विक्रय विलेख की तुलना में हस्तांतरण विलेख

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यह लेख भारतीय प्रबंधन संस्थान, रोहतक में बी.बी.ए. एल.एल.बी. पाठ्यक्रम की छात्रा Manya Manjari के द्वारा लिखा गया है। यह लेख हस्तांतरण विलेखों (कन्वियंस डीड) और विक्रय विलेखों (सेल डीड) पर संक्षेप में चर्चा करता है। इस लेख में उन कानूनों जिस के द्वारा वे शासित होते है में अंतर, ऐतिहासिक मामलों, इन विलेखो का मसौदा (ड्राफ्ट) तैयार करने की प्रक्रिया और भारत में उनके मुख्य केंद्र पर भी विस्तार से चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय 

ऐसी स्थिति की कल्पना करें जहां किसी संपत्ति का स्वामित्व हस्तांतरित हो जाता है; यह संपत्ति एक शहर का अपार्टमेंट या ग्रामीण इलाके में एक अच्छी झोपड़ी हो सकती है। इस प्रक्रिया के लिए औपचारिक कागजात या विलेख की आवश्यकता होती है। ब्लैक लॉ डिक्शनरी इसे इस प्रकार परिभाषित करती है “एक सीलबंद लिखत (इंस्ट्रूमेंट), जिसमें एक अनुबंध या वचन पत्र (कॉवेनेंट) होता है, जिसे उस पक्ष द्वारा दिया जाता है जो बाध्य हो जाता है, और उस पक्ष द्वारा स्वीकार किया जाता है जिसके लिए अनुबंध या वचन पत्र होता है।” ये दस्तावेज़ साधारण कागजी कार्रवाई से कहीं अधिक हैं; इनके पास यह सुनिश्चित करने का कानूनी अधिकार है कि संपत्ति के स्वामित्व का हस्तांतरण कानूनी रूप से किया गया है। 

यह निर्धारित करने में विलेख आवश्यक हैं कि अचल संपत्ति, भवन और अन्य प्रकार की संपत्ति सहित किसी भी महत्वपूर्ण वस्तु का कानूनी रूप से मालिक कौन है।

हालाँकि, यदि उन्हें ठीक से पूरा नहीं किया गया है- उदाहरण के लिए, यदि उससे संबंधित आवश्यक कागजी कार्रवाई, पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन), या नोटरीकरण (नोटराइजेशन) शामिल नहीं है- तो कानून की नजर में उनमें प्रवर्तनीयता (एंफोर्सेबिलिटी) की कमी होगी। 

जब रियल एस्टेट लेनदेन की बात आती है तो कोई व्यक्ति ‘सेल विलेख’ और ‘हस्तांतरण विलेख’ जैसी शब्दावली के बारे में जान सकता है। इस तथ्य के बावजूद कि वे बिल्कुल एक जैसे प्रतीत होते हैं, लेकिन वे संपत्ति हस्तांतरण के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इस लेख का दायरा हस्तांतरण विलेख, विक्रय विलेख और दोनों के बीच के अंतर तक ही सीमित है। यह समझने के लिए कि ये कानूनी कागजात संपत्ति के स्वामित्व के हस्तांतरण की प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करते हैं, आइए इन दोनों शब्दों के बीच के अंतर को स्पष्ट रूप में समझें। 

हस्तांतरण विलेख और विक्रय विलेख के बीच मुख्य अंतर 

अर्थ एवं परिभाषा

हस्तांतरण विलेख

ब्लैक लॉ डिक्शनरी हस्तांतरण को इस प्रकार परिभाषित करती है “हस्तांतरण में लिखित रूप में प्रत्येक लिखत शामिल होता है जिसके द्वारा किसी भी एस्टेट या रियल एस्टेट में हित बनाया जाता है, अलग किया जाता है, बंधक (मॉर्गेज) किया जाता है, या किसी और व्यक्ति को सौंपा जाता है, या जिस लिखत के द्वारा किसी भी रियल एस्टेट का शीर्षक कानून या समनता में प्रभावित हो सकता है, सिवाय इसके– अंतिम वसीयत और वसीयतनामा (टेस्टामेंट), तीन साल से कम की अवधि के लिए पट्टे (लीज), और भूमि की विक्रय या खरीद के लिए निष्पादन (एक्जीक्यूटरी) अनुबंध। इस परिभाषा पर मिनेसोटा के सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा श्राइबर्ग बनाम हैनसन (1917) के मामले में भी भरोसा किया गया था। एक हस्तांतरण विलेख, एक ऐसा दस्तावेज है जो अनिवार्य रूप से चल या अचल संपत्ति के स्वामित्व को हस्तांतरित करता है। यह एक व्यापक शब्द है जिसमें किसी भी उपहार, बंधक, पट्टे या विनिमय (एक्सचेंज) का स्वामित्व हस्तांतरण शामिल होता है। इस पर हमेशा प्रतिफल (कंसीडरेशन) की आवश्यकता नहीं होती है। यह केवल विक्रय लेनदेन तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें कई अन्य तरीकों से संपत्ति का हस्तांतरण भी शामिल होता है। 

विक्रय विलेख

संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882 की धारा 54 के तहत “पैसे के बदले किसी अचल संपत्ति के स्वामित्व के हस्तांतरण को विक्रय कहा जाता है”। विक्रय विलेख एक कानूनी दस्तावेज है जिसका उपयोग रियल एस्टेट संपत्ति के अधिकार, शीर्षक और स्वामित्व को एक पक्ष से दूसरे पक्ष को हस्तांतरित करने के लिए किया जाता है। विक्रय विलेख आम तौर पर अचल संपत्ति के मामलों में निष्पादित किया जाता है। विक्रय विलेख पर हमेशा प्रतिफल की आवश्यकता होती है। यह केवल विक्रय लेनदेन के मामले में बनाया जाता है। यह एक दस्तावेज़ है जो दर्शाता है कि विक्रय सफल है और संपत्ति अब खरीदार की है।

