यह लेख गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के Rahul Kanoujia द्वारा लिखा गया है और इसे Aieshwaryaa N और Akshayan K S जो शास्त्र, डीम्ड यूनिवर्सिटी, तंजावुर के छात्र है, और Ayesha Khan द्वारा अप्डेट किया गया है। यह लेख भारत में वैवाहिक बलात्कार के बारे में चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta के द्वारा किया गया है।
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सार (एब्स्ट्रैक्ट)
भारत विविध संस्कृति और विचार वाला देश है। विवाह एक महत्वपूर्ण घटक (इंग्रीडिएंट्स) है जो दर्शाता है कि हमारी संस्कृति कैसे संरचित (स्ट्रक्चर्ड) है। विवाह दो व्यक्तियों के बीच का एक बंधन है जो अंततः उन्हें संभोग के लिए वैधता प्रदान करता है। यहां एक प्रश्न उठता है कि, क्या उस “संविदात्मक बंधन वाले संबंध” में प्रवेश करने के समय दी गई निहित सहमति का मतलब हर उस चीज के लिए सहमति है जो जीवन की पूरी अवधि तक फैली हुई है या महिलाओं के पहलू में देखे जाने पर इसकी कोई सीमा है। इसका उत्तर देने के लिए, इस लेख में महिलाओं के महत्व पर उनके सहमति के बिना चर्चा की है। यह लेख आईपीसी की धारा 375 और धारा की संवैधानिक वैधता के बारे में भी बताता है। भारत उन देशों में से एक है जो खुद को अपडेट करता है और देश के विकास के लिए नए कानून लाता है। बेहतरी हासिल करने के लिए हमें समीक्षा (रिव्यू) करनी होगी कि हम क्या कर रहे हैं और क्या किया जाना चाहिए। इसके लिए लेखकों ने दूसरे देश के कानूनों और हमारे कानूनों के बीच तुलनात्मक विश्लेषण (कंप्रेटिव अनालिसिस) की पेशकश की है। विधि आयोग की रिपोर्ट और वैवाहिक बलात्कार के प्रति तर्क इस बात की पुष्टि करते हैं कि किसी ऐसी चीज की जरूरत है जिसके बारे में हम चुप हैं। इस प्रकार, विवाह व्यक्तियों के बीच एक बंधन है जहां उनका अपना स्थान होता है और बल के बजाय अधिक प्रेम से विवाह को बहुत सुंदर बनाते हैं।
परिचय
विवाह कुछ और नहीं बल्कि दो पक्षों के बीच एक अनुबंध है जो संभोग को वैध बनाता है। एक विवाह को एक संस्कार या एक संविदात्मक संबंध कहा जा सकता है। जैसा कि अर्थ ही कहता है कि विवाह संभोग को वैध बनाता है, इसका अर्थ यह है कि विवाह के दौरान कोई भी यौन क्रिया गलत नहीं है और कानूनी है। यही कारण है कि लोग वैवाहिक बलात्कार करने के काम में शामिल होते हैं। वैवाहिक बलात्कार कुछ और नहीं बल्कि पत्नी की सहमति के बिना विवाहित जोड़ों के बीच यौन संबंध है। यह स्पष्ट रूप से बताता है कि पति अपनी पत्नी के यौन उत्पीड़न (सेक्शूअल असॉल्ट) के लिए लाइसेंस प्राप्त करने के लिए विवाह समारोह का उपयोग करते हैं और आगे पति के रूप में इसे अपना अधिकार घोषित करते हैं।
संविधान का आर्टिकल 14 समानता की बात करता है लेकिन वैवाहिक बलात्कार के मामले में यह उसकी यौन इच्छा के लिए समान अधिकार नहीं देता है। आम तौर पर, जब कोई पुरुष किसी महिला के साथ उसकी सहमति के बिना संभोग करता है तो इसे बलात्कार माना जाता है और इसे एक अपराध कहा जाता है। ‘सहमति’ शब्द यह तय करने के लिए महत्वपूर्ण कारकों में से एक है क्योंकि यह बलात्कार और संभोग के बीच के अंतर को दर्शाता है। ऐसे में यह प्रश्न चिह्न खड़ा हो जाता है कि कैसे शादी के बाद पति द्वारा सहमति के बिना किया गया बलात्कार, अपराध नहीं हो सकता? विडंबना यह है कि भारत बलात्कार को अधिक महत्व देता है जहां इसके संबंध में बार-बार कानून बनाए और अपडेट किए जाते हैं और सरकार द्वारा बलात्कार को रोकने के लिए कई उपाय किए जाते हैं, लेकिन दूसरी ओर, वैवाहिक बलात्कार के कार्य पर अभी भी आपराधिक ध्यान नहीं गया है कि इसे समाप्त करना चाहिए और इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है।
दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले के बाद भी वर्मा समिति ने सुझाव दिया कि वैवाहिक बलात्कार को भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत अपराध के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। कई गैर सरकारी संगठनों और शोधों ने साबित किया है कि भारत में महिलाएं वैवाहिक बलात्कार से पीड़ित हैं लेकिन सरकार इस मुद्दे पर चिंता दिखाने में देरी करती है। हालांकि वैवाहिक बलात्कार पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है, कई शोध कार्यों ने इस अनजान अपराध को बलात्कार, बलपूर्वक बलात्कार, बाध्यकारी या जुनूनी बलात्कार के रूप में वर्गीकृत (क्लासीफाइड) किया है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (हिस्टॉरिकल पर्स्पेक्टिव)
