वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972, और भारत में वन्य जीवों की सुरक्षा में इसका प्रभाव

0
9840
wildlife protection act
Image Source- https://rb.gy/qfdezf

यह लेख नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची की छात्रा Gursimran Kaur Bakshi और रमैया इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल स्टडीज से J. Suparna Rao द्वारा लिखा गया है। यह लेख वन्य जीव संरक्षण अधिनियम (वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट), 1972 का विश्लेषण प्रदान करता है और यह विश्लेषण करता है कि इसने भारत में वन्य जीव संरक्षण के विकास को कैसे प्रभावित किया है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है। 

Table of Contents

परिचय 

हर साल 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। इस साल दुनिया ने 51वां पृथ्वी दिवस मनाया, जिसका विषय था ‘हमारी पृथ्वी को बहाल (रिस्टोर) करना‘। भारत ने भी इस दिन को मनाया। लेकिन इसी साल भारत में लॉकडाउन के दौरान वन्य जीवों का शिकार कैसे दोगुना हो गया है, इसकी भी खबर सामने आई थी। यह विषय को वास्तव में यथार्थवादी (रियलिस्टिक) बनाता है क्योंकि यह दर्शाता है कि हमने धरती माँ से संपर्क खो दिया है। 

टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2012) के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक उद्धरण (कोट) का उल्लेख किया, “ब्रह्मांड अपने प्राणियों के साथ भगवान का है। कोई भी प्राणी किसी से श्रेष्ठ नहीं है। मनुष्य को प्रकृति से ऊपर नहीं होना चाहिए। किसी एक प्रजाति को अन्य प्रजातियों के अधिकारों और विशेषाधिकारों (प्रिविलेज) का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। “

इस उद्धरण को एक कारण के लिए संदर्भित किया गया था। यह कारण, पर्यावरण और इसके घटकों के संरक्षण और सुरक्षा के सर्वोत्कृष्ट (क्विंटेसेंशियल) महत्व पर जोर देना था। प्रकृति निर्माता होने के साथ साथ संहारक (डेस्ट्रॉयर) भी है। 

चार्ल्स डार्विन के अनुसार, केवल योग्यतम (फिटेस्ट) ही जीवित रहते है। एक निर्माता के रूप में, प्रकृति जीवन को बनाए रखने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) में वनस्पतियों (फ्लोरा) और जीवों के माध्यम से मौजूद है। हालांकि, पिछले कुछ दशकों में, मानव जाति ने ऐसे परिवर्तन पेश किए हैं जो वनस्पतियों और जीवों दोनों के अस्तित्व के लिए हानिकारक हैं। 

ये ज्यादातर कृत्रिम (आर्टिफिशियल) परिवर्तन हैं जिन्होंने निश्चित रूप से प्रकृति के काम करने के तरीके में हस्तक्षेप किया है। इसके परिणामस्वरूप जलवायु (क्लाइमेट) परिवर्तन, जानवरों के प्राकृतिक आवासों (हैबिटेट) में बदलाव और वनों की कटाई के कारण प्रदूषण हुआ हैं। 

पहले, मानव सभ्यता और वनस्पतियों और जीवों के बीच कुछ सीमाएँ मौजूद थीं। लेकिन पर्यावरण में अप्राकृतिक परिवर्तनों ने अब उस सीमा को कम कर दिया है जिसके परिणामस्वरूप मानव-वन्य जीव के बीच संघर्ष हुआ है। यही कारण है कि वन्य प्राणी अब अक्सर अपने आवास से बाहर घूमते हुए पाए जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्यों ने मौजूद संतुलन में बाधा डाली है। 

आइए उन कानूनों को समझते हैं जो भारत में वन्य जीवों के संरक्षण और सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। 

भारत में वन्य जीवों का संरक्षण

भारत में, वन्य जीव के संरक्षण और सुरक्षा को वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (‘अधिनियम’) के तहत देखा जाता है। यह अधिनियम उस समय का एक परिणाम है जब न्यायिक सक्रियता (ज्यूडिशियल एक्टिविज्म) के कारण भारत में पर्यावरणीय न्यायशास्त्र (ज्यूरिस्प्रूडेंस) तेजी से विकसित हो रहा था। 

यह अधिनियम इस बात को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था कि पिछले सभी कानून जैसे जंगली पक्षी और पशु संरक्षण अधिनियम, 1912 अपर्याप्त थे। वर्तमान अधिनियम व्यापक है और पहले के कानूनों में मौजूद सभी कमियों को शामिल करता है। 

हालांकि, वर्तमान कानून में अभी भी काफी कमियां मौजूद हैं। सैद्धांतिक (थियोरिटिकल) कानून और इसके व्यावहारिक कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) के बीच एक खालीपन है। इसके अलावा, नौकरशाही (ब्यूरोक्रेटिक) के हस्तक्षेप के कारण अधिनियम के उद्देश्य को भी कम कर दिया गया है। 

वन्य जीव संरक्षण पर संवैधानिक ढांचे का अवलोकन 

वन्य जीवन, वन और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए संवैधानिक ढांचा भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौजूद है। जीवन के अधिकार में स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण में रहने का अधिकार शामिल है। 

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (डायरेक्टिव प्रिंसिपल) का अनुच्छेद 48A पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण और वन और वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए राज्य पर एक गैर-बाध्यकारी दायित्व डालता है। अनुच्छेद 51A (g) भी नागरिकों पर देश के जंगल, वन्य जीवन, नदियों और जानवरों की रक्षा के लिए एक गैर-बाध्यकारी दायित्व डालता है। 

42वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 1976 द्वारा समवर्ती (कंकरेंट) सूची की प्रविष्टि (एंट्री)17B के तहत ‘वन’ शब्द और प्रविष्टि 17A के तहत वन्य जीवों और पक्षियों के संरक्षण को जोड़कर केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा इन दायित्वों को पूरा किया गया है। 

ऐसे कानूनों का एक समूह है जो पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीवन से संबंधित हैं जो हैं:

भारत के कुछ लोकप्रिय वन्य जीव अभ्यारण्य (सैंक्चुअरी)

  1. कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (नैशनल पार्क), उत्तराखंड
  2. रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान
  3. बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, कर्नाटक
  4. केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान
  5. नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, कर्नाटक
  6. सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान
  7. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, असम।

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 का अवलोकन

यह अधिनियम मॉडल कानून का एक छोटा सा हिस्सा है जो अधिनियम के तहत मौजूद अनुसूची के अनुसार निर्दिष्ट पक्षियों और जानवरों को कवर करता है। इसने राज्य सरकारों को धारा 3 के अनुसार जानवरों और पक्षियों की रक्षा और संरक्षण करने की शक्ति दी है। धारा 3 के तहत जानवरों को पकड़ना, मारना, बेचना, खरीदना, और साथ ही साथ उनके पक्षति (प्लमेज) (पंख) को रखना भी प्रतिबंधित है। 

धारा 4 के तहत धारा 3 को छूट दी गई है, लेकिन तभी जब राज्य सरकार की यह राय हो कि उपर्युक्त उपाय वैज्ञानिक अनुसंधान (साइंटिफिक रिसर्च) के हित में हैं। एक व्यक्ति को प्रतिबंधों के अधीन, यदि कोई हो तो, लाइसेंस प्रदान किया जा सकता है। 

एक और अपवाद धारा 3 के तहत उपलब्ध था। जहां अपवाद में एक व्यक्ति को खुद की आत्मरक्षा (सेल्फ डिफेंस) के लिए, या संपत्ति की आत्मरक्षा के लिए जानवरों को मारने या पकड़ने और उनके जन्म पर नियंत्रण रखने की अनुमति दी गई है। 

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1) के तहत उभयचरों (एम्पभीबियन) से लेकर पक्षियों, स्तनी (मैमल्स) और सरीसृपों (रिप्टाइल्स) तक सभी प्रकार के जानवरों की रक्षा का प्रावधान किया गया है। यह परिभाषा संपूर्ण है और सुरक्षा के दायरे में विभिन्न प्रकार के जानवरों को समायोजित (अकोमोडेट) करती है। अधिनियम उन निर्दिष्ट पौधों को सुरक्षा प्रदान करता है जिन्हें सरकार की मंजूरी के बिना नष्ट और क्षतिग्रस्त (डैमेज) नहीं किया जा सकता है। 

1972 के वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के महत्वपूर्ण प्रावधान

प्रारंभिक

धारा 1

इस धारा में बताया गया है की इस अधिनियम का नाम ‘वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972’ रखा गया है। इस अधिनियम को सभी राज्यों ने स्वीकार कर लिया है और यह पूरे भारत में लागू होता है।