उत्पत्ति

हस्तांतरण विलेख

हस्तांतरण विलेख की उत्पत्ति का पता एंग्लो-सैक्सन इंग्लैंड में लगाया जा सकता है। 8वीं से 11वीं शताब्दी के बीच, लोगों ने भूमि के स्वामित्व से संबंधित जानकारी का दस्तावेजीकरण करना शुरू कर दिया था। इस अवधि में, भूमि लेनदेन को रिकॉर्ड करने के लिए स्वामित्व दस्तावेजों को चर्म पत्र पर लिखकर निष्पादित किया जाता था। आख़िरकार, लोगों ने भूमि स्वामित्व के हस्तांतरण के इस तरीके पर अधिक भरोसा करना शुरू कर दिया। 16वीं शताब्दी के आसपास, पक्षों को दिए गए कानूनी सुरक्षा उपायों के कारण, अनुबंधों के निष्पादन के लिए हस्तांतरण विलेख एक अधिक विश्वसनीय विकल्प बन गया था। समय बीतने के साथ, यह एक व्यापक रूप से स्वीकृत तरीका बन गया और इसे सरकार से आधिकारिक मान्यता प्राप्त हुई थी, जिससे हस्तांतरण की सुरक्षा सुनिश्चित हुई और संपत्ति का स्पष्ट स्वामित्व स्थापित हुआ था।

विक्रय विलेख

विक्रय विलेख की उत्पत्ति हस्तांतरण विलेख से ही होती है। हालाँकि, भारत में, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की शुरुआत के बाद इस अवधारणा को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई थी। विक्रय विलेख नया है, क्योंकि इसमें केवल कुछ विषयों को ही शामिल किया गया है जो विशेष रूप से विक्रय लेनदेन के तहत निपटाए जाते हैं। 

शासकीय कानून

हस्तांतरण विलेख

एक हस्तांतरण विलेख दो प्रमुख कानूनों अर्थात्, भारतीय पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) अधिनियम, 1908 और भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 द्वारा शासित होता है। हस्तांतरण विलेख को पंजीकृत कराना अनिवार्य है। जब किसी हस्तांतरण को सार्वजनिक रिकॉर्ड में स्थायी रूप दे दिया जाता है और उस पर दो गवाहों द्वारा हस्ताक्षर किए जाते हैं, तो हस्तांतरण विलेख की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। इसे नोटरीकृत भी किया जा सकता है।

विक्रय विलेख

दूसरी ओर, एक विक्रय विलेख, पंजीकरण उद्देश्यों के लिए माल का विक्रय (सेल ऑफ गुड) अधिनियम 1930, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882 और भारतीय पंजीकरण अधिनियम के द्वारा शासित होता है। विक्रय विलेख को पंजीकृत कराना नितांत आवश्यक है, और भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17 के अनुसार इसके निष्पादन के लिए 100 रुपये से अधिक लागत वाली किसी भी चीज़ को पंजीकृत किया जाना चाहिए।

विशेषताएँ

हस्तांतरण विलेख

हस्तांतरण विलेख एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि यह यह दिखाने के लिए साक्ष्य के रूप में कार्य करता है कि संपत्ति का मालिक कोई व्यक्ति है। यह संबंधित संपत्ति के स्वामित्व का प्रमाण है। यह संपत्ति के अधिकारों और उक्त संपत्ति से उत्पन्न होने वाले दावों को हस्तांतरित करने में मदद करता है।

विक्रय विलेख

एक हस्तांतरण दस्तावेज़ के समान, एक विक्रय विलेख की प्रमुख विशेषताओं में खरीदार का स्वामित्व अधिकार स्थापित करना शामिल है। यह कुछ प्रतिफल के बदले में विक्रेता से खरीदार को स्वामित्व का हस्तांतरण करता है। इसकी एक विशिष्ट विशेषता यह है कि यह मौद्रिक लेनदेन और प्रतिफल को स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है। यह कानून की नजर में प्रवर्तनीय दस्तावेज़ होता है। एक बार विक्रय विलेख के पंजीकृत हो जाने पर, संबंधित संपत्ति के सभी अधिकार खरीदार के पास चले जाते है।  

प्रयोज्यता (एप्लीकेबिलिटी)

हस्तांतरण विलेख

एक हस्तांतरण विलेख न केवल विक्रय लेनदेन के लिए बल्कि उपहार, पट्टे, बंधक, वसीयत और किसी भी अन्य प्रकार के संपत्ति हस्तांतरण पर भी लागू होता है। उदाहरण के लिए, A अपनी संपत्ति के स्वामित्व को औपचारिक रूप से सद्भावना के कार्य के नाते अपने बेटे B को हस्तांतरित करने के लिए एक उपहार विलेख का मसौदा तैयार कर सकता है। यह कानूनी दस्तावेज़ धन के प्रतिफल के बिना संपत्ति के हस्तांतरण की पुष्टि करता है, इसलिए हस्तांतरण विलेखों के लिए एक अच्छे उदाहरण के रूप में कार्य करता है।

विक्रय विलेख

विक्रय विलेख केवल उन लेनदेन पर लागू होता है जहां विशेष रूप से किसी संपत्ति का विक्रय होता है। विक्रय, जो एक प्रतिफल के बदले में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को संपत्ति के स्वामित्व का हस्तांतरण है, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1884 की धारा 54 के प्रावधानों द्वारा शासित होती है। उदाहरण के लिए, यदि A ने फैसला किया है की वह अपनी संपत्ति किसी और को, मान लें कि C, को एक विशिष्ट राशि के लिए बेचेगा, तो ऐसे में यह सत्यापित (वेरिफाई) करने के लिए कि स्वामित्व कानूनी रूप से हस्तांतरित किया गया था, एक विक्रय विलेख का उपयोग किया जाएगा।

अंतर्वस्तु (कंटेंट्स)