ऐतिहासिक रूप से बलात्कार को अपराध माना जाता है लेकिन वैवाहिक बलात्कार के मामले में ऐसा नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक महिला को पुरुष की संपत्ति के रूप में माना जाता है। एक पुरुष एक महिला की सहमति के बिना कई बार बलात्कार कर सकता है क्योंकि इसे एक अपराध नहीं माना जाता है और अगर वह उस महिला से विवाहित है तो उसे इसके लिए दंडित नहीं किया जाता है। और समाज को लगता है कि एक व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ बलात्कार करने का कानूनी अधिकार है। इसका पता 17वीं सदी में इंग्लैंड के मुख्य न्यायाधीश सर मैथ्यू हेल द्वारा दिए गए बयानों से लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि:
“पति अपनी वैध पत्नी पर स्वयं द्वारा किए गए बलात्कार का दोषी नहीं हो सकता, क्योंकि उनकी आपसी सहमति और उसकी वैध पत्नी शादी के अनुबंध ने अनुसार स्वयं को अपने पति के दे दिया है जिसे अब वो वापस नहीं ले सकती।”
यह पितृसत्तात्मक समाज (पैट्रियार्कल सोसायटी), विवाह के पारंपरिक विचारों (ट्रेडिशनल व्यूज) और पुरुषों के वर्चस्व (डॉमिनेशन) के कारण महिलाओं के व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है। लेकिन विवाह और कामुकता (सेक्शूऐलिटी) के इन विचारों को अधिकांश पश्चिमी देशों में 1960 और 70 के दशक से विशेष रूप से नारीवाद की दूसरी लहर द्वारा चुनौती दी गई थी। इससे महिला के व्यक्तिगत अधिकारों की पहचान और स्वीकृति हुई।
अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य
अधिकांश देशों ने 20वीं सदी के अंत से वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करना शुरू कर दिया था। अल्बानिया, अल्जीरिया, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, चीन, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, हॉन्ग कॉन्ग, आयरलैंड, इटली, जापान, मॉरिटानिया, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, फिलीपींस, स्कॉटलैंड, दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, ताइवान, ट्यूनीशिया, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, इंडोनेशिया, तुर्की, मॉरीशस और थाईलैंड ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर दिया है। इन देशों ने वैवाहिक बलात्कार को एक अपराध के रूप में अधिनियमित किया है। लेकिन भारत में यह कोई अपराध नहीं है।
भारतीय परिदृश्य
आईपीसी की धारा 375 बलात्कार से संबंधित है। इस धारा में, एक अपवाद है कि एक व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना यौन क्रिया कर सकता है, यदि उसकी आयु अठारह वर्ष से कम नहीं है। प्रारंभ में, सहमति की आयु पंद्रह थी, लेकिन 2017 में स्वतंत्र विचार बनाम भारत संघ के फैसले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे अठारह तक बढ़ा दिया गया था। इस संदर्भ में, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा: “एक बालिका के मानवाधिकार जीवित हैं चाहे वह विवाहित हो या नहीं और वह मान्यता और स्वीकृति के योग्य है”। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने अठारह वर्ष से अधिक उम्र के वैवाहिक बलात्कार से निपटने से परहेज किया।
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 की व्याख्या
धारा 375 – बलात्कार
“एक आदमी को “बलात्कार” करने का अपराधी माना जाता है यदि वह:
- किसी महिला की योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में किसी भी हद तक अपने लिंग को प्रवेश कराता है या उससे या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है; या
- किसी महिला की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में, किसी भी हद तक, कोई वस्तु या शरीर का कोई हिस्सा, जो लिंग नहीं है, सम्मिलित करता है, या उससे ऐसा करवाता है या
- एक महिला के शरीर के किसी भी हिस्से को तोड़-मरोड़ कर उस महिला के मूत्रमार्ग, योनि, गुदा या शरीर के किसी भी भाग में प्रवेश कराता है या उस महिला को उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए कहता है; या
