सीपीसी के तहत निष्पादन के तरीके

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Civil Procedure Code
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यह लेख M.S.Sri Sai Kamalini जो वर्तमान में स्कूल ऑफ लॉ, सस्त्र से बीए एलएलबी (ऑनर्स) कर रही है, के द्वारा लिखा गया है। यह एक विस्तृत लेख है जो सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत निष्पादन (एग्जिक्यूशन) के विभिन्न तरीकों से संबंधित है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

निष्पादन के संबंध में नियमों को डिक्री पर लागू किया जाता है। राहत डिक्री के निष्पादन के बाद मिलता है। सभी कार्यवाही में डिक्री का निष्पादन एक आवश्यक चरण है। प्रक्रिया को सावधानी से किया जाना चाहिए ताकि प्रभावित व्यक्ति के लिए उचित राहत प्रदान की जा सके और प्रक्रिया को कार्यवाही को प्रभावी और तेज बनाना चाहिए। सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश XXI, डिक्री और आदेशों के निष्पादन से संबंधित है।

निष्पादन के तरीके का चुनाव

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 51 के अनुसार निष्पादन के विभिन्न तरीके बताए गए हैं। इस धारा के अनुसार, डिक्री के निष्पादन के विभिन्न तरीके होते हैं:

  • डिक्री में विशेष रूप से उल्लिखित किसी भी संपत्ति की सुपुर्दगी (डिलिवरी);
  • संपत्ति की कुर्की (अटैचमेंट) और बिक्री;
  • संपत्ति की कुर्की के बिना बिक्री;
  • निर्णय देनदार की गिरफ्तारी;
  • निर्णय देनदार की हिरासत;
  • एक रिसीवर की नियुक्ति।

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 47 डिक्री को निष्पादित करने से पहले न्यायालय द्वारा निर्धारित किए जाने वाले कुछ प्रश्न प्रदान करती है। न्यायालय को वाद के पक्षों के बीच उत्पन्न होने वाले सभी प्रश्नों का निर्धारण करना होता है, जैसे:

  • डिक्री का निष्पादन;
  • डिक्री की संतुष्टि;
  • डिक्री का निर्वहन (डिस्चार्ज);
  • न्यायालय यह भी निर्धारित कर सकता है कि व्यक्ति किसी पक्ष का प्रतिनिधि है या नहीं।

निष्पादन का आवेदन डिक्री धारक द्वारा दायर किया जाता है और आवेदन या तो मौखिक आवेदन या लिखित आवेदन हो सकता है।

एक साथ निष्पादन

सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश XXI नियम 21 एक साथ निष्पादन से संबंधित है। इस नियम के अनुसार, अदालत अपने विवेक से निर्णय-देनदार के व्यक्ति और संपत्ति के खिलाफ एक ही समय में निष्पादन से इनकार कर सकती है।

न्यायालय का विवेक

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 38 में प्रावधान है कि दो अदालतें हैं जो डिक्री को निष्पादित करने के लिए सक्षम हैं, वे हैं:

  • जिस न्यायालय ने इसे पारित किया है;
  • न्यायालय जहां इसे निष्पादन के लिए भेजा जाता है।

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 39 डिक्री को निष्पादन के लिए अन्य न्यायालयों में स्थानांतरित (ट्रांसफर) करने के संबंध में नियम प्रदान करती है। इस धारा के अनुसार, न्यायालय डिक्री धारकों के आवेदन के बाद विभिन्न कारणों से डिक्री को किसी अन्य सक्षम न्यायालय में स्थानांतरित कर सकता है, जैसे:

  • जिस व्यक्ति के खिलाफ डिक्री पारित की गई है, वह अन्य न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) की स्थानीय सीमाओं के भीतर रहता है या व्यापार करता है।
  • व्यक्ति की संपत्ति डिक्री पारित करने वाले न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं है, तो निष्पादन आदेश को अन्य सक्षम अदालतों में स्थानांतरित किया जा सकता है।
  • यदि डिक्री ने संपत्ति को बेचने या उस संपत्ति को वितरित करने का निर्देश दिया है, जो अदालत के अधिकार क्षेत्र में स्थित नहीं है, तो निष्पादन आदेश को स्थानांतरित किया जा सकता है।
  • न्यायालय इन कारणों के अलावा अन्य वैध कारणों पर भी विचार करेगा।