हस्तांतरण विलेख

हस्तांतरण विलेख की अंतर्वस्तु इस प्रकार है- 

  • संपत्ति की सीमाओं का निश्चित सीमांकन (डिमार्केशन)
  • मुख्तारनाम (पावर ऑफ अटॉर्नी) पर जानकारी (यदि कोई हो)
  • संपत्ति हस्तान्तरण का विवरण
  • दोनों पक्षों के शीर्षक
  • क्रेता और विक्रेता के हस्ताक्षर
  • स्पष्ट रूप से बताए गए नियम और शर्तें
  • बाधाओं का विवरण (यदि कोई हो)
  • गवाहों का विवरण और हस्ताक्षर
  • संपत्ति वितरण की विधि
  • हस्तांतरण की विशिष्ट तिथियाँ
  • हस्तांतरण की तारीख और समय का अत्यंत सावधानी से पालन करना होगा। 

श्रीमती जसवन्त कौर बनाम हरपाल सिंह (1977) के मामले में, जो मुद्दा उठाया गया था वह विरासत और उपहार विलेखों से संबंधित था। एक व्यक्ति ने अपनी संपत्ति अपनी पत्नी के नाम हस्तांतरित करने के लिए एक वसीयत लिखी थी, जो उसकी मृत्यु के बाद मेजर हरपाल सिंह के पास चली जाएगी। पत्नी ने संपत्ति प्राप्त करने के बाद, उपहार विलेख बनाकर इसे आगे विभाजित करना शुरू कर दिया था। अपीलकर्ता मेजर हरपाल सिंह ने इसका विरोध किया था। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के द्वारा यह निर्णय लिया गया था कि भले ही विलेख पति की मृत्यु के कई वर्षों बाद निष्पादित किया गया हो, यदि विलेख में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि संपत्ति एक विशिष्ट तिथि पर हस्तांतरित की जाएगी, तो इसे उस तारीख को और उसी तरीके से हस्तांतरित हुआ माना जाएगा जैसा उस वसीयत में बताया गया है।

विक्रय विलेख  

एक विक्रय विलेख में आम तौर पर निम्नलिखित जानकारी शामिल होती है-.  

  • विक्रय विलेख में संपत्ति का स्थान, पता और विवरण शामिल होता है।
  • इसमें स्टांप शुल्क और उसके भुगतान विवरण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी शामिल होती है।
  • विक्रय विलेख में शामिल पक्षों द्वारा सहमत नियमों और शर्तों की भी रूपरेखा दी गई होती है।
  • दोनों पक्षों के हस्ताक्षर के माध्यम से स्वीकृति के साथ विक्रय विलेख को कानूनी रूप से बाध्यकारी माना जाता है।

आवश्यक तत्व

हस्तांतरण विलेख 

नीचे उल्लिखित बिंदु आवश्यक तत्व हैं; इनके अभाव में, हस्तांतरण विलेख को पूर्ण नहीं माना जाता है।

पक्षों का विवरण 

किसी भी अन्य समझौते की तरह, एक हस्तांतरण विलेख के लिए विलेख के निष्पादन में शामिल पक्षों के विवरण की आवश्यकता होती है। इन विवरणों में पक्षों द्वारा पारस्परिक रूप से तय किए गए नाम, पता और निष्पादन के संबंध में जानकारी शामिल होती है। चूँकि हस्तांतरण विलेख में उपहार विलेख, वसीयत, बंधक विलेख और कई अन्य चीजें भी शामिल होती हैं, इसलिए ऐसे में विवरण मामले के आधार पर अलग-अलग होते हैं। 

तथ्यों और कारणों का बयान

विवरण में पक्षों द्वारा किए जा रहे अनुबंध के पीछे का कारण शामिल होता है। यह प्रस्तावना (प्रिएंबल) खंड होता है, और आम तौर पर, यह ‘जबकि’ से शुरू होता है। इन खंडों को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाना चाहिए ताकि समझौते के पीछे का उद्देश्य स्पष्ट हो सके। 

हस्तांतरण विवरण

इस खंड में अनिवार्य रूप से खरीद के सभी विवरण के साथ ही हस्तांतरण विलेख के माध्यम से किस प्रकार का हस्तांतरण किया जा रहा है के संबंध में भी विवरण शामिल होते हैं। यदि यह एक उपहार विलेख है, तो कोई प्रतिफल नहीं होगा, और यदि यह एक बंधक विलेख है, तो इसमें बंधक की गई संपत्ति के सभी विवरण और अन्य आवश्यक विवरण शामिल होंगे। बंधक विलेखों में, यदि बंधकग्रहीता (मॉर्टगेजी) ने ऋण नहीं चुकाया है तो बंधक कर्ता (मॉर्गेजर) के पास अधिकार होता है। साथ ही, बंधक विलेख में उल्लिखित शर्तों के अनुसार, बंधक की गई संपत्ति का उपयोग ऋण के पुनर्भुगतान के लिए प्रतिभूति (सिक्योरिटी) के रूप में किया जाता है। 

खंड 

हस्तांतरण विलेख में हस्तांतरण के प्रकार के आधार पर कई खंड शामिल होते हैं। प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर अलग अलग खंड तैयार किए जाते हैं। विवाद समाधान खंड, अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) और वारंटी खंड जैसे अन्य आवश्यक खंड भी हर प्रकार के हस्तांतरण विलेख में मौजूद होते हैं।

नोटरी या रजिस्ट्री का विवरण 

एक हस्तांतरण विलेख पंजीकृत (रजिस्टर) या नोटरीकृत होना चाहिए। इसे नोटरी कार्यालय द्वारा उस स्थान पर नोटरीकृत किया जा सकता है जहां अनुबंध तैयार किया जा रहा है या उप-रजिस्ट्रार के कार्यालय में भी इसे नोटरीकृत कराया जा सकता है।

सत्यापन (वेरिफिकेशन)

हस्तांतरण विलेख पर उन लोगों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए जो अनुबंध के पक्षकार हैं। इसके साथ ही, यह सुनिश्चित करने के लिए कि लेनदेन पक्षों की स्वतंत्र इच्छा से शुरू किया गया था, गवाहों के हस्ताक्षर भी बहुत महत्वपूर्ण है।  