धारा 2

यह धारा निम्नलिखित शब्दों की परिभाषा प्रदान करती है:-

  1. ‘पशु’- इस धारा के अनुसार पशु शब्द में स्तनी, सरीसृप, उभयचर, पक्षी और उनके अंडे शामिल हैं।
  2. ‘पशु वस्तु’ – किसी जंगली जानवर से बनी किसी वस्तु या पदार्थ को संदर्भित करता है जिसमें उसके पूरे शरीर या उनके किसी विशेष भाग का उपयोग किया गया हो। इसमें वर्मिन (जंगली जानवर जो फसलों, खेल या खेत के जानवरों के लिए हानिकारक हैं या विभिन्न संक्रामक रोगों को समाहित करते हैं) शामिल नहीं हैं।
  3. ‘बोर्ड’- वन्य जीव संरक्षण के लिए गठित सलाहकार बोर्ड और जैसा कि धारा (6) की उप-धारा (1) में उल्लिखित है।
  4. ‘बंदी पशु’- कोई भी जानवर जिसे कैद में रखा या पाला जाता है, जिसका वर्णन  अनुसूची 1, अनुसूची 2; अनुसूची 3; और अनुसूची 4 के तहत किया गया है। इसे जानवरों के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है जो मानव की देखभाल में रहते हैं।
  5. ‘मुख्य वन्य जीव संरक्षक (वॉर्डन)’- यह वैधानिक प्राधिकरण (अथॉरिटी) है जो किसी राज्य के वन्य जीव विभाग का प्रमुख होता है।
  6. ‘सर्कस’ – यह उस प्रतिष्ठान (एस्टेब्लिश्मेंट) को संदर्भित करता है जहाँ जानवरों को कलाबाजियों के प्रदर्शन के लिए रखा जाता है और उन के साथ तरह-तरह के करतब किए जाते हैं।
  7. ‘बंद क्षेत्र’ – वह क्षेत्र जिसे शिकार के लिए बंद घोषित किया गया हो और जहां शिकार करना प्रतिबंधित हो। यह वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972  की धारा 37 की उप-धारा (1) में वर्णित है।
  8. ‘कलेक्टर’- यह एक ऐसा व्यक्ति होता है जो किसी जिले के राजस्व (रेवेन्यू) प्रशासन का प्रभारी मुख्य अधिकारी होता है।
  9. ‘इस अधिनियम का प्रारंभ’- राज्य में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का प्रारंभ।
  10. ‘व्यापारी’ – किसी भी व्यक्ति को संदर्भित करता है जो पशु वस्तु, बंदी पशु, ट्रॉफी, असंसाधिक (अनकर्ल्ड) ट्रॉफी खरीदने और बेचने के व्यवसाय में लगा हुआ है।
  11. ‘निदेशक (डायरेक्टर)’ – यह एक ऐसे व्यक्ति को संदर्भित करता है जिसे धारा 3 की उप-धारा (1) में वर्णित वन्य जीव संरक्षण के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया है ।
  12. ‘वन अधिकारी’- वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 2 के खंड 2 के तहत वर्णित वन्य जीव संरक्षण के लिए नियुक्त वन अधिकारी को संदर्भित करता है।
  13. ‘सरकारी संपत्ति’- यह सरकार से संबंधित किसी भी संपत्ति या जो सरकार के कब्जे में है को संदर्भित करता है, और जैसा कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 39 के प्रावधानों में वर्णित है।
  14. ‘आवास’- कोई भी भूमि, जल, वनस्पति (वेजीटेशन) जो जंगली जानवरों का प्राकृतिक घर है।
  15. ‘शिकार’ – इसमें किसी जंगली जानवर को जहर देना, मारना, फंसाना या ऐसा करने का प्रयास करना शामिल है। इसमें किसी विशेष उद्देश्य के लिए किसी भी जानवर को चलाना, किसी जंगली जानवर या उसके शरीर के किसी अंग को चोट पहुंचाना या सरीसृप और पक्षियों के अंडे को मारना, या सरीसृप या पक्षियों के घोंसले या अंडे को परेशान करना शामिल है।
  16. ‘भूमि’- यह नहरों, खाड़ियों (क्रीक्स) और अन्य विभिन्न जल चैनलों, नदियों, झीलों, कृत्रिम या प्राकृतिक जलाशयों  को संदर्भित करता है।
  17. ‘लाइसेंस’ – यह किसी भी लाइसेंस को संदर्भित करता है जिसे इस अधिनियम के तहत प्रदान किया गया है।
  18. ‘पशुधन (लाइवस्टॉक)’- इसमें गाय, भैंस, गधे, बकरी, ऊंट, भेड़, सूअर, खच्चर, याक, बैल, घोड़े और उनके बच्चे भी शामिल हैं।
  19. विनिर्माता (मैन्युफैक्चरर)’ – इसका अर्थ है कोई भी व्यक्ति जो जंगली जानवरों से बनी वस्तुएँ बनाता या उनका विनिर्माण करता है।
  20. ‘मांस’- इसमें रक्त, हड्डियां, मांस, वसा (फैट), अंडे, सिवनी, वर्मिन के अलावा अन्य शामिल हैं, इसे या तो पकाया जा सकता है या यह कच्चा हो सकता है, और यह किसी जंगली जानवर का हो सकता है।
  21. ‘राष्ट्रीय उद्यान’ – इसका मतलब है कि सरकार द्वारा जानवरों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया है, जैसा कि  धारा 35  या  धारा 38 या  धारा 66 की उप-धारा (3) के तहत वर्णित है। 
  22. ‘अधिसूचना (नोटिफिकेशन)’- वन्य जीव अभ्यारण्यों, राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना, रख-रखाव या राजपत्र में प्रकाशित (पब्लिश) किसी अधिसूचना के लिए सरकार द्वारा दी गई अधिसूचना।
  23. आनुज्ञापत्र (परमिट) – यह इस अधिनियम या इस अधिनियम के किसी प्रावधान या नियमों के तहत दी गई अनुमति को संदर्भित करता है।
  24. ‘व्यक्ति’- इसमें कोई भी व्यक्ति और एक फर्म भी शामिल है।
  25. ‘निर्धारित’ – यह इस अधिनियम के तहत नियमों द्वारा निर्धारित किसी भी चीज को संदर्भित करता है।
  26. ‘मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर’- यह धारा 38 के तहत निर्धारित चिड़ियाघर को संदर्भित करता है।
  27. ‘आरक्षित वन’ – भारतीय वन अधिनियम, 1972 की धारा 20 के  तहत वर्णित इस अधिनियम के तहत राज्य सरकार द्वारा वन के लिए आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।
  28. ‘अभयारण्य’ – इसका अर्थ उस क्षेत्र से है जिसे अभयारण्य घोषित किया गया है और जैसा  कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 26 (a) , या धारा 38 या उप-धारा (3) के तहत वर्णित है।
  29. ‘विनिर्दिष्ट पौधा (सेप्सिफाइड प्लांट)’ – किसी भी पौधे को संदर्भित करता है जिसे संरक्षित करने के लिए विनिर्दिष्ट किया गया है और जैसा कि इस अधिनियम की अनुसूची 4 के तहत वर्णित है।
  30. ‘राज्य सरकार’- भारतीय संविधान के  अनुच्छेद 239 के तहत राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त उस केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासक।
  31. ‘टैक्सीडर्मी’ – यह मृत जानवरों, या उनके किसी भी शरीर के हिस्से को आंशिक रूप से या पूरी तरह से या ट्रॉफी, या खाल, आसनों, नमूनों के रूप में टैक्सीडर्मी या एंटलर, पंख, दांत, मास्क, अंडे, घोंसले, गैंडे के सींग के रूप में ट्रॉफी को संरक्षित करने के लिए संदर्भित करता है। 
  32. ‘असंसाधिक ट्रॉफी’- उन ट्राफियों को संदर्भित करता है जिनमें पूरी तरह से जंगली जानवर या जंगली जानवर के शरीर का हिस्सा होता है, जिसमें ताजा मारे गए जानवर, कवच या अन्य पशु उत्पाद शामिल होते हैं जो टैक्सीडर्मी प्रक्रिया से नहीं गुजरे हैं।
  33. ‘वाहन’- वह सब कुछ जो भूमि, जल या वायु में परिवहन (ट्रांसपोर्ट) के रूप में उपयोग किया जाता है और जिसमें भैंस, ऊंट, गधा, बैल, घोड़ा, खच्चर और हाथी शामिल हैं।
  34. ‘वर्मिन’ – उन जानवरों को संदर्भित करता है जो फसलों, खेत या जानवरों के लिए खतरनाक हैं जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों को अपने साथ लाते हैं, जैसा कि इस अधिनियम की अनुसूची 5 में वर्णित है।
  35. ‘हथियार’ – यह किसी भी उपकरण को संदर्भित करता है जैसे की धनुष, तीर, गोला-बारूद, अग्नि अस्त्र, विस्फोटक, हुक, जाल, फंदे, चाकू, फांसा, जो जंगली जानवरों को मारने या उनके जीवन के लिए खतरनाक साबित होने में सक्षम है।
  36. ‘जंगली जानवर’ – यह किसी भी जानवर को संदर्भित करता है जो जानवरों की अन्य प्रजातियों की तुलना में जंगली प्रकृति का है और इसमें कोई भी जानवर शामिल है जो अनुसूची 1, अनुसूची 2, अनुसूची 4 या अनुसूची 5 में निर्दिष्ट है।
  37. ‘वन्य जीव संरक्षक’ – इसका अर्थ सलाहकार बोर्ड के सदस्यों द्वारा नियुक्त किया गया कोई भी व्यक्ति है और जैसा कि इस अधिनियम की धारा 4 में निर्दिष्ट है।
  38. ‘चिड़ियाघर’ – एक लाइसेंसधारी डीलर जिसने सार्वजनिक प्रदर्शनी के लिए बंदी जानवरों को रखा लेकिन सर्कस या किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं, यह चल या अचल हो सकता है।

वन्य जीव निदेशक और मुख्य वन्य जीव संरक्षक

वन्य जीव संरक्षण निदेशक 

  • धारा 3 के तहत केंद्र सरकार को वन्य जीव संरक्षण निदेशक नियुक्त करने का अधिकार है। 
  • निदेशक को केंद्र सरकार द्वारा सामान्य या विशिष्ट निर्देशों के अधीन किया जाएगा। 
  • केंद्र सरकार किसी अन्य अधिकारी को भी नियुक्त कर सकती है, जिसे वह आवश्यक समझे।

मुख्य वन्य जीव संरक्षक

  • राज्य सरकार को क्रमशः  धारा 4 के तहत मुख्य वन्य जीव संरक्षक, वन्य जीव संरक्षक और मानद (ऑनरेरी) वन्य जीव संरक्षक की नियुक्ति करना आवश्यक है।
  • मुख्य वन्य जीव संरक्षक राज्य सरकार के सामान्य या विशेष निर्देशों के अधीन होंगे। 

वन्य जीव संरक्षण निदेशक और मुख्य वन्य जीव संरक्षक को प्रत्यायोजित (डेलीगेट) करने की शक्ति

  • संबंधित व्यक्ति, जैसे कि निदेशक और मुख्य वन्य जीव संरक्षक, को संबंधित सरकारों को इसकी सूचना देनी चाहिए।
  • उन्हें धारा 5 के तहत अपनी सरकारों के पूर्व अनुमोदन (अप्रूवल) और लिखित आदेश द्वारा अपनी शक्तियों को प्रत्यायोजित करने का अधिकार है। 

राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड का गठन

वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 ने राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड (‘बोर्ड’)  के गठन के लिए धारा 5A को जोड़ा है।

बोर्ड की संरचना

  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड के अध्यक्ष हैं। 
  • अधिनियम में संशोधन के तीन महीने के भीतर बोर्ड का गठन किया जाना है। 
  • बोर्ड का कार्य, जैसा कि धारा 5C के तहत निर्दिष्ट है, वन्य जीवन और वन के संरक्षण और विकास को बढ़ावा देना है। 
  • यह नीतियां भी बना सकता है और वन्य जीव संरक्षण को बढ़ावा देने और वन्य जीवों और उसके उत्पादों के अवैध व्यापार को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के तरीकों और साधनों पर केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह दे सकता है। 

बोर्ड के कर्तव्य

  • बोर्ड को देश में वन्य जीव संरक्षण की स्थिति पर दो साल में कम से कम एक बार स्थिति की रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी। 
  • बोर्ड को उन राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों और अन्य संरक्षित क्षेत्रों,  जहां कुछ गतिविधियां प्रतिबंधित हैं, की स्थापना और प्रबंधन पर सुझाव प्रदान करने की आवश्यकता है। 
  • बोर्ड अधिनियम के तहत संरक्षित क्षेत्रों को क्रमशः धारा 18 और धारा 35 के तहत अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर सकता है। 
  • बोर्ड अपने कर्तव्यों को धारा 5B (1) के तहत स्थायी समिति को प्रत्यायोजित कर सकता है।  

राज्य वन्य जीव बोर्ड का गठन

  • यह अधिनियम धारा 6 के तहत राज्य के मुख्यमंत्री के साथ केंद्र शासित प्रदेश (यूनियन टेरिटरी) में इसके अध्यक्ष और प्रशासक के रूप में, जैसा भी मामला हो, एक राज्य वन्य जीव बोर्ड की स्थापना करता है।
  • बोर्ड में अनुसूचित जनजातियों के कम से कम दो प्रतिनिधियों (रिप्रेजेंटेटिव) सहित प्रख्यात संरक्षणवादियों (कंजर्वेशनिस्ट), पारिस्थितिकीविदों (इकोलॉजिस्ट) और पर्यावरणविदों में से राज्य सरकार द्वारा नामित दस व्यक्ति शामिल होते हैं।
  • राष्ट्रीय बोर्ड को भी केंद्रीय स्तर पर दस व्यक्तियों को नामित करना होता है। 

राज्य बोर्ड की प्रक्रिया और कर्तव्य 

  • अधिनियम की धारा 7 के तहत, राज्य बोर्ड को एक वर्ष में कम से कम दो बार बैठक करवाना आवश्यक है । 
  • अधिनियम की धारा 8 के तहत वे राज्य सरकार को वन्य जीवों और निर्दिष्ट पौधों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए नीतियां बनाने की सलाह देने के लिए बाध्य हैं।  
  • उन्हें संरक्षित क्षेत्रों के रूप में घोषित किए जाने वाले क्षेत्रों के चयन और प्रबंधन के लिए सलाह देना भी आवश्यक है।
  • इसके अलावा, उन्हें भारतीय संविधान की चौथी और पांचवीं अनुसूची के तहत संशोधन से संबंधित मामलों में सलाह देनी होती है, जिसमें आदिवासियों और अन्य वनवासियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए किए जाने वाले उपाय भी शामिल होते हैं।  

विशेष उद्देश्यों के लिए आनुज्ञापत्र का अनुदान

धारा 12 

इस धारा के तहत कहा गया है कि शिकार की अनुमति विशेष उद्देश्यों के लिए दी जा सकती है। इस धारा के तहत मुख्य वन्य जीव संरक्षक को लिखित में आदेश देकर और उस व्यक्ति से निर्धारित शुल्क वसूल कर ही शिकार के लिए अनुमति देना वैध होगा ताकि वह उस विशेष उद्देश्य के लिए शिकार का हकदार हो सके। बशर्ते कि ऐसा आनुज्ञापत्र केंद्र सरकार या राज्य सरकार की पूर्व अनुमति से दिया जाना चाहिए। ऐसे विशेष उद्देश्य नीचे दिए गए हैं-

  1. शिक्षा के उद्देश्य के लिए।
  2. वैज्ञानिक अनुसंधान (रिसर्च) के लिए जैसे जंगली जानवर को विभिन्न आवासों में स्थानांतरित (शिफ्ट) करना ताकि उनमें वैज्ञानिक परिवर्तनों का अवलोकन  किया जा सके।
  3. वैज्ञानिक प्रबंधन (मैनेजमेंट) के लिए जैसे किसी विशेष प्रजाति के किसी भी प्रकार की स्वस्थ आबादी को बनाए रखना।
  4. पशु शरीर से विभिन्न प्रकार के नमूने एकत्र करने के लिए ताकि इसे एक संग्रहालय (म्यूजियम) या इसी तरह के किसी भी संस्थान में प्रदर्शित किया जा सके।
  5. सांप के जहर को इकट्ठा करने के लिए जिससे विभिन्न प्रकार की औषधीय दवाओं को बनाया जा सके।