न्यायालय अपने स्वयं के प्रस्ताव पर निष्पादन आदेश को अधीनस्थ (सबऑर्डिनेट) न्यायालयों या सक्षम अधिकार क्षेत्र के अन्य न्यायालयों में स्थानांतरित कर सकता है। आदेश XXI नियम 6 विभिन्न प्रक्रियाओं को प्रदान करता है, जिनका पालन तब किया जाता है जब अदालत निष्पादन के लिए दूसरी अदालत में डिक्री को स्थानांतरित करना चाहती है। जब यह स्थानांतरण होता है, तो मामले से संबंधित दस्तावेज, जैसे डिक्री की एक प्रति और डिक्री की संतुष्टि के लिए प्रमाण पत्र बाद के न्यायालय को भेजा जाना चाहिए, जैसा कि नियम 6 में उल्लिखित है। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 40 न्यायालय को मामले को दूसरे राज्य में सक्षम न्यायालयों में स्थानांतरित करने के लिए अनुमति देती है। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 42 प्रदान करती है कि जिस न्यायालय में निष्पादन के लिए डिक्री स्थानांतरित की जाती है, उसके पास वही शक्तियां होंगी, जैसे कि उस न्यायालय द्वारा डिक्री पारित की गई थी।

डिक्री को निष्पादित करने के तरीके

डिक्री को निष्पादित करने के कई तरीके हैं, अदालत को डिक्री को निष्पादित करते समय आदेश 21 में दिए गए उचित नियमों का पालन करना होता है। आदेश XXI नियम 10 के अनुसार, यदि डिक्री धारक इसे निष्पादित करना चाहता है, तो उसे न्यायालय में एक आवेदन दायर करना होगा।

संपत्ति की सुपुर्दगी

संपत्ति की सुपुर्दगी एक संधि को निष्पादित करने के सबसे प्रसिद्ध तरीकों में से एक है। आदेश XXI नियम 79 के अनुसार, यह कहा जाता है कि जब बेची गई संपत्ति एक चल संपत्ति है, जिसकी वास्तविक जब्ती की गई हो तो इसे क्रेता को दिया जाएगा। आदेश XXI के नियम 35 में अचल संपत्ति की डिक्री से संबंधित नियमों पर चर्चा की गई है। इस नियम के अनुसार,

  • जब डिक्री अचल संपत्ति की सुपुर्दगी के लिए हो, तो संपत्ति उस व्यक्ति को या उस व्यक्ति के प्रतिनिधि को दी जा सकती है जिसके पक्ष में निर्णय दिया गया है;
  • यह सुपुर्दगी डिक्री से बाध्य किसी भी व्यक्ति को हटाने के बाद की जाती है, जो संपत्ति खाली करने से इनकार करता है;
  • जब डिक्री अचल संपत्ति के संयुक्त कब्जे के लिए है, तो कब्जा वारंट की प्रति को उस स्थान पर चिपका कर दिया जाएगा, जो दिखाई दे रहा है;
  • जब कब्जा करने वाला व्यक्ति संपत्ति तक मुफ्त पहुंच प्रदान नहीं कर रहा है, तो न्यायालय किसी भी ताला या बोल्ट को हटा या खोल सकता है या किसी भी दरवाजे को तोड़ सकता है या उस संपत्ति में महिलाओं को उचित चेतावनी देने के बाद डिक्री धारक को कब्जे में रखने के लिए आवश्यक कोई अन्य कार्य कर सकता है।

संपत्ति की कुर्की और बिक्री

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 60 उन संपत्तियों की सूची प्रदान करती है जो डिक्री के निष्पादन में कुर्की और बिक्री के लिए उत्तरदायी हैं। इस धारा के अनुसार डिक्री के प्रवर्तन (एनफोर्समेंट) के लिए जिसकी कुर्की की जा सकती है, उसकी सूची निम्नलिखित है:

  • भूमि;
  • मकान या अन्य भवन;
  • माल और पैसा;
  • बैंकनोट और चेक;
  • विनिमय का बिल (बिल ऑफ़ एक्सचेंज) और वचन पत्र (प्रोमिसरी नोट);
  • हुंडी;
  • सरकारी प्रतिभूतियां (सिक्योरिटीज), बांड और पैसे के लिए अन्य प्रतिभूतियां;
  • ऋण;
  • निगम में शेयर;
  • अन्य सभी बिक्री योग्य संपत्ति जो निर्णय-देनदार की है जो चल या अचल हो सकती है।