विक्रय विलेख 

एक विक्रय विलेख, आम तौर पर निष्पादन की तारीख और समय के साथ-साथ पक्षों के नाम, किए जाने वाले किसी भी प्रतिनिधित्व के विवरण के साथ शुरू होता है और उसके बाद, इसमें संबंधित कानून के अनुसार आवश्यक खंडों का उल्लेख किया जाता है। आवश्यक खंडों का उल्लेख इस प्रकार है:- 

स्टाम्प विवरण

विक्रय विलेख प्रारूप (फॉर्मेट) के शीर्ष भाग पर रजिस्ट्रार और उप-रजिस्ट्रार की स्टांप और मुहर होती है। स्टाम्प शुल्क और मुहर बेची जा रही संपत्ति के मूल्य और प्रत्येक राज्य के स्थानीय कानूनों पर निर्भर करती है। विलेखों के लिए स्टाम्प पेपर पर राशि और भुगतान करने वाले पक्ष के बारे में विवरण, भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 28 और 29 द्वारा निर्धारित किए जाते है। स्टांप ड्यूटी सर्कुलर रेट (स्टांप ड्यूटी रेट) या संपत्ति के वास्तविक मूल्य से अधिक होने पर लगाई जाती है। राज्य के आधार पर स्टाम्प ड्यूटी 3 से 10% तक हो सकती है। उदाहरण के लिए, दिल्ली में स्टांप शुल्क की दर पुरुषों के लिए 6%, महिलाओं के लिए 4% और संयुक्त स्वामित्व के लिए 5% तक है।

विक्रय विलेख में पक्षकार

विक्रय विलेख में क्रेता और विक्रेता दोनों का विवरण महत्वपूर्ण होता है। इसमें नाम, उम्र, पिता का नाम, पता आदि शामिल होता है। इसमें मुख्तरनामा, या कानूनी प्रतिनिधित्व या किसी अन्य जानकारी के बारे में कोई जानकारी जिसके द्वारा वे विक्रय के लिए अनुबंध में प्रवेश करने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं भी शामिल होती है। व्यक्ति एक न्यायिक व्यक्ति होना चाहिए; यह कोई अपंजीकृत फर्म या फर्जी व्यक्ति नहीं हो सकता है। 

संपत्ति का विवरण

सभी पक्षों पर संपत्ति की सीमाओं के विवरण के साथ-साथ किसी भी ऋणभार (एनकंबरेंस) या किसी बंधक के विवरण का उल्लेख किया जाना चाहिए। संपत्ति की प्रकृति, यानी कि संपत्ति एक भूखंड (प्लॉट) है, या एक घर है, एक इमारत है या एक वाणिज्यिक (कमर्शियल) संपत्ति है, इस बारे में स्पष्ट रूप से निर्धारण किया जाना चाहिए। सटीक स्थान, पता और घर का नंबर, कारपेट क्षेत्र और कमरों के साथ, अधिमानतः (प्रिफरेबली) उल्लेख किया जाना चाहिए। पक्षकारों की सुविधा हेतु अनुमोदित मानचित्र (मैप) एवं फोटो को भी संलग्न (अटैच) किया जाना चाहिए।

प्रतिफल और भुगतान विवरण

इसमें प्रतिफल और भुगतान अनुसूची के विवरण वाले खंडों का उल्लेख किया जाना चाहिए। प्रतिफल वह कीमत होती है जो संपत्ति के बदले में चुकाई जाती है। भुगतान की विधि, चाहे वह चेक हो, नकद हो, डिमांड ड्राफ्ट के द्वारा हो, किश्तें हों, भुगतान का कोई ऑनलाइन तरीका हो या ऋण के माध्यम से हो, उस खंड में उल्लिखित होना चाहिए। संपत्ति के मूल दस्तावेज सौंपने की तारीख का भी उल्लेख किया जाना चाहिए है। यदि कोई अग्रिम भुगतान करना हो तो उसके साथ एक पावती (एक्नोलेजमेंट) रसीद भी संलग्न होनी चाहिए। संपत्ति में किसी भी दोष या खराबी की सूचना भी इस खंड में दी जानी चाहिए।

शीर्षक का हस्तांतरण 

शीर्षक खंड के हस्तांतरण में पिछले मालिक के शीर्षक का त्याग शामिल होता है और साथ ही नए मालिक को संपत्ति का आनंद लेने का पूरा अधिकार मिलता है।  

अन्य खंड 

कुछ महत्वपूर्ण खंड जैसे किसी पक्ष द्वारा दोष के मामले में क्षतिपूर्ति (इंडेमनिटी) खंड, विक्रय का गवाह, पक्षों के अधिकारों वाला खंड, संपत्ति की वारंटी के संबंध ने खंड, और विवाद समाधान के लिए खंड जिसमें वह विधि शामिल होती है जिसके द्वारा विवाद का  समाधान किया जाना चाहिए, यह सब भी विक्रय विलेख में मौजूद होते है।  

परिशिष्टों (एनेक्सचर) 

विलेख का अंतिम भाग यह है कि इसमें पहचान, फोटो, भुगतान की रसीद, मानचित्र आदि का विवरण शामिल होना चाहिए। परिशिष्टों को खंड में उल्लिखित विवरण और तथ्यों के साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

पंजीकरण 

कोई भी विलेख पंजीकृत होने के बाद ही निष्पादित किया जा सकता है। इसलिए किसी विलेख का पंजीकरण कराना आवश्यक हो जाता है। विलेखों का पंजीकरण भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1899 की धारा 17 के तहत दिए गए प्रावधानों के अनुसार किया जाता है।

हस्तांतरण विलेख 

जिस राज्य में हस्तांतरण विलेख निष्पादित किया गया है, उस राज्य के नियम और कानून इसके पंजीकरण को नियंत्रित करते है।

