टॉर्ट में एक उपाय के रूप में निषेधाज्ञा

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यह लेख इंदौर इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ के तृतीय वर्ष के छात्र Parshav Gandhi द्वारा लिखा गया है। यह लेख मुख्य रूप से इस बारे में चर्चा करता है कि कैसे निषेधाज्ञा (इनजंक्शन) के आदेश को टॉर्ट में एक उपाय के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस लेख का अनुवाद Archana Chaudhary द्वारा किया गया है।

Table of Contents

टॉर्ट का परिचय

एक टॉर्ट एक व्यक्ति का एक कार्य है जिसके परिणामस्वरूप दूसरे व्यक्ति के लिए नागरिक (सिविल) गलत होता है।

टॉर्ट लॉ वह कानून है जो लोगों को दूसरों के गलत कामों से बचाता है। यदि किसी व्यक्ति के गलत कार्य से किसी व्यक्ति का नागरिक अधिकार क्षतिग्रस्त (डैमेज्ड) होता है, तो वह व्यक्ति टॉर्ट करने वाले व्यक्ति के खिलाफ उपाय के लिए दावा कर सकता है। टॉर्ट लॉ का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक निर्दोष व्यक्ति जिसके खिलाफ टॉर्ट का कार्य किया गया है, उसे उस कार्य के विरुद्ध उचित उपाय मिले।

उपाय के बिना कोई भी कानून एक व्यर्थ अभ्यास है।

टॉर्ट के तहत उपाय 

न्यायिक उपाय

घायल पक्ष द्वारा दायर मुकदमे में अदालत द्वारा प्रदान किए गए उपाय न्यायिक उपाय के अंतर्गत आते हैं। न्यायिक उपाय के प्रकार निम्नलिखित हैं:

हर्जाना

इसका अर्थ है घायल पक्ष द्वारा दावा किया गया धन मुआवजा।

भीम सिंह बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य के मामले में, भीम सिंह विधान सभा के सदस्य थे। प्रतिवादी उसे सत्र में भाग लेने से रोकता है जिसके परिणामस्वरूप उसे विधानसभा से निलंबित कर दिया गया था। वह मुकदमा दायर करता है। उसे 50000 रुपये मुआवजे के रूप में यानी चोट के लिए हर्जाने के रूप में मिलते हैं।

निषेधाज्ञा

एक निषेधाज्ञा का अर्थ है कि अदालत का वह आदेश जो व्यक्ति को गलत कार्य करने, जारी रखने या दोहराने से प्रतिबंधित करता है।

उदाहरण

A, B की सहमति के बिना नियमित रूप से उसकी भूमि में प्रवेश करता है। B अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और A के खिलाफ निषेधाज्ञा का आदेश यानी A को फिर से B की भूमि में प्रवेश करने से प्रतिबंधित करने के लिए मांग सकता है।

संपत्ति का विशिष्ट पुनर्स्थापन (स्पेसिफिक रेस्टिट्यूशन ऑफ प्रॉपर्टी)

जब एक व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति पर गलत तरीके से कब्जा कर लिया है, तो दूसरा व्यक्ति अपनी संपत्ति की वसूली का हकदार है।

उदाहरण

राम, देव की सहमति के बिना उसकी मोटरसाइकिल लेता है। तो देव, राम से अपनी संपत्ति की वसूली का हकदार है।

अतिरिक्त न्यायिक उपाय (एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल रेमेडीज)

ये वे उपाय हैं जो सभी व्यक्ति के लिए खुले हैं अर्थात जब व्यक्ति कानून अपने हाथ में लेता है। आत्मरक्षा (सेल्फ डिफेंस), पुन: पकड़ना (रिकैप्शन), अतिचारी का निष्कासन (एक्सपल्शन ऑफ ट्रेस्पासर) आदि जैसे उपाय है।

उदाहरण

यदि C, W के कब्जे से उसकी चल (मूवेबल) संपत्ति लेने की कोशिश करता है, तो W, C के खिलाफ आत्मरक्षा का उपयोग कर सकता है अर्थात W अतिरिक्त-न्यायिक उपाय का उपयोग कर सकता है।

