भारतीय संविधान का अनुच्छेद 74

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Constitution of India

यह लेख बंगलौर के आईएसबीआर लॉ कॉलेज से बीबीए.एलएलबी की पढ़ाई कर रही Raksha Yadav ने लिखा है। यह लेख संविधान के अनुच्छेद 74 का विश्लेषण देता है, जो मंत्रिपरिषदों (काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स) से संबंधित है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

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परिचय

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, और यह धर्मनिरपेक्षता (सेकुलरिज्म) का पालन करता है। यहां सरकार का संसदीय रूप है, जिसमें प्रधान मंत्री के साथ-साथ उनकी मंत्रिपरिषद भी शामिल होती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 में कहा गया है कि एक मंत्रिपरिषद होनी चाहिए, और प्रधान मंत्री परिषद का  प्रमुख होता है। परिषद राष्ट्रपति को उनके कार्यों को सुचारू रूप से करने में सहायता करती है। न्यायपालिका परिषद द्वारा दी गई सलाह के बारे में पूछताछ नहीं कर सकती है। परिषद में कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उप मंत्री (डिप्टी मिनिस्टर) शामिल हैं। संविधान के 42वें और 44वें संशोधन ने राष्ट्रपति के लिए मंत्रिपरिषद से सलाह लेना अनिवार्य कर दिया है। संविधान के अनुच्छेद 53 में कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति के पास कार्यकारी (एग्जिक्यूटिव) शक्तियाँ हैं, जिनका प्रयोग उनके द्वारा या उनके अधीनस्थ (सबोर्डिनेट) अधिकारियों के माध्यम से किया जा सकता है। राष्ट्रपति देश का नाममात्र और संवैधानिक प्रमुख होता है, लेकिन अनुच्छेद 74 कहता है कि राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह का पालन करना होता है, जिससे मंत्रिपरिषद में कार्यकारी शक्तियाँ निहित होती हैं और कैबिनेट मंत्रियों को वास्तविक कार्यकारी शक्तियाँ मिलती हैं।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 में किए गए संशोधन

कानून गतिशील है और यह समाज की जरूरतों के अनुसार बदलता रहता है। 1950 में भारतीय संविधान लागू हुआ था और अब नागरिकों के कल्याण और सरकार के सुचारू कामकाज के लिए, क़ानूनों में कुछ बदलाव करना आवश्यक है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 368 संविधान में संशोधन के प्रावधान प्रदान करता है। संविधान में कुल 104 संशोधन हुए हैं। इस खंड में, हम अनुच्छेद 74 से संबंधित दो प्रमुख संशोधनों अर्थात 42वां संशोधन और संविधान का 44वां संशोधन पर चर्चा करेंगे।

भारतीय संविधान का 42वां संशोधन

1976 के संविधान (42वें संशोधन अधिनियम) को ‘लघु (मिनी) संविधान’ के नाम से भी जाना जाता है। इसने कुछ नए अनुच्छेद सम्मिलित किए और संविधान में मौजूदा अनुच्छेदों में संशोधन किया था। संविधान के प्रावधानों में किए गए परिवर्तनों की सूची देखने के लिए यहां क्लिक करें।

42वें संशोधन से पहले, एक प्रावधान था जिसमें कहा गया था कि मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को अपनी शक्तियों का प्रयोग करने में सहायता करती है, लेकिन इसने ऐसा प्रावधान नहीं दिया जो इसे राष्ट्रपति पर इसे बाध्यकारी बनाता है। इस प्रकार, संविधान में ऐसे कई संशोधन किए गए थे।

भारतीय संविधान का 44वां संशोधन

संविधान (44वां संशोधन) अधिनियम, 1978 ने 42वें संशोधन के प्रावधान को उलट दिया, जिसमें कहा गया था कि सरकार अपनी इच्छा के अनुसार संविधान में संशोधन कर सकती है। इस संशोधन के बाद, राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद से उनकी सलाह पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है, लेकिन राष्ट्रपति पुनर्विचार के बाद मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य है। इससे पहले, ऐसा कोई प्रावधान नहीं था जो यह कहता हो।