  • घोषणा और हस्ताक्षर: कुछ राज्यों में, एक प्रमाणित वकील और जिस व्यक्ति ने हस्तांतरण विलेख लिखा है को, उसे अंतिम रूप से निष्पादित होने से पहले विलख की सटीकता और प्रामाणिकता (ऑथेंसिटी) को प्रमाणित करते हुए एक घोषणा पर हस्ताक्षर करना होगा। इसके अलावा, अपंजीकृत दस्तावेज़ में वह टोकन नंबर होना आवश्यक है जो संबंधित निकाय ने विलेख के साथ संलग्न किया गया है।
  • भुगतान का प्रमाण: यदि हस्तांतरण विलेख एक उपहार विलेख नहीं है, तो हस्तांतरण विलेख के साथ पंजीकरण शुल्क और किसी भी प्रासंगिक कर के लिए वैध प्रतिफल शामिल होना चाहिए।
  • पहचान प्रमाण: लेन-देन में गवाहों और हस्तांतरणकर्ता (ट्रांसफरर) और हस्तांतरी (ट्रांसफरी) सहित सभी प्रतिभागियों को वैध और सत्यापन योग्य पहचान प्रमाण प्रदान करना होगा।
  • विलेख का मसौदा: हस्तांतरण विलेख में संपत्ति के हस्तांतरण के बारे में सभी प्रासंगिक जानकारी शामिल होनी चाहिए, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं-
  1. संपत्ति हस्तांतरण की विधि स्पष्ट रूप से बताई जानी चाहिए।
  2. पक्षों द्वारा सहमत विशिष्ट हस्तांतरण तिथियां का विवरण शामिल होना चाहिए।
  3. कोई अन्य आवश्यक औपचारिकताएं जिन्हें आवंटित (एलोटेड) समय सीमा के अंदर पूरा किया जाना आवश्यक है।
  • मूल दस्तावेज़: हस्तांतरित की जा रही संपत्ति के मूल दस्तावेज़ प्रस्तुत किए जाने चाहिए। इसमें संपत्ति से संबंधित सभी पिछले प्रमाणपत्र (सर्टिफिकेट) और रिकॉर्ड शामिल होते हैं। इसके अलावा, यह प्रदर्शित करने के लिए वैध दस्तावेज दिखाए जाने चाहिए कि संपत्ति ग्रहणाधिकार (लिएन) और असहमति से मुक्त है।
  • गवाह: यह सत्यापित करने के लिए कि वह विलेख सही ढंग से निष्पादित किया गया है, इसमें शामिल दोनों पक्षों के गवाहों को आदर्श रूप से उपस्थित होना चाहिए।

विक्रय विलेख 

  • दस्तावेज़ तैयार करना: पंजीकृत होने के लिए विक्रय विलेख सही ढंग से लिखा और मुद्रित (प्रिंट) होना चाहिए।
  • मूल दस्तावेज़: उप-रजिस्ट्रार कार्यालय को निम्नलिखित जानकारी प्राप्त होनी चाहिए:
  1. बेचने का समझौता: संपत्ति बेचने के कानूनी समझौते को बेचने का समझौता कहा जाता है, जो शुरुआत में विक्रेता द्वारा पेश किया जाता था।
  2. आवंटन पत्र: संपत्ति के प्रारंभिक आवंटन पत्र के बारे में जानकारी। 
  3. शीर्षक दस्तावेज़: किसी विलेख को पंजीकृत करने के लिए संपत्ति मालिकों के विधिवत निष्पादित और कानूनी शीर्षक दस्तावेजों की आवश्यकता होती है।
  4. पंजीकृत समझौता: विक्रेता द्वारा संपत्ति के संबंध में किए गए सभी पहले के पंजीकरणों की प्रतियों को पंजीकरण के समय प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  5. कर की रसीदें: संपत्ति के मूल कर की कर रसीदों को पंजीकरण के समय प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  6. नवीनतम (रीसेंट) सुविधाओं के बिल: संपत्ति की सुविधाओं के लिए नवीनतम बिलों की प्रतियो को पंजीकरण के लिए अन्य दस्तावेजों के साथ संलग्न किया जाना चाहिए।
  7. संघ का प्रमाण पत्र: किसी अपार्टमेंट या फ्लैट को बेचने या दोबारा बेचने के लिए इस प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है। यह अपार्टमेंट संघ द्वारा दिया जाता है। संघ प्रमाण पत्र पहले ही प्राप्त कर लिया जाना चाहिए और पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  8. पहचान प्रमाण: गवाहों और कार्य में लगे लोगों के द्वारा उचित पहचान प्रमाण प्रदान किया जाना चाहिए।
  • एक गैर-आपत्ति प्रमाणपत्र (एन.ओ.सी.): एन.ओ.सी. नगर पालिका, सोसायटी (फ्लैटों की विक्रय के मामले में) या किसी अन्य प्रासंगिक प्राधिकारी या जैसा भी मामला हो, के द्वारा जारी किया गया एक दस्तावेज है। इसे विलेख की मंजूरी के लिए पंजीकरण के समय प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • कोई भी अन्य प्रासंगिक दस्तावेज़: कोई भी अतिरिक्त दस्तावेज़ जो उस क्षेत्र में राज्य के स्थानीय नियमों के अनुसार है जहां विक्रय हो रहा है, उसे रजिस्ट्रार को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • सत्यापन और पंजीकरण: विक्रय विलेख के सत्यापन और पंजीकरण प्रक्रिया के लिए सभी आवश्यक प्रक्रियाओं को पूरा करने और ऊपर उल्लिखित संलग्न दस्तावेज के अनुमोदन की आवश्यकता होती है। 
  • पंजीकरण का खर्च: शुल्क दोनों पक्षों में से किसी एक द्वारा वहन किया जा सकता है। पक्षों  को निम्नलिखित का भुगतान करना होगा: 
  1. स्टाम्प शुल्क
  2. रजिस्ट्रार कार्यालय में पंजीकरण की लागत।

अतिव्यापी (ओवरलैपिंग) पहलू

विक्रय विलेख और हस्तांतरण विलेख के बीच कुछ अंतर मौजूद हैं। हालाँकि, इन दोनो के बीच कुछ अतिव्यापी पहलू भी हैं। हस्तांतरण विलेख एक व्यापक शब्द है, और इसमें हस्तांतरण लेनदेन के लिए सभी प्रकार के विलेख शामिल होते हैं। विक्रय विलेख भी एक प्रकार का हस्तांतरण विलेख ही है, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक विक्रय विलेख एक हस्तांतरण विलेख है, लेकिन प्रत्येक हस्तांतरण विलेख एक विक्रय विलेख नहीं है। 

