कानून क्या है

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इस लेख में, Simran Sabharwal के द्वारा कानून  क्या है इस पर चर्चा की गई है। इस लेख का हिन्दी अनुवाद Krati Gautam के द्वारा किया गया है। 

परिचय 

कुछ नहीं के लिए, महान यूनानी (ग्रीक) विचारक, अरस्तू ने कहा था, “अपने सबसे अच्छे रूप में, मनुष्य सभी जानवरों में सबसे महान है; कानून और न्याय से अलग, वह सबसे बुरा है” और इसी तरह, थॉमस हॉब्स ने कहा था, “यह बुद्धि नहीं बल्कि अधिकार है जो कानून बनाता है“। विभिन्न दार्शनिकों (फिलोसोफर) ने कानून की अपनी अलग-अलग परिभाषा दी है। यहां तक कि हर आम आदमी की भी अपनी परिभाषा होती है। कानून क्या है और क्या होना चाहिए, इस बारे में सबकी अपनी-अपनी व्याख्या है। इस लेख का प्राथमिक उद्देश्य कानून के अर्थ और आज के समय के साथ कानून कैसे विकसित हुआ है, इसकी व्याख्या करना है।

कानून क्या है

कानून सभी के जीवन में अलग-अलग भूमिका निभाता है। अकेला एक शब्द कानून को परिभाषित नहीं कर सकता। ऐसा कोई एक शब्द नहीं हो सकता जो कानून के समान हो। कानून को समझने के लिए कोई सादृश्य (एनालॉजी) बना सकता है। कानून एक मंदिर की तरह है जिसे बनाया गया है ताकि पुरुष और महिलाएं अपने शांति के महल में रह सकें। कानून प्रेम है, जो प्रकृति में स्पष्ट नहीं है। दोनों में मानवीय भावनाओं को नियंत्रित करने की शक्ति है। कानून उतना ही जटिल है जितना प्यार है। कानून और समुद्र के बीच एक सादृश्य खींचा जा सकता है। कानून और समुद्र दोनों ही विशाल हैं और जैसे समुद्र के पानी की मात्रा में एक बूंद बढ़ जाती है, वैसे ही हर निर्णय कई उदाहरणों में खुद को जोड़ता है। साथ ही, पानी के बिना जीवन नहीं है, कानून के बिना भी जीवन नहीं है।

कानून मालकिन नहीं है, कानून जीवनसाथी है। आप जहां भी जाते हैं, यह आपके साथ रहता है। कानून एक अदृश्य शक्ति है जो हर इंसान को नियंत्रित करती है। कानून हमें जीवन और जल की तरह जोड़ता है। ये सभी कथन यह विचार देते हैं कि कानून सार्वभौमिक (यूनिवर्सल) है।

  • सैल्मंड ने कानून को परिभाषित किया, कि “कानून को न्याय के प्रशासन में राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त और लागू सिद्धांतों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है”। हालांकि सैल्मंड ने न्याय को परिभाषित नहीं किया, फिर भी उनकी परिभाषा को सबसे व्यावहारिक परिभाषा मानी जा सकती है। 
  • जॉन चिपमैन ग्रे के अनुसार,”राज्य या पुरुषों के किसी भी संगठित निकाय (बॉडी) का कानून उन नियमों से बना है जो कि अदालतों द्वारा, जो कि निकाय का न्यायिक अंग हैं, कानून के अधिकारों और कर्तव्यों (डयूटीस) को निर्धारित करती हैं”। उनकी परिभाषा की यह आलोचना की कि गई कि उनकी परिभाषा न तो कानून की प्रकृति पर केंद्रित है और न ही विधान (स्टेट्यूट) के कानूनों पर।

कानून की प्रकृति और दायरा

कानून की प्रकृति क्या है या कानून का सार क्या है यह एक लंबा विवादित प्रश्न है। विभिन्न यूनानी विचारकों ने पहले ही इस विषय पर कई प्रश्न उठाए हैं और उत्तर अभी भी स्पष्ट नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि कोई स्पष्ट उत्तर ही नहीं है लेकिन एक पूर्ण उत्तर नहीं है जिसके स्पष्ट (ऐब्सोल्यूट) होने का दावा किया जा सकता है। साथ ही, इस प्रश्न ने न्यायशास्त्र (ज्यूरिसप्रूडेन्स) और कानून के दर्शन को उलझा दिया है।

