घरेलू विवादों में टॉर्ट कानून का लागू होना

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Tort Law
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यह लेख ग्रेटर नोएडा के लॉयड लॉ कॉलेज की छात्रा Sonali Chauhan ने लिखा है। लेखक ने इस लेख में घरेलू संबंधों पर टॉर्ट की अवधारणा पर चर्चा की है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

परिचय

घरेलू संबंध, एक परिवार के आंतरिक (इंटर्नल) कार्यों से संबंधित, टॉर्ट लॉ का एक विकसित क्षेत्र है। घरेलू संबंध में टॉर्ट के विकास ने न केवल उस तरीके को प्रभावित किया है जिसमें परिवार के सदस्य टॉर्शियस व्यवहार के परिणामस्वरूप हुए नुकसान को एकत्र कर सकते हैं बल्कि इसने पतियों, पत्नियों, बच्चों और कानूनी अभिभावकों (गार्डियन) को कानूनी व्यक्ति के रूप में देखे जाने के तरीके को भी प्रभावित किया है।

बच्चों और पत्नियों को मूल रूप से सामान्य कानून के तहत संपत्ति के रूप में माना जाता था और उन्हें एक आदमी के मालिकाना अधिकारों के तहत रखा जाता था। 1900 के दशक में पारिवारिक कानून में हुई प्रगति ने, महिलाओं और बच्चों को कई कानूनी अधिकार प्रदान किए है जिससे वह अपने पति/पिता से अलग कानूनी व्यक्ति के रूप में कार्य कर सकते हैं।

पति और पत्नी

पति और पत्नी के मामले में, व्यतिगत दायित्व (लायबिलिटी) के मुद्दे को दो परिदृश्यों (सिनेरियो) से निपटाया जा सकता है। पहला, पत्नी के टॉर्ट के लिए पति का दायित्व और दूसरा, पति-पत्नी के बीच की कार्रवाई।

1. पत्नी के टॉर्ट के लिए पति का दायित्व

सामान्य कानून के तहत, टॉर्ट के विकास के पहले चरण में, जब तक की मुकदमें में महिला का पति वादी के एक पक्ष के रूप में उसके साथ शामिल नहीं हो जाता तब तक वह विवाहित महिला किसी भी व्यक्ति पर किसी भी तरह के टॉर्ट के लिए मुकदमा नहीं कर सकती थी। इसके अलावा, एक पत्नी पर, उसके पति को प्रतिवादी का पक्ष बनाए बिना मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था।

इन विसंगतियों को विधायी अधिनियमों, अर्थात् विवाहित महिला संपत्ति अधिनियम, 1882, और कानून सुधार (विवाहित महिला और टॉर्टफीजर) अधिनियम, 1935 द्वारा दूर किया गया था। इन अधिनियमों के बाद, एक पत्नी अपने पति को वाद का संयुक्त पक्ष (ज्वाइंट पार्टी) बनाए बिना मुकदमा कर सकती है या उस पर मुकदमा किया जा सकता है।

हालांकि, अगर पति और पत्नी संयुक्त टॉर्टफीजर हैं, तो उन्हें संयुक्त रूप से उत्तरदायी बनाया जा सकता है।

ड्रिंकवाटर बनाम किम्बर, (1952) 2 क्यू.बी 281

यह मामला, इस तर्क की व्याख्या करता है। इस मामले में एक महिला अपने पति और तीसरे पक्ष की संयुक्त लापरवाही के कारण घायल हो गई थी। उसने तीसरे पक्ष से मुआवजे की पूरी राशि वसूल कर ली थी। तीसरा पक्ष पति से कोई योगदान (कंट्रीब्यूशन) वसूल नहीं सका क्योंकि व्यक्तिगत चोटों के लिए पति को अपनी पत्नी के प्रति उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता था। 

गलत करने वालों के बीच योगदान के संबंध में, इंग्लैंड में मूल नियम को मेरीवेदर बनाम निक्सन में नियम के रूप में जाना जाता था। इसमें कहा गया है कि संयुक्त टॉर्टफीजर के मामले में, गलत काम के लिए हर्जाने की पूरी राशि का भुगतान करने वाला एक टॉर्टफीजर दूसरों से योगदान का दावा नहीं कर सकता है।