लाइसेंस रद्द करना या निलंबित (सस्पेंशन) करना

धारा 13

अधिनियम की इस धारा के तहत कहा गया है कि मुख्य वन्य जीव संरक्षक या ऐसा कोई अधिकृत (ऑथराइज्ड) अधिकारी राज्य सरकार से लिखित में सामान्य या विशेष आदेश के द्वारा किसी व्यक्ति के लाइसेंस को रद्द या निलंबित कर सकता है और लाइसेंस के निलंबन या रद्द करने के लिए ऐसे वैध कारण भी प्रदान कर सकता है।

अनुसूचित प्रजातियां (स्पेसीज)

वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 को छह अनुसूचियों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक अनुसूची सुरक्षा का एक विविध रूप प्रदान करती है। अनुसूची 1 और अनुसूची 2 जंगली जानवरों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते हैं और ऐसे प्रावधानों के उल्लंघन के लिए बहुत अधिक जुर्माना लगाया जाता है। जबकि अनुसूची 3 और अनुसूची 4 के तहत जानवरों को संरक्षित किया गया है लेकिन यहां जुर्माना कम लगाया जाता है। अनुसूची 5 उन जानवरों की सूची बताती है जिनका शिकार किया जा सकता है और अनुसूची 6 में निर्दिष्ट स्थानिक पौधों की सूची है जो खेती और रोपण (कल्टीवेशन) के लिए निषिद्ध हैं।

अनुसूची 1 

भाग 1

अनुसूची 1 के भाग 1 में निम्नलिखित जानवर जैसे अंडमान जंगली सुअर, चीता, काला हिरन, भारतीय चिकारा (गैजल), भारतीय बाइसन या गौर, सुनहरी बिल्ली, हूलॉक, गैंगेटिक डॉल्फ़िन, फिशिंग कैट, धूमिल (क्लाउडेड) तेंदुआ, चीनी पैंगोलिन, डुगोंग, भारतीय हाथी, हर्पिड खरगोश, रेगिस्तानी लोमड़ी, काराकल, रेगिस्तानी लोमड़ी, तेंदुआ, कस्तूरी (मस्क) मृग, प्लास कैट, बौना हॉग, भारतीय जंगली गधा, मार्बल्ड कैट, धीमा लोरिस, गैंडा, स्नबफिन डॉल्फ़िन, तिब्बती जंगली गधा, तिब्बती भेड़िया, नीलगिरि तहर, लाल पांडा, तेंदुआ बिल्ली, जंगली भैंसा, शापू, रस्टी स्पॉटेड कैट शामिल हैं।

भाग 2

इसमें निम्नलिखित उभयचर (एम्फीबियन) और सरीसृप, जैसे  पिकॉक मार्क्ड सॉफ्ट शेल्ड कछुआ, मगरमच्छ, इन्डियन एग ईटिंग स्नेक, लॉगर हेड कछुआ, सुनहरी छिपकली, टेरापिन कछुआ, पीला मॉनिटर छिपकली, हरा समुद्री कछुआ, लेदरी कछुआ, हॉक्सबिल कछुआ, गंगा सॉफ्ट शेल्ड कछुए, अडिथिया कछुआ, घड़ियाल, बड़े बंगाल मॉनिटर छिपकली, पानी वाली छिपकली, अजगर शामिल हैं।

भाग 2 (A)

इसमें निम्नलिखित मछलियाँ जैसे व्हेल शार्क, हेमंतुरा फ्लुविटिलिस, यूरोजिमनस एस्परिमस, राइनोकोबेटस जिडेंसिस, एनोक्सिप्रिस्टिस कस्पिडाटा, ग्लाइफिस गैंगेटिकस, प्रिस्टिस माइक्रोडोन, ग्लाइफिस ग्लाइफिस, कारचारिनस हेमियोडोन शामिल हैं।

भाग 3

इसमें बंगाल फ्लोरिकन, बड़े बाज़, अंडमान चैती, काली गर्दन वाली क्रेन, स्विफ्टलेट, मोनाल तीतर, सफेद पंखों वाली लकड़ी की बत्तख, बड़े बाज़, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, माउंटेन बटेर, मोर, तिब्बती स्नो कॉक, सफेद कान वाले तीतर, गुलाबी सिर वाली बत्तख, ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल, नारकोंडम हॉर्नबिल, ट्रैगोपैन तीतर, मछली खाने वाला चील, साइबेरियन व्हाइट क्रेन, व्हाइट-बेलिड हियरऑन, हिल मैना, गिद्ध, कलिज तीतर, तिब्बती ईयर तीतर आदि जैसे पक्षी शामिल हैं।

भाग 4

इसमें क्रस्टेशियन और कीड़ों जैसे कॉमिक ओकब्लू, कॉर्नेलियन, सैफायर, हेज ब्लू, सोफिसा चंद्रा, हेलसीरा हेमिन, एडमिरल, बटरफ्लाई, टाइगर्स, क्रो ब्लैक स्पॉटेड, क्रो ब्लू स्पॉटेड, लाइकेनॉप्स, ऑर्किड, डिलपा मोर्गियाना, फैमिली पिरिडे, पॉलीडोरस यिएथ संबिलाना, डेलियास समका, साइलोजेन्स जेनेटे, एरेबिया अन्नाडा, लेथे यूरोपा तमनुआ, पैपिलियो एलीफेनर, सिम्ब्रेंथिया सिलाना, पॉलीडोरस नेविली, कोलियास दुबी, लेथे रामदेवा, एलिम्नियास पीली, पॉलीडोरस कून संबिलाना, पॉलीडोरस हेक्टर, एपोरिया हैरियेटे हरिएटे, इप्थिमा डोहेरी पर्सिमिलिस आदि की सूची शामिल है।

भाग 4 (A)

इसमें नारंगी पाइप कोरल (टुबिपोरा म्यूजिक), रीफ बिल्डिंग कोरल जिसमें सभी स्क्लेरैक्टिनियन शामिल हैं, फायर कोरल जिसमें सभी मिलेपोरा प्रजातियां शामिल हैं, ब्लैक कोरल जिसमें सभी एंटीपैथेरियन, सी फैन, जिसमें सभी गोर्गोनियन शामिल हैं, की सूची शामिल है।

भाग 4 (B)

इसमें मोलस्का की सूची शामिल है जैसे कि टुडिक्ला स्पाइरलस, साइप्रेकेसिस रूफा, कैसिस कॉर्नुटा, ट्रिडकना मैक्सिमा, नॉटिलस पोम्पिलियस, कॉनस मिलनीडवर्ड्सी, ट्रिडकना स्क्वैमोसल आदि शामिल है।

भाग 4 (C)

इसमें एकीनोडर्मेटा समुद्री कंबर शामिल है जिसमें सभी होलोथुरियन शामिल हैं।

अनुसूची 2

भाग 1

अनुसूची 2 के भाग 1 में बोनट मैकाक, बंगाल साही (पोर्कुपिन), आम लंगूर, असमी मकाक, स्टंप टेल्ड मैकाक, फेरेट बैजर्स, वाइल्ड डॉग या ढोल, पिग टेल्ड मैकाक, हिमालयन क्रेस्टलेस साही, गिरगिट, हिमालयन न्यूटोर सैलामैंडर, स्पाइनी टेल्ड छिपकली आदि शामिल हैं।

भाग 2

इसमें भृंग (बीटल) और अन्य जानवरों की प्रजातियां शामिल हैं, जैसे कि स्टिचोफथाल्मा नोरमहल, एनिसपे साइक्लनस, फैमिली अमाथुइडे, डिस्कोफोरा डे डेडाइट्स, फॉउनिस सुमेन एसामा, अमाथुक्सिडा एमीथॉन एमीथॉन, एमोना अमाथुसिया अमाथुसिया, डिस्कोफोरा लेपिडा लेपिडा, परिवार काराबिडे, गोपाला पिता, एक्रोक्रिप्टा रोटुंडटा, बिमला इंडिका, अमारा ब्रूसी, ब्रोस्कोस्मा ग्रैसिल, फैमिली कुकुजिडे, फैमिली डैनाइडे, कुकुजस बाइकलर, हाल्पे होमोलिया, एंब्लीपोडिया एनेया, चरण जलिंद्र, होरेज ओनेक्सिया, एवरेस हैलिड्रा, होरेज ओनेक्सिया, लैम्पाइड्स, प्रताप देवा, रापला इकेतास, स्पिंडासिस लोहिता, तजुरिया सेबोंगा, तजुरिया थिया, सिवेट्स (विवर्रिडे मालाबार सिवेट की सभी प्रजातियां), आम लोमड़ी, उड़ने वाली गिलहरी, किंग कोबरा, रेड फॉक्स, वीज़ल, इंडियन कोबरा, रैट स्नेक, सुस्त भालू, जंगल कैट, मर्मोट्स, हिमालयन ब्लैक बियर, ओलिवेशियस कीलबैक, स्पर्म व्हेल, ओटर्स, मार्टेंस, हिमालयन ब्राउन बियर, चेकर्ड कीलबैक स्नेक, सियार, कॉमन फॉक्स, डॉग फेस्ड वॉटर स्नेक, ग्रे जंगल फाउल, रसेल वाइपर, नेवला, पीले मॉनिटर छिपकली को छोड़कर वरेनस प्रजाति आदि शामिल है।  

अनुसूची 3

इस अनुसूची में निम्नलिखित जानवरों- बार्किंग डियर, जंगली सुअर, चीतल, सांभर, हेगडीर, नीलगाय, लकड़बग्घा, गोरल आदि की सूची शामिल है।

अनुसूची 4

इस अनुसूची में भारतीय साही, अन्य अनुसूचियों में दिखाई देने वाले पक्षियों के अलावा अन्य पक्षी, पोलकैट जिसमें वोर्मेला पेरेगुस्ना, मस्टेला पुटोरियस, पांच धारीदार पाम गिलहरी, बब्बलर, हेज हॉग, फ्लेमिंगो, बंटिंग, फिंच, बुलबुल, बाज़, बस्टर्ड क्वालिस, फेयरी ब्लूबर्ड, क्लोरोप्सिस, एग्रेट्स, कंघी बत्तख, बत्तख, कूट, ड्रोंगोस, जलकाग, कबूतर, क्रेन, कोयल, डार्टर, कर्ल, मेगापोड्स, फ्लावरपेकर, मैननिकिन, फ्लाईकैचर, मैगपाई, गीज़, लॉरिकेट्स, गोल्डफिंच और सहयोगी, किंगफिशर, गेरोन, जंगलफॉवल, इबिस, जैकनास, इओरार, मिनिवेस्ट, उल्लू, कबूतर, ब्लू रॉक कबूतर को छोड़कर, स्टारलिंग्स, पेलिकन, पार्ट्रिज, ब्लू जैस, पेलिकन, पाइपिट्स, स्टोन कर्लेव, स्परफॉवल्स, प्लोवर्स, स्टॉर्क, सैंडग्राउस, स्टिल्ट्स, स्टिल्ट्स, स्टिल्ट्स, सनबर्ड्स, स्निप्स, ऑयस्टरकैचर्स, ओरिओल्स, नाइटजारा, मैना, स्टारलिंग्स, ट्री पीज़, वीवर बर्ड्स,कठफोड़वा, एमिलिडे, व्रेन्स, वाइपरिडे, एलापिडे, हाइड्रोफिडे, यूरोपेल्टिडे, टाइफ्लोपिडे, तितलियाँ और पतंगे, मीठे पानी के मेंढक, कछुआ, तीन-कील वाला कछुआ, पॉलीट्रेमा साइनेंसिस, टैरुकस आनंद, पॉलीट्रेमा डिस्क्रीटा, यूथेलिया लुबेंटिना आदि शामिल है।

अनुसूची 5  

इस अनुसूची में चूहे, आम कौवे, चुहिया, चमगादड़, सियार, चमगादड़ शामिल हैं।

अनुसूची 6

इस अनुसूची में नीला वांडा, लाल वांडा, पिचर प्लांट, कुठ, बेडडोम्स साइकैड, लेडीज स्लिपर ऑर्किड, पिचर प्लांट शामिल हैं।