कानून दो तरह के होते हैं। एक न्याय पर आधारित है, दूसरा नियंत्रण पर आधारित है। बाद वाला हिस्सा आज उपयोग में है। “जिसकी लाठी उसकी भैंस” इस सिद्धांत का पालन किया जाता है। यह प्रत्यावर्तन (रेस्टोरेशन) के बजाय प्रतिशोध (रिट्रीब्यूशन) है जिसका पालन किया जाना चाहिए।

  • न्याय सार्वभौमिक  सिद्धांतों का एक समूह है जो लोगों का यह विश्लेषण करने के लिए मार्गदर्शन करता है कि क्या सही है और क्या गलत है। यह उस संस्कृति और समाज की उपेक्षा (डिसरीगार्ड) करता है जिसमें कोई रहता है। “फिएट जस्टिटिया रूएट कैलम” एक लैटिन वाक्यांश है जिसका अर्थ है, “आसमान गिरने पर भी न्याय किया जाए”। 
  • सामाजिक नियंत्रण उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जो व्यक्तिगत और सामूहिक व्यवहार को नियंत्रित करते हैं। ई.ए.रॉस, एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री (सोसिओलोजिस्ट) थे उनका मानना ​​​​था कि यह कानून नहीं है जो मानव व्यवहार का मार्गदर्शन करता है बल्कि यह विश्वास प्रणाली है जो कि यह मार्गदर्शन करती है कि एक व्यक्ति क्या करता है। सामाजिक नियंत्रण तंत्र को कानून और मानकों (नॉम्स) के रूप में अपनाया जा सकता है जो मानव व्यवहार को नियंत्रित और परिभाषित करते हैं।

कानून कई उद्देश्यों और कार्यों को पूरा करता है। यह शांति बनाए रखने में मदद करता है। समाज में हिंसा की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और इस प्रकार हम कह सकते हैं कि, सरकार के कानून व आदेशों से शांति बनी रहती है। कानून मानकों को स्थापित करने में भी मदद करता है। यह लोगों के अधिकारों की भी रक्षा करता है। कानून के बिना, लोगों को वे मूल अधिकार भी नहीं मिलेंगे, जिनके वे हकदार हैं।

साथ ही कानून को एक अच्छा पेशे का विकल्प कहा जा सकता है। महात्मा गांधी से लेकर बराक ओबामा तक सभी कानून के पेशे से जुड़े हैं। इसने उनकी सफलता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में काम किया। कानून में पेशे के लिए कई विकल्प हैं जैसे मुकदमेबाजी, सिविल सेवा, प्रोफेसर या किसी भी संगठित क्षेत्र में जाया जा सकता है।

कानून की न्यायशास्र शाखा  

न्यायशास्त्र कानून के अध्ययन को संदर्भित करता है। इसे एक विज्ञान भी कहा जा सकता है जो कानून  के निर्माण, खोज और लागू कराने से संबंधित है। न्यायशास्त्र को अंग्रेजी में ज्यूरिस्प्रूडेंस कहा जाता है जिसे शब्द “ज्यूरिस प्रूडेंशियल” से लिया गया है जिसका अर्थ कानून का ज्ञान है। यदि कोई सिद्धांतों और दर्शन को समझता है तो कानून की बेहतर समझ प्राप्त कर सकता है। कानून के विचारों को न्यायशास्त्र के विभिन्न शखाओं के नजरिए से देखा जा सकता है जो कि नीचे दिए गए हैं।

प्रत्यक्षवादी (पॉजिटिविस्ट) शाखा 

  • प्रत्यक्षवादी शाखा के अनुसार, कानून संप्रभु (सॉवरेन) का आदेश है। इसमें कहा गया है कि पूर्व निर्धारित मामलों से तार्किक (लॉजिकल) रूप से निर्णय लिए जा सकते हैं और नैतिक (मोरल) पहलुओं की अनदेखी की जा सकती है। इसे विश्लेषणात्मक (एनालिटिकल) शाखा भी कहा जाता है।
  • यह शाखा कहती है कि कानून और नैतिकता के बीच कोई संबंध नहीं है। उदाहरण के लिए, न्यायाधीश शायद यह नहीं चाहते हों कि मकान मालिक किसी बुज़ुर्ग महिला को उस ज़मीन से बेदखल करे जिस पर किराया बकाया है। हालांकि कानून कहता हैं कि अगर किराए का भुगतान नहीं किया जाता है, तो बकायदार (डिफॉल्टर) को जमीन खाली करनी होगी। प्रत्यक्षवादी कानून की शाखा का कहना है कि न्यायाधीशों को कानून के अनुसार मामलों का फैसला करना चाहिए और उनकी नैतिकता को अलग रखना चाहिए।
  • यह मानता है कि न्यायपालिका की ईमानदारी निष्पक्षता के माध्यम से बरकरार रखी जा सकती है। कानून वह है जो निर्धारित किया गया है। कानून क्या होना चाहिए, इस पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए।
  • साथ ही, कानून का आधार अधिकतम लोगों की अधिकतम खुशी होनी चाहिए।

