आकस्मिक अनुबंधों और दांव लगाने के समझौतों के बीच अंतर

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Indian Contract Act
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यह लेख मराठवाड़ा मित्र मंडल के शंकरराव चव्हाण लॉ कॉलेज, पुणे के Ishan Arun Mudbidri द्वारा लिखा गया है। यह लेख आकस्मिक (कंटिंजेंट) अनुबंधों और दांव लगाने (वेजरिंग) के समझौतों की अवधारणाओं की व्याख्या करता है और दोनों की तुलना करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

एक अनुबंध और एक समझौता एक हैं या नहीं, इस पर बहस अनंत है। इन दोनों अवधारणाओं को पढ़ने के बाद, हम उनके प्रकारों के बारे में जानते हैं। इसके दो प्रकार हैं, आकस्मिक अनुबंध और दांव लगाने के समझौते। अब, आकस्मिक शब्द का अर्थ किसी निश्चित घटना के घटित होने पर निर्भर करता है, और दांव लगाने का भी यही अर्थ है। लेकिन एक अनुबंध है और दूसरा एक समझौता है, इसलिए इन दोनों शब्दों में कुछ विशिष्ट विशेषताएं हैं, जिन्हें लेख में उजागर किया गया है।

एक आकस्मिक अनुबंध क्या है?

जहां तक ​​बुनियादी समझ की बात है, एक अनुबंध दो पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित एक समझौता है, जो कानून द्वारा लागू करने योग्य है। लेकिन इसे और दिलचस्प बनाने के लिए, अनुबंध में नियम और शर्तें किसी के लाभ के अनुसार संशोधित की जाती हैं। ऐसे अनुबंधों में से एक को आकस्मिक अनुबंध के रूप में जाना जाता है। आकस्मिक शब्द का अर्थ एक ऐसा कार्य है जो भविष्य में किसी अन्य कार्य के होने या न होने पर निर्भर करता है। एक आकस्मिक अनुबंध एक अनुबंध है जिसकी वैधता भविष्य में एक अनिश्चित घटना पर निर्भर करती है। आइए एक उदाहरण लेते हैं, A, B को 30,000 का भुगतान करने के लिए सहमत होता है, केवल तब जब B अपनी अंतिम वर्ष की परीक्षा में टॉप करता है। अब, यह एक आकस्मिक अनुबंध है क्योंकि B अपनी परीक्षा में सफल हो भी सकता है और नहीं भी।

भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872, जो अनुबंध से संबंधित सभी चीज़ों को नियंत्रित करता है, धारा 31 से धारा 35 में आकस्मिक अनुबंध शब्द का उल्लेख करता है। धारा 36 एक आकस्मिक समझौते के बारे में बात करता है। आइए एक टेबल के माध्यम से इन सभी धाराओं का विश्लेषण करें:

धाराएं महत्व
धारा 31 एक आकस्मिक अनुबंध को भविष्य की अनिश्चित घटना के होने या न होने पर कुछ करने या न करने के अनुबंध के रूप में परिभाषित किया गया है।
धारा 32 कुछ करने या न करने के लिए एक आकस्मिक अनुबंध, भविष्य में घटना होने के बाद ही कानून द्वारा लागू किया जा सकता है। उदाहरण: – A ने B को एक लक्जरी कार उपहार में देने का वादा किया है अगर B, C से शादी करता है। B से शादी करने से पहले C की मृत्यु हो जाती है, इसलिए  अब अनुबंध शून्य हो जाएगा।
धारा 33 किसी घटना के न होने पर एक आकस्मिक अनुबंध कानून द्वारा लागू किया जा सकता है यदि वह घटना असंभव हो जाती है। उदाहरण: – यदि कोई निश्चित विमान सोमवार को नहीं आता है तो X, Y को एक राशि का भुगतान करने का वादा करता है। विमान सोमवार को आ जाता है, इसलिए अनुबंध शून्य है।
धारा 34 यदि कोई अनुबंध किसी घटना पर आकस्मिक है और इस पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति भविष्य में कैसे कार्य करेगा, तो ऐसा अनुबंध असंभव समझा जाएगा यदि वह व्यक्ति घटना को असंभव बना देता है। उदाहरण: – A ने B को उपहार देने का वादा किया यदि वह 100 मीटर की दौड़ में जीत जाता है। C दौड़ जीत जाता है। इसलिए C का दौड़ जीतने का कार्य, B के लिए इसे जीतना असंभव बना देता है। हालांकि दोबारा मैच हो सकता है, लेकिन इस घटना को असंभव माना जाता है
धारा 35 यदि अनिश्चित घटना पर कुछ करने या न करने का आकस्मिक अनुबंध एक निश्चित समय के भीतर होता है, और घटना नहीं हुई होती है और समय व्यतीत हो जाता है या यदि निश्चित समय की समाप्ति से पहले घटना असंभव हो जाती है, तो यह शून्य हो जाएगा। उदाहरण:- C, D के लिए एक लग्जरी कार खरीदने के लिए सहमत होता है, यदि उनका मूल्यवान माल ढोने वाला विमान सोमवार को वापस लौट जाता है। हालांकि, विमान समुद्र में दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है और सारा माल नष्ट हो जाता है। अतः यह अनुबंध अमान्य होगा।
धारा 36 यदि कुछ करने या न करने का समझौता किसी असंभव घटना पर आकस्मिक है, तो ऐसा समझौता शून्य हो जाएगा, भले ही पक्षों को असंभव घटना के बारे में पता हो या नहीं।

एक आकस्मिक अनुबंध के आवश्यक तत्व

एक आकस्मिक अनुबंध के लिए महत्वपूर्ण तत्व इस प्रकार हैं:

  • किसी घटना का होना या न होना

जैसा कि हम उपरोक्त टेबल पर नज़र डालते हैं, धारा 32 और धारा 33 एक घटना के होने या न होने पर एक आकस्मिक अनुबंध की प्रवर्तनीयता (एंफोर्सेबिलिटी) के बारे में बात करते हैं। अनुबंध केवल अनिश्चित भविष्य की घटना के आधार पर मान्य होगा। घटना कभी भी हो सकती है, लेकिन घटना होनी ही चाहिए।

  • घटना अनुबंध के लिए संपार्श्विक (कोलेटरल) होना चाहिए

संपार्श्विक शब्द का अर्थ द्वितीयक या अतिरिक्त है इसलिए किसी घटना का होना या न होना, अनुबंध पर निर्भर नहीं होना चाहिए। यह अनुबंध के लिए द्वितीय होना चाहिए और स्वतंत्र रूप से मौजूद होना चाहिए।

  • शर्त आकस्मिक होनी चाहिए और वचनबद्ध नहीं होनी चाहिए

एक आकस्मिक अनुबंध का प्रवर्तन अनिश्चित भविष्य की घटना पर निर्भर करता है, जिसे एक शर्त के रूप में कहा जा सकता है। लेकिन इस आकस्मिकता को एक वादा नहीं कहा जा सकता क्योंकि भविष्य की घटना अनिश्चित है। तो एक वचनबद्ध शर्त और एक आकस्मिक शर्त के बीच एक स्पष्ट अंतर है। पहले मामले में, व्यक्ति को एक दायित्व का पालन करना पड़ता है जिसे बाद की तारीख के लिए स्थगित किया जा सकता है लेकिन उसे इसका पालन करना ही पड़ता है, जबकि बाद में कोई दायित्व नहीं है क्योंकि अनुबंध भविष्य की अनिश्चित आकस्मिकता पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, A ने B के लिए भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी खरीदने का वादा किया है, अगर वे आज मैच जीतते हैं। अब, यह एक आकस्मिकता है क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि भारत मैच जीतेगा ही। इसी उदाहरण में, A, B को जर्सी खरीदने का वादा करता है यदि वह उसे पैसे देता है, तो यह एक वचन शर्त होगी जो एक कर्तव्य के प्रदर्शन पर निर्भर करती है।