अभयारण्य

धारा 18 

यह धारा अभयारण्य की घोषणा से संबंधित है। अभयारण्य राज्य सरकार द्वारा घोषित किए जाते हैं। उनके पास किसी भी क्षेत्र को एक आधिकारिक अधिसूचना द्वारा वन्य जीव अभयारण्य के रूप में घोषित करने का अधिकार है, बशर्ते वह क्षेत्र पहले से आरक्षित वन न हो या प्रादेशिक (टेरिटोरियल) जल में न आता हो। अभयारण्य के रूप में घोषित किए जाने वाले किसी भी क्षेत्र में जंगली जानवरों के लिए उचित संरक्षण और सुरक्षा और  उचित वातावरण विकसित करने के लिए पर्याप्त पुष्प, प्राणी महत्व और पर्याप्त पारिस्थितिक, पशु महत्व होना चाहिए।

धारा 19

अधिनियम की धारा 19 के तहत कलेक्टर को वन्य जीव अभयारण्य के रूप में घोषित भूमि में या उस पर किसी भी व्यक्ति के अधिकार की प्रकृति, सीमा का निर्धारण करना होता है। उसे वन्य जीव अभ्यारण्य के रूप में आरक्षित भूमि के साथ किसी भी व्यक्ति के हस्तक्षेप की जांच करने का अधिकार होता है।

धारा 21

इस धारा के तहत, राज्य सरकार द्वारा जो अधिसूचना जारी की गई है, उसे कलेक्टर द्वारा प्रत्येक कस्बे या गाँव में, विशेष रूप से उसके आस पास के क्षेत्र में, सभी क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित किया जाएगा ताकि वन्य जीव अभयारण्य के प्रतिबंधों और सीमाओं को निर्दिष्ट किया जा सके। यह संपत्ति पर अधिकार का दावा करने वाले किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी उद्घोषणा (प्रोक्लेमेशन) की तारीख से दो महीने के भीतर कलेक्टर के समक्ष पेश होने का मौका भी देता है। ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया दावा लिखित रूप में होना चाहिए और इसमें संपत्ति के ऐसे दावे के संबंध में दावा किए गए आवश्यक विवरण, राशि, मुआवजे का विवरण, यदि कोई हो, तो वह भी शामिल होना चाहिए।

धारा 22

अधिनियम की इस धारा के तहत, कलेक्टर के द्वारा ऐसी सूचना प्रकाशित कर ऐसे दावेदार से पूछताछ की जाएगी। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसा व्यक्ति जो उस संपत्ति पर दावा कर रहा है जिसे वन्य जीव अभयारण्य  घोषित किया गया है, उस पर वास्तविक अधिकार है और उसके समक्ष प्रस्तुत दावा वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा 21 के अनुसार प्रस्तुत किया गया था। इसका पता ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य या राज्य सरकार के अभिलेखों (रिकॉर्ड) से लगाया जा सकता है।

धारा 23

धारा 23 के तहत कलेक्टर की उन शक्तियों के बारे में बात की गई है जिसका प्रयोग कलेक्टर के द्वारा जांच के दौरान किया जा सकता है। कलेक्टर के पास जांच के उद्देश्य से किसी भी अधिकारी को भेजने या किसी भी भूमि में प्रवेश करने, उसका सीमांकन (डिमार्केट) करने और उसका नक्शा बनाने का अधिकार है। उसे मुकदमे की सुनवाई के लिए दीवानी न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की शक्ति है।

धारा 24  और  धारा 25

धारा 24  और  धारा 25 के तहत, कलेक्टर को पहले से ही राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य या चिड़ियाघर के रूप में घोषित संपत्ति पर अधिकार का दावा करने वाले व्यक्ति के दावे को खारिज करके या तो उसके दावे को स्वीकार करके एक आदेश पारित करना होगा। वह दावे को पूर्ण या आंशिक (पार्शियल) रूप से स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। यदि कलेक्टर द्वारा दावा पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तो वह ऐसी भूमि को प्रतिबंधित क्षेत्रों या उन क्षेत्रों की सूची से बाहर कर देगा जिन्हें वन्य जीव अभयारण्य घोषित किया गया है, या कलेक्टर भूमि के मालिक और सरकार के बीच एक समझौते के द्वारा ऐसी भूमि के अधिग्रहण (एक्वायर) के लिए आगे बढ़ने का आदेश पारित कर सकता है जहां मालिक इस तरह की संपत्ति पर अपने अधिकारों को आत्मसमर्पण करने के लिए सहमत होता है और सरकार के द्वारा उसके लिए मुआवजे का भुगतान किया जा सकता है, या मुख्य वन्य जीव संरक्षक से परामार्श (कंसल्टेशन) करने के बाद भूमि के मालिक द्वारा अभयारण्य की सीमा के भीतर ऐसी भूमि के उपयोग की अनुमति दी जा सकती है।

धारा 27 

धारा 27 के तहत अभयारण्य में प्रतिबंध के बारे में बात करता है।

  • इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अभयारण्य की सीमा में प्रवेश या निवास नहीं कर सकता है, सिवाय एक लोक सेवक के जो ड्यूटी पर है, कोई भी व्यक्ति जिसने मुख्य वन्य जीव संरक्षक से अनुमति ली है या कोई अधिकृत अधिकारी जिससे अभयारण्य की सीमा के भीतर रहने की अनुमति ली है, कोई भी व्यक्ति जिसका अभयारण्य की सीमा के भीतर अचल संपत्ति पर वैध अधिकार है, कोई भी व्यक्ति जो अभयारण्य से राजमार्ग (हाईवे) से गुजर रहा है और अधिकृत अधिकारी के आश्रित (डिपेंडेंट्स), अचल संपत्ति पर अधिकार रखने वाले व्यक्ति के आश्रित, या किसी व्यक्ति के आश्रित जो अभयारण्य की सीमा के भीतर रह रहे हैं।
  • इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो अभयारण्य की सीमा के भीतर रहता है, वह कोई अपराध न करने के लिए बाध्य है, यदि यह पाया जाता है कि अधिनियम के खिलाफ किसी भी प्रकार का अपराध किया गया है, तो ऐसा व्यक्ति अपराधी को खोजने में मदद करने के लिए बाध्य है, वह किसी भी जंगली जानवर की मृत्यु की रिपोर्ट करने के लिए बाध्य है और जब तक मुख्य वन्य जीव संरक्षक उसका प्रभार (चार्ज) नहीं ले लेता है, तब तक वह ऐसे जानवर का प्रभार लेने के लिए भी बाध्य है, ऐसा व्यक्ति ऐसे अभयारण्य में किसी भी आग को बुझाने के लिए बाध्य होता है जिसके बारे में उसे जानकारी है या जिसमें एक उचित व्यक्ति उस बारे में जान सकता था, ऐसा व्यक्ति अपराध की जांच में वन अधिकारी या मुख्य वन्य जीव संरक्षक या पुलिस अधिकारी की सहायता करने के लिए भी बाध्य है।
  • यहां से संबंधित कोई भी व्यक्ति किसी भी जंगली जानवर से छेड़छाड़ नहीं कर सकता है और वन्य जीव अभयारण्य की सीमा को कोई नुकसान, नष्ट, स्थानांतरित (मूव) या परिवर्तित नहीं कर सकता है।

इस अधिनियम के तहत अपवादों के साथ अवैध शिकार निषिद्ध है 

इस अधिनियम धारा 9 के तहत भारतीय हाथी, भारतीय शेर, हिम तेंदुआ, बाघ और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड सहित अनुसूचियों I, II, III और IV में निर्दिष्ट जंगली जानवरों के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया है। हालांकि, शिकार पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध नहीं लगाया है और कुछ मामलों में धारा 11 के तहत इसकी अनुमति दी जा सकती है। 

धारा 11 के तहत शिकार

  • अधिनियम की अनुसूची I के तहत संरक्षित वन्य जीव जानवरों का शिकार केवल मुख्य वन्य जीव संरक्षक की अनुमति से ही किया जा सकता है। केवल तभी जब वह जानवर इंसान के जीवन के लिए खतरनाक साबित हो या इतना विकलांग (डिसेबल) या रोगग्रस्त हो कि उसका ठीक होना मुश्किल हो। 
  • मुख्य वन्य जीव संरक्षक लिखित आदेश के द्वारा और उन कारणों से अपनी संतुष्टि पर अनुमति दे सकता है कि जानवर को इस तरह से पकड़ा, शांत किया या स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है, जिससे जानवर को न्यूनतम आघात हो। 
  • कैद में रखे जाने वाले जानवर को पकड़ना तभी होता है जब मुख्य वन्य जीव संरक्षक संतुष्ट हो कि जानवर का पुनर्वास (रिहैबिलिटेट) नहीं किया जा सकता है।     
  • अनुसूची II, III और IV के तहत वन्य जीव जानवरों का शिकार मुख्य वन्य जीव संरक्षक या अधिकृत अधिकारी की अनुमति से किया जा सकता है यदि वह जानवर मानव जीवन या संपत्ति (किसी भी भूमि पर खड़ी फसलों सहित) के लिए खतरनाक हो गया है। 
  • जानवर का शिकार तब भी किया जा सकता है, अगर वह विकलांग या रोगग्रस्त है, और उसका ठीक होना एक दम मुश्किल है। निर्दिष्ट क्षेत्र में निर्दिष्ट कारण के लिए जानवरों या जानवरों के समूह के शिकार की अनुमति देने के लिए मुख्य वन्य जीव संरक्षक द्वारा उसी प्रक्रिया का पालन किया जाता है।
  • धारा 11 में किसी भी जंगली जानवर को शारीरिक सुरक्षा में शिकार करने या घायल करने की अनुमति भी तभी दी जाती है, जब वह सद्भावपूर्वक किया जाना हो और वह जानवर जिसको नुकसान पहुँचाया गया है वह सरकार की संपत्ति होगी। लेकिन अधिनियम के तहत बचाव का दावा व्यक्ति के दायित्व को नहीं रोक सकता है, यदि वह इसके तहत अपराध कर रहा था। 

धारा 12 के तहत शिकार की अनुमति दी गई है  

  • इनके अलावा, मुख्य वन्य जीव संरक्षक किसी ऐसे व्यक्ति को शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान और वैज्ञानिक प्रबंधन के उद्देश्य से शिकार की अनुमति दे सकता है जिसने निर्धारित शुल्क के भुगतान सहित  धारा 12 के तहत आवश्यक शर्तें पूरी की हों।

धारा 65 के तहत अनुसूचित जनजातियों के शिकार के अधिकार

  • धारा 65, अंडमान और निकोबार द्वीप के केंद्र शासित प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों के शिकार अधिकारों की रक्षा करती है, जो अधिनियम के तहत किसी भी प्रावधान से प्रभावित नहीं होते हैं। 

धारा 39 के तहत शिकार किए गए जानवरों को सरकारी संपत्ति माना जाता है

  • इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान के तहत या धारा 11 या धारा 29(1) या धारा 35(6) के तहत बंदी बनाया गया या शिकार किया गया कोई भी जानवर, या गलती से मृत या मारे हुए पाए जाने पर वह राज्य सरकार का होगा। 
  • लेकिन इसमें कीड़े शामिल नहीं होंगे। वर्मिन वे कीट हैं जो उपद्रव (न्यूसेंस) का कारण बनते हैं और केंद्र सरकार के पास धारा 62 के तहत किसी भी वन्य जीव को वर्मिन घोषित करने का अधिकार है।
  • ऊपर बताए गए जानवरों से प्राप्त कोई भी एनिमल ट्राफी, वस्तु, या असंसाधिक ट्राफी या मांस भी सरकार का होगा।  
  • यदि केंद्र सरकार द्वारा घोषित अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान में जानवर का शिकार किया जाता है, तो धारा 39(1) के तहत वह संपत्ति केंद्र सरकार की होगी।

