कांसेप्ट ऑफ़ प्लेंट अंडर सिविल प्रॉसिजर कोड, 1908 (नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत वाद की अवधारणा)

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यह लेख Rohit Raj द्वारा लिखा गया है, जो वर्तमान में लॉयड लॉ कॉलेज से बीए एलएलबी (ऑनर्स) कर रहे छात्र हैं। यह एक विस्तृत लेख है जो वादी की अवधारणा (कॉन्सेप्ट ऑफ़ प्लेंट) और वादपत्र (प्लेंट) में उपलब्ध होने वाली आवश्यक सामग्री से संबंधित है। इस लेख में, लेखक यह भी बताता है कि एक उचित वाद पत्र कैसे लिखा जाए। इस लेख को अनुवाद Revati Magaonkar ने किया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

यदि आपने कभी सोचा है कि वादी की यह अवधारणा चित्र में क्यों आती है और इसके क्या लाभ हैं और यह वाद क्यों आवश्यक है, तो यहां वह सब कुछ है जो आपको जानना आवश्यक है। नमूना वादों (सैंपल प्लेंट) पर यह पूरा लेख कानून के प्रावधान (प्रोविजन ऑफ़ लॉ) के अनुसार ‘वादी’ की अवधारणा से संबंधित है और वादपत्र में आवश्यक सामग्री (कंटेंट्स) क्या है। यह लेख वादी के अन्य पहलुओं से भी संबंधित है, जैसे कि अभियोग में की गई सामान्य गलतियाँ और सीपीसी के प्रावधान के अनुसार एक उचित वादपत्र लिखने के लिए कुछ सुझाव।

अभियोग (प्लेंट)

एक वादी एक कानूनी दस्तावेज (लीगल डॉक्यूमेंट) है जिसमें किसी भी दीवानी मुकदमे (सिविल सूट) की सामग्री होती है जो मुकदमा दायर करने के बाद वादी के दावे को दर्शाती (रिफ्लेक्ट) है। वाद शुरू करने के लिए कानूनी दस्तावेज के रूप में वादी का पहला कदम है और यह दर्शाता है कि वादी (प्लेंटिफ) उस मुकदमे से क्या चाहता है। एक वाद की अवधारणा (प्लेंट) का उल्लेख सिविल प्रक्रिया संहिता में किया गया है। वादी द्वारा वादपत्र की सहायता से कार्रवाई का कारण और संबंधित जानकारी का वर्णन किया जाता है जो कि वाद की दृष्टि से आवश्यक मानी जाती है।

फिर्याद/वादपत्र के मामले में, कार्रवाई के कारण में दो खंड (डिवीजन) होते हैं, पहला कानूनी सिद्धांत (लिगल थिअरी) (तथ्यात्मक स्थिति जिसके आधार पर वादी पीड़ित (सफर्ड) होने का दावा करता है) और दूसरा कानूनी उपाय (लिगल रेमेडी) है जो वादी अदालत से चाहता है। एक वादपत्र (प्लेंट) को एक महत्वपूर्ण अवधारणा माना जाता है क्योंकि यह किसी भी मुकदमे (लॉसूट) को शुरू करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण और प्रारंभिक चरण है और उपयुक्त अधिकार क्षेत्र (एप्रोप्रिएट जुरीसडिक्शन) के सिविल कोर्ट को खोजने में मदद करता है।

सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश VII, विशेष रूप से वादपत्र से संबंधित है। सीपीसी के आदेश VII में, कई अलग-अलग नियम हैं जो वादी के विभिन्न घटकों से संबंधित हैं। नियम 1 से 8 तक वादी के विवरण (पर्टिकुलर) से संबंधित है। सीपीसी का नियम 9 इस बात से संबंधित है कि वादपत्र कैसे स्वीकार किया जाएगा और उसके बाद नियम 10 से 10-B वादी की वापसी और पार्टियों की उपस्थिति के बारे में बात करता है और मुख्य नियम यानी 11 से 13 तक वादपत्र की अस्वीकृति से संबंधित है और किन परिस्थितियों में वादपत्र को खारिज किया जा सकता है।

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 26 में कहा गया है, “प्रत्येक वाद को एक वादपत्र प्रस्तुत करके या ऐसे अन्य तरीके से स्थापित किया जाएगा जैसा कि निर्धारित (प्रेस्क्राइब) किया जा सकता है।” यह खंड (सेक्शन) स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि दीवानी या वाणिज्यिक न्यायालय (सिविल ऑर कमर्शियल कोर्ट) के सामने वाद की स्थापना के लिए वादपत्र बहुत आवश्यक है।