- किसी महिला की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुंह लगाता है या उससे या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है,
निम्नलिखित सात विवरणों में से किसी के अंतर्गत आने वाली परिस्थितियों में:-
पहला – उसकी इच्छा के विरुद्ध।
दूसरी – उसकी सहमति के बिना
तीसरा – उसकी सहमति से, जब उसकी सहमति उसे या किसी ऐसे व्यक्ति, जिसमें वह रुचि रखती है, की मृत्यु या चोट के डर से डालकर प्राप्त की गई है।
चौथा – उस स्त्री की सहमति से, जबकि वह पुरुष यह जानता है कि वह उस स्त्री का पति नहीं है और उस स्त्री ने सहमति इसलिए दी है कि वह विश्वास करती है कि वह ऐसा पुरुष है जिससे वह विधिपूर्वक विवाहित है या विवाहित होने का विश्वास करती है।
पाँचवाँ – उस स्त्री की सहमति के साथ, जब वह ऐसी सहमति देने के समय, किसी कारणवश मन से अस्वस्थ या नशे में हो या उस व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत रूप से प्रबन्धित (अड्मिनिस्ट्रेशन) या किसी और के माध्यम से या किसी भी बदतर या हानिकारक पदार्थ के माध्यम से, जिसकी प्रकृति और परिणामों को समझने में वह स्त्री असमर्थ है।
छठा – उसकी सहमति से या उसके बिना, जब वह अठारह वर्ष से कम उम्र की हो।
सातवां – जब वह सहमति देने में असमर्थ हो।
स्पष्टीकरण 1: इस धारा के उद्देश्य के लिए, “योनि” में लेबिया मेजोरा भी शामिल होगा।
स्पष्टीकरण 2: सहमति का अर्थ एक स्पष्ट स्वैच्छिक समझौता है जब महिला शब्दों, इशारों, या मौखिक या गैर-मौखिक संचार के किसी भी रूप से विशिष्ट यौन कृत्य में भाग लेने की इच्छा को संप्रेषित (कम्युनिकेशन) करती है:
बशर्ते कि एक महिला जो शारीरिक रूप से प्रवेश के कार्य का विरोध नहीं करती है, केवल इस तथ्य के कारण, इसे यौन गतिविधि के लिए सहमति के रूप में नहीं माना जाएगा।
अपवाद 1 – चिकित्सीय प्रक्रिया या हस्तक्षेप को बलात्कार नहीं माना जाएगा।
अपवाद 2 – पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग या यौन क्रिया, जिसकी पत्नी पंद्रह वर्ष से कम उम्र की न हो, बलात्कार नहीं है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत, बलात्कार की परिभाषा तब होती है जब कोई पुरुष, महिला की सहमति के बिना यौन संबंध रखता है। धारा 375 बताती है कि बलात्कार क्या है और कब कोई कार्य बलात्कार बन जाता है। यह 2 अपवादों का भी प्रावधान करता है जिनमें से एक चिकित्सा प्रक्रिया है और दूसरा एक पति का अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध है जो 15 वर्ष या उससे कम उम्र की नहीं है, इसे बलात्कार नहीं माना जाता है। लेकिन अगर पत्नी की उम्र 18 वर्ष से अधिक है और पति ने उसकी सहमति के बिना संभोग किया है तो उसे बलात्कार नहीं माना जाएगा। धारा 375 केवल नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार को अपराध मानती है। कानून पक्षपाती है और सभी महिलाओं को समान सुरक्षा नहीं देता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि हम सभी सोचते हैं कि धारा 375 वैवाहिक बलात्कार को संबोधित नहीं करती है, लेकिन तथ्य यह है कि दूसरा अपवाद “अपनी पत्नी के साथ एक पुरुष द्वारा संभोग” बताता है, जिसका अर्थ है कि वे कानूनी रूप से विवाहित हैं। इसलिए धारा 375 वैवाहिक बलात्कार को संबोधित करती है लेकिन इसकी उम्र की सीमा के साथ इस व्याख्या का अर्थ है कि यदि महिला की आयु 18 वर्ष से अधिक है और यदि वह विवाहित है तो पति को उसकी सहमति के बिना संभोग करने का लाइसेंस मिल जाता है। यदि इच्छा के विरुद्ध और सहमति के बिना बलात्कार की 2 महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं तो शादी से पहले या बाद में जब भी किसी पुरुष द्वारा ऐसा किया जाता है तो वह बलात्कार होता है।
संवैधानिक वैधता
हमारे देश में बलात्कार कानून जिसमें वैवाहिक बलात्कार शामिल नहीं है, वह संविधान के आर्टिकल 14 और 21 का उल्लंघन कर रहे हैं। आर्टिकल 14 समानता का अधिकार देता है और आर्टिकल 21 जीवन जीने के अधिकार को संरक्षित करता है। एक महिला जिससे उसका पति बिना उसकी सहमति के संभोग करता है वह उसके समानता और जीवन के अधिकारो का उल्लंघन करता है इसलिए वैवाहिक बलात्कार आर्टिकल 14 और 21 का उल्लंघन करता है और इसलिए इन्हें अपराध घोषित कर देना चाहिए।
आर्टिकल 14 का उल्लंघन