  • एक अनिश्चित घटना

अनुबंध के दोनों पक्षों को उस घटना के बारे में पता नहीं होना चाहिए। यह एक अनिश्चित भविष्य की घटना होनी चाहिए। यदि घटना निश्चित है, तो इसे एक सामान्य अनुबंध कहा जाएगा और यह आकस्मिक नहीं होगा क्योंकि दोनों पक्ष इसके बारे में जानते हैं और तदनुसार अपने दायित्वों का पालन करेंगे।

  • अनुबंध वचनदाता (प्रॉमिसर) पर निर्भर नहीं होना चाहिए

अनुबंध वचनदाता की इच्छा पर नहीं होना चाहिए। यह पूरी तरह से भविष्य और अनिश्चित घटना के होने या न होने पर निर्भर होना चाहिए। वचनदाता भविष्य की घटना की शर्तों को निर्धारित नहीं कर सकता है।

  • अनुबंध का प्रदर्शन स्थगित नहीं किया जा सकता है

केवल अनुबंध के लिए निर्धारित समय को स्थगित करने से, इसे आकस्मिक अनुबंध नहीं कहा जा सकता है। दोनों पक्षों को घटना की भविष्य की तारीख और समय के बारे में कोई जानकारी नहीं होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति अपनी संपत्ति बेचने के लिए सहमत होता है, लेकिन अगले महीने की 31 तारीख को प्रक्रिया शुरू करने का फैसला करता है। यह एक आकस्मिक अनुबंध नहीं होगा। उपरोक्त उदाहरण में अनुबंध के आकस्मिक होने के लिए, व्यक्ति को अपनी संपत्ति को अनिश्चित भविष्य की घटना पर बेचना चाहिए, जिसके बारे में दोनों पक्षों को कोई जानकारी नहीं है।

एक आकस्मिक अनुबंध का महत्व

एक आकस्मिक अनुबंध, कई मामलों में काम आ सकता है। यदि आप किसी अनुबंध के भारी नियमों और शर्तों से बचना चाहते हैं, तो आप एक आकस्मिक अनुबंध पर हस्ताक्षर करने का प्रयास कर सकते हैं। यह अनुबंध नुकसान के जोखिम से बचाता है, जो अनुबंध के टूटने की स्थिति में दोनों पक्षों में से किसी एक को उठाना चाहिए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि एक आकस्मिक अनुबंध में, अनुबंध भविष्य की घटना के होने या न होने पर वैध हो जाता है। घटना अनिश्चित होनी चाहिए। इसलिए इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि यह अनुबंध कब तक समाप्त होगा।

इसके अलावा, दोनों पक्षों को अनुबंध की शर्तों पर सहमत होने की आवश्यकता नहीं है, यह अनिश्चित भविष्य की घटना तय करेगी। इसलिए दोनों पक्षों को अनुबंध के कारण उत्पन्न होने वाले किसी भी मतभेद के साथ रहना होगा। इस प्रकार के अनुबंध का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि पक्ष अनुबंध की शर्तों पर फिर से बातचीत नहीं कर सकती हैं यदि भविष्य की घटना उनके अनुसार नहीं होती है। घटना होने से पहले अनुबंध के बारे में चर्चा पक्षों को करनी होगी।

भविष्य की घटना के आधार पर, एक पक्ष को लाभ होता है और दूसरे को नहीं होता है। इससे लंबी अदालती कार्यवाही की आवश्यकता कम हो जाती है क्योंकि दोनों पक्ष पहले ही इस तरह के अनुबंध में प्रवेश करने की अपनी इच्छा व्यक्त कर चुके हैं। यह एक अच्छे संबंध को बनाए रखने में मदद करता है और दोनों पक्षों के बीच विश्वास पैदा करता है।

अंत में, कोई भी पक्ष अनुबंध की शर्तों और भविष्य की घटना पर नियंत्रण हासिल नहीं कर सकता है, क्योंकि घटना अनुबंध के लिए संपार्श्विक या द्वितीय है और इस पर निर्भर नहीं है।