हस्तांतरण विलेख और विक्रय विलेख के बीच अंतर 

किसी भी प्रकार के रियल एस्टेट लेनदेन में विक्रय विलेख और हस्तांतरण विलेख का परस्पर उपयोग किया जाता है। हालाँकि, इनके बीच कुछ स्पष्ट अंतर हैं। 

संख्या आधार  विक्रय विलेख  हस्तांतरण विलेख
प्रकृति इस में मौद्रिक प्रतिफल के बदले में संपत्ति के स्वामित्व का हस्तांतरण  एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को किया जाता है। इसमें संपत्ति का स्वामित्व एक पक्ष से दूसरे पक्ष को हस्तांतरित किया जाता है, लेकिन इसमें जरूरी नहीं कि मौद्रिक प्रतिफल शामिल हो। यह उपहार या विनिमय के माध्यम से भी हो सकता है।
2. प्रतिफल  इसमें पैसे के माध्यम से विक्रय या विक्रय के मूल्य के बदले विनिमय शामिल होता है, जिसका भुगतान खरीदार द्वारा विक्रेता को किया जाता है। इसमें आवश्यक रूप से मौद्रिक प्रतिफल शामिल नहीं होता है। यह हस्तांतरण के प्रकार पर निर्भर करता है। 
3. शासकीय कानून यह माल का विक्रय अधिनियम 1930, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882, भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 और भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1908 के द्वारा शासित होता है। यह भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1908, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882 और भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 के द्वारा शासित होता है। 
4. पंजीकरण  इस विलेख को भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 के अनुसार अनिवार्य रूप से पंजीकृत होना चाहिए। इस विलेख को आम तौर पर पंजीकरण की आवश्यकता होती है, या यह एक अपूर्ण विलेख बन जाता है। वसीयत पंजीकृत हो भी सकती है और नहीं भी। 
5. प्रकार  इस विलेख का उपयोग विशेष रूप से अचल संपत्ति के लिए किया जाता है। इसमें हस्तांतरण की व्यापक श्रेणी होती है, जिसमें विक्रय, उपहार, विनिमय, पट्टे, वारंटी आदि शामिल होते हैं।
6. उद्देश्य: यह विलेख विशेष रूप से विक्रय लेनदेन के उद्देश्य के लिए बनाया जाता है। यह हस्तांतरण के उद्देश्यों के लिए बनाया गया है।

ऐतिहासिक मामले 

नरिंदर सिंह राव बनाम ए.वी.एम. महिंदर सिंह राव (2013)

तथ्य 

इस मामले में नरिंदर सिंह राव की एक संपत्ति विवाद में थी। विचाराधीन संपत्ति राव गजराज सिंह की थी, और उन्होंने एक दस्तावेज तैयार किया था जिसमें कहा गया था कि उनकी पत्नी और उनमें से जो भी जीवित रहेगा, उसे संपत्ति विरासत में मिलेगी। इसे केवल उसकी बहन और एक गवाह ने प्रमाणित किया था। 

राव गजराज सिंह के निधन के बाद उनकी पत्नी सुमित्रा देवी संपत्ति की मालिक बन गईं थी। उन्होंने इस पर कई दुकानें बनवाईं और इसे किराये पर दे दिया था। अपने निधन से पहले, उनके द्वारा एक वसीयत लिखी गई थी और सारी संपत्ति उनके आठ बच्चों में से एक नरिंदर के नाम कर दी गई थी। अन्य चार जीवित भाई-बहनों ने इसे अदालत के समक्ष चुनौती दी थी। निचली और उच्च अदालतों ने माना कि वसीयत वैध थी, इसलिए मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष गया था।

मामले में शामिल मुद्दे 

इस मामले में शामिल मुद्दा यह था कि क्या सुमित्रा देवी और राव गजराज सिंह द्वारा निष्पादित वसीयत वैध थी या नहीं।

निर्णय 

सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा यह माना गया था कि सुमित्रा देवी द्वारा निष्पादित वसीयत वैध थी। हालाँकि, उनके पति राव गजराज सिंह द्वारा निष्पादित वसीयत वैध नहीं थी, क्योंकि इसमें उचित सत्यापन नहीं था और केवल एक गवाह के ही हस्ताक्षर थे। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति की संपत्ति का हिस्सा 1/9वां निर्धारित किया गया था और सुमित्रा देवी का 1/9वां हिस्सा नरिंदर सिंह को अतिरिक्त रूप से दे दिया गया था। इस मामले के द्वारा हस्तांतरण विलेख में सत्यापन के महत्व पर प्रकाश डाला गया था और कहा गया था कि कोई भी विलेख दो हस्ताक्षरों के बिना अधूरा है। 

केवल कृष्णन बनाम राजेश कुमार और अन्य (2021)

तथ्य 

केवल कृष्णन बनाम राजेश कुमार और अन्य के मामले में, कुछ संपत्ति का स्वामित्व केवल कृष्णन (अपीलकर्ता) और सुदर्शन कुमार (प्रतिवादी (डिफेंडेंट)) के पास संयुक्त रूप से था। अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवादी के पक्ष में एक मुख्तरनामा (पावर ऑफ अटॉर्नी) निष्पादित किया गया था ताकि उसकी ओर से सभी लेनदेन उसके द्वारा निपटाए जा सकें। उत्तरदाताओं ने संयुक्त रूप से स्वामित्व वाली संपत्ति के लिए अपने बेटे और उसकी पत्नी के पक्ष में धोखाधड़ी से दो विक्रय विलेख निष्पादित किए, जो समान रूप से अपीलकर्ता के भी थे। यह मामला सबसे पहले विचारणीय (ट्रायल) अदालत में उठाया गया था, लेकिन यहां पर अपीलकर्ताओं को कोई राहत नहीं मिली थी। फिर इसके बाद मामला फिर से जिला न्यायालय के समक्ष उठाया गया था, जहां विक्रय विलेखो को रद्द कर दिया गया था, और इसलिए उत्तरदाता (रिस्पोंडेंट) पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय गए, जहां पर यह निर्णय दोहराया गया था। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अंतिम अपील दायर की गई थी।

मामले में शामिल मुद्दा

इस मामले में मुद्दा यह उठाया गया था कि क्या विक्रय विलेख बिना किसी प्रतिफल के निष्पादित किये गये थे, और यदि हां, तो क्या यह अमान्य हो जायेगा?