आर्टिकल 14 जो कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण (प्रोटेक्शन) के अधिकार के बारे में बताता है, वह इस परिदृश्य में सभी महिलाओं को समान संरक्षण नहीं देता है। भारतीय दंड संहिता, जब 1860 के दशक में मसौदा तैयार (ड्रॉफ्टेड) किया गया था, तब एक विवाहित महिला को एक स्वतंत्र कानूनी इकाई (लीगल एंटिटी) के रूप में स्वीकार नहीं किया गया था और हमेशा पति के कब्जे में एक इकाई के रूप में कहा गया था। इसे साबित करने में धारा 375 का अपवाद 2 पति को अपनी पत्नी के साथ बलात्कार के कार्य के लिए दंडित नहीं करता है, लेकिन पतियों को दंडित करता है जब वे अपनी पत्नियों के साथ यौन संबंध रखते हैं जिनकी उम्र 15 वर्ष या उससे कम होती है। इस प्रकार कानून 15 वर्ष से अधिक और 15 वर्ष से कम आयु की विवाहित महिलाओं के बीच स्पष्ट रूप से भेदभाव करता है। अपवाद 2, सजा न देकर किसी भी यौन कार्य को करने के लिए प्रोत्साहित करता है यदि वे एक वयस्क और विवाहित हैं। इस प्रकार, संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन किया जाता है।
आर्टिकल 21 का उल्लंघन
धारा 375 का अपवाद 2 भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 का उल्लंघन करता है। संविधान का आर्टिकल 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। इसमें निजता, गरिमा, स्वास्थ्य, सुरक्षित वातावरण आदि का अधिकार भी शामिल है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने कई फैसलों जैसे सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन में, जहां यह कहा गया था कि यौन गतिविधि में विकल्प बनाने का अधिकार शामिल नहीं है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार जो आर्टिकल 21 का एक हिस्सा है। साथ ही के. एस. पुट्टुस्वामी बनाम भारत संघ के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी थी। इस प्रकार कोई भी जबरदस्ती यौन इच्छा उनकी निजता का उल्लंघन करती है जो कि उनका मौलिक अधिकार है। इसलिए अपवाद 2 न केवल निजता के अधिकार का बल्कि स्वस्थ और सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकार का भी उल्लंघन करता है। पति द्वारा जबरन संभोग करने से पत्नी का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य खराब होता है। इस प्रकार कानून संविधान के आर्टिकल 14 और 21 का उल्लंघन करता है।
क्या पत्नी बिना सहमति के इस्तेमाल की जाने वाली संपत्ति है?
बलात्कार ही एकमात्र ऐसा अपराध है जहां पीड़िता आरोपी बन जाती है। जैसा कि भारतीय दंड संहिता के तहत परिभाषित किया गया है, एक पुरुष को बलात्कार का अपराधी माना जाता है यदि वह किसी महिला के साथ उसकी सहमति के खिलाफ या धोखाधड़ी, गलत बयानी या जबरदस्ती से प्राप्त सहमति से यौन संबंध रखता है। एक प्रश्न उठता है कि क्या विवाहित व्यक्ति का अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार की परिभाषा के अंतर्गत आता है? दो संभावनाएं उत्पन्न होती हैं, जिनमें से एक विकल्प जिसे सभी जानते हैं वह है “नहीं”, और दूसरी संभावना “हां” है यदि यह उसकी सहमति के बिना किया जाता है। संभावना “हां” के ख़िलाफ़ बहुत तर्क है अगर संभावना “नहीं” की तुलना में देखा जाए। जैसा कि हर कोई विवाह समारोह के बारे में जानता है, दुनिया के सभी युगों में इसके निशान हैं। दरअसल, शादी की प्रथा को अपना आधार मानकर दुनिया इस तरह के बदलाव के दौर से गुजरी है। महिलाओं को कमजोर लिंग माना जाता था और उन्हें सभी अधिकारों से वंचित कर दिया जाता था। विभिन्न संघर्षों के बाद महिलाओं को भी सभी पहलुओं में पुरुषों के बराबर माना जाता था, लेकिन अतीत में शुरू हुई संस्कृति आज भी महिलाओं की स्थिति को कमजोर स्थिति में रखती है। पहले दुनिया महिलाओं को केवल बच्चे के जन्म और परिवार के पालन-पोषण के लिए मानती थी लेकिन अब उन्हें सभी क्षेत्रों में भाग लेने का जन्मसिद्ध अधिकार प्रदान किया जाता है। किसी भी महिला को किसी भी लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है सिर्फ इसलिए क्योंकि वह एक महिला है और इस बीच किसी भी पुरुष को जो कुछ भी वह प्राप्त करता है उस पर सभी अधिकार नहीं दिए जा सकते हैं वह भी सिर्फ इसलिए की वह एक पुरुष है। फिर पत्नी के साथ उसकी मर्जी के बिना यौन संबंध कैसे बलात्कार शब्द के तहत नही आ सकता है?