44वें संशोधन के बाद संविधान के प्रावधानों में किए गए परिवर्तनों की सूची देखने के लिए यहां क्लिक करें।

मंत्रिपरिषद की नियुक्ति

संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार, राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री की नियुक्ति करेगे और प्रधान मंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति परिषद के अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेगे। परिषद की संरचना संसद के कुल सदस्यों की संख्या के पंद्रह प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है। नियुक्त सदस्यों को राष्ट्रपति की उपस्थिति में शपथ लेनी चाहिए। परिषद के सभी सदस्य लोक सभा अर्थात निचले सदन के प्रति उत्तरदायी होते हैं। परिषद के सदस्य को संसद का सदस्य भी होना चाहिए।

यदि कोई सदस्य दलबदल (डिफेक्शन) के कारण अयोग्य हो जाता है, तो वह मंत्री का पद धारण नहीं कर सकता, चाहे वह संसद के किसी भी सदन का सदस्य क्यों न हो। एक सदस्य जो संसद के सदन से संबंधित है और एक राजनीतिक दल के सदस्य जो दलबदल के कारण अयोग्य हो जाते हैं, उन्हें परिषद के मंत्री के रूप में नामित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

राय साहिब राम जवाया कपूर और अन्य बनाम पंजाब राज्य (1955) के मामले में यह कहा गया था कि राष्ट्रपति के पास कार्यकारी शक्तियाँ हैं, लेकिन अनुच्छेद 75 कहता है कि एक मंत्रिपरिषद प्रधान मंत्री के साथ, राष्ट्रपति को अपनी शक्ति का प्रयोग करने की सलाह देने में सहायता करेगे। राष्ट्रपति कार्यपालिका का औपचारिक (फॉर्मल) या संवैधानिक प्रमुख होता है, और मंत्रियों या कैबिनेट के पास वास्तविक कार्यकारी शक्तियाँ होती है।

शमशेर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य (1974) के मामले में, न्यायालय ने कहा कि राज्य के राष्ट्रपति और राज्यपाल केवल औपचारिक और संवैधानिक प्रमुख होते हैं और वे मंत्रिपरिषद की सहायता से अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं।

मंत्रियों की योग्यता

एक व्यक्ति जो मंत्री के रूप में नियुक्त होने जा रहा है, उसे राज्य सभा या लोकसभा का सदस्य होना चाहिए। यदि मंत्री के रूप में नियुक्त व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है, तो उसे छह महीने के भीतर संसद का सदस्य बनना होगा, अन्यथा, व्यक्ति को अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना होगा।

सदस्यों के वेतन और भत्ते

संविधान के अनुच्छेद 75 (6) के अनुसार संसद, मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों के लिए वेतन और भत्ते तय करती है।

मंत्री के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1952 के अनुसार प्रत्येक मंत्री निवास, व्यय-विषयक (सम्पचुअरी), यात्रा, और दैनिक भत्ते, मोटर वाहन और चिकित्सा उपचार के साथ-साथ प्रति वर्ष वेतन प्राप्त करने के हकदार होगे।

प्रधान मंत्री के लिए व्यय-विषयक भत्ता (मंत्रियों के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1952 की धारा 5) 2001 में 1500 रुपये से बढ़ाकर 3000 रुपये प्रति माह कर दिया गया है। कैबिनेट मंत्री के लिए व्यय-विषयक भत्ता 1000 रुपये से बढ़ाकर 2,000 रुपये प्रति माह, राज्य मंत्री के लिए 500 रुपये से बढ़ाकर 1,000 रुपये प्रति माह; और एक उप मंत्री के लिए 300 से 600 रुपये प्रति माह कर दिया गया है।

भारत सरकार कैसे काम करती है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 77 में कहा गया है कि:

  1. राष्ट्रपति के नाम पर, भारत सरकार सभी कार्यकारी निर्णय लेती है।
  2. राष्ट्रपति यह स्थापित कर सकता है कि राष्ट्रपति के नाम पर बनाए और लागू किए गए आदेश और अन्य दस्तावेज प्रमाणित (ऑथेंटिकेटेड) होने चाहिए।
  3. आदेश और लिखत (इंस्ट्रूमेंट), विधिवत प्रमाणित होने चाहिए, और इसकी वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकती है।
  4. सरकार के काम को आसान बनाने और मंत्रिपरिषद के बीच वितरित करने के लिए राष्ट्रपति को नियमों को पारित करना होता है।

मंत्रिपरिषद के अधिकार

संविधान के अनुच्छेद 88 के अनुसार, भारत के प्रत्येक मंत्री और महान्यायवादी (अटॉर्नी जनरल) को किसी भी सदन की कार्यवाही में बोलने और भाग लेने का अधिकार है। उन्हे संसद की किसी समिति और सदनों के किसी भी संयुक्त सत्र का सदस्य नामित किया जा सकता है, लेकिन इस खंड के कारण उसे मतदान करने की अनुमति नहीं होती है।

मंत्रिपरिषद की शपथ

सभी मंत्री और प्रधान मंत्री राष्ट्रपति की उपस्थिति में शपथ लेते हैं और अपने कार्यों को पूरी ईमानदारी और संविधान के अनुसार करने की शपथ लेते हैं। संविधान की तीसरी अनुसूची के अनुसार अपने कार्यालय की जिम्मेदारियों को लगन और ईमानदारी से निभाते हैं, सभी के साथ उचित व्यवहार करते हैं, और पक्षपात, घृणा या किसी अन्य प्रकार के पूर्वाग्रह (बायस) के बिना ऐसा करते हैं।

मंत्रिपरिषद की श्रेणियाँ

मंत्रिपरिषद को तीन श्रेणियों में बांटा गया है, जो इस प्रकार हैं:

केबिनेट मंत्री

कैबिनेट मंत्री सरकार के सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों, जैसे रक्षा, वित्त (फाइनेंस), विदेशी मामलों और गृह मंत्रालय का नेतृत्व (लीड) करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। यह नीतियों के निर्माण और निष्पादन (एग्जिक्यूशन) में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

राज्य मंत्री

ये मंत्री कैबिनेट मंत्रियों के अधीन काम करते हैं और इनके पास स्वतंत्र रूप से मंत्रालय का कोई प्रभार नहीं होता है।

उप मंत्री

उप मंत्री कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्रियों के अधीन काम करते हैं। इनके पास किसी भी मंत्रालय का नेतृत्व करने और कैबिनेट मंत्रियों और राज्य मंत्रियों की सहायता करने का स्वतंत्र अधिकार नहीं है।

मंत्रिपरिषद के कार्य

मंत्रिपरिषद के कार्यों और शक्तियों को नीचे समझाया गया है:

नीति निर्धारण (फॉर्मुलेशन)

मंत्रिपरिषद आंतरिक और बाहरी मामलों के लिए कानून और नीतियां बनाती है। ये निर्णय लेते हैं और राष्ट्रपति को सलाह देते हैं। नीति विकसित होने के बाद संबंधित विभाग के राज्य मंत्रियों और उप मंत्रियों को सूचित किया जाता है। यह नीतियों के संचालन और कार्यान्वयन के कैबिनेट मंत्री के प्रभावी प्रबंधन का समर्थन करते है। यह संसदीय बहस में भी भाग लेते हैं और वोट डालते हैं।

कार्यकारी शक्ति

मंत्रिपरिषद सरकारी विभागों की निगरानी और नियंत्रण करती है। सरकार की नीति मंत्रिपरिषद द्वारा निर्धारित की जाती है, और विभागीय कार्यों को उस नीति के अनुसार निष्पादित किया जाता है। कैबिनेट के निर्णय को मंत्रिपरिषद द्वारा लागू किया जाता है। ये राज्य को शांति और व्यवस्था की स्थिति में रखते हैं। मंत्रिपरिषद सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियों पर सलाह भी देती है।