प्रसिद्ध मामले

  • नेमी चंद और अन्य बनाम हरक चंद और अन्य (1965), के मामले में न्यायालय द्वारा यह देखा गया था कि भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 32 में कहा गया है कि कुछ भी करने या न करने के लिए एक आकस्मिक अनुबंध अनिश्चित भविष्य की घटना के होने पर निर्भर करता है और तब तक अनुबंध को लागू नहीं किया जा सकता है। यह तथ्य सत्य है। हालांकि, जो पक्ष दावा करता है कि अनुबंध शून्य हो जाएगा क्योंकि घटना असंभव हो गई है, उसे मामला दर्ज़ करना चाहिए और न केवल कानून के सवाल पर बल्कि तथ्य के सवाल पर भी याचिका दायर करनी चाहिए। यदि पक्ष मामले को दर्ज़ नहीं करना चाहता है, तो यह न्यायालयों की जिम्मेदारी नहीं है कि वे मामले पर स्वत: विचार करें।
  • कमिश्नर ऑफ एक्सेस प्रॉफिट टैक्स बनाम रूबी जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (1957) के मामले में, प्रतिवादी (रूबी जनरल इंश्योरेंस), जीवन, अग्नि और समुद्री बीमा प्रदान करने वाली एक बीमा कंपनी थी। अग्नि बीमा से संबंधित कंपनी द्वारा प्राप्त सभी प्रीमियम को संपत्ति के रूप में दिखाया गया था, लेकिन इसमें से 40% को अनपेक्षित जोखिम और देनदारियों के रूप में दिखाया गया था। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि शेष भाग को वर्ष में प्राप्त कुल पूंजी में से कटौती के लिए उत्तरदायी होना चाहिए। उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि असमाप्त जोखिम के रूप में अलग रखा गया हिस्सा एक आकस्मिक देयता है और बीमा का अनुबंध नहीं है। अदालत ने कहा कि अनपेक्षित जोखिम के रूप में अलग रखा गया हिस्सा, व्यवसाय की कुल पूंजी में शामिल नहीं किया जा सकता है, इसलिए इसे नहीं काटा जाना चाहिए। आगे यह माना गया कि बीमा का एक अनुबंध एक आकस्मिक अनुबंध के दायरे में शामिल है।

एक दांव लगाने के समझौते का विश्लेषण

लोग दांव और शर्त लगाने के शब्दों के बीच भ्रमित हो जाते हैं। किसी को यह अजीब लग सकता है, लेकिन एक शर्त एक दांव है और एक दांव एक शर्त है। इसे सरल शब्दों में कहें तो शर्त लगाने का अर्थ है किसी घटना के परिणाम के आधार पर किसी चीज को संपार्श्विक के रूप में रखना, जिसका अर्थ दांव लगाना होता है। अब जब लोग शर्त लगाते हैं, तो वे एक समझौता करते हैं। उदाहरण के लिए, A, B को 100 रुपये का भुगतान करने के लिए सहमत होता है अगर भारत आज क्रिकेट मैच जीत जाता है। अब अगर भारत मैच हार जाता है तो B को A को 1000 रुपये का भुगतान करना होगा। इसलिए इसे एक दांव समझौते के रूप में जाना जाता है, जहां एक निश्चित घटना के परिणाम के आधार पर दोनों पक्षों के लिए जीत-हार की स्थिति होती है। यह समझौता जोखिम भरा है क्योंकि एक पक्ष को लाभ होता है और दूसरे को नुकसान होता है जिसके परिणामस्वरूप विवाद और तर्क उत्पन्न हो सकते हैं। भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 30 दांव लगाने के समझौते का उल्लेख करती है। यदि आप ध्यान से देखें, तो आईसीए की धारा 20 से 30 उन समझौतों या अनुबंधों का उल्लेख करती है जो शून्य हैं, अर्थात, कानून द्वारा निषिद्ध हैं। इसलिए धारा 30 में कहा गया है कि एक समझौता जहां किसी भी पक्ष को किसी घटना के होने या न होने पर पैसे का भुगतान किया जाता है, शून्य है। न्यायालय ऐसे किसी भी मामले पर विचार नहीं करेंगे जिसमें दांव के माध्यम से जीते गए धन की वसूली का दावा किया जाता है।