जगतार सिंह बनाम पंजाब राज्य के मामले में, आरोपी को हत्या के अपराध का दोषी ठहराया गया था। आरोपी बचाव के लिए मुकदमा करता है क्योंकि वह कहता है कि उसने केवल आत्मरक्षा में गोली चलाई उसका कोई और इरादा नहीं था। सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी अपील को स्वीकार कर लिया और कहा कि यह कार्य आरोपी द्वारा आत्मरक्षा के तहत किया गया था और वह केवल अधिनियम के तहत उत्तरदायी था।

टॉर्ट के कानून में एक उपाय के रूप में निषेधाज्ञा

निषेधाज्ञा एक प्रकार का उपाय है जिसमें अदालत विशेष आदेश प्रदान करती है जो दूसरे पक्ष को कुछ विशिष्ट कार्य करने या उससे दूर रहने के लिए मजबूर करती है।

आम तौर पर, लोग चोट के लिए मौद्रिक मुआवजे (नुकसान) की मांग करते हैं, लेकिन कई मामलों में, वादी भविष्य में नुकसान की घटना को रोकने के लिए निषेधाज्ञा के उपाय के लिए कहता है।

निषेधाज्ञा का अर्थ और दायरा

एक निषेधाज्ञा एक व्यक्ति के खिलाफ अदालत का एक आदेश है, जो उसे कोई विशेष कार्य करने या न करने से रोकता है। न्यायालय के पास निषेधाज्ञा राहत प्रदान करने या न करने का विवेक है।

उदाहरण 

एपीके न्यूज नाम का न्यूज चैनल मिस्टर कबानी का इंटरव्यू लेता है। अगले दिन खबर चलती है कि मिस्टर कबानी और मिसेज चांडाली का अफेयर चल रहा है। मिस्टर कबानी को इसके बारे में पता नहीं है। समाचार मिस्टर काबानी की प्रतिष्ठा (रेप्यूटेशन) को प्रभावित करता है और वह समाचार चैनल के खिलाफ मानहानि (डिफेमेशन) का मामला दर्ज करता है और साथ ही निषेधाज्ञा की मांग करता है अर्थात समाचार चैनल के खिलाफ अदालत के आदेश से समाचार चैनल को अपने चैनल पर नियमित रूप से समाचारों को दोहराने से रोकने के लिए कहा जाता है। अब निषेधाज्ञा प्रदान करने या न करने का विवेक पूरी तरह से अदालत पर आधारित है।    

और यदि न्यायालय किसी व्यक्ति के खिलाफ आदेश पारित करता है लेकिन यदि वह व्यक्ति न्यायालय के आदेशों का पालन करने में विफल रहता है तो वह न्यायालय की अवमानना (कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट) ​​के लिए उत्तरदायी होगा।

निषेधाज्ञा के वर्गीकरण 

निषेधाज्ञा को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:

समय अवधि के आधार पर

  1. अस्थायी निषेधाज्ञा (टेंपरेरी इनजंक्शन)
  2. स्थायी निषेधाज्ञा (परमानेंट इनजंक्शन)

आदेश की प्रकृति के आधार पर

  1. निषेधात्मक निषेधाज्ञा (प्रोहिबिटरी इनजंक्शन)
  2. अनिवार्य निषेधाज्ञा (मैंडेटरी इनजंक्शन)
  3. मारेवा निषेधाज्ञा

समय अवधि के आधार पर

अस्थायी निषेधाज्ञा

अस्थायी निषेधाज्ञा का अर्थ है न्यायालय द्वारा एक निर्दिष्ट समय अर्थात न्यायालय के अगले आदेश तक निषेधाज्ञा का आदेश। मूल रूप से, किसी भी मुकदमे के प्रारंभिक चरण में एक अस्थायी निषेधाज्ञा दी जाती है।

उदाहरण

A और B एक कार के कब्जे से संबंधित विवाद में शामिल हैं। यदि न्यायालय में वाद अभी भी चल रहा हो और B नियमित रूप से बिना अनुमति के कार में प्रवेश करके टॉर्ट करता है। A अदालत से B के खिलाफ एक अस्थायी निषेधाज्ञा के लिए कह सकता है और उसे उस कार्य को फिर से करने से प्रतिबंधित कर सकता है लेकिन केवल फैसले के दिन तक और अदालत के फैसले के बाद दोनों पक्ष उस फैसले से बाध्य होंगे।     

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 के तहत अस्थायी निषेधाज्ञा के संबंध में नियम