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 61 कृषि उपज की आंशिक (पार्शियल) छूट प्रदान करती है।

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI नियम 3 में प्रावधान है कि यदि अचल संपत्ति एक या अधिक न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र की स्थानीय सीमा से अधिक में स्थित है, तो कोई एक न्यायालय संपत्ति की कुर्की और बिक्री कर सकता है। आदेश XXI, नियम 13 के अनुसार, अचल संपत्ति की कुर्की के लिए आवेदन में कुछ जानकारी होनी चाहिए। आदेश XXI, नियम 31 के अनुसार, विशिष्ट चल संपत्ति के लिए डिक्री निम्नलिखित द्वारा निष्पादित की जा सकती है:

  • संपत्ति की जब्ती, अगर यह व्यावहारिक है;
  • उस व्यक्ति को संपत्ति की सुपुर्दगी जिसे यह न्यायनिर्णीत (एडजज) किया गया है;
  • सिविल जेल में निर्णय-देनदार की हिरासत।

आदेश XXI का नियम 41 न्यायालय को निर्णय देनदार की संपत्ति की जांच करने के लिए आदेश देने की शक्ति प्रदान करता है। अदालत निर्णय देनदार या फर्मों के मामले में अधिकारियों को संबंधित पुस्तकों और दस्तावेजों को जांच के लिए जमा करने का आदेश दे सकती है। संपत्ति के मूल्य का मूल्यांकन यह जांचने के लिए किया जाता है कि क्या यह डिक्री को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त होगा। निर्णय देनदार, निगमों के मामले में अधिकारी और किसी अन्य प्रासंगिक व्यक्ति की मौखिक रूप से जांच की जा सकती है। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 64 के अनुसार, कुर्की के बाद किसी भी निजी हस्तांतरण या संपत्ति का हस्तांतरण किया जाता है तो उस हस्तांतरण को शून्य माना जाएगा। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 74 निर्णय-देनदार को गिरफ्तार करने की शक्ति प्रदान करती है यदि उन्होंने डिक्री-धारक को किसी अचल संपत्ति का कब्जा प्राप्त करने से रोका या प्रतिबंधित किया है। अदालत के आदेश से निर्णय देनदार को तीस दिनों के लिए जेल में बंद किया जा सकता है।

गिरफ्तारी और हिरासत

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 55 गिरफ्तारी और हिरासत के संबंध में विभिन्न नियमों से संबंधित है। इस धारा के अनुसार,

  • निर्णय-देनदार को दिन के किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता है और उसे न्यायालय के समक्ष लाया जा सकता है।
  • निर्णय-देनदार की हिरासत सिविल जेल में होनी चाहिए।
  • गिरफ्तारी के लिए कोई भी अधिकारी सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले आवास-घर में प्रवेश नहीं कर सकता है।
  • एक बार राशि का भुगतान करने के बाद अधिकारी को निर्णय देनदार को रिहा कर देना चाहिए।

सिविल प्रक्रिया संहिता में आदेश XXI का नियम 37, निर्णय देनदार को जेल में हिरासत के खिलाफ कारण दिखाने के लिए विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है। इस नियम के अनुसार:

  • जहां सिविल जेल में एक निर्णय-देनदार की गिरफ्तारी और हिरासत में पैसे के भुगतान के लिए डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन किया जाता है, तो न्यायालय निर्णय देनदार को कारण बताने का अवसर प्रदान करता है कि उसे सिविल जेल में क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए।
  • न्यायालय निर्णय देनदार को एक निर्दिष्ट तिथि पर अदालत के समक्ष पेश होने और कारण बताने के लिए नोटिस प्रदान करता है।
  • अदालत कुछ स्थितियों में नोटिस नहीं भी दे सकता है उदाहरण के लिए, अगर अदालत को लगता है कि इससे निष्पादन की प्रक्रिया में देरी होगी या निर्णय देनदार उस समय के भीतर फरार हो जाएगा।