कानून सुधार (विवाहित महिला और टॉर्टफीजर) अधिनियम, 1953 ने इस असंगति को समाप्त कर दिया और संयुक्त टॉर्टफीजर को अपना योगदान वसूलने में सक्षम बनाया। कानून सुधार (पति और पत्नी) अधिनियम, 1962 और बदल गया है और इस संबंध में, कानून में इस तरह से बदलाव आया है कि जब पति या पत्नी में से कोई भी किसी तीसरे व्यक्ति पर मुकदमा करते है, तो तीसरा पक्ष पति या पत्नी से योगदान का दावा कर सकता है जो एक संयुक्त टॉर्टफीजर था। 

2. पति-पत्नी के बीच कार्रवाई

सामान्य कानून में पति-पत्नी के बीच टॉर्ट के लिए कोई कार्रवाई नहीं हो सकती थी। यदि पति या पत्नी मे से किसी ने भी अत्याचार किया है, तो न तो पत्नी अपने पति पर मुकदमा कर सकती थी और न ही पति अपनी पत्नी पर मुकदमा कर सकता था। यह परिवर्तन विवाहित महिला संपत्ति अधिनियम, 1882 द्वारा लाया गया है की विवाहित महिला को अपनी संपत्ति की सुरक्षा और बचाव के लिए अपने पति पर टॉर्ट करने के लिए मुकदमा करने की अनुमति दी गई है। संपत्ति में चयनित कार्रवाई शामिल है जो विवाहित महिला संपत्ति अधिनियम, 1882 की धारा 24 में दी गई है। 

चूंकि एक पत्नी केवल अपनी संपत्ति की सुरक्षा और बचाव के लिए अपने पति पर मुकदमा कर सकती है, लेकिन अगर वह उसे कोई व्यक्तिगत चोट पहुंचाता है तो वह पति पर मुकदमा नहीं कर सकती है। इस प्रकार, यदि पति उसकी घड़ी को नुकसान पहुंचाता है, तो वह उसके लिए मुकदमा कर सकती है, लेकिन यदि लापरवाही से उसके पैर फ्रैक्चर कर देता है, तो वह उसके लिए कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है। पति को अपनी पत्नी द्वारा उसे हुए किसी भी प्रकार के नुकसान के लिए कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है।

  • कर्टिस बनाम विलकॉक्स [1948] 2 के.बी 474 (सी.ए)

इस मामले में, प्रतिवादी ने अपनी लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण वादी, जो की उसकी कार में सवार एक यात्री था, को घायल कर दिया। उसकी रिट जारी होने के बाद, जिसमे दर्द और पीड़ा के लिए हर्जाना का दावा किया गया था, लेकिन कार्रवाई की सुनवाई से पहले, वादी ने प्रतिवादी से शादी कर ली। प्रतिवादी ने, सार रूप में पति की बीमा कंपनी ने, यह दलील दी कि सामान्य हर्जाने का दावा विवाह द्वारा वर्जित हो गया है।

जस्टिस ओलिवर ने माना कि वह गॉटलिफ बनाम एडेलस्टन [1930] 2 केबी 378 में जस्टिस मैककार्डी के फैसले से बंधे थे, और इसलिए उन्होंने सामान्य नुकसान के दावे को अस्वीकार किया। अपील की अदालतों (स्कॉट, राइट्सली एलजेजे, जस्टिस व्यान-पैरी) ने जस्टिस व्यान-पैरी के प्रति एक सुविचारित (कंसीडर्ड) निर्णय में अपील की अनुमति दी और गॉटलिफ बनाम एडेलस्टन को खारिज कर दिया। वे जस्टिस मैक्कार्डी के इस विचार से सहमत थे कि कार्रवाई की वस्तु (थिंग इन एक्शन) में टॉर्ट में कार्रवाई का अधिकार शामिल है, लेकिन उन्होंने अपने निर्णय से असहमति जताई कि विवाहित महिला संपत्ति अधिनियम, 1882 की 24 धारा में संपत्ति को परिभाषित करने के लिए ‘कार्रवाई की वस्तु’ का प्रयोग सीमित अर्थ में किया गया है। तदनुसार, एक पत्नी अब अपने पति पर पूर्ण रूप से विवाह से पूर्व होने वाले टॉर्ट के लिए मुकदमा करने की हकदार है।

