राज्य के खिलाफ अपराधों के  बारे में सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं

0
1568
Indian Penal code
Image Source-https://rb.gy/ewdzjb

यह लेख Shriya Sehgal द्वारा लिखा गया है, जो सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, नोएडा की बीबीए.एलएलबी की छात्रा है। यह इंडियन पीनल कोड, 1860 के तहत निर्धारित ‘राज्य के खिलाफ अपराधों’ से संबंधित एक विस्तृत लेख है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

इंडियन पीनल कोड, 1860 का चैप्टर VI (धारा 121 से धारा 130) राज्य के खिलाफ अपराधों (ऑफेंस अगेंस्ट स्टेट) से संबंधित है। इन कोड का उद्देश्य पूर्ण रूप से राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित (इंश्योर) करना है। राज्य के खिलाफ अपराधों के मामले में कड़ी सजा देकर, जैसे आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा से राज्य के अस्तित्व (एक्सिस्टेंस) की रक्षा की जा सकती है। सार्वजनिक शांति (पब्लिक ट्रांक्यूलिटी), सार्वजनिक व्यवस्था (पब्लिक ऑर्डर) और राष्ट्रीय एकता (नेशनल इंटीग्रेशन) में बाधा डालना राज्य के साथ-साथ सरकार के खिलाफ भी एक अपराध माना जाता है।

युद्ध छेड़ना (वेज़िंग वॉर)

युद्ध छेड़ने का अर्थ है हिंसा (वायलेंस) के माध्यम से सार्वजनिक प्रकृति के किसी भी उद्देश्य को पूरा करने का प्रयास करना। ऐसा युद्ध तब होता है जब कई लोग एक साथ मिलकर बल और हिंसा से सार्वजनिक प्रकृति की किसी भी वस्तु को प्राप्त करने के लिए राज्य के खिलाफ खड़े होते हैं। राज्य के खिलाफ अपराध का गठन (कांस्टीट्यूट) करने के लिए, उद्देश्य और इरादे (इंटेंशन) को ध्यान में रखा जाता है, न कि हत्या या बल को।

युद्ध छेड़ने और दंगा करने के बीच अंतर (डिफरेंस बिटवीन वेजिंग वॉर एंड राइटिंग)

आधार (बेसिस) युद्ध छेड़ना दंगे (राइट)
अर्थ

 

 

जहां उन्नति सामान्य उद्देश्य के लिए हो, पूरे समुदाय (कम्युनिटी) को प्रभावित कर रही हो और सीधे सरकारी विभाग पर प्रहार (स्ट्राइक) कर रही हो, तो वह राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ना होता है। जहां उन्नति मुख्य रूप से किसी निजी (प्राइवेट) उद्देश्य को पूरा करने के लिए है, केवल उन लोगों को प्रभावित करती है जो सरकारी प्राधिकरण (अथॉरिटी) पर सवाल उठाए बिना इसमें लगे हुए हैं तो यह एक दंगा है चाहे वह कितना भी बड़ा या अपमानजनक (आउटरेजियस) हो।
उद्देश्य यह भारत सरकार के खिलाफ है। यह सार्वजनिक शांति के खिलाफ है।
गंभीर अपराध दंगों की तुलना में यह अधिक गंभीर अपराध है। युद्ध करने की तुलना में यह कम गंभीर अपराध है।
व्यक्तियों की संख्या युद्ध करने वाले व्यक्तियों की संख्या विशिष्ट (स्पेसिफिक) नहीं है क्योंकि इसका कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया है। दंगों में व्यक्तियों की संख्या पाँच या उससे अधिक होनी चाहिए।
संहिता में उल्लेख (मेंशन इन कोड) इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 121 से 123 के तहत इसका उल्लेख और व्याख्या की गई है। इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 146 से 148 के तहत इसका उल्लेख और व्याख्या की गई है।
दंड ऐसे मामले में गंभीर सजा यानि उम्रकैद या मौत की सजा और जुर्माने का प्रावधान (प्रोविज़न) है। तुलनात्मक (कंपारेटिवली) रूप से कम गंभीर सजा दी जाती है, यानी दो साल की कैद, या जुर्माना, या दोनों।

भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना (वेजिंग वॉर अगेंस्ट द गवर्नमेंट ऑफ इंडिया)