वन्य जीव अधिनियम के तहत कानूनों के उल्लंघन पर धारा 51 

  • इस अधिनियम की धारा 51 के तहत, अधिनियम में निर्दिष्ट कानूनों और नियमों के किसी भी उल्लंघन के लिए आरोपी को कारावास की सजा दी जाएगी जो तीन साल तक हो सकती है, और जुर्माना जो 25000 रुपये तक हो सकता है, से दंडित किया जाएगा।
  • अनुसूची I या अनुसूची II के भाग II के तहत संरक्षित वन्य जीव जानवरों के खिलाफ किसी भी अपराध को करने के लिए न्यूनतम तीन साल की कैद और न्यूनतम 10000 रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जाएगा। 
  • इसके अलावा, यदि उपरोक्त श्रेणी में निर्दिष्ट किसी भी ऐसे जानवर का मांस, या पशु से सम्बंधित वस्तु, ट्रॉफी, या ऐसे जानवर से कोई असंसाधिक ट्रॉफी प्राप्त की गई है, तो यह भी ऊपर के समान ही दंडनीय होगा। 
  • अंत में, यदि अपराध किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान में जानवरों के शिकार से संबंधित है, तो यह भी ऊपर की तरह ही दंडनीय होगा। 
  • अंत में, कानून का उल्लंघन करने पर अधिकतम तीन साल की सजा और कम से कम 25000 के जुर्माने से आरोपी को दंडित किया जाएगा। 
  • कोई भी न्यायालय, जो उपरोक्त अपराध में आरोपी व्यक्तियों पर विचारण (ट्रायल) कर रहा है, वह राज्य सरकार को वन्य जीव पशु से बनी किसी भी सामग्री को जब्त करने का आदेश दे सकता है साथ ही व्यक्ति का लाइसेंस भी जब्त किया जा सकता है। 

अधिनियम के तहत संरक्षित क्षेत्रों की मान्यता

  • अधिनियम के तहत कुछ क्षेत्रों को क्रमशः धारा 18 और धारा 35 के तहत अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के रूप में संरक्षित क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 

संरक्षित क्षेत्र के रूप में अभयारण्य 

  • धारा 18 के तहत, राज्य सरकार के द्वारा एक निश्चित क्षेत्र को अभयारण्य के रूप में घोषित किया जा सकता है, यदि उसके पास वन्य जीव या उसके पर्यावरण की रक्षा, प्रचार या विकास के उद्देश्य से पर्याप्त पारिस्थितिक, जीव, पुष्प, भू-आकृति विज्ञान (जियोमॉर्फोलॉजिकल), प्राकृतिक या प्राणीशास्त्रीय महत्व है। 
  • वर्तमान में, भारत में 566 वन्य जीव अभ्यारण्य मौजूद हैं। 
  • हाल ही में, रामगढ़ वन्य जीव अभयारण्य को राजस्थान राज्य सरकार और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (‘एन.टी.सी.ए.’) द्वारा 52 वें वन्य जीव अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया था। 
  • अभयारण्य घोषित करने के उद्देश्य से, वह क्षेत्र एक आरक्षित वन या प्रादेशिक जल नहीं होना चाहिए और अभयारण्य में रहने वाले व्यक्ति के साथ वैज्ञानिक अनुसंधान, पर्यटन, फोटोग्राफी और वैध व्यवसाय करने के उद्देश्य से एक विज़िटिंग अनुज्ञापत्र दिया जा सकता है। 

प्रभावित व्यक्तियों के अधिकार

  • जब सरकार अभयारण्य की स्थापना के लिए भूमि अधिग्रहण करती है तो प्रभावित व्यक्तियों के अधिकार राज्य सरकार द्वारा नियुक्त कलेक्टर द्वारा निपटाए जाते हैं। 
  • कलेक्टर को क्षेत्रीय भाषा में एक अधिसूचना (नोटिफिकेशन) प्रकाशित करनी होती है और किसी भी व्यक्ति को इस पर आपत्ति हो तो वह लिखित रूप में और इस तरह की उद्घोषणा के दो महीने के भीतर अपनी आपत्ति को दायर कर सकता है, जैसा की धारा 21 के तहत निर्दिष्ट किया गया है।
  • यह अधिनियम आगे कलेक्टर को उन आपत्तियों पर पूछताछ करने की अनुमति देता है जिन्हें वह अपने निष्कर्षों के आधार पर स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। 
  • एक बार आपत्तियों को खारिज कर दिए जाने के बाद, कलेक्टर को भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 (जैसा की भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन (रिसेटलमेंट) में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के अधिनियम, 2013 में संशोधित किया गया है) के तहत अपनी शक्तियों के अनुसरण (पर्सुएंस) में भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही पर आगे बढ़ना आवश्यक है। 

संरक्षित क्षेत्र के रूप में राष्ट्रीय उद्यान 

  • धारा 35 के तहत, राज्य सरकार के द्वारा किसी भी क्षेत्र को उसके पारिस्थितिक, जीव, पुष्प, भू-आकृति विज्ञान या प्राणी महत्व के आधार पर राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया जा सकता है। वह क्षेत्र अभयारण्य भी हो सकता है।  
  • राज्य सरकार उस क्षेत्र के भूमि अधिकारों को निहित करेगी लेकिन वह राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड के पूर्व अनुमोदन के बिना इसकी सीमाओं में परिवर्तन नहीं कर सकती है। 
  • किसी भी व्यक्ति को राष्ट्रीय उद्यान में वन उत्पादों को नष्ट करने या उनको नुकसान पहुंचाने या किसी भी जानवर के वन्य जीव आवास को बदलने का अधिकार नहीं है। 
  • वर्तमान में, 104 राष्ट्रीय उद्यान हैं जिन्हें अधिनियम के तहत भारत में मान्यता प्राप्त है और अभी विद्यमान (एक्सिस्टिंग) है।
  • राज्य सरकार आधिकारिक अधिसूचना द्वारा एक क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित कर सकती है यदि यह पाती है कि ऐसा क्षेत्र अपने पारिस्थितिक, जीव, पुष्प, प्राणी संघ के कारण राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना और उसमें वन्य जीव या इसके वातावरण को विकसित करने के उद्देश्य से उपयुक्त है। उस अधिसूचना में उस क्षेत्र की सीमा घोषित की जानी चाहिए जिसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया जाना है।
  • जब किसी क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया जाता है तो संबंधित क्षेत्र के संबंध में जांच और दावों के निर्धारण के लिए आवेदन करना होगा। जब दावों की अवधि समाप्त हो गई हो और यदि राज्य सरकार द्वारा संबंधित भूमि के संबंध में कोई दावा उत्पन्न हो गया हो, तो उस क्षेत्र पर सभी अधिकार जिसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया जाना है, वह राज्य सरकार में निहित होंगे। 
  • राष्ट्रीय उद्यान की सीमाओं में परिवर्तन तब तक नहीं किया जा सकता है जब तक कि राज्य विधानमंडल द्वारा कोई प्रस्ताव पारित न किया गया हो।
  • किसी भी व्यक्ति को राष्ट्रीय उद्यान में वन्य जीवों की किसी भी प्रजाति को नष्ट करना या नुकसान पहुंचान या उसका शोषण करना या उसे हटाना नहीं चाहिए, सिवाय इसके कि उसके पास इस संबंध में मुख्य वन्य जीव संरक्षक द्वारा दी गई अनुमति है। मुख्य वन्य जीव संरक्षक संबंधित व्यक्ति को ऐसे अनुज्ञापत्र तभी दे सकते हैं जब राज्य सरकार संतुष्ट हो कि राष्ट्रीय उद्यान में वन्य जीवों के सुधार, रखरखाव के लिए इस तरह का विनाश, क्षति या शोषण आवश्यक है।
  • राष्ट्रीय उद्यान के सीमित क्षेत्र में पशुओं के चरने की अनुमति नहीं है। इस नियम का एक अपवाद है, केवल वही व्यक्ति जिसके पास ऐसे राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश करने की अनुमति है और वह ऐसे जानवर को वाहन के रूप में उपयोग कर रहा है, तो तब पशुओं को चराने की अनुमति दी जाती है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण घोषित करने की केंद्र सरकार की शक्ति

  • केंद्र सरकार के पास धारा 38 के तहत किसी क्षेत्र को अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की शक्ति है, बशर्ते कि धारा 18 की आवश्यकताएं पूरी की जाएं। 

धारा 38 K के तहत शक्तियां

  • एन.टी.सी.ए. (राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण) के रूप में जाने जाने वाले बाघों के संरक्षण के लिए केंद्रीय प्राधिकरण को भी सरकार द्वारा धारा 38 K के तहत घोषित किया जा सकता है। 

धारा 38 L के तहत शक्तियां

  • एन.टी.सी.ए. का संविधान धारा 38 L के तहत निर्दिष्ट है। एन.टी.सी.ए. की अध्यक्षता, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के द्वारा इसके अध्यक्ष (चेयर पर्सन) के रूप में की जाती है। 
  • इसमें एक उपाध्यक्ष, संसद के तीन सदस्य, आठ विशेषज्ञ या पेशेवर शामिल होते हैं जिन्हें वन्य जीवों में योग्य ज्ञान होता है और बाघ अभयारण्यों में रहने वाले लोगों का कल्याण के संबंध में भी ज्ञान होता है और इसमें कई अन्य सदस्य भी शामिल होते हैं।

धारा 38 O के तहत शक्तियां

  • धारा 38 O के तहत निर्दिष्ट एन.टी.सी.ए. के कार्यों और शक्तियों में राज्य सरकार द्वारा धारा 38 V के तहत बनाई गई बाघ संरक्षण योजना को मंजूरी देना शामिल है। 
  • वन्य जीवन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006 के द्वारा धारा 38V जोड़ा गया था जो बाघ संरक्षण योजना के बारे में बात करती है और राज्य सरकार को एन.टी.सी.ए. के परामर्श से एक विशेष क्षेत्र को बाघ सरंक्षण घोषित करने की अनुमति देती है। 
  • एन.टी.सी.ए. को प्रोजेक्ट टाइगर के लिए दिशा-निर्देशों सहित पर्यटन गतिविधियों के लिए मानक मानदंड (नॉर्मेटिव स्टैंडर्ड) निर्धारित करने होते हैं। 
  • इसे यह सुनिश्चित करना होगा कि बाघ सरंक्षण सहित संरक्षित क्षेत्र और एक संरक्षित क्षेत्र को दूसरे से जोड़ने वाले क्षेत्रों को पारिस्थितिक रूप से अस्थिर उपयोगों के लिए डायवर्ट न किया जाए।

धारा 38U के तहत शक्तियां

  • धारा 38 U के तहत बाघों और सह-शिकारियों की निगरानी, ​​संरक्षण, सुरक्षा के लिए राज्य सरकारों के उद्देश्य के लिए अधिनियम के तहत एक संचालन (स्टीयरिंग) समिति भी गठित की जाती है।
  • संचालन समिति की अध्यक्षता संबंधित राज्यों के मुख्य मंत्री करते हैं और राज्य के वन्य जीव प्रभारी मंत्री उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते है। 

धारा 38 V के तहत शक्तियां

  • धारा 38 V बाघ संरक्षण योजना से संबंधित है। राज्य सरकार के द्वारा योजना तैयार की जाती है। इसमें बाघ संरक्षण के उचित प्रबंधन के लिए स्टाफ विकास और तैनाती योजना शामिल है। 
  • बाघ संरक्षण में राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के मुख्य या महत्वपूर्ण बाघ आवास क्षेत्र भी शामिल होते हैं। इसमें बफर और परिधीय (पेरीफेरल) क्षेत्र भी शामिल हो सकते हैं।  
  • स्थानीय लोगों की आजीविका संबंधी चिंताओं को सुनिश्चित करने और बाघों की आबादी में वृद्धि के लिए साइट-विशिष्ट आवास इनपुट प्रदान करने के उद्देश्य से योजना को बाघ संरक्षण में पारिस्थितिक रूप से अनुकूल भूमि उपयोग और संरक्षित क्षेत्रों को जोड़ने वाले अन्य क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।  

धारा 38 X के तहत शक्तियां

  • धारा 38 X के तहत राज्य सरकार को राज्य के भीतर बाघ संरक्षण फाउंडेशन स्थापित करने की अनुमति दी गई है ताकि बाघों की सुरक्षा के कामकाज को सुविधाजनक बनाया जा सके और उसे समर्थन दिया जा सके। 
  • बाघ संरक्षण के पारिस्थितिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को सुगम बनाना और पर्यावरण-पर्यटन को बढ़ावा देना।

केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण

जंगली जानवरों के संरक्षण में चिड़ियाघर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राष्ट्रीय चिड़ियाघर नीति, 1998 और राष्ट्रीय चिड़ियाघर नियम, 1992 (जिसे 2009 में संशोधित किया गया था) के अनुसार जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी), विशेष रूप से जानवरों के संरक्षण के उद्देश्य से धारा 38 A से 38 J के तहत भारत में केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की स्थापना की गई है।