जुआ या सट्टेबाजी को भारतीय क़ानूनों ने कभी अपनाया नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 301 से अनुच्छेद 307, जिसमें व्यापार और वाणिज्य (कॉमर्स) से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है, में जुआ शामिल नहीं है। जुआ को रेस एक्स्ट्रा कॉमर्सियम माना जाता है, जिसका अर्थ है कि कुछ चीजें व्यापार के लिए अनुत्तरदायी हैं और वाणिज्य से बाहर हैं। वर्तमान में भारत में, भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 दांव लगाने के समझौतों से संबंधित एकमात्र क़ानून है। इस अधिनियम के प्रावधानों को 1865 के दांव से बचने (संशोधन) अधिनियम द्वारा पूरक (सप्लीमेंट) किया गया था।

एक दांव लगाने के समझौते की विशेषताएं और आवश्यक तत्व

एक दांव लगाने का समझौता सामान्य समझौते से अलग होता है। तो आइए एक दांव लगाने के समझौते की कुछ विशेषताओं को देखें:

  • आपसी लाभ और हानि

एक दांव लगाने का समझौता एक आपसी समझौता है। इसका मतलब यह है कि दोनों पक्ष पारस्परिक रूप से भविष्य की घटना के आधार पर लाभ या हानि भुगतने के लिए सहमत होते हैं। इसलिए, यदि एक पक्ष दांव हार जाता है, तो उसे दूसरे पक्ष को एक राशि का भुगतान करना होता है। दांव के लिए इनाम कुछ भी हो सकती है जिसका मौद्रिक मूल्य हो। यदि एक पक्ष अनिश्चित घटना के परिणाम को जानता है, तो इसे दांव लगाने का समझौता नहीं कहा जाएगा। घटना पर किसी भी पक्ष का नियंत्रण नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए, A और B एक दांव लगाने के समझौते में प्रवेश करने के लिए पारस्परिक रूप से सहमति व्यक्त करते है। शर्तें यह थीं कि यदि C परीक्षा में टॉप करता है, तो A, B को 2000 रुपये का भुगतान करेगा, और यदि नहीं तो B, A को समान भुगतान करेगा। यह एक पारस्परिक रूप से सहमत दांव है।

  • दो पक्ष होने चाहिए

एक वैध दांव लगाने के समझौते के लिए, दो पक्षों का होना आवश्यक है। यह बिल्कुल स्पष्ट है क्योंकि एक अकेला व्यक्ति खुद के साथ दांव नहीं लगा सकता है, उदाहरण के लिए, A अपने साथ एक दांव लगाता है कि यदि वह एक मिनट में 30 से अधिक पुश-अप करता है, तो वह चीज़केक खाएगा और यदि वह नहीं करता है, तो उसे एक मील अतिरिक्त दौड़ के लिए जाना होगा। तो ऐसा हो सकता है, लेकिन ऐसी स्थिति को समझौता नहीं कहा जाएगा। यह कानून का मूल नियम है कि एक वैध समझौते के लिए दो पक्षों का होना आवश्यक है। ऐसा ही दांव लगाने के समझौते में भी है।

  • समझौता केवल एक दांव तक का होना चाहिए और उससे आगे का नहीं

जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है, कोई भी पक्ष दांव के परिणाम को नियंत्रित नहीं कर सकता है। इसके अलावा समझौते की एकमात्र शर्त भविष्य की घटना के परिणाम के आधार पर एक दांव होना चाहिए। यदि पक्षों का इस शर्त से परे कोई हित है, तो दांव लगाने का समझौता मान्य नहीं होगा। उदाहरण के लिए, X, Y के साथ एक दांव में प्रवेश करता है। यदि X की फूड टेक स्टार्ट-अप को 6 महीनों में कम से कम 50,000 ग्राहक मिलते हैं, तो Y, X को एक निश्चित मौद्रिक राशि का भुगतान करेगा, और यदि यह लक्ष्य पूरा नहीं होता है, तो X को Y को समान राशि का भुगतान करना होगा। हालांंकि X को बाद में एहसास हुआ कि उनके दांव के परिणाम के आधार पर, Y उसके स्टार्ट-अप में 20% हिस्सेदारी भी चाहता है। इसलिए ऐसी स्थिति को दांव लगाने का समझौता नहीं कहा जाएगा।