कोड की धारा 121 से धारा 123 भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने से संबंधित है। यहाँ, ‘भारत सरकार’ शब्द का प्रयोग बहुत व्यापक (वाइड) अर्थों में किया गया है, अर्थात इसका अर्थ है भारतीय राज्य जो अपने लोगों की इच्छा और सहमति (कंसेंट) से अधिकार (राइट) और शक्ति प्राप्त करते है। दूसरे शब्दों में, यह अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) बताती है, कि हालांकि राज्य को सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय कानूनों से अधिकार की शक्ति प्राप्त होती है, हालांकि, इस तरह का अधिकार क्षेत्र के लोगों के द्वारा निहित (वेस्टेड) होता है और सरकार के प्रतिनिधि (रिप्रेजेंटेटिव) के द्वारा इसका प्रयोग किया जाता है।

धारा 121 के तहत, निम्नलिखित को अपराधों के लिए अनिवार्य (एसेंशियल) माना जाता है, क्योंकि लोगो को भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए, एक अपराध का गठन करने के लिए कुछ आवश्यकता होती है:

आरोपी के द्वारा किए गए काम:

  • युद्ध छेड़ना;  या
  • युद्ध छेड़ने का प्रयास करना;  या
  • युद्ध करने के लिए उकसाना (अबेट)।

लेकिन ऐसा युद्ध राज्य के विरुद्ध होना चाहिए।

इस धारा के तहत सजा में या तो आजीवन कारावास या मृत्युदंड शामिल है। कुछ मामलों में जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

कोई भी हो (व्होएवर)

शब्द ‘कोई भी हो’ व्यापक अर्थ में प्रयोग किया जाता है और केवल उन लोगों तक ही सीमित नहीं है, जो स्थापित (एस्टेब्लिशड) सरकार के प्रति वफादारी रखते हैं। भारत का सुप्रीम कोर्ट भी यह न्यायोचित (जस्टिफाई) ठहराने में असमर्थ रहा है, कि विदेशी नागरिक जो भारत में इस उद्देश्य से प्रवेश करते है कि वे सरकार के कामकाज को बाधित (डिसरप्टिंग) करेगे और समाज को अस्थिर (डिस्टेब्लिश) करेगे, उन्हे दोषी ठहराया जाना चाहिए या नहीं।

उदाहरण के लिए, मुंबई आतंकवादी हमले के मामले में, अपीलकर्ता (अपीलेंट) और अन्य साजिशकर्ताओं (कंस्पीरेटर) द्वारा किया गया पहला और प्राथमिक (प्राइमरी) अपराध भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का था। यह हमला विदेशी नागरिकों द्वारा किया गया था और इसका उद्देश्य भारतीयों और भारत को निशाना बनाना था। इस हमले का मकसद सांप्रदायिक तनाव (कम्यूनल टेंशन) को बड़ाना, देश की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करना और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत से कश्मीर को आत्मसमर्पण (सरेंडर) करने की मांग करना था। इसलिए, कोड की धारा 121, 121A और 122 के तहत, अपीलकर्ता को भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोषी ठहराया गया था।

युद्ध छेड़ना (वेज़िंग वॉर)

वाक्यांश (फ्रेज) ‘युद्ध छेड़ना’ को सामान्य अर्थों में समझा जाना चाहिए और इसका अर्थ केवल युद्ध के सामान्य तरीके से युद्ध करना ही हो सकता है। इसमें पुरुषों, हथियार और गोला-बारूद (एम्युनिशन) के समूह (कलेक्शन) जैसे कार्य शामिल नहीं हैं। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय अर्थों में, दो या दो से अधिक देशों के बीच सैन्य अभियानों (मिलिट्री ऑपरेशन) से जुड़े अंतर-देश (इंटर कंट्री) युद्ध को इस प्रकार के युद्ध के अंदर शामिल नहीं किया जाता है।

धारा 121 के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि ‘युद्ध’ देशों के बीच पारंपरिक (कन्वेंशनल) युद्ध नहीं है, हालांकि, भारत सरकार के खिलाफ विद्रोह (इंसर्रेकशन) में शामिल होना या संगठित (ऑर्गेनाइज) होना युद्ध का एक रूप है। हिंसा द्वारा युद्ध छेड़ना सार्वजनिक प्रकृति के किसी भी उद्देश्य को पूरा करने का एक तरीका है।

इरादा (इंटेंशन)