धारा 38 A के तहत प्रावधान

  • धारा 38 A केंद्र सरकार को अध्यक्ष, सदस्य-सचिव (सेक्रेटरी) और दस अन्य व्यक्तियों के सदस्यों के साथ एक केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण स्थापित करने की अनुमति देता है। 
  • इन सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार के द्वारा की जाएगी। 

धारा 38 B के तहत प्रावधान

  • अध्यक्ष और अन्य दस सदस्य तीन साल के लिए पद पर रहेंगे और वे धारा 38  B के तहत केंद्र सरकार को अपना त्याग पत्र भेज सकते हैं।
  • केंद्र सरकार, अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को कार्यालय से हटा सकती है, यदि वे दिवालिया (इंसोल्वेंट) हो जाते हैं, दोषी पाए जाते हैं, विकृत (अनसाउंड) दिमाग के रूप में घोषित हो जाते हैं या कार्य करने से इनकार कर देते हैं।

चिड़ियाघर प्राधिकरण के कार्य और प्रक्रिया 

  • धारा 38 C के तहत प्राधिकरण के द्वारा एक चिड़ियाघर को मान्यता दी जाती है और मान्यता रद्द की जा सकती है और  चिड़ियाघरों के कामकाज का आकलन (एसेस) किया जाता है। 
  • चिड़ियाघर की मान्यता धारा 38 H के तहत निर्धारित शर्तों के अनुसार होती है।
  • इसे भारत और भारत के बाहर चिड़ियाघर कर्मियों के प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) का समन्वय (कोऑर्डिनेशन) भी सुनिश्चित करना है। 
  • प्राधिकरण को चिड़ियाघरों में जानवरों के आवास, रखरखाव और पशु चिकित्सा देखभाल के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित करने की आवश्यकता है।
  • प्राधिकरण को धारा 38 D के तहत अपनी प्रक्रिया को विनियमित करने का अधिकार है।

वन्य जीवन में व्यापार और वाणिज्य (कॉमर्स)

धारा 39 

इस धारा में कहा गया है कि सभी जंगली जानवर सरकार की संपत्ति हैं। यह कहती है की-

  • वर्मिन के अलावा अन्य जंगली जानवर, वे भी जंगली जानवर जो मृत पाए जाते हैं, या गलती से मारे जाते हैं, ट्रॉफी या असंसाधिक ट्रॉफी या अन्य जानवरों की वस्तु या जंगली जानवर से प्राप्त मांस, भारत में आयात (इंपोर्ट) किए गए हाथी के दांत या ऐसे हाथी के दांत द्वारा बनाई गई कोई भी वस्तु, कोई भी पोत (वेसल), चिड़ियाघर में जंगली जानवर का शिकार करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाले हथियार, जाल, उपकरण (टूल) आदि सब राज्य सरकार की संपत्ति होगी और राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य के मामले में केंद्र सरकार की संपत्ति होगी।
  • कोई भी व्यक्ति जिसके पास कोई सरकारी संपत्ति है, उसे 48 घंटे के भीतर निकटतम पुलिस स्टेशन या अधिकृत अधिकारी को वापस करना चाहिए।
  • कोई भी व्यक्ति मुख्य वन्य जीव संरक्षक की पूर्व अनुमति के बिना अपने कब्जे या नियंत्रण में कुछ भी हासिल नहीं करेगा या रखेगा, ऐसी संपत्ति को उपहार या बिक्री के माध्यम से हस्तांतरित नही करेगा, या ऐसी सरकारी संपत्ति को नष्ट नहीं करेगा या नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

धारा 43

यह धारा जानवरों के व्यापार और हस्तांतरण के नियमों के बारे में बात करती है। यह कहती है कि-

  • एक व्यक्ति जिसके पास स्वामित्व का प्रमाण पत्र (सर्टिफिकेट) नहीं है, वह किसी भी स्थिति में बिक्री के माध्यम से या उपहार के माध्यम से किसी भी जंगली जानवर को बेचने के लिए या उसके बेचने की पेशकश नहीं करेगा, जो अनुसूची 1, अनुसूची 2 में निर्दिष्ट है, वे किसी भी जानवर के अंग या शरीर के हिस्से या पूरे हिस्से को शामिल करने वाली कोई भी वस्तु टैक्सिडर्मि की प्रक्रिया में शामिल नहीं होनी चाहिए, सिवाय उसके जब तक कि उनके पास मुख्य वन्य जीव संरक्षक की अनुमति न हो।
  • यदि कोई व्यक्ति एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित होता है और उस राज्य से कोई पशु वस्तु, ट्राफी या कोई असंसाधिक ट्राफी प्राप्त करता है जिसमें वह पहले रहता था। इस तरह के स्थानांतरण की सूचना 30 दिनों के भीतर मुख्य वन्य जीव संरक्षक या किसी भी अधिकृत अधिकारी को दी जानी चाहिए जिसके अधिकार क्षेत्र में स्थानांतरण हुआ हो। कोई भी व्यक्ति जिसके पास स्वामित्व प्रमाण पत्र नहीं है, उसे किसी भी जानवर या पशु वस्तु या किसी भी असंसाधिक ट्रॉफी के हस्तांतरण के किसी भी कार्य में शामिल नहीं होना चाहिए।
  • प्रमाण पत्र जारी करते समय मुख्य वन्य जीव संरक्षक को एक उचित जांच करनी चाहिए, परीक्षण करना चाहिए कि पहले का स्वामित्व प्रमाण पत्र किसका है और फिर वह नए मालिक के नाम पर एक नया प्रमाण पत्र जारी करेगा। साथ ही वह जानवर के शरीर पर या असंसाधिक ट्राफी या जानवरों की वस्तु पर पहचान चिह्न भी लगा सकता है।

प्रावधान का एक संक्षिप्त संस्करण (वर्जन) यहां दिया गया है:

  • धारा 40 के तहत राज्य के मुख्य वन्य जीव संरक्षक की पूर्व अनुमति के  बिना, किसी भी व्यक्ति के पास अनुसूची I या अनुसूची II के भाग II से संबंधित ऐसे जानवरों की ट्रॉफी या असंसाधिक ट्रॉफी, वस्तु या सूखे खाल सहित बिक्री के लिए जानवरों का कब्जा, नियंत्रण, अभिरक्षा (कस्टडी), बिक्री या प्रस्ताव नहीं होगा।
  • अनुसूची I या अनुसूची II के भाग II से संबंधित जानवरों को धारा 49 A (A) के अनुसार अनुसूचित जानवर कहा जाता है।
  • धारा 40 का अपवाद धारा 40 (A) है जहां केंद्र सरकार, अधिसूचना द्वारा, बिना घोषणा के इसकी अनुमति दे सकती है। 
  • यदि अधिनियम के लागू होने से पहले व्यक्तियों के पास जानवर, पशु वस्तु या ट्राफियां हैं, तो उन्हें 30 दिनों के भीतर जानवरों की संख्या और विवरण (डिटेल) के बारे में मुख्य वन्य जीव संरक्षक को घोषित करना होगा।
  • 2003 के संशोधन के बाद कोई भी व्यक्ति किसी अनुसूचित जानवर का अधिग्रहण, प्राप्ति, अधिकार, अभिरक्षा या नियंत्रण नहीं रख सकता है।
  • कोई भी व्यक्ति जिसे अनुसूचित जानवर विरासत में मिला है, वह धारा 40 (2 B) के तहत मुख्य वन्य जीव संरक्षक को 90 दिनों के भीतर एक घोषणा भी करेगा।
  • धारा 40 के तहत एक वैध कब्जा भी मुख्य वन्य जीव संरक्षक द्वारा धारा 42 के अनुसार प्राप्त किया जा सकता है। स्वामित्व का प्रमाण पत्र व्यक्ति को जानवरों को हिरासत में या कब्जे में रखने की अनुमति देता है। हालांकि, मुख्य वन्य जीव संरक्षक से उचित प्राधिकरण के बिना स्वामित्व के प्रमाण पत्र के बाद भी जानवरों की बिक्री या हस्तांतरण धारा 43 के तहत निषिद्ध है।
  • एक व्यक्ति जिसने लाइसेंस प्राप्त कर लिया है, यदि धारा 44(2) के तहत कोई घोषणा नहीं की गई है, तो वह पशु, पशु वास्तु, असुरक्षित ट्रॉफी या ट्रॉफी पर कब्जा या नियंत्रण नहीं कर सकता है। एक लाइसेंसधारी जानवरों को बेचने या परिवहन के लिए पेशकश नहीं कर सकता है।  
  • इसके अलावा, कोई भी व्यक्ति धारा 49 (B) के तहत अनुसूचित पशु से प्राप्त किसी भी पशु ट्राफियां या वस्तुओं के निर्माता या डीलर के रूप में व्यवसाय शुरू नहीं कर सकता है।

अधिनियम के तहत अपराध की रोकथाम

  • धारा 50 के तहत, गिरफ्तार करने, प्रवेश करने, तलाशी लेने और हिरासत में लेने का अधिकार निदेशक, मुख्य वन्य जीव संरक्षक, वन अधिकारी और पुलिस अधिकारी, जो  उप-निरीक्षक के पद से नीचे का नहीं है, के पास है।
  • प्राधिकरण ऐसे व्यक्तियों को निरीक्षण के उद्देश्य से किसी भी जानवर, पशु वस्तु, ट्रॉफी, निर्दिष्ट पौधे आदि का उत्पादन करने की आवश्यकता कर सकता है। 
  • वे किसी भी वाहन को रोक सकते हैं और शोध कर सकते हैं या किसी परिसर या भूमि पर प्रवेश करके जांच कर सकते हैं और किसी भी बंदी जानवर, वस्तु, ट्रॉफी, या असुरक्षित ट्रॉफी आदि को जब्त कर सकते हैं। हिरासत में लिए गए किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के पास ले जाया जाएगा। 
  • गिरफ्तारी वारंट जारी करने, गवाहों की उपस्थिति के लिए मजबूर करने, साक्ष्य प्राप्त करने और रिकॉर्ड करने की शक्ति किसी भी अधिकारी को दी जाती है, जो वन्य जीव संरक्षण के सहायक निदेशक के पद से नीचे नहीं है या एक अधिकारी जो सहायक वन संरक्षक के पद से नीचे का अधिकारी नहीं है, जिसे राज्य सरकार के द्वारा अधिकृत किया गया है। 
  • यह धारा प्रवेश, तलाशी, गिरफ्तारी और नजरबंदी (डिटेंशन) की शक्ति से संबंधित है। यह कहती है-
    • देश में लागू किसी भी अन्य कानून के तहत किसी भी बात के होते हुए भी यदि कोई अधिकृत अधिकारी या निदेशक या उसके द्वारा अधिकृत कोई अन्य व्यक्ति या मुख्य वन्य जीव संरक्षक द्वारा अधिकृत कोई अन्य व्यक्ति या स्वयं मुख्य वन्य जीव संरक्षक या किसी वन अधिकारी या किसी पुलिस द्वारा अधिकृत अधिकारी जो उप-निरीक्षक के पद से नीचे का नहीं है, के पास कुछ उचित आधार हैं कि किसी व्यक्ति ने इस अधिनियम के विरुद्ध कोई अपराध किया है-
  1. तो ऐसे व्यक्ति को आवश्यक दस्तावेज या बंदी पशु, पौधे या उसके नियंत्रणाधीन किसी जानवर के भाग या व्युत्पन्न (डेरिवेटिव) ट्रॉफी, असंसाधिक ट्रॉफी, पशु वस्तु, मांस, कोई निर्दिष्ट पौधे के निरीक्षण के लिए अनुज्ञापत्र, या कोई लाइसेंस प्रस्तुत करने के लिए कह सकते हैं, 
  2. अपने कब्जे में किसी भी भूमि, वाहन, परिसर (प्रीमाइस), किसी सामान या इस तरह की किसी भी अन्य चीजों की आवश्यक तलाशी या पूछताछ के लिए किसी भी वाहन या जहाज को रोक सकते हैं।
  3. ऐसी किसी भी पशु वस्तु, वाहन, पोत, हथियार, बंदी पशु, मांस, ट्राफी, जंगली जानवर, असंसाधिक ट्राफी, पौधे या उसके किसी भाग को तब तक जब्त कर सकते हैं जब तक कि ऐसा अधिकृत व्यक्ति संतुष्ट न हो कि इस अधिनियम के खिलाफ अपराध करने वाला व्यक्ति उपस्थित होगा और उसके खिलाफ लगाए गए किसी भी आरोप का जवाब देगा। यदि अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान के 10 किलोमीटर के भीतर रहने वाला मछुआरा ऐसी नाव का उपयोग करता है जिसका उपयोग व्यावसायिक मछली पकड़ने के लिए नहीं किया जाता है, तो अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान में प्रादेशिक जल में ऐसी कोई नाव जब्त नहीं की जाएगी।
  • कोई भी अधिकृत व्यक्ति बिना किसी स्वामित्व प्रमाण पत्र या लाइसेंस या किसी अनुज्ञापत्र के किसी व्यक्ति द्वारा की गई किसी भी गतिविधि को रोकने का आदेश दे सकता है, बशर्ते कि इस अधिनियम के अनुसार ऐसे कार्य के लिए अनुज्ञापत्र या लाइसेंस की आवश्यकता हो। प्राधिकृत अधिकारी के लिए किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेना, ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करना तब तक वैध होगा, जब तक कि वह उसे गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को संतुष्ट न कर दे कि वह किसी भी सम्मन या कार्यवाही का विधिवत उत्तर देगा जो उसके खिलाफ की जा सकती है।
  • यदि किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लिया गया है या किसी अधिकृत अधिकारी द्वारा शक्ति का प्रयोग करने के दौरान जब्त की गई चीजों को कानून के अनुसार निपटाए जाने के लिए मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा।
  • कोई भी व्यक्ति जिसे इस अधिनियम के तहत गैरकानूनी कार्य करने का संदेह है, यदि वह आवश्यक दस्तावेज, अनुज्ञापत्र या लाइसेंस प्रस्तुत करने में विफल रहता है या अपनी बेगुनाही साबित करने में विफल रहता है तो वह इस अधिनियम के तहत अपराध के लिए दोषी होगा।
  • जहां किसी भी असंसाधिक ट्राफी, जंगली जानवर, मांस, पौधे या इसके किसी भी व्युत्पन्न को अधिकृत अधिकारी द्वारा जब्त कर लिया जाता है, तो ऐसा अधिकृत अधिकारी उसकी बिक्री की व्यवस्था कर सकता है और इस अधिनियम के तहत निर्धारित आय का अधिग्रहण और उपयोग करेगा। अगर यह साबित हो जाता है कि ऐसी संपत्ति सरकार की नहीं है तो ऐसी बिक्री की आय मालिक को ही दी जाएगी।
  • यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध की रोकथाम (प्रिवेंशन) या उसका पता लगाने के लिए किसी अधिकृत अधिकारी से संपर्क करता है, तो ऐसी सहायता अधिकृत अधिकारी द्वारा प्रदान की जानी चाहिए।
  • कोई भी व्यक्ति जो सहायक निदेशक या वन्य जीव मुख्य संरक्षक के पद से नीचे का है, उसको वारंट जारी करने, किसी व्यक्ति को कोई दस्तावेज पेश करने के लिए बाध्य करने, कोई सबूत प्राप्त करने या तलाशी वारंट जारी करने की शक्ति नहीं होगी।