निर्णय 

सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा यह माना गया था कि सुदर्शन कुमार ऐसा कोई सबूत पेश करने में विफल रहे हैं, जिससे पता चलता हो कि विक्रय विलेख किसी प्रतिफल के बदले में निष्पादित किए गए थे, क्योंकि न तो उनकी पत्नी और न ही उनके बच्चे काम कर रहे थे, और बिना किसी प्रतिफल के कोई विक्रय नहीं हो सकता है। वे यह दिखाने में भी असफल रहे कि प्रतिफल का भुगतान करने का कोई इरादा था क्योंकि इसका भुगतान बाद की तारीखों में भी नहीं किया जाना था। इसके अलावा, यह भी माना गया कि विक्रय विलेखों को नजरअंदाज किया जाना चाहिए क्योंकि वे शून्य हैं, और अपीलकर्ता के पास अभी भी संपत्ति के आधे से अधिक अविभाजित हिस्सा होगा। यह विक्रय विलेख के संबंध में ऐतिहासिक मामलों में से एक है, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि बिना किसी प्रतिफल के कोई विक्रय नहीं हो सकता है, और यदि कोई विक्रय विलेख इस तरह के विक्रय के परिणामस्वरूप किया जाता है, तो इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। 

सैयद अफ़सर पाशा क़ादरी बनाम तेलंगाना राज्य (2021)

तथ्य 

सैयद अफ़सर पाशा क़ादरी बनाम तेलंगाना राज्य के मामले में, याचिकाकर्ता के द्वारा अग्रिम जमानत की मांग की गई थी, और शर्तों में से एक विक्रय विलेख के पंजीकरण को रद्द करना और प्रतिवादियों को प्रतिफल राशि वापस करना था। यह जमानत याचिका तेलंगाना उच्च न्यायालय के सामने थी, जिसने उन्हें अपना विक्रय विलेख रद्द करने का आदेश दिया था। इसलिए, याचिकाकर्ता जमानत की इस शर्त को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में गए थे। 

मामले में शामिल मुद्दा

इस मामले में मुद्दा यह था कि विक्रय पत्र निरस्त (कैंसिल) करने की शर्त वैध है या नहीं। 

निर्णय 

याचिकाकर्ता को पुलिस के साथ सहयोग करने के वादे पर जमानत दी गई थी, और यह माना गया कि शर्त वैध नहीं थी क्योंकि “आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश के कथित अनुपालन में उक्त दस्तावेज़ के एक पक्ष द्वारा एक पंजीकृत विक्रय विलेख को एकतरफा रूप से निरस्त नहीं किया जा सकता है और इससे खरीददारों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जो उच्च न्यायालय के समक्ष एक पक्ष नहीं हैं।” 

कानूनी प्रतिनिधि के माध्यम से दामोधर नारायण सावले (मृत) बनाम श्री तेजराव बाजीराव म्हस्के और अन्य (2023) 

तथ्य 

कानूनी प्रतिनिधि के माध्यम से दामोधर नारायण सावले (मृत) बनाम श्री तेजराव बाजीराव म्हस्के और अन्य के मामले में, दो प्रतिवादियों ने वादी को जमीन का एक टुकड़ा बेच दिया था। वादी द्वारा भूमि पर कब्ज़ा कर लेने के बाद, दूसरे प्रतिवादी ने वादी के कब्ज़े में बाधा डालना शुरू कर दिया था, जिससे कानूनी विवाद पैदा हो गया। निचली अदालत ने शुरू में मामले को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि विक्रय विलेख अमान्य था। यह विवाद 2 एकड़ और 20 गुंटा संपत्ति के हस्तांतरण के इर्द-गिर्द घूमता है। विक्रय विलेख के अनुसार, एक एकड़ भूमि को जिला न्यायालय की आवश्यक अनुमति के बिना विभाजित किया गया था। महाराष्ट्र विखंडन (फ्रैगमेंटेशन) निवारण और जोत समेकन (कंसोलिडेशन ऑफ होल्डिंग) अधिनियम, 1947 की धारा 8 के अनुसार, इस विभाजन को गैरकानूनी विखंडन माना जाता है। इसके अनुसार उपरोक्त अधिनियम की धारा 9 के तहत विक्रय पत्र को निरस्त कर दिया गया था और विलेख को एक दिखावटी दस्तावेज़ घोषित किया गया था। इस निर्णय को प्रथम अपीलीय अदालत ने उलट दिया था, जिसने वादी का पक्ष लिया। मामला आगे चलकर बॉम्बे उच्च न्यायालय में गया, जिसने प्रतिवादियों के पक्ष में फैसला सुनाया, क्योंकि प्रतिवादियों ने दावा किया था कि विक्रय विलेख वादी को केवल बंधक उद्देश्यों के लिए सुरक्षा के रूप में दिया गया था। आख़िरकार मामला सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया था।

मामले में शामिल मुद्दा 

इस मामले में शामिल मुद्दा यह था कि क्या विक्रय विलेख वैध था और यदि वैध है, तो विक्रय लेनदेन में विक्रय विलेख का क्या महत्व है। 