ऐतिहासिक शाखा 

  • “कानून  सामाजिक चेतना की उपज है”।  यह सामाजिक चेतना संप्रभुता से भी पहले ही शुरू हो गई थी। इसकी शुरुआत समाज के प्रारंभ से ही हुई थी। सर हेनरी मेन, एडमंड बर्क प्रसिद्ध न्यायविद (ज्यूरिस्टस) हैं।
  • ऐतिहासिक शाखा वोल्क्सगेस्ट सिद्धांत पर आधारित है। यह कहता है कि कानून लोगों की सामान्य इच्छा पर आधारित है। जैसे-जैसे राष्ट्र बढ़ता है यह बढ़ता है। इसके अलावा, एक कानून जो लोगों के एक समूह के लिए उपयुक्त है वह दूसरे के लिए अनुपयोगी हो सकता है जो हमें यह बात देता है कि कानून का कोई सार्वभौमिक इस्तेमाल नहीं है। कानून स्थानीय रीति-रिवाजों, स्थानीय व्यवहार और समाज की वर्तमान विचार प्रक्रियाओं पर आधारित होते हैं। ये सभी कानून को प्रभावित करते हैं और एक शांतिपूर्ण समाज बनाते हैं।
  • यह सिद्धांत अतीत पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करता है। हालांकि, यह कहता है कि कानूनों को समय के साथ बदलना चाहिए। कानून वही होना चाहिए जो समाज की मांग है।

प्राकृतिक शाखा 

  • प्राकृतिक कानून एक धारणा है जो कि प्रकृति के नियमों पर केंद्रित है। इसमें कहा गया है कि कुछ ऐसे कानून हैं जिनके सभी मनुष्य हकदार हैं क्योंकि वे समाज में निहित (इन्हेरेंट) हैं। यह प्रत्यक्षवादी सिद्धांत का विरोध करता है। समाज की नैतिकता और नीति (एथिक्स) पर बहुत जोर दिया जाता है।
  • यह उन तर्कों पर आधारित है जो अच्छे और बुरे के बीच निर्णय लेने में मदद करते हैं।
  • इमैनुएल कांत, हेगेल और ग्रोटियस प्रसिद्ध न्यायविद हैं। ये कानून को न तो संप्रभु का आदेश  मानते थे और न ही चेतना के परिणाम के रूप में बल्कि विवेक और तर्कशीलता (रीज़नेबल) पर आधारित मानते थे।
  • दार्शनिक शाखा या प्राकृतिक शाखा का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को बुराई से ऊपर उठाना और उसे अच्छा करने के लिए एकत्र करना है।
  • यहां तक ​​कि स्वतंत्रता की घोषणा और अमेरिकी संविधान के अधिकारों के विधेयक (बिल) में, थॉमस जेफरसन ने प्राकृतिक कानून सिद्धांत का हवाला देते हुए इसे “प्रकृति के नियम और प्रकृति के भगवान” कहा है।

समाजशास्त्रीय शाखा 

  • यह शाखा कई न्यायविदों के विचारों के संश्लेषण (सिंथेसिस) के रूप में उभरी है। यह विचारधारा कानून के काल्पनिक हिस्से के बजाय कानून के व्यावहारिक हिस्से पर जोर देती है।
  • ये कानून को एक सामाजिक संस्था मानते थे। उनका मानना ​​था कि कानून राज्य द्वारा नहीं बनया जाता हैं। कानून समाज से आता हैं। कानूनो को राज्य द्वारा स्वीकृत नहीं किया जाता है बल्कि लोगों की ओर से जागरूकता द्वारा मंजूर किया जाता है।
  • ये कानून समाज और कानून के बीच एक अंतर्संबंध स्थापित करते हैं। ऐतिहासिक और दार्शनिक दोनों शाखाओं ने सामाजिक और कानून के सुधारों में बाधा उत्पन्न की, जिसके परिणामस्वरूप समाजशास्त्रीय शाखा का गठन हुआ।
  • यह शाखा न्यायशास्त्र की एकमात्र ऐसी शाखा है जिसका एक निश्चित कार्यक्रम है जो अन्य शाखाओं में नहीं है। उन्होंने न्याय की अवधारणा पर बहुत जोर दिया है।