आदेश 39 के तहत मामले जिनमें अस्थायी निषेधाज्ञा दी जा सकती है

जहां वाद में यह साबित होता है या अन्यथा

  1. कोई संपत्ति विवाद में है और अदालत को लगता है कि संपत्ति खतरे में है या संपत्ति को किसी भी पक्ष द्वारा क्षतिग्रस्त या बर्बाद किया जा सकता है या
  2. प्रतिवादी संपत्ति को हटाने या निपटाने की धमकी देता है या इरादा रखता है।

उदाहरण

मान लीजिए A और B घर के कब्जे से संबंधित विवाद में शामिल हैं, अगर अदालत का मानना ​​​​है कि, किसी भी पक्ष द्वारा घर को खतरा है या मामले के प्रतिवादी ने धमकी दी है कि वह संपत्ति को नुकसान पहुंचाएगा तो अदालत उस पक्ष के खिलाफ अस्थायी निषेधाज्ञा का आदेश पारित कर सकती है।

एक ही कार्य की पुनरावृत्ति (रिपीटिशन) को रोकने के लिए एक निषेधाज्ञा

वादी प्रतिवादी को वाद के दौरान, या तो निर्णय के पहले या बाद में, या मुआवजे का दावा किया गया है या नहीं, प्रतिवादी को बार-बार एक ही टॉर्ट करने से रोकने के लिए अस्थायी निषेधाज्ञा के लिए अदालत में लागू होता है।

अदालत, खाता रखने, सुरक्षा देने, या अन्यथा जैसी शर्तों पर, जैसा कि अदालत ठीक समझे, निषेधाज्ञा दे सकती है।

उदाहरण

यदि A बार-बार B के खिलाफ टॉर्ट का कोई कार्य करता है, तो अदालत A द्वारा कार्य की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए निषेधाज्ञा का आदेश पारित कर सकती है, जैसे कि खाता रखना, सुरक्षा देना, या अन्यथा, जैसा कि अदालत ठीक समझती है।

निषेधाज्ञा की अवज्ञा (डिसओबेडिएंस) या उल्लंघन का परिणाम

यदि व्यक्ति नियम 1 या नियम 2 के अनुसार न्यायालय के आदेश की अवज्ञा करता है अर्थात निषेधाज्ञा के किसी भी नियम और शर्त का उल्लंघन करता है तो वह न्यायालय के आदेश की अवज्ञा के लिए उत्तरदायी माना जाता है। ऐसे व्यक्ति को 3 महीने से अधिक के लिए सिविल कारावास की सजा दी जाती है, जब तक कि अदालत उसकी रिहाई के आदेश का निर्देश न दे।

उदाहरण

यदि A लगातार B के खिलाफ टॉर्ट का कार्य करता है। तो B अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और निषेधाज्ञा राहत मांग सकता है। अदालत A के खिलाफ निषेधाज्ञा आदेश पारित कर सकती है। यदि A आदेश का विरोध करता है और फिर से कार्य करता है, तो वह अदालत की अवमानना ​​​​के लिए उत्तरदायी होगा।

निषेधाज्ञा देने से पहले, अदालत को विपरीत पक्ष को नोटिस देना होता है

न्यायालय निषेधाज्ञा का आदेश पारित करने से पहले उसी का नोटिस विपरीत पक्ष को पारित करने का निर्देश देता है।

न्यायालय सभी मामलों में, उस मामले को छोड़कर जहां ऐसा प्रतीत होता है कि निषेधाज्ञा देने का उद्देश्य विलंब (डिले) की वजह से विफल हो जाएगा, निषेधाज्ञा देने से पहले, विपरीत पक्ष को उसी का नोटिस प्रदान करता है।

उदाहरण

यदि A और B मामले में शामिल हैं और अदालत B के खिलाफ निषेधाज्ञा का आदेश पारित करना चाहती है। तो आदेश पारित करने से पहले, अदालत को उसी के बारे में B को नोटिस देना होगा।

मामले में, जहां ऐसा प्रतीत होता है कि निषेधाज्ञा देने का उद्देश्य विलंब से विफल हो जाएगा और यदि पक्ष किसी अन्य पक्ष को नोटिस प्रदान करने में समय बर्बाद किए बिना न्यायालय को निषेधाज्ञा के आदेश को पारित करने के लिए मनाने में सक्षम है। यदि न्यायालय ठीक समझे, तो दूसरे पक्ष को नोटिस पारित किए बिना निषेधाज्ञा आदेश पारित कर सकता है। अदालत कारण दर्ज करेगी और आवेदक से अपेक्षा करेगी कि:

  • अदालत द्वारा निषेधाज्ञा के आदेश के तुरंत बाद विरोधी पक्ष को एक पंजीकृत (रजिस्टर्ड) पोस्ट भेजने के लिए-
    1. आवेदन के समर्थन में दायर हलफनामे (एफिडेविट) की एक प्रति
    2. वादपत्र (प्लेंट) की एक प्रति और
    3. दस्तावेजों की प्रतियां जिन पर आवेदक निर्भर करता है।
  • हलफनामा कि उसने उपरोक्त दस्तावेजों को उसी दिन या अगले तत्काल दिन विपरीत पक्ष को सौंप दिया है।

ई.एम.आई. लिमिटेड और अन्य बनाम किशोरीलाल एन.पंडित के मामले में, वादी विरोधी पक्ष को नोटिस दिए बिना निषेधाज्ञा आदेश के लिए दायर करता है। वादी के अनुसार, हलफनामे में झूठी जानकारी होने की वजह से प्रथम दृष्टया (प्राइमा फेसी) मामला उठाने के लिए सबूत इकट्ठा करने में 8 महीने लगने की उम्मीद थी। वादी ने तर्क दिया, यह आवश्यक है कि प्रतिवादी के खिलाफ आदेश पारित किया जाना चाहिए अन्यथा उसके कब्जे में अभी भी कोई भी महत्वपूर्ण सामग्री उसके द्वारा नष्ट कर दी जाएगी। अदालत ने अपील की अनुमति दी।

निषेधाज्ञा के आदेश को हटाया जा सकता है, बदला जा सकता है या रद्द किया जा सकता है।

निषेधाज्ञा के आदेश को हटाया या रद्द किया जा सकता है, यदि अस्थायी निषेधाज्ञा के आवेदन में किसी प्रकार के झूठे या भ्रामक बयान (मिसलीडिंग स्टेटमेंट) हैं।

उदाहरण

यदि A और B से संबंधित विवाद में अदालत B के खिलाफ निषेधाज्ञा आदेश पारित करती है लेकिन अगर यह पता चला कि A अदालत में झूठा बयान देता है। उस स्थिति में, अदालत के निषेधाज्ञा आदेश को खत्म कर दिया जाता है या रद्द कर दिया जाता है।

जब अदालत ने विरोधी पक्ष को नोटिस दिए बिना निषेधाज्ञा आदेश पारित किया।

उदाहरण

यदि राम और श्याम के बीच विवाद में अदालत राम को बिना नोटिस दिए उसके खिलाफ निषेधाज्ञा का आदेश पारित करती है। तो अदालत द्वारा निषेधाज्ञा का आदेश खत्म हो जाता है या रद्द हो जाता है।

जब बिना नोटिस दिए अस्थायी निषेधाज्ञा के लिए आवेदन पारित किया जाता है और यदि पक्ष निषेधाज्ञा के आदेश के बाद भी प्रति विरोधी पक्ष को नहीं भेजता है और कानून की अदालत में उसी के संबंध में एक झूठा हलफनामा प्रदान करता है।

उदाहरण

यदि A अदालत का दरवाजा खटखटाता है और दूसरे पक्ष को नोटिस दिए बिना निषेधाज्ञा मांगता है और अदालत उचित समझे और आदेश पारित कर सकती है। यदि A किसी अन्य पक्ष को, नियम द्वारा निर्धारित दस्तावेजों को प्रदान करने में विफल रहता है, तो आदेश समाप्त हो जाता है या रद्द कर दिया जाता है।  

उपरोक्त स्थिति में, निषेधाज्ञा का आदेश समाप्त हो सकता है या रद्द किया जा सकता है।

निषेधाज्ञा किसी भी निगम के अधिकारी पर बाध्यकारी होता है 

यदि किसी निगम के खिलाफ कोई आदेश पारित किया जाता है, तो केवल एक निगम नहीं बल्कि उसके सभी अधिकारी इसके द्वारा बाध्य होते हैं।