सही कहा गया है की “मेरे बलात्कारी को यह भी नहीं पता कि उसने मेरा बलात्कार किया है, क्योंकि सिस्टम ने उसे बताया कि उसने ऐसा नहीं किया है”। समाज, अभी भी इसी सिस्टम में विश्वास करता है, और महिलाओं की व्यक्तिगत भावनाओं पर विश्वास करने में विफल रहता है। यद्यपि विवाह एक संविदात्मक संबंध (कंट्रैक्शूअल रिलेशनशिप) है जैसा कि परिभाषित किया गया है कि अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) के पक्ष कुछ नियमों से बंधे हैं। उस निश्चित नियम को कानून के अन्य प्रावधानों का उल्लंघन करने या उनका खंडन करने का कोई अधिकार नहीं है। भारतीय संविधान में भारत के सभी नागरिकों के लिए उनके लिंग, जाति, नस्ल आदि की परवाह किए बिना सबके लिए सामान रूप से उपस्थित है। यह अपने सभी नागरिकों को जन्म से मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है। संविधान के आर्टिकल 21 के अनुसार, प्रत्येक नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के लिए सक्षम किया गया है जिसमें मानवीय गरिमा भी शामिल है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता किसी भी कानूनी इच्छा के लिए है, इस प्रकार संभोग करने का कोई भी निर्णय न केवल पति के पास बल्कि पत्नी के हाथों में भी है। आईपीसी की धारा 375 का अपवाद उन कृत्यों से संबंधित है जो बलात्कार शब्द के तहत नहीं आते हैं। इस तरह के अपवाद के तहत, यह कहा गया है कि पति द्वारा कोई भी मेडिकल टेस्ट (चिकित्सक जाँच) या कोई भी संभोग तब तक बलात्कार नहीं माना जाएगा जब तक कि पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम न हो।
लेकिन यह पार्टियों की सहमति का उल्लेख करने में विफल रहा। हालांकि आईपीसी में मेडिकल टेस्ट के लिए सहमति का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन चिकित्सक द्वारा रोगी की सहमति के बिना किया गया कोई भी कार्य उन्हें अपराध के तहत लाएगा। यदि रोगी बेहोशी की स्थिति में है या सहमति देने में असमर्थ है, तो अभिभावक (पति, विवाहित महिलाओं के लिए, अविवाहित बेटी के लिए माता-पिता) द्वारा दी गई सहमति मान्य है। लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है जो महिलाओं की सहमति को अनिवार्य रूप से व्यक्त करता हो। बलात्कार और वैवाहिक बलात्कार में फर्क सिर्फ इतना है कि इस तरह की हरकत करने वाला शख्स अलग है।
लेकिन दोनों अवधारणाओं की जड़ “सहमति”, समान ही है। यदि महिला द्वारा सहमति से इनकार किया जाता है तो किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य लिंग या व्यक्ति के अन्य अधिकारों का उल्लंघन करके अपनी व्यक्तिगत इच्छा को पूरा करने के लिए, उन्हे मजबूर करने का अधिकार नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि एक महिला को सभी मामलों में निर्णय लेने की अंतिम शक्ति दी गई है, बल्कि यह बताती है कि महिला के सुझावों और इच्छाओं को भी एक पुरुष के समान माना जाना चाहिए और उनके संपर्क में आने के लिए वैध अनुमति की आवश्यकता होती है। चूंकि विवाह एक परिवार बनाने और बच्चे के जन्म के उद्देश्य से बनाया गया एक संविदात्मक संबंध है, इसलिए संयुक्त रूप से किए जाने वाले प्रत्येक कार्य को उस अनुबंध की वैधता को बनाए रखने के लिए दोनों पक्षों की सहमति की आवश्यकता होती है। इसी तरह, एक पत्नी को पुरुष के समान संभोग के लिए “नहीं” कहने का अधिकार है। इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से बताता है कि एक महिला एक पुरुष बराबर है और वे पुरुषों की संपत्ति के अंतर्गत नहीं आती है।
भारत सरकार ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 नामक एक अधिनियम पारित किया था। यह अधिनियम अपने घरेलू जीवन में प्रभावित होने वाली किसी भी महिला की सुरक्षा के लिए पारित किया गया था। जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, सहमति के बिना संभोग करना गरिमा के उल्लंघन के रूप में कहा जा सकता है और इस प्रकार इसे एक अपराध माना जा सकता है। इस उल्लंघन को एक नागरिक अपराध मानते हुए अधिनियम ने कुछ नागरिक उपचार जैसे जुर्माना, सुरक्षा, आदि प्रदान किए हैं। हालांकि यह शादी से पहले या शादी के बाद हो सकता है, पुरुषों या महिलाओं की जानबूझकर सहमति के बिना संभोग बलात्कार है। जिस पेड़ की जड़ जहरीली होती है, वही जहरीला फल देता है, शादी से पहले या बाद में बलात्कार को बलात्कार ही कहा जाता है। आकर्षक रूप से आच्छादित (कवर्ड) एक जहरीला फल किसी भी तरह से स्वस्थ फल के बराबर नहीं हो सकता; इस प्रकार कोई भी कार्य जो किसी भी पक्ष के लिए आक्रामक हो जाती है, उसे आपराधिक दायित्व से बचने के लिए विवाह नामक कंबल से ढका नहीं जा सकता है। घरेलू हिंसा अधिनियम में वर्णित उपायों के अनुसार, एक नागरिक उपचार का उस कार्य से मिलान कैसे किया जा सकता है जिसका आधार ही आपराधिक है?