यथार्थवाद (रियलिज्म) शाखा 

  • यह कानून की इस बात पर बहुत जोर देता है कि काल्पनिक विचारों के बजाय अदालतें क्या कर सकती हैं। कानून वास्तविकता के विषय के रूप में मौजूद है।
  • एलन ने देखा कि “कानून के रसायन (केमिस्ट्री) शास्त्र में किण्वन (फर्मेंटेशन) आवश्यक है क्योंकि इसके बिना कानून की शराब”  खट्टी और बासी हो जाती है। यह एक नया कानून प्रदान करने के लिए प्रचलित प्रथाओं और परिस्थितियों को ध्यान में रखता है। सिद्धांत को वर्णनात्मक (डिस्क्रिप्टिव) तरीके से या निर्देशात्मक (प्रेस्क्रिप्टिव) तरीके से या दोनों से समझा जा सकता है।
  • इसमें यह माना जाता है कि न्याय के प्रशासन के लिए कानून सरकार का एक समूह है। प्रत्यक्षवादी सिद्धांत की तरह, यह भी कानून को राज्य की इच्छा के रूप में देखता है लेकिन यह न्याय के प्रशासन के माध्यम से किया जाता है।

तुलनात्मक शाखा 

  • प्रोफेसर केक्टन मानते हैं, “तुलनात्मक न्यायशास्त्र का विकास कानून की दो या अधिक प्रणालियों का विकास है”। हालाँकि, इस शब्द का एक अर्थ है।
  • क्योंकि ऐतिहासिक शाखा समय के साथ संबंध रखती है, यह शाखा अंतरिक्ष के बारे में चिंतित है। यह उन नियमों को एकत्रित करती है और जांचती है जो प्रचलित हैं और जो व्यक्ति इस प्रणाली से सहमत और असहमत है और एक ऐसी प्रणाली खोजने की कोशिश करते है जो प्राकृतिक हो। प्राकृतिक प्रणाली वह प्रणाली होगी जो सभी मनुष्य चाहते थे लेकिन विभिन्न कानून के कारण ऐसा नहीं हो सका।
  • तुलनात्मक न्यायशास्त्र एक तुलनात्मक विश्लेषण करता है और साथ ही ऐतिहासिक और विश्लेषणात्मक शाखा की भी सहायता करता है।

कानून का विकास

ईसाई धर्म और कानून  

  • कई सदियों पहले, यह माना जाता था कि ईसाई धर्म के अनुसार, भगवान और पुराने नियमों ने कानून को बनाया था। कानून भगवान द्वारा लिखित नियमों का एक समूह था। लोग ईश्वरीय शक्ति में विश्वास करते थे। साथ ही यह भी माना जाता था कि अगर कानून को पवित्र माना जाएगा तो ही उनका पालन किया जाएगा।
  • ईसाइयों ने नैतिकता पर बहुत जोर दिया था। उनका मानना ​​था कि अगर कानून की नींव कमजोर होगी तो समाज आसानी से उनकी जरूरत के हिसाब से उन्हें संशोधित कर देगा। मनुष्य कि स्वार्थी आवश्यकताओं के अनुसार कानूनों को तोड़ मरोड़ दिया जाएगा। 
  • ईसाइ, यह मानते थे कि सर्वज्ञ (ओमनीसाइंट), सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी (ओमनीप्रेसेंट) प्रेम करने वाला ईश्वर संसार को कानून देने वाला है (भजन संहिता [पसलम] 127:1)। वह खुद को कानून के लिए एक पूर्ण आधार प्रदान करते है। ईसाई कानून  व्यवस्था मन के अनुसार नहीं बदली है और स्थिर बनी रहती है।
  • ईसाई धर्म ने मानवाधिकारों की उपेक्षा नहीं की है। इसने कुछ मानव अधिकारों को सुनिश्चित किया जो बाइबल में लिखे गए हैं। बाइबल में कुछ निर्देश निर्दिष्ट (स्पेसिफ़ाएड) हैं और वह हमें उनका पालन करने की आज्ञा देती है। बाइबल हमें बताती है कि परमेश्वर क्या अच्छा मानते है और वह हमसे क्या चाहते है: “जो करो न्यायसंगत (जस्टफाइ) करो, और दया से प्रेम करो, और विनय पूर्वक ईश्वर के साथ चलो” (मीका 6:8)।
  • यह माना जाता था कि मनुष्य के नियमों को तोड़ा जा सकता है लेकिन ईश्वर की सजा से कोई नहीं बच सकता है।
  • इस सिद्धांत ने विविध विचारों को जन्म दिया। जो लोग भगवान में विश्वास करते थे उनपर दूसरों के द्वारा  सवाल खड़े किये गए। लोगों ने उनसे सवाल किया क्योंकि भगवान के धरती पर आने और कानून बनाने का कोई सबूत नहीं था।
  • नतीजतन, समय के साथ परिभाषा बदल गई। बाद में लोगों ने सर्वोच्च सेनापति (कमांडर) की तुलना में खुद पर अधिक विश्वास करना शुरू कर दिया। कानून का अर्थ इंसानों के करीब हो गया। परिभाषा ने अपना जोर भगवान से कानून बनाने वालो पर स्थानांतरित (शिफ्ट) कर दिया।