नियम 38 के अनुसार, निर्णय देनदार की गिरफ्तारी का वारंट निष्पादन के लिए अधिकृत (ऑथराइज्ड) अधिकारी को उचित समय के भीतर न्यायालय में पेश करने का निर्देश देगा। आदेश XXI का नियम 39 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो, निर्वाह भत्ते (सब्सिस्टेंस एलाउंस) से संबंधित है। डिक्री-धारक को एक निश्चित राशि का भुगतान करना होता है जो न्यायालय द्वारा सिविल जेल में निर्णय देनदार की गिरफ्तारी के समय से लेकर न्यायालय के समक्ष पेश किए जाने तक के रखरखाव के लिए न्यायालय द्वारा निर्धारित की जाती है। यदि डिक्री-धारक ने निर्वाह भत्ता का भुगतान नहीं किया है तो किसी भी निर्णय देनदार को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 56, महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करती है और इस धारा के अनुसार, महिलाओं को पैसे के लिए डिक्री के निष्पादन में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। मासिक भत्ते को सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 57 के तहत तय किया गया है या फिर अदालत पर्याप्त राशि तय कर सकती है। शुरुआत में अधिकृत अधिकारी और बाद के चरण में जेल अधिकारी को अग्रिम (एडवांस) भुगतान करना होता है। सिविल जेल में निर्णय-देनदार के निर्वाह के लिए डिक्री-धारक द्वारा राशि जमा की जाएगी और इसे मुकदमे में लागत माना जाएगा। नियम 40 विभिन्न कार्यवाही प्रदान करता है जिनका नोटिस देने के बाद निर्णय देनदार की उपस्थिति में पालन किया जाता है। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 58 हिरासत और रिहाई के नियमों से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, निर्णय-देनदार को सिविल जेल में बंद किया जा सकता है:

  • तीन महीने से अधिक की अवधि के लिए नहीं- जब डिक्री की राशि एक हजार रुपये से अधिक हो;
  • छह सप्ताह से अधिक की अवधि के लिए नहीं- जब डिक्री की राशि पांच सौ रुपये से अधिक की राशि के भुगतान के लिए है, लेकिन एक हजार रुपये से अधिक नहीं है।

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 59 यह बताती है कि बीमारी के आधार पर देनदार को रिहा किया जा सकता है।

रिसीवर की नियुक्ति

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XL में रिसीवर की नियुक्ति से संबंधित विभिन्न प्रावधान हैं। न्यायालय रिसीवर द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए उचित पारिश्रमिक (रिम्यूनरेशन) भी तय करेगा। न्यायालय डिक्री से पहले या बाद में एक निष्पक्ष व्यक्ति को रिसीवर के रूप में नियुक्त कर सकता है:

  • संपत्ति के प्रबंधन और संरक्षण के लिए;
  • किराए और मुनाफे को इखट्टा करने के लिए;
  • किराए और मुनाफे का आवेदन और निपटान करने के लिए;
  • दस्तावेजों का निष्पादन करने के लिए;
  • न्यायालय उपर्युक्त शक्ति के अलावा अन्य शक्तियाँ भी प्रदान करता है यदि वह उचित समझे।

एक रिसीवर के विभिन्न कर्तव्य हैं, जो इस आदेश में प्रदान किए गए हैं, जैसे:

  • न्यायालय द्वारा मांगी गई किसी भी प्रतिभूति सुरक्षा (सिक्योरिटी) को प्रस्तुत करना;
  • उन अवधियों पर खातों को जमा करना, जिनके लिए उन्हें नियुक्त किया गया है और उस तरह से करना जैसा कि न्यायालय द्वारा निर्देशित किया गया है;
  • जानबूझकर चूक या प्राप्तकर्ता की लापरवाही से संपत्ति को हुए किसी भी नुकसान के लिए जिम्मेदार होना;
  • न्यायालय के निर्देश के अनुसार देय राशि का भुगतान करना।

न्यायालय कभी-कभी रिसीवर की संपत्ति को कुर्क और बेच भी सकता है ताकि उसके कारण हुए नुकसान की वसूली की जा सके और शेष राशि रिसीवर को नुकसान की भरपाई के बाद दी जा सकती है। कलेक्टर को एक रिसीवर के रूप में भी नियुक्त किया जा सकता है जब संपत्ति भूमि है जो सरकार को राजस्व (रिवेन्यू) का भुगतान कर रही है या जिस भूमि में राजस्व सौंपा गया है, अदालत अपनी सहमति से एक कलेक्टर को रिसीवर के रूप में नियुक्त कर सकती है।