युद्ध छेड़ने के मामले में सरकार के खिलाफ इस तरह की आक्रामकता (एग्रेशन) के पीछे इरादे और उद्देश्य को सबसे महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। ऐसे युद्ध में हत्या और बल का कोई महत्व नहीं है।

देशद्रोह और उकसाने वाला युद्ध (सेडिशन एंड अबेटिंग वॉर)

दोनों अपराध कॉग्निजेबल, नॉन-कंपाउंडेबल और नॉन-बैलेबल हैं। इन अपराधों की सुनवाई सेशन न्यायालय में की जा सकती है।

आईपीसी की धारा 124A देशद्रोह (सेडिशन) से संबंधित है। इस अपराध का अर्थ यह है कि भारत सरकार के खिलाफ घृणा या अवमानना (कंटेंप्ट)​​ या अप्रसन्नता (डिसाफेक्शन) (अविश्वास और शत्रुता की भावना) को उत्तेजित (एक्साइट) करने का इरादा है।

युद्ध के लिए उकसाना एक विशेष प्रकार का अपराध है। ऐसी उत्तेजना का मुख्य उद्देश्य अनिवार्य रूप से युद्ध छेड़ना होना चाहिए।

उदाहरण के लिए, नवजोत संधू के मामले में, अपीलकर्ता आपराधिक साजिश (क्रिमिनल कंस्पिरेसी) का हिस्सा था और उसे अपराध के लिए उकसाया गया था। उन्होंने साजिश के उद्देश्य से उठाए गए कदमों की एक सीरीज में एक्टिव भाग लिया। अत: हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय को बरकरार रखा गया और अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 121 के तहत दोषी ठहराया गया।

आईपीसी की धारा 121 के तहत एक मामले में यदि आरोपित भाषणों को देशद्रोही नहीं ठहराया है, तो यह कार्यवाही को खराब या प्रभावित नहीं करता है। इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राजद्रोह और युद्ध को उकसाने में अंतर है।

युद्ध छेड़ने की साजिश (कांस्पिरेसी टू वेज वॉर)

धारा 121A को 1870 में आईपीसी में जोड़ा गया था। इसमें कहा गया है कि साजिश रचने के लिए किसी भी कार्य या अवैध चूक (इल्लीगल ओम्मिशन) का स्पष्ट रूप से होना आवश्यक नहीं है।

यह धारा दो प्रकार की साजिशों से संबंधित है:

  1. भारत के भीतर या बाहर, कोड की धारा 121 के तहत दंडनीय अपराध करने की साजिश करना।
  2. दहशत (ओवरावे) फैलाने की साजिश, यानी आपराधिक बल के माध्यम से डराना या सरकार के खिलाफ आपराधिक बल का केवल प्रदर्शन करना।

इस धारा के तहत सजा में दस साल की कैद या जुर्माने के साथ आजीवन कारावास शामिल है। ऐसी सजा केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार भी दे सकती है।

युद्ध छेड़ने की तैयारी (प्रिपरेशन टू वेज वॉर/

आईपीसी की धारा 122 युद्ध की तैयारी से संबंधित है। अपराध करने के प्रयास और तैयारी के बीच अंतर है।  इस खंड की अनिवार्यताएं हैं:

  • पुरुषों, हथियारों और गोला-बारूद का संग्रह।
  • इस तरह के संग्रह के लिए युद्ध छेड़ने की तैयारी करने का इरादा होना चाहिए।
  • आरोपी को इस तरह के संग्रह में भाग लेना चाहिए।
  • भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहिए।

इस धारा के तहत सजा या तो उम्रकैद या दस साल की कैद और जुर्माना है।

अगर आरोपी के कमरे में छपी हुई सामग्री के साथ अन्य चीजें मिलती हैं तो उन्हें आपत्तिजनक (ऑब्जेक्शनेबल) नही माना जाता है। इस प्रकार आरोपी को इस धारा के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

युद्ध छेड़ने के लिए योजना को छुपाना (कंसीलमेंट ऑफ डिजाइन टू वेज वॉर)

आईपीसी की धारा 123 युद्ध छेड़ने के लिए योजना (डिजाइन) को छुपाने से संबंधित है। इस खंड की अनिवार्यताएं हैं:

  • एक ऐसी योजना का अस्तित्व होना चाहिए जो भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए तैयार हो।
  • भारत सरकार के खिलाफ युद्ध को सुविधाजनक बनाने के इरादे से छिपाया जाना चाहिए।
  • व्यक्ति को योजना के छुपाने के बारे में पता होना चाहिए।