संप्रभुता और कानून  

  • एक समय था जब लोग संप्रभु के आदेश में विश्वास करते थे। विभिन्न राजनीतिक दार्शनिकों के संप्रभुता से संबंधित अपने-अपने विवादास्पद (कॉन्ट्रोवर्शियल) बयान हैं। इसे निरपेक्ष माना जाता था। कोई भी शक्ति वरिष्ठ (सुपीरियर) से ऊपर नहीं है।
  • एक और विशेषता यह है कि इसे स्थायी माना जाता था। यह राजा की मृत्यु के साथ समाप्त नहीं हुआ, बल्कि राजा का सबसे बड़ा पुत्र अगला शासक बन गया, जो कि वंशवाद (प्राइमोजेनीचर)का सिद्धांत था।
  • अब, यह एक प्रश्न खड़ा करता है कि क्या होगा यदि नया राजा अयोग्य है? राजा को हटाने का अधिकार किसी को नहीं था।
  • ऑस्टिन के सिद्धांत से शुरू करते हुए जिसका अर्थ था कि संप्रभुता श्रेष्ट द्वारा हीन को दी गई आज्ञा है। इसलिए, राजा ने जो कुछ भी घोषित किया उसे कानून माना जा सकता है और उसे किसी विद्रोह का सामना नहीं करना चाहिए। सत्ता के विभाजन की अनुमति नहीं थी। अंतिम शक्ति राजा के पास थी और वह वो था जिसने समाज पर सभी कानून को लागू किया था।
  • यदि सभी कानून बनाने वाला केवल एक ही व्यक्ति था, तो क्या वह समाज के सभी क्षेत्रों के लिए कानून  बनाने के लिए पर्याप्त सक्षम है? राजा द्वारा बनाए गए कानून पर सवाल नहीं उठाया जा सकता था। राजा ने जो कहा, वही होता था।
  • तो, क्या होगा यदि समाज का एक विशेष क्षेत्र मौजूदा कानून से नाखुश हो? उन्हें राजा से सवाल करने का कोई अधिकार नहीं था। इस प्रकार, ऑस्टिन का सिद्धांत सर्वोच्चता पर केंद्रित था। एक कविता की कुछ पंक्तियाँ जो उनके सिद्धांत को विस्तृत कर सकती हैं-

“कानून हमारे द्वारा बनाया गया है। 

हम किसी और के द्वारा बनाए गए हैं, 

कौन है वो जो किसी कानून से ऊपर है”। 

  • हालांकि, हंस केल्सन संप्रभुता को समाप्त करने के विचार में विश्वास करते थे। उन्होंने अपनी नई परिभाषा दी थी।
  • उनका मानना ​​​​था कि कानून के अर्थ को समझने और कानून  के मानदंडों के उपयोग का पता लगाने के लिए संप्रभुता शब्द की कोई आवश्यकता नहीं है। उनका मानना ​​​​था कि कानून के मानदंड वैध नहीं हैं क्योंकि वे संप्रभु द्वारा दिए गए हैं या नैतिक कानून के अनुकूल हैं। उन्होंने इस सिद्धांत को खारिज कर दिया कि संप्रभुता कानून का अंतिम स्रोत (सोर्स) है।
  • ऐसा माना जाता है कि जहां संप्रभुता है वहां कानून नहीं है और जहां कानून है वहां संप्रभुता नहीं है।