निर्णय 

सर्वोच्च न्यायालय ने वादी की अपील को स्वीकार कर लिया, प्रथम अपीलीय अदालत के फैसले को बरकरार रखा था और विचारणीय न्यायालय और बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेशों को रद्द कर दिया था। शीर्ष अदालत ने यह माना था कि भारतीय पंजीकरण अधिनियम की धारा 17 के साथ संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 54 का प्राथमिक लक्ष्य, स्वामित्व अधिकार स्पष्ट करने के लिए 100 रुपये से अधिक मूल्य की अचल संपत्ति की विक्रय को पंजीकृत करना है। पक्षों के द्वारा विक्रय को पूरा करने की इच्छा स्पष्ट है, यह देखते हुए कि विचाराधीन संपत्ति का विक्रय उचित रूप से तैयार और रिकॉर्ड किए गए विक्रय दस्तावेज़ के माध्यम से पूरा किया गया था, जिससे सौदा वैध हो गया था। एक विक्रय विलेख स्वचालित रूप से वैधता का संकेत देता है और एक वास्तविक और प्रामाणिक लेनदेन का संकेत देता है।

निष्कर्ष 

संपत्ति लेनदेन में विक्रय विलेख और हस्तांतरण विलेख दोनों आवश्यक दस्तावेज होते हैं। हस्तांतरण विलेख पक्षों के लिए संपत्ति के स्वामित्व को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित करना आसान बनाता है, जबकि विक्रय विलेखो का उपयोग आम तौर पर विक्रय लेनदेन में किया जाता है। दोनों विलेखो के लिए, भविष्य की समस्याओं को रोकने के लिए सावधानीपूर्वक तैयारी और उचित पंजीकरण आवश्यक होता है। अंत में, संपत्ति हस्तांतरण प्रक्रिया में सभी हितधारकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए इन दस्तावेजों का सावधानीपूर्वक कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) महत्वपूर्ण है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

हस्तांतरण विलेख और विक्रय विलेख कौन तैयार करता है?

हस्तांतरण विलेख और विक्रय विलेख की तैयारी आमतौर पर एक अनुभवी वकील या अधिवक्ता या विलेख लेखक द्वारा की जाती है। उनके पास इन विलेखों का मसौदा तैयार करने में विशेषज्ञता और अनुभव होता है। 

क्या विक्रय विलेख ऑनलाइन निष्पादित किया जा सकता है?

नहीं, विक्रय विलेख ऑनलाइन निष्पादित नहीं किया जाता है। विलेख के पंजीकरण के लिए उप रजिस्ट्रार के कार्यालय का दौरा करना अनिवार्य है। किसी भी समस्या से बचने और परेशानी मुक्त पंजीकरण सुनिश्चित करने के लिए कोई भी व्यक्ति ई-पंजीकरण करवा सकता है और समय से पहले अपॉइंटमेंट ले सकता है। यह राज्यों के नियमों पर भी निर्भर करता है। महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों ने ऑनलाइन पंजीकरण की अनुमति दी है। 

यदि कोई हस्तांतरण विलेख या विक्रय विलेख खो जाए या चोरी हो जाए तो क्या करें?

यदि हस्तांतरण विलेख या विक्रय विलेख खो जाती है या चोरी हो जाती है, तो व्यक्ति को निकटतम पुलिस स्टेशन में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) दर्ज करानी चाहिए। इसके बाद समाचार पत्र में एक सूचना देनी होगी, जिसमें से एक सूचना स्थानीय भाषा में होनी चाहिए। अगला कदम स्टांप पेपर पर एक हलफनामा (एफिडेविट) तैयार करना और इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट और विज्ञापन की एक प्रति के साथ संलग्न करना है। अंतिम चरण उप रजिस्ट्रार के कार्यालय का दौरा करना और दस्तावेज जमा करना और डुप्लिकेट विक्रय विलेख प्राप्त करने के लिए शुल्क का भुगतान करना है, और सत्यापन के बाद, एक नया विलेख जारी किया जाएगा। 

क्या किसी विलेख को अदालत में चुनौती दी जा सकती है?

यदि किसी विलेख की वैधता या वैधानिकता पर सवाल उठाया जाता है तो उसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है। किसी विलेख को तब चुनौती दी जा सकती है यदि वह धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, गलती, कानूनी आवश्यकताओं का अनुपालन न करने, स्वामित्व विवाद या कानून के उल्लंघन के तहत दर्ज या निष्पादित किया गया हो। विलेख को केवल विलेख के लेनदेन में शामिल पक्षों द्वारा चुनौती दी जा सकती है। तो, इसमें विक्रेता और खरीदार शामिल होते हैं। लोकस स्टैंडी का नियम अर्थात् “किसी विवादित मामले से अनजान व्यक्ति को न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती” यहाँ भी दिखाई देता है, और केवल वे पक्ष जो विलेख से प्रभावित हैं, विलेख को चुनौती दे सकते हैं। किसी और के पास शक्ति नहीं है, यहां तक ​​कि रजिस्ट्रार के पास भी नहीं, लेकिन एक रजिस्ट्रार व्यक्तियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकता है और आपराधिक मामला दर्ज कर सकता है यदि पक्षों ने गलत जानकारी के आधार पर विलेख को भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1908 की धारा 68 के तहत चुनौती देने या निरस्त करने के लिए पंजीकृत किया है।

क्या हस्तांतरण विलेख और विक्रय विलेख को निरस्त किया जा सकता है?

पंजीकृत विलेख को निरस्त नहीं किया जा सकता। इसे केवल न्यायालय के आदेश से ही निरस्त किया जा सकता है। विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 31 में कहा गया है कि एक विलेख निरस्त किया जा सकता है यदि यह आशंका हो कि विलेख किसी एक पक्ष को चोट पहुंचाएगा। धारा 32 में कहा गया है कि यदि विलेख भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 के प्रावधानों के तहत पंजीकृत किया गया है तो अदालत किसी विलेख को आंशिक या पूर्ण रूप से निरस्त करने की अनुमति दे सकती है, और फिर उप-रजिस्ट्रार के कार्यालय को विलेख को निरस्त करने के लिए एक नोटिस भी भेजा जाता है। धारा 33 विलेख को निरस्त करने के लिए प्रदान किए जाने वाले मुआवजे का प्रावधान करती है। 

संदर्भ 

 

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