अपराधों का संज्ञान (कॉग्निजेंस)

धारा 55

इस धारा में कहा गया है कि किसी भी मामले में अदालत को, इस अधिनियम के खिलाफ किए गए किसी भी अपराध का संज्ञान या ज्ञान नहीं लेना चाहिए, जिसकी शिकायत मुख्य वन्य जीव संरक्षक या राज्य द्वारा उसकी ओर से अधिकृत किसी अन्य व्यक्ति या वन्य जीव संरक्षण के निदेशक या उनकी ओर से अधिकृत कोई अन्य व्यक्ति या कोई भी व्यक्ति जिसे केंद्र सरकार या राज्य सरकार या उसके किसी अधिकृत अधिकारी को कथित अपराध की शिकायत करने के लिए 60 दिनों का नोटिस दिया गया हो, के अलावा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की गई है।

अवैध शिकार और व्यापार से प्राप्त संपत्ति की जब्ती

2002 के वन्य जीव संशोधन अधिनियम में, एक नया अध्याय शामिल किया गया था, जो अध्याय 6 (A) था। इस अध्याय में कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह या किसी ट्रस्ट ने इस अधिनियम के तहत अवैध शिकार या जंगली जानवरों के निषिद्ध व्यापार से कोई संपत्ति अर्जित की है तो राज्य सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी द्वारा संपत्ति को जब्त कर लिया जाएगा। राज्य सरकार द्वारा संपत्ति की ऐसी जब्ती कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया द्वारा और किसी संपत्ति, स्थान, लोगों या दस्तावेजों की जांच, तलाशी या सर्वेक्षण (सर्वे) जैसे आवश्यक कदम उठाकर की जा सकती है। यदि यह पाया जाता है कि संपत्ति का केवल एक हिस्सा अवैध रूप से अर्जित किया गया था, तो ऐसे व्यक्ति को एक मौका दिया जाएगा और उस पर जुर्माना लगाने के लिए कहा जाएगा जो संपत्ति के बाजार मूल्य के बराबर होता है।

अधिनियम के तहत विकास वन्य जीवों की वर्तमान स्थिति

परियोजना बाघ संरक्षण

बाघ संरक्षण परियोजना, 1973 में बंगाल बाघों की आबादी को सुनिश्चित करने और बनाए रखने के लिए शुरू की गई थी। बाघ संरक्षण परियोजना अभी भी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की मदद से चल रही है। 

यह बाघ सरंक्षण और उनके विशिष्ट आवासों की सुरक्षा के लिए राज्य सरकार द्वारा धारा 38 V के तहत निर्दिष्ट संरक्षण योजना को अपनाने की अनुमति देता है। यह उनकी आबादी को बनाए रखने के लिए है। यह बाघ सरंक्षण में उपयोग की जाने वाली पारिस्थितिक रूप से अनुकूल भूमि को बनाए रखने के लिए भी है, जिसमें इसे अन्य संरक्षित क्षेत्रों के साथ जोड़ने के लिए कुछ नाम शामिल हैं।

भारत के साथ भूटान, बांग्लादेश, रूस, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओ, मलेशिया, म्यांमार, थाईलैंड, वेतनाम और नेपाल ने भी जंगल में शेष बाघों, जो आसन्न (इमिनेनी) विलुप्त होने के कगार पर है, को बचाने के लिए सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा में प्रवेश किया है।

इसके अलावा, एन.टी.सी.ए. ने भारतीय वन्य जीव संस्थान के सहयोग से एक दस्तावेज ‘कनेक्टिंग टाइगर पॉपुलेशन फॉर लॉन्ग टर्म कंजर्वेशन‘ प्रकाशित किया है, जिसके तहत:

  • बाघों की गतिविधियों के प्रबंधन के लिए 32 बाघ कॉरिडोर की पहचान की गई है।
  • ये कॉरिडोर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को सुव्यवस्थित (स्ट्रीमलाइम) करने में मदद करते हैं और साथ ही बाघों के सुरक्षित मार्ग के लिए शमन (मिटिगेशन) उपायों को भी शामिल करते हैं।

लाइनर इंफ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट के प्रभाव को कम करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल उपाय ‘विनाश के बिना विकास’ पर आधारित है और विकास प्रक्रिया के हर चरण में जैव विविधता को मुख्यधारा में लाने की अनुमति देता है। 

यह विभिन्न विधानों, जैसे वन संरक्षण अधिनियम, 1980; तटीय विनियमन (रेगुलेशन) क्षेत्र अधिसूचना 2011 ; वन अधिकार अधिनियम, 2006 और 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (2009 में संशोधित) में उपयुक्त परिवर्तन करके संभव हो सकता था। ये सभी कानून वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के उद्देश्यों के अनुरूप हैं। 

परियोजना हाथी

परियोजना हाथी एक केंद्रीय योजना है जिसे 1992 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया था। इसने हाथियों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता देने के लिए एक राष्ट्रीय हाथी वार्तालाप प्राधिकरण का प्रस्ताव रखा था। 

उन्हें अधिनियम की अनुसूची I में शामिल किया गया है। परियोजना बाघ ने हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (‘एम.आई.के.ई.एस.’) को भी लागू किया है। वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत हाथी टास्क फोर्स की 2010 की रिपोर्ट के तहत कुछ हाथी कॉरिडोर की भी पहचान की गई थी। इस अधिनियम के तहत कुल 88 कॉरिडोर की पहचान की गई थी।  

हाथी कॉरिडोर की सुरक्षा के लिए अदालत भी आगे आई हैं। . रंगराजन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2018) के एक ऐतिहासिक फैसले में, अदालत ने तमिलनाडु सरकार को 48 घंटे के भीतर नीलगिरि पहाड़ियों में सभी अवैध रिसॉर्ट्स को बंद करने का आदेश दिया, क्योंकि उस क्षेत्र के आसपास मुख्य हाथी कॉरिडोर है।  

2003 के संशोधन द्वारा जोड़े गए संरक्षित क्षेत्रों के रूप में संरक्षण रिजर्व और सामुदायिक रिजर्व 

2003 के संशोधन जैसे अधिनियमों में एक निरंतर संशोधन किया गया है जिसने अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान से परे संरक्षित क्षेत्र की अवधारणा को क्रमशः धारा 36A  और धारा 36C के तहत संरक्षण रिजर्व और सामुदायिक रिजर्व शामिल करने के लिए बढ़ाया है। 

संरक्षण और सामुदायिक रिजर्व को बफर जोन और माइग्रेशन कॉरिडोर के रूप में संदर्भित किया जाता है जो कि राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों जैसे संरक्षित क्षेत्रों के बीच स्थापित होते हैं। वर्तमान में, क्रमशः 97 सरंक्षण रिजर्व और 214 सामुदायिक रिजर्व हैं। हाल ही में, 2020 में, महाराष्ट्र में टिल्लारी को एक संरक्षण रिजर्व के रूप में घोषित किया गया था। 

यह राष्ट्रीय वन्य जीव योजना (2002-16) में प्रस्तावित किया गया था। केंद्र प्रायोजित योजना (वन्य जीव आवासों का एकीकृत विकास) पारिस्थितिकवाद के सिद्धांत पर आधारित थी जो प्रकृति-केंद्रित है और मानव हित को गैर-मानवीय आवश्यकताओं के साथ सामंजस्यपूर्ण (हार्मोनियस) रूप से संतुलित करने की अनुमति देता है। संरक्षित क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं और वन्य जीवों की सुरक्षा और जैव विविधता के संरक्षण के लिए नियोजन दृष्टिकोण के भीतर विश्व स्तर पर स्वीकार किए गए हैं।

वन्य जीव कॉरिडोर  

हाल ही में, भारत के पहले शहरी वन्य जीव कॉरिडोर की योजना नई दिल्ली और हरियाणा के बीच बनाई जा रही है। तेंदुओं और अन्य जानवरों जैसे वन्य जीव जानवरों को सुरक्षित मार्ग प्रदान करने के लिए यह कॉरिडोर असोला भट्टी वन्य जीव अभयारण्य के पास है।

वन्य जीव कॉरिडोर भारत में बहुत महत्व रखते हैं क्योंकि ये संरक्षित क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं और मानव बस्तियों में हस्तक्षेप किए बिना जानवरों की आवाजाही की अनुमति देते हैं। अक्सर दक्षिणी क्षेत्र में जानवर पानी की तलाश में संरक्षित रिजर्व से दूसरे स्थानों की यात्रा करते हैं। 

ऐसे मामलों में, वन्य जीव कॉरिडोर एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं जैसे मुदहल्ली हाथी कॉरिडोर सत्यमंगलम बाघ संरक्षण से जुड़ा हुआ है जो आमतौर पर गर्मियों के दौरान सूखे का सामना करता है। इस वजह से, कई स्तनधारी पानी की तलाश में कर्नाटक और केरल के जंगलों में चले जाते हैं। लेकिन कॉरिडोर के कारण जानवरों की आवाजाही मानव आबादी में हस्तक्षेप नहीं करती थी। 

इसलिए मानव-वन्य जीव संघर्ष को कम करने के लिए वन्य जीव कॉरिडोर महत्वपूर्ण हैं। 

अधिनियम के तहत सभी को क्या विकास चाहिए?