इसलिए, समय बदल गया और लोगों ने महसूस किया कि राजा जो भी आदेश देता है उसे कानून के रूप में घोषित नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि, उन्हें अपना शासक चुनने या यह तय करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वे किसके द्वारा शासित होना चाहते हैं। इसलिए, समय के साथ संप्रभुता भाग की अवहेलना की गई।

आधुनिक समय और कानून  

  • आधुनिक समय में कानून गतिशील (डायनामिक) है। कानून  वही है जो न्यायाधीश कहते हैं। कानून धार्मिक पुस्तकों से लेकर राजाओं की एलान तक से विकसित हुआ है जो आज है।
  • आधुनिक समय में कानून समय और स्थान से प्रभावित होता है। एक स्थान पर अपराध दूसरे स्थान का सामान्य कार्य हो सकता है। इस प्रकार, कुछ भी गलत या सही नहीं है, अब यह राज्य का कानून है जो कार्य को नियंत्रित करता है। यह रीति-रिवाज, प्रथाएं और आदतें हैं जो कि कानून बन जाती हैं।
  • अलग-अलग संस्कृति अलग-अलग चीजों को सजा देती है, जिसका मतलब है कि अलग-अलग नियम देश के अलग-अलग कानून का मार्गदर्शन करते हैं। किसी एक अपराध के लिए सजा एक देश से दूसरे देश में अलग होती है।
  • उदाहरण के लिए, लापरवाही से गाड़ी चलाने, डायन कलंकित करना, व्यभिचार (अडल्ट्री) की सजा अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग है। यद्यपि वर्तमान कानून का मुख्य उद्देश्य जरूरतमंद को न्याय प्रदान करना है। साथ ही, किसी की भी सुने बिना सजा नहीं दी जाती है जिससे यह विचार उत्पन्न होता है कि न्याय दोनों पक्षों को सुनने के बाद दिया जाता है।
  • वर्तमान समय में न्यायाधीश यही कहते हैं। एक सुंदर कविता में, कानून का वर्णन इस प्रकार किया गया है,

“कानून मुझे बांध नहीं सकता,

कानून मेरा निर्णय नहीं ले सकता,

मैं कानून बदल सकता हूँ

मेरी सुविधा के अनुसार।”

  • कानून को परिभाषित किया गया है, कि “विशेष कानून नियमों की एक व्यवस्था है, जिसे अदालतों द्वारा लागू किया जा सकता है, जो राज्य की सरकार को नियंत्रित करते है, राज्य के अंगों के बीच संबंध और एक दूसरे के प्रति संबंध या विषयों का संचालन करते है”। यह विधायिका द्वारा बनाए गए नियमों का एक निकाय है।
  • वास्तव में कानून ऐसे नियम हैं जो मनुष्य को एक साथ बांधते हैं। कानून के बिना इंसान जानवर से भी बदतर हो सकता है। देश की तरक्की के लिए कानून जरूरी है। नियम इंसानों द्वारा बनाए जाते हैं, इंसानों द्वारा लागू किये जाते हैं, इंसानों पर लागू किए जाते हैं।
  • कानून को बहुमत से ही लागू किया जा सकता है। जब सामान्य समर्थन होता है, तो कानून  खुद को लागू करता है। एक निकाय का चुनाव किया जाता है जो सभी के लिए कानून  तैयार करता है।
  • प्राचीन काल में भी कुछ ऐसे रीति रिवाज थे जो कि कानून के रूप में काम करते थे। दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि कानून  को सर्वोच्च शक्ति कहा जा सकता है जो समाज और अवैध प्रथाओं के बीच मुख्य प्रथा के रूप में कार्य करते है।
  • साथ ही, तीन अक्षरों वाले शब्द के लिए हर एक व्यक्ति की अपनी परिभाषा है। यहाँ तक कि कानून बनाने वाले न्यायाधीश भी समय के अनुसार निर्णय देते हैं।
  • उदाहरण के लिए, धारा 377 जो पहले एक अपराध था, सितंबर 2018 में खारिज कर दिया गया और राष्ट्र में वैध कर दिया गया। हालांकि अभी भी कई देश ऐसे हैं जहां समलैंगिक (गे) विवाह को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि, आज जो कानून है, उसे कल अपराध बनाया जा सकता है। यही कानून की प्रकृति को गतिशील बनाता है।

क्या कानून जरूरी है

अब, इस बिंदु पर सोच रहे हैं: हमें कानून की आवश्यकता क्यों है? क्या इसकी आवश्यकता भी है?

