तीसरे लिंग और भारतीय कानून के इतिहास को जाने

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Indian Laws
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यह लेख, दिल्ली यूनिवर्सिटी के कमला नेहरू कॉलेज की ग्रेजुएट Shruti Iyer द्वारा लिखा गया है। इस लेख में वह, तीसरे लिंग और भारत में उससे संबंधित कानूनों के इतिहास के बारे में चर्चा करतीं हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

हमारे समाज में, ट्रांसजेंडर, सभी जातियों, जातीयता (एथनिसिटी), धार्मिक और सामाजिक वर्गों (क्लासेज) को शामिल करते हैं, फिर भी, वे, अपने लिंग और शारीरिक बनावट के कारण कभी भी सम्मानजनक जीवन का आनंद नहीं ले पाते। उन्हें पूरे इतिहास में, सेक्शुअल डिमॉरफिज्म के कठोर, जबरन अनुरूपता (कनफर्मिटी) के परिणामस्वरूप भ्रम और पीड़ा को सहन करना पढ़ा है। वे सामाजिक कलंक, भेदभाव (डिस्क्रिमिनेशन) और अपने सिविल और मानव अधिकारों से वंचित (डिनाई) करने से जुड़ी असमानताओं का सामना कर रहे हैं। उनके खिलाफ भेदभाव, सब्सटेंस एब्यूज और आत्महत्या की उच्च दरों से जुड़ा हुआ है, और वे पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन, आवास (हाउसिंग), शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भेदभाव का सामना कर रहे हैं।

उन्हें लगातार लोगों से, उनके बारे में अपशब्द सुनना और अपनाने पर मजबूर किया गया है। उनका जीवन हमेशा दुनिया के रंगों से दूर रहा है, सिर्फ सामाजिक स्वीकृति के इनकार के कारण। समाज उन्हें सनकी (एसेन्ट्रिक) चरित्र के रूप में देखता है, जो समाज की निर्धारित (प्रेसक्राइब्ड) पवित्र सीमा में फिट नहीं होगा।

ट्रांसजेंडर को आम तौर पर उन व्यक्तियों के लिए एक छत्र (अम्ब्रेला) शब्द के रूप में वर्णित किया जाता है, जिनकी लिंग पहचान, लिंग अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) या व्यवहार उनके बायोलॉजिकल सेक्स के अनुरूप नहीं होते हैं। टी.जी. उन व्यक्तियों को भी शामिल कर सकता है जो जन्म के समय सौंपे गए अपने लिंग के साथ पहचान नहीं करते हैं, जिसमें हिजड़ा/किन्नर शामिल हैं, जो इस रिट पेटिशन में खुद को “तीसरे लिंग” के रूप में वर्णित करते हैं और वे अपनी पहचान, पुरुष या महिला के रूप में नहीं करते हैं। हिजड़े, अपने शरीर की रचना और मनोवैज्ञानिक (साइकोलॉजिकल) रूप से पुरुष नहीं हैं लेकिन वह भी महिला नहीं है, हालांकि वे महिलाओं की तरह हैं, जिनमें कोई महिला प्रजनन अंग (रिप्रोडक्टिव ऑर्गन) नहीं है और कोई मासिक धर्म (मेंस्ट्रुएशन) भी नहीं होता है।

क्योंकि हिजड़ों में न तो पुरुष या महिला के समान प्रजनन क्षमता (कैपेबिलिटी) होती है, इसलिए वह न तो पुरुष होते हैं और न ही महिलाएं और एक संस्थागत (इंस्टीट्यूशनल) “तीसरे लिंग” होने का दावा करते हैं।

एक अनुमान के मुताबिक भारत में करीब 20 लाख ट्रांसजेंडर्स हैं। भारत में, ट्रांसजेंडर लोगों, ट्रांससेक्शुअल, क्रॉस-ड्रेसर, किन्नर और ट्रांसवेस्टाइट्स का वर्णन करने के लिए, हिजड़े शब्द का इस्तेमाल सामान्य रूप से किया जाता है। प्रचारकों (कैंपेनर्स) का कहना है कि वह समाज के किनारे पर रहते हैं, अक्सर गरीबी में रहते हैं, और अपनी लैंगिक पहचान के कारण उनका बहिष्कार (ऑस्ट्रासाइज) किया जाता है। इस लिंग के ज्यादातर लोग गाकर और नाचकर या भीख मांगकर और प्रॉस्टिट्यूट बनकर अपने लिए जीविका (लिविंग) कमाते  हैं।

इतिहास (हिस्ट्री)

तीसरे लिंग की घृणित (अबोमिनेबल) स्थिति का पता औपनिवेशिक (कॉलोनियल) युग से लगाया जा सकता है, जब हिजड़ा/टी.जी. समुदाय (कम्युनिटी) के कार्यों की निगरानी के लिए कानून बनाया गया था, जिसे क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट, 1871 कहा जाता है, जो हिजड़ा व्यक्तियों के पूरे समुदाय को सहज रूप ‘आपराधिक’ और ‘नॉन बेलेबल अपराधों को व्यवस्थित तरह से करने के आदी के रूप में से मानता था। इस एक्ट में कुछ आपराधिक ट्राइब्स और किन्नरों के रजिस्ट्रेशन, उन पर निगरानी और नियंत्रण (कंट्रोल) करने के लिए प्रावधान (प्रोविजंस) बनाए गए थे और उन किन्नरों को दंडित किया गया था, जो रजिस्टर्ड थे, और एक सार्वजनिक सड़क या स्थान पर एक महिला की तरह कपड़े पहने या अलंकृत (ऑर्नमेंटेड) प्रतीत होते थे। ऐसे व्यक्तियों को बिना वारंट के भी गिरफ्तार किया जा सकता था और 2 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती थी।