  • ब्रूम बनाम मॉर्गन (1953) 1 क्यू.बी 597

इस मामले में, यह माना गया था कि यदि एक पति ने अपने मालिक के तहत काम करने के दौरान अपनी पत्नी के खिलाफ टॉर्ट किया है, तो मालिक उसके लिए उत्तरदायी होगा। जस्टिस डेनिंग ने कहा: “यदि सेवक कानून के कुछ सकारात्मक नियमों के कारण घायल पक्ष के मुकदमे में कार्रवाई से मुक्त होता है, फिर भी मालिक को दोषमुक्त नहीं किया जाता है। मालिक का दायित्व उसका स्वयं का दायित्व है और सेवक की मुक्ति के बावजूद भी उस पर बना रहता है। कानून सुधार (पति और पत्नी) अधिनियम, 1962 द्वारा पति-पत्नी के बीच कार्रवाई पर रोक लगाने वाले नियम को समाप्त कर दिया गया है। अब, पति और पत्नी एक दूसरे पर मुकदमा कर सकते हैं जैसे कि वे अविवाहित हैं। इस अधिनियम के अनुसार, विवाह के दौरान एक पति या पत्नी द्वारा दूसरे के खिलाफ कार्रवाई पर प्रतिबंध लगाया जाता है और अदालत को कार्रवाई पर रोक लगाने की शक्ति दी गई है यदि ऐसा प्रतीत होता है कि कार्यवाही या मामले से किसी भी पक्ष को कोई महत्वपूर्ण लाभ नहीं मिलेगा या विवाहित महिला संपत्ति अधिनियम, 1882 की धारा 17 के तहत मामले को अधिक आसानी से निपटाया जा सकता है। भारतीय कानून के तहत, पति और पत्नी के बीच मुकदमा चलाने और मुकदमा करने की व्यक्तिगत क्षमता उनके व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित होती है, चाहे वे हिंदू, सिख, जैन या मुस्लिम हों। ईसाइयों के लिए, विवाहित महिला संपत्ति अधिनियम, 1874 ने विभिन्न विसंगतियों को दूर किया है।

इसके अलावा, भारतीय संविधान सामान्य कानून में मौजूद वैवाहिक स्थिति और व्यक्तिगत क्षमता की सभी विसंगतियों को दूर करता है। अजय हसिया बनाम खालिद मुजीब (1983) के मामले को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 14, मनमानी और अनुचितता के खिलाफ गारंटी का प्रतीक है।

पैतृक (पैरेंटल) और अर्ध-पैतृक अधिकार (क्वासी पैरेंटल अथॉरिटी)

माता-पिता और लोको पेरेंटिस अर्थात माता पिता के स्थान पर किसी व्यक्ति को एक बच्चे को खुद और दूसरों के साथ शरारत करने से रोकने के लिए सजा देने का अधिकार है। कानून यह है कि माता-पिता, शिक्षक, या बच्चे या युवा व्यक्ति पर कानूनी नियंत्रण या प्रभार रखने वाले अन्य व्यक्ति के पास, उसको दंड देने की अनुमति है। यह माना जाता है कि जब बच्चे को स्कूल भेजा जाता है तो माता-पिता शिक्षक को अपना अधिकार सौंप देते हैं।

ऐसा अधिकार केवल उचित और मध्यम दंड के उपयोग की गारंटी देता है और इसलिए, यदि बल का अत्यधिक उपयोग होता है, तो प्रतिवादी मारपीट, बैटरी या झूठे कारावास, जैसा भी मामला हो, के लिए उत्तरदायी हो सकता है।

इंग्लैंड में, बाल और युवा व्यक्ति अधिनियम, 1933 की धारा 1 (7), के अनुसार माता-पिता, शिक्षक, या किसी बच्चे या युवा व्यक्ति का कानूनी नियंत्रण या प्रभार रखने वाले अन्य व्यक्ति के पास, उसको दंड देने की अनुमति है।

  • क्लियरी बनाम बूथ, (1893) 1 क्यू.बी 465

तथ्य:

इस मामले में, स्कूल के प्रधानाध्यापक, बूथ (प्रतिवादी) ने दो लड़कों को शारीरिक दंड दिया क्योंकि वे स्कूल के रास्ते में लड़े रहे थे। प्रतिवादी पर मारपीट और बैटरी का आरोप लगाया गया था और इसके लिए दोषसिद्ध किया गया था। उन्होंने इसके खिलाफ अपील की थी।

आयोजित:

अपने छात्रों को सही करने के लिए एक शिक्षक का अधिकार केवल उन गलतियों तक ही सीमित नहीं है जो छात्र स्कूल परिसर में कर सकते है बल्कि स्कूल के बाहर उसके द्वारा किए गए गलतियों तक भी विस्तारित हो सकता है, क्योंकि “लड़के के पास अपने नैतिक (मॉरल) आचरण का प्रदर्शन करने का अधिक अवसर नहीं है, जब तक कि वह स्कूल में अपने शिक्षक की नजर के सामने होता है, अवसर तब होता है जब वह खेल में या स्कूल के बाहर होता है”।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि, घर पर रहते हुए, एक बच्चा, माता-पिता के अधिकार में होता है। यह भी स्पष्ट है कि स्कूल में एक बच्चा प्रधानाध्यापक के अधिकार में होता है। सवाल यह है कि जब बच्चा घर से स्कूल जा रहा था तो वह किस अधिकार के अधीन होता है। संभवतः, माता-पिता के प्रत्यायोजित (डेलिगेटेड) कर्तव्य के माध्यम से बच्चे को प्रधानाध्यापक के अधिकार के अधीन कहा जा सकता है। उस मामले में, यदि आवश्यक हो, तो प्रधानाध्यापक को बच्चे को सही ढंग से पालने के लिए बच्चे को सजा देने का अधिकार है। प्रधानाध्यापक का अधिकार न केवल स्कूल में बच्चों द्वारा किए जाने वाले कार्यों पर लागू होता है, बल्कि स्कूल से घर आने-जाने के रास्ते पर भी होता है। इधर, दोनों लड़के स्कूल जा रहे थे, तभी आपस में मारपीट हो गई। तो ऐसे में, प्रतिवादी लड़कों को दंडित करने के अपने अधिकार के भीतर था।

  • ईसेल बनाम शिक्षा बोर्ड (1991)

इस मामले में, मैरीलैंड उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि स्कूल काउंसलर, बच्चे के माता-पिता को एक छात्र की आत्महत्या की धमकी के बारे में अपने ज्ञान का खुलासा न करने में लापरवाही कर रहे थे। काउंसलर की यह लापरवाही छात्र की आत्महत्या को शारीरिक रूप से रोकने में विफलता के लिए नहीं थी, बल्कि बच्चे के इरादे के बारे में जानकारी नहीं देने के लिए थी।

परिवार में टॉर्ट

प्रारंभिक पारिवारिक कानून में, टॉर्ट कानून ने मुकदमा करने के एक तुलनीय अधिकार को स्वीकार किया, जो द्वितीयक (सेकेंडरी) दायित्व के बराबर है, जहां एक वरिष्ठ (सुपीरियर) अपने से छोटे/अधीनस्थ (सबोर्डिनेट) की ओर से कार्य कर सकता है। पारिवारिक कानून के मामलों में संपत्ति के अधिकारों के प्रयोज्यता (एप्लीकेशन) ने पति और पिता को परिवार के सदस्यों को चोट के लिए टॉर्टफीजर से नुकसान की वसूली करने में सक्षम बनाया है। अपनी पत्नी या बच्चे से “सेवाओं” की हानि में वे आधार शामिल थे, जिन पर एक पति या पिता अपने परिवार के लिए वसूली कर सकता था। आम तौर पर, “सेवाओं” में घरेलू कर्तव्यों जैसे सफाई, बच्चे की देखभाल, साहचर्य (चैंपियनशिप), और अन्य “वैवाहिक जिम्मेदारियां” शामिल होती हैं जो अब पत्नी या बच्चे के पास नहीं थीं।

पयाप्त दायित्व (वाइकेरियस लायबिलिटी)