  • “जब हम चल रहे होते हैं तो हम बात करते हैं, हम में से कुछ शराब की झील से मछली की तरह पीते हैं और झाड़ी की आग की तरह धूम्रपान करते हैं और सचमुच मक्खन के पहाड़ के नीचे दबे होते हैं जबकि हमारे हमवतन भूखे होते हैं, हम हमेशा जल्दबाजी में होते हैं और दूसरों के लिए समय नहीं होता है”। यह पंक्तियाँ कानून की आवश्यकता के विचारों को संक्षेप में प्रस्तुत करती हैं।
  • कानून पीड़ित को ठीक करने के लिए दवा का काम करता है। हम सभी को पता होना चाहिए कि अराजकता की स्थिति न तो राष्ट्र के लिए योग्य है और न ही व्यक्ति के लिए।
  • सभ्यता ने इंसानों का विकास भावनाओं में ही नहीं तकनीक में भी किया है। इसलिए, हर नए मोड़ पर, हमें समाज में आगे बढ़ने में मदद करने के लिए एक कानून की आवश्यकता होती है। जब राजनेता एक काला घोड़ा साबित होते हैं, तो कानून की आवश्यकता होती है।
  • लॉर्ड डायलन ने कहा, “कानून  से बाहर रहने के लिए, आपको ईमानदार होना चाहिए”। उद्धरण (क्वोट) के भीतर शब्द बिल्कुल सही हैं क्योंकि अगर सभी ईमानदार हैं तो कानून  की कोई आवश्यकता नहीं होगी। चारों तरफ शांति होती लेकिन हम सभी जानते हैं कि यह हकीकत नहीं है। हमें अधिक से अधिक कानून की आवश्यकता है क्योंकि हम बहुत तेज गति से प्रगति कर रहे हैं।
  • मौजूदा पीढ़ी को सबसे ज्यादा कानून  की जरूरत है। हालाँकि कानून खामियों से भरे होते हैं यानी हर कानून में कुछ न कुछ कमी होती है लेकिन कानून वह है जो बहुमत को सीमित और मजबूर करता है। यदि यह आवश्यक है, तो यह अस्तित्व और जीविका के लिए आवश्यक है।

तो, बिना कानून के एक दिन की कल्पना करें। यदि कोई कानून नहीं है तो बहुत सारी समस्याएं पैदा होंगी। हम मनुष्य स्वार्थ से भरे हुए हैं और हमारा स्वार्थ इस ग्रह की हर एक चीज पर हावी हो जाएगा। चारों ओर दुख होगा। सबके विरुद्ध सबका युद्ध होगा। इस प्रकार, कानून जीवन की सभी नकारात्मक मानवीय भावनाओं के रक्षक के रूप में कार्य करता है। कानून मार्गदर्शन हैं जिनका पालन किया जाना आवश्यक है।

  • साथ ही, कानून और नैतिकता एक साथ चलते हैं। कुछ मायनों में, नैतिकता कानून  को नियंत्रित करती है। अधिकांश निर्णय समाज के नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए दिए जाते हैं। कानून  और नैतिकता, दोनों समाधान प्रदान करने में मदद करते हैं, जैसे कि उन्हें क्या करना चाहिए और एक निश्चित स्थिति में क्या नहीं करना चाहिए।
  • विचारक भी कानून के महत्व से अवगत थे। ग्रीक विचारकों का मानना ​​​​था कि राज्य का अंत व्यक्तियों और समाज दोनों के लिए अच्छा जीवन है, इसलिए उस कानून की आवश्यकता है, जो सभी लोगों के सामान्य हित से समर्थित हो।

कानून का मुख्य उद्देश्य क्या है

अब हम जानते हैं कि कानून जरूरी है लेकिन कानून का उद्देश्य क्या है। वे समाज को कैसे लाभ पहुंचाएगा ?