विभाजन (पार्टिशन)

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XX का नियम 18 संपत्ति के विभाजन के वाद में डिक्री से संबंधित है। जब न्यायालय किसी चल या अचल संपत्ति के विभाजन के लिए डिक्री पारित करता है और यदि विभाजन में कोई कठिनाई होती है तो न्यायालय एक प्रारंभिक डिक्री पारित कर सकता है जो स्पष्ट रूप से संपत्ति के विभिन्न अधिकारों का सीमांकन (डिमार्केट) करती है। जब विभाजन का आदेश सरकार को राजस्व के भुगतान के लिए निर्धारित संपत्ति से संबंधित है, तो विभाजन कलेक्टर या किसी अन्य राजपत्रित (गैजेटेड) अधिकारी द्वारा किया जा सकता है जो कलेक्टर के अधीनस्थ है और राजपत्रित अधिकारी को कलेक्टर द्वारा स्वयं नियुक्त किया जाना चाहिए।

क्रॉस-डिक्री और क्रॉस-दावे

आदेश XXI का नियम 18 क्रॉस-डिक्री के मामलों में निष्पादन के संबंध में नियम प्रदान करता है। क्रॉस डिक्री के आवेदन को न्यायालय द्वारा उसी समय निष्पादित किया जा सकता है जब विभिन्न स्थितियों में एक ही पक्ष के बीच पारित दो राशियों के भुगतान के लिए अलग-अलग वादों में न्यायालय में आवेदन किए जाते हैं; जैसे, यदि दोनों राशियाँ समान हैं, तो दोनों डिक्री पर संतुष्टि दर्ज की जाएगी। ऐसी स्थितियाँ भी होती हैं यदि दो राशियाँ असमान हों तो इसे केवल डिक्री धारक द्वारा बड़ी राशि के लिए और छोटी राशि को काटने के बाद बची हुई राशि के लिए निष्पादित किया जा सकता है। यह तब लागू नहीं किया जा सकता जब एक वाद में डिक्री-धारक दूसरे में निर्णय-देनदार हो और प्रत्येक पक्ष दोनों वादों में समान चरित्र फाइल करता हो। उदाहरण के लिए, यदि A, B के विरुद्ध 1,000 रु. की डिक्री रखता है। B उसी मामले में 1,000 रुपये के भुगतान के लिए A के खिलाफ एक डिक्री रखता है, तो डिक्री को उसी समय निष्पादित किया जा सकता है और राशि के बराबर होने के कारण इसे संतुष्ट किया जा सकता है।

आदेश XXI का नियम 19 क्रॉस-दावों के मामलों में निष्पादन के संबंध में नियम प्रदान करता है। इसे एक क्रॉस-दावा माना जाता है जब एक डिक्री के निष्पादन के लिए एक अदालत में आवेदन किया जाता है जिसके तहत दो पक्ष एक दूसरे से धन की रकम वसूलने के हकदार होते हैं। यह संतुष्ट हो सकता है जब राशि समान है या यदि राशि असमान है तो निष्पादन केवल उच्च दावे के हकदार व्यक्ति के साथ ही किया जा सकता है।

पैसे का भुगतान

आदेश XXI नियम 1 डिक्री के तहत पैसे का भुगतान करने के विभिन्न तरीकों को प्रदान करता है। इस नियम के अनुसार:

  • पैसे का भुगतान, न्यायालय जो डिक्री को निष्पादित करने के लिए सक्षम है, में जमा करके किया जा सकता है;
  • धन को मनीआर्डर द्वारा या बैंक जमा द्वारा न्यायालय को भेजा जा सकता है;
  • डिक्री-धारक को न्यायालय के बाहर भी पैसे का भुगतान लिखित रूप में तय की गई विधि से किया जा सकता है;
  • न्यायालय डिक्री में अन्य तरीकों को भी निर्देशित कर सकता है।