वैवाहिक बलात्कार के पक्ष और विपक्ष में तर्क
वैवाहिक बलात्कार के लिए तर्क
- वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण न करना भारत के अन्य कानूनों के विपरीत हो जाता है। भारत में किसी महिला का शील भंग करना (आउट्रेजिंग मॉडेस्टी आँफ़ अ वुमन) या उसकी इच्छा या सहमति के विरुद्ध कोई कार्य करना अपराध है। उसी तरह वैवाहिक बलात्कार भी उसकी मर्जी के बिना कुछ है लेकिन अपराध नहीं है।
- आर्टिकल 14 के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है जो समानता का अधिकार और कानून का समान संरक्षण है और आर्टिकल 21 जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है।
- समाज गलत धारणा की ओर अग्रसर कर रहा है कि अगर एक महिला विवाहित है तो वह हमेशा अपने साथी के लिए यौन रूप से बाध्य होती है।
- चिकित्सकीय रूप से जब एक पत्नी को संभोग करने की इच्छा नहीं होती है, लेकिन प्रक्रिया से गुजरती है तो यह उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित करती है जो फिर से स्वस्थ तरीके से जीने के उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
- चूंकि इसे अपराध के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है, इसलिए वैवाहिक बलात्कार के केवल गणनीय मामले दर्ज किए जाते हैं, जब हम इसे अपराध के रूप में पहचानते हैं, तो हम इसकी सही घटना को जान पाएंगे।
वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ तर्क
- वैवाहिक बलात्कार शब्द अपने आप में बहुत महत्वहीन है क्योंकि विवाह का ही अर्थ है कि दोनों पक्ष विशेष रूप से संभोग के आपसी अनुबंध पर सहमत हैं।
- वैवाहिक बलात्कार को कोई वैधता देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह एक असामान्य मुद्दा है और केवल गिने-चुने लोग ही इससे पीड़ित होते हैं।
- यह एक ऐसी समस्या है जहां सबूत बहुत प्रामाणिक रूप से प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है जिसके कारण यह निष्कर्ष निकालना असंभव हो जाता है कि यह बलात्कार है या आपसी संभोग।
- क्रोध जैसे किसी भी व्यक्तिगत कारण के लिए, पत्नी निर्दोष पति पर इस तरह के अपराध का आरोप लगा सकती है जिससे लिंग लाभ का मार्ग प्रशस्त हो सके।
- यह अदालत के लिए एक बोझ बन जाता है क्योंकि यह मुश्किल हो जाता है क्योंकि इसे न तो सही साबित किया जा सकता है और न ही सही तरीके से खारिज किया जा सकता है।
अन्य देशों में कानून और उपाय
संयुक्त राष्ट्र ने माना कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा का कार्य विकास की स्थिति प्राप्त करने में एक बाधा के रूप में खड़ा है। इस प्रकार, 20 दिसंबर 1993 के घोषित संयुक्त राष्ट्र महासभा 48/104 संकल्प में “महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन” पर एक घोषणा की गई थी जिसमें वैवाहिक बलात्कार सहित महिलाओं के खिलाफ हिंसा के खिलाफ कुछ नियमों का उल्लेख किया गया था। आर्टिकल 1 में कहा गया है कि सार्वजनिक स्थान पर या निजी जीवन में होने वाले शारीरिक, यौन या मनोवैज्ञानिक नुकसान के परिणामस्वरूप कोई भी कार्य महिलाओं के खिलाफ हिंसा की श्रेणी में आता है। निजी जीवन में यौन उत्पीड़न भी एक प्रमुख स्रोत के रूप में पति को शामिल कर सकता है और वैवाहिक बलात्कार शब्द पर प्रकाश डालता है जब यह सहमति के अभाव में किया जाता है। आर्टिकल 2 (a) में स्पष्ट रूप से वैवाहिक बलात्कार को अन्य अपराधों के साथ महिलाओं के खिलाफ हिंसा के रूप में वर्णित किया गया है। इन प्रावधानों के द्वारा, संयुक्त राष्ट्र अपने सभी सदस्यों को उन अपराधों का अपराधीकरण करने का सुझाव देता है जो महिलाओं की गरिमा का उल्लंघन करने का इरादा रखते हैं। इसके सभी प्रावधानों के अलावा, आर्टिकल 6 स्पष्ट करता है कि यह घोषणा किसी भी राज्य के प्रावधान को प्रभावित नहीं करेगी जो पहले से ही महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन में भाग लेता है।
ऑस्ट्रेलियाई कानून