  • न्याय प्रदान करने के लिए कानून एक उपकरण के रूप में कार्य करता है। विभिन्न सिद्धांतकारों (थियोरिस्ट) ने न्याय के मुख्य पहलू पर जोर दिया। उन्होंने न्याय के साथ कानून की बराबरी की।
  • लेकिन न्याय सुनिश्चित करने के लिए कानून की आवश्यकता क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए थॉमस हॉब्स ने अपनी पुस्तक लेविथान में कहा है, कि “हर एक आदमी के इस युद्ध के लिए, हर आदमी के खिलाफ, यह भी परिणाम है; कि कुछ भी अन्याय नहीं हो सकता। सही और गलत, न्याय और अन्याय की धारणाओं के लिए कोई जगह नहीं है। जब कोई सामान्य शक्ति नहीं है, तो कोई कानून नहीं है: जहां कोई कानून नहीं, कोई अन्याय नहीं है”। तो, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि न्याय पाने के लिए कानून की आवश्यकता है।
  • यह अब एक और सवाल खड़ा करता है कि क्या होगा यदि कानून अयोग्य साबित हो तो और कोई न्याय प्रदान नहीं किया जाता है? अगर कानून पक्षपाती हो जाए तो क्या स्थिति होगी?
  • उपरोक्त प्रश्न का उत्तर है: न्यायालय द्वारा पारित प्रत्येक निर्णय के लिए संशोधन होते हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि कानून समय के साथ आगे बढ़े। यह समाज की बदलती मांगों के साथ बदलता है। इसके अलावा, कुख्यात निर्भया कांड को ही लें, जिसने देश को हिलाकर रख दिया था। किशोर अपराधियों से संबंधित ऐसे कोई मामले नहीं थे। ऐसा होने के बाद, एक दल का गठन किया गया जिसने यौन हिंसा के लिए कड़ी सजा की सिफारिश की। दूसरे शब्दों में, यदि कोई कानून  अनुपयोगी साबित होती  है, तो उसमें संशोधन किए जाते हैं। धारा 377 का भी यही मामला है, जब यह साबित हो गया कि कानून को बदलने की जरूरत है, तो सर्वोच्च न्यायालय ने हरी झंडी दे दी और 150 साल से भी पुरानी प्रथा को अपराध से मुक्त कर दिया।
  • अब, निर्णय लेने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास क्यों है न कि लोगों के पास है? क्या होगा अगर लोग आपसी विरोध के लिए रिश्तेदारों में मिल जाते हैं?
  • इसकी अनुमति नहीं है क्योंकि मनुष्य को स्वार्थी माना जाता है। वह अपने स्वार्थ के बारे में सोचेगा न कि समाज के बारे में। वह केवल अपने बारे में सोचेगा, जिससे स्थिति और खराब होगी। यह बाद में आंदोलन और हिंसा का कारण बनेगा, जिसके परिणामस्वरूप अंततः भीड़ द्वारा हत्या होगी क्योंकि इस क्षेत्र की सभी जरूरतों को पूरा नहीं किया जाएगा।
  • इस प्रकार, कानून बनाने के लिए एक संगठन की आवश्यकता है जो कि सभी के लिए पूर्वाग्रहों (बायस)  को एक तरफ रखे। साथ ही, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2018 में यह सुनिश्चित करते हुए एक निर्णय पारित किया कि न्याय कानून का व्यवसाय है न कि भीड़ का। इसके अलावा, भारतीय संविधान सभी के लिए न्याय की जिम्मेदारी लेता है।

निष्कर्ष

  • कानून सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन का एक साधन है और मौजूदा सामाजिक व्यवस्थाओं को बदलने के साधन के रूप में भी कार्य करता है। यह मुख्य स्त्रोत परिवर्तन कारक के रूप में कार्य करता है।
  • कानून ने साहित्य को प्रभावित किया है। शेक्सपियर ने अपने नाटकों में किसी भी अन्य पेशे से अधिक कानून का उल्लेख किया है। कहने का तात्पर्य यह है कि कानून इतना महत्वपूर्ण है कि साहित्य में भी इसका प्रभाव है।
  • वकील साहित्य को ज्ञान के कुछ रूपों के स्रोत के रूप में देख सकते हैं। कानून वह है जिसका हम सभी को इंतजार है।
  • कानून कई बार बचाने वाला साबित हो सकता है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य न्याय प्रदान करना है। कानून का मतलब समाज में एक मजबूत व्यवस्था है। यह सब सरकार द्वारा प्रदान किया जा सकता है। सभी बातों पर विचार किया जाए तो कानून राज्य का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह राज्य की सर्वोच्च शक्ति है कि क्या सही है और क्या गलत है।
  • हालाँकि कानून एक शब्दांश (सिलेबल) है और इसमें केवल तीन अक्षर होते हैं फिर भी इस शब्द को विभिन्न तरीकों से समझा जा सकता है।

 

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