एक दांव लगाने के समझौते के अपवाद

अब तक, हमें इस बात की थोड़ी समझ हो गई होगी कि वास्तव में एक दांव लगाने का समझौता क्या है। लेकिन, कुछ स्थितियां ऐसी होती हैं, जो दांव लगाने के समझौते की शर्तों को पूरा नहीं करती हैं। वे इस प्रकार हैं:-

  • बीमा का अनुबंध

बीमा प्राप्त करने का अनुबंध एक दांव लगाने के समझौते का सबसे महत्वपूर्ण अपवाद हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह एक दांव के समान है। एक बीमा अनुबंध में, बीमाकर्ता के रूप में ज्ञात वित्तीय क्षतिपूर्ति प्रदान करने वाले पक्ष का अनुबंध में बीमा योग्य हित होता है। इसका मतलब यह है कि कंपनी उस पक्ष की रक्षा करती है, जिसने अप्रत्याशित (अनएक्सपेक्टेड) बुरी घटना के कारण वित्तीय नुकसान से बीमा लिया है। इसलिए, इस प्रकार के अनुबंध को क्षतिपूर्ति के अनुबंध के रूप में जाना जाता है, जो पक्षों  को नुकसान उठाने से बचाता है। पक्षों का मुख्य उद्देश्य नुकसान से रक्षा करना है, न कि किसी घटना के होने या न होने से लाभ प्राप्त करना। यदि बीमाकर्ता का बीमा योग्य हित नहीं है, तो इस अनुबंध को दांव कहा जा सकता है।

  • घुड़दौड़ प्रतियोगिता

घुड़दौड़ प्रतियोगिता में सट्टेबाजी भी शामिल है। लोग दौड़ जीतने और उससे पैसे कमाने के लिए अपने मनचाहे घोड़े पर सट्टा लगाते हैं। तो क्या यह एक दांव लगाने वाला समझौता है? नहीं। भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 30 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि घुड़दौड़ से जुड़े दांव को दांव लगाने वाला समझौता नहीं माना जाएगा, इसलिए यह शून्य नहीं है। हालांकि भारत में, राज्य सरकारें ऐसी प्रतियोगिताओं के लिए परमिट प्रदान करती हैं। एक घुड़दौड़ प्रतियोगिता भाग्य के बजाय कौशल (स्किल) पर अधिक आधारित होती है। दौड़ से पहले पूरी तैयारी की आवश्यकता होती है, जैसे घोड़े को प्रशिक्षित (ट्रेनिंग) करना, उसका भोजन, रखरखाव आदि।

  • कौशल की आवश्यकता वाले खेल

हम अक्सर गेमिंग अनुबंधों के बारे में जानते हैं। उदाहरण के लिए, A और B दोनों प्लेस्टेशन पर फीफा (फुटबॉल) का खेल खेलते हैं। यहां ट्विस्ट यह है कि अगर A गेम जीत जाता है, तो B उसे ट्रीट देगा और अगर A हार जाता है तो A, B को ट्रीट देगा। हालांकि इसे एक दांव लगाने वाला समझौता नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि वीडियो गेम में कौशल की आवश्यकता होती है, और खेल का परिणाम भाग्य पर निर्भर नहीं करता है। एमजे सिवानी बनाम कर्नाटक राज्य (1995) के मामले में, वीडियो गेम के दायरे और कानूनी वैधता की जांच की गई थी। अदालत द्वारा यह देखा गया कि गेमिंग का मतलब खेलना होता है, और चूंकि खेल गैरकानूनी नहीं है, इसलिए यह सवाल नहीं उठना चाहिए कि इसमें कौशल शामिल है या भाग्य।