पक्षों की विशिष्ट कानूनी पहचान के बावजूद, अदालत ने परिवार इकाई को सामूहिक पहचान के रूप में बरकरार रखा है। परिवार इकाई के हितों और संबंधों को एक निश्चित सीमा तक और “अधिकार द्वारा” स्वामित्व माना जाता है। कोई भी हस्तक्षेप या कार्रवाई जो परिवार इकाई को बदल देती है, उसका उल्लंघन करती है या धमकी देती है, वह संभवतः पारिवारिक कानून में एक टॉर्शियस हस्तक्षेप है। महत्वपूर्ण रूप से, संबंधित परिवार इकाई के सदस्यों के बीच पारिवारिक संबंधों में हस्तक्षेप हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक पति अपनी पत्नी और बच्चे के संबंधों में परिवार से संबंधित हस्तक्षेप के लिए उत्तरदायी हो सकता है।

पारिवारिक संबंधों में हस्तक्षेप

घरेलू संबंधों में पारिवारिक टॉर्टस, टॉर्ट कानून का एक विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण विषय है। इसका कारण यह है कि शिकायतकर्ता और प्रतिवादी के तर्कों के मूल में अक्सर परिवार की संरचना और उसके कार्य होते हैं। पारिवारिक टॉर्ट पति और पत्नी के बीच, या माता-पिता और बच्चे के बीच टॉर्शियस कार्रवाई से जुड़ा हो सकता है। एक वयस्क (एडल्ट) की कानूनी संरक्षकता के तहत नाबालिग द्वारा किए गए टॉर्शियस कार्यों के लिए माता-पिता या कानूनी अभिभावक की ओर से परिवार में होने वाले टॉर्ट में पयाप्त दायित्व और लापरवाही भी शामिल हो सकती है।

परिवार के सदस्यों को हानि

पयाप्त दायित्व एक द्वितीयक दायित्व है जो अपने अधीनस्थ पक्षों के कार्यों के लिए जिम्मेदार है। इस प्रकार, कानूनी अधीनस्थों के खिलाफ उठाए गए टॉर्ट को मुकदमेबाजी के उद्देश्यों के लिए वरिष्ठ पक्ष को स्थानांतरित (ट्रांसफर्ड) कर दिया जाता है। इसका आमतौर पर मतलब यह है कि घरेलू संबंधों के टॉर्ट में, माता-पिता अपने बच्चों द्वारा किए गए टॉर्शियस अपराधों के लिए जिम्मेदार होते हैं। यह पयाप्त दायित्व कानूनी अभिभावकों पर भी लागू होता है, जो अपने किशोर (जुवेनाइल) बच्चों के टॉर्शियस कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं।

बचाव

माता-पिता और बच्चे के बीच के झगड़े अब “माता-पिता के विवेक” की अवधारणा के इर्द-गिर्द घूमते हैं, जिसे अदालत द्वारा समीक्षा (रिव्यू) के लिए छोड़ दिया जाता है। आम तौर पर, एक जूरी अपने फैसले में, माता-पिता के अपने बच्चे के लिए कार्य करने के अधिकार का अनुमान लगाने के लिए उचित नहीं है। “माता-पिता के विवेक” का विचार पूर्ण नहीं है, हालांकि, एक अदालत माता-पिता को एक अलग कानूनी इकाई के रूप में अपने बच्चे के प्रति टॉर्शियस व्यवहार का दोषी मान सकती है और इसलिए, माता-पिता को उत्तरदायी मान सकती है। यही सिद्धांत पति/पत्नी के लिए पारिवारिक ट्रॉट के लिए काम करता है, जो विवाह की निजता (कॉन्फिडेंशियलिटी) का उल्लंघन करने और निर्णय पारित करने के लिए एक निश्चित मात्रा में कारण की गारंटी देता है।

निष्कर्ष

कानून में, एक टॉर्ट एक नागरिक गलत होता है जिसमें एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के कर्तव्य का उल्लंघन किया है, जहां केवल रिश्ते के अस्तित्व के कारण से ही कर्तव्य उत्पन्न हुआ था। एक साधारण अर्थ में, टॉर्ट अक्सर एक आपराधिक गलत से जुड़ी नागरिक गलतियाँ होती हैं।

यह विधिवत रूप से स्थापित किया जा सकता है कि विवाह किसी भी पति या पत्नी के द्वारा तीसरे पक्ष पर किए गए किसी भी टॉर्ट के संबंध में उनके अधिकारों और दायित्वों को प्रभावित नहीं करता है। 

 

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