यदि पैसे का भुगतान पोस्टल मनीआर्डर द्वारा या किसी बैंक के माध्यम से किया गया है, तो ऐसे कई विवरण हैं जिनका उल्लेख करना आवश्यक है जैसे कि मूल वादों की संख्या, पक्षों का विवरण; जैसे, उनका नाम, प्रेषित (रिमिटेड) धन को कैसे समायोजित (एडजस्ट) किया जाना है और भुगतानकर्ता का नाम और पता। आदेश XXI नियम 2 डिक्री-धारक को न्यायालय के बाहर भुगतान से संबंधित विभिन्न नियम प्रदान करता है। निर्णय-देनदार को अदालत के बाहर किए गए किसी भी भुगतान के बारे में अदालत को सूचित करना होता है। नियम 30 यह प्रावधान करता है कि धन के भुगतान की डिक्री को निर्णय-देनदार को जेल में बंद करके या उसकी संपत्ति की कुर्की और बिक्री द्वारा निष्पादित किया जा सकता है। आदेश XXI का नियम 32 अनुबंध के विशिष्ट प्रदर्शन के लिए डिक्री को लागू करने के तरीके प्रदान करता है। एक अनुबंध के विशिष्ट प्रदर्शन के लिए डिक्री की यदि किसी भी पक्ष द्वारा जानबूझकर अवज्ञा की जाती है, तो सिविल जेल में निर्णय-देनदार को हिरासत में लेकर, या निर्णय देनदार की संपत्ति की कुर्की या दोनों तरीकों से निष्पादित किया जा सकता है। बंधक (मॉर्गेज) वाद में क्रॉस-डिक्री और क्रॉस-दावों के लिए एक ही प्रक्रिया का पालन किया जाता है।

निषेधाज्ञा (इंजंक्शन)

आदेश XXI का नियम 32 एक निषेधाज्ञा के लिए डिक्री को लागू करने के तरीके प्रदान करता है। डिक्री को सिविल जेल में निर्णय धारकों की हिरासत या संपत्ति की कुर्की द्वारा निष्पादित किया जा सकता है, कभी-कभी निषेधाज्ञा के लिए डिक्री को लागू करने के लिए दोनों प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं। यदि व्यक्ति जानबूझकर डिक्री की अवज्ञा करता है, तो इस प्रक्रिया का पालन किया जाता है।

वैवाहिक अधिकारों की बहाली (रेस्टिट्यूशन)

  • आदेश XXI का नियम 32 वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए डिक्री को लागू करने के तरीके प्रदान करता है। यदि किसी पक्ष द्वारा जानबूझकर डिक्री की अवज्ञा की जाती है तो वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए डिक्री को संपत्ति की कुर्की द्वारा लागू किया जा सकता है।
  • आदेश XXI का नियम 33 पति के खिलाफ वैवाहिक अधिकारों के निष्पादन से संबंधित है और इस नियम के अनुसार, निर्णय देनदार को डिक्री धारक को समय-समय पर भुगतान करना पड़ता है यदि एक निर्दिष्ट समय के भीतर डिक्री का पालन नहीं किया जाता है। न्यायालय समय-समय पर भुगतान के संबंध में नियमों को संशोधित कर सकता है और कुछ स्थितियों में, वह भुगतान को निलंबित भी कर सकता है। इस नियम के तहत भुगतान किए गए किसी भी पैसे को वसूला जा सकता है जैसे कि यह पैसे के भुगतान के लिए एक डिक्री के तहत देय थे।

दस्तावेज़ का निष्पादन

आदेश XXI का नियम 34 विभिन्न प्रक्रियाओं से संबंधित है जिनका दस्तावेज़ के निष्पादन के लिए पालन किया जाता है। इस नियम के अनुसार,