शेयर बाजार ट्रेडिंग

पिछले कुछ वर्षों में शेयर बाजार कई लोगों के लिए सोने की खान बन गया है। किसी को आश्चर्य हो सकता है कि क्या शेयर बाजार में व्यापार करना एक दांव है क्योंकि लोग एक पक्ष से दूसरे पक्ष को शेयर खरीदते और बेचते हैं। हालांकि, यह एक दांव नहीं माना जाता है और पूरी तरह से कानूनी है।

प्रसिद्ध मामले

  • बाबासाहेब रहीमसाहेब बनाम राजाराम रघुनाथ अल्पे (1930) के मामले में, दोनों पक्ष पहलवान थे और उन्होंने एक समझौता किया। समझौतों की शर्तें यह थीं कि उन्हें पुणे में एक निश्चित तारीख पर एक-दूसरे से कुश्ती लड़नी थी। इसके बाद, यदि कोई भी पक्ष मैच के लिए उपस्थित होने में विफल रहता है, तो दूसरे पक्ष को 500 रुपये का भुगतान करना होगा। अंत में, मैच जीतने वाले व्यक्ति को 1,125 रुपये के साथ पुरस्कृत किया जाना था। प्रतिवादी (राजाराम एल्पे) मैच के लिए उपस्थित होने में विफल रहा। इसलिए वादी (बाबासाहेब रहीमसाहेब) ने अदालत में उनके समझौते की शर्तो के अनुसार 500 रुपये का दावा किया। निचली अदालत ने वादी की याचिका खारिज कर दी। वादी ने तर्क दिया कि चूंकि घटना का विजेता अनिश्चित था और समझौता एक दांव है, इसलिए प्रतिवादी को उसे वांछित धन का भुगतान करना होगा। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने देखा कि भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 में दांव लगाने के समझौते को परिभाषित नहीं किया गया है, और सर विलियम एंसन द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार यह एक अनिश्चित घटना के निर्धारण पर पैसे का भुगतान करने का वादा है। वर्तमान परिस्थितियों में, समझौता यह था कि विजेता को पूरे मूल्य का पैसा मिलता है और हारने वाला खाली हाथ चला जाता है। हारने वाला पुरस्कार जीतने में विफल रहा और उसने अपने दम पर कुछ भी नहीं खोया। इसलिए अदालत ने माना कि यह उदाहरण दांव लगाने के समझौते के तहत नहीं आता है क्योंकि विजेता को दी जाने वाली कीमत का पैसा उन लोगों से था, जिन्हें इवेंट के लिए टिकट खरीदना था।
  • घेरूलाल पारख बनाम महादेवदास मैया और अन्य (1959) के मामले में अपीलकर्ता (घेरूलाल पारख) और प्रतिवादी (महादेवदास मैया) ने साझेदारी की। उन्होंने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कहा गया था कि फर्म की ओर से प्रतिवादी, अन्य लोगों के साथ अनुबंध करेगा, लेकिन लाभ और हानि पक्षों द्वारा समान रूप से साझा की जाएगी। ऐसे अनुबंधों में से एक गलत हो गया और प्रतिवादी को पूरी राशि की क्षतिपूर्ति करनी पड़ी जो अपीलकर्ता ने नहीं की। इसलिए प्रतिवादी ने अपीलकर्ता से राशि वसूल करने के लिए एक मुकदमा दायर किया और तर्क दिया कि एक दांव लगाने के अनुबंध में प्रवेश करने का समझौता आईसीए की धारा 23 के तहत गैरकानूनी नहीं है। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि दांव लगाने के अनुबंध धारा 30 के तहत शून्य हैं और धारा 23 के अर्थ के भीतर अवैध हैं। न्यायालय द्वारा यह माना गया था कि दांव लगाने के अनुबंध धारा 30 के तहत शून्य हैं, लेकिन कानून द्वारा निषिद्ध नहीं हैं। एक समझौता जो दांव लगाने के अनुबंध के लिए संपार्श्विक है, वह भी धारा 23 के तहत गैरकानूनी नहीं है। इसलिए तर्कों को नकारात्मक किया जाना चाहिए।