अवैध शिकार और अवैध व्यापार की समस्या बनी हुई है 

अवैध शिकार और व्यापार का मुद्दा प्रभावी नहीं रहा है क्योंकि यह अभी भी भारत के कई हिस्सों में प्रचलित है जैसे कि कर्नाटक और ओडिशा में हाथी दांत की तस्करी। प्रकृति के वन्य जीव व्यापार निगरानी नेटवर्क (ट्रैफिक) के लिए वर्ल्ड वाइड फंड (‘डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ’.) के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान वन्य जीवों की मांग दोगुनी हो गई क्योंकि लोगों ने आय के वैकल्पिक स्रोत के रूप में वन्य जीवों का व्यापार करना शुरू कर दिया था। मांस की खपत की मांग में भी वृद्धि हुई थी।

कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में, पैंगोलिन विलुप्त प्रजाति बन सकता है क्योंकि इसके पैमाने और मांस की जब्ती में खतरनाक वृद्धि हुई है।

जानवरों की खाल का इस्तेमाल भारत में वन्य जीवों के लिए लगातार खतरा बना हुआ है। लाॅकडाउन के दौरान बहुत से लोगों ने व्यापार करना शुरू किया, तेंदुए जैसे जानवरों की खाल का उपयोग भी बढ़ गया। जम्मू में वन्य जीव संरक्षण विभाग ने तेंदुए की खाल और शरीर के अन्य अंग जब्त किए है। तेंदुआ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची I के तहत संरक्षित है।

हाल ही में, ओडिशा में, तीन अलग-अलग जिलों में 10 से अधिक तेंदुए की खाल जब्त की गई थी। पिछले एक साल में 26 से ज्यादा तेंदुओं का शिकार किया जा चुका है। एक दशक में, ओडिशा भर में 150 तेंदुओं का अवैध रूप से शिकार किया गया और अंतरराष्ट्रीय बाजार में पैसे के लिए  उनकी खाल और हड्डियों का व्यापार किया गया है।

यह अधिनियम सी.आई.टी.ई.एस. के तहत दायित्वों को कवर नहीं करता है

इसके अलावा, सरकार ने हाल ही में चार धाम परियोजना को मंजूरी दी है जो अधिनियम के उद्देश्य के विपरीत है। यह अधिनियम वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय (एंडेंजर्ड) प्रजातियों  में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (‘सी.आई.टी.ई.एस.’) के तहत भारत के दायित्व को कवर नहीं करता है। सी.आई.टी.ई.एस. एक अंतरराष्ट्रीय संधि (ट्रीटी) है जो वन्य जीव प्रजातियों के व्यापार को नियंत्रित करती है ताकि उनका अस्तित्व खतरे में न पड़े। 

इसके अलावा, सरकार ने 11 जून 2020 को, सी.आई.टी.ई.एस. के तहत संरक्षित विदेशी जीवन के कब्जे वाले व्यक्तियों को माफी देने की सलाह दी थी। सी.आई.टी.ई.एस. के तहत विदेशी जीवित प्रजातियां वे जानवर या पौधे हैं जो अपने मूल स्थान से एक नए स्थान पर चले गए हैं। तब से, विदेशी जीवित प्रजातियों की तस्करी में भारी वृद्धि हुई है। स्मगलिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2019-2020 के अनुसार, दुनिया के विभिन्न हिस्सों से भारत में लुप्तप्राय और विदेशी जीवों की तस्करी में काफी वृद्धि हुई है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। 

मीठे पानी की मछलियों की प्रजातियां खतरे में हैं

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (‘आई.यू.सी.एल.’) की रेड लिस्ट के अनुसार, भारत में मीठे पानी की मछलियों की प्रजातियां वर्तमान में घट रही हैं। लेकिन वे अभी भी विलुप्त होने के कगार पर नहीं हैं। इसके लिए योगदानकर्ता प्रदूषण, घटते जल स्तर और नदी के आवासों का नुकसान हैं क्योंकि भारत में बांध बनाने से पहले मत्स्य विशेषज्ञों से परामर्श नहीं किया जाता है। 

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड खतरे में है

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (‘जी.आई.बी.’) विभिन्न अभयारण्यों में विंडमिल और ओवरहेड केबलों के टकराने के कारण मर रहे हैं। हाल ही में, जैसा कि पिछले वर्ष गुजरात सरकार द्वारा रिपोर्ट किया गया था, कच्छ बस्टर्ड अभयारण्य में कोई जी.आई.बी नहीं देखा गया है। 

प्रवासी (माइग्रेटरी) पक्षियों की आबादी में लगातार गिरावट 

स्टेट ऑफ बर्ड्स रिपोर्ट 2020 के अनुसार प्रवासी पक्षियों सहित भारत की पक्षी आबादी में तेजी से गिरावट आ रही है। संविदात्मक खेती और पक्षियों के आवासों में निरंतर अनुमान के कारण प्रवासी पक्षियों की आबादी घट रही है। प्रवासी शोरबर्ड्स, गल और टर्न में सबसे ज्यादा गिरावट आई है और यह दीर्घकालिक (लॉन्ग टर्म) गिरावट हो सकती है। कुछ निवासी जल पक्षी जैसे स्वैम्पेन, कूट और सारस भी कम हो गए हैं। 

यह अधिनियम जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों को संबोधित नहीं करता है 

इसके अलावा, भारत और बांग्लादेश  के सुंदरबन क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से संबंधित चिंताओं और तेजी से बढ़ते समुद्र के स्तर को समायोजित (अकोमोडेट) करने के लिए कानून को अद्यतन (अपडेट) नहीं किया गया है।

वन्य जीव विकास की तुलना में आर्थिक विकास 

अधिनियम का प्रभाव बहुत सुसंगत नहीं रहा है, विशेष रूप से हाल के वर्षों में जहां सरकार का ध्यान काफी आक्रामक विकास पर स्थानांतरित हो गया है, जबकि विचार भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करके सतत विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) का पालन करना था।

सरकार की हाल ही की नीतियां या मौजूदा अधिनियम भी इसी धारणा को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए, अधिनियम के तहत भूमि अधिग्रहण करने के लिए कलेक्टर की शक्ति वही है जो भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 में है। 

भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता का अधिकार नामक संशोधित अधिनियम, सरकार को जरूरी मामलों में आवश्यक सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन के बिना भूमि अधिग्रहण करने की अनुमति देता है। 

2013 अधिनियम की धारा 40 एक ऐसी स्थिति से संबंधित है जहां सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा या रक्षा उद्देश्यों, या किसी प्राकृतिक आपदा या आपातकाल के उद्देश्य से भूमि का अधिग्रहण करती है। भले ही यह प्रावधान वन्य जीव अधिनियम के तहत कामकाज को सीधे तौर पर प्रभावित न करे, फिर भी यह कलेक्टर की शक्ति को कम करता है। 

2013 का अधिनियम सरकार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की भूमि का अधिग्रहण करने की भी अनुमति देता है।  

इसके अलावा, राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड ने तेलंगाना में कवल बाघ कॉरिडोर के माध्यम से रेलवे लाइन और भगवान महावीर वन्य जीव अभयारण्य और गोवा में  मोलेम राष्ट्रीय उद्यान के माध्यम से रेलवे विस्तार जैसी कुछ ढांचागत (इंफ्रास्ट्रक्चरल) परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है ।

सर्वोच्च न्यायालय ने गोवा में रेलवे के विस्तार के लिए मंजूरी देने के लिए सरकार को फटकार लगाई। मंजूरी दी जानी चाहिए या नहीं, इसका अध्ययन करने के लिए गठित न्यायालय की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने कहा है कि इस क्षेत्र में एक नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र है। और रेलवे का विस्तार इसे नष्ट कर देगा।

उचित पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के बिना इन वन्य जीव मंजूरी को सीधे नौकरशाही (ब्यूरोक्रेटिक) हस्तक्षेप के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।  

निर्णय

  • बिहार राज्य बनाम, मुराद अली खान, फारुख सलाउद्दीन (1988) का एक ऐसा मामला है जो हाथी दांत की तस्करी के लिए हाथियों के अवैध शिकार से संबंधित है, जहां अदालत ने देखा कि ” जानवरों की प्रचुरता (वेल्थ) की कमी में सबसे बड़ा कारक प्रकृति में जीवनसभ्यव्यक्ति (सिविलाइज्ड मेन) रहा है जो अत्यधिक व्यावसायिक शिकार के माध्यम से सीधे काम कर रहा है।”
  • बलराम कुमावत बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2003) में , अदालत ने फिर से जोर दिया कि अधिनियम अफ्रीकी हाथी दांत के व्यापार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है और अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत व्यापार की स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन का वैध दावा नहीं हो सकता है। चूंकि प्रतिबंध अनुच्छेद 19(2) के तहत एक उचित प्रतिबंध है ।
  • संसार चंद बनाम राजस्थान राज्य (2010) ने वन्य जीवों के कानूनी व्यापार और वाणिज्य के पर्यावरण पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव पर प्रकाश डाला और वन्य जीव अधिनियम के तहत निषेध के बावजूद इसे प्रभावी ढंग से नियंत्रित नहीं किया गया है। ये संगठित अपराध अंतरराष्ट्रीय हैं क्योंकि जाहिर तौर पर भारत के भीतर कोई व्यापार नहीं हो रहा है, लेकिन अन्य देशों की मांगों को पूरा करने के लिए भारत के बाहर तस्करी की जाती है जैसे कि चीनी चिकित्सा उद्योग के लिए बाघों का अवैध शिकार। 
  • महावीर नाथ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2019) में, धारा 9 और 11 की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि उन धाराओं के तहत उल्लिखित प्रतिबंधों ने याचिकाकर्ता को उसके आजीविका के अधिकार से वंचित कर दिया। 
  • याचिकाकर्ता नाथ/सपेरा समुदाय का एक सदस्य है, जो कुछ दिनों को छोड़कर जहां सांपों की पूजा की जाती है, अपनी आजीविका के लिए आकर्षक सर्प के व्यवसाय को करने से वंचित है। लोगों को सरीसृपों के प्रति संवेदनशील बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करने के लिए इस समुदाय को “नंगे पांव (बैरफुट) रूढ़िवादी शिक्षक” के रूप में संदर्भित किया गया था। 
  • याचिका को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि धारा 9 के परिणामस्वरूप सांपों को रखने पर प्रतिबंध है और इस प्रकार, यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (g) के तहत व्यापार और अनुच्छेद 21 के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 19 (1) (g) एक पूर्ण अधिकार नहीं है, लेकिन एक योग्य अधिकार है और जनता के सामान्य कल्याण के लिए उचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

निष्कर्ष

अधिनियम व्यापक (कॉम्प्रिहेंसिव) है और वन्य जीवों की सुरक्षा और संरक्षण के लगभग हर पहलू को शामिल करता है। कानून की पूर्णता इस तथ्य से परिलक्षित (रिफ्लेक्टेड) होती है कि यह कई समितियों और प्राधिकरणों की स्थापना की अनुमति देता है जो बाघ संरक्षण प्राधिकरण जैसे विशिष्ट लक्ष्यों के साथ शक्तियों का प्रयोग करेंगे। यह शक्तियों के प्रत्यायोजन के लिए भी अनुमति देता है। 

लेकिन विभिन्न प्राधिकरणों के सामने शक्तियों के इस तरह के विभाजन से कभी-कभी जवाबदेही का मुद्दा पैदा हो जाता है क्योंकि शक्तियां बिखर जाती हैं। बहुत सी समितियाँ और प्राधिकरण अधिनियम के उद्देश्य को कमजोर करते हैं, जितनी अधिक शक्ति विभाजित होती है, निगरानी में विफलता की संभावना उतनी ही अधिक होती है। 

केंद्र में एक मजबूत नियामकरेगुलेटरी ढांचे की आवश्यकता है जो उप-ढांचे के भीतर जांच और संतुलन बना सके। क्योंकि सिर्फ अलग-अलग समितियां बनाने और अलग-अलग प्राधिकरणों को काम सौंपने से वन्य जीव संरक्षण नहीं होगा जब तक कि अधिनियम का कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) बेहतर नहीं हो जाता। जानवरों को अवैध शिकार से बचाने के लिए एक मजबूत व्यवस्था की भी जरूरत है। 

संदर्भ

 

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here