एक वादपत्र/फिर्याद की आवश्यक सामग्री (नेसेसरी कंटेंट्स ऑफ़ अ प्लेंट)

एक वादपत्र एक कानूनी दस्तावेज है जिसमें बहुत सारी आवश्यक सामग्री होती है जिसके अभाव (एब्सेंस) में इसे वादपत्र नहीं माना जा सकता है। सीपीसी के आदेश VII के नियम 1 से 8 में एक वादी के लिए आवश्यक सामग्री का उल्लेख किया गया है। इनका उल्लेख नीचे किया गया है:

  • वादपत्र में वाणिज्यिक या दीवानी न्यायालय का नाम होना चाहिए जहां मुकदमा शुरू किया जाएगा।
  • वादी में नाम, पता और विवरण (डिस्क्रिप्शन) जैसे वादी के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।
  • वाद में प्रतिवादी (डिफेंडेंट) का नाम, निवास और विवरण होना चाहिए।
  • जब किसी वादी को स्वास्थ्य में कुछ दोष या समस्या हो या किसी प्रकार की विकलांगता (डिसएबिलिटी) हो, तो वादी में इन प्रभावों का विवरण होना चाहिए।
  • वाद पत्र में ऐसे तथ्य होने चाहिए जिससे कार्रवाई का कारण उत्पन्न होता है, और जहां कार्रवाई का कारण उत्पन्न होता है उसका भी उल्लेख किया जाना चाहिए।
  • वादी में न केवल उन तथ्यों (फैक्ट्स) का उल्लेख होना चाहिए जिनके कारण कार्रवाई का कारण बनता है बल्कि उन तथ्यों का भी उल्लेख करना चाहिए जो अधिकार क्षेत्र को पहचानने में मदद करते हैं।
  • वादपत्र में उस राहत (रिलीफ) के बारे में भी होना चाहिए जो वादी अदालत से चाहता है।
  • जब वादी अपने दावे के एक हिस्से को बंद (सेट ऑफ़) करने के लिए तैयार होता है, तो वादी में वह राशि (अमाउंट) होनी चाहिए जिसकी अनुमति दी गई है।
  • वादपत्र में न केवल क्षेत्राधिकार के प्रयोजन के लिए बल्कि न्यायालय-शुल्क के प्रयोजन (स्टेटमेंट) के लिए भी वाद की विषय-वस्तु (सब्जेक्ट मैटर) के मूल्य का विवरण होना चाहिए।
  • अंत में, जो सामग्री वादपत्र पर होनी चाहिए वह शपथ पर वादी का सत्यापन (वेरिफिकेशन) है।

इससे पता चलता है कि वाद वाणिज्यिक या दीवानी अदालतों में वादों (सूट्स) की सफल शुरुआत के लिए एक आवश्यक घटक है और पूरे वाद में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुछ अतिरिक्त विवरण जिनका उल्लेख ऊपर नहीं किया गया था, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं: वादी प्रतिवादी से प्राप्त होने वाली राशि का सही-सही उल्लेख करेगा जैसा कि आदेश VII के नियम 2 के तहत दिया गया है, जबकि सीपीसी के आदेश VII के नियम 3 में कहा गया है कि जब वाद में विषय वस्तु होती है अचल संपत्ति (इमोवेब्ल प्रॉपर्टी) का, तो संपत्ति का विधिवत वर्णन किया जाना चाहिए।

वाद की अस्वीकृति (रिजेक्शन ऑफ़ प्लेंट)