  • जब निर्णय देनदार दस्तावेजों के निष्पादन की डिक्री की अवज्ञा करता है, तो डिक्री-धारक को दस्तावेज़ का एक मसौदा (ड्राफ्ट) तैयार करना होता है और उसे न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होता है;
  • न्यायालय किसी भी आपत्ति को उठाने के लिए निर्णय देनदार को मसौदा पेश करेगा और अदालत एक विशेष समय भी तय करेगी जिसके भीतर निर्णय देनदार अपनी आपत्ति उठा सकता है;
  • न्यायालय निर्णय धारक से आपत्तियां प्राप्त करने के बाद मसौदे को मंजूरी देने या बदलने का आदेश देगा;
  • डिक्री-धारक किसी भी परिवर्तन करने के बाद मसौदे की एक प्रति न्यायालय को वितरित करेगा जैसा कि न्यायालय ने उचित स्टाम्प-पेपर पर निर्देशित किया हो, यदि कानून द्वारा तत्काल लागू होने पर एक स्टाम्प की आवश्यकता होती है;
  • न्यायाधीश या ऐसा अधिकारी जिसे इसके लिए नियुक्त किया जा सकता है, इस प्रकार सुपुर्द किए गए दस्तावेज़ को निष्पादित करेगा;
  • यदि दस्तावेज़ का पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) कानून द्वारा आवश्यक है तो न्यायालय या न्यायालय द्वारा अधिकृत अधिकारी को दस्तावेज़ को पंजीकृत करना होगा। यदि पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है, लेकिन फिर भी डिक्री-धारक दस्तावेज़ को पंजीकृत करना चाहता है, तो न्यायालय को आवश्यक आदेश देने होंगे;
  • न्यायालय पंजीकरण के खर्चे के संबंध में आदेश दे सकता है।

परक्राम्य लिखत का समर्थन (एंडोर्समेंट ऑफ द नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट)

नियम 51 एक परक्राम्य लिखत के समर्थन से संबंधित है। इस नियम के अनुसार, परक्राम्य लिखत की कुर्की दस्तावेज की वास्तविक जब्ती द्वारा पूरी की जा सकती है यदि इसे न्यायालय में जमा नहीं किया गया है और यह किसी सार्वजनिक अधिकारी की अभिरक्षा (कस्टडी) में नहीं है। परक्राम्य लिखत को न्यायालय में लाया जाना चाहिए और न्यायालय के अगले आदेश तक न्यायालय की अभिरक्षा में रखा जाना चाहिए।

किराए की कुर्की, मेस्ने प्रॉफिट, आदि

नियम 42 के अनुसार, जहां एक डिक्री किराए या मेस्ने प्रॉफिट या किसी अन्य मामले के संबंध में जांच के लिए निर्देशित करती है, तो भुगतान के लिए एक सामान्य डिक्री के मामले के समान धन की देय राशि के लिए निर्णय-देनदार की संपत्ति को कुर्क किया जा सकता है।

ऋण, शेयर और अन्य संपत्ति की कुर्की जो निर्णय देनदार के कब्जे में नहीं है

ऋण की कुर्की जो निर्णय देनदार के कब्जे में नहीं है, एक लिखित आदेश द्वारा निषिद्ध (प्रोहिबिट) किया जा सकता है:

  • ऋण के मामले में, ऋण की वसूली से और देनदार को न्यायालय के अगले आदेश तक भुगतान करने से प्रतिबंधित किया गया है;
  • शेयर के मामले में, किसी व्यक्ति के नाम पर शेयर को स्थानांतरित करने या कोई लाभांश प्राप्त करने से प्रतिबंधित किया जा सकता है;
  • अन्य चल संपत्ति के मामले में, कब्जे वाले व्यक्ति को इसे निर्णय-देनदार को देने से मना किया जाता है।

प्रतिभूति (श्योरिटी) का दायित्व

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 145 प्रतिभूति के दायित्व के प्रवर्तन के संबंध में नियम प्रदान करती है। इस धारा के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जिसने डिक्री या डिक्री के किसी भाग के निष्पादन के लिए प्रतिभूति प्रदान की है या गारंटी दी है, किसी भी संपत्ति की बहाली के लिए जो डिक्री के निष्पादन में ली गई है और डिक्री में किसी भी पैसे के भुगतान है, तो उसे प्रतिभूति के रूप में माना जाता है। प्रतिभूति उसी तरह से उत्तरदायी होता है जैसे वह व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होता है और उसकी संपत्ति जो कुर्क की जाती है उसे भी डिक्री-धारक के नुकसान की वसूली के लिए बेचा जा सकता है। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 47 के अनुसार प्रतिभूति को वाद का पक्ष भी माना जाता है।