वित्तीय शक्ति

मंत्रिपरिषद संसद में बजट और धन विधेयक (बिल) प्रस्तुत करती है। ये सरकार की नीतियों के खर्चों का प्रबंधन भी करती हैं और सरकार द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं के प्रस्तावों को मंजूरी देती हैं।

मंत्रिपरिषद की जिम्मेदारियां

सामूहिक जिम्मेदारी

‘सामूहिक’ शब्द का अर्थ है कि परिषद के सभी मंत्री अपने सभी कार्यों और गलत चीजों के लिए एक साथ खड़े होंते है। संविधान के अनुच्छेद 75 (3) के अनुसार, मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के लिए जिम्मेदार है और ये संविधान के अनुच्छेद 164 (2) के प्रावधानों के अनुसार राज्य की विधान सभा के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं। जब कोई नीति या विधेयक संसद में प्रस्तुत किया जाता है, तो परिषद के सभी सदस्यों का एक साथ होना एक जिम्मेदारी है, और यदि सदस्यों के बीच कोई मतभेद हैं तो वे संसद में अपने मतभेद नहीं दिखा सकते हैं। यदि लोकसभा या विधान सभा में मंत्रिपरिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित किया जाता है, तो सभी मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ता है। कैबिनेट द्वारा लिया गया निर्णय सभी मंत्रियों के लिए बाध्यकारी होता है।

एस.पी आनंद, इंदौर बनाम एच.डी. देवेगौड़ा और अन्य (1996), में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के कुशल संचालन का समर्थन करने के लिए मंत्रिपरिषद संसद के सदन के प्रति सामूहिक रूप से जिम्मेदार है। यदि कोई मंत्री मंत्रिपरिषद के बहुमत के निर्णय से असहमत है, तो उसके पास दो विकल्प होते हैं या तो इस्तीफा दें या परिणाम को स्वीकार करें।

व्यक्तिगत जिम्मेदारी

सामूहिक रूप से जिम्मेदार होने के अलावा मंत्री व्यक्तिगत रुप से भी जिम्मेदार होते हैं। यदि कोई मंत्री कैबिनेट या प्रधान मंत्री के अनुमोदन (अप्रूवल) के बिना कार्य करता है, तो व्यक्तिगत जिम्मेदारी लागू की जाती है और कार्रवाई की आलोचना की जाती है और संसद द्वारा इसकी निंदा भी की जाती है। यदि कोई मंत्री व्यक्तिगत रूप से ऐसा कार्य करता है जो कानून और व्यवस्था के विरुद्ध है या प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई बयान देता है, तो उसे इस्तीफा देने के लिए कहा जाएगा।

सचिव (सेक्रेटरी), जयपुर विकास बनाम दौलत मल जैन (1996), के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि प्रत्येक मंत्री अपने सभी व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यों, नीतियों और गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होते है। उनकी जनता की देखभाल करने का कर्तव्य हैं और वे उत्तरदायी हैं। उनके अधिकार और दायित्व कानूनों और विनियमों (रेगुलेशन) द्वारा शासित होते हैं। केवल विभाग के मंत्री किए गए कार्यों, कर्तव्यों और बनाए गए नियमों के लिए नैतिक (मोरल) और कानूनी जिम्मेदारी वहन करते हैं।

कानूनी जिम्मेदारी

संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो मंत्रिपरिषद की कानूनी जिम्मेदारी से संबंधित हो। इसके अलावा, मंत्रिपरिषद द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह अदालतों द्वारा संदिग्ध नहीं है।

एस.पी गुप्ता बनाम भारत के राष्ट्रपति और अन्य (1981), के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को जो सलाह देती है, उसकी अदालत के समक्ष जांच नहीं की जा सकती है, लेकिन यह कि जिन सामग्रियों पर मंत्रिपरिषद की राष्ट्रपति को सलाह आधारित है, वे गुप्त नहीं हो सकती हैं और न ही अदालतों द्वारा उनकी जांच की जा सकती है। 