ऑस्ट्रेलिया पहले पश्चिमी न्यायालयों में से एक है जिसने शादी के बाद बलात्कार के कार्य को अपराध घोषित करने में अपना पहला कदम उठाया है। ऑस्ट्रेलियाई सरकार बलात्कार शब्द को एक अलग तरीके से परिभाषित करती है, जो भारत के समान नहीं है। आपराधिक कानून समेकन अधिनियम 1935 की धारा 48 के तहत, सहमति शब्द को एक महत्वपूर्ण स्थिति में रखा गया है जो अप्रत्यक्ष रूप से भारत में उल्लिखित बलात्कार के रूप में वर्णित किसी कार्य के लिए सभी आवश्यकताओं से पहले सहमति की आवश्यकता को व्यक्त करता है। उसी तरह अधिनियम में पति द्वारा किए गए बलात्कार से संबंधित कोई प्रावधान नहीं था, जिसका अर्थ है कि वैवाहिक बलात्कार एक आपराधिक अपराध है। इसी तरह उसी अधिनियम की धारा 14 के तहत धारा 73(3) स्पष्ट रूप से कहती है कि विवाह किसी एक पक्ष की इच्छा पर संभोग का मार्ग प्रशस्त नहीं करता है। इसमें कहा गया है कि “किसी भी व्यक्ति को, केवल इस तथ्य के कारण कि उसने किसी अन्य व्यक्ति से विवाह किया है, यह नहीं माना जाएगा कि उसने उस अन्य व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाने के लिए सहमति दी है।” इस बयान में किसी भी संभोग के लिए सहमति शामिल है और यह वैवाहिक बलात्कार को अप्रत्यक्ष रूप से अपराध घोषित करता है और धारा 48(1) के तहत आजीवन कारावास की सजा देता है। उपरोक्त प्रावधान के साथ-साथ सरकार उन अपराधियों के लिए भी वही सजा देती है जो दूसरे पक्ष को संभोग करने के लिए मजबूर करते हैं। ये सभी प्रावधान समानता के तहत पुरुषों और महिलाओं दोनों पर लागू होते हैं।
नेपाल में कानून
राष्ट्रीय नागरिक (संहिता) अधिनियम 2017 अन्य सभी नियमों के साथ तलाक के आधार से भी संबंधित है। अध्याय 3 की धारा 95 तलाक का दावा करने के लिए पत्नी के अधिकार से संबंधित है। इसी अधिनियम के तहत धारा 95 (f) में कहा गया है कि जब एक पति अपनी पत्नी को मजबूर करता है और बलात्कार करता है तो यह अपराध माना जाता है। धारा 104 के तहत यह अधिनियम कार्रवाई के कारण की तारीख से 3 महीने में अदालत के समक्ष मुकदमा दायर करने की समय सीमा प्रदान करता है। नागरिक संहिता के अलावा नेपाल सरकार ने अपने आपराधिक संहिता विधेयक, 2014 में उसी अधिनियम की धारा 219(4) के तहत 5 साल के कारावास की सजा प्रदान की है। इसने बलात्कार और वैवाहिक बलात्कार के लिए दंड के बीच के अंतर के संदेह को भी स्पष्ट किया और इस प्रकार बलात्कार पर शादी के कंबल से बचने के लिए दोनों अपराधों के लिए समान सजा दी है।
वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण- भारत का सपना
भारत में स्थिति
जैसा कि पहले चर्चा की गई भारत अपनी संस्कृति और विरासत के लिए जाना जाता है। जब भारत द्वारा तय किए गए मार्ग की कल्पना की जाती है तो इसने अपनी सांस्कृतिक प्रथाओं को बनाए रखा और अगली पीढ़ी को उसी जुनून से आगे बढ़ाया। यही विचारधारा भारत को वैवाहिक बलात्कार के कार्य को अपराध घोषित करने के लिए कदम उठाती है। सरकार अभी भी इस भ्रम की स्थिति में है कि जब वैवाहिक बलात्कार का मामला अदालत के सामने आता है तो सबूत के रूप में क्या स्वीकार किया जाए और क्या इस तरह के अपराधीकरण से पुरुषों के उत्पीड़न आदि जैसी कोई और समस्या पैदा होगी। सामाजिक विचारकों का सुझाव है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने का कार्य विवाह प्रणाली को अस्थिर कर देगा।
इन सभी स्थितियों के अलावा अब भी वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ कानून एक अलिखित कानून के रूप में अपनी उपस्थिति बनाए हुए है। ऐसी स्थिति को बनाए रखने के लिए, भारत में अदालतें “संभोग के लिए ना कहने का अधिकार” का आदेश पारित करके विवाहित जोड़ों के अधिकारों में संदेह को स्पष्ट करती हैं। यह जब दोनों तरफ से देखा जाता है तो दूसरे पक्ष को प्रभावित (इफ़ेक्ट) करता है। इसका उल्लंघन करने पर यह अपराध बन जाता है और ऐसे अपराध की सजा अभी निर्धारित नहीं की गयी है। जब उसी स्थिति को दूसरे पहलू में देखा जाता है तो यह पुरुषों के खिलाफ उत्पीड़न के रूप में बदल सकती है। इस तरह के कार्य का अपराधीकरण करने से एक लिंग को दूसरे से हथियाने से सुरक्षा की गारंटी नहीं होनी चाहिए। इस प्रकार से स्पष्ट है कि भारत में अभी भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है, लेकिन यह प्रक्रिया अपने विकास के चरण में है। इसका मतलब यह नहीं है कि वैवाहिक बलात्कार एक आपराधिक अपराध (क्रिमिनल अफ़ेन्स) नहीं है; यह सिर्फ एक नियम के रूप में जीवित रहता है जो अभी तक संहिताबद्ध नहीं है।