कानूनी प्रतिनिधि के खिलाफ डिक्री का प्रवर्तन

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 52 कानूनी प्रतिनिधि के खिलाफ डिक्री को लागू करने से संबंधित है। कुछ स्थितियों में मृतक के कानूनी प्रतिनिधि को भी एक पक्ष के रूप में माना जा सकता है। इस धारा के अनुसार, जब डिक्री मृतक की संपत्ति में से पैसे के भुगतान के लिए होती है, तो उसे ऐसी किसी भी संपत्ति की कुर्की और बिक्री द्वारा निष्पादित किया जा सकता है। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 53 पैतृक (एंसेस्ट्रल) संपत्ति के दायित्व से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, पैतृक संपत्ति जिसके संबंध में डिक्री पारित की जाती है, मृतक की संपत्ति मानी जाती है यदि वह पुत्र या किसी अन्य वंशज के कब्जे में है जो हिंदू कानून के तहत ऋण के भुगतान के लिए जिम्मेदार है।

निगम (कॉरपोरेशन) के खिलाफ डिक्री

नियम 76 के अनुसार, जहां बेची जाने वाली संपत्ति एक परक्राम्य लिखत या निगम में एक हिस्सा है, अदालत सार्वजनिक नीलामी में बिक्री के लिए निर्देश प्रदान करने के बजाय एक दलाल को इस तरह के एक उपकरण या शेयर को बेचने के लिए अधिकृत कर सकती है। आदेश XXI के नियम 32 (2) में प्रावधान है कि निगम के खिलाफ निषेधाज्ञा या विशिष्ट प्रदर्शन पारित किया गया है, तो फिर निगम की संपत्ति की कुर्की या निदेशकों (डायरेक्टर) या निगम के महत्वपूर्ण अधिकारियों की सिविल जेल में हिरासत में लेकर डिक्री को लागू किया जा सकता है।

फर्म के खिलाफ डिक्री

नियम 50 फर्म के खिलाफ डिक्री के निष्पादन से संबंधित विभिन्न प्रावधान प्रदान करता है। इस नियम के अनुसार, जब किसी फर्म के खिलाफ़ डिक्री दी जाती है, तो निष्पादन की अनुमति दी जा सकती है,

  • साझेदारी की कोई संपत्ति के खिलाफ;
  • किसी भी व्यक्ति के खिलाफ जिसे फर्म का भागीदार घोषित किया गया है;
  • कोई भी व्यक्ति जिसे भागीदार के रूप में माना जाता है और व्यक्तिगत रूप से सम्मन दिया जाता है और वह उपस्थित होने में विफल रहता है।

डिक्री की कुर्की

आदेश XXI का नियम 53 एक डिक्री की कुर्की से संबंधित है। इस नियम के अनुसार जब कुर्क की जाने वाली संपत्ति डिक्री की है, तो कुर्की उस न्यायालय के आदेश से की जा सकती है जिसने डिक्री पारित की थी। कुछ स्थितियां ऐसी होती हैं जब डिक्री दूसरे न्यायालय द्वारा पारित की जाती है और आदेश को लागू करने के लिए दूसरे न्यायालय को भेजा जाता है तो डिक्री पारित करने वाले न्यायालय को बाद वाले न्यायालय को एक नोटिस देना होता है। न्यायालय डिक्री-धारक के आवेदन के बाद एक अन्य डिक्री की कुर्की द्वारा निष्पादित करने की मांग करता है। इस नियम के तहत कुर्की का आदेश देने वाला न्यायालय निर्णय-देनदार को नोटिस देगा जो कुर्क की गई डिक्री से बाध्य है।

चिह्नों या मुद्रा नोटों का भुगतान

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI का नियम 56 उन प्रावधानों से संबंधित है जहां कुर्क की गई संपत्ति वर्तमान सिक्का या मुद्रा नोट है, अदालत किसी भी समय कुर्की जारी रखने के दौरान निर्देश दे सकती है कि ऐसा सिक्का या नोट, या उसका एक हिस्सा यदि यह डिक्री को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त है, तो डिक्री के तहत हकदार पक्ष को भुगतान किया जाएगा।

निष्कर्ष

सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत डिक्री के निष्पादन के विभिन्न तरीके हैं। न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह प्रत्येक मामले के तथ्यों का आकलन करे और बिना किसी देरी के डिक्री धारक को उचित राहत प्रदान करे। अदालत को डिक्री निष्पादित करने और निष्पादन के उपयुक्त तरीके को चुनने से पहले सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेशों के तहत प्रदान की जाने वाली प्रक्रियाओं का पालन करना होता है।

संदर्भ

 

 

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