरि है और इसकी मौलिक संरचना को बदला नहीं जा सकता है।

लिखित संविधान

कई अन्य राष्ट्रों के विपरीत, भारत का एक लिखित संविधान है जो सरकार के कई विभागों की भूमिकाओं, शक्तियों और दायित्वों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है और उन सीमाओं को निर्धारित करता है जिनके भीतर उन्हें काम करना चाहिए। न्यायपालिका और संसद के पास संविधान की व्याख्या करने और उसे बदलने का अधिकार है ताकि इसे जनता और समय की बदलती मांगों के अनुकूल बनाया जा सके।

निष्कर्ष

भारत और दुनिया भर में लोकतंत्र को सरकार का सबसे अच्छा ढांचा माना जाता है। लोकतंत्र में, नागरिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए भागीदारी और प्रतिनिधित्व का उपयोग करते हैं। आज लोकतंत्र बिगड़ रहा है। पूरी दुनिया में लोकतंत्र के मूलभूत मूल्य गंभीर संकट में हैं। धन कुछ चुनिंदा लोगों के हाथों में केंद्रित है। स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांत ही खतरे में हैं। सत्ता कुछ चुनिंदा लोगों के हाथों में केंद्रीकृत (सेंट्रलाइज्ड) होती है जो लोगों की इच्छा के नाम पर लोकप्रिय मत के बहुमत से नहीं चुने जाते हैं। सत्ता में बैठे लोगों और मीडिया के बीच अक्सर एक संबंध होता है, जो उनके विचारों का समर्थन करता है। लोकतंत्र जो होना चाहता था, उससे दूर विकसित हो रहा है।

लोकतंत्र में अभी जो समस्याएं हैं, उनका तत्काल समाधान किया जाना चाहिए। लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों की रक्षा की जानी चाहिए। वंचित और निम्न सामाजिक स्तर के सदस्यों को अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाना चाहिए। अधिक महिलाओं को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने की आवश्यकता है। पहचान की राजनीति, चुनावों में काले धन के इस्तेमाल और राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए। केवल अगर लोकतांत्रिक व्यवस्था की खामियों की जांच की जाती है और भारतीय लोकतंत्र को बढ़ाने के लिए सक्रिय कदम उठाए जाते हैं, तो क्या भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, निकट भविष्य में सबसे मजबूत बन जाएगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

1. ‘लोकतंत्र’ का अर्थ क्या है?

जैसा कि अब्राहम लिंकन ने प्रसिद्ध रूप से व्यक्त किया था, कि लोकतंत्र “लोगों की, लोगों द्वारा, लोगों के लिए सरकार” है। लोकतंत्र जनता का शासन है। इसका मूल सिद्धांत यह है कि जनता लगातार, पारदर्शी और स्वतंत्र चुनावों के माध्यम से सरकार का चुनाव करती है।

2. लोकतंत्र की महत्वपूर्ण विशेषताएं क्या हैं?

दुनिया भर में लोकतंत्र की सबसे आवश्यक विशेषताओं में स्वाधीनता, समानता और बंधुत्व, संविधान की उपस्थिति, कानून का शासन, राजनीति में लोकप्रिय भागीदारी, वैधता, आवधिक चुनाव, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, शक्तियों का पृथक्करण, जांच और संतुलन, राजनीतिक दलों का अस्तित्व, एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के अधीन शासन, राज्य का दायित्व, कानून के समक्ष समानता, अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व, मौलिक मानवाधिकार, बोलने की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता आदि है।

3. भारतीय लोकतंत्र को परिभाषित करने वाली विशेषताएं क्या हैं?

भारतीय लोकतंत्र को परिभाषित करने वाली विशेषताओं में लोकप्रिय संप्रभुता, संघवाद, बहुमत का शासन, सहमति का शासन, कल्याण-उन्मुख सरकार, समझौता-आधारित सरकार, बहुदलीय प्रणाली, राजनीतिक समानता, सामूहिक जवाबदेही, व्यक्तिगत गरिमा, अधिकार के रूप में शिक्षा, एक संघ बनाने का अधिकार, स्वतंत्र न्यायपालिका, संविधान की सर्वोच्चता और एक लिखित संविधान शामिल हैं।

4. किन देशों में लोकतांत्रिक सरकार है?

संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, फ्रांस, नॉर्वे, आइसलैंड, स्वीडन, न्यूजीलैंड, फिनलैंड, आयरलैंड और कनाडा वर्तमान में दुनिया भर में सबसे प्रमुख लोकतांत्रिक देशों में से कुछ हैं।

5. दुनिया भर में किस प्रकार के लोकतंत्र प्रचलित हैं?

दुनिया भर में प्रचलित विभिन्न प्रकार के लोकतंत्र प्रत्यक्ष लोकतंत्र, प्रतिनिधि लोकतंत्र, संवैधानिक लोकतंत्र और मौद्रिक लोकतंत्र हैं।

संदर्भ

 

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