वे कैसे भिन्न हैं

जैसा कि हमने देखा है कि आकस्मिक अनुबंध और दांव लगाने के समझौते वास्तव में क्या हैं, वे बहुत समान हैं। लेकिन जैसा कि एक अनुबंध है और दूसरा एक समझौता है, दोनों के बीच के अंतर को जानना महत्वपूर्ण है, क्योंकि दोनों भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 के तहत अच्छी तरह से विनियमित (रेगुलेटेड) हैं और इन दोनों दस्तावेजों से निपटने के दौरान किसी भी भ्रम की स्थिति गंभीर हो सकती है। तो आइए हम कुछ विशिष्ट विशेषताओं को देखें, जो एक टेबल के माध्यम से एक आकस्मिक अनुबंध को एक दांव लगाने के समझौते से अलग करती हैं:

अंतर के बिंदु आकस्मिक अनुबंध दांव लगाने के समझौते
दस्तावेज़ के प्रकार एक आकस्मिक अनुबंध कानून द्वारा लागू करने योग्य है। इसका मतलब यह है कि किसी घटना के घटित होने या न होने पर आधारित कोई भी अनुबंध, जिसका कानून द्वारा विरोध किया जाता है, को एक वैध अनुबंध नहीं माना जाएगा।  एक दांव एक ऐसा समझौता है जिसे कानून द्वारा लागू किया जा सकता है या लागू नहीं भी किया जा सकता है।
उल्लिखित भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 31 में एक आकस्मिक अनुबंध का उल्लेख किया गया है, और यह कानूनी रूप से मान्य है।  भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 30 में एक दांव समझौते का उल्लेख किया गया है। इस धारा के अनुसार, दांव समझौते को शून्य माना जाता है।
परिभाषा भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 31 में कहा गया है कि एक आकस्मिक अनुबंध भविष्य की अनिश्चित घटना के परिणाम के आधार पर कुछ करने या न करने का अनुबंध है, जो इस अनुबंध के लिए संपार्श्विक है।  भारतीय अनुबंध अधिनियम दांव लगाने के समझौते को परिभाषित नहीं करता है। हालांकि, एक दांव का मतलब भविष्य की अनिश्चित घटना के परिणाम के आधार पर किसी चीज पर दांव लगाकर लाभ या हानि उठाना है।
हित एक आकस्मिक अनुबंध में हित होता है, क्योंकि अनिश्चित भविष्य की घटना के आधार पर एक कार्य किया जाता है।  एक दांव समझौते में, एकमात्र हित यह है कि क्या मुझे लाभ हुआ है या नुकसान हुआ है, जो एक घटना के परिणाम पर निर्भर करता है।
अनिश्चित भविष्य घटना एक अनिश्चित भविष्य की घटना अनुबंध के लिए द्वितीयक या संपार्श्विक है। यह अनुबंध के परिणाम को निर्धारित नहीं करता है।   एक अनिश्चित भविष्य की घटना ही एकमात्र कारक है जो यह निर्धारित करती है कि दांव किसने जीता है।
पारस्परिक वादा एक आकस्मिक अनुबंध में, पारस्परिक वादे हो भी सकते हैं और नहीं भी हो सकते है।  एक दांव समझौते में, पारस्परिक वादे शामिल होते हैं।

निष्कर्ष

इन दोनों अवधारणाओं का विश्लेषण करने के बाद, यह सवाल नहीं उठना चाहिए कि क्या एक आकस्मिक अनुबंध एक दांव लगाने के समझौते से बेहतर है क्योंकि भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 के तहत एक दांव समझौता शून्य है। एक आकस्मिक अनुबंध एक ही समय में वैध है, लेकिन प्रदर्शन के रूप में जोखिम भरा है और अनुबंध की अनिश्चित भविष्य की घटना पर निर्भर करता है। इसलिए यह कहना सुरक्षित है कि अनुबंध या समझौते में प्रवेश करते समय, उन सभी तत्वों और नियमों का पालन करना बेहतर होता है, जो अनुबंध को कानूनी रूप से वैध बनाते हैं।

संदर्भ

 

 

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