एस.आर. बोम्मई और अन्य आदि बनाम भारत संघ और अन्य आदि (1994), में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह को अदालत द्वारा पूछताछ करने से रोक दिया गया है, लेकिन अदालत की समीक्षा (रिव्यू) से किसी भी जानकारी या दस्तावेज को वापस नहीं लिया जा सकता है।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान ने यूनाइटेड किंगडम से राष्ट्र के लिए संसदीय लोकतंत्र को अपनाया है। संसदीय लोकतंत्र में, प्रधान मंत्री और उनके कैबिनेट, जिन्हें अक्सर संसद में बहुमत दल से चुना जाता है, को शासन करने की वास्तविक शक्ति दी जाती है। ऐसे लोकतंत्र में राज्य का प्रमुख राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, चाहे वह राजा हो या राष्ट्रपति हो। यह मंत्रिपरिषद द्वारा प्रदान की गई सलाह और मार्गदर्शन का पालन करते है, जिसका नेतृत्व प्रधान मंत्री करते हैं।

संविधान का अनुच्छेद 74 राष्ट्रपति को सहायता देने के लिए मंत्रिपरिषद के गठन का प्रावधान करता है। एक व्यक्ति को अधिकार दिए जाने पर एक तानाशाही (डिक्टेटरशिप) स्थापित की जाएगी। भारत एक लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक देश है, और शक्तियों को उपयुक्त अधिकारियों के बीच अच्छी तरह से विभाजित किया गया है। भारत के संविधान ने कैबिनेट प्रणाली को ब्रिटिश संविधान से लिया था (ब्रिटिश संविधान को लिखा नहीं गया है)। ब्रिटेन में, सम्राट के लिए मंत्रियों के प्रस्तावों का पालन करना आम तौर पर स्वीकार्य है। इसलिए, भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का प्रमुख होता है, लेकिन वह मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह का पालन करने के लिए बाध्य होता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

प्रधानमंत्री की योग्यता क्या है?

एक व्यक्ति जो भारत का नागरिक है, और लोकसभा या राज्य सभा का सदस्य है, वह प्रधान मंत्री बन सकता है।

संविधान का कौन सा प्रावधान प्रधान मंत्री के कर्तव्यों को बताता है?

संविधान का अनुच्छेद 78 प्रधान मंत्री के कुछ कर्तव्यों को निर्धारित करता है, जैसे कि राष्ट्रपति को निर्णयों को संप्रेषित (कम्युनिकेट) करना और केंद्रीय प्रशासन और विधायी प्रस्तावों के बारे में जानकारी प्रदान करना, जिसके लिए राष्ट्रपति अनुरोध कर सकते हैं।

भारत के राष्ट्रपति की शक्तियां क्या हैं?

राष्ट्रपति के पास कार्यकारी, विधायी, आपातकालीन, वित्तीय और न्यायिक शक्तियां हैं।

मंत्रिपरिषद और कैबिनेट में क्या अंतर है?

मंत्रिपरिषद में कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उप मंत्री होते हैं, जबकि कैबिनेट में महत्वपूर्ण और प्रमुख मंत्रालयों के सभी मंत्री होते हैं। मंत्रिपरिषद में 70-80 सदस्य जबकि कैबिनेट में 15-20 सदस्य होते हैं। मंत्रिपरिषद द्वारा लिए गए निर्णयों को क्रियान्वित करने के लिए कैबिनेट जिम्मेदार है।

राज्य मंत्रिपरिषद के लिए संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

संविधान के अनुच्छेद 163 में कहा गया है कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद होगी जो राज्य के राज्यपाल को सलाह देगी।

संदर्भ

  • The Council of Minister article 74 and 75 | Law column
  • List of Cabinet Ministers of India and their Portfolios 2021 (elections. in)
  • Council of Ministers: Formation, Working Principles and Problems (politicalsciencenotes.com)
  • What are the powers and functions of Council of Ministers? (publishyourarticles.net)
  • Council of Ministers: Appointment, Organisation, and Functions (yourarticlelibrary.com)
  • J.N. Pandey, Constitutional Law of India, Central Law Agency, 56th Edition,2019

 

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