वैवाहिक बलात्कार पर विधि आयोग के कदम
42वीं विधि आयोग रिपोर्ट इस मुद्दे को संबोधित करने वाली पहली रिपोर्ट थी। रिपोर्ट में वैवाहिक बलात्कार को लेकर दो सुझाव दिए गए हैं। पहला सुझाव यह था कि किसी भी मामले में जब पति और पत्नी न्यायिक रूप से अलग हो जाते हैं तो अपवाद खंड लागू नहीं होना चाहिए। हालांकि यह एक अच्छा सुझाव था, लेकिन ऐसा सुझाव देने का कारण उचित नहीं था। यह कहा गया था कि चूंकि पति अपनी पत्नी की इच्छा या सहमति के बिना संभोग करने का समर्थन करता है, इसलिए उसे बलात्कार नहीं माना जाएगा। ऐसी व्याख्या सही नहीं है। पहला सुझाव इस बात पर जोर देने की कोशिश करता है कि सहमति की आवश्यकता तभी होती है जब विवाहित जोड़ा अलग रहता है न कि जब वे एक साथ होते हैं।
रिपोर्ट में उल्लिखित दूसरा सुझाव 12 और 15 वर्ष की आयु के बीच की महिलाओं के साथ गैर-सहमति संभोग के बारे में है। इसमें उल्लेख किया गया है कि इस अपराध की सजा अलग से बताई जानी चाहिए न कि बलात्कार शब्द के साथ बताई जानी चाहिए। संक्षेप में, यह रिपोर्ट सहमति शब्द पर अपना जोर देती है और रिपोर्ट वैवाहिक बलात्कार और बलात्कार के बीच अंतर करना चाहती है। हालांकि वैवाहिक बलात्कार और बलात्कार पर भेदभाव को एक गंभीर मुद्दे के रूप में नहीं लिया जाता है, लेकिन सहमति की अवधारणा को एक गंभीर समस्या के रूप में देखा जाता है। यह रिपोर्ट धारा 375 के अपवाद खंड पर टिप्पणी नहीं करती है। 172वें विधि आयोग की रिपोर्ट सीधे अपवाद खंड की वैधता को संबोधित करती है। इस रिपोर्ट ने असाधारण खंड की वैधता के लिए तर्क दिया। ऐसा कहा जाता है कि जब अन्य मामलों में पति द्वारा अपनी पत्नी के प्रति हिंसा अपराध है तो बलात्कार क्यों नहीं? विधि आयोग ने इस तरह के तर्कों को इस विचार से खारिज कर दिया कि इससे ‘विवाह के मुद्दे में अत्यधिक हस्तक्षेप’ होगा। यहां तक कि गृह मामलों की संसदीय समिति की 167वीं रिपोर्ट में भी कहा गया है कि परिवार की संस्था उसकी समस्याओं का समाधान करेगी और उसका समाधान करेगी। इस प्रकार, वैवाहिक बलात्कार कई संभावित चर्चाओं से गुजरता है।
निष्कर्ष
महिलाओं की सुरक्षा के लिए भारत सरकार ने समय बीतने के साथ कई कानूनों को अधिनियमित/ संशोधित किया है। लेकिन यह महिलाओं के खिलाफ उनके ही पति द्वारा वैवाहिक बलात्कार के रूप में जाने जाने वाले भयानक अपराध के खिलाफ कानूनों को बनाने में खुद को धीमा कर देता है। भारत वर्तमान युग तक अपनी संस्कृति की रक्षा और अभ्यास में, अपना स्थान शीर्ष पर रखता है। हालांकि भारतीय संस्कृति में पति की इच्छा के तहत एक विवाहित महिला का स्थान है, वहीं दूसरी ओर, भारतीय संस्कृति भी महिलाओं की गरिमा और उनमें शामिल सभी आवश्यक मुद्दों में उनकी सहमति के सम्मान में अपनी आवाज देती है। विवाह में न केवल पुरुष शामिल होते हैं बल्कि धार्मिक समारोह “विवाह” को संतुलित करने के लिए दूसरी तरफ महिलाएं भी शामिल होती हैं। इस प्रकार, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि भारत वैवाहिक बलात्कार को एक अपराध के रूप में मान्यता देता है, लेकिन यह एक उचित कानून बनाने और अपराध को संहिताबद्ध करने से इनकार करता है।
संदर्भ
- Marital Rape: A Non-Criminalized in India https://harvardhrj.com/2019/01/marital-rape-a-non-criminalized-crime-in-india/#_ftn14
- Krina Patel, Fordham International Law Journal, Volume 42, Issue 5 2019 Article 7, The Gap in Marital Rape Law in India: Advocating for Criminalization and Social Change. https://ir.lawnet.fordham.edu/cgi/viewcontent.cgi?article=2760&context=ilj
- Saurabh Mishra & Sarvesh Singh, (2003) PL WebJour 12, Marital Rape — Myth, Reality and Need for Criminalization http://www.ebc-india.com/lawyer/articles/645.htm?people&next
- https://link.springer.com/article/10.1007/s10691-018-9382-3 LisaFeatherstone & Alexander George Winn
- https://thehimalayantimes.com/kathmandu/new-law-sets-five-year-jail-term-marital-rape/ Published: October 30, 2017 5:15 am On: Kathmandu
- https://qrius.com/married-partners-can-say-no-to-physical-relations-observes-delhi-high-court/ By PRARTHANA MITR