भारतीय कानून 

आई.पी.सी. की धारा 377 को, इंडियन पीनल कोड, 1860 में क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के इनैक्ट होने से पहले डाला गया था, जिसने एक समय में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को, एनल सेक्स और ओरल सेक्स सहित व्यक्तियों के बीच सभी पेनाइल नॉन वजाइनल सेक्शुअल कार्यो के लिए अपराधी बना दिया था, जब वह भी आमतौर पर निर्धारित सेक्शुअल प्रथाओं से जुड़े थे। क्वीन एम्प्रेस बनाम खैराती (1884) आई.एल.आर. 6 ऑल 204, में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को देखा जा सकता है, जिसमें एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को इस संदेह पर गिरफ्तार किया गया था और धारा 377 के तहत मुकदमा चलाया गया था कि वह एक ‘हैबिचुअल सोडोमाइट’ था और बाद में उसे अपील पर बरी (एक्युट) कर दिया। यह न्यायिक कानून भारत में ऐतिहासिक समय के विपरीत है जहां टी.जी. समुदाय को हिंदू पौराणिक (माइथोलॉजी) कथाओं और अन्य धार्मिक ग्रंथों में हमारे देश में एक मजबूत ऐतिहासिक स्थिति मिली थी। भगवान राम, महाकाव्य (एपिक) रामायण में, उनकी भक्ति से प्रभावित होकर, उन्हें 11 लोगों को, बच्चे के जन्म और विवाह जैसे शुभ अवसरों पर और उद्घाटन समारोह में आशीर्वाद देने की शक्ति प्रदान करते हैं। जैन ग्रंथ भी टी.जी. का विस्तृत (डिटेल) संदर्भ देते हैं जिसमें ‘मनोवैज्ञानिक सेक्स’ की अवधारणा (कांसेप्ट) का उल्लेख (मेंशन) है। ट्रांसजेंडर्स ने इस्लामी दुनिया के शाही दरबारों में भी एक प्रमुख भूमिका निभाई है, विशेष रूप से ओट्टोमन साम्राज्यों और मध्यकालीन (मिडिवल) भारत में मुगल शासन में।

हालांकि, समाज के कमजोर और अन्य पिछड़े हुए वर्गों को मुफ्त कानूनी सेवाएं प्रदान करने के लिए लीगल सर्विसेज अथॉरिटी एक्ट, 1997 के तहत गठित (कंस्टीट्यूटेड), नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा उठाए गए एक कदम के माध्यम से ट्रांसजेंडर समुदायों की दयनीय स्थितियों का निवारण (रीड्रेस्ड) किया गया है और उनके पक्ष की पैरवी करने के लिए आगे आएं है।

हिजड़ा होने का दावा करने वाली लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी रस्ते में भी बाधा डाली गयी थी ताकि वह प्रभावी तरीके से ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों और अपने जीवन के अनुभवों को पेश कर सके ताकि पुरुष और महिला के अलावा तीसरे लिंग के रूप में उनकी पहचान की जा सके।

नतीजतन, 2009 में, भारत के इलेक्शन कमीशन ने, ट्रांसजेंडर्स को मतपत्रों (बैलट फॉर्म्स) पर अपने लिंग को “अन्य” के रूप में चुनने की अनुमति देकर पहला कदम उठाया।

उपर्युक्त निर्णय को, जस्टिस के.एस. राधाकृष्णन, जिन्होंने दो-जज वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच का नेतृत्व (हेड) किया, के हाल ही के ऐतिहासिक फैसले (अप्रैल, 2014) से पुष्टि मिल है, जो ट्रांसजेंडर्स को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता देती है। ऐतिहासिक निर्णय, केंद्र और राज्य सरकारों से उनसे, सामाजिक और ‘आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों’ के रूप में व्यवहार करने के लिए कहता है, ताकि उन्हें नौकरियों और शिक्षा में रिजर्वेशन मिल सके। यह कोर्ट के फैसले के साथ जाता है जिसमें उन्हें वोटर आई.डी., पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस सहित सभी सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। इसके अलावा, केंद्र और राज्यों को पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और रोजगार प्रदान करके समुदाय को मुख्यधारा (मेनस्ट्रीम) में लाने के लिए कदम उठाने का भी निर्देश दिया गया था।

व्यंग्यात्मक रूप (आईरोनिकली) से देखा जाए तो, इंडियन पीनल कोड की धारा 377, जिसके अनुसार सेम सेक्स संबंध बनाना एक “अपराध” है, तीसरे लिंग को ‘मान्यता’ देने के कोर्ट के हाल ही के फैसले के संयोजन (कंजंक्शन) के साथ मौजूद है। कानूनी विशेषज्ञों (एक्सपर्ट्स) का कहना है कि उपरोक्त निर्णय ट्रांसजेंडर लोगों को एक अजीब स्थिति में डाल देता है: एक तरफ, उन्हें अब कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है और संविधान के तहत सुरक्षित हैं, लेकिन दूसरी तरफ वह सहमति से गे सेक्स संबंध रखने पर कानून तोड़ सकते हैं।

स्रोत (सोर्सेज)

  • indiatoday.in
  • supremecourtofindia.nic.in
  • rainbowsarereal.blogspot.in

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