कुछ स्थितियों में जब आवश्यकताएं पूरी नहीं होती हैं तो वादपत्र को खारिज (रिजेक्ट) कर दिया जाता है। जिन स्थितियों में वाद खारिज किया जाता है उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • वाद ऐसे मामले में खारिज किया जाता है जहां कार्रवाई (एक्शन) के कारण का खुलासा नहीं किया जाता है। यदि कार्रवाई के कारण का खुलासा नहीं किया जाता है तो वादी को हुई क्षति (डैमेज) को साबित (प्रूव) करना संभव नहीं है। प्रतिवादी के खिलाफ राहत पाने के लिए, तथ्यों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए। एसएनपी शिपिंग सर्विस प्राइवेट लिमिटेड बनाम विश्व टैंकर कैरियर कॉर्पोरेशन के मामले में, वादपत्र को खारिज कर दिया गया था और सीपीसी, 1908 के आदेश 7, नियम 1 (ए) के अनुसार मुकदमा खारिज कर दिया गया था।
  • वादपत्र को उस मामले में भी खारिज कर दिया जाता है जहां वादी कि राहत का मूल्यांकन (वैल्यूएशन) कम है और वादी को अदालत द्वारा निर्धारित समय सीमा (टाइम फ्रेम) के भीतर मूल्यांकन को सही करने का अनुरोध (रिक्वेस्ट) किया जाता है, लेकिन वादी ऐसा करने में असफल रहता है।
  • वादपत्र ऐसे मामले में खारिज कर दिया जाता है जहां सभी दस्तावेजों (डॉक्यूमेंट) पर ठीक से मुहर (स्टैम्प) नहीं लगाई जाती है और वादी अदालत द्वारा निर्धारित समय के भीतर अदालत द्वारा आवश्यक स्टांप पेपर की आपूर्ति (सप्लाई) के लिए दिए गए कलावधी में पूर्ण करने में असफल होने पर वाद खारिज कर दिया जाता है।
  • किसी भी कानून या क़ानून द्वारा सुरक्षित वादपत्र में दिए गए बयान (स्टेटमेंट) के कारण वादपत्र ज्यादातर खारिज कर दिया जाता है और जो वादी को मुकदमा (सूट) दायर करने का कोई अधिकार नहीं देता है।
  • जब वादपत्र की डुप्लीकेट प्रत (कॉपी) प्रस्तुत नहीं की जाती है जबकि यह उल्लेख किया गया है कि डुप्लीकेट प्रति जमा करना अनिवार्य (मैंडेटरी) है तो उस स्थिति में वादपत्र खारिज किए जाने के लिए उत्तरदायी (लाइबल) है।
  • जब वादी सी.पी.सी. के आदेश (ऑर्डर) VII के नियम (रूल) 9 के प्रावधानों (प्रोविजन) का पालन करने में असफल रहता है, तो वादपत्र खारिज कर दिया जाता है।

नागरिक प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत वादपत्र की अस्वीकृति पर प्रावधान (प्रोविजंस ऑन द रिजेक्शन ऑफ़ प्लेंट अंडर सिविल प्रोसिजर कोड)

जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि किन परिस्थितियों में वादपत्र को खारिज किया जा सकता है और अब ऐसे कौन से प्रावधान हैं जो नागरिक प्रक्रिया संहिता के तहत वादपत्र की अस्वीकृति से संबंधित हैं। एक वादपत्र की अस्वीकृति के संबंध में कुछ प्रावधानों का उल्लेख नीचे किया गया है:

  1. सीपीसी का आदेश VII नियम 12 वादपत्र को खारिज करने की प्रक्रिया (प्रोसीजर) बताता है ताकि इसे भविष्य के मामलों के लिए एक मिसाल (प्रीसिडेंट) के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।
  2. सीपीसी के आदेश VII नियम 13 में कहा गया है कि वादपत्र की अस्वीकृति नए वादपत्र की प्रस्तुति (प्रेजेंटेशन) या भरने (फाइलिंग) को नहीं रोकती है।

दो तरीके (मोड्स) जिनका उल्लेख उस तरीके को दिखाने के लिए किया गया है जिसमें वादपत्र को खारिज किया जा सकता है:

  1. प्रतिवादी को वादी की अस्वीकृति के लिए कार्यवाही के किसी भी चरण में एक वार्ता आवेदन (इंटर्लोक्युटरी एप्लिकेशन) के रूप में एक आवेदन दायर करने का अधिकार है।
  2. स्वप्रेरणा अस्वीकृति आदेश (सू मोटो-अपने दम पर): सू मोटो का अर्थ ही वादपत्र की अस्वीकृति के तरीके को परिभाषित (डिफाइन) करता है। स्वप्रेरणा अस्वीकृति आदेश 7 नियम 11 के तहत है जो वादी की अस्वीकृति बताता है। यदि वादपत्र पहले बिंदु (पॉइंट) में चर्चा की गई शर्तों (कंडीशन) को पूरा करता है तो एक अदालत स्वयं आदेश 7 नियम 11 के तहत मुकदमा चला सकती है।