उदाहरण

यदि न्यायालय नगर निगम (म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन) के खिलाफ निषेधाज्ञा का आदेश पारित करता है और उन्हें A के घर में प्रवेश करने के लिए प्रतिबंधित करता है। फिर उस आदेश ने नगर निगम विभाग के सभी अधिकारियों को भी बाध्य कर दिया है।

स्थायी निषेधाज्ञा

स्थायी निषेधाज्ञा उस निषेधाज्ञा में से एक है जो अंततः निषेधाज्ञा मुकदमे का निपटान करती है।

उदाहरण

यदि A अपनी नौकरी से निकाल दिए जाने के बाद वादी को धमकी देता है कि, वह वादी कंपनी की सभी गोपनीय जानकारी दूसरों को प्रकट करेगा। वादी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की कि A को ऐसा कार्य करने से प्रतिबंधित किया जाए यानी भविष्य में भी A जानकारी का खुलासा नहीं कर सकता है।  

आदेश की प्रकृति के आधार पर

निषेधात्मक निषेधाज्ञा

इसका अर्थ है किसी व्यक्ति को निरंतर कार्य करने से प्रतिबंधित/निषेध करना, जो वादी द्वारा भूमि या अन्य संपत्ति के सामान्य उपभोग (ऑर्डिनरी एंजॉयमेंट) के दौरान उसके विरुद्ध है। यथापूर्व यथास्थिति (स्टेटस क्यो) कहावत का पालन किया गया है, अर्थात्, किसी को फिर से पूर्ण बनाने के लिए जिसके अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।

उदाहरण

यदि A लगातार B की संपत्ति में प्रवेश करता है यानी B की संपत्ति में अतिचार (ट्रेस्पास) करता है, तो B अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और निषेधात्मक निषेधाज्ञा मांग सकता है यानी A को उसकी संपत्ति में प्रवेश करने के लिए प्रतिबंधित/निषेध कर सकता है।

अनिवार्य निषेधाज्ञा

बहुत ही दुर्लभ मामलों में अदालत द्वारा अनिवार्य निषेधाज्ञा दी जाती है। इस निषेधाज्ञा के तहत, अदालत किसी को कार्य करने का आदेश देती है या निर्देश देती है, अर्थात यदि उस कार्य को पूर्ववत (अंडू) करने के लिए कोई कार्य किया है, या यदि कोई कार्य नहीं किया है जो उसे करना है, तो अदालत व्यक्ति/निगम को वह कार्य करने के लिए कह सकती है।

उदाहरण

यदि A ने B के सामान का कब्जा झूठ से लिया है। तो B एक अनिवार्य निषेधाज्ञा मांग सकता है और अदालत A को B की संपत्ति B को देने का निर्देश दे सकती है यानी किसी को एक कार्य करने के लिए निर्देशित कर सकती है।

मारेवा निषेधाज्ञा

इस निषेधाज्ञा के तहत अदालत संपत्ति को फ्रीज करने का आदेश देती है, ताकि कार्रवाई करने वाला पक्ष अपनी संपत्ति का निपटान न कर सके।

उदाहरण

यदि A और B एक घोड़े के स्वामित्व (ओनरशिप) से संबंधित विवाद में हैं। अब यदि न्यायालय उचित समझे तो पक्ष के विरुद्ध मारेवा निषेधाज्ञा पारित कर सकता है और न्यायालय के पास घोड़े के कब्जे को न्यायालय के अगले आदेश तक रोक सकता है।

निषेधाज्ञा कब दी जाती है?

कोई भी संपत्ति विवाद में है और अदालत को लगता है कि संपत्ति खतरे में है या संपत्ति को किसी भी पक्ष द्वारा क्षतिग्रस्त या बर्बाद किया जा सकता है।

उदाहरण

यदि A और B संपत्ति के कब्जे से संबंधित विवाद में शामिल हैं। B संपत्ति पर बार-बार अतिचार करता है। A, B के विरुद्ध निषेधाज्ञा के लिए आवेदन कर सकता है। यदि न्यायालय ठीक समझे, तो B के विरुद्ध निषेधाज्ञा के आदेश की अनुमति दे सकता है। 

प्रतिवादी संपत्ति को हटाने या निपटाने की धमकी देता है या उसका इरादा रखता है।

उदाहरण

यदि A कार के कब्जे से संबंधित मामले में प्रतिवादी है। अगर वह धमकी देता है कि वह संपत्ति का निपटान करेगा, इस स्थिति में, अदालत A के खिलाफ निषेधाज्ञा आदेश पारित कर सकती है। 

प्रतिवादी आक्रमण (इनवेशन) ऐसा होना चाहिए कि पैसे में मुआवजा पर्याप्त राहत (एडिक्वेट रिलीफ) नहीं दे सके।

कार्यवाही की बहुलता (मल्टीसिप्लिटी) को रोकने के लिए निषेधाज्ञा आवश्यक है।

निषेधाज्ञा कब अस्वीकार की जा सकती है?