इस धारा के तहत दस साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है।

संसद (पार्लियामेंट) हमले के मामले में आरोपी के पास आतंकियों की साजिश की जानकारी थी। इस प्रकार उनकी अवैध चूक ने उन्हें आईपीसी की धारा 123 के तहत उत्तरदायी बना दिया।

सत्ता के खिलाफ युद्ध छेड़ना (वेजिंग वॉर एगेंस्ट पावर)

एशियाई शक्ति के खिलाफ (युद्ध वॉर एगेंस्ट एशियाटिक पावर)

धारा 125 ‘भारत सरकार के साथ गठबंधन में किसी भी एशियाई शक्ति के खिलाफ युद्ध छेड़ने’ से संबंधित है। यह धारा किसी भी एशियाई शक्ति के खिलाफ युद्ध छेड़ने की अवमानना ​​करती है। यहां, आरोपी को राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहिए या युद्ध छेड़ने का प्रयास करना चाहिए, या युद्ध छेड़ने के लिए उकसाना चाहिए।  इस खंड की अनिवार्यताएं हैं:

  • एक अंतरराष्ट्रीय प्रभाव (इनफ्लुएंस) के साथ एक एशियाई राज्य होना चाहिए।
  • ऐसा राज्य भारत के अलावा कोई और होना चाहिए।
  • ऐसा राज्य भारत सरकार के साथ गठबंधन में होना चाहिए।

इस धारा के तहत सजा आजीवन कारावास या सात साल के कारावास के साथ-साथ कुछ मामलों में जुर्माना है; या जुर्माना अकेला है।

मित्र देशों में लूटपाट (डिप्रेडेशन इन फ्रेंडली कंट्रीज़)

धारा 126 ‘भारत सरकार के साथ शांति से सत्ता (पावर) के क्षेत्रों पर लूटपाट (डिप्रेडेशन)’ से संबंधित है। यह धारा लूटपाट का हमला करने के काम को संदर्भित करती है। इस धारा की अनिवार्यताएं हैं:

  • आरोपी को प्रतिबद्ध (कमिटेड) होना चाहिए या लूटने के लिए तैयार होना चाहिए।
  • कृत्य किसी भी सत्ता के क्षेत्रों पर किया जाना चाहिए जो भारत सरकार के साथ गठबंधन या शांति में है।

इस धारा के तहत जुर्माने के साथ सात साल की सजा का प्रावधान है। इस तरह के अपराध को करने के लिए इस्तेमाल की गई या इस अपराध के परिणामस्वरूप अर्जित (एक्वायर) की गई किसी भी संपत्ति को भी जब्त किया जा सकता है।

नोट: धारा 126 धारा 125 से अधिक व्यापक है, क्योंकि बाद वाली धारा भारत सरकार के साथ गठबंधन (एलियंस) में एशियाई शक्ति के खिलाफ युद्ध छेड़ने से संबंधित है जबकि पूर्व धारा एक ऐसी शक्ति पर लागू होती है जो एशियाई हो भी सकती है और नहीं भी।

युद्ध या लूटपाट द्वारा ली गई संपत्ति को प्राप्त करना (रिसीविंग प्रॉपर्टी टेकन बाय वॉर और डिप्रेडेशन)

धारा 127 ‘युद्ध या लूट से ली गई संपत्ति को प्राप्त करना’ से संबंधित है जैसा कि धारा 125 और 126 में वर्णित है। इस धारा की अनिवार्यताएं हैं:

  • आरोपी को कोई संपत्ति मिली हो।
  • आरोपी को भारत सरकार के साथ, शांति से सत्ता के साथ युद्ध छेड़कर या उसके क्षेत्रों पर लूटपाट करके संपत्ति प्राप्त हुई हो।

इस धारा के तहत जुर्माने के साथ सात साल की सजा का प्रावधान है। साथ ही संपत्ति को भी जब्त किया जायेगा।

उच्च अधिकारियों पर हमला (असॉल्ट ऑन हाई ऑफिशियल)

आईपीसी की धारा 124 उच्च अधिकारियों (हाई ऑफिशियल), यानी राष्ट्रपति, राज्यपाल (गवर्नर) आदि पर हमले से संबंधित है। इस तरह के हमले उच्च अधिकारियों को अपनी वैध (लॉफुल) शक्तियों का प्रयोग करने या ना करने, के लिए प्रेरित (इंड्यूस) या मजबूर करने के इरादे से किए जाने चाहिए। इस धारा की सामग्री हैं:

  • आरोपी को किसी भी राज्य के राष्ट्रपति या राज्यपाल पर हमला करना चाहिए;  या
  • आरोपी को राष्ट्रपति या राज्यपाल को गलत तरीके से रोकना चाहिए;  या
  • आरोपी ने राष्ट्रपति या राज्यपाल पर हमला करने या गलत तरीके से रोकने का प्रयास किया;  या
  • आरोपी राष्ट्रपति या राज्यपाल को अपनी शक्तियों का प्रयोग करने या प्रयोग करने से रोकने के लिए मजबूर करने के इरादे से बल के प्रदर्शन के साथ उकसाने या प्रभावित करने का प्रयास करता है।

राज्य कैदी का भगना (एस्केप ऑफ ए स्टेट प्रिज़नर)

धारा 128, 129 और 130 राज्य के एक कैदी (प्रिज़नर) के भागने के विभिन्न पहलुओं (एस्पेक्ट) से संबंधित है।

अभिव्यक्ति ‘राज्य कैदी’ एक ऐसे व्यक्ति को संदर्भित (रेफर) करता है, जिसका कारावास (इंप्रिजनमेंट) भारत की सुरक्षा को आंतरिक अशांति (इंटरनल डिस्टर्बेंस) के साथ-साथ विदेशी शत्रुता से बचाने के लिए आवश्यक है।

आईपीसी की धारा 128 ‘लोक सेवकों (पब्लिक सर्वेंट) को अपनी इच्छा से राज्य या युद्ध के कैदियों को भागने की अनुमति देने’ से संबंधित है। इस धारा की सामग्री हैं:

  • आरोपी एक लोक सेवक होना चाहिए;  या
  • सीमित (कन्फाइंड) व्यक्ति राज्य या युद्ध का कैदी होना चाहिए;  या
  • ऐसा कैदी आरोपी व्यक्ति की हिरासत में होना चाहिए;  या
  • आरोपी सेवक को ऐसे कैदी को अपनी इच्छा से भागने देना चाहिए।

नोट: पारगमन (ट्रांजिट) के दौरान कैदी के भागने के मामले में यह धारा लागू नहीं होती है।

इस धारा के तहत अपराध, धारा 225-A के तहत अपराध का एक गंभीर रूप है। दोनों मामलों में, लोक सेवक को दंडित किया जाता है यदि वह खुद कैदी को भागने की अनुमति देता है, हालांकि, धारा 225-A के तहत एक कैदी एक साधारण अपराधी हो सकता है।

इस धारा के तहत सजा या तो आजीवन कारावास या दस साल की सजा के साथ-साथ जुर्माना भी है।

आईपीसी की धारा 129 ‘लोक सेवक को लापरवाही (नेगलिजेंटली) से राज्य या युद्ध के कैदी को भागने का कारण’ से संबंधित है। इस धारा की सामग्री हैं:

  • अपराध करने के समय आरोपी लोक सेवक होना चाहिए।
  • ऐसा कैदी आरोपी व्यक्ति की हिरासत (कस्टडी) में होना चाहिए।
  • ऐसे कैदी को बचाया जाना चाहिए या भागया जाना चाहिए।
  • ऐसा भागना या बचाव आरोपी की लापरवाही के कारण होना चाहिए।

इस धारा के तहत अपराध, धारा 223 के तहत अपराध का एक गंभीर रूप है। दोनों ही मामलों में, लोक सेवक को दंडित किया जाता है यदि वह लापरवाही से कैदी के भागने का कारण बनता है, हालांकि, धारा 223 के तहत कैदी एक साधारण अपराधी हो सकता है।

इस धारा के तहत जुर्माने के साथ तीन साल तक की साधारण कारावास की सजा है।

आईपीसी की धारा 130 ‘किसी भी व्यक्ति से संबंधित है जो राज्य के एक कैदी को भागने, बचाने, या शरण (हार्बरिंग) देने या भागने के लिए युद्ध में सहायता करता है’। यह खंड धारा 128 और 129 की तुलना में अधिक व्यापक है। इस धारा की सामग्री हैं:

  • आरोपी जानबूझकर ऐसे कैदी की सहायता, बचाव, शरण देने या छिपाने का प्रयास करता है।
  • ऐसे कैदी को कानूनी हिरासत में होना चाहिए।
  • कार्य चूक या जानबूझकर किया जाना चाहिए।

इस धारा के तहत सजा आजीवन कारावास या दस साल तक की कैद और जुर्माना है।

राज – द्रोह (सिडिशन)

धारा 124A देशद्रोह से संबंधित है। इस धारा के तहत, कोई भी व्यक्ति जो:

  • शब्द, लिखित या बोले गए;  या
  • संकेत (साइन);  या
  • दृश्यमान प्रतिनिधित्व (विजिबल रिप्रजेंटेशन);  या
  • अन्यथा (अदरवाइज);

भारत सरकार के प्रति घृणा या असंतोष लाने का प्रयास करता है, तो वह इसके लिए दंडनीय होगा:

  • कुछ मामलों में जुर्माने के साथ आजीवन कारावास;  या
  • कुछ मामलों में जुर्माने के साथ तीन साल तक की कैद;  या
  • जुर्माना।

धारा 124A की आवश्यक सामग्री (एसेंशियल इंग्रेडिएंट्स ऑफ सेक्शन 124A)

शब्द, संकेत, दृश्यमान प्रतिनिधित्व या अन्यथा (वर्ड्स, साइन, विजिबल रिप्रेजेंटेशन और अदरवाइज)

राजद्रोह विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है- लिखित या बोले जाने वाले शब्दों से, संकेतों द्वारा, या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा। देशद्रोही कार्यों में संगीत, प्रकाशन (पब्लिकेशन), प्रदर्शन (परफॉर्मेंस) (फिल्में और कठपुतली (पपेट)), मूर्तियां, तस्वीरें, कार्टून, पेंटिंग और अन्य विधि (मैथड) भी शामिल हैं।

राजद्रोह के तहत, यह महत्वहीन (इमेटेरियल) है कि वास्तविक (एक्चुअल) लेखकों द्वारा देशद्रोही लेखों का उपयोग किया जा रहा है या नहीं। संपादक (एडिटर), प्रकाशक (पब्लिशर) या मुद्रक (प्रिंटर) ऐसे मामले में लेखक के समान ही उत्तरदायी होते हैं। इस प्रकार, जिसने भी इसे रोमांचक (एक्साइटिंग) असंतोष के उद्देश्य से लिखा या इस्तेमाल किया, वह राजद्रोह का दोषी है। यदि अभियुक्त (एक्यूज्ड) यह निवेदन करता है कि उसने लेख को अधिकृत (ऑथराइज) नहीं किया है, तो सबूत का भार (बर्डन) अभियुक्त के पास है। इसके अलावा, यदि आरोपी प्रकाशित लेख या कागज की सामग्री से अनजान है तो वह इस धारा के तहत दोषी नहीं है क्योंकि इरादा अनुपस्थित है।

राजद्रोह अनिवार्य रूप से लिखित या बोले गए शब्दों से मिलकर नहीं बनता है, बल्कि अन्य प्रकार के भी हो सकते हैं जैसे कि संकेत और दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा। उदाहरण के लिए, इसे लकड़ी के कट या किसी भी प्रकार के उत्कीर्णन (इंग्रेविंग) द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।

घृणा या अवमानना ​​में लाने के लिए लाता है या प्रयास करता है (ब्रिंग और अटेम्प्ट टू ब्रिंग इंटू हेट्रेड और कंटेंप्ट)

अभिव्यक्ति ‘घृणा या अवमानना ​​​​में लाने या लाने का प्रयास करता है’ भाषण की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप (इंटरफेयर) करने का प्रयास नहीं करता है।

उदाहरण के लिए, सार्वजनिक प्रेस में लेखकों को लिखने या अनुचित (इंप्रोपर) या बेईमान उद्देश्यों में लिप्त (इंडल्ज) होने की अनुमति नहीं है। एक लेखक जब एक शांत, असंतोषजनक (अनसेंटीमेंटल) और निष्पक्ष (अनबायस) दृष्टिकोण (व्यू) के साथ एक लेख प्रकाशित करता है, और अपनी भावनाओं पर चर्चा करता है जो किसी व्यक्ति के सोचने का कारण बन सकता है या नहीं, उसे देशद्रोही नहीं माना जाता है। हालाँकि, यदि लेख से परे (बियोंड) जाता है और इसमें अनुचित, भ्रष्ट और बेईमान मकसद (मोटिव) शामिल है, तो ऐसे लेख को देशद्रोही माना जाता है।