वादी की अस्वीकृति पर ऐतिहासिक मामले (लैंडमार्क केसेस ऑन रिजेक्शन ऑफ़ प्लेंट)

वादपत्र की अस्वीकृति से संबंधित कई मामले अदालत के सामने आए लेकिन नीचे दिए गए कुछ मामलों को अब वादपत्र की अस्वीकृति पर अन्य मामलों के लिए ऐतिहासिक (लैंडमार्क) माना जाता है:

कालेपुर पाला सुब्रमण्यम बनाम तिगुती वेंकट 

इस मामले में कहा गया था कि इस नियम के तहत एक वाद को आंशिक (इन अ पार्ट) रूप से खारिज और एक हिस्से को बरकरार (रीटेनड़) नहीं किया और रखा जा सकता है। इसे समग्र (व्होल) रूप से खारिज किया जाना चाहिए न कि एक हिस्से की अस्वीकृति (रिजेक्शन) और दूसरे की स्वीकृति (एक्सेप्टेंस) के साथ। इस फैसले (जजमेंट) को वादपत्र की अस्वीकृति पर एक ऐतिहासिक फैसला माना जाता है।

सोपान सुखदेव सेबल बनाम सहायक चैरिटी कमिश्नर

इस मामले में, यह माना गया था कि जहां मुकदमा साक्ष्य दर्ज (रिकॉर्डिंग एविडेंस) करने के चरण में था और आदेश 7 नियम 11 के तहत एक आवेदन वाद (सूट) की कार्यवाही में देरी (डिले इन प्रोसिडिंग) के लिए दायर किया गया था, आदेश 7 नियम 11 कोड के तहत उस आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

बिभास मोहन मुखर्जी बनाम हरि चरण बनर्जी 

इस मामले में, यह माना गया था कि एक वादपत्र को खारिज करने का आदेश एक डिक्री है और इसलिए यह अन्य मामलों में लागू (एप्लीकेबल) और बाध्यकारी (बाईंडिंग) है जिसमें वादपत्र की अस्वीकृति शामिल है।

के. रोजा बनाम यूएस रायू

कोर्ट ने इस मामले में कहा कि नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत वादपत्र की अस्वीकृति के लिए कोई भी आवेदन किसी भी स्तर पर दायर किया जा सकता है और अदालत को इसका निपटान (डिस्पोज) परीक्षण (ट्रायल) के साथ आगे बढ़ने से पहले करना होगा। 

कुलदीप सिंह पठानिया बनाम बिक्रम सिंह जर्या

इसमें अदालत ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VII नियम 11 (A) के तहत एक आवेदन के लिए, केवल वादी की दलीलों (प्लीडिंग्स) पर गौर किया जा सकता है और न ही लिखित बयान (रिटन स्टेटमेंट) और न ही बयान पूछताछ (एवरमेंट्स) के लिए विचार किया जा सकता है।

एक वादपत्र का प्रारूपण (ड्राफ्टिंग ऑफ़ प्लेंट)

किसी भी मुद्दे पर वादपत्र का प्रारूपण न्यायालय में वाद दायर करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है और मालवीय नगर, नई दिल्ली के निवासी द्वारा अप्रयुक्त भूमि (अनयूज्ड) को डंपिंग क्षेत्र के रूप में उपयोग करने पर निषेधाज्ञा (इंजंक्शन) के लिए यह वादपत्र तैयार किया, इसमें हर समय भारी मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ (वेस्ट मयेरियल) और दुर्गंध (स्मेल) के कारण वादी की स्वास्थ्य समस्या (हैल्थ प्रॉब्लम) पर पढ रहे प्रभाव के कारण यह आवेदन किया गया।

                                    साकेत नगर, दिल्ली के सिविल कोर्ट में

                                                              2020 का सूट नंबर 166

अभिनव शर्मा

बी104, मालवीय नगर, नई दिल्ली ……… वादी

                                                                                     वी

शर्मिष्ठा शर्मा

मालवीय नगर, नई दिल्ली …….. प्रतिवादी

अनुपयोगी भूमि को डंपिंग क्षेत्र के रूप में उपयोग करने पर निषेधाज्ञा के लिए वाद

वादी ने निम्नानुसार प्रस्तुत किया:

  1. वादी मालवीय नगर, नई दिल्ली का निवासी है और प्रतिवादी वादी का पड़ोसी है।
  2. अनुपयोगी भूमि वादी के घर के पास है, जिसका उपयोग B106 की निवासी यानी प्रतिवादी द्वारा अपने घर की बेकार सामग्री (वेस्ट मटेरियल) के लिए डंपिंग यार्ड के रूप में किया जाता है।
  3. कि प्रतिवादी हर समय उस अनुपयोगी भूमि में वादी के घर के पास बेकार सामग्री फेंक रहा था।
  4. लंबे समय से प्रतिवादी द्वारा डंपिंग यार्ड के रूप में उपयोग किए जाने के बाद से, विशाल अपशिष्ट सामग्री का एक संग्रह है जो वादी की स्वास्थ्य समस्या का कारण बनता है।
  5. यह कि अदालत के पास इस मामले पर एक डंपिंग क्षेत्र के रूप में अप्रयुक्त भूमि के उपयोग पर निषेधाज्ञा तय करने का अधिकार क्षेत्र है क्योंकि यह उसकी मुक्त आवाजाही को प्रतिबंधित (रेस्ट्रिक हिज फ्री मूवमेन्ट) करता है और प्रतिवादी कार्य के कारण उनके स्वास्थ्य को भी प्रभावित (अफेक्ट) करता है।

प्रार्थना (प्रेयर):

यह प्रार्थना की जाती है कि प्रतिवादी के विरुद्ध वादी के पक्ष में निषेधाज्ञा की डिक्री और कुछ और राहत जैसा कि अदालत ठीक समझे पारित की जाए। 

स्थान: मालवीय नगर                                                                                                  सिग्नेचर

दिनांक: 04/02/2020                                                                                           (अभिनव शर्मा)

सत्यापन:

उपरोक्त नामित वादी में एतद् द्वारा सत्यापित किया जाता है कि पैरा नं. 1,2,3 और 4 मेरी जानकारी में सही हैं और शेष पैराओं की सामग्री मेरे वकील की कानूनी सलाह के अनुसार है जिसे मैं सच मानता हूं।

स्थान: वादी के मालवीय नगर पुत्र/डी

दिनांक: 04/02/2020 (अभिनव शर्मा)

निष्कर्ष (कंक्लुजन)

वादपत्र एक अवधारणा (कॉन्सेप्ट) है जो कानून के क्षेत्र में संघर्ष (कॉन्फ्लिक्ट) के बिंदु और तथ्यों के बेहतर ज्ञान (नॉलेज) के लिए उभरा (इमर्ज) है ताकि प्रभावी और अच्छी तरह से सूचित निर्णय दिए जा सकें। वाणिज्यिक और दीवानी मामलों (कमर्शियल एंड सिविल) में वादपत्र की अवधारणा की आवश्यकता होती है, जो वाणिज्यिक और दीवानी न्यायालयों द्वारा निपटाए जाते हैं। लेकिन वादपत्र ने प्रक्रिया की जटिलता (कॉम्प्लेक्सिटी) को बढ़ा दिया है और आम लोगों द्वारा कानूनी उपचार (लीगल रेमेडी) के लिए मुकदमा दायर करना कठिन बना सकता है। यह एक समय लेने वाली प्रक्रिया भी है जिसके कारण लोग वादी की इस अवधारणा से असंतुष्ट (डिस-सेटिस्फाइड) हैं।

वादपत्र की अस्वीकृति, गठन (फॉर्मेशन) और प्रारूपण (ड्राफ्टिंग) के नियमन (रेगुलेशन) के लिए नागरिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधान के तहत कई आदेशों और नियमों की उपस्थिति के कारण नागरिक व्यवस्था में बहुत अराजकता (चाओस) आती है।

मेरी राय में, एक वादपत्र विवाद (कॉन्फ्लिक्ट) के तथ्यों और मुद्दों के ज्ञान में सुधार करने में मदद करता है। हालांकि, सीपीसी के प्रावधानों के तहत नियमों को सरल बनाने से आम आदमी के लिए मुकदमा दायर करना आसान हो जाएगा। अन्यथा बहुत सारे विनियमों (रेगुलेशंस) के साथ वाद दायर करना काफी कठिन है। इसलिए खुद वादों की अवधारणा को खत्म करने के बजाय कानून के कई प्रावधानों के तहत नियमन (प्रोविजन) को कम किया जाना चाहिए।

 

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