  1. किसी भी व्यक्ति को न्यायिक कार्यवाही चलाने से प्रतिबंधित करने के लिए निषेधाज्ञा जारी नहीं की जा सकती है।

उदाहरण

A एक मुकदमा दायर करता है जिसमें अदालत से अनुरोध किया जाता है कि वह B के खिलाफ न्यायिक कार्यवाही में मुकदमा चलाने से प्रतिबंधित करने के लिए निषेधाज्ञा का आदेश पारित करे। यह आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।

2. किसी भी व्यक्ति को किसी विधायी निकाय (लेजिस्लेटिव बॉडी) में आवेदन करने से प्रतिबंधित करने के लिए निषेधाज्ञा जारी नहीं की जा सकती है।

उदाहरण

यदि Z किसी विधायी निकाय में आवेदन करने से प्रतिबंधित करने के लिए V के खिलाफ निषेधाज्ञा का आदेश पारित करने के लिए अदालत से अनुरोध करते हुए एक मुकदमा दायर करता है। वह आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।

3. किसी भी व्यक्ति को आपराधिक मामले में मुकदमा चलाने से प्रतिबंधित करने के लिए निषेधाज्ञा जारी नहीं की जा सकती है।

उदाहरण

यदि F एक आपराधिक मामले में मुकदमा चलाने से प्रतिबंधित करने के लिए R के खिलाफ निषेधाज्ञा का आदेश पारित करने के लिए अदालत से अनुरोध करते हुए एक मुकदमा दायर करता है। वह आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।

4. न्यायालय उस वादी को निषेधाज्ञा देने से इंकार कर देगा जिसका मामले में कोई व्यक्तिगत हित नहीं है।

उदाहरण

यदि A मामले में C के खिलाफ मुकदमा दायर करता है, जहां A का व्यक्तिगत हित नहीं है, तो अदालत निषेधाज्ञा की अपील को अस्वीकार कर सकती है।  

निष्कर्ष

एक निषेधाज्ञा एक व्यक्ति के खिलाफ अदालत का एक आदेश है और उसे कोई विशेष कार्य करने या न करने से रोकता है। न्यायालय के पास निषेधाज्ञा राहत प्रदान करने या न करने का विवेक है।

यदि न्यायालय ठीक समझे, अर्थात निषेधाज्ञा आवश्यक है तो न्यायालय निषेधाज्ञा का आदेश पारित कर सकता है लेकिन यदि न्यायालय उचित नहीं समझे तो अपील को अस्वीकार भी कर सकता है। निषेधाज्ञा का आदेश पारित करने से पहले न्यायालय को विरोधी पक्ष को नोटिस देना होता है और ऐसे मामले में जहां ऐसा प्रतीत होता है कि निषेधाज्ञा देने का उद्देश्य विलंब से विफल हो जाएगा और और यदि पक्ष किसी अन्य पक्ष को नोटिस प्रदान करने में समय बर्बाद किए बिना न्यायालय को निषेधाज्ञा का आदेश पारित करने के लिए मनाने में सक्षम है।

यदि अदालत ठीक समझे तो दूसरे पक्ष को नोटिस दिए बिना निषेधाज्ञा आदेश पारित कर सकती है। लेकिन पक्ष को न्यायालय से आदेश प्राप्त होने के बाद आवेदन के विरोधी पक्ष को अपील के आदेश की प्रति भेजनी होती है और हलफनामा प्रस्तुत करना होता है जिसमें यह शपथ होती है कि उसने विरोधी पक्ष को दस्तावेज भेज दिए हैं। यदि पक्ष कोई झूठा बयान देता है या आदेश पारित होने पर दस्तावेज प्रदान करने में विफल रहता है, विरोधी पक्ष को नोटिस नहीं देता है तो निषेधाज्ञा का आदेश समाप्त हो जाता है।

 

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