उत्तेजित असंतोष (एक्साइट डिसाफेक्शन)

‘असंतोष’ शब्द में विश्वासघात (डिस्लॉयल्टी) और शत्रुता की अन्य सभी भावनाएँ शामिल हैं। राजद्रोह के लिए, लोगों में असंतोष का एक कार्य उत्साहित होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, राज्य के लोगों में असंतोष की भावना को जगाना चाहिए।

इस धारा के अनुसार, असंतोष को कई तरह से उत्तेजित किया जा सकता है, जैसे:

  • कविता,
  • रूपक (एलेगरी),
  • ऐतिहासिक या दार्शनिक चर्चा (हिस्टोरिकल और फिलोसॉफिकल डिस्कशन),
  • नाटक, आदि।

देशद्रोह के लिए, प्रकाशन आवश्यक है। प्रकाशन पोस्ट सहित किसी भी प्रकार और तरीके का हो सकता है।

कानून द्वारा स्थापित सरकार (गवर्नमेंट एस्टेब्लिशड बाय लॉ)

यह अभिव्यक्ति मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था (पॉलिटिकल सिस्टम) को संदर्भित करती है जिसमें सत्तारूढ़ (रूलिंग) प्राधिकरण और उसके प्रतिनिधि शामिल हैं। दूसरे शब्दों में, यह उन लोगों को संदर्भित करता है जो भारत के किसी भी हिस्से में एक्जीक्यूटिव सरकार का एडमिनिस्टर करने के लिए कानून द्वारा अधिकृत हैं। इसमें राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार भी शामिल है।

इस धारा के तहत आने वाले अपराध को भारत सरकार की ओर निर्देशित (डायरेक्टेड) किया जाना चाहिए।

निम्नलिखित परिस्थितियाँ राजद्रोह के अंदर नहीं आती हैं:

  • सरकार नहीं, बल्कि व्यवसायियों (बिजनेस मैन) या मिल मालिकों के खिलाफ हड़ताल का आह्वान।
  • भर्ती को हतोत्साहित करना (डिस्कोरेजिंग रिक्रूटिंग)।
  • भू-राजस्व (लैंड रेवेन्यू) का भुगतान नहीं करने के लिए लोगों का पीछा करना।

इस प्रकार, राजद्रोह का अर्थ है स्थापित सरकार या संप्रभु (सोबेरेन) पर हमले, न्याय ऐडमिनिस्ट्रेशन पर हमला धारा 124A के दायरे में नहीं आता है।

अस्वीकृति व्यक्त करना – स्पष्टीकरण 2 और 3 (एक्सप्रेसिंग डिसाप्रोवेशन- एक्सप्लेनेशन 2 एंड 3)

‘अस्वीकृति व्यक्त करना’ वाक्यांश (फ्रेज) का अर्थ केवल अस्वीकृति को व्यक्त करना है। एक आदमी को कोई पसंद कर सकता है, हालांकि, इस तरह की पसंद जरूरी नहीं कि उस आदमी की भावनाओं या कार्यों के अनुमोदन (अप्रूवल) के बराबर हो। स्पष्टीकरण (एक्सप्लेनेशन) 2 और 3 लोगों को सरकार के उपायों की अस्वीकृति व्यक्त करने वाली टिप्पणी करने के लिए बहुत सारे विकल्प (मेजर) प्रदान करते हैं। यह वैध साधनों या अन्य सरकारी कार्यों द्वारा उनके परिवर्तन (अल्टरेशन) को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह सब रोमांचक घृणा या सरकार की रोमांचक अस्वीकृति के बिना किया जा सकता है।

स्पष्टीकरण 2 और 3 का दायरा सीमित है और सख्ती से परिभाषित किया गया है। इस प्रकार, इन स्पष्टीकरणों का उद्देश्य सुधार के लिए सार्वजनिक उपायों के साथ-साथ उनकी संस्थाओं (इंस्टीट्यूशन) की वास्तविक आलोचना (क्रिटिसाइज) की रक्षा करना है। एक स्वतंत्र देश में स्वतंत्र प्रेस का अधिकार है कि वह ऐसे उपायों की आलोचना करके नीति (पॉलिसी) में बदलाव को गति देता है। आजकल, मीडिया को दी जाने वाली स्वतंत्रता पहले के वर्षों या पूर्व स्वतंत्रता की तुलना में बहुत अधिक है।

उदाहरण के लिए, अखबार में एक लेख देशद्रोही नहीं है जब वह किसी प्रस्तावित विधेयक (प्रपोज्ड बिल) या मंत्रालय (मिनिस्ट्री) की नीति पर हमला करता है, हालांकि, मंत्रालय पर हमला देशद्रोह होगा।

धारा 124A की संवैधानिक वैधता (कांस्टीट्यूशनल वैलिडिटी ऑफ सेक्शन 124A)

इस धारा के प्रावधानों को भारतीय संविधान के आर्टिकल 19(1)(a) के तहत भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट) का उल्लंघन होने के कारण असंवैधानिक नहीं माना जाता है।

राम नंदन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य  का पहला मामला था जिसमें देशद्रोह की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माना कि धारा ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया और इसे आम जनता के हित में नहीं माना गया। इसलिए, इस धारा को संविधान के लिए अल्ट्रा वायर्स के रूप में माना जाता था। हालांकि, केदार नाथ दास बनाम बिहार राज्य के मामले में इसे खारिज कर दिया गया था। इस मामले में, यह माना गया कि यह धारा केवल उन कामों को सीमित करेगी जिनमें कानून और व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा करने या हिंसा को लुभाने के इरादे शामिल हैं। इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को इंट्रा वायरस करार दिया।

सुधार के लिए प्रस्ताव (प्रपोजल्स फॉर रिफॉर्म)

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र (डेमोक्रेसी) है और भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार लोकतंत्र का एक अनिवार्य तत्व है। सरकार की नीति के बारे में केवल एक अभिव्यक्ति या विचार देशद्रोह नहीं है। इसलिए, वर्षों के दौरान सुधार के लिए कई प्रस्ताव किए गए हैं।

इस संबंध में विधि आयोग (लॉ कमीशन) द्वारा कई प्रस्ताव दिए गए:

  • 1968 में यानी 39वें विधि आयोग की रिपोर्ट में इस धारा को निरस्त (रिपीलिंग) करने के विचार को खारिज कर दिया गया था।
  • 1971 में, अर्थात 42वें विधि आयोग की रिपोर्ट में, धारा के दायरे का विस्तार करने और संविधान, विधायिका (लेजिस्लेचर), न्यायपालिका और कानून द्वारा स्थापित सरकार को शामिल करने का सुझाव दिया गया था।
  • अगस्त 2018 में, भारत के विधि आयोग ने एक परामर्श (कंसल्टेशन) पत्र प्रकाशित किया जिसमें इंडियन पीनल कोड की धारा 124A को निरस्त करने का सुझाव दिया गया, जो राजद्रोह से संबंधित है।
  • हाल ही में भारत के विधि आयोग ने एक परामर्श पत्र में धारा 124A को लागू करने का सुझाव दिया है ताकि केवल उन कामों का अपराधीकरण किया जा सके जो सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने या हिंसा और अन्य अवैध तरीकों से सरकार को उखाड़ फेंकने (ओवर थ्रो) के इरादे से किए गए हैं।

इस प्रकार, यह संभावना नहीं है कि धारा को जल्दी या बाद में समाप्त कर दिया जाएगा। हालांकि, धारा का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

सार्वजनिक व्यवस्था को विनियमित (रेगुलेट) करने और बनाए रखने में राज्य के खिलाफ अपराध महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राज्य के लोगों को सरकार की नीतियों की आलोचना करने का अधिकार है, हालांकि, उन्हें अपने आसपास के लोगों या सरकार को नुकसान पहुंचाने के लिए अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। भारत के खिलाफ और सत्ता के खिलाफ युद्ध करना एक दंडनीय अपराध है। कानून उच्च अधिकारियों, जैसे राष्ट्रपति, हर राज्य के राज्यपाल आदि को उनके खिलाफ हमले के मामले में भी बचाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राजद्रोह को राज्य के खिलाफ सबसे खतरनाक कॉग्निजेबल अपराधों में से एक माना जाता है। इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राज्य को, राज्य की बेहतरी के लिए देश के लोगों की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने की आवश्यकता है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

  • एनएच झाबवाला द्वारा भारतीय दंड संहिता, 2019
  • भारतीय दंड संहिता, रतनलाल और धीरजलाल, 33वां संस्करण

 

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here